प्रतुष टेलीस्कोप
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
चंद्रमा और उसके चारों ओर कक्षा में स्थापित होने वाले उच्च-रिज़ॉल्यूशन टेलीस्कोप को लेकर विश्व स्तर पर खगोलविदों को अन्वेषण के एक नए युग की शुरुआत की उम्मीद है। भारत के ‘प्रतुष’ (Probing ReionizATion of the Universe using Signal from Hydrogen- PRATUSH) यानी हाइड्रोजन से सिग्नल का उपयोग करके ब्रह्मांड के पुनर्आयनीकरण की जाँच जैसे विभिन्न प्रस्तावों का उद्देश्य ब्रह्मांड के क्षेत्र में नए अवसरों की तलाश करना है।
प्रतुष क्या है?
- परिचय:
- प्रतुष एक रेडियो टेलीस्कोप है जिसे चंद्रमा के सुदूर भाग पर स्थापित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। इसका निर्माण रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI), बंगलूरूऔर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा किया गया है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य ब्रह्मांड में तारों के निर्माण का समय और विशेषताओं को उजागर करना है, जिसमें कॉस्मिक डॉन के दौरान प्रकाश का रंग भी शामिल है।
- यह हमारे प्रारंभिक ब्रह्मांड की ठंडी गैस अवस्था से लेकर तारों, आकाशगंगाओं और ब्रह्मांड के निर्माण तक के विकास के बारे में जानकारी प्रदान करेगा जैसा कि वर्तमान में बिग बैंग के बाद देखा जाता है।
- कॉस्मिक डॉन उस अवधि को चिह्नित करता है जब ब्रह्मांड में विकिरण के पहले स्रोत, जैसे- तारे और आकाशगंगाओं का निर्माण हुआ था।
- क्षमताएँ:
- प्रतुष 30 मेगाहर्ट्ज़ से 250 मेगाहर्ट्ज़ तक की व्यापक आवृत्ति सीमा को कवर करने वाले उन्नत रेडियो उपकरण ले जाएगा।
- यह निरंतर अंतरिक्ष क्षेत्रों का निरीक्षण करेगा, 100 किलोहर्ट्ज़ के रिज़ॉल्यूशन के साथ विस्तृत रेडियो वर्णक्रम को रिकॉर्ड करेगा।
- इसमें उच्च-रिज़ॉल्यूशन के वर्णक्रमीय विश्लेषण हेतु एक कस्टम-डिज़ाइन एंटीना, एनालॉग रिसीवर और डिजिटल सहसंबंधक (correlator) शामिल है।
- इसका उद्देश्य सटीक लक्ष्य के साथ कुछ मिलीकेल्विन के संवेदनशीलता स्तर को प्राप्त करना है।
- मिलीकेल्विन (mK) माप की एक इकाई है, जिसका उपयोग केल्विन पैमाने पर तापमान को व्यक्त करने के लिये किया जाता है, जहाँ 1 मिलीकेल्विन 1000 केल्विन के बराबर होता है।
- इसे एक परिधीय कक्षा में दो वर्ष के मिशन के लिये डिज़ाइन किया गया है ताकि किसी अन्य हस्तक्षेप से बचा जा सके और इष्टतम रेडियो आकाशीय माप को प्राप्त किया जा सके।
- प्रतुष 30 मेगाहर्ट्ज़ से 250 मेगाहर्ट्ज़ तक की व्यापक आवृत्ति सीमा को कवर करने वाले उन्नत रेडियो उपकरण ले जाएगा।
चंद्रमा पर टेलीस्कोप से संबंधित अन्य वैश्विक मिशन:
- लुनार सरफेस इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एक्सपेरिमेंट (LuSEE) नाइट प्रोजेक्ट: यह NASA और बर्कले लैब के बीच एक समन्वय है और इसका लक्ष्य चंद्रमा के सुदूर हिस्से पर उतरना है। इसे दिसंबर, 2025 में लॉन्च किया जाना निर्धारित है।
- नासा का लॉन्ग-बेसलाइन ऑप्टिकल इमेजिंग इंटरफेरोमीटर: इसे कुछ भागों में लॉन्च किया जाएगा और जिन्हें चंद्रमा के सुदूर हिस्से में स्थापित किया जाएगा।
- यह दृश्यमान और पराबैंगनी तरंगदैर्ध्य का उपयोग करके तारों तथा आकाशगंगाओं में चुंबकीय गतिविधि का अध्ययन करेगा।
- ESA का अर्गोनॉटः यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने गुरुत्वाकर्षण तरंग का पता लगाने और अवरक्त अवलोकनों पर ध्यान केंद्रित करने वाली अन्य परियोजनाओं के साथ वर्ष 2030 तक अपने चंद्र लैंडर, 'अर्गोनॉट' पर एक रेडियो टेलीस्कोप लॉन्च करने की योजना बनाई है।
- चीन का मून-ऑर्बिटिंग रेडियो टेलीस्कोप: चीन द्वारा वर्ष 2026 में एक मून-ऑर्बिटिंग रेडियो टेलीस्कोप लॉन्च किये जाने की संभावना है, जो स्वयं को चंद्र अन्वेषण और खगोलीय अनुसंधान में सबसे आगे रखेगा।
- मून-ऑर्बिट में तैनात क्यूकिआओ-2 (Queqiao-2) उपग्रह में रेडियो खगोल विज्ञान के लिये 4.2 मीटर का एक एंटीना है।
टेलीस्कोप (दूरबीन) क्या हैं?
- परिचय: टेलीस्कोप दूर की वस्तुओं की आवर्द्धित छवियाँ (Magnified Images ) बनाने के लिये प्रकाश को इकट्ठा करने और केंद्रित करने हेतु डिज़ाइन किये गए उपकरण हैं।
- सदियों से विकसित, प्रारंभिक दूरबीनों का श्रेय 17वीं शताब्दी में गैलीलियो गैलीली और जोहान्स केपलर जैसे आविष्कारकों को दिया गया।
- कार्य: टेलीस्कोप अंतरिक्ष से प्रकाश एकत्रित करते हैं और उसे बढ़ाते हैं जिससे खगोलविदों को खगोलीय पिंडों का विस्तार से अध्ययन करने की अनुमति मिलती है।
- वे दूर की वस्तुओं का निरीक्षण करने, आकाश का नक्शा बनाने, ब्रह्मांडीय घटनाओं का अध्ययन करने, एक्सोप्लैनेट का पता लगाने और विद्युत चुंबकीय विकिरण की विभिन्न तरंगदैर्ध्य का पता लगाने में मदद करते हैं, जिससे ब्रह्मांड के बारे में हमारी समझ विकसित होती है।
- टेलीस्कोप प्रकाश को एकत्रित करने और केंद्रित करने के लिये लेंस या दर्पण का उपयोग करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप आकाशीय पिंडों का एक बड़ा और स्पष्ट दृश्य दिखाई देता है।
- टेलीस्कोप के प्रकार:
- कैटैडिओप्ट्रिक या कंपाउंड टेलीस्कोप: प्रकाश को फोकस करने के लिये लेंस और दर्पण दोनों को संयुक्त रूप से जोड़ना।
- उदाहरण: श्मिट-कैसेग्रेन और मक्सुटोव-कैसेग्रेन दूरबीन।
- रेडियो टेलीस्कोप:आकाशीय पिंडों द्वारा उत्सर्जित रेडियो तरंगों का पता लगाना, जिसमें बड़े डिश एंटीना और रिसीवर शामिल हैं।
- उदाहरण: विशाल मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप (जीएमआरटी), पुणे।
- अंतरिक्ष टेलीस्कोप: यह बाह्य अंतरिक्ष में खगोलीय पिंडों का अवलोकन करने के लिये उपयोग की जाने वाली एक दूरबीन या टेलीस्कोप है।
- उदाहरण: हबल स्पेस टेलीस्कोप (प्रतिबिंबित दूरबीन) और जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (प्रतिबिंबित दूरबीन)।
- कैटैडिओप्ट्रिक या कंपाउंड टेलीस्कोप: प्रकाश को फोकस करने के लिये लेंस और दर्पण दोनों को संयुक्त रूप से जोड़ना।
नोट: नासा भविष्य के लिये बड़े स्पेस टेलीस्कोप की योजना बना रहा है, जिसे हैबिटेबल वर्ल्ड्स ऑब्जर्वेटरी (HWO) कहा जाता है। यह टेलीस्कोप पराबैंगनी, दृश्यमान एवं नियर इन्फ्रारेड तरंगदैर्ध्य पर ध्यान केंद्रित करेगा, जो संभावित रूप से रहने योग्य एक्सोप्लैनेट की खोज के लिये आदर्श है। यह परियोजना अभी अपने विकास के प्रारंभिक चरण में है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हाल ही में खबरों में रहा "भुवन" क्या है? (2010) (A) भारत में दूरस्थ शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये इसरो द्वारा लॉन्च किया गया एक छोटा उपग्रह। उत्तर: (C) प्रश्न. आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान के संदर्भ में हाल ही में समाचारों में आए दक्षिणी ध्रुव पर स्थित एक कण सूचकांक (पार्टिकल डिटेक्टर)' आइसक्यूब (IceCube)' के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) |
इज़रायल की वायु रक्षा प्रणाली
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ईरान द्वारा दागे गए 300 से अधिक सशस्त्र ड्रोन एवं लंबी दूरी की मिसाइलों को निष्क्रिय करते हुए इज़रायल की बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली ने देश को एक बड़े हमले से बचाया।
इज़रायल की वायु रक्षा प्रणाली के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- वायु रक्षा प्रणालियाँ मूलतः आकाश मार्ग से उत्पन्न खतरों के विरुद्ध ढाल के रूप में हैं। वे विभिन्न प्रौद्योगिकियों का संयोजन हैं जो आकाश में विमानों, मिसाइलों अथवा ड्रोनों का पता लगाने, उन्हें ट्रैक करने तथा नष्ट करने के लिये एक साथ कार्य करते हैं।
- इज़रायल की वायु रक्षा प्रणाली में आयरन डोम तथा C-डोम शामिल हैं।
- आयरन डोम:
- यह इज़रायल की कम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली वायु रक्षा प्रणाली है।
- आयरन डोम में तीन मुख्य प्रणालियाँ हैं जो उस क्षेत्र में बचाव के लिये ढाल के रूप में मिलकर एक साथ कार्य करती हैं जहाँ इसे तैनात किया गया है।
- रडार: इसमें किसी भी संभावित खतरे का पता लगाने के लिये एक पहचान एवं ट्रैकिंग रडार होता है।
- हथियार नियंत्रण: इसमें एक युद्ध प्रबंधन एवं हथियार नियंत्रण प्रणाली (BMC) होती है।
- मिसाइल फायर: इसमें मिसाइल फायरिंग यूनिट भी होती है। BMC मूल रूप से रडार तथा इंटरसेप्टर मिसाइल के बीच संबंध स्थापित करती है।
- इसका उपयोग रॉकेट, तोपखाने तथा मोर्टार के साथ-साथ विमान, हेलीकॉप्टर एवं मानवरहित हवाई वाहनों (UAV) का मुकाबला करने के लिये किया जाता है।
- यह दिन एवं रात सहित सभी मौसम स्थितियों में उपयोग किये जाने में सक्षम है। यह 90% से अधिक की सफलता दर का दावा करती है।
- यह अप्रत्यक्ष और हवाई खतरों के विरुद्ध परिनियोजित एवं परिचालित बलों (Deployed and Manoeuvring Forces), फॉरवर्ड ऑपरेटिंग बेस (FOB) और शहरी क्षेत्रों की रक्षा कर सकती है।
- C-डोम:
- यह इज़रायल की आयरन डोम वायु रक्षा प्रणाली का एक नौसैनिक संस्करण है, जिसका उपयोग रॉकेट और मिसाइल हमलों से रक्षा करने के लिये किया जाता है।
- इसका पहली बार वर्ष 2014 में अनावरण किया गया और नवंबर 2022 में परिचालन की घोषणा की गई।
- यह आयरन डोम के समान ही कार्य करता है, हालाँकि इसे जहाज़ों पर तैनात नहीं किया जाता है।
- इसे Sa'ar 6 श्रेणी के कॉर्वेट और जर्मन निर्मित युद्धपोतों पर लगाया गया है, जो आयरन डोम के समान इंटरसेप्टर का उपयोग करते हैं।
- आयरन डोम के विपरीत, जिसमें अपना समर्पित रडार है, C-डोम को अपने लक्ष्यों का पता लगाने के लिये जहाज़ के रडार के साथ एकीकृत किया जाता है।
- यह आधुनिक खतरों- सागरीय और तटीय के विरुद्ध पूर्ण पोत सुरक्षा और उच्च मारक क्षमता सुनिश्चित करता है।
भारत की समान वायु रक्षा प्रणाली:
- इंद्रजाल:
- भारत का पहला स्वदेशी ड्रोन रक्षा डोम जिसे "इंद्रजाल" कहा जाता है, को हैदराबाद स्थित प्रौद्योगिकी आर एंड डी फर्म ग्रेने रोबोटिक्स द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है।
- इसमें मानव रहित हवाई वाहन (UAV), युद्ध सामग्री और लो-रडार क्रॉस सेक्शन (RCS) लक्ष्यों जैसे हवाई खतरों का आकलन एवं कार्रवाई करके हवाई खतरों के खिलाफ 1000-2000 वर्ग किमी. के क्षेत्र की स्वायत्त रूप से रक्षा करने की क्षमता है।
- यह न केवल रक्षा ठिकानों को सुरक्षा प्रदान करेगा बल्कि उन्नत हथियारों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं जैसे रैखिक बुनियादी ढाँचे के लिये फायदेमंद होगा।
- S-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली:
- S-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा डिज़ाइन किया गया एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) प्रणाली है। यह दुनिया में सबसे खतरनाक परिचालन रूप से तैनात आधुनिक लंबी दूरी की SAM (MLR SAM) में से एक है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम (THAAD) से काफी उन्नत माना जाता है।
- यह प्रणाली 30 किमी. तक की ऊँचाई पर 400 किमी. की सीमा के भीतर विमान, मानव रहित हवाई वाहन (UAV) और बैलिस्टिक तथा क्रूज़ मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को निशाना बना सकती है।
- यह प्रणाली 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह को एक साथ निशाना बना सकती है।
और पढ़ें… आयरन डोम, इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. दक्षिण-पश्चिम एशिया का निम्नलिखित में से कौन-सा एक देश भूमध्यसागर तक नहीं फैला है? (2015) (a) सीरिया उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न. 'आवश्यकता से कम नगदी, अत्यधिक राजनीति ने यूनेस्को को जीवन-रक्षण की स्थिति में पहुँचा दिया है।' अमेरिका द्वारा सदस्यता परित्याग करने और सांस्कृतिक संस्था पर 'इजरायल विरोधी पूर्वाग्रह' होने का दोषारोपण करने के प्रकाश में इस कथन की विवेचना कीजिये। (2019) प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (2018) |
ऑपरेशन मेघदूत
स्रोत: पी.आई.बी.
हाल ही में ऑपरेशन मेघदूत ने अपनी 40वीं वर्षगाँठ पूरी की है जो उत्तरी लद्दाख क्षेत्र पर अपने प्रभुत्व को सुरक्षित करने के लिये सियाचिन ग्लेशियर में भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना (IAF) की उपलब्धियों को प्रकट करता है।
- इस ऑपरेशन में भारतीय सेना के जवानों और भारतीय वायुसेना द्वारा आपूर्ति एयरलिफ्ट करना और उन्हें सियाचिन ग्लेशियर पर छोड़ना शामिल था।
- जुलाई 1949 में कराची समझौते के बाद से सियाचिन ग्लेशियर विवाद का विषय बना हुआ है। बाद में करने1980 के दशक के दौरान पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर पर अपने दावे को वैधता प्रदान करने के प्रयास शुरू कर दिये, जिसके परिणामस्वरूप भारत द्वारा ऑपरेशन मेघदूत चलाया गया।
- ऑपरेशन मेघदूत 13 अप्रैल, 1984 को शुरू किया गया था, जब भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना (IAF) उत्तरी लद्दाख क्षेत्र की चोटियों को सुरक्षित करने के लिये सियाचिन ग्लेशियर तक आगे बढ़ गई थी।
- इस ऑपरेशन के परिणामस्वरूप भारत का 70 किलोमीटर लंबे सियाचिन ग्लेशियर और उसके सभी सहायक ग्लेशियरों, साथ ही साल्टोरो रिज के तीन मुख्य दर्रों अर्थात् सिया ला, बिलाफोंड ला और ग्योंग ला पर कब्ज़ा हो गया।
और पढ़ें: कराची समझौता , सियाचिन ग्लेशियर
स्टारलिंक प्रोजेक्ट
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में सौर तूफान जैसी जटिल अंतरिक्ष मौसम की घटनाओं के कारण कई स्टारलिंक उपग्रह विलुप्त हो गए, जिन्हें फरवरी 2022 में एलन मस्क के स्पेसएक्स द्वारा लॉन्च किया गया था।
स्टारलिंक प्रोजेक्ट:
- यह एक स्पेसएक्स परियोजना है, जिसे वर्ष 2019 में हज़ारों परिक्रमा कर रहे उपग्रहों के समूह के साथ एक ब्रॉडबैंड नेटवर्क निर्मित करने हेतु लॉन्च किया गया था।
- परियोजना का लक्ष्य कम लागत वाला उपग्रह-आधारित ब्रॉडबैंड नेटवर्क निर्मित करना है जो वैश्विक इंटरनेट पहुँच प्रदान कर सके।
- स्टारलिंक उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (LEO) में 350 किलोमीटर से 1,200 किलोमीटर के बीच की ऊँचाई पर स्थापित किया जाएगा।
- डेटा मांगने वाले उपयोगकर्त्ता तथा डेटा को प्रसारित करने वाले सर्वर के बीच कम विलंबता अंतरिक्ष-आधारित इंटरनेट के लिये LEO में उपग्रह रखने का प्रमुख लाभ है।
- सौर तूफान की घटना तब होती है जब सूर्य सौर प्रज्वाल एवं कोरोनल मास इजेक्शन के रूप में ऊर्जा के बड़े विस्फोट उत्सर्जित करता है। ये घटनाएँ तेज़ गति से विद्युत आवेशों के साथ ही चुंबकीय क्षेत्रों की एक धारा को पृथ्वी की ओर भेजती हैं।
- पृथ्वी पर आने वाले सौर तूफान के प्रभावों में से एक ऑरोरा बोरेलिस (नॉर्दन लाइट्स/Northern Lights) का निर्माण है जो आर्कटिक सर्कल के आसपास के क्षेत्रों में देखा जाता है। सौर तूफानों का एक प्रतिकूल प्रभाव उपग्रहों के साथ संचार के अन्य इलेक्ट्रॉनिक साधनों में व्यवधान उत्पन्न करना है।
और पढ़ें…Space Internet, Geomagnetic Storm अंतरिक्ष इंटरनेट, भू-चुंबकीय तूफान
राष्ट्रमंडल खेलों का अनिश्चित भविष्य
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
हाल ही में मलेशिया ने शॉर्ट नोटिस और अपर्याप्त धन का हवाला देते हुए राष्ट्रमंडल खेलों (CWG) की मेज़बानी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
- राष्ट्रमंडल खेल (CWG) राष्ट्रमंडल देशों के एथलीटों के बीच एक चतुष्कोणीय अंतर्राष्ट्रीय बहु-खेल आयोजन है, जिसमें ज़्यादातर पूर्व ब्रिटिश साम्राज्य के क्षेत्र शामिल हैं।
राष्ट्रमंडल देश:
- राष्ट्रमंडल 56 देशों का एक समूह है, जो मुख्य रूप से पूर्व ब्रिटिश औपनिवेशिक हैं।
- वर्ष 1949 में लंदन घोषणा द्वारा स्थापित।
- सदस्य देश मुख्य रूप से उल्लेखनीय उभरती अर्थव्यवस्थाओं वाले अफ्रीका, अमेरिका, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में स्थित हैं।
- इसे वर्ष 1926 की बाल्फोर घोषणा के माध्यम से ब्रिटिश राष्ट्रमंडल देशों के रूप में तैयार किया गया था।
- संगठन के मुख्य संस्थान राष्ट्रमंडल सचिवालय और राष्ट्रमंडल फाउंडेशन हैं, जो क्रमशः सदस्य देशों के बीच अंतर-सरकारी पहलुओं और गैर-सरकारी संबंधों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
- राष्ट्रमंडल में गणराज्य और क्षेत्र दोनों शामिल हैं।
- ब्रिटिश सम्राट क्षेत्रों के लिये राज्य का प्रमुख (Head of State) है, जबकि गणराज्यों पर निर्वाचित सरकारों द्वारा शासन किया जाता है, सिवाय पाँच देशों- ब्रुनेई दारुस्सलाम, एस्वातीनी, लेसोथो, मलेशिया और टोंगा, प्रत्येक में एक स्व-शासित राजशाही है।
- ये क्षेत्र हैं एंटीगुआ और बारबुडा, ऑस्ट्रेलिया, बहामास, बेलीज़, कनाडा, ग्रेनाडा आदि।
और पढ़ें: राष्ट्रमंडल का भविष्य
विनियामकीय सैंडबॉक्स के लिये TRAI की सिफारिशें
स्रोत:बिज़नस स्टैण्डर्ड
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) ने ग्राहक ऑनबोर्डिंग और विनियामकीय सैंडबॉक्स (RS) की निगरानी के लिये महत्त्वपूर्ण सिफारिशें जारी की हैं।
- डिजिटल संचार क्षेत्र में RS के लिये पात्रता भारतीय नागरिकों या संस्थाओं तक सीमित है, जिसका लक्ष्य नवीन प्रौद्योगिकियों, सेवाओं, उपयोग के मामलों और व्यवसाय मॉडल को बढ़ावा देना है।
- RS में ग्राहक को शामिल करने के लिये नैतिक और कानूनी ग्राहक जुड़ाव पर ज़ोर देते हुए विशिष्ट स्वैच्छिक सहमति की आवश्यकता होती है।
- डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 का पालन, ग्राहक ऑनबोर्डिंग और डेटा प्रोसेसिंग के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो डेटा संरक्षण कानूनों और विनियमों के महत्त्व पर प्रकाश डालता है।
- आवेदकों को परीक्षण उद्देश्यों के लिये मांगी गई लाइसेंसिंग या नियामक छूट के विवरण का खुलासा करना होगा और पारदर्शिता तथा नियामक अनुपालन सुनिश्चित करते हुए परीक्षण चरण के लिये एक स्पष्ट निकास रणनीति प्रदान करनी होगी।
- RS की निगरानी और शासन को राष्ट्रीय दूरसंचार नीति अनुसंधान, नवाचार और प्रशिक्षण संस्थान (NTIPRIT) द्वारा प्रबंधित करने की सिफारिश की गई है, जिसमें आवश्यकतानुसार टेलीकॉम इंजीनियरिंग सेंटर (TEC) और शैक्षणिक संस्थानों की भागीदारी शामिल है।
- डिजिटल विभाजन को पाटने और व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप वंचित वर्गों के सामाजिक-आर्थिक उन्नति को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नई प्रौद्योगिकियों के लिये परीक्षण करने वाली संस्थाओं हेतु "डिजिटल भारत निधि" से वित्तपोषण सहायता का सुझाव दिया गया है।