जलियांवाला बाग हत्याकांड
प्रिलिम्स के लियेजलियांवाला बाग हत्याकांड, असहयोग आंदोलन, प्रथम विश्व युद्ध मेन्स के लियेजलियांवाला बाग हत्याकांड |
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री, अमृतसर (पंजाब) में नवनिर्मित जलियांवाला बाग परिसर और संग्रहालय का उद्घाटन करेंगे।
प्रमुख बिंदु
- परिचय:
- यह परिसर उन लोगों को समर्पित एक स्मारक है जो ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर (Brigadier General Reginald Edward Dyer) के आदेश पर 13 अप्रैल, 1919 को मारे गए थे।
- इस त्रासदी जिसे अमृतसर के नरसंहार के रूप में भी जाना जाता है, ने अंग्रेज़ों के अमानवीय दृष्टिकोण को उजागर किया जब जनरल डायर के अधीन ब्रिटिश सैनिकों ने निहत्थी भीड़ पर गोलियाँ चला दीं।
- आयोजन को रोकना:
- प्रथम विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत की ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन शक्तियों की एक शृंखला बनाई जिसका उद्देश्य विध्वंसक गतिविधियों का मुकाबला करना था।
- 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, जिसे रॉलेट एक्ट (ब्लैक अधिनियम) के रूप में जाना जाता है और जिसे 10 मार्च, 1919 को पारित किया गया था, ने सरकार को बिना किसी मुकदमे के देशद्रोही गतिविधियों से जुड़े किसी भी व्यक्ति को कैद या कैद करने के लिये अधिकृत किया जिसके कारण राष्ट्रव्यापी अशांति उत्पन्न हुई।
- 13 अप्रैल, 1919 को डॉ. सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल की रिहाई का अनुरोध करने के लिये जलियांवाला बाग में कम-से-कम 10,000 पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की भीड़ जमा हुई।
- यहाँ पर हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक दो प्रमुख नेताओं ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध का आयोजन किया था लेकिन दोनों को गिरफ्तार कर शहर से बाहर ले जाया गया।
- ब्रिगेडियर-जनरल डायर को जब इस बैठक के बारे में जानकारी मिली तो उसने यहाँ अपने सैनिकों को तैनात कर दिया तथा लोगों की भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। पार्क के एकमात्र निकास द्वार को सील कर दिया गया और अंधाधुंध गोलीबारी में सैकड़ों निर्दोष नागरिक मारे गए।
- जलियांवाला बाग घटना के बाद:
- गोलीबारी के बाद पंजाब में मार्शल लॉ की घोषणा कर दी गई जिसमें सार्वजनिक स्टाल पर कोड़े लगाना और अन्य प्रकार से अपमानित करना शामिल था। गोलीबारी और उसके बाद की ब्रिटिश कार्रवाइयों की खबर पूरे उपमहाद्वीप में फैलते ही भारतीय नागरिकों में आक्रोश फैल गया।
- इस घटना के विरोध में बांग्ला कवि और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर ने वर्ष 1915 में प्राप्त नाइटहुड की उपाधि का त्याग कर दिया।
- महात्मा गांधी ने बोअर युद्ध (दक्षिण अफ्रीकी युद्ध 1899-1902) के दौरान किये गए अपने कार्य के लिये अंग्रेज़ों द्वारा दी गई केसर-ए-हिंद की उपाधि को त्याग दिया।
- उस समय वायसराय की कार्यकारी परिषद में एकमात्र भारतीय प्रतिनिधि चेट्टूर शंकरन नायर (1857-1934) ने विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
- उस समय लॉर्ड चेम्सफोर्ड वायसराय थे।
- इस नरसंहार की जाँच के लिये 14 अक्तूबर, 1919 को एक जाँच समिति का गठन किया गया था। बाद में इसे अध्यक्ष लॉर्ड विलियम हंटर के नाम पर हंटर आयोग के रूप में जाना जाने लगा। इसमें भारतीय सदस्य भी शामिल थे।
- 1920 में हंटर आयोग ने जनरल डायर द्वारा किये गए उसके कार्यों की निंदा की और उसे ब्रिगेड कमांडर के पद से त्यागपत्र देने का निर्देश दिया।
- भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस ने अपनी स्वयं की गैर-आधिकारिक समिति नियुक्त की और उसे जाँच करने के लिये कहा, इसमें शामिल थे- मोतीलाल नेहरू, सी.आर. दास, अब्बास तैयबजी, एम.आर. जयकर और गांधीजी।
- गांधीजी ने जल्द ही अपना पहला बड़े पैमाने पर और निरंतर अहिंसक विरोध (सत्याग्रह) अभियान, असहयोग आंदोलन (1920–22) का आयोजन शुरू किया, जो 25 वर्ष बाद भारत से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हुआ।