भारतीय संसद में गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों की अस्वीकृति
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल के वर्षों में, संसद सदस्यों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के लिये महत्त्वपूर्ण गैर-सरकारी विधेयकों को सीमित समय आवंटन के कारण भारत की संसद में अस्वीकृत कर दिया गया है।
- 17वीं लोकसभा (जून 2019 से फरवरी 2024) में इन विधेयकों पर विचार-विमर्श में कमी देखी गई, जिससे व्यक्तिगत सांसदों की घटती भूमिका और संसदीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य के बारे में चिंताएँ उत्पन्न हुईं।
गैर-सरकारी सदस्यों का विधेयक क्या है?
- परिचय: गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयक उन सांसदों द्वारा प्रस्तावित किये जाते हैं जो मंत्री नहीं होते (अर्थात सरकार का हिस्सा नहीं होते), जिससे उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर कानून या संशोधन प्रस्तुत करने की अनुमति मिलती है।
- मुख्य विशेषताएँ: केवल गैर-सरकारी सदस्य ही इन विधेयकों को प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे स्वतंत्र विधायी प्रस्तावों को अवसर मिलता है।
- सांसद विशिष्ट मामलों पर ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रस्ताव भी प्रस्तुत कर सकते हैं।
- प्रक्रिया:
- प्रस्ताव तैयार करना और नोटिस देना: सांसद कम से कम एक महीने के नोटिस पर विधेयक का प्रस्ताव तैयार करते हैं और उसे प्रस्तुत करते हैं।
-
परिचय: विधेयक संसद में पेश किये जाते हैं, उसके बाद प्रारंभिक चर्चा होती है।
-
बहस: यदि चयन हो जाता है, तो विधेयकों पर बहस की जाती है, आमतौर पर शुक्रवार दोपहर को सीमित सत्रों में।
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निर्णय: विधेयक वापस लिये जा सकते हैं या मतदान के लिये आगे बढ़ाए जा सकते हैं।
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महत्त्व: ये विधेयक सांसदों को दलीय दबाव के बिना, प्रायः महत्त्वपूर्ण या विवादास्पद मुद्दों पर अपनी बात कहने का मंच प्रदान करते हैं।
- इसका एक ऐतिहासिक उदाहरण वर्ष 1966 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद एच.वी. कामथ द्वारा प्रस्तुत विधेयक है, जिसमें संविधान में संशोधन करके केवल लोकसभा सदस्यों को ही प्रधानमंत्री पद के लिये पात्र बनाने का प्रयास किया गया था।
- स्वतंत्रता के बाद से अब तक केवल 14 गैर-सरकारी विधेयक पारित किये गये हैं, तथा वर्ष 1970 के बाद से कोई भी विधेयक पारित नहीं हुआ है।
- ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार विधेयक, 2014 , 45 वर्षों में राज्यसभा द्वारा अनुमोदित पहला गैर-सरकारी सदस्यों का विधेयक था, लेकिन यह लोकसभा में पहुँचे बिना ही व्यपगत हो गया।
सरकारी विधेयक बनाम गैर-सरकारी विधेयक
सरकारी विधेयक |
गैर-सरकारी विधेयक |
इसे संसद में एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। |
यह मंत्री के अतिरिक्त किसी अन्य सांसद द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। |
यह सरकार की नीतियों को प्रदर्शित करता है। |
यह विपक्ष की नीतियों को प्रदर्शित करता है। |
संसद में इसके पारित होने की संभावना अधिक होती है। |
संसद में इसके पारित होने के संभावना कम होती है। |
संसद द्वारा सरकारी विधेयक अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है। |
इसके अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। |
सरकारी विधेयक को संसद में पेश होने के लिये सात दिनों का नोटिस होना चाहिये। |
इस विधेयक को संसद में पेश करने के लिये एक महीने का नोटिस होना चाहिये |
इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है। |
इसे संबंधित सदस्य द्वारा तैयार किया जाता है। |
सरकारी सदस्यों के विधेयकों में कमी क्यों आई है?
- समय की कमी: PRS लेज़िस्लेटिव रिसर्च के आँकड़ों से पता चलता है कि 17वीं लोकसभा में गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों पर सिर्फ 9.08 घंटे जबकि राज्य सभा में 27.01 घंटे का व्यय हुआ, जो कुल सत्र के घंटों का एक अंश है।
- 18वीं लोकसभा के दो सत्रों में निचले सदन में ऐसे विधेयकों पर केवल 0.15 घंटे तथा राज्य सभा में 0.62 घंटे व्यय किये गए, तथा प्रस्तावों पर सबसे कम समय लगा।
- शुक्रवार को गैर-सरकारी सदस्यों के कार्य की तिथि निर्धारित होने से चर्चा सीमित हो जाएगी, क्योंकि कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों में चले जाएँगे, जिससे चर्चा के लिये समय और कम हो जाएगा।
- इन विधेयकों की लोकप्रियता में गिरावट का कारण सांसदों की गंभीरता की कमी को माना जा सकता है, क्योंकि कई सांसद चर्चाओं में भाग ही नहीं लेते।
- गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों को पुनः शुरू करना: गैर-सरकारी सदस्यों के विधेयकों को सप्ताह के मध्य में स्थानांतरित करने से भागीदारी और चर्चा को बढ़ावा मिल सकता है।
- सांसदों को उनके प्रस्तावित उपायों में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना तथा संसद में स्वतंत्र भाषण के मौलिक अधिकार की रक्षा करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:भारत की संसद् के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
(a) केवल 1 उत्तर: (d) व्याख्या:
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वाणिज्यिक इंटरनेट की उत्पत्ति
स्रोत: द ट्रिब्यून
- 1 जनवरी, 1983 को एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी नेटवर्क (ARPANET) से ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल (TCP/IP) में परिवर्तन ने आधुनिक इंटरनेट को जन्म दिया, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक स्तर पर संचार में क्रांति आ गई है।
- ARPANET, पहला सार्वजनिक पैकेट-स्विच्ड कंप्यूटर नेटवर्क है, जिसे शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी रक्षा विभाग द्वारा संभावित परमाणु हमलों के दौरान संचार को सुनिश्चित करने के लिये शुरू किया गया था।
- हालाँकि ARPANET को नियंत्रित करने वाला प्रोटोकॉल, जिसे नेटवर्क कंट्रोल प्रोटोकॉल (NCP) के रूप में जाना जाता है, वर्ष 1970 के दशक के अंत तक पुराना हो गया, क्योंकि यह परस्पर संबंधित नेटवर्कों की बढ़ती जटिलता और विविधता को सहन करने में असमर्थ था।
- अमेरिकी इंटरनेट अग्रदूतों, विंटन सर्फ और रॉबर्ट काह्न द्वारा विकसित TCP/IP ने विविध नेटवर्कों में संचार को मानकीकृत किया, जिससे स्केलेबल और कुशल डेटा ट्रांसमिशन संभव हुआ।
- 1 जनवरी 1983 को जिसे "झंडा दिवस" के रूप में नामित किया गया, सभी ARPANET प्रणालियों को TCP/IP अपनाना आवश्यक कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप इंटरनेट की उत्पत्ति हुई।
- TCP/IP ने "नेटवर्कों का नेटवर्क" सक्षम किया, भौगोलिक, संगठनात्मक और तकनीकी बाधाओं को तोड़ दिया, तथा वैश्विक कनेक्टिविटी को संभव बनाया।
- इस परिवर्तन ने भविष्य की प्रगति की नींव रखी, जिसमें वर्ल्ड वाइड वेब, सोशल मीडिया और ई-कॉमर्स शामिल हैं।
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राजनेताओं के लिये स्मारक
स्रोत: द हिंदू
हाल ही में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार निगमबोध घाट पर किया गया, जो कि पहले से तय स्थानों पर दाह संस्कार करने एवं उसके बाद स्मारक स्थापित करने की परंपरा से अलग है।
- नियम और परंपराएँ: हालांकि पूर्व प्रधानमंत्रियों के लिये स्मारक बनाने के संबंध में कोई विशिष्ट नियम नहीं हैं लेकिन आमतौर पर उनका अंतिम संस्कार निर्धारित स्थलों पर ही किया जाता है तथा उनमें से अधिकांश के स्मारक दिल्ली या अन्यत्र हैं।
- स्मारकों की उत्पत्ति और विरासत: राजनेताओं के स्मारक स्थल के रूप में राजघाट (महात्मा गांधी) का काफी महत्त्व है यह स्थल शांति एवं राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है।
- जवाहरलाल नेहरू (शांति वन), लाल बहादुर शास्त्री (विजय घाट), इंदिरा गांधी (शक्ति स्थल) और अटल बिहारी वाजपेयी (स्मृति स्थल) जैसे नेताओं के संदर्भ में विरासतों के प्रतीक के रूप में स्मारकों की परंपरा का पालन किया गया।
- राजनीतिक विचारधाराएँ: स्मारक अक्सर राजनीतिक विचारधाराओं को दर्शाते हैं, उदाहरण के लिये, पीवी नरसिम्हा राव की ज्ञान भूमि की स्थापना वर्तमान NDA सरकार द्वारा की गई थी जिसे पहले काॅन्ग्रेस द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था, जबकि वीपी सिंह एकमात्र ऐसे पूर्व प्रधानमंत्री हैं जिनका कोई स्मारक नहीं है।
- स्मारकों का रखरखाव: स्मारकों का रखरखाव मुख्य रूप से राज्य सरकारों, स्थानीय नगर पालिकाओं एवं कभी-कभी शहरी विकास मंत्रालय के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है।
- भारत में स्मारक और प्रतीकवाद: राजेंद्र प्रसाद (बिहार), बी.आर. अंबेडकर (मुंबई), मोरारजी देसाई (अहमदाबाद) और गुलजारीलाल नंदा- अंतरिम प्रधानमंत्री (अहमदाबाद)।
- स्मारक के नाम राजनेताओं की पहचान को दर्शाते हैं, जैसे शास्त्री जी का विजय घाट (जीत), इंदिरा जी का शक्ति स्थल (मज़बूती) एवं चरण सिंह का किसान घाट (किसान नेतृत्व)।
और पढ़ें: प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, राष्ट्रीय नमक सत्याग्रह स्मारक
विक्रम साराभाई की 52वीं पुण्यतिथि
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
प्रतिवर्ष 30 दिसंबर को विक्रम साराभाई की पुण्यतिथि के रूप में मनाया जाता है।
- विक्रम अंबालाल साराभाई एक भारतीय भौतिक विज्ञानी और उद्योगपति थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरुआत की और भारत में परमाणु ऊर्जा के विकास में सहयोग किया।
विक्रम साराभाई का योगदान क्या है?
- प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:
- 12 अगस्त 1919 को अहमदाबाद, गुजरात में एक संपन्न जैन परिवार में जन्मे साराभाई अंबालाल और सरला देवी की आठ संतानों में से एक थे।
- उन्होंने प्रारंभ से ही रचनात्मक प्रतिभा का परिचय दिया तथा 15 वर्ष की उम्र में रेल इंजन का एक कार्यशील मॉडल बनाया जो अब अहमदाबाद के सामुदायिक विज्ञान केंद्र (CSC) में संरक्षित है।
- उन्होंने सेंट जॉन्स कॉलेज, कैम्ब्रिज (1940) से प्राकृतिक विज्ञान में अपनी ट्रिपोज़ (स्नातक डिग्री) पूरी की।
- वे द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारत लौट आये और भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू में डॉ. सी.वी. रमन के अधीन कॉस्मिक किरणों पर शोध किया।
- उन्हें कॉस्मिक किरणों पर अपने शोध प्रबंध के लिये वर्ष 1947 में कैम्ब्रिज से PhD की उपाधि प्रदान की गई।
- संस्थागत विरासत: डॉ. साराभाई ने कई संस्थानों की स्थापना में प्रमुख भूमिका निभाई है जो भारत के वैज्ञानिक और औद्योगिक परिदृश्य को आकार देने में महत्त्वपूर्ण रही हैं जैसे:
- भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (PRL), अहमदाबाद: वर्ष 1947 में स्थापित, PRL के साथ ही संस्थाओं के निर्माण की दिशा में साराभाई की यात्रा की शुरुआत हुई।
- भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), अहमदाबाद: इसके निर्माण में इनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।
- सामुदायिक विज्ञान केंद्र, अहमदाबाद: इसे विज्ञान शिक्षा को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1966 में स्थापित किया गया।
- दर्पण एकेडमी फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स, अहमदाबाद: इसे इन्होंने अपनी पत्नी मृणालिनी स्वामीनाथन के साथ मिलकर स्थापित किया।
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC), तिरुवनंतपुरम: यह भारत के अंतरिक्ष अभियानों का केंद्र है।
- अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद: छह संस्थानों के विलय से इसका गठन किया गया।
- इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL), हैदराबाद।
-
यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (UCIL), जादुगुड़ा, बिहार।
- भारतीय अंतरिक्ष और परमाणु कार्यक्रमों में योगदान:
- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO): उन्होंने सामाजिक विकास के लिये अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के महत्त्व पर बल देते हुए ISRO की स्थापना में भूमिका निभाई।
- भारत की विकासात्मक चुनौतियों से निपटने के लिये उपग्रह अनुप्रयोगों को महत्त्व दिया।
- सैटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविज़न एक्सपेरीमेंट (SITE): NASA के साथ मिलकर तैयार किये गए SITE से ग्रामीण क्षेत्रों में शैक्षिक कार्यक्रमों का प्रसारण होने के साथ दूरदर्शन के कृषि दर्शन जैसे कार्यक्रमों का आधार तैयार हुआ।
- आर्यभट्ट उपग्रह: इनके नेतृत्व में भारत के पहले उपग्रह, आर्यभट्ट का निर्माण आरंभ किया गया, जिसे वर्ष 1975 में रूसी कॉस्मोड्रोम से प्रक्षेपित किया गया।
- परमाणु ऊर्जा आयोग: होमी भाभा की मृत्यु के बाद यह इसके अध्यक्ष बने तथा परमाणु विज्ञान को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाई।
- पुरस्कार और सम्मान:
- पुरस्कार:
- प्रतिष्ठित पद:
- भारतीय विज्ञान काॅन्ग्रेस के भौतिकी अनुभाग के अध्यक्ष (1962)
- अध्यक्ष, IAEA का महासम्मेलन, वियना (1970)
- परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर चौथे संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के उपाध्यक्ष (1971)
- शीर्षक: भारतीय विज्ञान के महात्मा गांधी (पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम द्वारा )।
- विरासत:
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (VSSC) का नाम उनके सम्मान में रखा गया।
- एक चंद्र क्रेटर, “साराभाई क्रेटर” का नाम उनके नाम पर रखा गया।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016) इसरो द्वारा प्रक्षेपित मंगलयान
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल उत्तर: (c) प्रश्न. 'ग्रीज्ड लाइटनिंग-10 (GL-10)' जिसका हाल ही में समाचारों में उल्लेख हुआ, क्या है?(2016) (a) NSG द्वारा परीक्षित विद्युत विमान उत्तर: (a) |
मॉल्डोवा और ट्रांसनिस्ट्रिया
स्रोत: बीबीसी
हाल ही में, यूक्रेन ने अपने क्षेत्र से रूसी गैस की सप्लाई बंद कर दिया है, जिससे दिसंबर, 2024 में युद्ध-पूर्व ट्रांजिट समझौते की समाप्ति के बाद यूरोप तक पहुँचने वाला प्रमुख सप्लाई मार्ग बंद हो गया है।
- मॉल्डोवा और ट्रांसनिस्ट्रिया, जो सर्दियों के दौरान विद्युत् की आपूर्ति और हीटिंग के लिये मुख्यतः रूसी गैस पर निर्भर रहते हैं, को इसके परिणामस्वरूप ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ रहा है।
- मॉल्डोवा :
- मॉल्डोवा एक छोटा पूर्वी यूरोपीय देश है, जिसकी सीमा पूर्व में यूक्रेन और पश्चिम में रोमानिया से लगती है ।
- हाल ही में, मॉल्डोवा ने नई दिल्ली में अपने दूतावास का उद्घाटन किया है।
- वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन और मॉल्डोवा की स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1992 में भारत और मॉल्डोवा ने राजनयिक संबंध स्थापित किये है।
- मॉल्डोवा :
- ट्रांसनिस्ट्रिया:
- यह मॉल्डोवा में रूस समर्थित एक अलग क्षेत्र है जिसे "सोवियत संघ के भाग (Remnant of the Soviet Union)" के रूप में वर्णित किया गया है जो वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद मॉल्डोवा के बाकी हिस्सों से अलग हो गया था ।
- जब वर्ष 1990-1992 में मॉल्डोवन सैनिकों ने इस क्षेत्र पर कब्ज़ा करने की कोशिश की, तो ट्रांसनिस्ट्रिया में मौजूद रूसी सैनिकों की वजह से ट्रांसनिस्ट्रिया उनका विरोध करने में सक्षम हुआ। तब से, यह मॉल्डोवन नियंत्रण से मुक्त है।
- हालाँकि, अधिकांश देश ट्रांसनिस्ट्रिया को मॉल्डोवा का हिस्सा मानते हैं। रूस द्वारा भी इसे स्वतंत्र नहीं माना गया है।
- अधिकांश ट्रांसनिस्ट्रियनों के पास रूस और ट्रांसनिस्ट्रिया की दोहरी नागरिकता या मॉल्डोवा, ट्रांसनिस्ट्रिया और रूस की तिहरी नागरिकता है ।
और पढ़ें: रूस-यूक्रेन संघर्ष, भारत में मॉल्डोवा का दूतावास खोलना, रूस-यूक्रेन युद्ध में ट्रांसनिस्ट्रिया
आठ प्रमुख उद्योगों का सूचकांक (ICI)
स्रोत: पी.आई.बी
आठ प्रमुख उद्योगों (ICI) के संयुक्त सूचकांक में नवंबर 2023 की तुलना में नवंबर 2024 में 4.3% की वृद्धि दर्ज की गई।
- ICI के तहत आठ प्रमुख उद्योगों अर्थात कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट एवं विद्युत उत्पादन के संयुक्त तथा एकल प्रदर्शन को मापा जाता है।
- औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) में शामिल वस्तुओं के भार में 40.27% हिस्सा आठ प्रमुख उद्योगों का है।
उद्योग |
भार (%) |
वृद्धि (नवंबर 2024) |
रिफाइनरी उत्पाद |
28.04% |
2.90% |
विद्युत |
19.85% |
3.80% |
इस्पात |
17.92% |
4.80% |
कोयला |
10.33% |
7.50% |
कच्चा तेल |
8.98% |
-2.10% |
प्राकृतिक गैस |
6.88% |
-1.90% |
सीमेंट |
5.37% |
13.00% |
उर्वरक |
2.63% |
2.00% |
- IIP: इस सूचकांक द्वारा भारत में खनन, विद्युत और विनिर्माण जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों में उत्पादन की मात्रा में हुए अल्पकालिक परिवर्तनों को मापा जाता है।
- इसे केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (CSO) द्वारा मासिक रूप से जारी किया जाता है। इसके तहत डेटा, संदर्भ माह के छह सप्ताह बाद जारी किया जाता है।
- इसमें आधार वर्ष (2011-2012) की तुलना में उत्पादन में हुए परिवर्तन को दर्शाया जाता है ।
और पढ़ें:
विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2024
स्रोत: पी.आई.बी
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी विश्व मलेरिया रिपोर्ट 2024 में भारत की उल्लेखनीय प्रगति पर प्रकाश डाला। भारत में वर्ष 2017 और 2023 के बीच मलेरिया के मामलों और उससे संबंधित मौतों में उल्लेखनीय कमी आई है, जो एक बड़ी उपलब्धि है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक मलेरिया मुक्त स्थिति प्राप्त करना है, तथा वर्ष 2027 तक मलेरिया का कोई भी स्थानीय मामला दर्ज नही किया गया है।
मलेरिया
- मलेरिया प्लास्मोडियम परजीवी के कारण होने वाला एक जानलेवा रोग है, जो संक्रमित मादा एनोफिलीज मच्छरों के काटने से फैलता है।
- प्लास्मोडियम परजीवी की पाँच प्रजातियाँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया का कारण बनती हैं तथा साथ ही इनमें से 2 परजीवी प्रजातियाँ (‘पी.फाल्सीपरम’-P. Falciparum एवं ‘पी.वीवाक्स’-P Vivax) ज़्यादा खतरनाक होती हैं।
- मलेरिया मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
- जब मच्छर किसी संक्रमित व्यक्ति को काटता है, तो वह भी संक्रमित हो जाता है। जिस व्यक्ति को यह मच्छर काटता है, उसके शरीर में मलेरिया के परजीवी प्रवेश कर जाते हैं। लीवर में पहुँचने के बाद, परजीवी विकसित होते हैं और लाल रक्त कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं।
- बुखार और फ्लू जैसे लक्षण, जैसे ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान, मलेरिया के लक्षण हैं। उल्लेखनीय है कि मलेरिया का इलाज संभव है और इससे बचा जा सकता है।
रिपोर्ट के निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक निष्कर्ष:
- बर्डन डिजीज़:
- अनुमान है कि वर्ष 2023 में वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 263 मिलियन मामले सामने आएंगे है, जो वर्ष 2022 की तुलना में 11 मिलियन अधिक है।
- वैश्विक स्तर पर मलेरिया से होने वाली मृत्यु दर 597,000 रही, जो वर्ष 2020 में 622,000 मृत्यु के साथ गिरावट को दर्शाती है।
- भौगोलिक वितरण:
- WHO के अनुसार अफ्रीकी क्षेत्र में वर्ष 2023 में वैश्विक मलेरिया के 94% मामले तथा मलेरिया से होने वाली 95% मृत्यु दर्ज की गई है।
- पाँच देश - नाइजीरिया (26%), कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (13%), युगांडा (5%), इथियोपिया (4%), और मोज़ाम्बिक (4%) - वैश्विक मलेरिया के लगभग 52% मामलों के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- वर्ष 2015 से अब तक नौ देशों को मलेरिया मुक्त प्रमाणित किया जा चुका है, जिनमें वर्ष 2024 में मिस्र भी शामिल है।
- हस्तक्षेप का प्रभाव:
- दो मलेरिया टीकों, RTS,S और R21, के शुरू होने से स्थानिक क्षेत्रों में टीकाकरण कवरेज़ में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- बर्डन डिजीज़:
- भारत विशिष्ट निष्कर्ष:
- ऐतिहासिक परिवर्तन: स्वतंत्रता के समय भारत में प्रतिवर्ष मलेरिया के 7.5 करोड़ मामले सामने आते थे, जिनमें से 800,000 लोगों की मृत्यु हो जाती थी, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई थी।
- लगातार प्रयासों से मामलों में 97% से अधिक की कमी आई है, जिससे ये वार्षिक आधार पर 2 मिलियन तक कम हो गए हैं, जबकि वर्ष 2023 तक मृत्यु दर घटकर मात्र 83 रह गई है।
- नवीनतम उपलब्धियाँ (2017-2024): वर्ष 2015 से वर्ष 2023 तक मलेरिया के मामले 11,69,261 से घटकर 2,27,564 हो गए और मृत्यु दर 384 से घटकर 83 हो गई, जो 80% की कमी दर्शाती है।
- वार्षिक रक्त परीक्षण दर 9.58 (वर्ष 2015) से बढ़कर 11.62 (वर्ष 2023) हो गई, जिससे शीघ्र पहचान और हस्तक्षेप सुनिश्चित हुआ।
- वर्ष 2024 में भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन के हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट (HBHI) समूह से बाहर निकल गया, जो एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।
- HBHI वैश्विक मलेरिया प्रतिक्रिया पर एक देश-नेतृत्व वाला दृष्टिकोण है।
- ऐतिहासिक परिवर्तन: स्वतंत्रता के समय भारत में प्रतिवर्ष मलेरिया के 7.5 करोड़ मामले सामने आते थे, जिनमें से 800,000 लोगों की मृत्यु हो जाती थी, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई थी।
- बर्डन डिजीज़ में कमी:
- हाई बर्डन (High-Burden) वाले राज्यों की संख्या 10 से घटकर 2 हो गई (मिज़ोरम और त्रिपुरा)।
- ओडिशा, छत्तीसगढ़, झारखंड और मेघालय में मीडियम बर्डन (Medium-Burden) की स्थिति उत्पन्न हो गई।
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश और दादरा और नगर हवेली लो-बर्डन (Low- Burden) में चले गए।
- लद्दाख, लक्षद्वीप और पुडुचेरी ने शून्य स्थिति हासिल कर ली है, तथा वे उप-राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन सत्यापन के लिये पात्र हैं।
मलेरिया पर अंकुश लगाने के लिये सरकारी पहल क्या हैं?
- मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रूपरेखा 2016-2030
- राष्ट्रीय वेक्टर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम: रोकथाम और नियंत्रण उपायों के माध्यम से मलेरिया सहित विभिन्न वेक्टर जनित रोगों का समाधान करता है।
-
राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण कार्यक्रम (NMCP): मलेरिया के गंभीर प्रभाव से निपटने के लिये वर्ष 1953 में शुरू किया गया।
- यह तीन मुख्य गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करता है: DDT के साथ कीटनाशक अवशिष्ट छिड़काव (IRS), मामले की निगरानी और निरीक्षण, और रोगी उपचार।
- 'हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट' (High Burden to High Impact-HBHI) पहल: वर्ष 2019 में चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में शुरू की गई।
- यह कीटनाशक युक्त मच्छरदानियों (LLIN) के माध्यम से मलेरिया में कमी लाने पर केंद्रित है।
- मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India): भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा स्थापित, मलेरिया नियंत्रण अनुसंधान पर भागीदारों के साथ सहयोग करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. क्लोरोक्वीन जैसी दवाओं के प्रति मलेरिया परजीवी के व्यापक प्रतिरोध ने मलेरिया से निपटने के लिये मलेरिया का टीका विकसित करने के प्रयासों को प्रेरित किया है। मलेरिया का प्रभावी टीका विकसित करना क्यों कठिन है? (2010) (a) प्लाज़्मोडियम की कई प्रजातियों के कारण मलेरिया होता है। उत्तर: (b) |