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दृष्टि आईएएस ब्लॉग

बनारस : सभ्यता का जल यहीं से जाता है, सभ्यता की राख यहीं आती है

युवाल नोआह हरारी, नाम तो सुना ही होगा आपने। मेरे सबसे प्रिय इतिहासकार हैं। इनकी एक किताब है सेपियंस। यह किताब जितनी मशहूर है उतना ही मशहूर है इससे बार बार उद्धृत किया जाने वाला एक वाक्य, धर्म मनुष्य की सबसे बड़ी ईज़ाद है। मनुष्य ने इसे क्यों खोजा होगा? संभवत: जीवन को व्यवस्थित ढंग से जीने के लिए। अब वह उसमें कितना सफल हुआ यह विशद विवेचन का विषय है।

हर धर्म अपने साथ अपना ईश्वर,अपनी एक विशिष्ट पूजा पद्धति, पूजा स्थल, पवित्र किताब और कभी कभी पवित्र शहर भी लेकर आता है जैसे वेटिकन,मक्का,मदीना,रोम,नाज़रेथ आदि। इसी फ़ेहरिस्त में कुछ ऐसे शहर भी आते हैं जो कई धर्मों के लिए समान रूप से पूजनीय होते हैं। ऐसे ही दो प्रमुख शहर हैं- बनारस और येरुशलम। इजरायल और फिलिस्तीन की राजधानी येरुशलम जहाँ दुनिया के तीन प्रमुख 'अब्राहमिक' धर्म यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम का पवित्र स्थल है वहीं बनारस भी हिन्दू, जैन और बौद्ध जैसे प्रमुख धर्मों और अनेक मतों एवं सम्प्रदायों का पवित्र स्थल है।

बनारस का प्राचीन नाम काशी था। विभिन्न ग्रंथों में इसे आनंदवन, अविमुक्त क्षेत्र , आनंद कानन वाराणसी आदि नामों से भी उल्लेखित किया गया है। वाराणसी इसका आधिकारिक नाम है। यह भारत का सबसे प्राचीनतम जीवित नगर है। इस शहर का प्रथम उल्लेख ऋग्वेद से मिलना शुरू होता है और फ़िर भारतीय इतिहास के हर दौर में मिलता जाता है जिसमें कभी यह शिक्षा का प्रमुख केंद्र होता है तो कभी व्यापार का, कभी स्वतंत्रता आंदोलन का और मौजूदा समय में देश की राजनीति का भी।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बनारस के सांसद हैं। अपने दो कार्यकालों में वह लगभग 30 बार बनारस आ चुके हैं। वे जब भी बनारस आते हैं, देशभर की निगाहें इस शहर पर लग जाती हैं। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का उद्घाटन किया, जिसे देश-विदेश के मीडिया संस्थानों ने कवर किया। हर तरफ बनारस की धूम थी। ये मेरी ख़ुशनसीबी है कि मैं इसी शहर में पैदा हुआ,पला बढ़ा और पढ़ा भी। पिछले लगभग 3 वर्षों से मैं दिल्ली में नौकरी याफ़्ता हूँ, लेकिन मेरी आत्मा इसी शहर में बसती है अतः काम से थोड़ा भी अवकाश मिलते ही मैं इस शहर की ओर भाग निकलता हूँ। लगभग मंत्रबिद्ध सा।

बनारस का नाम सुनते ही आप में से कइयों के मन मस्तिष्क में पवित्र गंगा नदी, उस पर बने अनेक सीढ़ियों वाले घाट, घाटों पर अवस्थित अनेक प्राचीन मंदिर, हाथ में लम्बी चिलम लिए गांजे का दम भरते साधु और उनको घेरे बैठे विदेशी सैलानी, जैसी छवियाँ तैर जाती होंगी। और इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्योंकि बनारस को मीडिया और फिल्में इन्हीं छवियों के साथ प्रस्तुत करती हैं। लेकिन ये बनारस का एक सतही प्रस्तुतीकरण है, बनारस इनके पार है और विशद भी। आम जनमानस में बनारस की थाती हिंदुओं के सबसे पवित्र शहर के तौर पर है। मध्यकाल में बनारस आने वाले तमाम यात्रियों ने इसे हिंदुओं के काबा के तौर पर वर्णित किया है। किंतु बनारस न सिर्फ हिंदुओं का सबसे पवित्र शहर है अपितु बौद्ध और जैन जैसे प्राचीन धर्मों का महत्वपूर्ण तीर्थस्थल भी है तो वहीं मध्यकालीन कबीरपंथी और रैदासी मान्यताओं की उदगम स्थली भी।

बनारस और हिंदू धर्म
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हिंदू धर्म के सभी प्रमुख ग्रंथों जैसे वेद, पुराण, उपनिषद, सूत्र साहित्य, महाभारत आदि में बनारस अथवा काशी का वर्णन है। स्कंद पुराण के 'काशी खंड 'में लगभग 15000 श्लोकों में काशी के विभिन्न तीर्थों का वर्णन है। मान्यता है कि इस नगरी को भगवान शिव ने बसाया था। पार्वती से अपने विवाह के पश्चात वे काशी आए, इसे अविमुक्त क्षेत्र कहा और यह भी कि वे इसे छोड़कर कभी नहीं जाएंगे। तब से काशी शिव की नगरी कहलाती है। इस शहर के हर गली हर कूचे पर शिव की गहरी छाप है। इस शहर में शिव के असंख्य मंदिर हैं जिसमें सर्वोपरि है काशी विश्वनाथ मंदिर। 12 वीं सदी में बना कर्दमेश्वर महादेव मंदिर तथा गोपुरम शैली में बना केदारेश्वर मंदिर भी अत्यंत महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं। इस शहर में शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों की अनुकृतियाँ भी हैं जहाँ श्रावण मास में लोगों की भारी भीड़ उमड़ती है।

शिव के अलावा यहाँ अन्य देवी देवताओं के भी बेहद प्रसिद्ध मंदिर हैं जैसे संकट मोचन हनुमान मंदिर जिसकी स्थापना महाकवि तुलसीदास ने की थी। यहाँ प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला संगीत समारोह सारी दुनिया में मशहूर है। मेरे प्रिय शास्त्रीय गायक पंडित जसराज ने अपनी आखिरी प्रस्तुति इसी समारोह में दी थी वह भी लगभग मृत्यु शैय्या से।

यहाँ दुर्गा के एक रूप कुष्मांडा देवी का भी एक पुराना मंदिर स्थित है जो अपने रक्तिम छवि तथा विशाल कुंड की वजह से बेहद दर्शनीय लगता है। विश्वनाथ मंदिर के पास ही माता अन्नपूर्णा का मंदिर है। यह मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ भक्तों में प्रसाद का वितरण भगवान को भोग लगाने से पहले किया जाता है।

हिंदू 'ट्रिनिटी' के भगवान ब्रह्मा की कहीं पूजा नहीं होती। ऐसा माना जाता है भारत में उनका सिर्फ एक मंदिर है जो राजस्थान के पुष्कर में है किंतु यह बात भी सच नहीं है बनारस में ब्रह्मा का मंदिर भी है और पुष्कर तालाब भी।

बनारस और जैन धर्म
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बनारस जैन धर्म का भी एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए जिनमें से 4 तीर्थंकरों का जन्म वाराणसी में हुआ। ये हैं 7 वें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ, अष्टम तीर्थंकर चंद्रप्रभु, 11 वे तीर्थंकर श्रेयांसनाथ और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ। और दिलचस्प बात यह कि 11 वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म उसी सारनाथ में हुआ जिसे बौद्ध तीर्थ के रूप में जाना जाता है। भगवान महावीर के पश्चात सर्वाधिक प्रभावशाली तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे जिनका क्रम 23 वां था। बनारस में अनेक प्राचीन जैन मंदिर स्थित हैं, जिसमें जैन घाट पर स्थित सुपार्श्वनाथ जन्म स्थल तथा भेलूपुर में स्थित तीर्थंकर पार्श्वनाथ जन्म स्थल प्रमुख हैं जिनके दर्शन को अनेक जैन श्रद्धालु बनारस की यात्रा करते हैं।

बनारस और बौद्ध धर्म
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बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश वाराणसी के सारनाथ नामक स्थान पर दिया था। पांच भिक्षुओं के साथ यहीं पर उन्होंने बौद्ध संघ की स्थापना की थी। अतः यदि यह कहा जाए कि बौद्ध धर्म की स्थापना बनारस में हुई तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी। सारनाथ बनारस शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित एक बेहद दर्शनीय स्थल है। गुप्त काल में निर्मित धम्मेख स्तूप इस स्थल की पहचान है। सारनाथ का अशोक स्तंभ ही हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है। गुप्त काल में ही निर्मित चौखंडी स्तूप भी अत्यंत दर्शनीय है। प्राचीन काल में यह स्थल अपनी मूर्ति कला के लिए बेहद प्रसिद्ध था।दुनिया भर के कई बौद्धमत के अनुयाई देशों ने यहाँ अपने अपने बौद्ध मंदिर बनवाए हैं।

तिब्बती वज्र विद्या संस्थान सारनाथ

अन्य पंथ एवं संप्रदाय
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बनारस 14वीं शताब्दी के प्रमुख संत एवं समाज सुधारक कबीर की जन्मस्थली भी है। शहर के मध्य में कबीर चौरा मोहल्ले में उनका आश्रम है। यह मोहल्ला अपने संगीत साधकों के लिए दुनिया भर में मशहूर है। कबीर के अनुयाई कबीरपंथी कहलाते हैं जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में बड़ी तादाद में निवास करते हैं।

बाबा कीनाराम अघोर आश्रम

संत रैदास, जो कबीर के ही समकालीन थे, का जन्म भी बनारस में ही हुआ था। वे मीराबाई के गुरु थे। उनकी शिक्षाओं को मानने वाले स्वयं को रैदासी कहते हैं। भारत के पंजाब राज्य में रैदासी काफी संख्या में रहते हैं।

बनारस का एक अन्य महत्वपूर्ण संप्रदाय अघोर संप्रदाय है। इस संप्रदाय के प्रमुख संत बाबा कीनाराम थे। बनारस में बाबा कीनाराम को बेहद श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता है। इस संप्रदाय के साधु अघोरी कहलाते हैं। जो अपनी रहस्यमयी साधना पद्धति के लिए जाने जाते हैं। दुनिया भर से सैलानी इन साधुओं से मिलने की आशा लिए बनारस आते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बनारस न सिर्फ हिंदू अपितु जैन,बौद्ध, कबीरपंथी, रैदासी,अघोर जैसे मतों एवं संप्रदायों का पवित्र तीर्थ स्थल है। इस लिहाज से यह शहर इजरायल और फिलिस्तीन की राजधानी येरूशलम सरीखा है, जो दुनिया के तीन प्रमुख 'अब्राहमिक' धर्म यहूदी, ईसाइयत और इस्लाम का पवित्र स्थल है। मेरे एक अमेरिकी दोस्त जो येरूशलम की यात्रा कर चुके थे और बनारस में भी लंबे समय तक रहे थे, ने मुझे बताया था कि उन्होंने इन दोनों शहरों में काफी समानता देखी है। मैंने भी जो वीडियोज देखे हैं उसमें येरुशलम में मुझे पत्थर की संकरी गलियाँ दिखती हैं जो बनारस में भी बहुतायत में पाई जाती हैं। यहाँ का सबसे पुराना मोहल्ला अपनी इन्हीं गलियों के कारण 'पक्का महाल' के नाम से जाना जाता है।

किंतु येरूशलम और बनारस में अद्भुत समानता होने के बावजूद एक बुनियादी अंतर भी है। एक तरफ़ जहाँ येरूशलम सैकड़ों वर्षों से अपने तीनों धर्मों की संघर्ष स्थली रहा है। इसी वर्ष यहाँ फिर से यहूदी और इस्लाम धर्म के मानने वालों में संघर्ष हुआ था। वहीं दूसरी तरफ़ बनारस सदियों से धार्मिक सहअस्तित्व का प्रतीक रहा है। अब आप ही देखिएबकि इसी शहर की प्रशस्ति में जहाँ हिंदू धर्म के प्रमुख संत आदि शंकराचार्य ने 'काशी विश्वनाथाष्टकम' की रचना की वहीं धर्म को लेकर अनमने से रहने वाले मिर्ज़ा ग़ालिब ने इसी शहर के लिए एक बेहद लंबी फ़ारसी नज़्म चिराग़े दैर(मंदिर का दीपक) भी लिखी। यही वह शहर है जहाँ महानतम शहनाई वादक भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खान बालाजी मंदिर में बैठकर अपनी संगीत साधना करते थे। जाते जाते मिर्ज़ा ग़ालिब की उसी फ़ारसी नज़्म चिराग़े दैर की दो पंक्तियाँ आप की नज़र किए जाता हूँ :

'त आल अल्लाह बनारस चश्मे बद्दूर
बहिश्ते ख़ुर्रम ओ फ़िरदौस ए मामूर'

(बनारस एक हरा भरा सुन्दर स्वर्ग है। अल्लाह इसे बुरी नज़रों से बचाये।।)

नोट : ब्लॉग का शीर्षक प्रसिद्ध कवि अष्टभुजा शुक्ल की कविता “यह बनारस है” से साभार है।

अनूप मिश्र

(लेखक पेशे से इतिहास के व्याख्याता तथा स्वभाव से यात्री हैं।)

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