प्रिलिम्स फैक्ट्स (17 May, 2024)



टार्टेसोस सभ्यता

स्रोत: द हिंदू 

स्पैनिश नेशनल रिसर्च काउंसिल के पुरातत्वविदों ने स्पेन के ग्वारेना में एक पंचमुखी पत्थर (five stone faces) का पता लगाया, जो विलुप्त टार्टेसोस सभ्यता काल से संबंधित हैं।

  • टार्टेसोस सभ्यता लगभग 3000 वर्ष पूर्व (9वीं-6वीं शताब्दी ईसा पूर्व) ह्यूएलवा और कैडिज़ (स्पेन के प्रांत) में मौजूद थी। यह क्षेत्र भूमध्य सागर से जुड़ी एक बड़ी खाड़ी से घिरा था।
  • टार्टेसोस पर इबेरियन व फोनीशियन का प्रभाव था, यह व्यापार, धातुकर्म और समुद्री कौशल के लिये जाना जाता था, जो संभवतः आर्थिक बदलाव, पर्यावरणीय चुनौतियों एवं निकटवर्ती सभ्यताओं के लोगों के साथ संघर्ष के कारण, अपना पतन होने तक विकास के विभिन्न चरणों से गुजरा।

और पढ़ें: भूमध्य सागर 


प्रोजेक्ट ईशान

भारत ने इनिशिएटिव इंडियन सिंगल स्काई हार्मोनाइज़्ड एयर ट्रैफिक मैनेजमेंट (ISHAN) के तहत देशभर में विस्तृत अपने 4 उड्डयन क्षेत्रों को एकीकृत इकाई में समेकित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।

  • वर्तमान में भारतीय हवाई क्षेत्र को दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में 4 उड्डयन सूचना क्षेत्रों (Flight Information region FIR) में विभाजित किया गया है, जिनमें से प्रत्येक का अलग-अलग प्रबंधन किया जाता है।
    • ISHAN के तहत, इन्हें नागपुर में केंद्रित एक सतत् हवाई क्षेत्र में समेकित किया जाएगा।
    • इसका उद्देश्य पूरे भारत में हवाई यातायात नियंत्रण में सुधार और तेज़ी लाना है।
  • भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (Airport Authority Of India-AAI) द्वारा एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर कार्य शुरु करने के संबंध में रुचि अभिव्यक्ति करने (Expressions Of Interest-EoI) का आह्वान किया है।
    • AAI का गठन संसद के एक अधिनियम द्वारा किया गया था तथा यह 1 अप्रैल, 1995 को तत्कालीन राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण और भारतीय अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण का विलय होने के उपरांत अस्तित्व में आया।
    • यह भारत सरकार के नागरिक उड्डयन मंत्रालय के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के तहत कार्य करता है।

और पढ़े: भारत का विमानन उद्योग


रेड कोलोबस

स्रोत: डाउन टू अर्थ

हाल ही में हुए अध्ययन से पता चला है कि अफ्रीका के विभिन्न क्षेत्रों में पाए जाने वाले बंदरों की एक दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजाति रेड कोलोबस को अपने अस्तित्व को बचाने के लिये जोखिमों का सामना करना पड़ रहा है तथा यह प्रजाति वर्तमान में विलुप्त होने की कगार पर है।

  • ये बंदर "संकेतक प्रजाति" के रूप में कार्य करते हैं, जिसका अर्थ है कि उनकी उपस्थिति और कल्याण वन पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र स्वास्थ्य को दर्शाते हैं।
  • कोलोबाइन मुख्यतः पत्ती खाने वाले होते हैं। वे बीज वितरण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा विविध पौधों के जीवन के पुनर्जनन में योगदान करते हैं।
    • उनका अद्वितीय पाचन तंत्र उन्हें विभिन्न पौधों की प्रजातियों की निरंतरता सुनिश्चित करते हुए, बीजों का उपभोग और वितरण करने की अनुमति देता है।
  • अफ्रीका महाद्वीप में सेनेगल से ज़ंज़ीबार द्वीपसमूह तक फैली हुई, यहाँ रेड कोलोबस की 17 प्रजातियाँ हैं (यदि उप-प्रजातियाँ गिना जाए तो इनकी संख्या 18 है)।

और पढ़ें: IUCN रेड लिस्ट अपडेट, 2023


भारतीय नौसेना के जहाज़ों का मलेशिया दौरा

हाल ही में भारतीय नौसेना के जहाज़ों INS दिल्ली तथा INS शक्ति ने भारतीय नौसेना की परिचालन तैनाती के हिस्से के रूप में कोटा किनाबालु, मलेशिया का दौरा किया। इस यात्रा का उद्देश्य कई कार्यक्रमों और गतिविधियों के माध्यम से भारत तथा मलेशिया के बीच मित्रता एवं सहयोग को मज़बूत करना है।

  • भारतीय नौसेना के जहाज़ दोनों नौसेनाओं के बीच अंतरसंचालनीयता को बढ़ाने के लिये रॉयल मलेशियाई नौसेना के जहाज़ों के साथ समुद्री साझेदारी अभ्यास (MPX)/PASSEX में भाग लिया।
    • INS दिल्ली पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित प्रोजेक्ट-15 श्रेणी का निर्देशित मिसाइल विध्वंसक है, जबकि INS शक्ति एक फ्लीट सपोर्ट जहाज़ है, जो भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े में शामिल है।
  • भारत-मलेशिया संबंध
    • मलक्का जलडमरूमध्य तथा दक्षिण चीन सागर जैसे व्यस्त समुद्री मार्गों से घिरा मलेशिया, भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी का एक प्रमुख स्तंभ भी है और साथ ही यह भारत की समुद्री संचार रणनीतियों के लिये भी महत्त्वपूर्ण है।
    • भारत एवं मलेशिया ने व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। CECA के समान ही यह एक मुक्त व्यापार समझौता है।
    • भारत एवं मलेशिया के मध्य संयुक्त रक्षा अभ्यास:
      • थल सेना: हरिमाउ शक्ति अभ्यास
      • वायु सेना: उदार शक्ति अभ्यास
      • नौसेना: समुद्र लक्ष्मण अभ्यास

और पढ़ें:  भारत-मलेशिया रक्षा


भारतीय चाय बोर्ड

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक चाय उत्पादक एवं निर्माता संघ ने जानकारी दी कि अपर्याप्त तथा असमान वर्षा के कारण आगामी महीनों में असम और पश्चिम बंगाल में चाय का उत्पादन 50% तक कम हो सकता है।

  • भारतीय चाय बोर्ड द्वारा प्रदत्त डेटा के अनुसार, मार्च 2024 तक असम के चाय उत्पादन में 40% तथा पश्चिम बंगाल के चाय उत्पादन में 23% की कमी आने का अनुमान है।

भारतीय चाय बोर्ड क्या है?

  • परिचय:
    • टी बोर्ड इंडिया की स्थापना 1903 में भारतीय चाय उपकर विधेयक के माध्यम से की गई थी, जिसने घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय चाय को बढ़ावा देने के लिये चाय निर्यात पर कर लगाया था।
    • वर्तमान चाय बोर्ड की स्थापना चाय अधिनियम 1953 की धारा 4 के तहत की गई थी और इसका गठन 1 अप्रैल, 1954 को किया गया था।
    • इसने केंद्रीय चाय बोर्ड और भारतीय चाय लाइसेंसिंग समिति का स्थान लिया है, जो क्रमशः केंद्रीय चाय बोर्ड अधिनियम, 1949 तथा भारतीय चाय नियंत्रण अधिनियम, 1938 के अंतर्गत कार्य करती थीं, इन दोनों अधिनियमों को निरस्त कर दिया गया था।
  • बोर्ड का गठन: 
    • वर्तमान चाय बोर्ड वाणिज्य मंत्रालय के अधीन केंद्र सरकार की एक वैधानिक संस्था के रूप में कार्य कर रहा है।
    • बोर्ड संसद सदस्यों, चाय उत्पादकों, चाय व्यापारियों, दलालों (Brokers), उपभोक्ताओं और प्रमुख चाय उत्पादक राज्यों तथा ट्रेड यूनियनों के प्रतिनिधियों से चुने गए 31 सदस्यों (अध्यक्ष सहित) से बना है।
    • बोर्ड का प्रत्येक तीन वर्ष में पुनर्गठन किया जाता है।
  • कार्य: 
    • यह चाय की खेती, उत्पादन और विपणन के लिये वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
    • चाय उत्पादन को बढ़ाने और चाय की गुणवत्ता में सुधार के लिये अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों में सहायता करना।
    • कोलकाता, पश्चिम बंगाल में स्थित प्रधान कार्यालय के साथ ही इसके 23 कार्यालय हैं जिनमें क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय कार्यालय शामिल हैं।

चाय के बारे में मुख्य तथ्य:

  • विकास की स्थितियाँ:
    • जलवायु: चाय एक उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय पौधा है जो गर्म एवं आर्द्र जलवायु में अच्छी तरह से बढ़ता है।
    • तापमान: इसकी वृद्धि के लिये आदर्श तापमान 20°-30°C है तथा 35°C से ऊपर और 10°C से नीचे का तापमान इसके लिये हानिकारक है।
    • वर्षा: इसके लिये 150-300 सेमी. वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है जिसका वर्ष भर समान वितरण आवश्यक है।
    • मृदा: चाय की खेती के लिये छिद्रपूर्ण मिट्टी के साथ अल्प अम्लीय मिट्टी (कैल्शियम के बिना) सबसे उपयुक्त होती है जो पानी का मुक्त रिसाव सुनिश्चित करती है। 
  • पानी के बाद चाय विश्व में दूसरा सबसे ज्यादा उपभोग किया जाने वाला पेय है।
    • भारत, चीन के बाद चाय का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और विश्व के चाय उत्पादन का लगभग 30% उपयोग करते हुए उक्त पेय का सबसे बड़ा उपभोक्ता था। 
  • लाभ: 
    • चाय में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट शरीर में ऑक्सीडेटिव क्षति को रोकने में मदद करते हैं और मुक्त कणों से होने वाले नुकसान को रोकने के लिये प्रतिक्रियाशील ऑक्सीजन प्रजातियों (Reactive Oxygen Species- ROS) के रूप में कार्य करते हैं। वे प्रतिरक्षा क्षमता को भी बढ़ाते हैं, कैंसर और संक्रमण के खतरे को कम करते हैं।
  • चिंताएँ:
    • हालाँकि हाल के ICMR दिशा-निर्देश चाय और कॉफी के रूप में कैफीन का अत्यधिक सेवन न  करने की सलाह देते हैं क्योंकि यह शरीर के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित कर सकती है और शारीरिक निर्भरता का कारण बन सकती है।
      • रिपोर्ट में कहा गया है कि चाय जैसे पेय पदार्थ आहार में आयरन की मात्रा को कम कर सकते हैं जिससे शरीर में आयरन की कमी हो सकती है, क्योंकि कैफीन युक्त पेय पदार्थों में टैनिन शरीर में आयरन के अवशोषण में बाधा उत्पन्न करता है।
      • इससे आयरन की कमी और एनीमिया जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स

प्रश्न: भारत में ‘‘चाय बोर्ड’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. चाय बोर्ड सांविधिक निकाय है। 
  2. यह कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से संलग्न नियामक निकाय है। 
  3. चाय बोर्ड का प्रधान कार्यालय बंगलूरू में स्थित है। 
  4. इस बोर्ड के दुबई और मॉस्को में विदेश स्थित कार्यालय हैं।

उपर्युक्त कथनों में कौन-से सही हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 3 और 4         
(d) केवल 1 और 4

उत्तर: (d)


प्रश्न. निम्नलिखित राज्यों पर विचार कीजिये: (2022)

  1. आंध्र प्रदेश 
  2. केरल 
  3. हिमाचल प्रदेश 
  4. त्रिपुरा

उपर्युक्त में से कितने सामान्यतः चाय उत्पादक राज्यों के रूप में जाने जाते हैं?

(a) केवल एक राज्य
(b) केवल दो राज्य
(c) केवल तीन राज्य
(d) सभी चार राज्य

उत्तर: C


मेन्स

प्रश्न. ब्रिटिश बागान मालिकों ने असम से हिमाचल प्रदेश तक शिवालिक और लघु हिमालय के चारों ओर चाय बागान विकसित किये थे, जबकि वास्तव में वे दार्जिलिंग क्षेत्र से आगे सफल नहीं हुए। चर्चा कीजिये। (2014)


सभी ट्रेनों में दिव्यांगजनों के लिये कोटा

स्रोत: द हिंदू

रेल मंत्रालय ने सभी ट्रेनों में दिव्यांगजनों (PwD) के लिये कोटा को मंज़ूरी दे दी है, भले ही रियायती किराये की सुविधा उपलब्ध हो या नहीं।

और पढ़ें… वंदे भारत ट्रेन, दिव्यांगजन (PwD)


पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

वनाग्नि को शांत करने और विद्युत उत्पन्न करने के उद्देश्य से उत्तराखंड की अभिनव पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ असफल रही हैं। इनकी विशाल क्षमता के बावजूद, तकनीकी और व्यावहारिक चुनौतियों ने उनकी सफलता में बाधा उत्पन्न की है।

पाइन नीडल ऊर्जा परियोजनाएँ क्या हैं?

  • पाइन नीडल उर्जा परियोजनाएँ: वर्ष 2021 में उत्तराखंड राज्य सरकार ने जैव-ऊर्जा परियोजनाओं के तहत विद्युत परियोजनाएँ स्थापित करने हेतु एक योजना की घोषणा की, जो विद्युत उत्पन्न करने के लिये ईंधन के रूप में पाइन नीडल का उपयोग करेगी।
    • मूल योजना का उद्देश्य राज्य में तीन चरणों के अंतर्गत 10 किलोवाट से 250 किलोवाट (लगभग 150 मेगावाट) तक की कई इकाइयाँ स्थापित करना था।
    • हालाँकि सरकार को 58 इकाइयाँ स्थापित होने की आशा थी, लेकिन अभी तक केवल 250 किलोवाट (कुल 750 किलोवाट) की केवल छह इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।
  • शामिल एजेंसी: उत्तराखंड नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (Uttarakhand Renewable Energy Development Agency- UREDA)।
  • एक संसाधन के रूप में पाइन नीडल्स की क्षमता: उत्तराखंड का 16.36% वन क्षेत्र पाइन (चीड़) (Pinus roxburghii) के वनों से ढका हुआ है। राज्य में प्रतिवर्ष अनुमानित 15 लाख टन चीड़ का उत्पादन होता है।
    • यदि इसका 40%, कृषि अवशेषों के साथ उपयोग किया जाए तो यह राज्य की विद्युत आवश्यकताओं में महत्त्वपूर्ण रूप से सहायता कर सकता है और बड़ी संख्या में रोज़गार उत्पन्न कर सकता है।
  • पारिस्थितिकीय प्रभाव: एक विदेशी प्रजाति के रूप में चीड़ (नीडल्स) स्थानीय प्रजातियों के पुनर्जनन को नियंत्रित करता है।
    • चीड़ की सुइयों (नीडल्स) को जलाने योग्य लकड़ी के रूप में या ईंधन के रूप में उपयोग करना अधिक सरल और कम प्रदूषणकारी है।

पाइन नीडल से नवीकरणीय ऊर्जा:

  • भारत के उप-हिमालयी क्षेत्र में पाइन नीडल वनाग्नि का जोखिम उत्पन्न करती हैं, साथ ही वे बायो-ऑयल, ब्रिकेट अथवा बायोचार जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में परिवर्तित होने का अवसर भी प्रदान करती हैं। 
    • बायो-ऑयल का उपयोग इंजन या फर्नेस ऑयल के लिये ईंधन के रूप में किया जा सकता है, जबकि ब्रिकेट का उपयोग विद्युत् उत्पादन के लिये ईंट भट्टों अथवा बॉयलर के रूप में किया जा सकता है।
  • भारत के केंद्रीय कृषि इंजीनियरिंग संस्थान के शोधकर्त्ताओं ने पाया कि पाइन नीडल की ज्वलनशीलता उन्हें संभावित रूप से प्रचुर मात्रा में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत बनाती है।
    • इन्हें उच्च कैलोरी मूल्य वाले ब्रिकेट में संकलित किया जा सकता है अथवा पायरोलिसिस के माध्यम से बायो-ऑयल में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • बायो-ऑयल का कैलोरी मान 28.52 मेगाजूल/किलोग्राम है और इसका उपयोग इंजनों के लिये मिश्रित ईंधन अथवा फर्नेंस ऑयल के रूप में किया जा सकता है, जो इसे डीज़ल का एक व्यवहार्य विकल्प बनाता है।

पाइन नीडल परियोजनाएँ असफल क्यों रही हैं?

  • तकनीकी सीमाएँ: UREDA के अनुसार, विद्युत् उत्पादन के लिये पाइन नीडल का स्थायी उपयोग करने के लिये उपयुक्त तकनीक अभी भी उपलब्ध नहीं है।
  • संचालन संबंधी कठिनाइयाँ: खड़ी ढलानों, जानवरों के हमलों की संवेदनशीलता और पारिश्रमिक दरों पर अपर्याप्त श्रम के कारण पाइन नीडल को एकत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
    • इसके अतिरिक्त, पाइन नीडल की नमी गैसीकरण प्रणाली के लिये कम दक्षता और उच्च रखरखाव का कारण बनती है।
    • वर्तमान में उपलब्ध पाइन नीडल का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही एकत्र किया जाता है।

चीड़ पाइन के बारे में मुख्य तथ्य:

Chir_Pine

  • परिवार का नाम: पिनेसिया | वानस्पतिक नाम: पीनस रॉक्सबर्गी।
  • भौगोलिक उत्पत्ति: भारत | पारिस्थितिकी क्षेत्र की उत्पत्तिः इंडोमलय।
  • प्राकृतिक इतिहास: यह हिमालयी क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण शंकुधारी वृक्षों में से एक है जो क्षेत्र की विभिन्न जातियों और आश्रित समुदायों के जीवन को आकार देता है।
    • इसका नाम स्कॉटिश वनस्पतिशास्त्री विलियम रॉक्सबर्ग के नाम पर रखा गया है, जिन्हें भारतीय वनस्पति विज्ञान के संस्थापक पिता के रूप में जाना जाता है।
  • वनस्पति प्रकार: पाइन हिमालय के पर्वतीय शीतोष्ण वनों के लिये पूर्ण रूप से अनुकूलित है।
    • पाइन के वृक्षों का घना वितान (canopy) इसके नीचे अन्य पौधों के विकास को नियंत्रित करता है। हालाँकि, झाड़ियों की कुछ प्रजातियाँ जैसे; रूबस एलिप्टिकस, फ्रैगरिया वेस्का, मायरिका एस्कुलेंटा आदि इन पाइन वनों में जीवित रह सकती हैं।
  • भौगोलिक विस्तार: इनका विस्तार हिमालय पर्वतों में भारत (जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड) सहित भूटान, नेपाल, पाकिस्तान, सिक्किम, अफगानिस्तान और दक्षिणी तिब्बत में है।
  • विशेषताएँ:
    • शंकुधारी वृक्ष-उत्पादक चीड शंकु ,जिम्नोस्पर्म (नग्न बीजी) होते हैं।
    • गहरे भूरे रंग की, मोटी, दरारयुक्त छाल।
    • पतली, लचीली त्रिकोणीय पत्तियाँ जो प्रति टहनी तीन के समूह में होती हैं।
  • वृद्धि की स्थितियाँ:
    • कठोर, सूखा और उच्च तापमान प्रतिरोधी।
    • सूर्य के प्रकाश की अधिक आवश्यकता है।
    •  छोटे पौधों को साप्ताहिक, पानी की आवश्यकता होती है; परिपक्व वृक्षों को मासिक, पानी की आवश्यकता होती है।
    • उपयुक्त स्थान: अपनी विशाल जड़ प्रणाली के कारण विशाल क्षेत्रों के लिये बेहतर अनुकूलित  है।
  • IUCN लाल सूची स्थिति: कम से कम चिंता का विषय

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स

प्रश्न. यदि आप हिमालय से होकर यात्रा करेंगे तो आपको निम्नलिखित में से कौन-सा पौधा वहाँँ प्राकृतिक रूप से उगता हुआ देखने को मिलेगा? (2014)

  1. ओक 
  2. रोडोडेंड्रोन 
  3. चंदन

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: a