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  • 19 Sep, 2024
  • 54 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

भारतीय रेलवे के भविष्य का पुन: अनुमार्गण

यह संपादकीय 14/09/2024 को इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित “Roadblocks to Indian Railways’ ‘Mission 3,000 MT” पर आधारित है। लेख में भारतीय रेलवे के माल परिवहन हिस्से में उल्लेखनीय गिरावट और भारत की सकल शून्य महत्त्वाकांक्षाओं पर इसके प्रभाव को रेखांकित किया गया है। यह वर्ष 2030-31 तक राष्ट्रीय रेल योजना के माल ढुलाई लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सामरिक सुधारों और क्षमता वृद्धि की आवश्यकता पर बल देता है।

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रेलवे, राष्ट्रीय रेल योजना, समर्पित माल गलियारे, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान, भारत गौरव ट्रेनें, भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक, कवच, बालासोर रेल दुर्घटना  

मेन्स के लिये:

भारत के लिये रेलवे का महत्त्व, भारतीय रेलवे से संबंधित प्रमुख मुद्दे। 

विश्व के चौथे सबसे बड़े रेल नेटवर्क का संचालन करने वाली भारतीय रेलवे को देश के परिवहन क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 1950 के बाद से मार्ग किलोमीटर और रेलपथ की लंबाई में वृद्धि के बावजूद, माल परिवहन में इसकी हिस्सेदारी वर्ष 1951 के 85% से नाटकीय रूप से घटकर वर्ष 2022 में 30% से भी कम हो गई है। यह गिरावट भारत की सकल-शून्य महत्त्वाकांक्षाओं और परिवहन क्षेत्र को वि-कार्बनीकृत करने के प्रयासों के लिये एक गंभीर चुनौती है। राष्ट्रीय रेल योजना का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक माल परिवहन में 45% रेल हिस्सेदारी को लक्षित करके इस प्रवृत्ति को व्युत्क्रमित करना है, जिसका महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य 3,600 मिलियन टन माल भारण है।

यद्यपि, रेलवे के प्रदर्शन संकेतक चिंताजनक प्रवृत्ति को प्रदर्शित करते हैं। यात्री और माल ढुलाई की वृद्धि दर धीमी हो गई है, विशेषकर बारहवीं पंचवर्षीय योजना अवधि (वर्ष 2012-13 से वर्ष 2016-17) के दौरान, जो जीडीपी और यातायात प्रदर्शन के बीच अलगाव को प्रदर्शित करता है। अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये, भारतीय रेलवे को अपनी व्यावसायिक कार्यनीतियों को परिवर्तित करने, राजस्व स्रोतों में विविधता लाने तथा क्षमता बाधाओं और सेवा गुणवत्ता के मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है।

भारत के लिये रेलवे का क्या महत्त्व है? 

  • आर्थिक रीढ़: भारतीय रेलवे भारत के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा आपूर्ति शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी के रूप में कार्य करती है। 
    • इसने वर्ष 2022-23 में 1,512 मिलियन टन माल का परिवहन किया, जिससे औद्योगिक और कृषि विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान मिला। 
    • समर्पित माल गलियारों (DFC) की स्थापना से उच्च धुरा भार वाली ट्रेनों के उपयोग के माध्यम से रसद लागत में कमी आने की उम्मीद है।
  • भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में चालक: यद्यपि भारत वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से 45% तक कम करने के अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) लक्ष्य को पूरा करने का प्रयास कर रहा है, जिसके परिणामस्वरूप रेलवे संवहनीय परिवहन में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में उभर रहा है। 
    • रेल परिवहन सड़क परिवहन की तुलना में काफी अधिक ऊर्जा कुशल है, रेल माल ढुलाई प्रति टन किलोमीटर सड़क परिवहन के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का पाँचवें हिस्से से भी कम उत्सर्जन करती है
    • माल परिवहन के लिये सड़क से रेल की ओर स्थित्यंतर भारत के जलवायु लक्ष्यों में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
  • वहनीय गतिशीलता: भारतीय रेलवे लाखों भारतीयों को वहनीय परिवहन सुविधा प्रदान करके सामाजिक समानता के प्रस्तोता के रूप में कार्य करती है। 
    • अप्रैल-जनवरी 2023 के दौरान यात्री खंड में रेलवे के राजस्व आय में 73% की वृद्धि हुई है।
    • रेलवे की स्तरीकृत मूल्य निर्धारण प्रणाली सभी आर्थिक स्तरों पर अभिगम्यता को सुनिश्चित करती है।
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और एकीकरण का अवलंबन: रेलवे राष्ट्रीय सुरक्षा और एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
    • सीमावर्ती क्षेत्रों में सैनिकों और उपकरणों के तीव्र आवागमन के लिये ये महत्त्वपूर्ण हैं। बिलासपुर-मनाली-लेह रेल लाइन जैसी परियोजनाओं के सामरिक महत्त्व स्पष्ट है, जो लद्दाख क्षेत्र को सभी मौसमों में संपर्क प्रदान करेगी। 
    • इसके अतिरिक्त, रेलवे सांस्कृतिक विनिमय और पर्यटन को सुविधाजनक बनाकर राष्ट्रीय एकीकरण को संवर्द्धित भी करती है। 
      • भारत की सांस्कृतिक विरासत को प्रदर्शित करने वाली हाल ही में शुरू की गई भारत गौरव ट्रेनें इस बात का उदाहरण हैं कि रेलवे किस प्रकार राष्ट्रीय अस्मिता और पर्यटन में योगदान देती है।
  • शहरी जीवन रेखा : रेलवे आधारित शहरी परिवहन प्रणालियाँ भारत के शहरों को नया आकार प्रदान कर रही हैं। विगत् 10 वर्षों में, 700 किलोमीटर नई मेट्रो लाइनें चालू की गई हैं, जिससे कुल परिचालन लंबाई 945 किलोमीटर हो गई है और देश भर के 21 शहरों तक मेट्रो सेवाएँ विस्तारित हुई हैं।
    • ये प्रणालियाँ सतत् शहरी विकास, यातायात भीड़भाड़ और वायु प्रदूषण को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं। 
    • उदाहरण के लिये, दिल्ली मेट्रो, जो प्रतिदिन लगभग 6.5 मिलियन यात्रियों को ले जाती है, ने वार्षिक CO2 उत्सर्जन को  कम करने में सहायता की है।
    • अन्य परिवहन साधनों के साथ मेट्रो प्रणालियों के एकीकरण से कुशल शहरी गतिशीलता पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो रहा है।
  • शहरी-ग्रामीण विभाजन का सेतु-बंधन: रेलवे संतुलित क्षेत्रीय विकास के लिये उत्प्रेरक का कार्य करता है। पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे के विस्तार जैसी परियोजनाओं ने आर्थिक गतिविधियों के लिये दूरदराज़ के क्षेत्रों को खोल दिया है। 
    • 111 किलोमीटर लंबी ज़िरीबाम -इंफाल रेलवे लाइन, एक बार पूरी हो जाने पर, मणिपुर की संयोजकता और अर्थव्यवस्था के लिये एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम सिद्ध होगी। 
    • ऐसी परियोजनाएँ न केवल संयोजकता में सुधार करती हैं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और स्थानीय उद्योगों में सहायक विकास भी लाती हैं, जिससे शहरी-ग्रामीण अंतर को कम करने में सहायता मिलती है।

भारतीय रेलवे से संबंधित प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • माल परिवहन में मॉडल हिस्सेदारी में गिरावट: भारतीय रेलवे ने माल परिवहन में अपनी हिस्सेदारी में उल्लेखनीय गिरावट का अनुभव किया है, जो वर्ष 1951 में 85% से घटकर वर्ष 2022 में 30% से भी कम हो गया है। 
    • यह  स्थित्यंरण भारत के पर्यावरणीय लक्ष्यों और परिवहन क्षेत्र की दक्षता के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करता है। 
    • राष्ट्रीय रेल योजना का लक्ष्य वर्ष 2030-31 तक रेल की माल ढुलाई हिस्सेदारी को 45% तक बढ़ाना है, परंतु वर्तमान अनुमान कम है।
      • उदाहरण के लिये, आशावादी 7% CAGR के साथ भी, वार्षिक माल लदान वर्ष 2030-31 तक केवल 2,598 मीट्रिक टन तक पहुँचने का अनुमान है, जो 3,600 मीट्रिक टन के लक्ष्य से बहुत कम है। 
      • यह गिरावट परिवर्तित होती आर्थिक संरचनाओं और परिवहन आवश्यकताओं के मद्देनजर प्रतिस्पर्द्धात्मकता और अनुकूलनशीलता के व्यापक मुद्दों को प्रदर्शित करती है।
  • वित्तीय प्रदर्शन और परिचालन अनुपात: रेलवे की वित्तीय स्थिति अपकर्षित होती जा रही है, जैसा कि इसके बढ़ते परिचालन अनुपात (OR) से स्पष्ट है। 
    • OR वर्ष 2006-07 में 78.7% के निम्न स्तर से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 100% की सीमा को पार कर गया है। 
      • इसका अर्थ यह है कि भारतीय रेलवे अपनी आय से अधिक व्यय कर रही है, जिससे इसकी वित्तीय स्थिरता को लेकर गंभीर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं। 
    • भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने भी इस बात पर चिंता व्यक्त की है कि रिपोर्ट की गई OR वास्तविक वित्तीय प्रदर्शन को प्रतिबिंबित नहीं कर सकती है।
      • उदाहरण के लिये, वर्ष 2019-20 में, यदि वास्तविक पेंशन व्यय पर विचार किया जाता, तो OR रिपोर्ट किये गए 98.36% के बजाय 114.35% होता, जो आधिकारिक तौर पर स्वीकृत तुलना में अधिक गंभीर वित्तीय तनाव को प्रदर्शित करता है।
  • राजस्व के लिये कोयले पर अत्यधिक निर्भरता: भारतीय रेलवे अपने माल ढुलाई राजस्व के लिये कोयला परिवहन पर बहुत अधिक निर्भर है। वर्ष 2021-22 में माल ढुलाई आय में कोयले का योगदान 47% था। 
    • यह अति-निर्भरता एक बड़ा खतरा उत्पन्न करती है, क्योंकि भारत नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ रहा है। 
    • विद्युत मंत्रालय के हाल के निर्देश (जनवरी 2023) के तहत कुछ राज्यों में कोयला परिवहन के लिये "रेल-जहाज-रेल" मोड का उपयोग करने से कोयला परिवहन से होने वाले राजस्व में और कमी आ सकती है। 
      • माल ढुलाई राजस्व स्रोतों में विविधता का अभाव भारतीय रेलवे को ऊर्जा नीति और बाज़ार की मांग में परिवर्तन के प्रति सुभेद्य बनाता है, जिससे इसकी दीर्घकालिक वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • क्षमता संबंधी बाधाएँ और आधारिक संरचना की सीमाएँ: वर्ष 1950-51 में रेलपथ की लंबाई 51,315 किमी से बढ़ाकर वर्ष 2021-22 में 102,831 किमी करने के बावजूद, भारतीय रेलवे को महत्त्वपूर्ण क्षमता संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है। 
    • इससे इसकी बढ़ती परिवहन मांगों को पूरा करने और अन्य साधनों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • नेटवर्क विस्तार की गति अर्थव्यवस्था में  समग्र माल ढुलाई मांग की वृद्धि के अनुरूप नहीं रही है।
    • इससे माल ढुलाई में रेलवे की हिस्सेदारी घट रही है, विशेष रूप से थोक वस्तुओं के मामले में। 
    • उदाहरण के लिये, मूल्य अस्थिरता के बावजूद, सीमेंट परिवहन में रेलवे की हिस्सेदारी वर्ष 2005-06 से वर्ष 2019-20 तक घट गई, जो यह प्रदर्शित करता है कि मूल्य निर्धारण से परे कारक, जैसे क्षमता और सेवा की गुणवत्ता, माल प्रेषित करने वालों की पसंद को प्रभावित कर रहे हैं।
  • तकनीकी अनुकूलन में विलंबता: भारतीय रेलवे को नई प्रौद्योगिकियों को अंगीकृत करने और उभरती बाज़ार मांगों को पूरा करने के लिये अपने परिचालन को आधुनिक बनाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • अन्य वस्तुओं के साथ कंटेनर सेवा, माल लदान में केवल 12% का योगदान देती है तथा स्थिर बनी हुई है। 
    • इससे यह संकेत मिलता है कि माल ढुलाई के परिवर्तित होते प्रारूप के अनुकूलन में देरी हो रही है, विशेष रूप से ऑटोमोबाइल जैसे उच्च मूल्य वाले क्षेत्रों में। 
    • कवच, एक स्वचालित रेल सुरक्षा प्रणाली है जिसका उद्देश्य एक ही रेलपथ पर संघट्ट को रोकना है, परंतु इसका कार्यान्वयन अभी तक बड़े पैमाने पर नहीं किया गया है।
      • भारतीय रेलवे द्वारा इस उपकरण का परिनियोजन आरंभ किये 4 वर्ष हो चुके हैं, फिर भी अगस्त 2024 के प्रारंभ तक कवच को दक्षिण मध्य रेलवे के केवल 1,456 किलोमीटर क्षेत्र में ही स्थापित किया जा सका था, जो राष्ट्रीय रेल नेटवर्क का  मात्र 3% है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और रेल अवपथन: भारतीय रेलवे सुरक्षा संबंधी मुद्दों, विशेषकर अवपथन की घटनाओं से जूझ रही है। 
    • वर्ष 2022-23 तक समाप्त होने वाली पांच वर्ष की अवधि में हर वर्ष औसतन 44 परिणामी रेल दुर्घटनाएँ हुई हैं।
      • जून 2023 में बालासोर रेल दुर्घटना और अगस्त 2024 में साबरमती एक्सप्रेस दुर्घटना ने निरंतर सुरक्षा संबंधी दोषों को प्रकट किया है। 
    • दुर्घटनाओं के पीछे योगदान देने वाले कारकों में पुरानी रेलपथ आधारिक संरचना, मानवीय त्रुटि और सिग्नल विफलताएँ शामिल हैं। 
      • रेलवे का "शून्य दुर्घटना" का लक्ष्य अभी भी अप्राप्य है, जिसके लिये रेलपथ नवीनीकरण, आधुनिक सिग्नलिंग प्रणाली और उन्नत सुरक्षा प्रोटोकॉल पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • हाई-स्पीड रेल परियोजनाओं में धीमी प्रगति: भारत की महत्त्वाकांक्षी हाई-स्पीड रेल परियोजनाओं, विशेषकर मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन कॉरिडोर को काफी विलंबता और लागत वृद्धि का सामना करना पड़ा है। 
    • मूल रूप से इस परियोजना को वर्ष 2023 तक कार्यान्वित करने की योजना थी, परंतु भूमि अधिग्रहण संबंधी समस्याओं के कारण इसकी समाप्ति तिथि को बढ़ाकर वर्ष 2028 कर दिया गया है।
    • उच्च गति रेल कार्यान्वयन में धीमी प्रगति भारत को वैश्विक प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे कर देती है और रेल परिवहन के आधुनिकीकरण में देरी करती है, जिससे दीर्घकालिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और आर्थिक विकास प्रभावित होता है।
  • मानव संसाधन प्रबंधन और कौशल अंतराल: विश्व के सबसे बड़े नियोक्ताओं में से एक भारतीय रेलवे को मानव संसाधन प्रबंधन और कौशल विकास में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। 
    • रेलवे द्वारा अपने परिचालन को आधुनिक बनाने के साथ ही कौशल की कमी भी बढ़ती जा रही है। उदाहरण के लिये, वंदे भारत जैसी सेमी-हाई-स्पीड ट्रेनों की शुरुआत के लिये संभरण और संचालन में विशेष कौशल की आवश्यकता होती है। 
    • केंद्रीय रेल मंत्री ने राज्यसभा में बताया कि जुलाई 2023 तक भारतीय रेलवे में 2.50 लाख से अधिक पद रिक्त थे
    • इन रिक्तियों पर भर्ती तथा यह सुनिश्चित करना कि कार्यबल आधुनिक रेलवे परिचालन के लिये प्रासंगिक कौशल से सुसज्जित हो, एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।

भारतीय रेलवे में सुधार से संबंधित प्रमुख समितियाँ 

  • विनोद राय समिति (2015):
    • सांविधिक शक्तियों के साथ एक स्वतंत्र रेलवे सुरक्षा प्राधिकरण की स्थापना करना।
    • निष्पक्ष अन्वेषण के लिये रेलवे दुर्घटना अन्वेषण बोर्ड का गठन करना।
    • परिसंपत्तियों के प्रबंधन हेतु एक पृथक रेलवे अवसंरचना कंपनी का गठन किया जाए।
    • रेलवे कर्मचारियों के लिये प्रदर्शन-आधारित प्रोत्साहन योजना लागू की जाए।
  • राकेश मोहन समिति (2010):
    • भारतीय GAAP के अनुरूप लेखांकन प्रणाली में सुधार करना।
    • FMCG, IT, कंटेनरीकृत कार्गो और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में विस्तार करना।
    • लंबी दूरी के परिवहन, गति उन्नयन और उच्च गति रेल गलियारों को प्राथमिकता दी जाए।
    • उद्योग समूहों और प्रमुख बंदरगाहों तक कनेक्टिविटी को बढ़ाना।
    • प्रमुख केंद्रों पर लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करना।

भारतीय रेलवे का पुनर्विकास करने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं? 

  • उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणालियों को कार्यान्वित करना: भारतीय रेलवे को अपने पूरे नेटवर्क में कवच जैसी उन्नत यातायात प्रबंधन प्रणालियों के अनुपालन में तेज़ी लाने की आवश्यकता है।
    • यह स्वचालित रेल सुरक्षा प्रणाली सुरक्षा और परिचालन दक्षता में महत्त्वपूर्ण सुधार ला सकती है। 
    • उदाहरण के लिये, आगामी दो वर्षों के भीतर कवच का विस्तार वर्तमान 1,456 कि.मी. की क्षमता से आगे बढ़ाकर नेटवर्क के कम से कम 20% हिस्से को कवर करने से टकराव के जोखिम को कम किया जा सकता है। 
    • इस कार्यान्वयन को उच्च यातायात गलियारों और दुर्घटना-प्रवण खंडों पर प्राथमिकता दी जानी चाहिये। 
      • इस प्रणाली को AI-संचालित ऐसी प्रणालियों से, जो पूर्वानुमानित प्रबंधन में सक्षम हों, एकीकृत किया जा सकता है, जिससे संभावित ट्रैक या सिग्नल विफलताओं की पहले से पहचान हो सकेगी, जिससे सुरक्षा में वृद्धि होगी तथा डाउनटाइम में कमी आएगी।
  • माल ढुलाई की सेवाओं में विविधता लाना और लॉजिस्टिक्स सेवाओं का विस्तार करना: कोयला परिवहन पर निर्भरता कम करने और बदलती बाज़ार मांगों के अनुकूल होने के लिये, भारतीय रेलवे को अपने माल ढुलाई पोर्टफोलियो में विविधता लानी चाहिये। 
    • इसमें उच्च मूल्य वाले, समय के प्रति संवेदनशील वस्तुओं जैसे फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं के लिये विशेष सेवाओं का विकास करना शामिल हो सकता है ।
    • उदाहरण के लिये, तापमान नियंत्रित कंटेनरों और समर्पित एक्सप्रेस माल ढुलाई गलियारों का नेटवर्क बनाकर इन क्षेत्रों से नए ग्राहकों को आकर्षित किया जा सकता है। 
    • इसके अतिरिक्त, विशेष रेल-आधारित लॉजिस्टिक्स समाधान बनाने के लिये ई-कॉमर्स हितधारकों के साथ साझेदारी करके बढ़ते ऑनलाइन खुदरा बाज़ार का लाभ उठाया जा सकता है। 
  • हाई-स्पीड रेल और सेमी-हाई-स्पीड परियोजनाओं में तेज़ी लाना: मुंबई-अहमदाबाद बुलेट ट्रेन परियोजना में देरी को दूर करते हुए, भारतीय रेलवे को वंदे भारत जैसी सेमी-हाई-स्पीड ट्रेनों के अपने नेटवर्क के विस्तार पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिये। 
    • इस विस्तार के अनुकूल उच्च गति क्षमताओं को प्राप्त करने के लिये मौजूदा पटरियों और सिग्नलिंग प्रणालियों को उन्नत करने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिये, स्वर्णिम चतुर्भुज नेटवर्क को 160-200 किमी/घंटा गति क्षमताओं का विकास किया जा सकता है जिससे प्रमुख मार्गों पर यात्रा के समय को काफी कम किया जा सकता है, जिससे अंतर्नगरीय यात्राओं के लिये रेलवे, हवाई यात्रा के साथ अधिक प्रतिस्पर्धी बनाया जा सकेगा।
  • संधारणीय एवं ऊर्जा-कुशल परिचालन का विकास: भारतीय रेलवे को नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों के उपयोग में तेज़ी लानी चाहिये। 
    • इसमें पटरियों के विद्युतीकरण को वर्तमान स्तर से बढ़ाकर 100% करना तथा रेलवे लाइनों के साथ सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन का महत्त्वपूर्ण विस्तार करना शामिल हो सकता है। 
    • उदाहरण के लिये, स्टेशनों की छतों और अप्रयुक्त रेलवे भूमि पर सौर पैनल लगाने से रेलवे की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा पूरा किया जा सकता है।
  • माल ढुलाई टर्मिनलों का आधुनिकीकरण और मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करना: भारतीय रेलवे की दक्षता में सुधार लाने और अधिक माल यातायात को आकर्षित करने हेतु मौजूदा माल ढुलाई टर्मिनलों के आधुनिकीकरण एवं नए मल्टीमॉडल लॉजिस्टिक्स पार्क विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • इसमें लोडिंग और अनलोडिंग प्रक्रियाओं को स्वचालित करना, उन्नत इन्वेंट्री प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना और निर्बाध इंटरमॉडल कनेक्शन बनाना शामिल हो सकता है। 
    • इन पार्कों को उन्नत कंटेनर हैंडलिंग उपकरण, रीयल टाइम ट्रैकिंग प्रणाली और एकीकृत सीमा शुल्क निकासी सुविधाओं से सुसज्जित किया जाना चाहिये ताकि संपूर्ण लॉजिस्टिक्स समाधान उपलब्ध कराया जा सके। 
  • स्टेशन पुनर्विकास और वाणिज्यिक उपयोग को प्रोत्साहित करना: प्रमुख रेलवे स्टेशनों को विश्व स्तरीय पारगमन केन्द्रों और वाणिज्यिक केन्द्रों में बदलने के लिये स्टेशन पुनर्विकास कार्यक्रम में तेजी लाना। 
    • इस सुधारों के अंतर्गत अनावश्यक कार्यवाहियों के स्थान पर समुचित सुधारों की आवश्यकता है जिसके अंतर्गत स्मार्ट सिटी सुविधाएँ, बहु उपयोगी सुविधाओं के साथ-साथ उन्नत यात्री सुविधाओं को शामिल किये जाने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिये, भोपाल में रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास, इसका आधुनिक डिजाइन, हवाई अड्डे जैसी सुविधाएँ और स्थिरता पर ध्यान केंद्रित करना एक आदर्श के रूप में कार्य करता है।

निष्कर्ष: 

भारतीय रेलवे का पुनर्विकास करना भारत की अर्थव्यवस्था और स्थिरता में इसकी भूमिका के लिये महत्त्वपूर्ण है। आधुनिकीकरण और अभिनव रणनीतियों के माध्यम से घटती हुई माल ढुलाई हिस्सेदारी एवं वित्तीय स्थिरता जैसी चुनौतियों को संबोधित कर, रेलवे की दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढाया जा सकता है। सेवाओं में विविधता लाने एवं स्टेशनों का पुनर्विकास करने जैसी पहल राष्ट्रीय एकीकरण तथा सतत् विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगी, जिससे भारतीय रेलवे, भारत के भावी विकास के प्रमुख चालक के रूप में स्थापित होगी।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में सतत् विकास और आर्थिक संवृद्धि को प्रोत्साहित करने में भारतीय रेलवे की भूमिका का परीक्षण कीजिये। इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये एवं उन्हें संबोधित करने के उपाय सुझाइये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारतीय रेलवे द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले जैव शौचालयों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. जैव-शौचालयमें मानव अपशिष्ट का अपघटन एक कवक इनोकुलम द्वारा शुरू किया जाता है। 
  2. इस अपघटन में अमोनिया और जलवाष्प ही एकमात्र अंतिम उत्पाद हैं जो वायुमंडल में छोड़े जाते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (d) 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ

यह संपादकीय 18/09/2024 को द हिंदू बिजनेस लाइन में प्रकाशित “ Securing India’s semiconductor future ” पर आधारित है। यह लेख आयात पर निर्भरता कम करने और अर्द्धचालक मिशन और PLI योजना द्वारा संचालित राष्ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिये स्वदेशी अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने के लिये भारत के सामरिक प्रयास पर प्रकाश डालता है। यद्यपि, उच्च निवेश लागत और संसाधन प्रबंधन के मुद्दे जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं, परंतु वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला में स्थान सुरक्षित करने के लिये यह प्रयास महत्त्वपूर्ण है।

प्रिलिम्स के लिये:

अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्रअर्द्धचालक मिशन , उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना, सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम, अभिकल्प संबद्ध प्रोत्साहन (DLI) योजना , 5G, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग, विशेष आर्थिक क्षेत्र

मेन्स के लिये:

भारत में अर्द्धचालक उद्योग की वर्तमान स्थिति, अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ में प्रमुख बाधाएँ।

भारत आयात पर निर्भरता कम करने और वैश्विक आपूर्ति शृंखला के दोषों को कम करने की आवश्यकता से प्रेरित होकर स्वदेशी अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र स्थापित करने के लिये एक सामरिक प्रयास कर रहा है। सरकार ने वर्ष 2021 में 10 बिलियन अमरीकी डालर के निवेश के साथ अर्द्धचालक मिशन शुरू किया है। यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण है, विशेषकर रक्षा और दूरसंचार जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। हाल के भू-राजनीतिक तनाव और कोविड-19 महामारी ने विदेशी अर्द्धचालक आपूर्ति पर अत्यधिक निर्भरता के जोखिमों को प्रकट किया है, विशेष रूप से ताइवान, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों से।

जबकि भारत ने उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना जैसी पहलों के साथ प्रगति की है, फिर भी महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं। अर्द्धचालक संविरचन संयंत्र स्थापित करना पूंजी-प्रकृष्ट है, जिसके लिये अरबों डॉलर के निवेश की आवश्यकता होती है एवं संसाधन प्रबंधन की चुनौतियाँ प्रकट होती हैं, विशेष रूप से जल उपयोग के संबंध में। इन बाधाओं के बावजूद, अर्द्धचालक में भारत का कदम एक दीर्घकालिक सामरिक प्रयास है जिसका उद्देश्य वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स मूल्य शृंखला में अपना स्थान सुनिश्चित करना और तकनीकी आत्मनिर्भरता में वृद्धि करना है।

भारत में अर्द्धचालक उद्योग की वर्तमान स्थिति क्या है? 

  • भारत में अर्द्धचालक उद्योग की वर्तमान स्थिति
    • वर्ष 2022 के बाज़ार का आकार: 26.3 बिलियन अमरीकी डॉलर
    • अनुमानित वृद्धि: वर्ष 2032 तक 26.3% की CAGR के साथ 271.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
  • आयात-निर्यात परिदृश्य
    • आयात:
      • वर्ष 2021: 5.36 बिलियन अमरीकी डॉलर
      • भारत शुद्ध आयातक बना हुआ है, यद्यपि निर्भरता कम करने के प्रयास जारी हैं।
    • निर्यात:
      • वर्ष 2022: 0.52 बिलियन अमेरिकी डॉलर (अब तक का उच्चतम)।
  • सरकारी पहल
    • भारत अर्द्धचालक मिशन (ISM): एक सुदृढ़ अर्द्धचालक और प्रदर्श पारिस्थितिकी तंत्र निर्मित करने के लिये डिजिटल इंडिया कॉरपोरेशन के तहत एक समर्पित प्रभाग।
      • अर्द्धचालक संविरचन संयंत्र और प्रदर्श संविरचन संयंत्र के लिये परियोजना लागत का 50% राजकोषीय समर्थन।
    • सेमीकॉन इंडिया कार्यक्रम : अर्द्धचालक और प्रदर्श विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये ₹76,000 करोड़ ($9.2 बिलियन) के आवंटन के साथ दिसंबर 2021 में शुरू किया गया।
      • आगे के विकास को समर्थन देने हेतु वित्त वर्ष 24 के लिये बजट बढ़ाकर ₹ 6,903 करोड़ ($ 833.7 मिलियन) कर दिया गया।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग:
    • यूरोपीय संघ-भारत व्यापार और प्रौद्योगिकी परिषद के हिस्से के रूप में अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के लिये यूरोपीय आयोग के साथ समझौता ज्ञापन।
    • दोनों देशों के बीच अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला समुत्थानशीलता में वृद्धि हेतु जापान के साथ सहयोग ज्ञापन पर हस्ताक्षर।

भारत के लिये अर्द्धचालक का क्या महत्त्व है? 

  • आर्थिक विकास और औद्योगिक विकास: अर्द्धचालक भारत के आर्थिक विकास के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र में। 
    • वैश्विक अर्द्धचालक बाज़ार वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है और भारत का लक्ष्य इसमें महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी प्राप्त करना है। 
    • वर्ष 2021 में शुरू किये गए सरकार के 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर के अर्द्धचालक मिशन से 35,000 उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियाँ और 100,000 लोगों के लिये अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजन की उम्मीद है। 
    • सफल कार्यान्वयन से वर्ष 2026 तक भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण 300 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकता है। 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता: अर्द्धचालक राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, विशेष रूप से रक्षा और दूरसंचार क्षेत्रों में। 
    • राष्ट्रीय सुरक्षा और सामरिक स्वायत्तता में अर्द्धचालकों की भूमिका लगातार महत्त्वपूर्ण होती जा रही है, क्योंकि ये छोटे इलेक्ट्रॉनिक घटक स्मार्टफोन तथा कंप्यूटर से लेकर उन्नत सैन्य प्रणालियों और महत्त्वपूर्ण अवसंरचना तक, हर चीज को शक्ति प्रदान करते हैं।
    • स्वदेशी अर्द्धचालक क्षमताओं का विकास करके भारत महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रणालियों और सुरक्षित संचार नेटवर्क के लिये स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित कर सकता है। 
  • तकनीकी आत्मनिर्भरता और नवाचार: एक सुदृढ़ अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने से भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। 
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला एकीकरण: भारत की अर्द्धचालक पहल का उद्देश्य देश को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति शृंखला में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित करना है। 
    • वर्तमान में, भारत वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण मूल्य शृंखला में केवल 3% का योगदान देता है।
    • उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) सहित सरकार की नीतियाँ वैश्विक अभिकर्त्ताओं को आकर्षित करने और भारत को अंतर्राष्ट्रीय आपूर्ति नेटवर्क में एकीकृत करने के लिये तैयार की गई हैं। 
  • रोज़गार सृजन और कौशल विकास: अर्द्धचालक उद्योग, यद्यपि पूंजी-प्रकृष्ट है, परंतु इसमें भारत में उच्च गुणवत्ता वाली नौकरियाँ सृजित करने और कौशल विकास को बढ़ावा देने की क्षमता है। 
    • इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इससे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में कुशल कार्यबल के विकास को बढ़ावा मिल सकता है। 
    • चिप अभिकल्पना, नैनोफैब्रिकेशन और उन्नत पैकेजिंग जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल की उद्योग की आवश्यकताओं से भारतीय संस्थानों में STEM शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा मिलने की संभावना है। 

अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाएँ में प्रमुख बाधाएँ क्या हैं?

  •  अवसंरचना की चुनौतियाँ: भारत के विशाल भौगोलिक क्षेत्र और असमान विकास ने अर्द्धचालक उद्योग के लिये महत्त्वपूर्ण अवसंरचना की चुनौतियाँ उत्पन्न की हैं। 
    • विश्वसनीय विद्युत आपूर्ति का अभाव, जल की कमी और अपर्याप्त परिवहन सुविधाएँ अर्द्धचालक विनिर्माण संयंत्रों की स्थापना और संचालन में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, हाल ही में वर्ष 2024 में भारत में हीटवेब के दौरान, कई क्षेत्रों में विद्युत् आपूर्ति की कमी का अनुभव हुआ, जिससे अर्द्धचालक विनिर्माण सहित औद्योगिक गतिविधियाँ प्रभावित हुईं।
  • प्रतिभा की कमी: अर्द्धचालक उद्योग को विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि चिप अभिकल्पना, विनिर्माण और परीक्षण में विशेषज्ञता वाले अत्यधिक कुशल पेशेवरों की आवश्यकता होती है।
    • भारत में अभियांत्रिकी प्रतिभाओं की विशाल उपलब्धता के बावजूद अर्द्धचालक विशेषज्ञों की कमी है। 
      • एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि भारत को वर्ष 2027 तक 250,000 से 300,000 अर्द्धचालक पेशेवरों की कमी का सामना करना पड़ेगा।
    • यह अंतर एक सुदृढ़ अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है और वैश्विक अर्द्धचालक निर्माताओं को आकर्षित करने की देश की क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • उच्च विनिर्माण लागत: अर्द्धचालक विनिर्माण एक पूंजी-प्रकृष्ट उद्योग है जिसकी परिचालन लागत उच्च है। 
    • भारत में अर्द्धचालक निर्माण संयंत्र स्थापित करने और परिचालन लागत ताइवान, दक्षिण कोरिया और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे स्थापित विनिर्माण केंद्रों की तुलना में काफी अधिक हो सकती है। 
      • आयात अर्द्धचालक विनिर्माण मूल्य सूचकांक वर्ष 2021 में 4.9% बढ़ा और वर्ष 2022 में 2.4% की और वृद्धि हुई।
    • यह लागत अंतर वैश्विक अर्द्धचालक कंपनियों के लिये भारत को कम आकर्षक बना सकता है, जिससे देश में उनका निवेश सीमित हो सकता है।
  • वैश्विक आपूर्ति शृंखला गतिशीलता: अर्द्धचालक उद्योग अत्यधिक रूप से परस्पर संबंधित है और वैश्विक आपूर्ति शृंखला पर निर्भर है। 
    • इस आपूर्ति शृंखला में व्यवधान, जैसे कि भू-राजनीतिक तनाव या प्राकृतिक आपदाओं के कारण, अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत की महत्त्वाकांक्षाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं। 
      • चिप विनिर्माण के लिये आवश्यक निऑन आपूर्ति पर रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रभाव ने इस दोष को प्रकट किया।
    • कच्चे माल, घटकों और प्रौद्योगिकी की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करने की भारत की क्षमता अर्द्धचालक उद्योग में उसकी सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • पर्यावरण संबंधी चिंताएँ: अर्द्धचालक उद्योग ऊर्जा-प्रधान है और इसका पर्यावरण पर प्रभाव पड़ सकता है, जैसे जल की खपत और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन। 
    • अर्द्धचालक विनिर्माण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 31% का योगदान देता है और इलेक्ट्रॉनिक चिप्स का बढ़ता उपयोग इस प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है।
      • स्मार्ट मीटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स के उत्पादन के लिये पर्याप्त मात्रा में विद्युत् और जीवाश्म ईंधन की आवश्यकता होती है।
    • सतत् विकास को प्रोत्साहित करने और पर्यावरण संबंधी चिंताओं को दूर करने के भारत के प्रयास अर्द्धचालक क्षेत्र के लिये अतिरिक्त चुनौतियाँ उत्पन्न कर सकते हैं।
  • अन्य उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्द्धा: भारत को अन्य उभरते बाज़ारों, जैसे वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया से प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है, जो अर्द्धचालक निवेश आकर्षित करना चाहते हैं। 
    • मलेशिया ने अर्द्धचालक प्रतिस्पर्द्धा के प्रथम चरण में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है और इंफिनिऑन जैसी कंपनियों को सफलतापूर्वक आकर्षित किया है।
    • ये देश अधिक अनुकूल प्रोत्साहन, अवसंरचना और प्रतिभा पूल की पेशकश कर सकते हैं, जिससे वे वैश्विक अर्द्धचालक कंपनियों के लिये अधिक आकर्षक बन जाएंगे।

अर्द्धचालक के क्षेत्र में भारत अपने लक्ष्य को वास्तविकता में परिवर्तित करने के लिये क्या कदम उठा सकता है?

  • अर्द्धचालक संबंधी शिक्षा और प्रशिक्षण का संवर्द्धन: भारत को विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों में अर्द्धचालक अभियांत्रिकी कार्यक्रमों का पर्याप्त विस्तार और उन्नयन करना चाहिये। 
    • इसमें उद्योग-प्रासंगिक पाठ्यक्रम विकसित करने और व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये वैश्विक अर्द्धचालक कंपनियों के साथ साझेदारी शामिल हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, बेंगलूरु स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड के साथ मिलकर एक विशेष अर्द्धचालक विनिर्माण कार्यक्रम तैयार कर सकता है, जिसमें व्यावहारिक शिक्षा के लिये अत्याधुनिक स्वच्छ कक्ष सुविधा भी शामिल होगी।
  • स्वदेशी चिप अभिकल्प क्षमताओं का विकास: भारत को अपनी मौजूदा सॉफ्टवेयर विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए चिप अभिकल्प क्षमताओं में भारी निवेश करना चाहिये।
    • सरकार बेंगलूरु, हैदराबाद और पुणे जैसे प्रौद्योगिकी केंद्रों में समर्पित चिप अभिकल्प केंद्र स्थापित कर सकती है, जो स्टार्टअप्स और स्थापित कंपनियों के लिये अवसंरचना और प्रोत्साहन प्रदान करेगी। 
    • उदाहरण के लिये, आईआईटी मद्रास द्वारा विकसित ओपन-सोर्स RISC-V प्रोसेसर-शक्ति की हाल की सफलता इस क्षेत्र में भारत की क्षमता को प्रदर्शित करती है। ऐसी पहलों का विस्तार करने से विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये भारत-विशिष्ट चिप अभिकल्पों का विकास हो सकता है।
  • एक सुदृढ़ अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला का निर्माण: भारत को देश के भीतर एक व्यापक अर्द्धचालक आपूर्ति शृंखला का निर्माण करने की आवश्यकता है। 
    • इसमें कच्चे माल के उत्पादन से लेकर उन्नत पैकेजिंग तक विभिन्न क्षेत्रों में निवेश आकर्षित करना शामिल है।
    • भारत अर्द्धचालक पारिस्थितिकी तंत्र के विकास के लिये समर्पित विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) स्थापित कर सकता है तथा एप्लाइड मैटेरियल्स या लैम रिसर्च जैसी वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने के लिये कर में छूट और सुव्यवस्थित विनियमन प्रदान कर सकता है।
  • सॉवरेन सेमीकंडक्टर फंड की स्थापना: भारत विशेष रूप से अर्द्धचालक निवेश के लिये एक समर्पित सॉवरेन फंड का निर्माण कर सकता है। 
    • यह निधि अर्द्धचालक परियोजनाओं के लिये दीर्घकालिक पूंजी उपलब्ध कराएगा, जिससे विदेशी निवेश पर निर्भरता कम होगी। 
    • यह दृष्टिकोण दक्षिण कोरिया जैसे देशों में सफल रहा है, जहाँ एक सुदृढ़ अर्द्धचालक उद्योग के निर्माण में सरकार का सक्रिय वित्तीय समर्थन महत्त्वपूर्ण रहा है। 
    • यह निधि 3nm और 2nm चिप निर्माण जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्राथमिकता दे सकता है, जिससे भारत अर्द्धचालक नवाचार में अग्रणी स्थान पर आ जाएगा।
  • "चिप राजनय" सामरिक नीति का कार्यान्वयन: भारत को अग्रणी अर्द्धचालक देशों के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और साझेदारी पर समझौता करने के लिये अपनी भू-राजनीतिक स्थिति और बड़े बाज़ार का लाभ उठाना चाहिये। 
    • इसमें अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी और विशेषज्ञता के बदले में अधिमानी बाज़ार अभिगम्यता या सामरिक साझेदारी की पेशकश शामिल हो सकती है।
    • उदाहरण के लिये, भारत उन्नत पैकेजिंग प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए  जापान के साथ मिलकर एक संयुक्त अर्द्धचालक अनुसंधान केंद्र स्थापित कर सकता है।
    • यह उपागम प्रौद्योगिकी रूप से उन्नत देशों के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने के भारत के हालिया प्रयासों के अनुरूप है और इससे स्वतंत्र रूप से अर्द्धचालक प्रौद्योगिकी प्राप्त करने में आने वाली कुछ चुनौतियों से निपटने में सहायता मिल सकती है।
  • "हरित अर्द्धचालक" पहल का विकास: भारत स्वयं को पर्यावरणीय दृष्टि से संवहनीय अर्द्धचालक विनिर्माण में अग्रणी के रूप में स्थापित कर सकता है। 
    • यह पहल ऐसी प्रौद्योगिकियों के विकास और कार्यान्वयन पर ध्यान केंद्रित करेगी जो जल उपयोग को कम करें, ऊर्जा खपत को कम करें तथा अर्द्धचालक उत्पादन में रासायनिक अपशिष्ट को न्यूनतम करें। 
    • उदाहरण के लिये, भारत एप्लाइड मैटेरियल्स जैसी कंपनियों के साथ साझेदारी कर सकता है, ताकि एक दक्ष और पथप्रदर्शी संविरचन संयंत्र स्थापित किया जा सके, जो पुनर्नवीनीकृत जल और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करता है। 
      • यह उपागम न केवल पर्यावरण संबंधी चिंताओं को संबोधित करता है, बल्कि संवहनीय विनिर्माण के प्रति वैश्विक रुझानों के अनुरूप भी है, जो संभावित रूप से पर्यावरण के प्रति जागरूक निवेशकों और भागीदारों को आकर्षित करता है।
  • नेशनल सेमीकंडक्टर कॉमन्स की स्थापना: भारत को अर्द्धचालक अनुसंधान और प्रतिकृति के लिये एक साझा अवसंरचना मॉडल का निर्माण करना चाहिये। 
    • यह "सेमीकंडक्टर कॉमन्स" महँगे उपकरणों और सुविधाओं तक अभिगम्यता प्रदान करेगा, जिन्हें स्टार्टअप कंपनियाँ या संस्थान वहन करने में सक्षम नहीं हो सकते।
    • उदाहरण के लिये, अमेरिका में राष्ट्रीय नैनो प्रौद्योगिकी अवसंरचना नेटवर्क (NNIN) के समान, नैनोफैब्रिकेशन सुविधाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित किया जा सकता है।
    • इससे स्टार्टअप्स और शोधकर्ताओं के लिये प्रवेश की बाधाएं कम होंगी तथा चिप अभिकल्प और विनिर्माण प्रक्रियाओं में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। 
    • यह कॉमन्स अकादमिक जगत, उद्योग और सरकार के बीच सहयोग के लिये  एक मंच के रूप में भी कार्य कर सकता है, जिससे भारत में अर्द्धचालक संबंधी नवाचार की गति में तेज़ी आएगी। 

निष्कर्ष

अपनी अर्द्धचालक संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं को साकार करने के लिये, भारत को चिप अभिकल्प के क्षेत्र में शिक्षण और प्रशिक्षण को संवर्द्धित करना होगा, एक सुदृढ़ स्वदेशी आपूर्ति शृंखला विकसित करनी होगी और सामरिक अंतरराष्ट्रीय सहयोग को अग्रेषित करना होगा। अवसंरचना और प्रतिभा की कमी को दूर करके, साथ ही संवहनीय प्रथाओं को संवर्द्धित करके भारत वैश्विक अर्द्धचालक उद्योग में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में अपना स्थान सुनिश्चित कर सकता है और तकनीकी आत्मनिर्भरता प्राप्त कर सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

भारत में एक सुदृढ़ अर्द्धचालक विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के महत्त्व पर चर्चा कीजिये तथा इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने हेतु आवश्यक नीतिगत उपायों को बताते हुए संबंधित चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत् वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रारंभिक:

निम्नलिखित में से कौन-सा लेज़र प्रकार लेज़र प्रिंटर में उपयोग किया जाता है? (2008)

(a) डाई लेज़र 
(b) गैस लेज़र
(c) सेमीकंडक्टर लेज़र 
(d) एक्साइमर लेज़र

उत्तर: (c)


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