भारत-रूस संबंधों की प्रगति
यह एडिटोरियल 20/10/2024 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “5 ways in which India-Russia relationship will shape the world in 2025” पर आधारित है। इस लेख में भारत-रूस साझेदारी की महत्त्वपूर्ण तस्वीर प्रस्तुत की गई है जो रक्षा, ऊर्जा और वैश्विक कूटनीति में इसकी भूमिका पर प्रकाश डालती है, साथ ही रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखने के लिये पश्चिमी संबंधों को संतुलित करने में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों को रेखांकित करती है।
प्रिलिम्स के लिये:भारत-रूस संबंध, 1971 की शांति, मित्रता और सहयोग संधि, कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र, ब्रह्मोस मिसाइल, Su-30 MKI, यूरेशियन आर्थिक फोरम, अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा, चेन्नई-व्लादिवोस्तोक गलियारा, BRICS, शंघाई सहयोग संगठन (SCO), G20, ज़पोरिज़िया परमाणु संयंत्र, भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) मुक्त व्यापार समझौता। मेन्स के लिये:बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत-रूस संबंधों की वर्तमान स्थिति, रूस के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ |
भारत-रूस संबंध वैश्विक कूटनीति में शायद सबसे महत्त्वपूर्ण द्विपक्षीय साझेदारी के रूप में उभरे हैं, जो केवल रणनीतिक सहयोग से कहीं आगे निकल गए हैं। रूस उच्च तकनीक रक्षा और तेल आपूर्ति में भारत का सबसे अधिक अनुकूल भागीदार बना हुआ है। इस साझेदारी के माध्यम से, भारत रूस को चीन की ओर पूरी तरह से बढ़ने से रोकता है, वैश्विक ऊर्जा बाज़ारों में स्थिरता सुनिश्चित करता है, और BRICS जैसे उभरते हुए शक्ति ब्लॉक में एक उदारवादी समर्थक बनाए रखता है।
हालाँकि भारत के लिये पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित करने जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। भारत को अपनी रणनीतिक स्वायत्तता की रक्षा करने और बदलती वैश्विक गतिशीलता के बीच इस महत्त्वपूर्ण साझेदारी को बनाए रखने के लिये सक्रिय रूप से कार्य करने की आवश्यकता है।
समय के साथ भारत और रूस के संबंध किस प्रकार विकसित हुए?
- शीत युद्ध की एकजुटता (वर्ष 1950-1991):
- कश्मीर और गोवा की मुक्ति जैसे प्रमुख मुद्दों पर भारत के लिये सोवियत समर्थन साझा रणनीतिक हितों को दर्शाता है।
- वर्ष 1971 की शांति, मित्रता और सहयोग संधि बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान महत्त्वपूर्ण थी।
- सोवियत संघ-विघटन के बाद का समायोजन (वर्ष 1991-2000):
- सोवियत संघ के विघटन के बाद, भारत और रूस ने रक्षा तथा रणनीतिक संबंधों को बनाए रखने के लिये अपने संबंधों को फिर से संतुलित किया।
- रणनीतिक साझेदारी:
- वर्ष 2000: सामरिक साझेदारी घोषणा ने सभी क्षेत्रों में सहयोग को संस्थागत रूप दिया।
- वर्ष 2010: साझेदारी को एक विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी में बदल दिया गया, जो इसकी विशिष्ट गहनता को दर्शाता है।
- हाल ही में हुए व्यापार विस्तार:
- वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.7 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जिसमें भारत के निर्यात में 42.7% की वृद्धि हुई और आयात में 39.9% की गिरावट आई, जो रूसी तेल पर निर्भरता में कमी को दर्शाता है।
- भारत से प्रमुख निर्यात: फार्मास्यूटिकल्स, कार्बनिक रसायन और मशीनरी।
- रूस से प्रमुख आयात: तेल, उर्वरक और खनिज। अक्तूबर 2024 में, भारत और रूस ने उत्तरी समुद्री मार्ग पर अपनी पहली कार्य समूह बैठक बुलाई।
- वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.7 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर पहुँच गया, जिसमें भारत के निर्यात में 42.7% की वृद्धि हुई और आयात में 39.9% की गिरावट आई, जो रूसी तेल पर निर्भरता में कमी को दर्शाता है।
बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत-रूस संबंधों की वर्तमान स्थिति क्या है?
- भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के बीच रणनीतिक स्वायत्तता: रूस के साथ भारत के संबंध रणनीतिक स्वायत्तता का उदाहरण हैं, क्योंकि नई दिल्ली किसी भी गुट के साथ गठबंधन किये बिना वैश्विक स्तर पर साझेदारी को सुदृढ़ कर रही है।
- पश्चिमी प्रतिबंधों के बीच, भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ मज़बूत संबंध बनाए रखते हुए रूस के साथ ऊर्जा एवं रक्षा संबंधों को गहन किया है।
- जुलाई 2024 में भारतीय प्रधानमंत्री की मास्को यात्रा के दौरान, दोनों देशों ने भारत-रूस विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक साझेदारी की रूपरेखा तैयार की, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देना है।
- आधारशिला के रूप में ऊर्जा सुरक्षा: भारत ने विश्वसनीय ऊर्जा पहुँच, वहनीयता और आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये एशिया में रूस की धुरी का लाभ उठाया है।
- रूसी आयात पर यूरोपीय प्रतिबंधों ने भारत को कम लागत पर ऊर्जा सुरक्षित करने का अवसर प्रदान किया, जिससे उसे वैश्विक तेल कीमतों की अस्थिरता से सुरक्षा मिली।
- रूसी तेल अब भारत के कुल कच्चे तेल के आयात का 35% हिस्सा है, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 65.7 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जो व्यावहारिक आर्थिक जुड़ाव को दर्शाता है।
- कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र में रूसी सहायता साझेदारी की आधारशिला बनी हुई है।
- रूसी आयात पर यूरोपीय प्रतिबंधों ने भारत को कम लागत पर ऊर्जा सुरक्षित करने का अवसर प्रदान किया, जिससे उसे वैश्विक तेल कीमतों की अस्थिरता से सुरक्षा मिली।
- रक्षा सहयोग- खरीददार से सह-विकासकर्त्ता तक: रक्षा साझेदारी खरीद से सह-विकास तक परिवर्तित हो गई है, जिससे भारत की स्वदेशी क्षमताओं और रणनीतिक स्वायत्तता में वृद्धि हुई है।
- ब्रह्मोस मिसाइल और Su-30 MKI उत्पादन जैसे प्रमुख कार्यक्रम इस विकास को मूर्त रूप देते हैं।
- रूस अभी भी भारत के रक्षा आयात का 45% आपूर्ति करता है, भले ही भारत फ्राँस और इज़रायल जैसे अन्य आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ विविधता ला रहा हो।
- वर्ष 2024 में, भारत और रूस ने भारतीय रेलवे हेतु हाई-स्पीड इलेक्ट्रिक ट्रेनों के संयुक्त उत्पादन को शामिल करने के लिये मेक इन इंडिया पहल का विस्तार किया।
- ऊर्जा से परे आर्थिक विविधीकरण: आर्थिक संबंध अब प्रौद्योगिकी, कृषि और विनिर्माण पर केंद्रित हो गए हैं, जिससे तेल पर निर्भरता कम होती है तथा आपसी विकास को बढ़ावा मिलता है।
- रुपया-रूबल व्यापार तंत्र और यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के साथ FTA वार्ता इस बदलाव को दर्शाती है।
- वर्ष 2024 में रूस को निर्यात में 42.7% की वृद्धि हुई, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स और मशीनरी सबसे आगे रहे।
- वैश्विक व्यापार को नया स्वरूप देने के लिये कनेक्टिविटी: अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा और चेन्नई-व्लादिवोस्तोक गलियारा जैसी भारत-रूस कनेक्टिविटी परियोजनाएँ पारंपरिक मार्गों को दरकिनार करती हैं, जिससे अस्थिर समुद्री चोकपॉइंट्स पर निर्भरता कम होती है।
- ये मार्ग रसद दक्षता को बढ़ाते हैं और व्यापार समय को कम करते हैं।
- INSTC शिपिंग समय को 40% तक कम करता है, जबकि चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर पारगमन दिनों को 40 से घटाकर 24 कर देता है, जिससे द्विपक्षीय व्यापार दक्षता को बढ़ावा मिलता है।
- बहुपक्षीय मंचों में भू-राजनीतिक तालमेल: भारत और रूस बहुध्रुवीय विश्व के लिये एक दृष्टिकोण साझा करते हैं तथा पश्चिमी प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिये BRICS, शंघाई सहयोग संगठन (SCO) तथा G20 जैसे मंचों पर सहयोग करते हैं।
- वे डॉलर के वर्चस्व को कम करने के लिये स्थानीय मुद्रा व्यापार का समर्थन करते हैं। BRICS शिखर सम्मेलन 2024 में, भारत और रूस ने वैकल्पिक वित्तीय प्रणालियों पर ज़ोर दिया, जो भारत के रुपया-मूल्यवान व्यापार के लिये जोर के साथ संरेखित है।
- प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष सहयोग: साझेदारी AI, जैव प्रौद्योगिकी और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों तक फैली हुई है, जो एक दूरदर्शी आयाम को दर्शाती है। भारत और रूस संयुक्त रूप से उपग्रह नेविगेशन तथा चंद्र मिशन को बढ़ाते हैं।
- GLONASS उपग्रह नेविगेशन पर साझेदारी उच्च तकनीक तालमेल को प्रदर्शित करती है।
- वर्ष 2024 में, भारत और रूस ने चंद्र तथा मानव अंतरिक्ष मिशनों सहित उन्नत अंतरिक्ष अनुसंधान पर सहयोग करने की प्रतिबद्धताओं को नवीनीकृत किया।
रूस के साथ संबंधों को आगे बढ़ाने में भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- पश्चिमी देशों और रूस के साथ संबंधों में सामंजस्य: भारत के अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ बढ़ते संबंध, विशेष रूप से क्वाड जैसे मंचों तथा यूरोपीय संघ तथा ब्रिटेन के साथ व्यापार समझौतों की वार्ता के माध्यम से, रूस के साथ उसके संबंधों को जटिल बनाते हैं।
- रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों का समर्थन करने के पश्चिमी दबाव के परिणामस्वरूप भारत की सामरिक स्वायत्तता खतरे में है।
- पश्चिमी देशों की आलोचना के बावजूद, रूस वर्ष 2023 में भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्त्ता रहा। रूस से ऊर्जा आपूर्ति की भारत की वृहद् खरीद ने अमेरिकी अधिकारियों को चिंतित कर दिया है, जिन्होंने ‘परिणामों’ की धमकी भी दी है, लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया है कि वे भारत के तेल आयात पर ‘लाल रेखाएँ’ नहीं लगाएंगे।
- व्यापार घाटे का प्रबंधन: रूस के साथ भारत का व्यापार बहुत अधिक विषम है, आयात (अधिकतर तेल और उर्वरक) निर्यात से बहुत अधिक है, जिससे एक महत्त्वपूर्ण व्यापार असंतुलन होता है। निर्यात का सीमित विविधीकरण इस मुद्दे को और जटिल बनाता है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में, रूस को भारत का निर्यात 4.26 बिलियन डॉलर रहा, जबकि आयात 61.44 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसके परिणामस्वरूप 57.18 बिलियन डॉलर का व्यापार घाटा हुआ।
- हालाँकि दवा निर्यात में 42.7% की वृद्धि हुई, लेकिन अंतर को कम करने के लिये अपर्याप्त है।
- वित्तीय और रसद संबंधी चुनौतियाँ: रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों ने भारत-रूस व्यापार के लिये वित्तीय लेन-देन, निवेश और रसद को जटिल बना दिया है, जिससे लागत एवं अनिश्चितता बढ़ गई है।
- रुपया-रूबल व्यापार जैसी व्यवस्थाओं को क्रियान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिये वोस्ट्रो खाता प्रणाली बनाई गई थी, लेकिन द्वितीयक प्रतिबंधों के भय से निजी बैंकों की अनिच्छा के कारण इसका अंगीकरण धीमा रहा है।
- रूस-चीन निकटता को समझना: रूस का चीन के साथ बढ़ता गठबंधन, विशेष रूप से आर्कटिक और ऊर्जा परियोजनाओं में, भारत के लिये रणनीतिक दुविधाएँ प्रस्तुत करता है।
- रूस के सुदूर पूर्व में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत की कनेक्टिविटी महत्त्वाकांक्षाओं को भी प्रभावित करता है।
- वर्ष 2023 में रूस-चीन व्यापार आर्कटिक में प्रमुख निवेश के साथ $200 बिलियन से अधिक हो गया। जबकि भारत ने चेन्नई-व्लादिवोस्तोक कॉरिडोर को चालू कर दिया है, उत्तरी समुद्री मार्ग में चीन की भागीदारी भारत की पहुँच को सीमित कर सकती है।
- बहुपक्षीय दबाव और मतदान से परहेज: यूक्रेन जैसे वैश्विक संकटों पर अलग-अलग रुख के कारण भारत का संतुलन बिगड़ गया है, जहाँ भारत की तटस्थ स्थिति संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं की अपेक्षाओं के विपरीत है।
- उदाहरण के लिये, जुलाई 2024 में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र के उस प्रस्ताव से परहेज किया जिसमें रूस से यूक्रेन के खिलाफ आक्रामकता बंद करने और ज़पोरिज़िया परमाणु संयंत्र से हटने की मांग की गई थी। इससे भारत की कूटनीतिक भागीदारी ध्रुवीकृत हो गई।
- वर्ष 2024 के G20 शिखर सम्मेलन में, भारत ने तटस्थता बनाए रखते हुए रूस की निंदा करने से परहेज किया।
- मध्य एशिया में भू-राजनीतिक अनिश्चितता: भारत की रणनीतिक पहल, जैसे INSTC, मध्य एशिया (एक ऐसा क्षेत्र जो हाल ही में चीनी उपस्थिति से काफी प्रभावित हो रहा है) के माध्यम से स्थायी कनेक्टिविटी पर निर्भर करती है।
- इन राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता भारत की पहुँच को जटिल बनाती है। उदाहरण के लिये, INSTC व्यापार की मात्रा में ईरान के आंतरिक व्यवधानों और इस गलियारे के लिये एक प्रमुख पारगमन देश कज़ाकिस्तान में भू-राजनीतिक तनाव के कारण विलंब का सामना करना पड़ता है।
भारत अस्त-व्यस्त वैश्विक व्यवस्था के बीच रूस के साथ संबंधों को संतुलित करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है?
- ऊर्जा से परे आर्थिक जुड़ाव में विविधता लाना: भारत को प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि जैसे क्षेत्रों का लाभ उठाकर तेल एवं रक्षा से परे रूस के साथ व्यापार का विस्तार करना चाहिये।
- भारत-यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) मुक्त व्यापार समझौते में तेज़ी लाने और निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करने से गैर-ऊर्जा व्यापार को बढ़ावा मिल सकता है।
- मशीनरी और रसायन जैसे क्षेत्रों में सुव्यवस्थित व्यापार तंत्र के तहत आगे विस्तार की संभावना दिखाई देती है।
- मेक इन इंडिया के तहत रक्षा सह-विकास को बढ़ावा: भारत रूस के साथ अपनी रक्षा साझेदारी को खरीद से सह-विकास में बदल सकता है, जो मेक इन इंडिया लक्ष्यों के साथ संरेखित संयुक्त उद्यमों पर केंद्रित है।
- सह-उत्पादन न केवल प्रौद्योगिकी अंतरण सुनिश्चित करता है बल्कि निर्भरता को भी कम करता है, जो भारत के वैश्विक रक्षा विनिर्माण केंद्र बनने के लक्ष्य के साथ संरेखित है।
- आर्कटिक सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा पहल का विस्तार: भारत को रूस के साथ संयुक्त आर्कटिक परियोजनाओं में शामिल होना चाहिये, जो उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) के माध्यम से ऊर्जा अन्वेषण और शिपिंग पर केंद्रित है।
- LNG अवसंरचना और ध्रुवीय नेविगेशन प्रशिक्षण में निवेश भारत के दीर्घकालिक ऊर्जा एवं व्यापार हितों को सुरक्षित करेगा।
- अक्तूबर 2024 आर्कटिक सहयोग कार्यसमूह ने ऊर्जा संसाधनों के आयात के लिये NSR का प्रयोग करने के भारत के उद्देश्य पर प्रकाश डाला, जिससे रणनीतिक और आर्थिक लाभ मिल सके।
- सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान को बढ़ावा: सांस्कृतिक कूटनीति और लोगों के बीच संबंधों का विस्तार दीर्घकालिक द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत कर सकता है।
- रूस में भारतीय सांस्कृतिक केंद्र स्थापित करने और रूसी छात्रों को भारत में अध्ययन करने के लिये प्रोत्साहित करने जैसी पहल सद्भावना का निर्माण कर सकती हैं।
- वर्ष 2024 में भारत द्वारा कज़ान और एकातेरिनबर्ग में दो नए वाणिज्य दूतावासों की घोषणा गहन शैक्षिक तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिये एक मंच प्रदान करती है।
- अक्षय ऊर्जा सहयोग पर ध्यान: भारत को सौर, पवन और हाइड्रोजन सहित अक्षय ऊर्जा में संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देकर रूस के साथ अपनी ऊर्जा साझेदारी में विविधता लानी चाहिये।
- यह रूस के साथ अपने ऊर्जा सहयोग को बनाए रखते हुए भारत के हरित संक्रमण लक्ष्यों के अनुरूप है।
- भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र 250 बिलियन डॉलर से अधिक निवेश आकर्षित करने के लिये तैयार है, जो रूस को भारत की हरित ऊर्जा महत्त्वाकांक्षाओं में भागीदार बनने के लिये पर्याप्त अवसर प्रदान करता है।
- क्षेत्र-विशिष्ट रणनीतियों के माध्यम से व्यापार घाटे को कम करना: व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिये, भारत को उन क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जहाँ उसे प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ हैं, जैसे कि IT सेवाएँ, वस्त्र और खाद्य प्रसंस्करण।
- भारतीय निर्यातकों के लिये रूस में विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थापित करने से निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
- सामरिक कूटनीति के साथ रूस-चीन गतिशीलता को नेविगेट करना: भारत को यह सुनिश्चित करने के लिये रूस के साथ युक्तिपूर्वक जुड़ना चाहिये कि रूस-चीन संबंधों के कारण उसके रणनीतिक हित प्रभावित न हों।
- आर्कटिक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, दुर्लभ मृदा तत्त्व और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में वैकल्पिक निवेश एवं सहयोग की पेशकश भारत की प्रासंगिकता बनाए रख सकती है।
- उर्वरक उत्पादन में संयुक्त उद्यम स्थापित करना: भारत कच्चे माल के निष्कर्षण में रूसी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए आयात पर अपनी निर्भरता कम करने के लिये भारत में उर्वरक विनिर्माण संयंत्र स्थापित करने में रूसी निवेश को आमंत्रित कर सकता है।
- वर्ष 2023 में, रूस से भारत के आयात में उर्वरकों की हिस्सेदारी 2.63 बिलियन डॉलर थी। उत्पादन को स्थानीय बनाने से लागत में कमी आएगी और भारत की कृषि आत्मनिर्भरता बढ़ेगी।
- साइबर सुरक्षा और डिजिटल सहयोग को बढ़ावा देना: डिजिटल प्रौद्योगिकियों पर बढ़ती वैश्विक निर्भरता को देखते हुए, भारत साइबर सुरक्षा फ्रेमवर्क, AI अनुसंधान और डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करने के लिये रूस के साथ साझेदारी कर सकता है।
- डेटा सुरक्षा प्रौद्योगिकियों में संयुक्त उद्यम द्विपक्षीय संबंधों में विविधता लाते हुए पारस्परिक लाभ सुनिश्चित कर सकते हैं।
- साइबर सुरक्षा उपकरणों में रूस की विशेषज्ञता भारत की बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था का पूरक है।
- रणनीतिक पर्यटन गठबंधनों को बढ़ावा देना: भारत और रूस विशेष यात्रा पैकेज, संयुक्त सांस्कृतिक उत्सव तथा सरलीकृत वीज़ा प्रक्रियाएँ बनाकर द्विपक्षीय पर्यटन को बढ़ावा दे सकते हैं।
- सीधे हवाई मार्गों और पर्यटन विपणन अभियानों का विस्तार लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा दे सकता है।
- यूरेशियन अध्ययनों पर केंद्रित अकादमिक अनुसंधान केंद्र बनाना: भारत रूसी राजनीति, संस्कृति और अर्थशास्त्र पर अध्ययन को बढ़ावा देने के लिये यूरेशियन अनुसंधान केंद्र स्थापित कर सकता है।
- ये केंद्र भारतीय नीति-निर्माताओं और व्यवसायों को रूस व उसके पड़ोसियों के बारे में सूचित निर्णय लेने के लिये मार्गदर्शन कर सकते हैं।
- जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय और रूसी विश्वविद्यालयों जैसे संस्थानों के बीच साझेदारी विद्वानों के आदान-प्रदान को बढ़ा सकती है, जिससे क्षेत्र की गहन समझ में योगदान मिल सकता है।
निष्कर्ष:
भारत-रूस संबंध बदलती वैश्विक व्यवस्था के बीच भारत की रणनीतिक विदेश नीति की आधारशिला है। यद्यपि रक्षा, ऊर्जा और बहुपक्षीय कूटनीति जैसे क्षेत्रों में साझेदारी लगातार बढ़ रही है, फिर भी व्यापार असंतुलन, रसद बाधाओं एवं रूस की चीन के साथ बढ़ती निकटता जैसी चुनौतियों से सावधानीपूर्वक निपटने की आवश्यकता है। आर्थिक संबंधों में विविधता लाकर, कनेक्टिविटी बढ़ाकर और उभरते क्षेत्रों में संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा देकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि रूस के साथ उसके संबंध मज़बूत बने रहें एवं वैश्विक कूटनीति में सकारात्मक योगदान दें।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "भारत-रूस संबंध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं, लेकिन बदलती वैश्विक गतिशीलता इस साझेदारी के लिये नई चुनौतियाँ और अवसर प्रस्तुत करती है।" चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. हाल ही में भारत ने निम्नलिखित में से किस देश के साथ 'नाभिकीय क्षेत्र में सहयोग क्षेत्रों के प्राथमिकीकरण और कार्यान्वयन हेतु कार्य योजना' नामक सौदे पर हस्ताक्षर किया है? (a) जापान उत्तर: (b) प्रश्न2. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। |