FPI के FDI में पुनर्वर्गीकरण हेतु RBI ढाँचा
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों को अपने निवेश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में परिवर्तित करने की अनुमति देने हेतु एक ढाँचा प्रस्तुत किया है।
इस फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- थ्रेशोल्ड क्राॅसिंग: कुल पेड-अप इक्विटी के 10% से अधिक निवेश करने वाले किसी भी विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक के पास अपनी होल्डिंग्स को बेचने या ऐसी होल्डिंग्स को FDI के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने का विकल्प दिया गया है।
- किसी सूचीबद्ध भारतीय कंपनी की पेड-अप इक्विटी पूंजी का 10% या उससे अधिक (10% से कम को विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) माना जाता है)।
- FDI का आशय भारत के बाहर के निवासी किसी व्यक्ति द्वारा पूंजीगत साधनों के माध्यम से किया गया निवेश है।
- किसी असूचीबद्ध भारतीय कंपनी में या
- समय पर पुनर्वर्गीकरण: पुनर्वर्गीकरण, लेनदेन (जिसके परिणामस्वरूप 10% से अधिक सीमा का अनुसरण होता है) से पांँच कारोबारी दिनों के अंदर पूरा होना चाहिये।
- अनुपालन आवश्यकताएँ: FPI को विदेशी मुद्रा प्रबंधन (भुगतान का तरीका और गैर-ऋण उपकरणों की रिपोर्टिंग) विनियम, 2019 (FEM (NDI) नियम, 2019) के तहत रिपोर्टिंग दायित्वों का पालन करना होगा।
- FEM (NDI) नियम, 2019 में यह अनिवार्य किया गया है कि भारत में गैर-निवासियों द्वारा निवेश को प्रवेश मार्गों, क्षेत्रीय सीमाओं या निवेश सीमाओं का पालन करना होगा, जब तक कि अन्यथा निर्दिष्ट न किया जाए।
- प्रतिबंधित क्षेत्र: उन क्षेत्रों में पुनर्वर्गीकरण की अनुमति नहीं है जहाँ FDI प्रतिबंधित है जैसे, जुआ और सट्टेबाजी, रियल एस्टेट व्यवसाय, निधि कंपनी (म्यूचुअल बेनिफिट फंड कंपनी) आदि।
- पूरक उपाय: यह भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) के इसी प्रकार के अद्यतन का पूरक है, जिसमें यह अनिवार्य किया गया है कि एक बार FPI निवेशक द्वारा 10% इक्विटी सीमा पार कर लेने पर वह अपनी होल्डिंग को FDI में परिवर्तित करने का विकल्प चुन सकता है।
नोट: कोविड-19 महामारी के कारण भारतीय कंपनियों के अवसरवादी अधिग्रहण पर अंकुश लगाने के लिये सरकार ने प्रेस नोट 3 (2020) के माध्यम से FDI नीति 2017 में संशोधन किया।
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FDI और FPI के बीच क्या अंतर है?
पैरामीटर |
FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) |
FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) |
निवेश की प्रकृति |
किसी विदेशी द्वारा भारत में प्रत्यक्ष निवेश और व्यवसाय का स्वामित्व। |
स्टॉक और बॉण्ड जैसी वित्तीय परिसंपत्तियों में अप्रत्यक्ष निवेश। |
निवेशक की भूमिका |
सक्रिय भूमिका |
निष्क्रिय भूमिका |
नियंत्रण और प्रभाव |
प्रबंधन और व्यावसायिक परिचालन पर उच्च स्तर का नियंत्रण। |
कंपनी के दिन-प्रतिदिन के परिचालन पर कोई प्रमुख नियंत्रण नहीं। |
संपदा प्रकार |
विदेशी कंपनी की भौतिक परिसंपत्तियाँ। |
स्टॉक, बॉण्ड और एक्सचेंज-ट्रेडेड फंड (ETF) जैसी वित्तीय परिसंपत्तियाँ। |
निवेश दृष्टिकोण और समय सीमा |
दीर्घकालिक दृष्टिकोण। योजना से कार्यान्वयन तक प्रगति करने में वर्षों लग सकते हैं। |
FDI की तुलना में यह कम अवधि का निवेश है। यह बाज़ार से जुड़े लाभ पर केंद्रित है। |
उद्देश्य |
दीर्घकालिक लाभ के लिये किसी देश में बाजार पहुँच या रणनीतिक हितों को सुरक्षित करना। |
अल्पावधि रिटर्न और बाज़ार से जुड़े लाभ पर केंद्रित है। |
जोखिम कारक |
सामान्यतः अधिक स्थिर, लेकिन मेजबान देश की नीतियों, राजनीतिक वातावरण और नियमों से प्रभावित। |
सामान्यतः परिसंपत्ति की कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण यह अधिक अस्थिर होता है। |
प्रवेश और निकास |
प्रवेश और निकास कठिन है। |
तरलता और परिसंपत्तियों के व्यापक व्यापार के कारण प्रवेश और निकास सुलभ है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त में से किसे/किन्हें विदेशी प्रत्यक्ष निवेश में सम्मिलित किया जा सकता है/किये जा सकते हैं? (a) 1, 2 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020) (a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कम्पनी में पूँजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है। उत्तर: (b) |
QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: एशिया 2025
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
क्वाक्वेरेली साइमंड्स (QS) वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग: एशिया 2025 में उच्च शिक्षा के संदर्भ में भारत की स्थिति पर प्रकाश डाला गया है, जिसमें भारत के शीर्ष 50 में 2 संस्थान और शीर्ष 100 में 7 संस्थान शामिल हैं। यह एशिया भर में भारतीय संस्थानों की बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा को दर्शाता है।
QS एशिया रैंकिंग में भारत का प्रदर्शन कैसा है?
- उच्च शिक्षा में उन्नति: शीर्ष 50 में भारत के 2 संस्थान हैं, जिनमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (IIT-D) 44 वें स्थान पर तथा IIT बॉम्बे 48 वें स्थान पर है, जिससे एशिया की उच्च शिक्षा में इनकी प्रमुखता पर प्रकाश पड़ता है।
- इसके अतिरिक्त शीर्ष 100 में 5 भारतीय संस्थान शामिल हैं अर्थात IIT मद्रास (56वें स्थान पर), IIT खड़गपुर (60वें स्थान पर), भारतीय विज्ञान संस्थान (62वें स्थान पर), IIT कानपुर (67वें स्थान पर) तथा दिल्ली विश्वविद्यालय (81वें स्थान पर)।
- अन्य उल्लेखनीय संस्थान जैसे IIT गुवाहाटी, IIT रुड़की, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ विश्वविद्यालय और वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी भारत की अकादमिक उत्कृष्टता पर प्रकाश डालते हैं, इनमें से कई संस्थान विश्व स्तर पर शीर्ष 150 में स्थान प्राप्त कर चुके हैं।
- भारत की रैंकिंग में वृद्धि के पीछे प्रमुख कारक: भारत का मज़बूत प्रदर्शन उच्च शोध उत्पादकता से प्रेरित है जिसमें अन्ना विश्वविद्यालय जैसे संस्थान प्रति संकाय शोधपत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रहे हैं।
- अकादमिक उत्कृष्टता पर भी ध्यान दिया जा रहा है, जहाँ कई विश्वविद्यालयों में उच्च पीएचडी स्टाफ है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान नेटवर्क में भी वृद्धि हो रही है जैसे दिल्ली विश्वविद्यालय की रैंकिंग में वृद्धि, जिससे इसकी वैश्विक मान्यता बढ़ी है।
भारत के शिक्षा क्षेत्र के संदर्भ में QS यूनिवर्सिटी रैंकिंग के निहितार्थ
- वैश्विक मान्यता: भारतीय विश्वविद्यालयों की बेहतर रैंकिंग से उनकी वैश्विक प्रतिष्ठा बढ़ने के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर छात्र और शिक्षक आकर्षित होते हैं। यह मान्यता भारत को उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में स्थापित करने में सहायक है।
- भारत के शैक्षिक क्षेत्र में काफी उन्नति हुई है यहाँ के 46 संस्थान QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2025 में शामिल हुए हैं जबकि वर्ष 2015 में यह संख्या केवल 11 थी, यानी पिछले दशक से 318% की वृद्धि हुई है।
- FDI: उन्नत शैक्षिक मानक और वैश्विक मान्यता से शिक्षा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) में वृद्धि हो सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा एवं रोज़गार के अधिक अवसर सृजित होंगे।
- बेहतर शैक्षणिक मानक: उच्च रैंकिंग की आशा से भारतीय विश्वविद्यालय अपने शैक्षणिक मानकों में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं जिसमें पाठ्यक्रम विकास, शिक्षण पद्धतियाँ और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 जैसी शैक्षिक नीतियाँ शामिल हैं। इससे एक अधिक मज़बूत एवं प्रतिस्पर्द्धी शैक्षिक ढाँचा सुनिश्चित होता है।
क्वाक्वेरेली साइमंड्स
क्वाक्वेरेली साइमंड्स (QS) एक लंदन स्थित वैश्विक उच्च शिक्षा विश्लेषक है जो अपनी व्यापक रूप से मान्यता प्राप्त QS वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग के लिये जाना जाता है।
- यह चार व्यापक श्रेणियों में छह संकेतकों के आधार पर विश्वविद्यालयों का मूल्यांकन करता है: अनुसंधान प्रतिष्ठा, सीखने और पढ़ाने का वातावरण, अनुसंधान प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीयकरण।
अंतरिक्ष अभ्यास 2024
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में रक्षा मंत्रालय के तहत रक्षा अंतरिक्ष एजेंसी ने नई दिल्ली में अंतरिक्ष संबंधी भारत के पहले अभ्यास, 'अंतरिक्ष अभ्यास' का आयोजन किया।
- उद्देश्य: अंतरिक्ष में राष्ट्रीय रणनीतिक उद्देश्यों को सुरक्षित करने के क्रम में अंतरिक्ष आधारित परिसंपत्तियों एवं सेवाओं से संबंधित खतरों का अनुकरण और विश्लेषण करना।
प्रमुख लक्षित क्षेत्र:
- सैन्य अभियानों में अंतरिक्ष क्षमता के एकीकरण को बढ़ावा देना।
- अंतरिक्ष परिसंपत्तियों से संबंधित परिचालन निर्भरता की बेहतर समझ प्रदान करना।
- कमज़ोरियों की पहचान करने के साथ अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं में व्यवधान का समाधान करना।
- अंतरिक्ष क्षेत्र का सैन्य उपयोग: सीमा पर घुसपैठ, अवैध गतिविधियों एवं मिसाइल प्रक्षेपण का पता लगाने के लिये सशस्त्र बलों द्वारा अंतरिक्ष क्षमताओं का उपयोग निर्णायक है।
- भारत की क्षमता: मार्च 2019 में भारत ने मिशन शक्ति के तहत अंतरिक्ष कक्षा में दुश्मन के उपग्रहों को नष्ट या निष्क्रिय करने के लिये डिज़ाइन किये गए एंटी-सैटेलाइट (ASAT) टेस्ट का सफलतापूर्वक परीक्षण किया।
- विनियमन: बाह्य अंतरिक्ष संधि,1967 के अनुसार, बाह्य अंतरिक्ष का उपयोग केवल शांतिपूर्ण कार्यों के लिये ही किया जाना चाहिये।
- समुद्र तल से 100 किलोमीटर ऊपर स्थित कार्मन रेखा वह सीमा रेखा है जहाँ से पृथ्वी क्षेत्र समाप्त होने के साथ बाह्य अंतरिक्ष की शुरूआत होती है।
और पढ़ें: स्पेस एंड बियॉन्ड: ISRO का उदय
ऑस्ट्राहिंद
स्रोत: पी.आई.बी
हाल ही में, अभ्यास ऑस्ट्राहिंद (AUSINDEX) का तीसरा संस्करण नवंबर, 2024 में महाराष्ट्र के पुणे में विदेशी प्रशिक्षण नोड में शुरू हुआ।
- इसका आयोजन भारत और ऑस्ट्रेलिया में बारी-बारी से किया जाता है। जिसका उद्देश्य संयुक्त अभियानों में सैन्य सहयोग और अंतर-संचालनशीलता को बढ़ाना है।
- अभ्यास का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र अधिदेश के अध्याय सात के तहत अर्द्ध-रेगिस्तानी इलाकों में अर्द्ध-शहरी वातावरण में संयुक्त उप-पारंपरिक संचालन के संचालन में अंतर-संचालन क्षमता को बढ़ाकर सैन्य सहयोग को प्रोत्साहन देना है। अभ्यास में उच्च स्तर की शारीरिक फिटनेस, संयुक्त योजना और संयुक्त सामरिक अभ्यास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
- अभ्यास दो चरणों में आयोजित किया जाएगा - युद्ध की तैयारी और सामरिक प्रशिक्षण चरण और सत्यापन चरण।
- यह अभ्यास भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी (2020) के तहत बढ़ते रक्षा सहयोग को दर्शाता है।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच अन्य अभ्यास AUSINDEX और PITCHBLACK हैं।
- भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा सहयोग:
- पारस्परिक रसद समर्थन समझौता
- दोनों ही देश क्वाड, राष्ट्रमंडल, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), आसियान क्षेत्रीय मंच, जलवायु एवं स्वच्छ विकास पर एशिया प्रशांत साझेदारी के सदस्य हैं तथा पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में शामिल हो चुके हैं।
और पढ़ें: भारत के प्रमुख सैन्य अभ्यास
ग्लूटेन
स्रोत: द हिंदू
ग्लूटेन, एक प्रोटीन कॉम्प्लेक्स जो मुख्य रूप से गेहूँ जौ तथा राई में पाया जाता है, खाद्य उद्योग में अपनी उपयोगिता के लिये जाना जाता है, लेकिन यह ग्लूटेन से संबंधित विकारों जैसे कि सीलियेक रोग का कारण बनने के लिये कुख्यात है, जो आबादी के लगभग 2% को प्रभावित करता है।
- ग्लूटेन प्रोटीन से बना होता है, मुख्यतः ग्लियाडिन और ग्लूटेनिन, जो तब बनते हैं जब कुछ अनाज के आटे में पानी मिलाया जाता है।
- यह आटे को लचीलापन प्रदान करता है, जिससे वह फूलता है और पके हुए उत्पादों को चबाने योग्य बनाता है।
- यह प्राकृतिक रूप से पाया जाता है और इसे सांद्रित करके भोजन तथा अन्य वस्तुओं में मिलाकर उसके स्वाद, बनावट और प्रोटीन की मात्रा में सुधार किया जा सकता है।
- ग्लूटेन एंज़ाइम प्रोटीएज़ के कारण पाचन तंत्र में ग्लूटेन का पूर्ण रूप से विघटन नहीं हो पाता है। ग्लूटेन के पाचन न होने से जठरांत्र (Gastrointestinal) संबंधी विकार हो सकते हैं।
- प्रोटीएज़ (Protease), (जिसे पेप्टिडेज़, प्रोटीनेज़ या प्रोटीयोलाइटिक एंज़ाइम भी कहा जाता है) एक एंज़ाइम है जो प्रोटीन को छोटे पॉलीपेप्टाइड्स या अमीनो एसिड में विघटित करता है।
- सीलियेक रोग (Coeliac Disease) नामक एक स्वप्रतिरक्षी विकार ग्लूटेन के कारण उत्पन्न होता है, यह छोटी आँत को नुकसान पहुँचता है तथा प्रतिरक्षा प्रणाली को बहुत सारे एंटीबॉडी के निर्माण हेतु प्रेरित करता है, जो शरीर के अपने प्रोटीन को लक्षित करते हैं।
- वर्तमान में सीलियेक रोग के उपचार के लिये ग्लूटेन की मात्रा बहुत कम रखना ही एकमात्र प्रभावी तरीका है।
और पढ़ें: सीलियेक रोग - दृष्टि आईएएस
वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024
स्रोत: डाउन टू अर्थ
वर्ष 2024 के वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक (Nature Conservation Index : NCI) में भारत 176 वें स्थान पर है। 180 देशों में से यह किरिबाती (180), तुर्की (179), इराक (178) और माइक्रोनेशिया (177) के साथ सबसे कम रैंक वाले पाँच देशों में से एक है।
- भारत की निम्न रैंकिंग अकुशल भूमि प्रबंधन और बढ़ती जैव विविधता के खतरों के कारण है।
- प्रकृति संरक्षण सूचकांक (NCI) के बारे में:
- इसे बेन-गुरियन बेन-गुरियन यूनिवर्सिटी के गोल्डमैन सोनेनफेल्ड स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज और जैवविविधता डेटाबेस BioDB.com द्वारा विकसित किया गया है।
- संरक्षण प्रयासों के मूल्यांकन के लिये पहली NCI अक्तूबर, 2024 में शुरू की गई थी।
- इसमें चार प्रमुख मानदंडों का मूल्यांकन किया गया है: भूमि प्रबंधन, जैव विविधता को खतरा, क्षमता और शासन, और भविष्य के रुझान।
- NCI का अवलोकन:
- भूमि का सतत् उपयोग अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि 53% भूमि का उपयोग शहरी, औद्योगिक और कृषि प्रयोजनों के लिये किया जाता है।
- यह सूचकांक कीटनाशकों के उच्च उपयोग पर प्रकाश डालता है तथा मृदा प्रदूषण से संबंधित जानकारी प्रदान करता है।
- समुद्री संरक्षण में सुधार की आवश्यकता है, केवल 0.2% राष्ट्रीय जलमार्ग संरक्षित हैं तथा भारत के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में कोई भी नहीं है।
- भारत विश्व स्तर पर अवैध वन्यजीव व्यापार करने वाला चौथा सबसे बड़ा देश है, जिसकी वार्षिक बिक्री लगभग 15 बिलियन यूरो है।
- वनोन्मूलन के परिणामस्वरूप वर्ष 2001 और 2019 के बीच 23,300 वर्ग किलोमीटर वृक्ष क्षेत्र नष्ट हो गया।
- भारत की पारिस्थितिक संपदा को लगातार अधिक जनसंख्या के कारण खतरा बना रहता है।
और पढ़ें: पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2024