प्रिलिम्स फैक्ट्स (11 May, 2024)



जलियाँवाला बाग नरसंहार मुआवज़े में नस्लीय पूर्वाग्रह

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

13 अप्रैल, 1919 को हुआ जलियाँवाला बाग हत्याकांड, भारत के औपनिवेशिक इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है। नया शोध ब्रिटिश सरकार द्वारा त्रासदी से प्रभावित लोगों को मुआवज़ा देने में अपनाई गई घोर नस्लवादी कानूनी संरचना पर प्रकाश डालता है।

शोध की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?

  • मुआवज़े में नस्लीय पूर्वाग्रह:
    • ब्रिटिश प्रशासन द्वारा भारतीयों को यूरोपीय लोगों के समान मुआवज़ा नहीं दिया जाता था।
      • यूरोपीय लोगों को भारतीयों की तुलना में 600 गुना अधिक मूल्य का भुगतान प्राप्त हुआ।
    • यूरोपीय लोगों को कुल मिलाकर 523,000 रुपए से अधिक का मुआवज़ा प्राप्त हुआ, साथ ही व्यक्तिगत भुगतान के रूप में 30,000 रुपए से लेकर 300,000 से रुपए तक प्राप्त हुए। ब्रिटिश सरकार ने इन्हें यूरोपीय दावों को कहीं अधिक प्राथमिकता दी।
    • मुआवज़े का भेदभावपूर्ण वितरण नस्लीय पूर्वाग्रह और भारतीयों के जीवन मूल्य की चिंतनीय स्थिति को दर्शाता है।
  • कानूनी कार्यवाही:
    • पंजाब अशांति समिति, ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा हिंसा को उचित ठहराते हुए नस्लीय आधार पर विभाजित हो गई।
      • समिति के यूरोपीय सदस्यों ने पंजाब में ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा प्रयोग की गई हिंसक रणनीति को उचित ठहराया, जबकि भारतीय सदस्य इससे सहमत नहीं थे।
    • भारतीय विधायकों ने समान मुआवज़े की मांग की और उन्हें ब्रिटिश अधिकारियों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
  • उपनिवेशवाद की अनुचितता:
    • नए शोध के अनुसार, ब्रिटिश सरकार को औपचारिक रूप से माफी मांगनी चाहिये, और साथ ही  शाही विरासतों को उपनिवेशमुक्त करने तथा इतिहास की गलतियों को स्वीकार करने पर ज़ोर भी दिया जाना चाहिये।

जलियाँवाला बाग हत्याकांड क्या है?

  • नरसंहार की शुरुआत:
    • प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस को स्वशासन की उम्मीद थी लेकिन उसे शाही नौकरशाही के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
    • 1919 में पारित रॉलेट एक्ट ने सरकार को देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े व्यक्तियों को बिना मुकदमे के गिरफ्तार करने का अधिकार दिया, जिससे देश भर में अशांति को बढ़ावा मिला।
    • 9 अप्रैल, 1919 को राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की गिरफ्तारी के बाद पंजाब में व्यापक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया।
  • नरसंहार: जलियाँवाला बाग नरसंहार दमनकारी रॉलेट एक्ट और पंजाब में व्यापक विरोध प्रदर्शनों के कारण बढ़े तनाव के कारण हुआ था। 
    • वर्ष 1857 के विद्रोह की तरह विद्रोह के डर से, ब्रिटिश प्रशासन ने प्रतिरोध का दमन किया।
    • 13 अप्रैल, 1919 को ब्रिगेडियर-जनरल डायर की कार्रवाइयों (सैनिकों ने अंधाधुंध गोलीबारी की, जिसमें कई निर्दोष लोगों की मृत्यु हो गई तथा कई अन्य लोग घायल हो गए) ने स्थिति को और चिंतनीय कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप रॉलेट एक्ट, 1919 के खिलाफ हो रहे शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के दौरान नरसंहार हुआ, जिससे सैकड़ों निर्दोष प्रदर्शनकारियों की मृत्यु हो गई।
      • हालाँकि डायर ने 13 अप्रैल (बैसाखी के दिन) को एक घोषणा की, जिसमें लोगों को प्रदर्शन करने से मना किया गया।
  • हंटर आयोग: हंटर आयोग को जलियाँवाला बाग नरसंहार की प्रतिक्रया में ब्रिटिश सरकार द्वारा गठित किया गया था।
    • इस आयोग की रिपोर्ट में निर्दोष और निशस्त्र नागरिकों पर गोली चलाने के डायर के निर्णय की आलोचना की गई तथा सैन्य बल के असंगत उपयोग पर प्रकाश डाला गया।
    • हंटर आयोग के निष्कर्षों से भारत में डायर के कार्यों की निंदा को बढ़ावा मिला।
      • समिति की कार्यवाही शुरू होने से पूर्व सरकार ने अपने अधिकारियों की सुरक्षा के लिये एक क्षतिपूर्ति अधिनियम पारित किया था।
    • आयोग की रिपोर्ट के कारण डायर को उसकी कमान से हटा दिया गया और उसके बाद सेना से उसकी सेवानिवृत्ति कर दी गई।
  • परिणाम और महत्त्व: जलियाँवाला बाग नरसंहार भारत के स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्त्वपूर्ण क्षण बन गया, जिसने महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन (1920-22) को उत्प्रेरित किया।
    • इस घटना के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी नाइटहुड की उपाधि त्याग दी।
    • 1940 में लंदन के कैक्सटन हॉल में भारतीय स्वतंत्रता सेनानी उधम सिंह ने माइकल ओ 'डायर की हत्या कर दी, जिन्होंने डायर के कार्यों को मंज़ूरी दी थी।  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रॉलेट एक्ट ने किस कारण से सार्वजनिक रोष उत्पन्न किया? (2009)

(a) इसने धर्म की स्वतंत्रता को कम किया
(b) इसने भारतीय पारंपरिक शिक्षा को दबा दिया
(c) इसने सरकार को बिना मुकदमे के लोगों को कैद करने के लिये अधिकृत किया
(d) इसने ट्रेड यूनियन गतिविधियों पर अंकुश लगाया

उत्तर: (c)


बैटिलिप्स चंद्रायणी

स्रोत: द हिंदू 

कोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्त्ताओं ने चंद्रयान-3 चंद्रमा मिशन के सम्मान में तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तट से नई खोजी गई समुद्री टार्डिग्रेड प्रजाति का नाम बैटिलिप्स चंद्रायणी (Batillipes Chandrayaani) रखा है।

  • यह तमिलनाडु के मंडपम में उच्च और निम्न ज्वार के निशानों के बीच रेतीले क्षेत्र में पाया गया था।
  • यह टार्डिग्रेड 39वें प्रकार का टार्डिग्रेड है जिसे बैटिलिप्स नाम से वर्गीकृत किया गया है।
  • इसका एक सिर है जो एक समलंबाकार जैसा दिखता है और चीज़ों को महसूस करने के लिये नुकीले रीढ़ वाले चार जोड़ी पैर हैं।
  • टार्डिग्रेड्स:
    • ये छोटे जीव, जिन्हें अक्सर "वाॅटर बियर (water bears)" कहा जाता है, सूक्ष्म अदृश्य प्रकार के हैं।
    • हमें ज्ञात सभी टार्डिग्रेड प्रजातियों में से 17% समुद्री टार्डिग्रेड हैं और वे महासागरों में निवास करते हैं।
      • टार्डिग्रेड्स ने क्रिप्टोबायोसिस नामक प्रक्रिया से गुज़रकर पर्यावरणीय परिस्थिति को अनुकूलित किया है।
      • क्रिप्टोबायोसिस को एक ऐसी स्थिति के रूप में परिभाषित किया गया है जिसमें चयापचय (Metabolic) गतिविधियाँ प्रतिवर्ती ठहराव में आ जाती हैं।
    • अपने सूक्ष्म आकार के बावज़ूद, ये सूक्ष्म-मेटाज़ोआ बड़े पैमाने पर विलुप्त होने से बचने और अपनी उल्लेखनीय जीवित रहने की क्षमताओं के लिये मान्यता अर्जित करने में अविश्वसनीय रूप से लचीले प्रकार के हैं।

और पढ़ें: चंद्रयान-3 प्रोपल्शन मॉड्यूल पृथ्वी की कक्षा में लौटा


रूस में भीषण गर्मी के कारण वनाग्नि की घटनाएँ

स्रोत: डाउन टू अर्थ

मार्च 2024 की शुरुआत से रूस के आठ क्षेत्रों में फैली वनाग्नि के परिणामस्वरूप इस साल देश के अधिकांश हिस्सों में "उच्च" (High) और "चरम" (Extreme) वनाग्नि की संभावना व्यक्त की गई है। यह विगत वर्षों में देखी गई प्रवृत्ति का ही अनुसरण करती है, जैसे कि वर्ष 2019 और 2022 में साइबेरिया में हीटवेव के कारण वनाग्नि की विनाशकारी घटनाएँ सामने आईं थीं।  

  • सखा गणराज्य या याकुतिया का एक शहर वेरखोयांस्क (Verkhoyansk), जिसे 'विश्व में सबसे ठंडे आवास योग्य स्थान' के रूप में जाना जाता है, ने जून 2020 में 38 डिग्री सेल्सियस का तापमान दर्ज किया, जो संभवतः आर्कटिक वृत्त क्षेत्र में अब तक का सर्वाधिक तापमान है।
  • रूस के कई क्षेत्र, जिनमें यहूदी स्वायत्त क्षेत्र (Jewish Autonomous Region) और खाबरोवस्क (Khabarovsk) क्षेत्र शामिल हैं, वर्तमान में वनाग्नि की घटनाओं में व्यापक वृद्धि के कारण आपातकाल की स्थिति में हैं।
  • रसियन हाइड्रोमेटोरोलॉजिकल सेंटर ने पूर्वानुमान व्यक्त किया है कि इस साल रूस के अधिकांश हिस्से को "उच्च" और "चरम" वनाग्नि के जोखिम वाली लंबी अवधि का सामना करना पड़ेगा।

और पढ़ें: वनाग्नि


भारतीय नौसेना के जहाजों ने समुद्री साझेदारी को मज़बूत किया

स्रोत: पी.आई.बी.

भारतीय नौसेना के जहाज़ दिल्ली, शक्ति और किल्टन ने हाल ही में दक्षिण चीन सागर में भारतीय नौसेना के पूर्वी बेड़े की परिचालन तैनाती के हिस्से के रूप में सिंगापुर का दौरा किया।

  • इस यात्रा का उद्देश्य द्विपक्षीय जुड़ाव और आपसी हितों और सहयोग पर चर्चा करना, क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा और स्थिरता को बढ़ाने की प्रतिबद्धता पर बल देना है।
  • मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स द्वारा निर्मित आईएनएस दिल्ली, भारतीय नौसेना का पहला स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित निर्देशित मिसाइल विध्वंसक है।
    • 1997 में शामिल किया गया यह सतह, वायु और पानी के नीचे डोमेन पर समुद्री संचालन के सभी पहलुओं पर कार्य करने में सक्षम है।
  • INS शक्ति, अपने पूर्ववर्ती INS दीपक बेड़े के टैंकर के साथ, एक इतालवी जहाज़ निर्माण कंपनी फिनकैंटिएरी द्वारा निर्मित, अपनी श्रेणी का दूसरा और अंतिम जहाज़ है।
    • यह समुद्र में अन्य नौसैनिक जहाजों को ईंधन, गोला-बारूद और प्रावधानों से भरने में सक्षम है।
  • INS किल्टन एक स्वदेशी पनडुब्बी रोधी युद्धक स्टील्थ कार्वेट है जिसे भारतीय नौसेना में शामिल किया गया है।
    • यह प्रोजेक्ट 28 के तहत निर्मित चार कामोर्टा श्रेणी के कार्वेट में से तीसरा है। इसे भारतीय नौसेना डिजाइन निदेशालय द्वारा निर्मित किया गया है और कोलकाता में गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) द्वारा निर्मित किया गया है।
    • इसका नाम लक्षद्वीप और मिनिकॉय समूह के एक द्वीप के नाम पर रखा गया है। इसी नाम के पूर्ववर्ती पेट्या श्रेणी के जहाज़ 'किल्टन (पी79)' की विरासत जारी है, जिसने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान 'ऑपरेशन ट्राइडेंट' में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

और पढ़ें: भारतीय नौसेना दिवस 2023


ग्रीन माइलस्टोन

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

हाल ही में ऊर्जा, पर्यावरण एवं जल परिषद और सेंटर फॉर एनर्जी फाइनेंस (CEEW-CEF) मार्केट हैंडबुक में पाया गया कि भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी वर्ष 2023-24 की अवधि के दौरान इतिहास में पहली बार 50% से कम हो गई।

    • रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में जोड़ी गई 26 गीगावाट (GW) बिजली उत्पादन क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का हिस्सा 71% है।
    • भारत की कुल स्थापित बिजली क्षमता बढ़कर 442GW हो गई, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 144GW (33%) और हाइड्रो का योगदान 47 GW (11%) है।
    • नवीकरणीय ऊर्जा में सौर ऊर्जा का हिस्सा 81% है, जिसमें पवन की क्षमता लगभग 3.3 गीगावॉट तक पहुँच गई है और परमाणु क्षमता में 1.4 गीगावॉट की वृद्धि हुई है।
    • वित्तीय वर्ष 2024 में नवीकरणीय ऊर्जा की नीलामी रिकॉर्ड 41 गीगावॉट तक पहुँच गई, जिसमें पवन-सौर हाइब्रिड और RE-प्लस-स्टोरेज जैसे नवीन प्रारूप प्रमुखता प्राप्त कर रहे हैं।
      • RE-प्लस-स्टोरेज नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों को संदर्भित करता है, जैसे कि सौर या पवन ऊर्जा, जो आमतौर पर बैटरी के रूप में ऊर्जा भंडारण समाधानों के साथ संयुक्त होती है।
    • भारत ने वर्ष 2022 में अपनी जलवायु परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को अद्यतन किया, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% कम करना और उसी वर्ष तक अपनी बिजली क्षमता का 50% गैर-जीवाश्म स्रोतों से प्राप्त करना है।

    और पढ़ें: पर्सपेक्टिव: भारत का हरित ऊर्जा परिवर्तन