प्रिलिम्स फैक्ट्स (20 Apr, 2023)



जगदीश चंद्र बोस

हाल ही में तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्त्ताओं ने पता लगाया है कि जल की आवश्यकता जैसी तनाव की स्थिति में पादप अल्ट्रासोनिक रेंज में विशिष्ट, उच्च-स्वर में आवाज़ें निकालते हैं। 

  • इस खोज को भारत के विख्यात वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के कार्यों के तार्किक विस्तार के रूप में देखा जाता है। पादपों द्वारा विभिन्न संवेदनाओं, यथा- हर्ष व दुख का अनुभव करने संबंधी उनका प्रदर्शन आधुनिक विज्ञान में उनके कार्यों की निरंतर प्रासंगिकता पर प्रकाश डालता है।

पादपों के अध्ययन में महत्त्वपूर्ण योगदान: 

  • उन्होंने प्रदर्शित किया कि पादप भी पशुओं के समान सुख और दर्द का आभास कर सकते हैं।
  • एक भौतिक विज्ञानी के रूप में उन्होंने अपने कौशल का उपयोग संवेदनशील उपकरणों के निर्माण में किया जो पादपों के सबसे सूक्ष्म संकेतों का भी पता लगा सकते थे। 
  • उन्होंने जीव विज्ञान में पौधों की गति, भावनाओं और तंत्रिका तंत्र का अध्ययन किया। उन्हें "भावनाओं" शब्द का उपयोग करने का श्रेय दिया जाता है जिस तरह से पौधे स्पर्श करने के लिये प्रतिक्रिया करते हैं, हालाँकि कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है कि यह शब्दार्थ का विषय है।

जगदीश चंद्र बोस: 

  • परिचय: 
    • इनका जन्म 30 नवंबर, 1858 को बंगाल में हुआ था। इनकी माता का नाम बामा सुंदरी बोस और पिता भगवान चंद्र थे।
    • वह एक प्लांट फिजियोलॉजिस्ट और भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने क्रेस्कोग्राफ का आविष्कार किया था जो पौधों की वृद्धि को मापने के लिये एक उपकरण है। उन्होंने पहली बार यह प्रदर्शित किया कि पौधों में भावनाएँ होती हैं।
  • शिक्षा: 
    • उन्होंने यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से  BSc, जो वर्ष 1883 में लंदन विश्वविद्यालय से संबद्ध था और वर्ष 1884 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से B.A (प्राकृतिक विज्ञान ट्राइपोस) किया था।
  • वैज्ञानिक योगदान: 
    • वह एक जीव-विज्ञानी, भौतिक विज्ञानी, वनस्पतिशास्त्री और साइंस फिक्शन के लेखक थे।
    • बोस ने वायरलेस संचार की खोज की और उन्हें इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग द्वारा रेडियो साइंस के जनक के रूप में नामित किया गया।
    • बोस को व्यापक रूप से माइक्रोवेव रेंज में विद्युत चुंबकीय संकेतों को उत्पन्न करने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है।
    • वह भारत में प्रयोगात्मक विज्ञान के विस्तार के लिये उत्तरदायी थे।
    • बोस को बंगाली साइंस फिक्शन का जनक माना जाता है। उनके सम्मान में चंद्रमा पर एक क्रेटर का नाम रखा गया है।
    • उन्होंने बोस इंस्टीट्यूट की स्थापना की, जो भारत का एक प्रमुख अनुसंधान संस्थान है। वर्ष 1917 में स्थापित यह संस्थान एशिया में पहला अंतःविषय अनुसंधान केंद्र था। 
  • पुस्तकें: 
    • उनकी पुस्तकों में रिस्पांस इन द लिविंग एंड नॉन-लिविंग (1902) और द नर्वस मैकेनिज़्म ऑफ प्लांट्स (1926) शामिल हैं।
  • मृत्यु: 
    • 23 नवंबर, 1937 को बिहार के गिरिडीह में उनका निधन हो गया।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सौराष्ट्र-तमिल संगमम

सौराष्ट्र-तमिल संगमम (Saurashtra-Tamil Sangamam) में लगभग 3,000 लोगों के भाग लेने की उम्मीद है। इस महोत्सव का उद्देश्य गुजरात और तमिलनाडु के दो तटीय राज्यों के बीच ‘पुराने संबंधों’ और सांस्कृतिक संबंधों को प्रदर्शित करना है।

सौराष्ट्र-तमिल संगमम:  

  • पृष्ठभूमि:
    • सदियों पहले यानी 600-1000 वर्ष के बीच आक्रमणों ने कई लोगों को गुजरात में सौराष्ट्र से पलायन करने और मदुरै के आसपास के तमिलनाडु के ज़िलों में नई बस्तियाँ स्थापित करने के लिये मजबूर किया, जिसे अब तमिल सौराष्ट्रियन के रूप में जाना जाता है।
    • गुजराती मूल के लोग तमिलनाडु में विभिन्न स्थानों जैसे- तिरुचि, तंजावुर, कुंभकोणम और सलेम में बस गए हैं, जिससे गुजरात और तमिलनाडु के बीच सांस्कृतिक संबंध मज़बूत हुए हैं।
  • महोत्सव की मुख्य विशेषताएँ: 
    • इस महोत्सव का उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक विविधता और ताकत को उज़ागर करना तथा लोगों को तीर्थस्थलों एवं सांस्कृतिक विरासत के साथ फिर से जोड़ना है।
    • यह महोत्सव गुजरात में सोमनाथ, द्वारका और केवडिया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जैसे कई स्थानों पर आयोजित होगा।

  • लोगो का महत्त्व:  
    • यह तमिल-सौराष्ट्र के लोगों की रेशमी कपड़े की विशेषज्ञता और गुजरात के कपड़ा उद्योग के विलय को दर्शाता है।
    • दो संस्कृतियों के संगम को सोमनाथ मंदिर, सौराष्ट्रियों की उत्पत्ति के स्थान और मदुरै के पास मीनाक्षी मंदिर, जहाँ वे बसे थे, के माध्यम से दर्शाया गया है।
    • डांडिया (गुजरात) और भरतनाट्यम (तमिलनाडु) के साथ नृत्य मुद्रा में एक युवती दो कला रूपों के संगम का प्रतीक है।
    • ऊपरी तीन रंग 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' के संदेश को दर्शाता है, जबकि नीचे का नीला रंग दो राज्यों के समुद्र के साथ मिलन का प्रतीक है।

संगमम का महत्त्व: 

  • सांस्कृतिक सुरक्षा: यह सुरक्षा के अन्य रूपों की तरह ही महत्त्वपूर्ण है जैसे- सीमा सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा और साइबर सुरक्षा।  
    • संगमम के माध्यम से सांस्कृतिक संबंधों और विरासत की रक्षा कर एक राष्ट्र की पहचान को बनाए रखने के लिये आवश्यक है और इसने भारत के सांस्कृतिक पुनरुत्थान को देखा है।
  • सामुदायिक भवन और सामाजिक सामंजस्य: संगमम समुदाय को एक साथ आने, सामाजिक और सामुदायिक भावना का निर्माण करने के लिये एक मंच के रूप में कार्य करता है।
    • यह विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के मध्य एकता और घनिष्ठता की भावना को बढ़ावा देने के साथ ही आपसी सम्मान, समझ एवं सद्भाव को भी बढ़ावा देता है।

एक भारत श्रेष्ठ भारत:

  • परिचय: इसे वर्ष 2015 में विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लोगों के बीच जुड़ाव को बढ़ावा देने के लिये लॉन्च किया गया था ताकि विभिन्न संस्कृतियों के लोगों में आपसी समझ और बंधन को बढ़ाया जा सके, जिससे भारत की एकता व अखंडता मज़बूत होगी।
  • संबद्ध मंत्रालय: यह शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है।
  • योजना के तहत गतिविधियाँ: देश के प्रत्येक राज्य और केंद्रशासित प्रदेश को एक समयावधि के लिये दूसरे राज्य/केंद्रशासित प्रदेश के साथ जुड़ने का अवसर मिलेगा, जिसके दौरान वे भाषा, साहित्य, व्यंजन, त्योहारों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों, पर्यटन आदि क्षेत्रों में एक-दूसरे के साथ विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।

स्रोत: द हिंदू


डिजिटल राजमार्ग

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highways Authority of India- NHAI) ने पूरे देश में लगभग 10,000 किलोमीटर ऑप्टिक फाइबर केबल (OFC) के बुनियादी ढाँचे विकसित करने की घोषणा की है। 

  • NHAI की योजना संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप है जिसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक सभी के लिये सुरक्षित, सस्ती और सुलभ परिवहन प्रणाली तक पहुँच प्रदान करना है।

ऑप्टिक फाइबर केबल: 

  • परिचय: 
    • फाइबर-ऑप्टिक केबल ट्यूब की तरह होते हैं जिनमें काँच अथवा प्लास्टिक से बने तार लगे होते हैं। वे विद्युत का उपयोग करने वाले नियमित तारों की तुलना में बहुत तेज़ी से सूचना प्रेषित/संचारित करने के लिये प्रकाश का उपयोग करते हैं।
    • ऑप्टिकल फाइबर संचार प्रणाली में संचरण के लिये धातु के तारों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसमें सिग्नल कम क्षति के साथ यात्रा करते हैं।
      • ऑप्टिकल फाइबर पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection- TIR) के सिद्धांत पर काम करता है।
        • TIR किसी माध्यम के भीतर प्रकाश की किरण का पूर्ण परावर्तन है जैसे जल या काँच की सतहों से प्रकाश की किरण माध्यम में वापस आ जाती है।
    • बड़ी मात्रा में डेटा संचारित करने हेतु प्रकाश किरणों का उपयोग किया जा सकता है (बिना किसी मोड़ के लंबे सीधे तार द्वारा)।
      • मुड़ने की स्थिति में ऑप्टिकल केबलों को इस तरह डिज़ाइन किया जाता है कि वे सभी प्रकाश किरणों को अंदर की ओर परावर्तित करें (TIR का उपयोग करके)।

core

  • OFC नेटवर्क का विकास:
    • OFC नेटवर्क को राष्ट्रीय राजमार्ग लॉजिस्टिक्स प्रबंधन लिमिटेड (National Highways Logistics Management Limited- NHLML) द्वारा विकसित किया जाएगा, जो NHAI का पूर्ण स्वामित्त्व वाला विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) है।
    • यह OFC  बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ-साथ एकीकृत उपयोगिता गलियारों का निर्माण करके डिजिटल राजमार्गों का एक नेटवर्क स्थापित करेगा।
    • NHAI ने डिजिटल हाईवे के विकास के लिये दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे पर लगभग 1,367 किलोमीटर और हैदराबाद-बंगलूरू कॉरिडोर पर 512 किलोमीटर को पायलट रूट के रूप में चिह्नित किया है। देश भर के दूर-दराज़ के इलाकों में इंटरनेट कनेक्टिविटी प्रदान करने वाला OFC नेटवर्क 5G और 6G जैसी नए जमाने की दूरसंचार प्रौद्योगिकियों के रोलआउट में तेज़ी लाने में मदद करेगा।

डिजिटल हाईवे:

  • डिजिटल हाईवे या सड़कें डिजिटल प्लेटफॉर्म हैं जो साझा सार्वजनिक और निजी सेवाएँ प्रदान करते हैं। वह डिज़ाइन, निर्माण, संचालन एवं उपयोग के संदर्भ में सामरिक सड़क नेटवर्क (SRN) को बेहतर बनाने के लिये डेटा, प्रौद्योगिकी तथा कनेक्टिविटी का उपयोग करते हैं। इसका परिणाम सभी के लिये सुरक्षित यात्रा, तेज़ डिलीवरी और बेहतर अनुभव होगा।

भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण: 

  • परिचय: NHAI की स्थापना NHAI अधिनियम, 1988 के तहत की गई थी।
  • उद्देश्य: इसे राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) के साथ-साथ विकास, रखरखाव और प्रबंधन के लिये अन्य छोटी परियोजनाओं को सौंपा गया है।
    • राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) भारत में प्रमुख राजमार्गों को उच्च स्तर पर उन्नत, पुनर्व्यवस्थित और चौड़ा करने की एक परियोजना है। यह परियोजना वर्ष 1998 में शुरू की गई थी।
  • दृष्टिकोण: NHAI का प्रमुख दृष्टिकोण वैश्विक मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की व्यवस्था एवं अनुरक्षण के लिये राष्ट्र की आवश्यकता तथा भारत सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वपूर्ण नीतिगत ढाँचे के अंतर्गत अत्यंत समयबद्व व लागत प्रभावी तरीके से प्रयोक्तता की आशाओं को पूरा करना और इस तरह लोगों की आर्थिक समृद्धि एवं उनके जीवन स्तर को उन्नत करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 20 अप्रैल, 2023

भारत के तटीय शहरों में समुद्री कचरे से निपटने के लिये गठबंधन 

दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट (Centre for Science and Environment- CSE) ने पूरे भारत में समुद्री अपशिष्ट के प्रदूषण से निपटने हेतु तटीय शहरों का एक गठबंधन शुरू किया है। गठबंधन का उद्देश्य समुद्री कूड़े के प्रदूषण के गंभीर सीमा-पार के मुद्दे का समाधान करना है, जो समुद्री पारिस्थितिक तंत्र और समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचाने के लिये ज़िम्मेदार है। लगभग 80% समुद्री कचरा भूमि-आधारित ठोस अपशिष्ट के कुप्रबंधन से आता है जो विभिन्न भूमि-से-समुद्र मार्गों के माध्यम से समुद्र तक पहुँचता है। गठबंधन प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में समाप्त होने वाले सभी अपशिष्ट का 90% हिस्सा है। भारत लगभग 460 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन करता है, जिसमें से लगभग 8 मिलियन टन (2.26%) समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में रिसाव हो जाता है। CSE के अनुसार, दक्षिण एशियाई समुद्र विशेष रूप से प्रभावित होते हैं, हर दिन उनमें टनों प्लास्टिक कचरे का रिसाव होता है, जो प्रतिवर्ष 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे के लिये ज़िम्मेदार है। नौ राज्यों और 66 तटीय ज़िलों में भारत की 7,517 किलोमीटर की तटरेखा लगभग 250 मिलियन लोगों और समृद्ध जैवविविधता का आवास है। CSE ने एकल-उपयोग प्लास्टिक प्रतिबंध जैसी नीतियों को लागू करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और समुद्री अपशिष्ट के प्रदूषण में योगदान देने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट का प्रबंधन करने के लिये निर्माता की ज़िम्मेदारी को सख्ती से बढ़ाया।

और पढ़ें… समुद्री प्रदूषण 

भारत में दूध की कीमतें और उत्पादन 

भारत में वर्ष 2021 से दूध की कीमतों में वृद्धि देखने को मिली है और विभिन्न ब्रांडों के दूध के दामों में कई बार बढ़ोतरी देखी गई है, भारत में एक लीटर दूध की औसत कीमत अप्रैल 2023 में 57 रुपए तक पहुँच गई है जो पिछले वर्ष की तुलना में 12% अधिक है। लखनऊ और गुवाहाटी में दूध की कीमतें सबसे अधिक हैं, जबकि बंगलूरू और चेन्नई जैसे दक्षिणी शहरों में दूध की कीमतें अपेक्षाकृत कम हैं। दूध की कीमतों में उच्च मुद्रास्फीति का प्रमुख कारण खुदरा मुद्रास्फीति में हुई वृद्धि को माना जा सकता है। भारत में दुग्ध उत्पादन में कमी आने के पीछे कई कारण हैं, जिसमें COVID-19 महामारी के दौरान मांग में कमी, मवेशियों और भैंसों को प्रभावित करने वाली गाँठदार त्वचा की बीमारी का प्रकोप आदि हैं जिसके परिणामस्वरूप दूध की पैदावार कम हो रही है तथा चारे की उच्च कीमतें इसके उत्पादन की लागत में वृद्धि कर रही हैं। भारत विश्व में दूध का सबसे बड़ा उत्पादक है, हाल के वर्षों में इसमें कमी आई है, वित्त वर्ष 2018 में इसकी विकास दर 6.6% थी। अगर मौजूदा परिस्थिति में कोई बदलाव नहीं आता है तो इससे निपटने के लिये दुग्ध उत्पादों के आयात की संभावना को देखते हुए सरकार मक्खन और घी के आयात सहित अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है।

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माँ कामाख्या कॉरिडोर 

भारत के प्रधानमंत्री ने आशा व्यक्त की कि माँ कामाख्या कॉरिडोर, काशी विश्वनाथ धाम (उत्तर प्रदेश के वाराणसी) और श्री महाकाल महालोक कॉरिडोर (उज्जैन, मध्य प्रदेश) की तरह ही एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण स्थान बन जाएगा। काशी विश्वनाथ धाम और श्री महाकाल महालोक ने कई लोगों के आध्यात्मिक अनुभव को बढ़ाया है और पर्यटन में वृद्धि के माध्यम से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद की है। माँ कामाख्या कॉरिडोर एक प्रस्तावित बुनियादी ढाँचा परियोजना है जिसका उद्देश्य गुवाहाटी, असम, भारत में कामाख्या मंदिर तीर्थस्थल का नवीनीकरण और विकास करना है। इच्छा की देवी को समर्पित माँ कामाख्या मंदिर, जिसे कामेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है, गुवाहाटी में नीलांचल पर्वत पर स्थित है। धरती पर मौजूद 51 शक्तिपीठों में माँ कामाख्या देवालय को सबसे पुराना और सबसे पवित्र स्थान माना जाता है। यह तांत्रिक शक्तिवाद पंथ का केंद्र है, जिसका भारत में महत्त्वपूर्ण अनुसरण किया जाता है।

और पढ़े… काशी विश्वनाथ धाम, श्री महाकाल महालोक कॉरिडोर, 

साथी पोर्टल

केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण (Union Agriculture and Farmers Welfare- MoA & FW) मंत्री ने बीज उत्पादन, गुणवत्तापूर्ण बीज पहचान और बीज प्रमाणीकरण में चुनौतियों का समाधान करने हेतु साथी/SATHI (बीज ट्रेसबिलिटी, प्रमाणीकरण और समग्र सूची) पोर्टल एवं मोबाइल एप लॉन्च किया है। यह प्रणाली राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) द्वारा MoA तथा FW के सहयोग से 'उत्तम बीज - समृद्ध किसान' की थीम के साथ विकसित की गई है। SATHI पोर्टल कृषि क्षेत्र में चुनौतियों का समाधान करने हेतु महत्त्वपूर्ण कदम है, साथ ही जब ज़मीनी स्तर पर इसका उपयोग किया जाएगा तो यह कृषि में एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा। यह पोर्टल गुणवत्ता आश्वासन प्रणाली सुनिश्चित करेगा, बीज उत्पादन शृंखला में बीज के स्रोत की पहचान करेगा एवं QR कोड के माध्यम से बीजों का पता लगाएगा। इस प्रणाली में बीज शृंखला के सात कार्यक्षेत्र शामिल होंगे - अनुसंधान संगठन, बीज प्रमाणन, बीज लाइसेंसिंग, बीज सूची, किसान बिक्री हेतु डीलर, किसान पंजीकरण व बीज DBT। वैध प्रमाणीकरण वाले बीज ही वैध लाइसेंस प्राप्त डीलरों द्वारा केंद्रीय रूप से पंजीकृत किसानों को बेचे जा सकते हैं, जिन्हें सीधे अपने पूर्व-सत्यापित बैंक खातों में DBT के माध्यम से सब्सिडी प्रदान की जाएगी।