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  • 21 Oct, 2024
  • 28 min read
सामाजिक न्याय

भारत में बढ़ते जल संकट का समाधान

यह संपादकीय 21/10/2024 को इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित A major new report makes the case for water as a global common good पर आधारित है। लेख में वैश्विक जल संकट पर प्रकाश डाला गया है तथा चेतावनी दी गई है कि वर्ष 2030 तक मांग आपूर्ति से 40% अधिक हो सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है। भारत के लिये यह अंतर-राज्यीय जल विवादों और जल संरक्षण पर निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

प्रिलिम्स के लिये:

जल संसाधन प्रबंधन, 15वाँ वित्त आयोग, जल तनाव, NITI आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक, केंद्रीय जल आयोग, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जैवरासायनिक ऑक्सीजन मांग (BOD), केन-बेतवा लिंक परियोजना, कावेरी जल विवाद, सिंधु जल-संधि, तीस्ता नदी, जल शक्ति अभियान, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, केंद्रीय भूजल बोर्ड, मिशन अमृत सरोवर  

मेन्स के लिये:

भारत में जल उपलब्धता और जल तनाव स्तर की वर्तमान स्थिति, भारत के समक्ष प्राथमिक जल-संबंधी चुनौतियाँ। 

‘ग्लोबल कमिशन ऑन द इकोनाॅमिक्स ऑफ वाटर’ की एक हालिया रिपोर्ट में वैश्विक जल संकट की चेतावनी दी गई है, जिसमें वर्ष 2030 तक मांग आपूर्ति से 40% अधिक होने का अनुमान है, जिससे खाद्य उत्पादन और अर्थव्यवस्थाओं को खतरा है। भारत के लिये जो पहले से ही अंतर-राज्यीय जल विवादों और संरक्षण चुनौतियों से जूझ रहा है, यह रिपोर्ट जल संकट को दूर करने के लिये निर्णायक नीति सुधारों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करती है।

भारत में जल उपलब्धता और जल तनाव स्तर की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • उपलब्धता की वर्तमान स्थिति:
    • भारत में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता वर्ष 2001 में 1,816 घन मीटर से घटकर 2011 की जनगणना के अनुसार 1,545 घन मीटर हो गई।
    • केंद्रीय जल आयोग के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2025 तक जलस्तर और घटकर 1,434 घन मीटर तथा वर्ष 2050 तक 1,219 घन मीटर हो जाएगा।
  • जल तनाव संकेतक:
    • प्रति व्यक्ति वार्षिक जल उपलब्धता 1,700 घन मीटर से कम होना ‘जल तनाव’ को दर्शाता है, जबकि 1,000 घन मीटर से कम होना ‘जल की कमी’ को दर्शाता है।
      • वर्तमान में भारत जल संकट का सामना कर रहा तथा भौगोलिक और जलवायु संबंधी विविधता के कारण क्षेत्रीय असमानताएँ उत्पन्न हो रही हैं।
    • 15वें वित्त आयोग के अनुसार, वर्ष 2020 में लगभग 600 मिलियन भारतीयों को उच्च से लेकर चरम जल तनाव का सामना करना पड़ा।

भारत के समक्ष जल-संबंधी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • भूजल की कमी: भारत, विशेष रूप से कृषि प्रधान राज्यों में, भूजल की गंभीर कमी का सामना कर रहा है। 
    • सिंचाई के लिये अत्यधिक दोहन के कारण भूजल स्तर में तेज़ी से गिरावट आई है। उदाहरण के लिये पंजाब में, ट्यूबवेल से अनियंत्रित सिंचाई के कारण भूजल स्तर में भारी गिरावट आ रही है। 
      • आदर्श रूप से, भूजल 50 फीट से 60 फीट की गहराई पर उपलब्ध होना चाहिये, लेकिन पंजाब में (वर्ष 2019 तक) इसका स्तर ज़्यादातर स्थानों पर 150 फीट से 200 फीट नीचे चला गया गया है। 
    • यह मुद्दा गंभीर है क्योंकि भूजल सिंचाई और घरेलू जल आपूर्ति दोनों का प्रमुख स्रोत है।
  • शहरी जल संकट: तेज़ी से हो रहे शहरीकरण ने भारतीय शहरों में जल संकट को बढ़ा दिया है। 
    • NITI आयोग का समग्र जल प्रबंधन सूचकांक से पता चला है कि लगभग 600 मिलियन लोग उच्च से लेकर चरम जल संकट का सामना कर रहे हैं।
    • वर्ष 2019 का चेन्नई जल संकट, जहाँ जल का ट्रेन से परिवहन करना पड़ा था, शहरी जल मुद्दों की गंभीरता का उदाहरण है। 
    • वर्ष 2023 में अपर्याप्त वर्षा के कारण कर्नाटक राज्य में, विशेषकर इसकी राजधानी, IT शहर बंगलुरु में जल संकट उत्पन्न हो गया। 
      • कर्नाटक सरकार ने वर्ष 2023 को सूखा वर्ष घोषित किया है। 
    • इसके अलावा, शहरी बाढ़ भी एक गंभीर मुद्दा बनती जा रही है। केंद्रीय जल आयोग ने वर्ष 2022 में 184 और वर्ष 2021 में 145 चरम और गंभीर बाढ़ की स्थिति दर्ज की।
      • CAG रिपोर्ट (2024) ने संकेत दिया कि बाढ़ प्रबंधन पर विभिन्न समितियों की कई सिफारिशें अधूरी रह गई हैं, जो पूर्वानुमान और कार्यान्वयन में अंतराल को उजागर करती हैं।
  • सिंचाई दक्षता और कृषि जल उपयोग: केंद्रीय जल आयोग के अनुसार, कृषि में भारत के जल संसाधनों का लगभग 78% हिस्सा व्यय होता है, जो प्रायः अकुशल तरीके से होता है। 
    • जल-प्रधान फसलों की ओर रुझान तथा परंपरागत सिंचाई पद्धतियाँ जल-तनाव में योगदान करती हैं। 
    • NITI आयोग के अनुसार भारतीय किसान समान फसल उत्पादन के लिये अमेरिका, चीन या इज़रायल के किसानों की तुलना में तीन से पाँच गुना अधिक जल का प्रयोग करते हैं।
    • हाल के अनुमानों के अनुसार, भारत की सिंचाई दक्षता लगभग 38% है, जो वैश्विक औसत 50-60% से काफी कम है, जो ‘जल-कुशल सिंचाई प्रौद्योगिकियों’ और ‘फसल विविधीकरण’ को व्यापक रूप से अपनाने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता को दर्शाती है ।
  • जल प्रदूषण और नदी पुनरुद्धार: भारत की नदियाँ, विशेषकर गंगा, अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्टों से गंभीर प्रदूषण का सामना कर रही हैं। 
    • गंगा के किनारे बसे 100 से अधिक कस्बे और शहरों द्वारा घरेलू सीवेज के माध्यम से नदी में अपशिष्ट उत्सर्जन किया जाता हैं। 
    • वर्ष 2022 में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने वर्ष 2019 और 2021 के दौरान 3 मिलीग्राम/लीटर से अधिक जैव रासायनिक ऑक्सीज़न मांग (BOD) के स्तर के आधार पर 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 279 नदियों में 311 प्रदूषित नदी खंडों की पहचान की।
    • जल संसाधन संबंधी स्थायी समिति ने जैव-चिकित्सीय अपशिष्ट, निर्माण-मलबे और अनुपचारित सीवेज के कारण यमुना नदी में भारी प्रदूषण पर प्रकाश डाला।
    • जल संसाधनों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन बाढ़ और अनावृष्टि जैसी चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति तथा तीव्रता को बढ़ाकर भारत में जल की समस्या में वृद्धि में योगदान कर रहा है।
    • देश की मानसूनी बारिश पर निर्भरता, जो लगातार अनियमित होती जा रही है, इस कमज़ोरी को और बढ़ा देती है। 
    • उदाहरण के लिये, वर्ष 2023 के मानसून सीज़न में पूरे भारत में वर्षा में अत्यधिक विविधता देखी गई, कुछ क्षेत्रों में भयंकर बाढ़ आई, जबकि अन्य क्षेत्रों को अनावृष्टि जैसी स्थिति का सामना करना पड़ा। 
      • वर्ष 2024 में मानसून सत्र के औसत से 7.6% अधिक वर्षा के साथ समाप्त होने के बावजूद, अपर्याप्त जल प्रबंधन के कारण जल संकट बढ़ता जा रहा है।
  • विखंडित शासी तंत्र और खराब समन्वय: भारत में जल क्षेत्र कई प्राधिकरणों से ग्रस्त है जिनके अधिकार क्षेत्र एक-दूसरे से मेल नहीं खाते हैं- जिनमें जल शक्ति मंत्रालय, राज्य जल बोर्ड, नगर निगम और पंचायतें शामिल हैं। 
    • उदाहरण के लिये, अकेले दिल्ली में ही सात अलग-अलग एजेंसियाँ ​​जल प्रबंधन का कार्य सँभालती हैं, जिसके कारण समन्वय में विफलता होती है। 
    • राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (वर्ष 1980) के अंतर्गत 30 नदी लिंक परियोजनाओं का अभिनिर्धारण किया है ।
      • अब तक केवल केन-बेतवा लिंक परियोजना को ही मंज़ूरी मिली है, जिसके मार्च 2030 तक पूरा होने की उम्मीद है, जो सरकार के विभिन्न स्तरों में समन्वय की कमी को उजागर करता है। 
    • अंतर-राज्यीय जल विवाद: भारत में लंबे समय से कई अंतर-राज्यीय जल विवाद चल रहे हैं, जो जल की कमी बढ़ने के साथ-साथ और भी विवादास्पद हो गए हैं। 
      • कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल विवाद इसका एक प्रमुख उदाहरण है। कर्नाटक और तमिलनाडु एक बार फिर कावेरी नदी के अतिरिक्त जल को साझा करने के लिये संघर्ष में हैं, कर्नाटक ने इस मानसून में 32% अधिक वर्षा का हवाला देते हुए भविष्य में जारी होने वाले अधिशेष जल को समायोजित करने का अनुरोध किया है। 
      • हालाँकि तमिलनाडु सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2018 के निर्णय का सख्ती से पालन करने पर ज़ोर दे रहा है, जिससे नए सिरे से तनाव उत्पन्न हो रहा है।
    • कृष्णा-गोदावरी विवाद एक और बड़ा मुद्दा है। ये विवाद अधिक प्रभावी अंतर-राज्यीय जल प्रशासन तंत्र और बेसिन-व्यापी प्रबंधन दृष्टिकोण की आवश्यकता को उजागर करते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय जल बँटवारे की चुनौतियाँ: भारत अपने कई नदी बेसिनों को पड़ोसी देशों के साथ साझा करता है, जिसके कारण सीमा पार जटिल जल मुद्दे उत्पन्न होते हैं। 
    • पाकिस्तान के साथ वर्ष 1960 में हस्ताक्षरित सिंधु जल-संधि हाल के वर्षों में तनाव में रही है। 
      • वर्ष 2023 में, भारत ने जलविद्युत परियोजनाओं पर विवादों को हल करने में पाकिस्तान के ‘अड़ियल रवैये’ का हवाला देते हुए संधि को संशोधित करने के लिये एक नोटिस जारी किया। 
    • भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी जल बँटवारे का मुद्दा वर्षों की वार्ता के बावजूद अनसुलझा है, जो बांग्लादेश में हाल के राजनीतिक तनावों के कारण और भी जटिल हो गया है।
    • चीन के साथ ब्रह्मपुत्र के लिये व्यापक जल-संधि का अभाव विशेष रूप से चीन की बाँध निर्माण गतिविधियों को देखते हुए एक अन्य प्रमुख चिंता का विषय है।  
    • इन अंतर्राष्ट्रीय जल चुनौतियों के लिये कूटनीतिक कुशलता की आवश्यकता है तथा दक्षिण एशिया में अधिक सुदृढ़ सीमा पार जल सहयोग फ्रेमवर्क की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।

जल संरक्षण और वर्षा जल संचयन के लिये भारत सरकार ने क्या महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं?

  • राष्ट्रीय जल नीति (वर्ष2012): यह नीति वर्षा जल संचयन और संरक्षण का समर्थन करती है तथा प्रत्यक्ष वर्षा उपयोग के माध्यम से जल उपलब्धता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल देती है।
  • जल शक्ति अभियान (JSA): वर्ष 2019 में शुरू किये गए इस अभियान का उद्देश्य देश भर में जल संरक्षण और संचयन को बढ़ावा देना है। वर्तमान चरण, जल शक्ति अभियान: कैच द रेन (JSA: CTR) 2024, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों सहित सभी ज़िलों में वर्षा जल संचयन अवसंरचनाओं के निर्माण एवं मरम्मत पर केंद्रित है। 
  • अटल भूजल योजना: 7 राज्यों (हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश) के 80 ज़िलों में 8,213 जल-संकटग्रस्त ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित यह योजना भूजल विकास से ध्यान हटाकर संधारणीय प्रबंधन प्रथाओं पर केंद्रित है।
  • आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा शहरी दिशा-निर्देश: दिल्ली के एकीकृत भवन उपविधि (UBBL) (वर्ष 2016) और मॉडल भवन उपविधि (MBBL) (वर्ष 2016) जैसे दिशा-निर्देश स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप वर्षा जल संचयन एवं संरक्षण उपायों को अनिवार्य बनाते हैं।
  • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY): सिंचाई की पहुँच और दक्षता में सुधार लाने के उद्देश्य से PMKSY में तीन घटक शामिल हैं:

  • मिशन अमृत सरोवर: यह मिशन जल संचयन और संरक्षण को सुविधाजनक बनाने के लिये प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम 75 अमृत सरोवरों (जल निकायों) के निर्माण तथा पुनरुद्धार पर केंद्रित है।
  • राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण (NAQUIM): केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) ने लगभग 25 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र को शामिल करते हुए इस परियोजना को पूरा किया।  
    • विकसित प्रबंधन योजनाओं में पुनर्भरण संरचनाओं के माध्यम से विभिन्न जल संरक्षण उपाय शामिल हैं।

भारत में अधिक प्रभावी जल प्रबंधन के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • सिंचाई प्रणालियों का आधुनिकीकरण: ड्रिप और स्प्रिंकलर प्रणालियों जैसी उपयुक्त सिंचाई तकनीकों को लागू करने से कृषि में जल उपयोग दक्षता में उल्लेखनीय सुधार हो सकता है।
    • पंजाब सरकार की “पानी बचाओ, पैसा कमाओ” योजना, जो किसानों को भूजल उपयोग कम करने के लिये प्रोत्साहित करती है, एक आशाजनक मॉडल है। 
    • राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी पहलों को बढ़ावा देने के साथ-साथ जल की अधिक खपत वाली फसलों से हटकर फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने से कृषि-जल की खपत में बहुत हद तक कमी आ सकती है। सरकार कृषि सब्सिडी को जल-कुशल प्रथाओं से जोड़ने पर विचार कर सकती है ताकि इसे अपनाने में तेज़ी लाई जा सके।
  • शहरी जल प्रबंधन और पुनर्चक्रण: शहरों को जल की हानि को कम करने, वाॅटर मीटरिंग को लागू करने और जल पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
    • औद्योगिक प्रयोग के लिये अपशिष्ट जल को पुनःचक्रित करने की चेन्नई की पहल अनुकरणीय आदर्श है।
      • शहर के तृतीयक उपचार रिवर्स ऑस्मोसिस (TTRO) संयंत्र चेन्नई के लगभग 20% सीवेज को पुनर्चक्रित करते हैं, जिससे अलवण जल की खपत कम होती है।
    • अन्य शहरों को भी इसी प्रकार का दृष्टिकोण अपनाना चाहिये तथा शहरी नियोजन में जल पुनर्चक्रण को एकीकृत करना चाहिये।
      • इज़रायल के सफल शफदान फैसिलिटी मॉडल को भारतीय शहरों के लिये भी अपनाया जा सकता है।
  • शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन को लागू करना चाहिये, जैसा कि बंगलुरु जैसे शहरों में अनिवार्य है, जल संसाधनों को भी महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ा सकता है। स्मार्ट जल प्रबंधन प्रणालियों और रिसाव का पता लगाने वाली तकनीकों के साथ मिलकर ये उपाय शहरी जल सुरक्षा में सुधार कर सकते हैं।
  • समुदाय-आधारित भूजल प्रबंधन: भूजल संसाधनों के प्रबंधन के लिये स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने से संधारणीय प्रयोग को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • अटल भूजल योजना विश्व के सबसे बड़े समुदाय-नेतृत्व वाले भूजल प्रबंधन कार्यक्रमों में से एक है। यह ग्रामीणों को जल की उपलब्धता और उपयोग के पैटर्न को समझने में मदद करता है ताकि वे जल के उपयोग का बजट बना सकें। इस कार्यक्रम का विस्तार करने और इसे जलभृत मानचित्रण के लिये रिमोट सेंसिंग और GIS जैसी तकनीकों के साथ एकीकृत करने से स्थानीय स्तर पर अधिक सूचित निर्णय लेने में मदद मिल सकती है। 
    • इसे जागरूकता अभियानों और स्थानीय जल उपयोगकर्त्ता संघों की क्षमता निर्माण के साथ जोड़कर दीर्घकालिक स्थिरता सुनिश्चित की जा सकती है।
  • जल-संवेदनशील अवसंरचना डिज़ाइन: शहरी नियोजन में ब्लू-ग्रीन अवसंरचना मॉडल जैसे जल-संवेदनशील डिज़ाइन सिद्धांतों को शामिल करने से जल प्रबंधन में काफी सुधार हो सकता है। 
    • इसमें भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने के लिये पारगम्य सतहों का निर्माण, प्राकृतिक जल उपचार के लिये शहरी आर्द्रभूमि का विकास तथा शहरी भूदृश्य के साथ स्टॉर्मवाटर प्रबंधन को एकीकृत करना शामिल है। 
    • उदाहरण के लिये, 330 पारंपरिक जल आपूर्ति स्रोतों (कुओं और बावड़ियों) को पुनर्जीवित करने के इंदौर के प्रयासों से न केवल जल की उपलब्धता में सुधार हुआ है, बल्कि शहरी पर्यावरण में भी सुधार हुआ है। 
    • भारत भर में शहरी विकास नीतियों और नगरपालिका उपनियमों में इन दृष्टिकोणों को मुख्यधारा में लाने से अधिक जल-सहिष्णु शहर बन सकते हैं।
    • सभी नए जल अवसंरचना के लिये जलवायु तनाव परीक्षण और अनुकूली डिज़ाइन को अधिदेशित किया जाना चाहिये। चीन के सफल मॉडल से अनुकूलित "स्पंज सिटी" अवधारणाओं को लागू किया जाना चाहिये। 
  • जल भंडारण और पुनर्भरण में वृद्धि: भारत के मानसून पर निर्भर जल चक्र को देखते हुए, जल भंडारण में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • इसका अर्थ आवश्यक रूप से बड़े बाँध नहीं है, बल्कि छोटे, विकेंद्रित भंडारण संरचनाओं का एक नेटवर्क है। 
    • राजस्थान के जल स्वावलंबन अभियान की सफलता, जिसके तहत अनेक छोटी जल संचयन संरचनाएँ बनाई गईं, इस दृष्टिकोण की क्षमता को प्रदर्शित करती है। 
    • इससे भूजल का पुनर्भंडारण करने और शुष्क क्षेत्रों में जल की उपलब्धता में सुधार करने में मदद मिली है। साइट चयन और डिज़ाइन के लिये आधुनिक तकनीक के साथ पारंपरिक जल संचयन विधियों को मिलाकर देश भर में एक सुदृढ़, स्थानीय रूप से अनुकूलित जल भंडारण नेटवर्क बनाया जा सकता है।
  • डेटा-संचालित जल प्रबंधन: जल प्रबंधन में रियल टाइम मॉनिटरिंग और डेटा-संचालित निर्णय लेने के लिये प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना आवश्यक है। 
    • विश्व बैंक द्वारा समर्थित राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना ने ऐसी प्रणालियाँ शुरू की हैं जो जलाशय प्रबंधकों को सटीक, रियल टाइम जानकारी देती हैं।
    • इसे सभी प्रमुख जल निकायों तक विस्तारित करने तथा इसे AI और मशीन लर्निंग के साथ एकीकृत करने से जल प्रबंधन में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, बोरवेल की निगरानी के लिये बंगलुरु में IoT उपकरणों के उपयोग से जल वितरण दक्षता में सुधार हुआ है। 
    • ऐसी प्रणालियों के राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन से अधिक संवेदनशील और कुशल जल प्रबंधन हो सकता है।
  • स्मार्ट जल मूल्य निर्धारण सुधार: उपलब्धता, गुणवत्ता और उपयोग पैटर्न के आधार पर गतिशील जल मूल्य निर्धारण लागू करना।
    • सिंगापुर के स्तरीय मूल्य निर्धारण मॉडल को अपनाया जा सकता है। वास्तविक समय मूल्य निर्धारण को लागू करने के लिये AI-संचालित विश्लेषण के साथ स्मार्ट मीटर का उपयोग किये जाने चाहिये। 
    • इसके अलावा, प्रौद्योगिकी सहायता के साथ सख्त औद्योगिक जल पुन: उपयोग आवश्यकताओं को लागू किये जाने चाहिये। संक्रमण के लिये तकनीकी सहायता और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किये जाने चाहिये। उद्योगों और कृषि के बीच जल पुन: उपयोग बाज़ार स्थापित किये जाने चाहिये।

निष्कर्ष: 

जल संकट की तात्कालिकता भारत सरकार से निर्णायक कार्रवाई और जल प्रबंधन प्रथाओं को बेहतर बनाने के लिये सामूहिक प्रयास की मांग करती है। प्रभावी शासन, सामुदायिक भागीदारी और तकनीकी प्रगति पर ज़ोर देना वर्तमान जल-संबंधी बाधाओं को दूर करने और देश के लिये एक अनुकूल जल प्रबंधन फ्रेमवर्क को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण होगा। यह सतत् विकास लक्ष्य 6 (SDG 6) के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य सभी के लिये जल और स्वच्छता की उपलब्धता एवं संधारणीय प्रबंधन सुनिश्चित करना है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. "भारत में जल की कमी और प्रबंधन एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरी है, जो शहरीकरण, जलवायु परिवर्तन और जनसंख्या वृद्धि जैसे कारकों के कारण और भी गंभीर हो गई है।" देश में स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ाने के लिये क्या समाधान लागू किये जा सकते हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. निम्नलिखित में से कौन-सा प्राचीन नगर अपने उन्नत जल संचयन और प्रबंधन प्रणाली के लिये सुप्रसिद्ध है, जहाँ बाँधों की  शृंखला का निर्माण किया गया था और संबद्ध जलाशयों में नहर के माध्यम से जल को प्रवाहित किया जाता था?  (2021)   

(a) धौलावीरा       
(b) कालीबंगा
(c) राखीगढ़ी       
(d) रोपड़

उत्तर: (a)


प्रश्न 2.  ‘वाटरक्रेडिट’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये- (2021)  

  1. यह जल एवं स्वच्छता क्षेत्र में कार्य के लिये सूक्ष्म वित्त साधनों (माइक्रोफाइनेंस टूल्स) को लागू करता है।
  2. यह एक वैश्विक पहल है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन और विश्व बैंक के तत्त्वावधान में प्रारंभ किया गया है। 
  3. इसका उद्देश्य निर्धन व्यक्तियों को सहायिकी के बिना अपनी जल-संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सक्षम बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सेे सही हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b)  केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3  
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C


मेन्स 

प्रश्न 1. जल संरक्षण एवं जल सुरक्षा हेतु भारत सरकार द्वारा प्रवर्तित जल शक्ति अभियान की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? (2020)

प्रश्न 2. रिक्तीकरण परिदृश्य में विवेकी जल उपयोग के लिये जल भंडारण और सिंचाई प्रणाली में सुधार के उपायों को सुझाइए। (2020)


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