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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 07 Aug, 2023
  • 34 min read
प्रारंभिक परीक्षा

विश्व स्तनपान सप्ताह 2023

विश्व स्तनपान सप्ताह 2023 के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children's Fund- UNICEF) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग रेट (छह माह तक के बच्चों को सिर्फ स्तनपान) में वृद्धि करने में कई देशों द्वारा की गई प्रगति की सराहना की है। साथ ही इसे समर्थन (विशेष रूप से कार्यस्थल पर स्तनपान) प्रदान करने से इसमें और प्रगति की संभावना पर भी प्रकाश डाला।

विश्व स्तनपान सप्ताह 2023: 

  • वर्ष 1990 की इनोसेंटी घोषणा (Innocenti Declaration) के उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष अगस्त के पहले सप्ताह में विश्व स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है।
    • स्तनपान को प्रोत्साहित और समर्थन प्रदान करने के लिये वर्ष 1990 में सरकारी नीति निर्माताओं, संयुक्त राष्ट्र स्वास्थ्य एजेंसियों और अन्य संगठनों द्वारा इनोसेंटी घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए थे।
  • वर्ष 1991 में वर्ल्ड अलायंस फॉर ब्रेस्टफीडिंग एक्शन (WABA) का गठन एक वैश्विक नेटवर्क के रूप में किया गया था, जिसके पश्चात् वर्ष 1992 से विश्व भर में प्रतिवर्ष स्तनपान सप्ताह मनाया जाता है।
    • वर्ष 2016 से विश्व स्तनपान सप्ताह (World Breastfeeding Week- WBW) को सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के साथ जोड़ा गया है।
      • 17 सतत् विकास लक्ष्यों में से कई लक्ष्यों को हासिल करने में स्तनपान सहायक हो सकता है, जिसमें निर्धनता, भुखमरी को समाप्त करना, स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता और सतत् उपभोग जैसे लक्ष्य शामिल हैं।
  • थीम 2023: "लेट्स मेक ब्रेस्टीफीडिंग एंड वर्क, वर्क"।
    • यूनिसेफ तथा WHO ने महिलाओं और परिवारों के समक्ष स्तनपान लक्ष्यों को प्राप्त करने में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सहायता के लिये सरकारों, दानदाताओं, नागरिक समाज एवं निजी क्षेत्र से अपने प्रयासों में वृद्धि करने का आग्रह किया है ताकि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2030 तक 70% स्तनपान के लक्ष्य को पूरा किया जा सके।

एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग रेट (स्तनपान) में प्रगति: 

  • स्तनपान में बच्चों को केवल माँ के दूध का सेवन कराना अनिवार्य है, जबकि आवश्यक दवाओं, विटामिन और खनिज सप्लीमेंट्स को छोड़कर अन्य सभी खाद्य पदार्थ, तरल पदार्थ, शिशु सूत्र (infant formula) एवं जल को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
  • केवल स्तनपान का अभ्यास शिशुओं को महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है, जिसमें सामान्य संक्रामक रोगों से सुरक्षा और उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करना शामिल है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि उन्हें इष्टतम वृद्धि और विकास के लिये आवश्यक पोषक तत्त्व प्राप्त हों।
    • वैश्विक स्तर पर पिछले एक दशक में स्तनपान की दर में उल्लेखनीय 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। अब यह 48 प्रतिशत तक पहुँच गई है। 

स्तनपान से संबंधित भारत सरकार की पहल:

  • माँ (Mothers Absolute Affection- MAA):
    • यह देश में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिये स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा चलाई जा रही योजना है।
  • वात्सल्य- मातृ अमृत कोष (Vatsalya- Maatri Amrit Kosh):
    • इसके तहत नॉर्वे सरकार की मदद से नेशनल ह्यूमन मिल्क बैंक तथा स्तनपान परामर्श केंद्र की स्थापना की गई है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


प्रारंभिक परीक्षा

हिमालयी गिद्ध: जिप्स हिमालयेंसिस

हाल ही में गुवाहाटी में असम राज्य चिड़ियाघर ने भारत में पहली बार कैद में दुर्ग्राह्य हिमालयी गिद्ध (जिप्स हिमालयेंसिस) का सफलतापूर्वक प्रजनन कराकर एक अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की है।

  • इसके अतिरिक्त केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक के विरचन, विक्रय और वितरण पर रोक लगाने के केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के निर्णय ने गिद्ध संरक्षणवादियों और विशेषज्ञों में एक उम्मीद जगाई है।

हिमालयी गिद्ध के विषय में :

  • संरक्षण की स्थिति:
  • विशेषताएँ:
    • विश्व के प्राचीनतम एवं सबसे बड़ी गिद्ध प्रजातियों में से एक हिमालयी गिद्ध के डैने विशालकाय और दुर्जेय होते हैं।
    • इनके पंखों पर काले और भूरे रंग की प्रधानता होती है, जो ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी इलाकों में इन्हें स्वयं को छिपाने में मदद करती है।
    • मज़बूत व मुड़ी हुई चोंच और गहन दृष्टि की विशेषता के कारण गिद्ध, पर्यावरण के सबसे कुशल अपमार्जक होते है, जो सड़े-गले जैविक पदार्थों (विशेषकर मृत जीवों) को खाकर पारिस्थितिकी तंत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • पर्यावास एवं क्षेत्र:
    • हिमालयी गिद्ध का नाम उपयुक्त है, क्योंकि यह मुख्य रूप से हिमालय पर्वत शृंखला की ऊँची चोटियों एवं घाटियों में निवास करता है।
      • यह भारतीय मैदानी क्षत्रों में होने वाला एक सामान्य शीतकालीन प्रवासी है।
    • इसका वितरण भारत, नेपाल, भूटान तथा चीन सहित कई देशों में हैं, जहाँ यह कठिन ऊँचाई वाली परिस्थितियों में फलता-फूलता है।
  • पारिस्थितिकीय महत्त्व:
    • एक शीर्ष शिकारी और सफाईकर्मी के रूप में हिमालयी गिद्ध जानवरों के अवशेषों का कुशलतापूर्वक निपटान करके अपने आवास के स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • इसकी सफाई की प्रवृत्ति उन बीमारियों के प्रसार को रोकने में सहायता करती है जो सड़े-गले शवों के कारण उत्पन्न हो सकती हैं, इस प्रकार यह पारिस्थितिकी तंत्र के समग्र संतुलन में योगदान करता है।
  • चुनौतियाँ तथा संरक्षण के प्रयास:
    • बर्फ से ढके पहाड़ों में घोंसला बनाने की इसकी मूल प्रवृत्ति के कारण हिमालयी गिद्ध को कैद में प्रजनन करने से जटिलताएँ उत्पन्न हुई हैं।
    • चिड़ियाघर में सफल प्रजनन लंबे समय तक कैद में रहने तथा उष्णकटिबंधीय वातावरण में अनुकूलन के माध्यम से संभव हो सका।
    • निवास स्थान की हानि, भोजन की कमी एवं पशु चिकित्सा दवाओं के कारण विषाक्तता जैसे कारकों ने इसकी संख्या में गिरावट लाने में योगदान दिया है।
    • संरक्षण प्रजनन केंद्र, जैसे कि रानी, असम गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र (VCBC), गिद्ध प्रजातियों की सुरक्षा प्रदान करने में सहायक है।

केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक का गिद्धों पर प्रभाव:

  • केटोप्रोफेन और एसिक्लोफेनाक दो प्रकार की नॉन-स्टेरायडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवाएँ (NSAIDs) हैं जिनका उपयोग पशुओं (विशेषकर मवेशियों में दर्द और सूजन) के इलाज के लिये किया जाता है।
  • इन दवाओं को गठिया, चोटों और सर्जरी के बाद दर्द के उपचार लिये दिया जाता है।
  • जब गिद्ध इन दवाओं से उपचारित पशुओं के शवों को खाते हैं तो गिद्धों में गुर्दे की विफलता और मृत्यु होने की संभावना बढ़ने के कारण ये दवाएँ गिद्धों के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक पाई गई हैं।

भारत में गिद्धों की प्रजातियाँ:

क्रम संख्या

गिद्ध प्रजाति

IUCN स्थिति

चित्रण

1.

ओरिएंटल वाइट-बैक्ड वल्चर (Gyps bengalensis)

अतिसंकटग्रस्त (Critically Endangered)

2.

स्लेंडर-बील्ड वल्चर (Gyps tenuirostris)

अतिसंकटग्रस्त

3.

लॉन्ग बील्ड वल्चर (Gyps indicus)

अतिसंकटग्रस्त

4.

इजिप्शियन वल्चर (Neophron percnopterus)

संकटग्रस्त (Endangered)

5.

रेड हेडेड वल्चर (Sarcogyps calvus)

अतिसंकटग्रस्त

6.

इंडियन ग्रिफॉन वल्चर (Gyps fulvus)

कम चिंतनीय (Least Concerned)

7.

हिमालयन  ग्रिफॉन (Gyps himalayensis)

लुप्तप्राय (Near Threatened)

8.

सिनेरस वल्चर (Aegypius monachus)

लुप्तप्राय

9.

बियर्डेड वल्चर/लैमरगियर (Gypaetus barbatus)

लुप्तप्राय

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. कुछ वर्ष पहले तक गिद्ध भारतीय देहातों में आमतौर पर दिखाई देते थे, किंतु आजकल कभी-कभार ही नज़र आते हैं। इस स्थिति के लिये उत्तरदायी है: (2012)

(a) नवीन प्रवेशी प्रजातियों द्वारा उनके नीड़ स्थलों का नाश।
(b) गोपशु मालिकों द्वारा रुग्ण पशुओं के उपचार के लिये प्रयुक्त औषधि।
(c) उन्हें मिलने वाले भोजन में आई कमी।
(d) उनमें हुआ व्यापक, दीर्घस्थायी तथा घातक रोग।

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

LK-99: कमरे के तापमान वाले सुपरकंडक्टर की खोज

दक्षिण कोरियाई वैज्ञानिकों के एक समूह ने हाल ही में एक ऐसी सामग्री की खोज का दावा किया है जो कमरे के तापमान और दबाव पर एक सुपरकंडक्टर के गुणों को प्रदर्शित करती है, जिसे उन्होंने LK-99 नाम दिया है। रिपोर्ट के अनुसार, LK-99 के इस अभूतपूर्व दावे ने वैज्ञानिक समुदाय की उत्सुकता को बढ़ा दिया है और संभावित रूप से यह खोज विद्युत चालकता के साथ प्रौद्योगिकी की दुनिया में क्रांति ला सकती है।

LK-99 की खोज पर दावा:

  • एपेटाइट सामग्रियों की खोज: दक्षिण कोरियाई वैज्ञानिक समूह द्वारा खोजी गई सामग्रियों में एपेटाइट नामक एक अप्रत्याशित सामग्री शामिल थी।
    • एपेटाइट, एक टेट्राहेड्रल या पिरामिडल मोटिफ (एक फॉस्फोरस परमाणु चार ऑक्सीजन परमाणुओं से घिरा हुआ) में फॉस्फेट मचान (Scaffolds) खनिज हैं।
    • वैज्ञानिकों ने लेड एपेटाइट से शुरुआत की, साथ ही कुछ लेड परमाणुओं को ताँबे से प्रतिस्थापित किया, जिसके परिणामस्वरूप ताँबे द्वारा प्रतिस्थापित लेड एपेटाइट प्राप्त हुआ, जिसे उन्होंने LK-99 नाम दिया।
  • अतिचालकता का साक्ष्य: समूह ने बताया कि 10% ताँबे के प्रतिस्थापन पर LK-99 ने एक अतिचालक की विशेषताओं का प्रदर्शन किया।
    • सामग्री ने बाहरी चुंबकीय क्षेत्र की उपस्थिति में एक निश्चित महत्त्वपूर्ण सीमा तक अतिचालकता बनाए रखी, जिसका व्यवहार ज्ञात सुपरकंडक्टर्स के अनुरूप है।
  • LK-99 के निहितार्थ: यदि LK-99 के कमरे के तापमान वाला सुपरकंडक्टर होने के दावों की पुष्टि हो जाती है, तो यह विद्युत चालकता और प्रौद्योगिकी के लिये एक नए युग की शुरुआत कर सकता है।
    • रोजमर्रा के उपकरणों में सुपरकंडक्टर्स के व्यापक अनुप्रयोग से ऊर्जा दक्षता में वृद्धि, बिजली हानि में कमी और क्रांतिकारी प्रौद्योगिकियों का विकास हो सकता है।

सुपरकंडक्टर्स:

  • परिचय
    • सुपरकंडक्टर्स ऐसी सामग्रियाँ हैं जो बेहद कम तापमान पर ठंडा होने पर शून्य विद्युत प्रतिरोध प्रदर्शित करती हैं। यह गुण उन्हें बिना ऊर्जा हानि के बिजली संचालित करने की अनुमति देता है।
      • उदाहरण: लैंथेनम-बेरियम-कॉपर ऑक्साइड, येट्रियम-बेरियम-कॉपर ऑक्साइड, नाइओबियम-टिन आदि।
  • खोज: 
    • वर्ष 1911 में कैमरलिंग ओन्स ने पाया कि परम ताप से कुछ डिग्री ऊपर के तापमान पर पारे का विद्युत प्रतिरोध पूर्णतया खत्म हो जाता है।
  • अतिचालक (Superconductors) के अनुप्रयोग:
    • ऊर्जा संचरण: सुपरकंडक्टिंग केबल अर्थात् अतिचालक तार बिना क्षय के विद्युत को संचारित कर सकते हैं, जो उन्हें लंबी दूरी तक विद्युत संचरण के लिये आदर्श बनाता है।
    • चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (MRI): वृहत चिकित्सा इमेजिंग को सक्षम करने हेतु प्रबल और स्थिर चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिये MRI मशीनों में सुपरकंडक्टिंग चुंबक का उपयोग किया जाता है।
    • कण त्वरक: सुपरकंडक्टिंग मैग्नेट लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (LHC) जैसे कण त्वरक के महत्त्वपूर्ण घटक हैं, जो कणों को उच्च वेग तक पहुँचने की अनुमति देते हैं।
    • इलेक्ट्रिक मोटर्स और जनरेटर: अतिचालक पदार्थ, इलेक्ट्रिक मोटर और जनरेटर की क्षमता एवं शक्ति घनत्व को बढ़ा सकता है।
    • मैग्लेव ट्रेनें: अतिचालक चुंबक, चुंबकीय उत्तोलन (मैग्लेव) ट्रेनों को पटरियों पर तीव्र गति से संचालित करने के साथ ही घर्षण को कम करते हैं और उच्च गति के साथ यात्रा करने में सक्षम बनाते हैं।
    • क्वांटम कंप्यूटिंग: क्वांटम अवस्थाओं को प्रदर्शित करने की इनकी क्षमता के कारण क्वांटम कंप्यूटिंग में इनकी क्षमता का उपयोग करने के लिये कुछ अतिचालक पदार्थों की खोज की जा रही है।

स्रोत: द हिंदू


प्रारंभिक परीक्षा

कार्बन कैप्चर और स्टोरेज

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक ऊर्जा और कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, कार्बन भंडारण, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय कार्बन कैप्चर और उपयोग उत्कृष्टता केंद्र मुंबई, वनीकरण, पेरिस समझौता

मेन्स के लिये:

कार्बन कैप्चर और भंडारण के दृष्टिकोण एवं संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

यू.के.सरकार ने शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने की अपनी रणनीति के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में कार्बन डाइ-ऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कैप्चर और स्टोरेज करने के उद्देश्य से परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिये अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है।

कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS):

  • परिचय: 
    • यह एक प्रक्रिया है जिसे औद्योगिक प्रक्रियाओं और विशेष रूप से विद्युत् संयंत्रों में जीवाश्म ईंधन के जलने से उत्पन्न कार्बन डाइ-ऑक्साइड ( CO2) के उत्सर्जन को कम करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • CCS का लक्ष्य CO2 की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा को वायुमंडल में प्रवेश करने के साथ ग्लोबल वार्मिंग,एवं जलवायु परिवर्तन, में योगदान करने से रोकना है।
  • दृष्टिकोण: कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (CCS) में दो प्राथमिक दृष्टिकोण शामिल हैं:
    • पहली विधि को पॉइंट-सोर्स CCS के रूप में जाना जाता है, जिसमें औद्योगिक स्मोकस्टैक्स जैसे;इसके उत्पादन स्थल पर सीधे CO2 को कैप्चर करना शामिल है।
    • दूसरी विधि, डायरेक्ट एयर कैप्चर (DAC), वायुमंडल में पहले से ही उत्सर्जित CO2 को हटाने पर केंद्रित है।
    • ब्रिटेन की हालिया पहल विशेष रूप से पॉइंट-सोर्स CCS को लक्षित करती है।
  • प्वाइंट सोर्स के तंत्र- CCS: कार्बन कैप्चर और भंडारण की प्रक्रिया में कई अलग-अलग चरण शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक CO2 उत्सर्जन के प्रभावी रोकथाम में योगदान देता है।
    • कैप्चर: औद्योगिक प्रक्रियाओं अथवा विद्युत् उत्पादन के दौरान उत्पन्न होने वाली अन्य गैसों से CO2 को अलग किया जाता है।
    • संपीड़न एवं परिवहन: एक बार कैप्चर होने के बाद CO2 को संपीड़ित किया जाता है और प्राय: पाइपलाइनों के माध्यम से निर्दिष्ट भंडारण स्थलों तक पहुँचाया जाता है।
    • इंजेक्शन: CO2 को फिर भूमिगत चट्टान संरचनाओं में इंजेक्ट किया जाता है, जो प्राय: एक किलोमीटर या उससे अधिक की गहराई पर स्थित होती हैं, जहाँ यह विस्तारित अवधि तक, कभी-कभी दशकों तक संग्रहीत रहती है।
  • अनुप्रयोग: 
    • खनिजीकरण: स्थिर कार्बोनेट बनाने के लिये कैप्चर किये गए कार्बन की  कुछ खनिजों के साथ प्रतिक्रिया करायी जा सकती है, जिसे भूमिगत रूप से सुरक्षित रूप से संग्रहीत किया जा सकता है अथवा निर्माण सामग्री में उपयोग किया जा सकता है।
      • यह प्रक्रिया, जिसे खनिज कार्बोनेटीकरण के रूप में जाना जाता है, कार्बन भंडारण की एक दीर्घकालिक और सुरक्षित विधि प्रदान करती है।
    • सिंथेटिक ईंधन: संगृहीत  किये गए CO2 को सिंथेटिक प्राकृतिक गैस, सिंथेटिक डीजल, सिंथेटिक जेट ईंधन के उत्पादन करने के लिये हाइड्रोजन (अक्सर नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करके इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से उत्पादित) के साथ संयोजित किया जा सकता है।
    • ग्रीनहाउस और इनडोर कृषि: पौधों की वृद्धि को बढ़ाने के लिये संगृहीत कार्बन डाइ-ऑक्साइड  ग्रीनहाउस और इनडोर कृषि स्थलों में उपयोग की जा सकती है।
    • शुष्क बर्फ (Dry ice) का उत्पादन: संगृहीत की गई कार्बन डाइ-ऑक्साइड का उपयोग शुष्क बर्फ (बेहद कम तापमान पर ठोस कार्बन डाइ-ऑक्साइड) के उत्पादन के लिये किया जा सकता है।
      • शुष्क बर्फ के विभिन्न अनुप्रयोग हैं, इसका उपयोग जल्द खराब होने वाले सामानों की शिपिंग और परिवहनचिकित्सा और वैज्ञानिक उद्देश्य व मनोरंजन उद्योग में विशेष रूप से किया जाता है।

नोट: 

  • भारत में, कार्बन संग्रहण और उपयोग में उत्कृष्टता के दो राष्ट्रीय केंद्रों की स्थापना का कार्य जारी है।
    • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) बॉम्बे, मुंबई में कार्बन संग्रहण और उपयोग में राष्ट्रीय उत्कृष्टता केंद्र (NCoE-CCU)
    • जवाहरलाल नेहरू सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च (JNCASR), बेंगलुरु में नेशनल सेंटर इन कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (NCCCU)।
  • चुनौतियाँ: 
    • लागत और अर्थशास्त्र: कार्बन कैप्चर, परिवहन और भंडारण के लिये बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु उच्च प्रारंभिक पूंजी लागत की आवश्यकता होती है।
    • फ्लू गैसों या औद्योगिक प्रक्रियाओं से CO2 कैप्चर करने की लागत अधिक हो सकती है, जो CCS परियोजनाओं की समग्र व्यवहार्यता को प्रभावित कर सकती है।
    • भू-वैज्ञानिक भंडारण उपयुक्तता: CO2 के दीर्घकालिक भंडारण के लिये उपयुक्त भू-वैज्ञानिक संरचनाओं की पहचान करना और उन्हें सुरक्षित करना एक बड़ी चुनौती है।
    • रिसाव अथवा भूकंपीय गतिविधि के संभावित जोखिमों के कारण सभी भू-वैज्ञानिक संरचनाएँ CO2 भंडारण के लिये उपयुक्त नहीं हैं।
    • जीवाश्म ईंधन कंपनियों की अवधि का विस्तार: कुछ पर्यावरणीय संगठन CCS की प्रभावशीलता को लेकर चिंतित हैं, उनका सुझाव है कि इसके कार्यान्वयन से जीवाश्म ईंधन कंपनियों की परिचालन लाभप्रदता में वृद्धि हो सकती है।
    • यह परिणाम संभावित तौर पर अधिक धारणीय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण की गति में बाधा उत्पन्न कर सकता है।

आगे की राह

  • प्राकृतिक जलवायु समाधान एकीकरण: CCS को प्राकृतिक जलवायु समाधानों के साथ एकीकृत करने से इसकी प्रभावशीलता में वृद्धि होने की संभावना है।
    • पुनर्वनीकरण, वृक्षारोपण और सतत् भूमि प्रबंधन कार्यक्रम स्वाभाविक रूप से कार्बन को अलग करके, जैव विविधता को बढ़ावा देकर और पारिस्थितिकी तंत्र के लचीलेपन में सुधार करके CCS में सहायता कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और ज्ञान की साझेदारी: वैश्विक जलवायु चुनौतियों का समाधान करने के लिये देशों को CCS में सहयोग करने के साथ ही ज्ञान एवं विशेषज्ञता साझा करनी चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय मंचों, अनुसंधान साझेदारियों और प्रौद्योगिकी-साझाकरण पहलों की स्थापना से नवीन कार्बन कैप्चर समाधानों के विकास और अभिग्रहण में तेजी आ सकती है।
  • CCS का संतुलन और जलवायु कार्रवाई के लिये उत्सर्जन में कमी: संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट, कार्बन क्रेडिट के माध्यम से कार्बन ट्रेडिंग जैसे पेरिस समझौते के बाज़ार-आधारित तंत्र के साथ जुड़ने की CCS की क्षमता को रेखांकित करती है।
    • हालाँकि, यह इस बात पर बल देता है कि कार्बन उत्सर्जन की रोकथाम सर्वोपरि है। एक समावेशी जलवायु रणनीति, जलवायु परिवर्तन को प्रभावी ढंग से संबोधित करने के लिये कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकी अपनाने और सक्रिय उत्सर्जन में कमी दोनों को अनिवार्य करती है।
      • राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के संदर्भ में भारत अब वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45% तक कम करने के लिये प्रतिबद्ध है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक

प्रश्न 1. निम्नलिखित कृषि पद्धतियों पर विचार कीजिये: (2012)

  1. कंटूर बंडलिंग
  2. रिले फसल
  3. शून्य जुताई

वैश्विक जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में उपर्युक्त में से कौन मिट्टी में कार्बन को अलग करने/भंडारण में मदद करता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं

उत्तर: (b)


प्रश्न 2. कार्बन डाइ-ऑक्साइड के मानवजनित उत्सर्जन के कारण होने वाले ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन कार्बन पृथक्करण के लिये संभावित स्थल हो सकता है? (2017)

  1. परित्यक्त और गैर-आर्थिक कोयले की तह
  2. तेल और गैस भंडारण में कमी
  3. भूमिगत गहरी लवणीय संरचनाएँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रश्न 3. कृषि में शून्य जुताई के क्या-क्या लाभ हैं? (2020)

  1. पिछली फसल के अवशेषों को जलाए बिना गेहूँ की बुवाई संभव है।
  2. धान के पौधों की नर्सरी की आवश्यकता के बिना गीली मृदा में धान के बीज की सीधी बुवाई संभव है।
  3. मृदा में कार्बन पृथक्करण संभव है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


विविध

Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 7 अगस्त, 2023

भारत को विश्व तीरंदाज़ी चैंपियनशिप में मिला पहला स्वर्ण पदक

हाल ही में प्रधानमंत्री ने बर्लिन में विश्व तीरंदाज़ी चैंपियनशिप में भारत के लिये पहला स्वर्ण पदक हासिल करने हेतु ज्योति सुरेखा वेन्नम, परनीत कौर और अदिति गोपीचंद स्वामी की भारतीय महिला कंपाउंड टीम को बधाई दी।

  • अदिति गोपीचंद स्वामी 17 वर्ष की उम्र में विश्व तीरंदाज़ी चैंपियनशिप में व्यक्तिगत कंपाउंड स्वर्ण पदक जीतने वाली सबसे कम उम्र की वरिष्ठ विश्व चैंपियन और पहली भारतीय बनीं
  • विश्व तीरंदाज़ी ओलंपिक और पैरालंपिक खेल तीरंदाज़ी का अंतर्राष्ट्रीय संघ है।
  • संगठन की स्थापना वर्ष 1931 में हुई थी और इसकी ज़िम्मेदारी विश्व भर में तीरंदाज़ी का विनियमन करना एवं उसे बढ़ावा देना है।
  • विश्व तीरंदाज़ी संघ का कार्यालय स्विट्ज़रलैंड की ओलंपिक राजधानी लॉज़ेन में स्थित है।

प्राचीन विशालकाय व्हेल: पेरुसेटस कोलोसस 

एक प्राचीन व्हेल प्रजाति, पेरुसेटस कोलोसस (पेरू की विशाल व्हेल) की हालिया पहचान ने समुद्री विशालकाय जीवों से संबंधित समझ को पुनः परिभाषित किया है। नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन से इस विशाल प्राणी की उल्लेखनीय विशेषताओं का पता चलता है, जो संभावित रूप से समुद्री स्तनधारियों में विशालता की कहानी को नया आयाम देती है।

  • पी. कोलोसस का अनुमानित अस्थि भार किसी भी ज्ञात स्तनपायी या जलीय कशेरुकी जंतु से अधिक है।
  • आंशिक कंकाल में 13 कशेरुक, 4 पसलियाँ और 1 कूल्हे की हड्डी शामिल है, जो दक्षिणी पेरू में पाया गया है और लगभग 39 मिलियन वर्ष पुराना माना जाता है।
  • 85 से 340 टन के बीच अनुमानित शरीर के भार और 20 मीटर (66 फीट) की लंबाई वाली नई खोजी गई प्रजाति सबसे भारी जंतु के रूप में ब्लू व्हेल की स्थिति को चुनौती देती है। हालाँकि ब्लू व्हेल अधिक लंबी होती है, जिसकी लंबाई 100 फीट (30 मीटर) से भी अधिक होती है।
  • यह प्रजाति अस्थि के द्रव्यमान में उच्चतम स्तर की वृद्धि दर्शाती है जो उथली गोताखोरी से जुड़ी है।
  • समुद्री स्तनधारियों में विशालता की यह प्रवृत्ति पूर्व के अनुमान की अपेक्षा पहले ही उत्पन्न हुई होगी।

चंद्रयान-3 चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश 

भारत के महत्त्वाकांक्षी चंद्र मिशन, चंद्रयान-3 ने पृथ्वी से प्रस्थान के 23 दिन बाद चंद्र कक्षा में प्रवेश करके एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है।

  • चंद्रयान-3 भारत का तीसरा चंद्र मिशन एवं चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने का दूसरा प्रयास है।
  • कक्षाएँ: 
    • चंद्र कक्षा: चंद्रमा के चारों ओर घूमते समय एक अंतरिक्ष यान द्वारा चलाया जाने वाला घुमावदार पथ
    • ट्रांस-लूनर: वह प्रक्षेप पथ जो किसी अंतरिक्ष यान को पृथ्वी से उसकी कक्षा से परे चंद्रमा के रास्ते में एक बिंदु तक ले जाता है।
    • पृथ्वी की कक्षा: वह अंडाकार अथवा वृत्ताकार पथ जो एक उपग्रह या अंतरिक्ष यान गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण पृथ्वी के चारों ओर घूमता है।

और पढ़ें…चंद्रयान-3 

9वाँ राष्ट्रीय हथकरघा दिवस

प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को पूरे भारत में राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाया जाता है।

  • हथकरघा दिवस मनाने का प्राथमिक लक्ष्य हथकरघा को प्रोत्साहित करना और इस क्षेत्र से जुड़े बुनकर समुदाय के प्रयासों के साथ-साथ कौशल की पहचान करना है।
  • यह दिवस पहली बार 7 अगस्त, 2015 को मनाया गया था। 7 अगस्त, 1905 को शुरू किये गए स्वदेशी आंदोलन (स्वदेशी उद्योगों विशेष रूप से हथकरघा बुनकरों का समर्थन) के सम्मान में इस तारीख का ऐतिहासिक महत्त्व है।
  • राष्ट्रीय हथकरघा दिवस 2023 की थीम: "सतत् फैशन के लिये हथकरघा” (Handlooms for Sustainable Fashion)।

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