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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 06 Sep, 2024
  • 28 min read
प्रारंभिक परीक्षा

रूमटॉइड आर्थराइटिस में आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक अध्ययन ने दीर्घकालिक ऑटोइम्यून रोग रुमेटॉइड आर्थराइटिस (RA) के प्रबंधन में आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली (AWS) की प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला।

  • शोध से पता चलता है कि AWS न केवल RA के लक्षणों को कम करता है बल्कि रोगियों में सामान्य चयापचय संतुलन के पुनर्स्थापन में भी मदद करता है।
  • यह पारंपरिक चिकित्सा उपचारों के लिये एक आशाजनक पूरक उपगाम प्रस्तुत करता है।

रुमेटॉइड आर्थराइटिस के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: RA एक दीर्घकालीन सूजन/शोथ संबंधी रोग है, जो जोड़ों की परत/अस्तर को प्रभावित करता है, जिससे दर्दनाक सूजन होती है, जो अंततः अस्थियों के क्षय और जोड़ों की विकृति का कारण बन सकती है।
    • कुछ लोगों में यह स्थिति त्वचा, आँखों, फुफ्फुस, हृदय और रक्त वाहिकाओं सहित शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुँचा सकती है।
    • यह एक ऑटोइम्यून रोग है। ऐसा तब होता है जब प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं करती है और जोड़ों की परत पर हमला करती है, जिसे सिनोवियम कहा जाता है।
  • अध्ययन का महत्त्व: यह 'संप्राप्ति विघातन' की आयुर्वेदिक अवधारणा पर आधारित है, जिसके तहत रोग उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया को नष्ट किया जाता है और शरीर के 'दोषों' (जैव-ऊर्जाओं) को वापस संतुलन में लाया जाता है।
    • यह शोध महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके तहत आयुर्वेदिक संपूर्ण-प्रणाली दृष्टिकोण का उपयोग करके RA में पैथोलॉजी रिवर्सल की क्षमता का पता लगाया जाता है।
  • प्रेक्षित प्रमुख नैदानिक ​​सुधार:
    • रोग गतिविधि में कमी: रोग गतिविधि स्कोर-28 एरिथ्रोसाइट अवसादन दर (DAS-28 ESR) में उल्लेखनीय कमी आई, जो RA की गंभीरता का आकलन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपाय है।
    • जोड़ों की सूजन/शोथ में कमी: AWS उपचार प्राप्त करने वाले रोगियों में सूजन/शोथ और जोड़ों के क्षय संबंधी रोग दोनों की कुल संख्या में कमी आई।
    • विषाक्त पदार्थों में कमी: शरीर में विषाक्त पदार्थों का मूल्यांकन करने वाले Ama गतिविधि माप (AAM) स्कोर में हस्तक्षेप के बाद महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई, जो तंत्रिक/दैहिक शोथ और विषाक्तता में कमी का संकेत देता है।
    • मेटाबोलिक प्रोफाइल में बदलाव: AWS उपचार के बाद लाइसिन, क्रिएटिन आदि जैसे असंतुलित मेटाबोलिक मार्कर स्वस्थ नियंत्रण में देखे गए सामान्य स्तरों की ओर शिफ्ट होने लगे, जो अधिक संतुलित मेटाबोलिक स्थिति में वापसी का संकेत देते हैं।
    • अपनी तरह का पहला साक्ष्य: यह RA के प्रबंधन में AWS की नैदानिक ​​प्रभावकारिता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने वाला पहला अध्ययन है।
    • यह लक्षणों में कमी और मेटाबोलिक सामान्यीकरण के दोहरे लाभ पर प्रकाश डालता है, जो संभावित रूप से रोगियों के लिये दीर्घकालिक सकारात्मक परिणामों की पुष्टि करता है।
  • एकीकृत चिकित्सा (Integrative Medicine) के लिये निहितार्थ: यह अध्ययन पारंपरिक आयुर्वेदिक विधियों को आधुनिक चिकित्सा उपागमों के साथ एकीकृत करने की क्षमता को रेखांकित करता है।
    • इस तरह के इंटीग्रेशन से रोगी के उपचार, विशेषकर RA जैसी दीर्घकालिक स्थितियों के प्रबंधन में बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।

आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली क्या है?

  • परिचय: आयुर्वेद भारत की टाइम टेस्टेड पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है।
    • 'आयुर्वेद' शब्द जिसका अर्थ है 'जीवन का ज्ञान', दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है, अर्थात 'आयु' जिसका अर्थ है 'जीवन' और 'वेद' जिसका अर्थ है 'ज्ञान' या 'विज्ञान'
    • आयुर्वेद चिकित्सा की एक संपूर्ण-शरीर (समग्र) प्रणाली है। इस पद्धति में स्वास्थ्य और कल्याण के सभी पहलुओं के लिये एक प्राकृतिक उपागम अपनाया जाता है।
  • आयुर्वेदिक रणनीति: आयुर्वेद इस विचार पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ जीवन शक्तियाँ (दोष) होती हैं और ब्रह्मांड में सब कुछ जुड़ा हुआ है।
    • किसी एक क्षेत्र में असंतुलन दूसरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है।
    • जब असंतुलन को ठीक नहीं किया जाता है, तो बीमारी बढ़ सकती है और अस्वस्थता हो सकती है।
    • आयुर्वेद में अधिकतर पोषण, जीवनशैली में बदलाव और प्राकृतिक उपचार का प्रयोग किया जाता है।
    • इनका प्रयोग संतुलन और स्वास्थ्य के पुनर्स्थापन/रिवर्सल के लिये किया जाता है।
  • तीन प्रमुख ऊर्जाएँ (दोष): आयुर्वेद तीन आधारभूत प्रकार की ऊर्जा या कार्यात्मक सिद्धांतों की पहचान करता है, जो प्रत्येक जीव और प्रत्येक वस्तु में मौजूद हैं।
    • वात: यह श्वसन, पलक झपकाने, माँसपेशियों की गतिविधि और तरल पदार्थों के परिसंचरण जैसे कार्यों को नियंत्रित करता है। 
    • पित्त: यह पाचन, अवशोषण, पोषण और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। 
    • कफ: यह शरीर के संरचनात्मक घटकों को नियंत्रित करता है, जोड़ों में स्नेहकता प्रदान करता है, त्वचा को नमी देता है और प्रतिरक्षा को बनाए रखता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों में से कौन-सा एक भारतीय षड्दर्शन का भाग नहीं है? (2014)

(a) मीमांसा और वेदान्त
(b) न्याय और वैशेषिक
(c) लोकायत और कापालिक
(d) सांख्य और योग

उत्तर: (c)


प्रश्न. भारत में दार्शनिक विचार के इतिहास के संबंध में, सांख्य सम्प्रदाय से सम्बन्धित निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013) 

  1. सांख्य पुनर्जन्म या आत्मा के आवागमन के सिद्धांत को स्वीकार नहीं करता है।
  2. सांख्य की मान्यता है कि आत्म-ज्ञान ही मोक्ष की ओर ले जाता है न कि कोई बाह्य प्रभाव अथवा कारक।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2010)

  1. टैक्सस वृक्ष प्राकृतिक रूप से हिमालय क्षेत्र में पाया जाता है।
  2. टैक्सस वृक्ष को रेड डेटा बुक में सूचीबद्ध किया गया है।
  3. टैक्सस वृक्ष से प्राप्त ‘टैक्सोल’ नामक औषधि पार्किंसंस रोग के विरुद्ध प्रभावी है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


प्रारंभिक परीक्षा

7वाँ राष्ट्रीय पोषण माह 2024

स्रोत: पी.आई.बी

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने 1 सितंबर, 2024 को मध्य प्रदेश के धार ज़िले में राष्ट्रीय पोषण माह 2024 शुरू किया।

ई-गवर्नेंस के लिये राष्ट्रीय पुरस्कार

  • ये पुरस्कार प्रशासनिक सुधार और लोक शिकायत विभाग (DARPG), कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय द्वारा वर्ष 2003 से प्रतिवर्ष प्रदान किये जाते हैं।
  • पुरस्कार का उद्देश्य:
    • ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में उपलब्धियों को मान्यता देना।
    • स्थायी ई-गवर्नेंस पहलों को डिज़ाइन करने और लागू करने की प्रभावी पद्धतियों पर ज्ञान का प्रसार करना।
    • सफल ई-गवर्नेंस समाधानों में वृद्धिशील नवाचारों को प्रोत्साहित करना।
    • समस्याओं और जोखिमों को कम करने, मुद्दों को हल करने तथा सफलता के लिये योजना बनाने में अनुभवों को बढ़ावा देना एवं उनका आदान-प्रदान करना।
  • सभी केंद्रीय मंत्रालय/विभाग, राज्य/संघ राज्य क्षेत्र सरकारें, ज़िले, स्थानीय निकाय, केंद्रीय और राज्य सरकार के सार्वजनिक उपक्रम, शैक्षणिक/अनुसंधान संस्थान (सरकारी तथा गैर-सरकारी) इन पुरस्कारों के लिये आवेदन करने के पात्र हैं।

राष्ट्रीय पोषण माह क्या है?

  • परिचय: यह एक वार्षिक अभियान है, जिसका उद्देश्य कुपोषण को दूर करना और बेहतर पोषण एवं स्वास्थ्य देखभाल को बढ़ावा देना है।
    • यह दिवस पोषण अभियान (प्रधानमंत्री की समग्र पोषण योजना) के अंतर्गत प्रत्येक वर्ष सितंबर के महीने में मनाया जाता है।  
  • मुख्य केंद्र बिंदु: इसका उद्देश्य पोषण के विषय में जागरूकता बढ़ाना, आहार पद्धतियों में सुधार करना तथा बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं सहित कमज़ोर समूहों के बीच कुपोषण से निपटना है।
    • यह ‘सुपोषित भारत’ के राष्ट्रीय दृष्टिकोण के अनुरूप है।
  • गतिविधियाँ: इसमें विभिन्न गतिविधियाँ आयोजित की जाती हैं, जैसे वृक्षारोपण अभियान, पोषक तत्त्वों का वितरण, सामुदायिक पहुँच कार्यक्रम, प्रदर्शनियाँ और शैक्षिक सत्र।
    • उदाहरण के लिये राष्ट्रीय पोषण माह 2024 की शुरुआत "एक पेड़ माँ के नाम" नामक राष्ट्रव्यापी वृक्षारोपण अभियान के साथ हुई।
  • राष्ट्रीय पोषण माह 2024 के मुख्य विषय है: एनीमिया, विकास निगरानी, ​​​​पूरक आहार, पोषण भी पढ़ाई भी, बेहतर प्रशासन हेतु प्रौद्योगिकी, और एक पेड़ माँ के नाम

पोषण अभियान क्या है?

  • परिचय: इसे किशोरियों, गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और 6 वर्ष तक के बच्चों की पोषण संबंधी आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित करके कुपोषण को दूर करने के लिये मार्च 2018 में लॉन्च किया गया था।
    • इसका कार्यान्वयन महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा किया जाता है।
  • उद्देश्य: इसका लक्ष्य स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया (छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) तथा जन्म के समय वजन में कमी को क्रमशः 2%, 2%, 3% और 2% प्रतिवर्ष कम करना है।
    • 0-6 वर्ष की आयु के बच्चों को लक्ष्य बनाकर स्टंटिंग और कम वजन की समस्या को कम करना। 
    • छोटे बच्चों (6-59 महीने) तथा 15-49 वर्ष की महिलाओं और किशोरियों में एनीमिया की व्यापकता को कम करना।
  • पोषण अभियान के घटक:
    • ग्राम स्वास्थ्य स्वच्छता पोषण दिवस (VHSND): यह लक्ष्य निर्धारण, क्षेत्रीय बैठकों और विकेंद्रीकृत योजना के माध्यम से समन्वय को बढ़ावा देता है। 
    • एकीकृत बाल विकास सेवाएँ-सामान्य अनुप्रयोग सॉफ्टवेयर (ICDS-CAS): यह पोषण संबंधी स्थिति पर नज़र रखने के लिये सॉफ्टवेयर और विकास निगरानी उपकरणों का उपयोग करता है।

पोषण ट्रैकर क्या है?

  • यह एक मोबाइल ऐप है, जो भारत में बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य एवं पोषण पर नज़र रखता है।
  • यह आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं (AWW) के लिये एक आवश्यक उपकरण के रूप में कार्य करता है, जो उनके हस्तक्षेपों की प्रगति और प्रभाव को दर्शाता है तथा वास्तविक समय पर निगरानी को सक्षम बनाता है।
  • यह एक इंटरैक्टिव टूल है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों का उपयोग करके बच्चे के विकास को मापता है और प्राप्त इनपुट के आधार पर सुधारात्मक कार्रवाई के लिये सुझाव प्रदान करता है।
  • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता 6 प्रकार के लाभार्थियों को पंजीकृत कर सकते हैं:
    • गर्भवती महिलाएँ, स्तनपान कराने वाली माताएँ, 0-6 माह के बच्चे, 6 माह से 3 वर्ष के बच्चे, 3-6 वर्ष के बच्चे और 14-18 वर्ष की किशोरियाँ (विशेष रूप से आकांक्षी ज़िलों के लिये)।

एनीमिया

  • इसकी विशेषता लाल रक्त कोशिकाओं की सामान्य से कम संख्या या इन कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन की कम सांद्रता है।
    • लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला प्रोटीन हीमोग्लोबिन पूरे शरीर में ऑक्सीजन के संवहन के लिये आवश्यक है।
  • कारण: आवश्यक पोषक तत्त्वों, विशेष रूप से आयरन, साथ ही फोलेट, विटामिन B 12 और विटामिन A का अपर्याप्त सेवन या अवशोषण एक महत्त्वपूर्ण कारण है। 
  • वैश्विक प्रसार: अनुमानतः 6-59 महीने की आयु के 40% बच्चे और लगभग 37% गर्भवती महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
  • भारत में व्यापकता: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (वर्ष 2019-21) के अनुसार, यह किशोर लड़कों में 31.1% (15-19 वर्ष), किशोर लड़कियों में 59.1%, गर्भवती महिलाओं (15-49 वर्ष) में 52.2% और बच्चों (6-59 महीने) में 67.1% को प्रभावित करता है। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से 'राष्ट्रीय पोषण मिशन' के उद्देश्य हैं? (2017)

  1. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं में कुपोषण के बारे में ज़ागरूकता पैदा करना।
  2. छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में एनीमिया के मामलों को कम करना।
  3. बाजरा, मोटे अनाज और बिना पॉलिश किये चावल की खपत को बढ़ावा देना।
  4. पोल्ट्री अंडे की खपत को बढ़ावा देना।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 3
(c) केवल 1, 2 और 4
(d) केवल 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट की गणना के लिये IFPRI द्वारा उपयोग किये जाने वाले संकेतक निम्नलिखित में से कौन सा/से है/हैं? (2016)

  1. अल्पपोषण
  2. चाइल्ड स्टंटिंग
  3. बाल मृत्यु दर

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) 1, 2 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 3

उत्तर: (c)


रैपिड फायर

सुखोई-30 MKI विमान के लिये एयरो-इंजन की खरीद

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल की सुरक्षा मामलों की समिति (Cabinet Committee on Security-CCS) ने भारतीय वायु सेना (Indian Air Force- IAF) के Su-30 MKI विमान के लिये हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) से 240 एयरो-इंजन (AL-31FP) की खरीद को मंज़ूरी दी।

  • ये एयरो-इंजन भारतीय वायुसेना के सुखोई-30 बेड़े के सतत् संचालन को सुनिश्चित करेंगे, जिससे भारत की रक्षा तैयारियों में वृद्धि होगी।
  • इसे हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) से खरीद (भारतीय) श्रेणी के तहत खरीदा जाएगा। 'खरीद (भारतीय)' श्रेणी में भारतीय विक्रेताओं से उत्पाद खरीदना शामिल है, जो निम्नलिखित में से किसी एक अनुसरण करता हो:
    • कुल अनुबंध मूल्य के कम-से-कम 50% स्वदेशी सामग्री (Indigenous Content- IC) के साथ स्वदेशी रूप से परिकल्पित, विकसित और निर्मित किया गया हो।
    • कुल अनुबंध मूल्य का कम-से-कम 60% IC हो, भले ही वह स्वदेशी रूप से परिकल्पित या विकसित न किया गया हो।
  • इन इंजनों में 54% से अधिक स्वदेशी सामग्री हो।
  • भारतीय वायुसेना वर्तमान में 259 Su-30 MKI लड़ाकू विमानों का संचालन करती है।
    • Su-30MKI एक बहुउद्देश्यीय लड़ाकू विमान है, जिसे सुखोई डिज़ाइन ब्यूरो (रूस की एयरोस्पेस कंपनी) और HAL द्वारा भारतीय वायु सेना (IAF) के लिये संयुक्त रूप से विकसित किया गया है।
  • CCS की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है। इसके अन्य सदस्यों में वित्त, रक्षा, गृह और विदेश मंत्री शामिल हैं।
    • महत्त्वपूर्ण नियुक्तियों, राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मुद्दों और रक्षा व्यय पर प्रमुख निर्णय CCS द्वारा ही लिये जाते हैं।

और पढ़ें: रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता


रैपिड फायर

अपशिष्ट जल से विषाक्त क्रोमियम का निष्कासन

स्रोत: पी.आई.बी.

हाल ही में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान नैनो विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Nano Science and Technology-INST), मोहाली के शोधकर्त्ताओं ने माइक्रोफ्लुइडिक प्रौद्योगिकी (बहुत छोटे पैमाने पर तरल पदार्थों का रूपांतरण व नियंत्रण) के संयोजन में "सूर्य के प्रकाश" का उत्प्रेरक के रूप में उपयोग करते हुए उद्योगों के अपशिष्ट जल से विषाक्त क्रोमियम को निष्कासित करने के लिये एक अभिनव विधि विकसित की है।

  • हेक्सावेलेंट क्रोमियम (Cr(VI)) अत्यधिक विषाक्त होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) की रिपोर्टों के अनुसार, पेयजल में हेक्सावेलेंट और ट्राइवेलेंट क्रोमियम की सहनीय सांद्रता 0.05 मिग्रा./ली. और 5 मिग्रा./ली. है। इस प्रकार क्रोमियम के इस हेक्सावलेंट रूप को ट्राइवेलेंट रूप में लाना अनिवार्य हो जाता है।
    • ऐसा माना जाता है कि मानव शरीर द्वारा ट्राइवेलेंट क्रोमियम का अवशोषण हेक्सावेलेंट क्रोमियम की तुलना में कम सरलता से होता है, इसलिये हेक्सावेलेंट क्रोमियम को ट्राइवेलेंट क्रोमियम के रूप में लाना महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
  • Cr(VI) के निष्कासन हेतु प्रयोग में लाई जाने वाली पारंपरिक विधियाँ, जैसे आयन विनिमय (ion exchange), अधिशोषण (adsorption) और जीवाणु न्यूनीकरण (bacterial reduction) महँगी तथा प्रायः प्रभावहीन होती हैं।
    • INST के शोधकर्त्ताओं ने Cr(VI) को कम हानिकारक ट्राइवेलेंट रूप में परिवर्तित करने के लिये माइक्रोफ्लुइडिक तकनीक और TiO2 नैनोकणों के संयोजन में उत्प्रेरक के रूप में सूर्य के प्रकाश का उपयोग किया है। इस विधि ने अपघटन में 95% दक्षता प्रदर्शित की है।
  • नैनोटेक्नोलॉजी, परमाणु या आणविक पैमाने, जो आमतौर पर 1 से 100 नैनोमीटर के बीच होता है, पर पदार्थ में परिवर्तन लाने का विज्ञान है।
    • इसके विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक अनुप्रयोग हैं, जिनमें शामिल हैं: बायोमेडिसिन, इलेक्ट्रॉनिक्स, जल और मृदा से प्रदूषकों एवं विषाक्त पदार्थों को हटाना, सौंदर्य प्रसाधन और खाद्य विज्ञान आदि।

और पढ़ें: जल से भारी धातुओं का निष्कासन


रैपिड फायर

इलेक्ट्रॉनिक चालान प्रणाली का राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने स्पीड कैमरा, सीसीटीवी और स्पीड गन जैसे इलेक्ट्रॉनिक निगरानी उपकरणों का उपयोग करके सड़क अनुशासन को और अधिक सख्त बनाने की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इसने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को राजमार्गों तथा शहरी सड़कों पर सड़क सुरक्षा हेतु ऐसी तकनीक के उपयोग को अनिवार्य बनाने वाले कानूनी प्रावधान को लागू करने का निर्देश दिया।

  • यह कार्यान्वयन मोटर यान (MV) अधिनियम, 1988 की धारा 136A के अंतर्गत आता है, जिसे सड़क सुरक्षा हेतु इलेक्ट्रॉनिक निगरानी को अनिवार्य करने के लिये वर्ष 2019 में संशोधन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया था।
    • न्यायालय ने राज्यों को समूहों में संगठित करके अनुपालन की निगरानी करने का निर्णय लिया है और विशेष रूप से दिल्ली, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा केरल की सरकारों को चिह्नित करते हुए उन्हें धारा 136A के अनुपालन पर रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। 
  • न्यायालय ने राज्य सरकारों को केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के नियम 167A का अनुपालन सुनिश्चित करने का भी निर्देश दिया है। 
    • यह नियम विभिन्न यातायात उल्लंघनों जैसे तेज़ गति से वाहन चलाना, अनाधिकृत पार्किंग और सुरक्षात्मक उपकरण न पहनना, के लिये चालान (दंड) जारी करने के हेतु इलेक्ट्रॉनिक प्रवर्तन उपकरणों का उपयोग करने के दिशा-निर्देशों को रेखांकित करता है।

और पढ़ें: मोटर यान अधिनियम, 1988; सड़क सुरक्षा


रैपिड फायर

दादाभाई नौरोजी की 199वीं जयंती

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

4 सितंबर, 2024 को दादाभाई नौरोजी की 199वीं जयंती मनाई गई। उन्हें ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” के रूप में भी जाना जाता है। 

  • दादाभाई नौरोजी का योगदान:
    • ब्रिटिश सांसद: वह ब्रिटिश संसद के पहले भारतीय सदस्य थे। वर्ष 1892 में उन्होंने लिबरल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में सेंट्रल फिन्सबरी सीट से जीत हासिल की। 
    • इंग्लैंड में संगठनों की स्थापना: वर्ष 1865 में उन्होंने लंदन इंडियन सोसाइटी की सह-स्थापना की और वर्ष 1866 में उन्होंने ईस्ट इंडिया एसोसिएशन की स्थापना की।
    • कॉन्ग्रेस अध्यक्ष: वह तीन बार वर्ष 1886 (कलकत्ता), 1893 (लाहौर) और 1906 (कलकत्ता) में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्यभार संभाला।
  • साहित्य: नौरोजी "ड्रेन थ्योरी (1867)" के प्रमुख समर्थकों में से एक थे, जिसने ब्रिटेन द्वारा भारत के आर्थिक शोषण को उजागर किया। 
  • अन्य राजनीतिक योगदान: नौरोजी ने भारतीय विधायी निकायों के विरोध को संबोधित करने के लिये ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में एक स्थायी समिति के गठन का समर्थन किया।
    • भारत में सुधारों की पैरवी करने के लिये वर्ष 1893 में उन्होंने ब्रिटिश संसद में एक भारतीय संसदीय समिति (Indian parliamentary committee) का गठन किया।
    • वर्ष 1895 में उन्हें भारतीय व्यय पर रॉयल आयोग (Royal Commission on Indian Expenditure) में नियुक्त किया गया।

और पढ़ें: भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के महत्त्वपूर्ण सत्र


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