ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का उपचार
तमिलनाडु, भारत के डॉक्टरों और जापान के वैज्ञानिकों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास के परिणामस्वरूप ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD) के लिये रोग-संशोधित उपचार का विकास हुआ है।
DMD और प्रमुख निष्कर्षों के लिये रोग संशोधित उपचार:
- इस उपचार में बीटा-ग्लूकन नामक एक खाद्य योज्य का उपयोग किया जाता है, जो यीस्ट ऑरियोबैसिडियम पुलुलांस के N-163 स्ट्रेन से प्राप्त होता है।
- छह महीने तक चले क्लिनिकल अध्ययन में DMD से पीड़ित 27 बच्चे शामिल थे, जिनमें से 18 उपचार समूह में और 9 नियंत्रण समूह में थे।
- अध्ययन में शामिल सभी पीड़ितों (उम्र>3) को नियमित उपचार के अलावा खाद्य पूरक के रूप में बीटा-ग्लूकन दिया गया।
- अध्ययन के निम्नलिखित उल्लेखनीय निष्कर्ष प्राप्त हुए:
- मांसपेशियों की कमज़ोरी और क्षति में कमी: साक्ष्य में उपचार समूह के बीच मांसपेशियों की कमज़ोरी और क्षति में कमी के संकेत मिले हैं।
- इससे मांसपेशियों की ताकत में भी सुधार होता है।
- सुरक्षित और प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं में कमी: प्रतिभागियों में कोई प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं देखी गई है तथा उपचार के दौरान यकृत और गुर्दे पर कोई दुष्प्रभाव नहीं देखा गया है।
- मांसपेशियों की कमज़ोरी और क्षति में कमी: साक्ष्य में उपचार समूह के बीच मांसपेशियों की कमज़ोरी और क्षति में कमी के संकेत मिले हैं।
नोट: बीटा-ग्लूकन एक पॉलीसेकेराइड (जटिल शर्करा) है जिसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं।
ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी:
- परिचय:
- ड्यूकेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD) एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी है जो मांसपेशियों द्वारा डिस्ट्रोफिन का उत्पादन करने में असमर्थता को दर्शाती है। यह एक एंजाइम है जो मांसपेशियों की टूट-फूट के साथ-साथ इसके पुनर्जनन में सहायता करता है।
- यह केवल बालकों को प्रभावित करती है।
- डिस्ट्रॉफिन की अनुपस्थिति से मांसपेशियों को नुकसान होता है जिसके परिणामस्वरूप मांसपेशियों में कमज़ोरी आती है तथा शुरुआती किशोरावस्था में व्हीलचेयर पर निर्भर रहने की स्थिति उत्पन्न होती है जिस कारण समय से पहले मृत्यु हो सकती है।
- सामान्य लक्षण:
- मांसपेशियों में कमज़ोरी और ऐट्रफी (मांसपेशियों की शिथिलता) जो पैरों और श्रोणि से शुरू होती है तथा बाद में बाँहों, गर्दन और शरीर के अन्य भागों को प्रभावित करती है।
- चलने, दौड़ने, कूदने, सीढ़ियाँ चढ़ने और लेटने या उठने- बैठने में कठिनाई।
- बार-बार गिरना, लड़खड़ाना (चलने का असामान्य तरीका) और पैर की उंगलियों से चलना।
- व्यापकता:
- DMD वैश्विक महामारी विज्ञान पर वर्ष 2020 के एक अध्ययन के अनुसार, समग्र वैश्विक DMD का प्रसार प्रति 1,00,000 पुरुषों पर 7.1 मामले और सामान्य आबादी में प्रति 1,00,000 पर 2.8 मामले थे।
- साथ ही जापान में इसके लगभग 5,000 और भारत में 80,000 मरीज़ हैं।
- वर्तमान उपचार:
- वर्तमान में DMD का कोई ज्ञात इलाज नहीं है। उपचार का उद्देश्य जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिये लक्षणों को नियंत्रित करना है।
- DMD के लिये उपलब्ध उपचारों में जीन थेरेपी, एक्सॉन-स्किपिंग एवं रोग-संशोधक एजेंट जैसे सूजन-रोधी दवाएँ और स्टेरॉयड शामिल हैं।
स्रोत : द हिंदू
दक्षिण भारतीय सिकाडा प्रजाति को मिली नई पहचान
हाल ही में जीवों के वर्गीकरण संबंधी अनुसंधान में आमतौर पर दक्षिण भारत में पाई जाने वाली सिकाडा प्रजाति के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण खोज का खुलासा किया गया है।
- पहले इसे मलेशियाई प्रजाति पुराना टिग्रीना (Purana Tigrina) समझ लिया गया था लेकिन अब इस सिकाडा की पहचान पुराना चीवीडा नामक एक विशिष्ट प्रजाति के रूप में की गई है।
- यह अध्ययन पारिस्थितिक आकलन के लिये सिकाडा के वितरण के संभावित प्रभावों पर भी प्रकाश डालता है।
शोध के प्रमुख निष्कर्ष:
- पुराना चीवीडा का वितरण दक्षिण भारत में गोवा से कन्याकुमारी तक उष्णकटिबंधीय सदाबहार जंगलों में विस्तृत है।
- यह खोज सिकाडा प्रजाति के बीच उच्च स्तर की स्थानिकता का समर्थन करती है।
- विभिन्न क्षेत्रों में सिकाडा की घटती उपस्थिति मृदा की गुणवत्ता और वनस्पति में गिरावट का संकेत दे सकती है।
सिकाडा:
- परिचय:
- सिकाडा वे कीड़े हैं जो हेमिप्टेरा क्रम और सुपरफैमिली सिकाडोइडिया से संबंधित हैं।
- हेमिप्टेरान कीड़े, जिन्हें वास्तविक बग भी कहा जाता है, अपने माउथपार्ट का उपयोग भोजन खाने के लिये करते हैं तथा उनके दो जोड़े पंख होते हैं।
- उनकी आँखें बड़ी, पारदर्शी पंख और आवाज़ तेज़ होती है जो विशेष अंगों द्वारा उत्पन्न होती है जिन्हें टिम्बल (Tymbals) कहा जाता है।
- सिकाडा वे कीड़े हैं जो हेमिप्टेरा क्रम और सुपरफैमिली सिकाडोइडिया से संबंधित हैं।
- आहार पैटर्न और जीवन चक्र:
- सिकाडा ज़्यादातर शाकाहारी होते हैं और पौधों से निकलने वाले रस/तरल पदार्थ का सेवन करते हैं।
- उनका जीवन चक्र जटिल होता है, अधिकांश समय वे भूमि के अंदर ही बढ़ते हैं और जब बड़े होते है तब बाहर निकलते हैं परंतु यह अवधि तुलनात्मक रूप से छोटी होती है।
- प्राकृतिक आवास:
- अधिकांश सिकाडा कैनोपी के आसपास रहते हैं और बड़े पेड़ों वाले प्राकृतिक जंगलों में पाए जाते हैं। अंटार्कटिक को छोड़कर ये हर महाद्वीप में पाए जाते हैं।
- भारत और बांग्लादेश सामान्यतः सिकाडा की विविधता में दुनिया में सबसे उच्च स्थान रखते हैं, इसके बाद चीन का स्थान है।
- महत्त्व:
- सिकाडा जैवविविधता के लिये महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि वे कई परभक्षियों को भोजन प्रदान करते हैं, पुष्पों के परागण में सहायता करते हैं, मृदा को उपजाऊ बनाते हैं, पोषक तत्त्वों का पुनर्चक्रण करते हैं और पर्यावरणीय स्वास्थ्य का संकेतक के रूप में कार्य करते हैं।
- प्रमुख खतरा:
- मानव विकास गतिविधियाँ उन वृक्षों की संख्या को कम कर देती हैं जिन पर सिकाडा भोजन और प्रजनन के लिये निर्भर करते हैं।
- जलवायु परिवर्तन सिकाडा के उद्विकास की अवधि और समन्वय को बाधित कर सकता है।
- कीटनाशक, शाकनाशी व कवकनाशी मृदा एवं जल को प्रदूषित करते हैं तथा सिकाडा और उनके मेज़बान पौधों के स्वास्थ्य व अस्तित्व को प्रभावित करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय SMS टैरिफ
टेक कंपनियाँ और टेलीकॉम ऑपरेटर भारी SMS टैरिफ का सामना कर रहे हैं, जिससे विदेश से उपभोक्ताओं के लिये वन-टाइम पासकोड और संदेशों की लागत घरेलू लागत से कई गुना अधिक हो गई है।
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने इस विषय में विचार करने के लिये एक परामर्श पत्र जारी किया है कि क्या ‘अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक’ की परिभाषा को बदलने की ज़रूरत है, एक प्रमुख शब्द जो यह तय करता है कि अंतर्राष्ट्रीय SMS क्या है और विस्तार से इसकी कीमत क्या होनी चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक:
- ट्राई के परामर्श पत्र के अनुसार 'अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक' एक दूरसंचार नेटवर्क पर प्रसारित अंतर्राष्ट्रीय लंबी दूरी का भार या डेटा है जो एक देश में उत्पन्न होता है और दूसरे देश में भेजा जाता है।
- उदाहरण के लिये भारत से बांग्लादेश के लिये वॉयस कॉल या SMS को अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक माना जाएगा।
- इसमें विभिन्न प्रकार के संचार शामिल हैं, जैसे- वॉयस कॉल, SMS संदेश और डेटा ट्रांसफर आदि जो राष्ट्रीय सीमाओं को पार करते हैं।
- या इसके विपरीत अंतर्राष्ट्रीय SMS एक टेक्स्ट संदेश है जो किसी बाह्य देश में उत्पन्न होता है और भारत में समाप्त होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक, घरेलू ट्रैफिक से भिन्न है जिसमें एक ही देश के भीतर संचार शामिल होता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय संचार सेवाओं जैसे- कॉल दरें, SMS टैरिफ और डेटा रोमिंग शुल्क से संबंधित मूल्य निर्धारण संरचनाओं और नीतियों को प्रभावित करता है।
- भारत में मौजूदा एकीकृत लाइसेंसिंग समझौता मुख्यतः परिभाषित नियमों और मूल्य निर्धारण संरचनाओं के बिना अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक को छोड़कर घरेलू ट्रैफिक को विनियमित करने पर केंद्रित है।
- भारत में दूरसंचार ट्रैफिक:
- भारत में दूरसंचार को 22 सर्किलों में विभाजित किया गया है जो दूरसंचार सेवाओं के कुशल प्रशासन और विनियमन के लिये नामित भौगोलिक क्षेत्र हैं। ये सर्किल देश भर में दूरसंचार परिचालन के प्रभावी कवरेज एवं प्रबंधन सुनिश्चित करते हैं।
- घरेलू ट्रैफिक:
- इंट्रा-सर्किल ट्रैफिक: एक ही टेलीकॉम सर्कल/मेट्रो क्षेत्र की सीमाओं के अंदर संचार स्थापित करना।
- इंटर-सर्किल ट्रैफिक: लंबी दूरी का संचार एक टेलीकॉम सर्कल/मेट्रो क्षेत्र से शुरू होता है और दूसरे क्षेत्र में समाप्त होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक:
- भारत और विदेशों के बीच संचार स्थापित करना।
- समाप्ति शुल्क:
- घरेलू SMS: विनियमित समाप्ति शुल्क।
- अंतर्राष्ट्रीय SMS: दूरसंचार ऑपरेटरों को समाप्ति शुल्क निर्धारित करने की स्वतंत्रता है जिससे यह अत्यधिक लाभदायक है।
अंतर्राष्ट्रीय ट्रैफिक को पुनः परिभाषित करने संबंधी मुद्दा:
टेलीकॉम ऑपरेटरों का रुख |
टेक कंपनियों का रुख |
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भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण:
- भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण अधिनियम, 1997 के अंतर्गत स्थापित TRAI, दूरसंचार सेवाओं और टैरिफ निर्धारण/संशोधन को नियंत्रित करता है।
- यह एक निष्पक्ष और पारदर्शी नीति वातावरण सुनिश्चित करता है, समान अवसर प्रदान करता है और निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देता है।
- TRAI अधिनियम में संशोधन के रूप में दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) की स्थापना का उद्देश्य TRAI से न्यायिक एवं विवादित कार्यों को स्थानांतरित करना है। TDSAT लाइसेंसदाताओं, लाइसेंसधारियों, सेवा प्रदाताओं और उपभोक्ताओं के बीच विवादों को हल करता है तथा TRAI के निर्देशों, निर्णयों या आदेशों के खिलाफ अपील की सुनवाई करता है।
स्रोत: द हिंदू
स्मार्ट विंडोज़ में प्रगति
बंगलूरू स्थित सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंस के शोधकर्त्ताओं ने तरल क्रिस्टल के साथ पदानुक्रमित दोहरे नेटवर्क पॉलिमर को मिलाकर स्मार्ट विंडो तकनीक विकसित की है।
पॉलिमर का पदानुक्रमित दोहरा नेटवर्क:
- पॉलिमर के पदानुक्रमित दोहरे नेटवर्क एक प्रकार के इंटरपेनेट्रेटिंग पॉलिमर नेटवर्क (IPN) हैं।
- यह IPN एक सॉफ्ट मैटर सिस्टम है जो विभिन्न गुणों को अनुकूलित करने के लिये विभिन्न पॉलिमर नेटवर्क को एक साथ मिलाता है।
- स्मार्ट विंडोज़ और सेंसर जैसे क्षेत्रों में IPN के अनुप्रयोग संभावित रूप से किये जा सकते हैं।
- पदानुक्रमित दोहरे नेटवर्क वांछित तापीय, इलेक्ट्रिकल और ऑप्टिकल गुणों को प्राप्त करने के लिये रिजिड और सॉफ्ट नेटवर्क को जोड़ते हैं।
- उन्हें विशिष्ट आवश्यकताओं, जैसे- यांत्रिक, ऑप्टिकल और विद्युत गुणों के अनुरूप बनाया जा सकता है।
पॉलिमर:
- पॉलिमर छोटे अणुओं (मोनोमर्स) को मिलाकर बने बड़े अणु हैं, ये छोटे अणु एक शृंखला जैसी संरचना में एक साथ जुड़े होते हैं।
- पॉलिमर के सामान्य उदाहरणों में प्लास्टिक और रबर आदि आते हैं।
स्मार्ट विंडोज़ में प्रगति:
- दोहरे नेटवर्क के साथ उन्नत नियंत्रण:
- इन दोहरे नेटवर्कों की सहायता से विभिन्न सामग्रियों को संयोजित करते समय उनकी विशेषताओं में सटीक परिवर्तन किया जा सकता है।
- सिंगल विंडो प्रणाली में अनेक कार्यात्मकताओं का एकीकरण।
- प्रकाश और तापमान का संयोजन:
- अनुसंधान दल ने दोहरे नेटवर्क बनाने के लिये प्रकाश और तापमान नियंत्रण दोनों का उपयोग किया है। प्रकाश का उपयोग एक स्व-एसेम्बल पॉलिमर नेटवर्क बनाने के लिये किया जाता है, जबकि तापमान एक दूसरे नेटवर्क के गठन का कार्य शुरू करता है जो पहले वाले नेटवर्क को ट्रैप करता है। स्टिमुली का यह अद्वितीय संयोजन विंडो के गुणों पर उन्नत नियंत्रण प्रदान करता है।
- लिक्विड क्रिस्टल को ट्रैप करना :
- डबल नेटवर्क संरचना प्रभावी रूप से लिक्विड क्रिस्टल को ट्रैप करती है, जो प्रकाश संचरण को विनियमित करने के लिये ज़िम्मेदार होती है। यह स्मार्ट विंडो को पारदर्शिता और अस्पष्टता के बीच परिवर्तन करने में सक्षम बनाता है, जिससे गोपनीयता एवं ऊर्जा-बचत सुविधाएँ मिलती हैं।
- लाभ:
- ऊर्जा दक्षता: ये बहुत कम ऊर्जा की खपत करते हैं, जो उन्हें पर्यावरण के अनुकूल और लागत प्रभावी बनाता है।
- गोपनीयता नियंत्रण: विंडोज़ पारदर्शी से अपारदर्शी में बदल सकते हैं, जिससे उपयोगकर्ताओं को उनकी गोपनीयता पर नियंत्रण मिल जाता है।
- स्मार्ट विंडो उच्च और निम्न धुंध की स्थितियों के बीच परिवर्तन करने में सक्षम हैं।
- हाई रिज़ॉल्यूशन: आधुनिक तकनीकों का उपयोग अपारदर्शिता के स्तर पर सटीक नियंत्रण की अनुमति देता है, जिससे उत्कृष्ट रिज़ॉल्यूशन मिलता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
नए डायरिया का कारण बनने वाला परजीवी: एंटअमीबा मोशकोव्स्की
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉलरा एंड एंटरिक डिज़ीज़ (ICMR-NICED) के हालिया तीन वर्ष के अध्ययन से कोलकाता में डायरिया फैलाने वाले प्रमुख रोगजनक के रूप में एंटअमीबा मोशकोवस्की (E. moshkovskii) के उद्भव का पता चला है।
- पहले का गैर-रोगजनक अमीबा, एंटअमीबा मोशकोव्स्की अब अमीबिक संक्रमण का प्राथमिक कारण बन गया है, जो एक समय के प्रमुख रोगजनक E.हिस्टोलिटिका से आगे निकल गया है।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष:
- एंटअमीबा मोशकोव्स्की की व्यापकता:
- अध्ययन में पाया गया कि डायरिया से पीड़ित 3% से अधिक रोगी, E.मोशकोवस्की से संक्रमित थे, जिससे यह कोलकाता में अमीबिक संक्रमण का प्रमुख कारण बन गया।
- E.हिस्टोलिटिका में गिरावट:
- पिछले प्रमुख अमीबा रोगजनक E.हिस्टोलिटिका के कारण होने वाले संक्रमण में कमी आई है, जबकि E.मोशकोवस्की के मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है।
- विचित्र मौसमी प्रारूप:
- एंटअमीबा हिस्टोलिटिका के विपरीत यह संक्रमण आमतौर पर आर्द्र मौसम के दौरान चरम पर होता है और शुष्क मौसम के दौरान कम हो जाता है। कोलकाता में एंटअमीबा मोशकोव्स्की संक्रमण ने गर्मी एवं पतझड़ के बाद के मौसम के साथ मेल खाते हुए दो अलग-अलग संक्रमण के चरम स्तर को प्रदर्शित किया है।
- विशिष्ट आयु वर्ग में प्रचलित:
- एंटअमीबा मोशकोव्स्की संक्रमण 5-12 वर्ष की आयु के बच्चों में सबसे अधिक प्रचलित है।
- रोगजनक क्षमता:
- अध्ययन से पता चलता है कि एंटअमीबा मोशकोव्स्की एक "संभावित" रोगजनक के रूप में कार्य कर सकता है जो केवल मानव आँत का एक घटक होने के बजाय दस्त और जठरांत्र संबंधी विकारों का कारण बन सकता है।
- आणविक पहचान:
- एंटअमीबा हिस्टोलिटिका और एंटअमीबा मोशकोवस्की के बीच रूपात्मक समानता के कारण दोनों के बीच अंतर करने के लिये PCR-आधारित आणविक पहचान का उपयोग किया गया था।
- अमीबीय परजीवियों के कारण होने वाले डायरिया के 50% से अधिक मामलों में एंटअमीबा मोशकोव्स्की की पहचान की गई थी।
- एंटअमीबा हिस्टोलिटिका और एंटअमीबा मोशकोवस्की के बीच रूपात्मक समानता के कारण दोनों के बीच अंतर करने के लिये PCR-आधारित आणविक पहचान का उपयोग किया गया था।
एंटअमीबा मोशकोव्स्की:
- परिचय:
- यह एंटअमीबा हिस्टोलिटिका के समान प्रजाति से संबंधित है लेकिन इसमें विशिष्ट आनुवंशिक और जैव रासायनिक लक्षण पाए जाते हैं।
- मूल रूप से वर्ष 1941 में मास्को में इसे सीवेज से अलग किया गया।
- यह मृदा, जल और जानवरों में पाया जाता है।
- लक्षण:
- डायरिया, पेट दर्द, बुखार और निर्जलीकरण जैसी समस्याओं का कारण बनता है।
- यह आँतों को नुकसान पहुँचा सकता है, जिससे अल्सर, रक्तस्राव या यहाँ तक कि लीवर में संक्रमण जैसी गंभीर समस्याएँ हो सकती हैं।
- संक्रमण:
- व्यक्ति दूषित भोजन या दूषित जल पीने से संक्रमित हो सकते हैं।
- मल के सीधे संपर्क से भी संक्रमण फैल सकता है।
- निदान चुनौतियाँ:
- माइक्रोस्कोप से देखने पर यह एंटअमीबा हिस्टोलिटिका जैसा दिखता है, इसलिये इन्हें अलग करना मुश्किल है।
- सटीक पहचान के लिये PCR या DNA अनुक्रमण जैसे विशेष परीक्षणों की आवश्यकता होती है।
- उपचार:
- एंटअमीबा मोशकोव्स्की के कारण होने वाले संक्रमण का उपचार करना मुश्किल हो सकता है।
- अमीबिक संक्रमण में उपयोग की जाने वाली सामान्य दवाएँ अच्छी तरह से काम नहीं करती हैं।
- सर्वोत्तम उपचार के विकल्प खोजने के लिये अधिक शोध की आवश्यकता है।
स्रोत: द हिंदू
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 18 जुलाई, 2023
आंध्र प्रदेश में मच्छर नियंत्रण के लिये जल निकायों में गंबूसिया मछली छोड़ी गई
आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा हाल ही में मच्छर जनित बीमारियों से निपटने के लिये राज्य के जल निकायों में लगभग 10 मिलियन गंबूसिया मछलियाँ (जिसे मॉस्किटोफिश भी कहा जाता है) छोड़ी गई हैं। इससे जलीय मूल प्रजातियों और पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन को होने वाले संभावित नुकसान को लेकर चिंता जताई जा रही है। मूलतः दक्षिणपूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में पाई जाने वाली गंबूसिया मछली प्रतिदिन 100 से 300 मच्छरों के लार्वा/अंडे खा सकती है। मच्छर के लार्वा/अंडे को नियंत्रित अथवा सीमित करने के लिये इस मछली का व्यापक उपयोग एक जैविक अभिकारक के रूप में किया जाता है, साथ ही एक आक्रामक विदेशी प्रजाति होने के नाते इसकी प्रभावशीलता और अनपेक्षित परिणामों को लेकर विवाद चलता रहता है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने गंबूसिया को विश्व की 100 सबसे खराब आक्रामक विदेशी प्रजातियों में से एक घोषित किया है। भारत सहित कई देशों ने गंबूसिया को आक्रामक प्रजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया है। हालाँकि यह मछली देश के मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम का एक प्रमुख हिस्सा बनी हुई है और इसे आंध्र प्रदेश, चंडीगढ़ और उत्तर प्रदेश जैसे देश भर के राज्यों के मीठे जल निकायों में छोड़े जाने का काम जारी है।
अवध के अंतिम बादशाह नवाब वाजिद अली शाह को श्रद्धांजलि
कोलकाता अवध के अंतिम बादशाह नवाब वाजिद अली शाह के द्विशताब्दी वर्ष का जश्न मनाने के लिये पूरी तरह तैयार है, जिन्हें अंग्रेज़ों ने अपदस्थ कर दिया था और कोलकाता के उपनगर मेटियाब्रुज़ में निर्वासित कर दिया था, जहाँ उन्होंने अपने अंतिम वर्ष बिताए थे। नवाब वाजिद अली शाह कला, संगीत, नृत्य, कविता और व्यंजनों के अच्छे पारखी थे तथा उन्होंने अपने दरबार में कई कलाकारों का समर्थन किया। हालाँकि वाजिद अली शाह का उपनाम "कैसर" था, उन्होंने अपनी कई रचनाओं के लिये छद्म नाम "अख्तरपिया" का इस्तेमाल किया।
CRCS-सहारा रिफंड पोर्टल
सहकारिता मंत्रालय नई दिल्ली में 'CRCS-सहारा रिफंड पोर्टल' का उद्घाटन करेगा जो सहारा समूह की सहकारी समितियों के जमाकर्त्ताओं की शिकायतों को हल करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। इस समर्पित पोर्टल का लक्ष्य रुपए की संवितरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार "सहारा-SEBI रिफंड खाते" से 5000 करोड़ रुपए सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार (CRCS) को हस्तांतरित कर दिये गए हैं। वास्तविक जमाकर्त्ता अब इस ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपने दावे जमा कर सकते हैं। सहकारी समितियाँ राज्य के अधिकार क्षेत्र द्वारा शासित होती हैं जो अनेक राज्यों में संचालित होती हैं। ये बहु-राज्य सहकारी समिति (MSCS) अधिनियम, 2002 के तहत पंजीकृत होती हैं तथा इनका प्रशासनिक एवं वित्तीय नियंत्रण केंद्रीय रजिस्ट्रार के अधीन होता है।
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रूस द्वारा ब्लैक सी ग्रेन पहल को रोकने से वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर असर
रूस द्वारा ब्लैक सी ग्रेन पहल में हालिया रोक ने वैश्विक खाद्य सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी है। जुलाई 2022 में संयुक्त राष्ट्र और तुर्की की मध्यस्थता से हुए इस निर्णायक समझौते ने यूक्रेन को अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के देशों में अनाज भेजने की अनुमति दी। हालाँकि सौदे को निलंबित करने के रूस के फैसले ने आवश्यक खाद्य आपूर्ति के प्रवाह को बाधित कर दिया है, खासकर उन क्षेत्रों में जहाँ भुखमरी एक बढ़ता खतरा है और उच्च खाद्य कीमतों ने पहले से ही अधिक लोगों को गरीबी में धकेल दिया है।
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