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प्रिलिम्स फैक्ट्स

  • 01 Mar, 2025
  • 22 min read
प्रारंभिक परीक्षा

राष्ट्रीय विज्ञान दिवस 2025

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों? 

वर्ष 1928 में सर चंद्रशेखर वेंकट रमन द्वारा की गई रमन प्रभाव की खोज के सम्मान में भारत में प्रतिवर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (NSD) मनाया जाता है। 

  • 2025 का विषय 'विकसित भारत हेतु विज्ञान और नवाचार में वैश्विक नेतृत्व के लिये भारतीय युवाओं को सशक्त बनाना', से वैज्ञानिक नवाचार तथा युवा नेतृत्व की भूमिका पर प्रकाश पड़ता है और यह विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

नोट: वर्ष 1986 में भारत सरकार ने 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के रूप में घोषित किया, जिसे पहली बार वर्ष 1987 में मनाया गया।

सी.वी. रमन के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • प्रारंभिक जीवन: सी.वी. रमन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में हुआ था। उन्होंने मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज से भौतिकी में एम.ए. की डिग्री हासिल की और परमाणु भौतिकी और प्रकाशिकी में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 
    • उन्होंने रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (वर्ष 1948), इंडियन जर्नल ऑफ फिजिक्स (वर्ष 1926) और इंडियन एकेडमी ऑफ साइंसेज (वर्ष 1934) की स्थापना की।
    • उनका अनुसंधान प्रकाशिकी, प्रकाश प्रकीर्णन, एक्स-रे, ध्वनिकी और समुद्री रंगों पर केंद्रित था, जिसके परिणामस्वरूप रमन प्रभाव की खोज हुई।
  • सम्मान और मान्यता: ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1929 में नाइट की उपाधि प्राप्त सी.वी. रमन ने रमन प्रभाव के लिये वर्ष 1930 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार जीता, जिससे वे विज्ञान में नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले एशियाई बने। 
    • उन्हें वर्ष 1954 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया।
  • रमन प्रभाव: यह उस घटना को संदर्भित करता है जहाँ आने वाला आपतित प्रकाश एक नमूने के साथ संपर्क में आता है, तरंग दैर्ध्य में परिवर्तन से गुज़रता है, और आणविक कंपन के साथ अन्तःक्रिया के कारण  प्रकीर्ण प्रकाश उत्पन्न करता है। इस घटना को रमन स्कैटरिंग के रूप में जाना जाता है।
  • रमन प्रभाव के अनुप्रयोग: यह रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी (आणविक कम्पन का विश्लेषण)  का आधार बनता है, जिसका व्यापक रूप से पदार्थ के गुणों के अध्ययन के लिये उपयोग किया जाता है।
    • 1960 के दशक में लेज़रों के आगमन के बाद इसके अनुप्रयोगों का विस्तार हुआ, जिससे पदार्थों को खंडित किये बिना उनकी पहचान कर रासायनिक विश्लेषण में सहायता मिली।
    • यह फोरेंसिक विज्ञान को सीलबंद साक्ष्य बैगों में दवाओं का पता लगाने में भी मदद करता है और फाइबर-ऑप्टिक जाँच का उपयोग कर सुरक्षित परमाणु अपशिष्ट विश्लेषण को सक्षम बनाता है। 

Raman_Effect

वर्ष 2024 में विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारत की प्रगति

  • नवाचार और IP: वैश्विक नवाचार सूचकांक 2024 में भारत 39वें स्थान पर और वैश्विक बौद्धिक संपदा (IP) फाइलिंग (विश्व बौद्धिक संपदा संगठन 2024 रिपोर्ट) में 6वें स्थान पर है।
    • नेटवर्क रेडीनेस इंडेक्स 2024 में भारत की 79वीं (2019) रैंक में सुधार के साथ इसकी रैंक 49वीं है, जो ICT और डिजिटल परिवर्तन में प्रगति को दर्शाता है।
  • अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF): ANRF अधिनियम, 2023 के तहत शुरू किया गया, यह भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) को बढ़ावा देने जैसे प्रमुख कार्यक्रमों के साथ भारत के अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देता है।
  • राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM): इसका उद्देश्य भारत को क्वांटम कंप्यूटिंग, संचार, संवेदन और सामग्रियों में अग्रणी बनाना है।
  • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन (NSM): NSM के अंतर्गत देश में 32 पेटाफ्लॉप की संयुक्त कंप्यूटिंग क्षमता वाले कुल 33 सुपरकंप्यूटर विकसित किये गए हैं।
  • भविष्य में स्वदेशी प्रौद्योगिकी का उपयोग करके क्षमता को 77 पेटाफ्लॉप तक बढ़ाने का लक्ष्य है।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता: BharatGen पहल द्वारा जनरेटिव एआई (GenAI) के लिये भारत का पहला मल्टीमॉडल, बहुभाषी लार्ज लैंग्वेज मॉडल (LLM) विकसित किया जा रहा है।
  • भू-स्थानिक विज्ञान: स्कूलों में स्थानिक चिंतन कार्यक्रमों के माध्यम से भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी अपनाने में वृद्धि हुई है, जो सात राज्यों के 116 स्कूलों को कवर करता है।
  • जलवायु अनुसंधान: बाढ़ और सूखे के जोखिमों के मानचित्रण तथा तैयारी और अनुकूलन उपायों में सुधार के लिये चार उत्कृष्टता केंद्रों की स्थापना करके, भारत ने जलवायु अनुकूलता में वृद्धि की है।


प्रारंभिक परीक्षा

गुरुत्वाकर्षण की क्वांटम प्रकृति

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक यह पता लगाने के लिये नैनोक्रिस्टल्स के साथ प्रयोग कर रहे हैं कि क्या गुरुत्वाकर्षण द्वारा क्वांटम सिद्धांतों का पालन किया जाता है। 

  • इस प्रयास का उद्देश्य सामान्य सापेक्षता (इससे माइक्रोस्कोपिक पैमाने पर गुरुत्वाकर्षण की व्याख्या होती है) और क्वांटम यांत्रिकी (इससे परमाणु और उप-परमाणु अंतःक्रियाओं को नियंत्रित किया जाता है) के बीच के अंतराल को कम करना है।
    • चूंकि ये सिद्धांत मूलतः असंगत हैं इसलिये यह अनुसंधान क्वांटम गुरुत्व के एकीकृत सिद्धांत की खोज में सहायक है।

गुरुत्वाकर्षण की क्वांटमता का परीक्षण करने के लिये प्रस्तावित प्रयोग क्या है?

  • प्रयोग: वैज्ञानिकों ने क्वांटम सुपरपोजिशन का प्रयोग करते हुए एक प्रयोग का प्रस्ताव दिया है, जहाँ मापे जाने तक कण कई अवस्थाओं में मौजूद रहते हैं। 
    • नैनोक्रिस्टल्स द्वारा यह परीक्षण किया जाता है कि क्या गुरुत्वाकर्षण क्वांटम यांत्रिकी का अनुसरण करता है। 
    • एक अन्य द्रव्यमान, परीक्षण द्रव्यमान वाले क्रिस्टल के साथ गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से तब अंतःक्रिया करेगा जब वह सुपरपोजिशन में होगा, या एक साथ दो स्थानों पर विद्यमान होगा।
    • दूसरे क्रिस्टल के मापन के बाद, शोधकर्त्ता यह जाँच करते है कि क्या गुरुत्वाकर्षण के कारण परीक्षण द्रव्यमान (Test Mass) किसी विशिष्ट स्थिति में नष्ट हो जाता है, जो संभवतः यह संकेत देता है कि गुरुत्वाकर्षण क्वांटम सिद्धांतों का पालन करता है।
  • महत्त्व:
    • यदि प्रयोग सफल रहा, तो यह सिद्ध हो सकता है कि गुरुत्वाकर्षण न केवल एक बल है, बल्कि क्वांटम गुण भी प्रदर्शित करता है, चूँकि वर्तमान सिद्धांतों के अनुसार गुरुत्वाकर्षण को क्वांटम प्रभाव प्रदर्शित करना चाहिये।
    • अधिकांश क्वांटम गुरुत्व परीक्षण मज़बूत गुरुत्वाकर्षण (जैसे, ब्लैक होल) पर निर्भर करते हैं, जिसका परीक्षण करना अव्यावहारिक है। 
      • यह प्रयोग छोटी वस्तुओं के पास कमज़ोर गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन करने का प्रस्ताव करता है, जिससे क्वांटम गुरुत्वाकर्षण परीक्षण अधिक व्यवहार्य हो जाता है।
  • चुनौतियाँ:
    • इस प्रयोग में छोटी-छोटी बाधाएँ (जैसे वायु के अणु या भूकंपीय गतिविधि) भी प्रयोग के परिणामों पर प्रभाव डाल सकती हैं, इसलिये इसमें उच्च स्तर की परिशुद्धता की आवश्यकता होती है।
    • वैज्ञानिकों को लगभग पूर्ण निर्वात बनाने तथा परिणामों को शीघ्रता से मापने की आवश्यकता है।
    • इस प्रयोग को करने की तकनीक अभी भी विकसित की जा रही है।

क्वांटम यांत्रिकी और सामान्य सापेक्षता क्या है?

  • क्वांटम यांत्रिकी:
    • परिचय:
      • क्वांटम यांत्रिकी भौतिकी की वह शाखा है जो यह बताती है कि कैसे उप-परमाणु कण, जैसे इलेक्ट्रॉन और फोटॉन, कणों (पदार्थ के छोटे टुकड़े) और तरंगों (ऊर्जा व्यवधान) दोनों के रूप में व्यवहार कर सकते हैं। 
      • इस अवधारणा को तरंग-कण द्वैत के नाम से जाना जाता है और यह क्वांटम भौतिकी का एक मूलभूत सिद्धांत है।
    • प्रमुख सिद्धांत:
      • तरंग-कण द्वैत: कण तरंग और कण दोनों रूप में व्यवहार कर सकते हैं।
      • अध्यारोपण: मापे जाने तक एक कण अनेक अवस्थाओं में विद्यमान रह सकता है।
      • एंटैंगलमेंट: दो कणों को इस तरह से सहसंबंधित किया जा सकता है कि एक की स्थिति दूसरे को तुरंत प्रभावित करती है, यहाँ तक कि विशाल दूरी पर भी।
      • अनिश्चितता सिद्धांत: किसी कण की स्थिति और संवेग दोनों को एक ही समय में सटीक रूप से मापा नहीं जा सकता।
  • सामान्य आपेक्षिकता:
    • परिचय: यह गुरुत्वाकर्षण का आधुनिक सिद्धांत है जिसे अल्बर्ट आइंस्टीन ने 1915 में न्यूटन के सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण के नियम के विस्तार के रूप में प्रस्तावित किया था।
      • इसके अंतर्गत गुरुत्वाकर्षण को एक बल के रूप में नहीं, बल्कि द्रव्यमान और ऊर्जा के कारण दिक्काल की वक्रता के रूप में वर्णित किया गया है।
    • प्रमुख सिद्धांत:
      • दिक्काल वक्रता: सूर्य जैसे विशाल पिंड के कारण दिक्काल में वक्रता आती है, जिससे ग्रह परिक्रमा करते हैं।
      • काल वृद्धि: प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों में काल धीमी गति से चलता है (जैसे, ब्लैक होल के समीप)।
      • तुल्यता सिद्धांत: किसी सवृंत तंत्र में त्वरण और गुरुत्वाकर्षण बल अविभाज्य होते हैं।

Quantum_Mechanics_and_General_Relativity

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित परिघटनाओं पर विचार कीजिये:(2018) 

  1. प्रकाश ,गुरुत्व द्वारा प्रभावित होता है। 
  2. ब्रह्मांड लगातार फैल  रहा है। 
  3. पदार्थ अपने चारों ओर के दिक्काल को विकुंचित (वार्प) करता है।

उपर्युक्त में से एल्बर्ट आइंस्टीन के आपेक्षिकता के सामान्य सिद्धांत का/के भविष्य कथन कौन सा/से  है/हैं, जिसकी/जिनकी प्रायः समाचार माध्यमों में  विवेचना  होती है?

(a) केवल 1 और 2 
(b) केवल 3
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


प्रारंभिक परीक्षा

अति-संरक्षित तत्त्व

स्रोत: द हिंदू

एक अध्ययन किया गया जिसके अनुसार Tra2b (ट्रांसफॉर्मर-2 बीटा) जीन में अति-संरक्षित तत्त्व (Ultra-Conserved Element- UCE) प्रोटीन के स्तर को नियंत्रित कर जनन अक्षमता का निवारण करने में अपनी भूमिका के कारण 80 मिलियन वर्षों से अपरिवर्तित बने हुए हैं।

अति-संरक्षित तत्त्वों पर अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

  • अध्ययन के निष्कर्ष: चूहे के वृषण में UCE को हटाने से Tra2β प्रोटीन की अधिकता, शुक्राणु कोशिका मरण और जनन अक्षमता की समस्या उत्पन्न हुई।
    • Tra2b जीन में UCE एक विष एक्सॉन के रूप में कार्य कर Tra2β प्रोटीन उत्पादन को नियंत्रित करता है। 
      • Tra2β प्रोटीन का स्तर अत्यधिक होने पर UCE द्वारा जीन के RNA में एक अतिरिक्त एक्सॉन का उत्प्रेरण होता है, जिससे एक स्टॉप कोडॉन उत्पन्न होता है, जिससे प्रोटीन का संश्लेषण बाधित होता है तथा अतिउत्पादन का निवारण होता है।
    • UCE के प्रोटीन-सीमाकारी कार्य को बाधित करने वाले उत्परिवर्तन जनन अक्षमता का कारण बनते हैं, जिससे वंशानुक्रम बाधित होता है। इस प्रकार प्राकृतिक वरण के माध्यम से लाखों वर्षों से प्रजातियों में UCE का संरक्षण बना हुआ है।
  • अति-संरक्षित तत्त्व: UCE लगभग 200 आधार-युग्मों के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) अनुक्रम हैं, जो 80 मिलियन वर्ष या उससे अधिक समय से कई प्रजातियों में पूर्ण रूप से अपरिवर्तित रहे हैं।
    • ये अनुक्रम मनुष्यों, चूहों, मुर्गियों और मछलियों में भी पाए जाते हैं, जो उनके क्रांतिक जैविक महत्त्व को दर्शाते हैं।
      • मानव जीनोम (कोशिका में पाए जाने वाले DNA निर्देशों का संपूर्ण समुच्चय) में लगभग 500 UCE होते हैं।
    • UCE के अभिलक्षण: UCE विविध प्रजातियों में लगभग समान DNA अनुक्रम प्रदर्शित करते हैं, यहाँ तक ​​कि उनमें भी जो वैकासिक दृष्टि से अत्यंत भिन्न हैं।
    • UCE के कार्य: वे आमतौर पर प्रोटीन के लिये कोड नहीं करते हैं, लेकिन जीन विनियमन में शामिल होते हैं।

DNA से प्रोटीन रूपांतरण

  • DNA संरचना: DNA द्विकुंडलिनी (Double-Helix) अणु है, जिसमें प्रत्येक स्ट्रैंड चार बेस से मिलकर बना होता है जो युग्म के रूप में स्ट्रैंड को एक साथ बनाए रखते हैं।
  • जीन: जीन DNA का एक लघु खंड है, जिसकी लंबाई प्रायः कुछ हज़ार बेस-युग्म में होती है, जिसमें प्रोटीन निर्माण के निर्देश होते हैं।
  • अनुलेखन: जब एक जीन व्यक्त होता है (जीन में कोडित सूचना का प्रकार्य में परिवर्तन हो जाता है), तो कोशिका अपने DNA अनुक्रम का दूत अथवा मैसेंजर RNA (MRNA) में प्रतिलेखन करती है।
    • राइबोसोम, mRNA अनुक्रम से सूचना प्राप्त करते हैं और प्रोटीन निर्माण हेतु अमीनो एसिड का समुच्चयन करते हैं (प्रोटीन संश्लेषण) यह प्रक्रिया स्टॉप कोडन पर रुक जाती है, जो प्रोटीन संश्लेषण के पूरा होने का संकेत देता है।

DNA_to_Protein

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न. प्राय: समाचारों में आने वाला Cas9 प्रोटीन क्या है? (2019)

(a) लक्ष्य-साधित जीन संपादन (टारगेटेड जीन एडिटिंग) में प्रयुक्त आण्विक कैंची।
(b) रोगियों में रोगजनकों की ठीक-ठीक पहचान के लिये प्रयुक्त जैव संवेदक।
(c) एक जीन जो पादपों को पीड़क-प्रतिरोधी बनाता है।
(d) आनुवंशिकत: रूपांतरित फसलों में संश्लेषित होने वाला एक शाकनाशी पदार्थ।

उत्तर: (a)


रैपिड फायर

दक्षिण अफ्रीका में केप गिद्ध

स्रोत: डाउन टू अर्थ

30 वर्षों के बाद केप गिद्ध (Gyps coprotheres) को दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी केप प्रांत में माउंटेन ज़ेबरा नेशनल पार्क के पास देखा गया है। 

  • केप गिद्ध: यह केवल दक्षिणी अफ्रीका में स्थानिक है तथा दक्षिण अफ्रीका, लेसोथो, बोत्सवाना और मोज़ाम्बिक में प्रमुख रूप से पाया जाता है।
    • यह क्रीमी-बफ रंग का होता है, जिसमें विपरीत गहरे रंग के पंख और पूँछ और शहद के रंग की आंखें, नीला गला तथा चोंच काली होती है।
    • यह एकसंगमनी (Monogamous) है, अर्थात प्रति मौसम में एक चूजे का पालन-पोषण करता है, समूह में रहता है, तथा केवल सड़ा हुआ मांस (Carrion) का सेवन करता है।
    • इसे IUCN की रेड लिस्ट में सुभेद्य श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है।
    • केवल तीन प्रजातियाँ ही अफ्रीका में विशिष्ट रूप से पाई जाती हैं, अर्थात् व्हाइट हेडेड गिद्ध, हूडेड गिद्ध, और केप गिद्ध।

Cape_Vulture

  • वैश्विक गिद्ध वितरण: समग्र विश्व में गिद्ध की 23 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें इस प्रकार विभाजित किया गया है:
    • ओल्ड वर्ल्ड गिद्ध (16 प्रजातियाँ, अफ्रीका, यूरोप, एशिया में पाई जाती हैं)
    • न्यू वर्ल्ड गिद्ध (7 प्रजातियाँ, अमेरिका और कैरिबियन में पाई जाती हैं)।

Himalayan_Griffon_Vulture

और पढ़ें: संरक्षित क्षेत्रों में संकट में गिद्ध


रैपिड फायर

कृषि एवं ग्रामीण श्रमिकों के लिये CPI

स्रोत: पी.आई.बी.

श्रम और रोज़गार मंत्रालय के श्रम ब्यूरो ने कृषि श्रमिकों (CPI-AL) और ग्रामीण श्रमिकों (CPI-RL) के लिये अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जारी किया है।

  • CPI -AL और CPI-RL शृंखला वर्तमान में 20 राज्यों और अखिल भारतीय स्तर पर मासिक रूप से संकलित की जाती है।
  • जनवरी 2025 में मुद्रास्फीति दर क्रमशः 4.61% और 4.73% दर्ज की गई, जो उल्लेखनीय गिरावट दर्शाती है, जो ग्रामीण भारत में आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं पर मूल्य दबाव में कमी का संकेत देती है।
  • CPI-AL: यह ग्रामीण कृषि श्रमिकों के जीवन -यापन की लागत में परिवर्तन को मापता है और इसका उपयोग विभिन्न राज्यों में कृषि श्रमिकों के लिये न्यूनतम मज़दूरी को समायोजित करने के लिये किया जाता है।
    • CPI(AL) CPI(RL) का एक उपसमूह है।
  • CPI-RL: यह ग्रामीण श्रमिकों के जीवन-यापन की लागत में परिवर्तन को मापता है।
    • CPI-AL और CPI-RL दोनों के लिये आधार वर्ष 1986-87 है। 
      • आधार वर्ष समय के साथ सांख्यिकीय परिवर्तनों की तुलना करने के लिये एक संदर्भ बिंदु है। उदाहरण के लिये, GDP,  मुद्रास्फीति आदि।

और पढ़ें: औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक


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