प्रिलिम्स फैक्ट्स (15 Jul, 2024)



पुरी के जगन्नाथ मंदिर में रत्न भंडार

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ओडिशा सरकार ने पुरी स्थित 12वीं शताब्दी के जगन्नाथ मंदिर के प्रतिष्ठित रत्न भंडार को 46 वर्षों के बाद खोला है।

जगन्नाथ मंदिर का रत्न भंडार क्या है?

  • परिचय: 
    • रत्न भंडार, खज़ाने का बहुमूल्य संग्रह है, जो जगमोहन (मंदिर का सभा कक्ष) के उत्तर की ओर स्थित है।
    • इस मंदिर के रत्न भंडार में भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र तथा देवी सुभद्रा के बहुमूल्य आभूषण संगृहीत हैं जो वर्षों से अनुयायियों एवं पूर्व राजाओं द्वारा उपहार में दिये गए हैं।
    • पुरी श्री जगन्नाथ मंदिर अधिनियम, 1952 के अनुसार बनाए गए रिकॉर्ड ऑफ राइट्स में भगवान जगन्नाथ से संबंधित बहुमूल्य आभूषणों तथा विविध शृंगारों की सूची शामिल है। 
    • इसमें दो कक्ष मौजूद हैं: भीतरी भंडार (आंतरिक कक्ष) व बाह्य भंडार (बाहरी कक्ष), जो पिछले 46 वर्षों से बंद है। 
    • वर्ष 1978 में अंतिम बार बनाई गई सूची के अनुसार यहाँ के रत्न भंडार में कुल 128.38 किलोग्राम सोना और 221.53 किलोग्राम चाँदी है। 
    • भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) इस मंदिर का संरक्षक है और इसके द्वारा वर्ष 2008 में यहाँ के रत्न भंडार का संरचनात्मक निरीक्षण किया था, लेकिन इसने आंतरिक कक्ष में प्रवेश नहीं किया था।

जगन्नाथ मंदिर के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • पुरी का जगन्नाथ मंदिर राज्य (भारत) में सबसे प्रतिष्ठित हिंदू मंदिरों में से एक है, यह भगवान जगन्नाथ, जिन्हें विष्णु का अवतार माना जाता है, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा के लिये समर्पित है।
  • इसे "व्हाइट पैगोडा" के रूप में जाना जाता है, यह चार धाम तीर्थयात्रा के चार तीर्थ स्थलों में से एक है।
  • यह ओडिशा के स्वर्णिम त्रिभुज का भी हिस्सा है, जिसमें राज्य के तीन प्रमुख पर्यटन स्थल शामिल हैं जो एक त्रिभुज बनाते हैं और एक दूसरे से अच्छी तरह से जुड़े हुए हैं।
    • अन्य दो स्थलों में भुवनेश्वर (मंदिरों का शहर) और कोणार्क का सूर्य मंदिर (काला पैगोडा) शामिल हैं।

  • इसका निर्माण 12वीं शताब्दी में गंग राजवंश के प्रसिद्ध राजा अनंत वर्मन चोडगंग देव द्वारा किया गया था।
    • यह कलिंग वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसमें विशिष्ट घुमावदार मीनारें, जटिल नक्काशी और अलंकृत मूर्तियाँ हैं।
    • जगन्नाथ मंदिर के चार द्वार इसकी चारदीवारी के मध्य बिंदुओं पर स्थित हैं तथा चारों दिशाओं की ओर मुख किये हुए हैं। इनका नाम अलग-अलग जानवरों के नाम पर रखा गया है।

द्वार

दिशा

मान्यतामोक्ष (जन्म-पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) प्राप्त करना।

सिंहद्वार (सिंह द्वार)

पूर्व

हस्तिद्वार (हाथी द्वार)

उत्तर

लक्ष्मी (धन) का प्रतीक

अश्वद्वार 

दक्षिण

मनुष्य को काम (वासना) से छुटकारा पाने में सहायता करता है।

व्याघ्रद्वार

पश्चिम

व्यक्ति को उसके धर्म (उचित व्यवहार और सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत आने वाला लौकिक नियम) का स्मरण कराता है।

  • इसे 'यमनिका तीर्थ' भी कहा जाता है जहाँ हिंदू मान्यताओं के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की उपस्थिति के कारण पुरी में मृत्यु के देवता 'यम' की शक्ति समाप्त हो गई है।
  • संबंधित प्रमुख त्योहार: स्नान यात्रा, नेत्रोत्सव, रथ यात्रा, सायन एकादशी।

ओडिशा शैली (कलिंग वास्तुकला)

  • यह नागर शैली की उप-शैली है जिसका विकास कलिंग साम्राज्य में विभिन्न क्षेत्रों में हुआ। इसकी कुछ विशेषताएँ इस प्रकार थीं:
    • इसमें बाहरी दीवारों को जटिल नक्काशी से भव्य रूप से सजाया जाता था जबकि अंदर की  दीवारों पर कोई नक्काशी नहीं की जाती थी।
    •  द्वारमंडप में स्तंभों का उपयोग नहीं किया जाता था। छत को सहारा देने के लिये लोहे के गर्डरों का उपयोग किया जाता था।
    • ओडिशा शैली में शिखर को रेखा देउल के नाम से जाना जाता था। इनकी छतें प्रायः लंबवत् होती थीं जो अंतिम छोर पर अंदर की ओर वक्रित होती थीं।

और पढ़ें: मंदिर वास्तुकला

 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. मुरैना के समीप स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)

  1. यह कच्छपघाट राजवंश के शासनकाल में निर्मित एक वृत्ताकार मंदिर है।
  2. यह भारत में निर्मित एकमात्र वृत्ताकार मंदिर है।
  3. इसका उद्देश्य इस क्षेत्र में वैष्णव पूजा-पद्धति को प्रोत्साहन देना था।
  4. इसके डिज़ाइन से यह लोकप्रिय धारणा बनी कि यह भारतीय संसद भवन के लिये प्रेरणा-स्रोत रहा था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-से सही हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) 1 और 4
(d) 2, 3 और 4

उत्तर: (c)


प्रश्न. किसके राज्य में ‘कल्याण मंडप’ की रचना मंदिर-निर्माण का एक विशिष्ट अभिलक्षण था? (2019)

(a) चालुक्य
(b) चंदेल
(c) राष्ट्रकूट
(d) विजयनगर

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. शैलकृत स्थापत्य प्रारंभिक भारतीय कला एवं इतिहास के ज्ञान के अति महत्त्वपूर्ण स्रोतों में से एक का प्रतिनिधित्व करता है। विवेचना कीजिये। (2020)


ग्रीनहाउस गैसें, वर्षा एवं जलवायु परिवर्तन

स्रोत: पी.आई.बी.

एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि ग्रीनहाउस गैसों में अभूतपूर्व वृद्धि से भूमध्यरेखीय क्षेत्र में वर्षा कम हो सकती है।

हालिया अध्ययन से क्या पता चला?

  • परिचय:
    • अध्ययन में भूमध्यरेखीय क्षेत्रों में वर्षा पैटर्न और वनस्पति पर ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के उच्च स्तर में वृद्धि के प्रभावों की ओर इशारा किया गया।
    • अध्ययन में जीवाश्म पराग (कच्छ की लिग्नाइट खदान से) और इओसीन युग (54 मिलियन वर्ष पूर्व, वैश्विक तापमान वृद्धि का काल) से प्राप्त कार्बन समस्थानिक डेटा का उपयोग किया गया।
    • अध्ययन में गहन समय की अतितापीय घटनाओं से प्राप्त आँकड़ों का उपयोग किया गया, जिन्हें भविष्य की जलवायु पूर्वानुमान के लिये संभावित अनुरूप माना जाता है।
      • गहन-समय (भूवैज्ञानिक समय) के दौरान चरम जलवायु गर्मी (हाइपरथर्मल) की घटनाएँ इस बात की अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं कि पृथ्वी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से संबंधित वर्तमान गर्मी के प्रति किस प्रकार प्रतिक्रिया कर सकती है।
  • वर्षा एवं वनस्पति पर प्रभाव:
    • इओसीन युग के दौरान, जब भूमध्य रेखा के पास वायुमंडलीय CO2 सांद्रता 1000 भाग प्रति मिलियन (ppmv) से अधिक हो गई, तो वर्षा में उल्लेखनीय कमी आने के कारण पर्णपाती वनों में वृद्धि हुई। 
  • वर्तमान जलवायु परिवर्तन से प्रासंगिकता:
    • अध्ययन में पिछली जलवायु परिस्थितियों (इओसीन युग) एवं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि के तहत संभावित भविष्य के परिदृश्यों के बीच समानताओं पर विचार किया गया है। इस अध्ययन से प्राप्त अंतर्दृष्टि द्वारा वर्षावनों एवं अन्य संवेदनशील पारिस्थितिकी प्रणालियों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की रणनीतियों को बनाने में सहायता मिल सकती है।

जलवायु परिवर्तन के पूर्व साक्ष्य क्या हैं?

  • भू-वैज्ञानिक अभिलेखों में हिमयुग और ऊष्ण अंतर-हिमयुग चरणों की क्रमिक अवधियों का वर्णन है।
  • अतीत में (लगभग 500-300 मिलियन वर्ष पूर्व-कैम्ब्रियन, ऑर्डोविशियन एवं सिलुरियन काल के दौरान) पृथ्वी की जलवायु उल्लेखनीय रूप से गर्म/ऊष्ण थी। 
  • प्लीस्टोसीन युग के दौरान, पृथ्वी हिमयुग तथा अंतर-हिमयुग काल से गुजरी, जिसमें अंतिम प्रमुख हिमयुग लगभग 18,000 वर्ष पूर्व था। वर्तमान अंतर-हिमयुग काल लगभग 10,000 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। 
  • सबसे हालिया हिमयुग लगभग 120,000 से 11,500 वर्ष पूर्व तक था। 
  • उच्च ऊँचाई और अक्षांश वाले क्षेत्रों में भू-वैज्ञानिक विशेषताओं, तलछट का जमाव एवं ग्लेशियरों के विस्तार व संकुचन के प्रमाण मिलते हैं जिससे शीत तथा ऊष्ण अवधियों के बीच उतार-चढ़ाव के संकेत मिलते हैं। 
  • हिमयुग को अंतर हिमयुग की तुलना में अधिक ठंडा, धूल भरा तथा आमतौर पर शुष्क माना जाता है। हिमयुग और अंतर हिमयुग के इन चरणों के प्रमाण विश्व भर में समुद्री तथा स्थलीय दोनों ही वातावरणों से संबंधित कई पुराजलवायु अभिलेखों में देखे जा सकते हैं।
  • अंतर-हिमयुग काल, आमतौर पर उत्तरी गोलार्द्ध में (गर्मियों के दौरान) चरम सौर विकिरण की अवधि से संबंधित होते हैं।
  • भारत का संदर्भ: 
    • भारत में क्रमिक रूप से आद्र और शुष्क स्थितियाँ उत्पन्न हुईं।
    • पुरातात्त्विक खोजों के अनुसार 8,000 ईसा पूर्व राजस्थान के मरुस्थल की जलवायु आद्र और ठंडी थी।
    • 3,000-1,700 ईसा पूर्व की अवधि में इस क्षेत्र में अधिक वर्षा हुई जिसके बाद शुष्क परिस्थितियाँ बनी रहीं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल के दिनों में मानवीय गतिविधियों ने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता में वृद्धि की है लेकिन इसका अधिकांश भाग निम्न वातावरण में नहीं रहता है क्योंकि- (2011)

  1. बाहरी समताप मंडल में इसका निष्कर्षण।
  2. महासागरों में पादप्लावक द्वारा प्रकाश संश्लेषण।
  3. ध्रुवीय बर्फ के आवरण में वायु का अधिग्रहण।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस घटना ने जीवों के विकास को प्रभावित किया होगा? (2014)

  1. महाद्वीपीय विस्थापन 
  2. हिमनद चक्र

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)


मेन्स:

प्रश्न. आर्कटिक की बर्फ और अंटार्कटिक के ग्लेशियरों का पिघलना किस तरह से अलग-अलग ढंग से पृथ्वी पर मौसम के स्वरूप तथा मनुष्य की गतिविधियों पर प्रभाव डालते हैं? स्पष्ट कीजिये। (2021)


ब्याज समानीकरण योजना का पुनर्नियोजन

स्रोत: द हिंदू 

इंजीनियरिंग निर्यातकों के संगठन इंजीनियरिंग निर्यात संवर्द्धन परिषद (EEPC इंडिया) ने सभी निर्यातकों के लिये ब्याज समानीकरण योजना (Interest Equalization Scheme- IES) को बहाल करने और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को होने वाले लाभ में वृद्धि करने का अनुरोध किया।

  • निर्यातकों द्वारा माल के लदान (शिपमेंट) से पहले और उसके बाद (प्री एंड पोस्ट) प्राप्त किये जाने वाले रुपया ऋण के लिये IES की शुरुआत वर्ष 2015 में की गई थी तथा इसको MSME के अतिरिक्त सभी निर्यातकों के लिये जून 2024 में समाप्त कर दिया गया।
  • IES वाणिज्य मंत्रालय का एक कार्यक्रम है जो निर्यातकों को रियायती ब्याज दर पर बैंक ऋण प्राप्त करने में मदद करता है। EEPC ने 410 टैरिफ लाइनों के लिये ब्याज छूट दर को 3% पर बहाल करने और किसी भी टैरिफ लाइन के तहत निर्यात करने वाले MSME के लिये इस दर को बढ़ाकर 5% करने का आग्रह किया।
  • वर्ष 1955 में स्थापित EEPC इंडिया ने भारत के इंजीनियरिंग निर्यात की वृद्धि में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो वर्ष 1955 के 10 मिलियन अमरीकी डॉलर की अपेक्षा वित्त वर्ष 2023-2024 में 109.32 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया है।
    • इसे केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा भारत में मॉडल EPC के रूप में मान्यता दी गई है तथा यह भारत सरकार द्वारा प्रायोजित है। इसका सरकारी नीतियों में सक्रिय रूप से योगदान है तथा यह भारत के इंजीनियरिंग उद्योग और सरकार के बीच सेतु की भूमिका निभाता है।
  • वर्ष 2021 में शुरू की गई निर्यातित उत्पादों पर शुल्क एवं कर में छूट की योजना (Remission of Duties and Taxes on Export Products- RoDTEP) मौजूदा भारत से व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात योजना (MEIS) को प्रतिस्थापित करती है।
    • यह सुनिश्चित करती है कि निर्यातकों को उन अंतर्निहित करों और शुल्कों पर रिफंड प्राप्त हो जिनकी पहले वसूली नहीं की जा सकती थी जबकि IES का उद्देश्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिये शिपमेंट से पूर्व तथा शिपमेंट के बाद निर्यात ऋण पर ब्याज दर समानीकरण प्रदान करना है।

और पढ़ें: MSME के माध्यम से निर्यात को बढ़ाना: नीति आयोग


समुद्र में असाधारण बहादुरी के लिये IMO सम्मान

स्रोत: बिज़नेस स्टैंडर्ड

तेल टैंकर के कैप्टन अवहिलाश रावत और उनके चालक दल को समुद्र में असाधारण बहादुरी के लिये वर्ष 2024 का अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organisation-IMO) पुरस्कार मिला है।

  • उन्हें लाल सागर में एक बचाव अभियान के दौरान उनके "दृढ़ संकल्प और धीरज" के लिये सम्मानित किया गया, जहाँ उन्हें उस समय गंभीर आग का सामना करना पड़ा था, जब उनके जहाज़ पर एक जहाज़-रोधी मिसाइल से हमला किया गया था, जिसके बारे में माना जाता है कि यह ईरान समर्थित हूती विद्रोहियों द्वारा दागी गई थी।
  • IMO समुद्र में असाधारण बहादुरी के लिये नाविकों को सम्मानित करने हेतु सदस्य देशों से प्रतिवर्ष नामांकन आमंत्रित करता है, जिनकी समीक्षा विशेषज्ञों के एक मूल्यांकन पैनल द्वारा की जाती है।
    • इसके बाद पैनल की सिफारिशों की समीक्षा IMO परिषद के अध्यक्ष की अध्यक्षता वाले न्यायाधीशों के पैनल द्वारा की गई।
    • अंतिम सिफारिश के परिणामस्वरूप भारतीय नाविकों को प्रतिष्ठित मान्यता प्रदान की गई।
  • वार्षिक पुरस्कार समारोह 2 दिसंबर, 2024 को समुद्री सुरक्षा समिति के 109वें सत्र के दौरान लंदन में IMO मुख्यालय में आयोजित किया जाएगा।
  • IMO, संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है, जो शिपिंग को नियंत्रित करती है और जहाज़ों से समुद्री प्रदूषण को रोकती है। इसकी स्थापना वर्ष 1948 में जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के बाद हुई थी और आधिकारिक तौर पर वर्ष 1958 में अस्तित्व में आई। इसके 175 सदस्य देश हैं, तीन सहयोगी सदस्य हैं, भारत वर्ष 1959 में इसका सदस्य बना।
    • IMO की मुख्य भूमिका शिपिंग उद्योग के लिये एक निष्पक्ष और प्रभावी विनियामक ढाँचा तैयार करना है जिसे सार्वभौमिक रूप से अपनाया तथा लागू किया जा सके। इसके अतिरिक्त, IMO शिपिंग एवं समुद्री गतिविधियों के महत्त्व पर ज़ोर देने हेतु सितंबर के हर आखिरी गुरुवार को विश्व समुद्री दिवस मनाता है।

और पढ़ें: लाल सागर में बढ़ता संकट, भारत अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन परिषद के लिये फिर से निर्वाचित


खर्ची पूजा

स्रोत: पीआईबी

  • हाल ही में आषाढ़ माह की शुक्ल अष्टमी के दिन प्रतिवर्ष मनाई जाने वाली खर्ची पूजा (Kharchi Puja) का आयोजन किया गया।
    • पूजा के दिन 14 देवताओं को "चंताई" (शाही पुजारी) के सदस्यों द्वारा "सैदरा" नदी पर ले जाया जाता है। देवताओं को पवित्र जल से स्नान कराया जाता है और वापस मंदिर में लाया जाता है।
    • त्योहार के दौरान त्रिपुरा के लोग अपने 14 देवताओं के साथ-साथ पृथ्वी की भी पूजा करते हैं। 
    • इस त्योहार में एक महत्त्वपूर्ण अनुष्ठान में चतुर्दश मंडप का निर्माण शामिल है, यह एक संरचना है जो त्रिपुरी राजाओं के शाही महल का प्रतीक है।
    • खर्ची पूजा को '14 देवताओं के त्योहार' के रूप में भी जाना जाता है, इस पारंपरिक कार्यक्रम में त्रिपुरा के लोगों के पैतृक देवता, चतुर्दश देवता (प्राचीन उज्जयंत महल में स्थित) की पूजा शामिल है।
  • इतिहास:
    • हालाँकि यह आदिवासी मूल का त्योहार है, यह त्रिपुरा के आदिवासी और गैर-आदिवासी दोनों लोगों द्वारा मनाया जाता है।
    • ऐसा माना जाता है कि देवी माँ या त्रिपुरा सुंदरी, भूमि की अधिष्ठात्री देवी है, जो त्रिपुरा के लोगों की रक्षा करती है, जून माह में अंबुबाची के समय मासिक धर्म से गुज़रती हैं। लोक मान्यता है कि देवी के मासिक धर्म के दौरान पृथ्वी अशुद्ध हो जाती है।
    • इसलिये मासिक धर्म समाप्त होने के बाद पृथ्वी को स्वच्छ करने के लिये अनुष्ठान द्वारा लोगों के पापों को धोने के लिये खर्ची पूजा की जाती है।

Kharchi Puja

और पढ़ें: अंबुबाची मेला


स्क्वैलस हिमा डॉगफिश शार्क की नई प्रजाति

स्रोत: द हिंदू

ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ZSI) के वैज्ञानिकों द्वारा अरब सागर तट, केरल में शक्तिकुलंगरा फिशिंग हार्बर के गहरे जल में स्क्वैलस हिमा डॉगफिश शार्क, की एक नई प्रजाति की खोज की है।

  • स्क्वैलस, स्क्वैलिडे परिवार में डॉगफिश शार्क की एक प्रजाति है। आमतौर पर स्परडॉग के रूप में जाना जाता है और साथ ही इसकी विशेषता चिकने पृष्ठीय पंखों वाली रीढ़ होती है।
    • भारतीय तट पर, स्क्वैलस की दो प्रजातियाँ भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर पाई जाती हैं और साथ ही इसकी नई प्रजाति, स्क्वैलस हिमा n.sp. यह स्क्वैलस लालैनी के समान है, लेकिन यह इससे कई विशेषताओं में भिन्न भी है।
    • स्क्वैलस मेगालोप्स की कुछ प्रजातियों से छोटी, नुकीली नाक, नाक के बराबर चौड़ा छोटा मुख, एक सुडौल शरीर तथा उनके अग्र पृष्ठीय पंख का उद्गम उनके पेक्टोरल पंखों के पीछे होता है।
      • स्क्वैलस तथा सेंट्रोफोरस प्रजाति के यकृत तेल का उपयोग फार्मास्यूटिकल व्यवसायों में उच्च-स्तरीय कॉस्मेटिक एवं कैंसर-रोधी दवाइयों के निर्माण में  किया जाता है, क्योंकि इसमें स्क्वैलीन की उच्च मात्रा होती है।
  • देश के विविध जीव-जंतुओं का अध्ययन करने हेतु वर्ष 1916 में ZSI की स्थापना की गई थी। कोलकाता में स्थित अपने मुख्य कार्यालय और 16 क्षेत्रीय स्थानों के साथ, यह एक राष्ट्रीय संस्थान के रूप में विकसित हो चुका है।
    • इसने अपने कार्यों का विस्तार करते हुए इसमें पर्यावरण प्रभाव आकलन, संरक्षण क्षेत्र सर्वेक्षण, DNA आणविक अध्ययन और वन्यजीव फोरेंसिक अध्ययन शामिल किये हैं। इसमें भारत और पड़ोसी देशों की 103,920 प्रजातियों का प्रतिनिधित्व करने वाले 5.5 मिलियन से अधिक नमूने हैं।

और पढ़ें: मछली की नई प्रजाति की खोज