भारतीय इतिहास
अंग्रेज़ों की बंगाल विजय: प्लासी और बक्सर की लड़ाई
- 25 May 2021
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17वीं-18वीं शताब्दी में बंगाल
- मुगल काल में: बंगाल मुगल साम्राज्य का सबसे उपजाऊ और सबसे अमीर प्रांत था और इसमें वर्तमान बांग्लादेश, बिहार और ओडिशा राज्य शामिल थे।
- इस प्रांत की आधिकारिक शक्तियाँ बंगाल के नवाब के हाथों में थीं।
- आर्थिक महत्त्व: बंगाल अपने प्रसिद्ध वस्त्रों, रेशम और नमक के लिये आर्थिक महत्त्व रखता था।
- बंगाल से यूरोप को निर्यात होने वाली वस्तुओं में नमक, चावल, नील, काली मिर्च, चीनी, रेशम, सूती वस्त्र, हस्तशिल्प आदि शामिल थे।
- अंग्रेज़ों के लिये महत्त्व: भारत में बंगाल अंग्रेज़ों के नियंत्रण में आने वाला पहला राज्य था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस प्रांत के व्यापार से बहुत लाभ कमाया।
- बंगाल के विशाल संसाधन ब्रिटिश विस्तार के वित्तपोषण के रूप में काम आए।
- एशिया से होने वाले कुल ब्रिटिश आयात में लगभग 60% बंगाल की वस्तुएँ शामिल थीं।
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने वर्ष 1690 के दशक में कलकत्ता की नींव रखी और ब्रिटिश वाणिज्यिक उपनिवेश की स्थापना की।
- ब्रिटिश कंपनी मुगल सम्राट को बंगाल में स्वतंत्र रूप से व्यापार करने की अनुमति देने के बदले प्रतिवर्ष 3,000 रुपए (350 पाउंड) का भुगतान करती थी।
- इसके विपरीत बंगाल से होने वाला कंपनी का कुल निर्यात प्रतिवर्ष लगभग 50,000 पाउंड से अधिक का था।
- बंगाल के विशाल संसाधन ब्रिटिश विस्तार के वित्तपोषण के रूप में काम आए।
- नवाबों और अंग्रेज़ों के बीच संघर्ष: ब्रिटिश कंपनी को प्राप्त विशेषाधिकारों का बंगाल के नवाबों ने कड़ा विरोध किया क्योंकि इससे प्रांतीय राजकोष को भारी नुकसान हुआ।
- नतीजतन ब्रिटिश का वाणिज्यिक हित बंगाल सरकार से संघर्ष का मुख्य कारण बन गया।
- अतः अंग्रेज़ों को बंगाल के सिंहासन पर नवाब के रूप में एक "कठपुतली" की आवश्यकता महसूस हुई, ताकि वे स्वेच्छा से उन्हें व्यापार रियायतें और अन्य विशेषाधिकार दे सकें तथा प्रांत में अपनी अप्रत्यक्ष लेकिन अंतिम शक्ति स्थापित कर सकें।
प्लासी का युद्ध
प्लासी की लड़ाई वर्ष 1757 में पश्चिम बंगाल के प्लासी क्षेत्र में भागीरथी नदी के पूर्व में लड़ी गई थी।
- रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों ने बंगाल के अंतिम स्वतंत्र नवाब सिराजुद्दौला और उनके फ्रांसीसी सहयोगियों की सेना के खिलाफ मोर्चा संभाला।
पृष्ठभूमि
- सिराजुद्दौला: बंगाल के नवाब अलीवर्दी खान की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला इस गद्दी का उत्तराधिकारी बना।
- अलीवर्दी खान बिहार का उपराज्यपाल था, जिसने बंगाल के दीवान मुर्शिद कुली खान के पुत्र सरफराज खान की हत्या कर इस गद्दी को प्राप्त किया था।
- सिराजुद्दौला अपने ही दरबार में कई प्रतिद्वंद्वियों से घिरा हुआ था, जिन्होंने प्लासी का युद्ध जीतने में अंग्रेज़ों की मदद की।
- युद्ध से पहले की घटनाएँ: कर्नाटक में ब्रिटिश जीत ने सिराजुद्दौला को ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती ताकत से पहले ही आशंकित कर दिया था।
- इसके अलावा कंपनी के अधिकारियों ने अपने व्यापार विशेषाधिकारों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया जिससे नवाब के वित्त पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- अंग्रेज़ों ने भी नवाब की अनुमति के बिना कलकत्ता की किलेबंदी की, जिसे नवाब ने अपनी संप्रभुता के विरुद्ध समझा।
- इससे क्रुद्ध होकर नवाब ने कलकत्ता की ओर कूच किया और जून 1756 में फोर्ट विलियम पर कब्ज़ा कर लिया।
- फोर्ट विलियम के आत्मसमर्पण के कुछ ही समय बाद 20 जून, 1756 को सिराजुद्दौला ने कलकत्ता की एक छोटे सी काल कोठरी में 146 ब्रिटिश कैदियों को कैद कर लिया, जिनमें से 123 कैदियों की दम घुटने से मौत हो गई। इस घटना को 'कलकत्ता के ब्लैक होल' (Black Hole of Calcutta) के रूप में जाना जाता है।
- इस घटना ने नवाब और अंग्रेज़ों के बीच की दुश्मनी को सबके सामने ला दिया।
युद्ध
- रॉबर्ट क्लाइव का आगमन: अंग्रेज़ों की बंगाल के नवाब के हाथों इस बुरी हार के बाद मद्रास से रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में एक मज़बूत बल नवाब को उखाड़ फेंकने और बंगाल में ब्रिटिश स्थिति को मज़बूत करने के लिये भेजा गया।
- नवाब के असंतुष्ट अनुयायियों जैसे- मीर ज़ाफर और अन्य बंगाली जनरलों को अंग्रेज़ों के साथ गठबंधन करने के लिये रिश्वत दी गई।
- सिराजुद्दौला का रिश्तेदार मीर ज़ाफर ने अंग्रेज़ों से बंगाल की गद्दी के बदले उनका समर्थन करने की गुप्त संधि कर ली थी।
- नवाब के असंतुष्ट अनुयायियों जैसे- मीर ज़ाफर और अन्य बंगाली जनरलों को अंग्रेज़ों के साथ गठबंधन करने के लिये रिश्वत दी गई।
- युद्ध का क्रम: नवाब की सेना ने प्लासी में क्लाइव की सेना का सामना फ्राँसीसी सैनिकों के साथ किया।
- नवाब के पास 50,000 सैनिक थे, जबकि क्लाइव के नेतृत्व वाली ब्रिटिश सेना में लगभग 3000 सैनिक थे।
- हालाँकि षड्यंत्रकारियों के साथ अंग्रेज़ों के गुप्त गठबंधन ने युद्ध में ब्रिटिश स्थिति को मज़बूत किया।
- इसके अलावा मीर ज़ाफर लगभग एक-तिहाई बंगाली सेना के साथ लड़ाई में शामिल नहीं हुआ, जिसने नवाब की हार में प्रमुख योगदान दिया।
- मज़बूर परिस्थितियों में नवाब ने अपनी सेना के साथ भागने की कोशिश की, लेकिन मीर ज़ाफर के बेटे मीरन ने उसे मार डाला।
- महत्त्व: यह युद्ध भारत में अंग्रेज़ों के लिये एक ऐतिहासिक साबित हुआ, क्योंकि इससे बंगाल में अंग्रेज़ों की राजनीतिक और सैन्य सर्वोच्चता स्थापित हो गई।
युद्ध के बाद की स्थिति
- प्लासी के युद्ध के बाद क्लाइव ने मीर ज़ाफर को बंगाल का नवाब घोषित कर मुर्शिदाबाद की गद्दी पर बैठा दिया।
- मीर ज़ाफर ने पूर्व में हुए समझौते के अनुसार अंग्रेज़ों को संतुष्ट करने के लिये कंपनी को बंगाल के 24 परगना (गाँवों का समूह) की जमींदारी दे दी।
- हालाँकि मीर ज़ाफर अंग्रेज़ों की महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट करने में असफल रहा, जिस कारण उसे अंग्रेज़ों द्वारा सिंहासन से हटाकर उसके दामाद मीर कासिम को बैठा दिया गया।
बक्सर की लड़ाई
- बक्सर की लड़ाई वर्ष 1764 में हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना और मीर कासिम (जो वर्ष 1763 तक बंगाल का नवाब रहा था) के नेतृत्व में अवध के नवाब शुजा-उद-दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेनाओं के बीच लड़ी गई थी।
पृष्ठभूमि
- मीर कासिम: यह अलीवर्दी खान के सभी उत्तराधिकारियों में सबसे योग्य था।
- मीर कासिम ने अपने राज्य में सुधार करने का संकल्प किया , जिसके अंतर्गत वर्ष 1762 में अपनी राजधानी को मुर्शिदाबाद से मुंगेर (बिहार) स्थानांतरित कर दिया।
- इसने अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिये आवश्यक धन और कुशल सेना के महत्त्व को महसूस किया।
- मीर कासिम स्वयं को एक स्वतंत्र शासक मानता था जो अंग्रेज़ों के लिये एक समस्या थी क्योंकि वे चाहते थे कि वह उनके हाथों की कठपुतली बना रहे।
- मीर कासिम और अंग्रेज़ों के बीच संघर्ष: आंतरिक सीमा शुल्क से बचने के लिये अंग्रेज़ों द्वारा वर्ष 1717 के फरमान का दुरुपयोग किया जा रहा था, जिस कारण मीर कासिम ने आंतरिक व्यापार पर सभी करों को समाप्त कर दिया।
- इसका अंग्रेज़ों ने कड़ा विरोध किया और उनके द्वारा अन्य व्यापारियों को तरजीह देने की मांग की गई।
- इसको लेकर वर्ष 1763 में अंग्रेज़ों और मीर कासिम के बीच युद्ध छिड़ गया, जिसके परिणामस्वरूप कटवा, मुर्शिदाबाद, गिरिया, सूटी और मुंगेर में अंग्रेज़ों की जीत हुई।
- मीर कासिम अवध भाग गया और उसने अवध के नवाब शुजा-उद-दौला तथा मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ एक संघ का गठन किया, ताकि अंग्रेज़ों से बंगाल को पुनः प्राप्त किया जा सके।
युद्ध
- घटनाक्रम: अक्तूबर 1764 में बंगाल से अंग्रेज़ों को बाहर करने के अंतिम प्रयास में मीर कासिम, अवध के नवाब और शाह आलम द्वितीय की संयुक्त सेनाएँ लड़ने के लिये एक साथ आईं।
- मेजर हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने बक्सर में नवाबों और मुगल सम्राट की सेनाओं को पराजित कर दिया।
- परिणाम: इस निर्णायक लड़ाई ने बंगाल पर ब्रिटिश सत्ता की पुष्टि की और अंग्रेज़ों द्वारा कठपुतली नवाब के माध्यम से बंगाल पर शासन करने की परंपरा का अंत कर दिया।
- इस युद्ध के बाद वर्ष 1765 में इलाहाबाद की संधि हुई, जिसके अंतर्गत मुगल सम्राट ने बंगाल को अंग्रेज़ों को दे दिया।
- लॉर्ड रॉबर्ट क्लाइव को बंगाल का पहला राज्यपाल बनाया गया।
- इस युद्ध के बाद वर्ष 1765 में इलाहाबाद की संधि हुई, जिसके अंतर्गत मुगल सम्राट ने बंगाल को अंग्रेज़ों को दे दिया।
- महत्त्व: प्लासी की लड़ाई के विपरीत (जो ब्रिटिश साजिश से जीती गई थी) बक्सर की लड़ाई एक पूर्ण युद्ध था, जिसमें अंग्रेज़ों ने अपने युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया था।
- इस लड़ाई का महत्त्व इस तथ्य में था कि न केवल बंगाल के नवाब बल्कि भारत के मुगल सम्राट भी अंग्रेज़ों से हार गए थे।
- इस जीत ने अंग्रेज़ों को उत्तरी भारत में एक महान शक्ति और पूरे देश पर वर्चस्व का दावेदार बना दिया।
युद्ध के बाद की स्थिति
- इस युद्ध के बाद वर्ष 1763 में मीर ज़ाफर को बंगाल का पुनः नवाब बनाया गया।
- वह अपनी सेना के रखरखाव के लिये मिदनापुर, बर्दवान और चटगाँव ज़िलों को अंग्रेज़ों को सौंपने हेतु सहमत हो गया।
- अंग्रेज़ों को नमक पर 2% के शुल्क को छोड़कर बंगाल में शुल्क मुक्त व्यापार की अनुमति दी गई थी।
- मीर ज़ाफर की वर्ष 1765 में मृत्यु हो गई, इसके बाद उसके बेटे नजम-उद-दौला को बंगाल की गद्दी पर बैठाया गया। हालाँकि प्रशासन की वास्तविक शक्ति अभी भी अंग्रेज़ों के पास थी।
- नज्म-उद-दौला ने कंपनी के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर किये, जिसके अंतर्गत उसे प्रतिवर्ष 33 लाख रुपए का पेंशनभोगी बना दिया गया। यह राशि प्रत्येक नए उत्तराधिकारी के साथ कम होती गई।
- इस पेंशन को वर्ष 1772 में अंग्रेज़ों ने पूरी तरह से समाप्त कर दिया और बंगाल का प्रत्यक्ष प्रभार अपने नियंत्रण में ले लिया।
इलाहाबाद की संधि, 1765
- इलाहाबाद में वर्ष 1765 में रॉबर्ट क्लाइव द्वारा नवाब शुजा-उद-दौला और सम्राट शाह आलम द्वितीय के साथ दो संधियाँ संपन्न की गईं।
- अवध के नवाब के साथ संधि:
- इस संधि के अंतर्गत नवाब ने इलाहाबाद और काणा का क्षेत्र मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय को सौंप दिया।
- कंपनी को युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में 50 लाख रुपए का भुगतान किया गया।
- बनारस के ज़मींदार बलवंत सिंह को उसकी संपत्ति का पूरा कब्ज़ा दे दिया गया।
- शाह आलम द्वितीय के साथ संधि:
- बादशाह को कंपनी के संरक्षण में इलाहाबाद में रहने के लिये कहा गया।
- मुगल सम्राट ने 26 लाख रुपए के वार्षिक भुगतान के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी दे दी।
- मुगल सम्राट द्वारा उक्त प्रांतों के निजामत कार्यों जैसे- सैन्य रक्षा, पुलिस, न्याय प्रशासन आदि के बदले में कंपनी को 53 लाख रुपए की राशि दी जानी थी।
नोट:
कर्नाटक युद्ध (वर्ष 1740-48, वर्ष 1749-53 और वर्ष 1758-63), प्लासी का युद्ध (वर्ष 1757) और बक्सर की लड़ाई (वर्ष 1764) के महत्त्व में प्रमुख अंतर है:
- कर्नाटक युद्धों ने भारत के व्यापार में ब्रिटिश वर्चस्व स्थापित किया।
- प्लासी की लड़ाई ने भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव रखी।
- बक्सर की लड़ाई ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा के स्वामी में अंग्रेज़ों का स्वामित्व स्थापित किया तथा उन्हें उत्तरी भारत की एक महान शक्ति एवं पूरे देश पर वर्चस्व का दावेदार बना दिया।