भारत की आपदा रणनीति में सुधार
यह एडिटोरियल 18/02/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Bill to amend Disaster Management Act: a proposed solution involving the States” पर आधारित है। इस लेख में आपदा राहत निधि को लेकर केंद्र और राज्यों के बीच बढ़ते तनाव को सामने लाया गया है, विलंब और अपर्याप्त आवंटन को उजागर करता है। यह समय पर रिकवरी सुनिश्चित करने के लिये एक पारदर्शी, न्यायसंगत और गैर-राजनीतिक आपदा प्रबंधन कार्यढाँचे की आवश्यकता को रेखांकित करता है।
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय आपदा मोचन बल, आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024, चक्रवात मिचौंग, भारतीय मौसम विभाग, ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF), भूकंप, एंटीबायोटिक प्रतिरोध, हीटवेव, राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC), 2016, MGNREGA, जल शक्ति अभियान मेन्स के लिये:भारत के समक्ष प्रमुख आपदा खतरे, भारत की आपदा प्रबंधन रणनीति में प्रमुख संरचनात्मक मुद्दे। |
भारत की आपदा मोचन निधि व्यवस्था केंद्र और राज्यों के बीच विवाद का विषय बन गई है, जैसा कि तमिलनाडु में चक्रवात के बाद राष्ट्रीय आपदा मोचन बल की पर्याप्त सहायता के लिये हाल ही में किये गए संघर्ष में देखा गया है। जबकि राज्य जलवायु-प्रेरित आपदाओं का सामना कर रहे हैं, SDRF और NDRF से विलंब एवं अपर्याप्त आवंटन समय पर पुनर्प्राप्ति प्रयासों में बाधा डालते हैं। आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 जैसे विधायी प्रस्तावों का उद्देश्य पारदर्शिता बढ़ाना और निर्णय लेने में आनुपातिक राज्य प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना है। जैसे-जैसे चरम मौसम की घटनाएँ बढ़ती हैं, भारत को तत्काल एक समुत्थानशील और गैर-राजनीतिक आपदा प्रबंधन प्रणाली की आवश्यकता है।
भारत के समक्ष प्रमुख आपदा खतरे क्या हैं?
- चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति: भारत में जलवायु-जनित आपदाओं जैसे चक्रवात, बाढ़ और हीट वेव्स में वृद्धि देखी जा रही है, जो बढ़ते वैश्विक तापमान एवं अनियमित मानसून पैटर्न से प्रेरित हैं।
- हिंद महासागर के गर्म होने से चक्रवातों की तीव्रता बढ़ रही है, जबकि मानसून की बदलती प्रवृत्ति के कारण अप्रत्याशित सूखा और बाढ़ आ रही है।
- चक्रवात मिचौंग (वर्ष 2023) के कारण तमिलनाडु में ₹37,000 करोड़ का नुकसान हुआ; हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2023 में बाढ़ के कारण ₹10,000 करोड़ की क्षति हुई।
- भारत में वर्ष 2022 में चरम मौसम की घटनाओं के कारण 2,227 लोगों की मृत्यु होने की सूचना है (IMD, 2024)।
- निम्नस्तरीय बुनियादी अवसंरचना के कारण शहरी बाढ़: अनियोजित शहरीकरण, अवरुद्ध जल निकासी प्रणालियाँ और लुप्त होती आर्द्रभूमि ने मौसमी बारिश को विनाशकारी शहरी बाढ़ में बदल दिया है।
- दिल्ली, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों में कंक्रीटीकरण एवं अपर्याप्त जल प्रबंधन के कारण गंभीर जलभराव की समस्या है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली में जुलाई 2023 में 41 वर्षों में सबसे अधिक एक दिवसीय वर्षा (153 मिमी) दर्ज की गई, जिसके कारण यमुना में बाढ़ आ गई और व्यापक यातायात बाधित हुआ।
- वर्ष 2022 में बाढ़ के कारण बेंगलुरु को 2.25 अरब रुपए का नुकसान हुआ।
- दिल्ली, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहरों में कंक्रीटीकरण एवं अपर्याप्त जल प्रबंधन के कारण गंभीर जलभराव की समस्या है।
- सूखा और जल की कमी से कृषि प्रभावित हो रही है: अनियमित मानसून, बढ़ता तापमान एवं भूजल में कमी के कारण सूखा लगातार और गंभीर होता जा रहा है।
- भारत की मानसून आधारित कृषि पर अत्यधिक निर्भरता, इसकी खाद्य सुरक्षा को अत्यधिक कमज़ोर बना देती है।
- अकुशल सिंचाई पद्धतियाँ और जलवायु-अनुकूल कृषि के क्रियान्वयन में विलंब से संकट बढ़ रहा है।
- भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष 2023 के अगस्त महीने को 122 वर्षों में सबसे शुष्क माह घोषित किया है, जिससे खरीफ फसल की उत्पन्नवार पर गंभीर असर पड़ेगा।
- इसके अलावा, वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर के एक हालिया अनुमान के अनुसार, वर्ष 2050 तक 30 भारतीय शहरों को ‘गंभीर जल जोखिम’ का सामना करना पड़ेगा।
- हिमालयी हिमनदों का पिघलना और फ्लैश फ्लड: वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण हिमालय में हिमनदों का पिघलना तीव्र हो रहा है, जिससे ग्लेशियल झील विस्फोट बाढ़ (GLOF) और भूस्खलन का खतरा बढ़ रहा है।
- सुभेद्य हिमालयी क्षेत्रों में जलविद्युत बाँध एवं राजमार्ग जैसी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ स्थिति को और भी बदतर कर रही हैं।
- पूर्व चेतावनी प्रणालियों और आपदा-रोधी बुनियादी अवसंरचना के अभाव से महत्त्वपूर्ण मानवीय एवं आर्थिक क्षति होती है।
- अक्तूबर 2023 में, उत्तरी सिक्किम के दक्षिण ल्होनक झील से एक ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) की घटना हुई, जिससे व्यापक विनाश हुआ।
- सुभेद्य हिमालयी क्षेत्रों में जलविद्युत बाँध एवं राजमार्ग जैसी बुनियादी अवसंरचना परियोजनाएँ स्थिति को और भी बदतर कर रही हैं।
- समुद्र का बढ़ता स्तर और तटीय क्षरण: भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा समुद्र के बढ़ते स्तर, तटीय क्षरण और अलवण जल के प्रवेश के प्रति संवेदनशील होती जा रही है।
- अनियंत्रित रेत खनन, बंदरगाह विस्तार एवं मैंग्रोव विनाश से स्थिति और भी खराब हो रही है।
- भारत की जलवायु कार्य योजना के बावजूद, तटीय समुत्थानशीलन प्रयास धीमे बने हुए हैं।
- राष्ट्रीय तटीय अनुसंधान केंद्र (NCCR) के एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 33.6% तट का क्षरण हो रहा है।
- अनियंत्रित रेत खनन, बंदरगाह विस्तार एवं मैंग्रोव विनाश से स्थिति और भी खराब हो रही है।
- उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों में भूकंप: भारत कई भूकंपीय क्षेत्रों के मध्य स्थित है, जिस कारण भारत के उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्य अत्यधिक भूकंप-प्रवण हैं।
- भवन निर्माण संहिताओं का लापरवाह क्रियान्वयन और पुरानी बुनियादी अवसंरचना आपदा के प्रभाव को बढ़ा देती हैं।
- पुरानी इमारतों और महत्त्वपूर्ण बुनियादी अवसंरचना के लिये पुनर्निर्माण नीतियों की कमी से भूकंप-मोचन की तैयारी कमज़ोर हो जाती है।
- असम में 6.4 तीव्रता वाले भूकंप (वर्ष 2021) से व्यापक संरचनात्मक क्षति हुई।
- दिल्ली-NCR में हाल ही में आए भूकंप, जिनका संभावित केंद्र धौला कुआं के पास था, बढ़ते भूकंपीय खतरों को उजागर करते हैं।
- भवन निर्माण संहिताओं का लापरवाह क्रियान्वयन और पुरानी बुनियादी अवसंरचना आपदा के प्रभाव को बढ़ा देती हैं।
- औद्योगिक और रासायनिक आपदाएँ: कड़े सुरक्षा अनुपालन के बिना तेज़ी से औद्योगिक विस्तार के कारण रासायनिक आपदाएँ और गैस रिसाव बढ़ रहे हैं।
- खतरनाक उद्योगों में अपर्याप्त नियामक निगरानी और पुरानी तकनीक जोखिम को बढ़ा देती है।
- विज़ाग LG पॉलिमर गैस रिसाव के कारण कई लोग हताहत हुए। दिल्ली की मुंडका फैक्ट्री में आगजनी (वर्ष 2022), निम्नस्तरीय औद्योगिक सुरक्षा मानकों को उजागर करती है।
- जैविक आपदाएँ और सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट: महामारी, संक्रामक (ज़ूनोटिक) रोग और रोगाणुरोधी प्रतिरोध दीर्घकालिक आपदा जोखिम उत्पन्न करते हैं।
- बढ़ते प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण वेक्टर जनित रोगों की आवृत्ति बढ़ रही है।
- कोविड-19 महामारी ने भारत के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी अवसंरचना में खामियों को उजागर किया है, तथा सुदृढ़ रोग निगरानी तंत्र की आवश्यकता को रेखांकित किया है।
- भारत को घरेलू पशुओं और मनुष्यों दोनों में एंटीबायोटिक दवाओं के अत्यधिक उपयोग के कारण उभरते एंटीबायोटिक प्रतिरोध के केंद्र के रूप में अभिनिर्धारण किया गया है।
- बढ़ते प्रदूषण, वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन के कारण वेक्टर जनित रोगों की आवृत्ति बढ़ रही है।
भारत की आपदा प्रबंधन रणनीति में प्रमुख संरचनात्मक मुद्दे क्या हैं?
- अतिकेंद्रीकरण और विलंबित निधि वितरण: भारत का आपदा प्रबंधन अत्यधिक केंद्रीकृत बना हुआ है, राज्य राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (NDRF) पर निर्भर हैं, जिसके कारण विलंब और अकुशलता होती है।
- राज्य प्रायः अपर्याप्त राज्य आपदा प्रतिक्रिया निधि (SDRF) आवंटन से जूझते हैं, जिससे समय पर राहत और पुनर्वास के लिये उनकी क्षमता सीमित हो जाती है।
- तमिलनाडु ने हाल ही में केंद्र सरकार से राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के तहत 6,675 करोड़ रुपए जारी करने का आग्रह किया है ताकि राज्य चक्रवात फेंगल के बाद आवश्यक राहत और बहाली कार्य कर सके।
- कमज़ोर स्थानीय शासन और कार्यान्वयन अंतराल: आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के बावजूद, स्थानीय प्राधिकरणों के पास पर्याप्त धन नहीं है और निर्णय लेने की शक्ति का अभाव है, जिससे आपदा मोचन धीमी और अप्रभावी हो जाती है।
- प्रशिक्षित कार्मिकों और तकनीकी क्षमता की कमी के कारण कई ज़िलों में ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) निष्क्रिय या गैर-कार्यात्मक हैं।
- यहाँ तक कि आपदा-प्रवण राज्यों में भी ज़मीनी स्तर पर उचित जोखिम आकलन और तैयारी योजनाओं का अभाव है।
- वर्ष 2023 में हिमाचल प्रदेश में बाढ़ के दौरान ज़िला स्तर पर समन्वय की कमी के कारण राहत कार्य धीमा हो गया, जिससे हजारों लोगों को सहायता मिलने में देर हुई।
- प्रशिक्षित कार्मिकों और तकनीकी क्षमता की कमी के कारण कई ज़िलों में ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) निष्क्रिय या गैर-कार्यात्मक हैं।
- पुरानी पड़ चुकी प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ और अपर्याप्त पूर्वानुमान: भारत की प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ (EWS) तकनीकी खामियों, अंतिम बिंदु तक अपर्याप्त कनेक्टिविटी और गलत पूर्वानुमान से ग्रस्त हैं, जिसके कारण मोचन एवं निकासी में विलंब होता है और हताहतों की संख्या बढ़ जाती है।
- हालाँकि IMD चेतावनियाँ जारी करता है, लेकिन वे प्रायः विशिष्ट या स्थानीयकृत नहीं होतीं, जिससे अधिकारियों के लिये समय पर निवारक उपाय करना कठिन हो जाता है।
- कई ग्रामीण और जनजातीय समुदाय रियल टाइम अलर्ट के अभिगम से बाहर हैं, जिससे उनकी असुरक्षा बढ़ रही है।
- अवसंरचना संबंधी सीमाएँ, जैसे अपर्याप्त डॉपलर रडार कवरेज, पूर्वानुमान क्षमताओं को और कमज़ोर कर देती हैं।
- सिक्किम में दक्षिण ल्होनक झील GLOF (वर्ष 2023) के लिये कोई उचित पूर्व चेतावनी प्रणाली नहीं थी, जिसके कारण कई लोग हताहत हुए और बड़े पैमाने पर बुनियादी अवसंरचना का नुकसान हुआ।
- इसके अलावा, अनुमान है कि भारत में 72% ज़िले अत्यधिक बाढ़ की घटनाओं के संपर्क में हैं, लेकिन उनमें से केवल 25% में ही बाढ़ पूर्वानुमान केंद्र हैं।
- हालाँकि IMD चेतावनियाँ जारी करता है, लेकिन वे प्रायः विशिष्ट या स्थानीयकृत नहीं होतीं, जिससे अधिकारियों के लिये समय पर निवारक उपाय करना कठिन हो जाता है।
- अपर्याप्त शहरी नियोजन और बुनियादी अवसंरचना का समुत्थंशक्ति: तीव्र, अनियोजित शहरीकरण ने शहरों को बाढ़, भूकंप और हीट वेव्स के प्रति अत्यधिक सुभेद्य बना दिया है, कमज़ोर भवन संहिता और अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों ने आपदाओं की स्थिति को और भी बदतर बना दिया है।
- पुरानी संरचनाओं के नवीनीकरण की उपेक्षा की जाती है, जिससे भूकंप जैसी आपदाओं के दौरान हताहतों का खतरा बढ़ जाता है।
- राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC), 2016 का निम्नस्तरीय प्रवर्तन, डेवलपर्स को आपदा-प्रतिरोधी निर्माण मानकों की अनदेखी करने की अनुमति देता है।
- एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि NBC दिशानिर्देशों का ठीक से पालन न किये जाने के कारण दिल्ली की 80% से अधिक इमारतें बड़े भूकंप के प्रति सुभेद्य हैं।
- पुरानी संरचनाओं के नवीनीकरण की उपेक्षा की जाती है, जिससे भूकंप जैसी आपदाओं के दौरान हताहतों का खतरा बढ़ जाता है।
- अपर्याप्त सामुदायिक जागरूकता और तैयारी: भारत की उच्च आपदा भेद्यता के बावजूद, आपदा तैयारी के बारे में सार्वजनिक जागरूकता कम है, विशेष रूप से ग्रामीण और सीमांत समुदायों में।
- आपदा अभ्यास, शिक्षा कार्यक्रम और निकासी प्रशिक्षण के अभाव के कारण हताहतों की संख्या अधिक होती है और आपदा मोचन अकुशल होती है।
- समावेशी आपदा नीतियों के अभाव का अर्थ है कि कमज़ोर समूह - महिलाएँ, वृद्ध जन, दिव्यांग जन- प्रायः तैयारी योजनाओं से अपवर्जित रह जाते हैं।
- प्रौद्योगिकी और नवाचार का सीमित उपयोग: भारत का आपदा प्रबंधन पारंपरिक मोचन तंत्रों पर बहुत अधिक निर्भर करता है, तथा आपदा पूर्वानुमान एवं राहत के लिये AI, रिमोट सेंसिंग और GIS मैपिंग के अंगीकरण की प्रक्रिया धीमी है।
- ब्लॉकचेन और उपग्रह इमेजरी से वास्तविक काल में क्षति का आकलन और तेज़ी से धन वितरण में सुधार हो सकता है, लेकिन कार्यान्वयन अभी भी सीमित है।
- अंतर-एजेंसी डेटा साझाकरण और स्मार्ट प्रौद्योगिकियों के एकीकरण का अभाव निर्णय लेने एवं समन्वय को कमज़ोर करता है।
- जबकि जापान जैसे देश AI-आधारित सुनामी पूर्वानुमान मॉडल का उपयोग करते हैं, भारत का तटीय EWS अभी भी पारंपरिक सेंसर पर निर्भर है।
- खंडित आपदा स्वास्थ्य प्रबंधन: आपदा प्रभावित क्षेत्रों में प्रायः आपातकालीन चिकित्सा सुविधाओं, ट्रॉमा देखभाल केंद्रों एवं प्रशिक्षित स्वास्थ्य पेशेवरों की भारी कमी होती है, जिससे आपदा के बाद मृत्यु दर और भी बढ़ जाती है।
- कई राज्य आपदा योजनाओं में समर्पित सार्वजनिक स्वास्थ्य अनुक्रिया रणनीतियों का अभाव है, जिसके कारण वे निवारक के बजाय प्रतिक्रियात्मक बन जाती हैं।
- हीटवेव, महामारी और रासायनिक आपदाओं के लिये विशेष स्वास्थ्य देखभाल अनुक्रियाओं की आवश्यकता होती है, लेकिन NDMA और स्वास्थ्य मंत्रालय के बीच समन्वय कमज़ोर बना हुआ है।
- आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल अस्पतालों और टेलीमेडिसिन समाधानों का कम उपयोग किया जाता है।
- वर्ष 2024 के ओडिशा हीटवेव के दौरान, 24 घंटों में 26 से अधिक लोगों की जान चली गई तथा कई अस्पतालों में पर्याप्त आपातकालीन राहत सुविधाओं का अभाव था।
भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली को सुदृढ़ करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- विकेंद्रीकृत आपदा प्रशासन और निधि आवंटन: तीव्र मोचन सुनिश्चित करने के लिये निधि उपयोग में स्वायत्तता के साथ राज्य और ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMA और DDMA) को सशक्त बनाया जाना चाहिये।
- राजनीतिक हस्तक्षेप और विलंब से बचने के लिये एक सूत्र-आधारित, प्रभाव-संचालित NDRF आवंटन तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को पंचायती राज संस्थान (PRI) और शहरी स्थानीय निकायों (ULB) में एकीकृत करके स्थानीय शासन कार्यढाँचे को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- SDRF के उपयोग में समुत्थानशक्ति बढ़ाया जाना चाहिये ताकि राज्य उभरते आपदा जोखिमों पर अनुक्रिया कर सकें।
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और वास्तविक काल निगरानी को सुदृढ़ करना: स्थानीयकृत और सटीक पूर्वानुमान को बढ़ाने के लिये डॉपलर रडार नेटवर्क, उपग्रह इमेजिंग और AI-आधारित पूर्वानुमान विश्लेषण को उन्नत किया जाना चाहिये।
- अंतिम बिंदु तक कनेक्टिविटी के लिये, विशेष रूप से ग्रामीण और जनजातीय क्षेत्रों में, SMS, सोशल मीडिया और मोबाइल नेटवर्क के माध्यम से स्वचालित अलर्ट प्रणाली लागू किया जाना चाहिये।
- बाढ़, चक्रवात, भूकंप और हीट वेव्स को एकीकृत तरीके से कवर करने वाली बहु-खतरा पूर्व चेतावनी प्रणाली (MHEWS) विकसित किया जाना चाहिये।
- स्थानीय स्वयंसेवी नेटवर्क के माध्यम से समुदाय-आधारित प्रारंभिक चेतावनी प्रसार को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- जलवायु-लचीला बुनियादी अवसंरचना और शहरी नियोजन सुधार: राष्ट्रीय भवन संहिता (NBC), 2016 का सख्ती से क्रियान्वयन किया जाना चाहिये और यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि सभी नए निर्माण भूकंप, बाढ़ एवं चक्रवात प्रतिरोधी हों।
- शहरी बाढ़ को कम करने के लिये आर्द्रभूमि पुनरुद्धार, मैंग्रोव वृक्षारोपण और पारगम्य शहरी सतहों जैसे प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- स्मार्ट सिटी और अमृत परियोजनाओं में आपदा भेद्यता आकलन को एकीकृत करके जोखिम-संवेदनशील भूमि-उपयोग नियोजन को अनिवार्य बनाया जाना चाहिये।
- विशेष रूप से भूकंपीय क्षेत्रों में पुरानी इमारतों, पुलों और बांधों के आपदा-रोधी पुनर्निर्माण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- सतत् शहरीकरण को बढ़ावा देने के लिये हरित बुनियादी अवसंरचना को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
- सामुदायिक जागरूकता और आपदा तैयारी को बढ़ाना: तैयारी की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये स्कूल और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में आपदा जोखिम शिक्षा को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- समुदाय एवं कार्यस्थल स्तर पर नियमित रूप से आपदा अभ्यास, मॉक ईवैक्यूएशन और जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये।
- आपदा-प्रवण क्षेत्रों में प्रथम मोचनकर्त्ता के रूप में कार्य करने के लिये स्वयं सहायता समूहों (SHG), स्थानीय गैर सरकारी संगठनों और नागरिक प्रतिक्रिया टीमों को सुदृढ़ बनाया जाना चाहिये।
- अधिक प्रभावी जोखिम संचार के लिये स्थानीय मीडिया, पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों और डिजिटल आउटरीच का उपयोग किया जाना चाहिये।
- आपदा प्रबंधन के लिये प्रौद्योगिकी और नवाचार का लाभ उठाना: वास्तविक काल आपदा जोखिम मूल्यांकन के लिये AI, ब्लॉकचेन और GIS-आधारित निर्णय समर्थन प्रणालियों के उपयोग का विस्तार किया जाना चाहिये।
- बाँधों, पुलों और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में विफलता के प्रारंभिक संकेतों का पता लगाने के लिये IoT-आधारित स्मार्ट सेंसर तैनात किये जाने चाहिये।
- तेजी से राहत कार्यों के लिये ड्रोन आधारित आपदा मैपिंग और आपातकालीन आपूर्ति वितरण को मज़बूत किया जाना चाहिये।
- एकीकृत आपदा प्रबंधन मोबाइल अनुप्रयोग विकसित किया जाना चाहिये जो रियल टाइम अलर्ट, निकासी मार्ग और आपातकालीन संपर्क प्रदान करें।
- बाँधों, पुलों और भूस्खलन-प्रवण क्षेत्रों में विफलता के प्रारंभिक संकेतों का पता लगाने के लिये IoT-आधारित स्मार्ट सेंसर तैनात किये जाने चाहिये।
- स्वास्थ्य देखभाल और आपदा-पश्चात मोचन तंत्र को सुदृढ़ बनाना: आपदा प्रभावित क्षेत्रों में मोबाइल आपातकालीन अस्पताल और त्वरित चिकित्सा प्रतिक्रिया दल स्थापित किया जाना चाहिये।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) और ज़िला अस्पतालों को हीटवेव, बाढ़ और महामारी से निपटने की तैयारी के प्रोटोकॉल से लैस किया जाना चाहिये।
- पैरामेडिक्स, आशा कार्यकर्त्ताओं और आपदा स्वयंसेवकों को सामूहिक दुर्घटना प्रबंधन एवं मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
- आपदा के बाद त्वरित हस्तक्षेप के लिये आपातकालीन चिकित्सा आपूर्ति, टीके और पोर्टेबल डायग्नोस्टिक उपकरणों का भण्डारण किया जाना चाहिये।
- संस्थागत सुधार और अंतर-एजेंसी समन्वय: एकीकृत राष्ट्रीय आपातकालीन समन्वय केंद्र (NECH) के माध्यम से IMD, ISRO, NDMA और NDRF के बीच समन्वय बढ़ाया जाना चाहिये।
- प्रशासनिक अधिकारीयों, प्रथम मोचनकर्त्ताओं और कानून प्रवर्तन कर्मियों को आधुनिक आपदा प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल में प्रशिक्षित किया जाना चाहिये।
- समन्वित जलवायु अनुकूलन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रयासों के लिये अंतर-मंत्रालयी सहयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- वैज्ञानिक संस्थानों, आपदा मोचन बलों और स्थानीय सरकारों के बीच वास्तविक काल की खुफिया जानकारी साझा करना सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- वित्तीय समुत्थानशक्ति और आपदा बीमा तंत्र को मज़बूत करना: फसल हानि, संपत्ति की क्षति और आजीविका व्यवधानों को कवर करने के लिये राज्य स्तरीय आपदा जोखिम बीमा योजनाओं का विस्तार किया जाना चाहिये।
- पूर्वनिर्धारित आपदा ट्रिगर्स के आधार पर स्वचालित मुआवज़ा प्रदान करने के लिये पैरामीट्रिक बीमा मॉडल विकसित किया जाना चाहिये।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण परियोजनाओं के लिये कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) निधि को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- जलवायु अनुकूलन और आपदा-पूर्व शमन रणनीतियों का समर्थन करने के लिये एक समर्पित राष्ट्रीय लचीलापन कोष (NRF) की स्थापना की जानी चाहिये।
- कमज़ोर समुदायों के लिये सूक्ष्म बीमा कार्यक्रमों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिससे आपदा के बाद के आर्थिक झटकों को कम किया जा सके।
- प्रकृति-आधारित समाधान और पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापन को बढ़ावा देना: प्राकृतिक बाढ़ नियंत्रण और जलवायु अनुकूलन बढ़ाने के लिये बड़े पैमाने पर वनरोपण एवं आर्द्रभूमि संरक्षण परियोजनाओं को लागू किया जाना चाहिये।
- चक्रवातों और अपरदन से बचाने के लिये मैंग्रोव, प्रवाल भित्तियों और रेत के टीलों को पुनर्स्थापित करके तटीय क्षेत्र प्रबंधन को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- सूखे के जोखिम को कम करने के लिये संधारणीय कृषि और जल संरक्षण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- दीर्घकालिक पारिस्थितिक स्थिरता के लिये आपदा अनुकूलन को MGNREGA और जल शक्ति अभियान में एकीकृत किया जाना चाहिये।
- त्वरित पुनर्वास और आजीविका पुनर्प्राप्ति सुनिश्चित करना: आपदा-पश्चात पुनर्निर्माण प्रयासों को कारगर बनाने के लिये पूर्व-अनुमोदित आपदा पुनर्प्राप्ति कार्यढाँचे का विकास किया जाना चाहिये।
- आपदा प्रभावित आबादी को आर्थिक स्थिरता हासिल करने में मदद करने के लिये आजीविका विविधीकरण कार्यक्रमों को सुदृढ़ किया जाना चाहिये।
- आपदा-प्रवण क्षेत्रों में जलवायु-अनुकूल डिज़ाइन के साथ त्वरित आवास पुनर्निर्माण योजनाओं को क्रियान्वित किया जाना चाहिये।
- आघात से प्रभावित लोगों को शीघ्र स्वस्थ होने में सहायता के लिये मनो-सामाजिक सहायता कार्यक्रम स्थापित किया जाना चाहिये।
- आपदा प्रभावित क्षेत्रों में अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण के लिये स्थानीय उद्यमशीलता और व्यावसायिक प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत की आपदा प्रबंधन प्रणाली को बढ़ते खतरों से निपटने के लिये एक विकेंद्रीकृत, प्रौद्योगिकी-संचालित और जलवायु-अनुकूल कार्यढाँचे में विकसित होना चाहिये। आपदा प्रभावों को कम करने के लिये प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सामुदायिक तैयारी और संधारणीय बुनियादी अवसंरचना को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण (वर्ष 2015-2030) के लिये सेंदाई फ्रेमवर्क जोखिम न्यूनीकरण, समुत्थानशील पुनर्स्थापन और समावेशी शासन पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक सक्रिय दृष्टिकोण पर ज़ोर देता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. जलवायु परिवर्तन ने भारत में प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और गंभीरता को बढ़ा दिया है। विश्लेषण कीजिये कि जलवायु अनुकूलन और आपदा मोचन को भारत के शासन कार्यढाँचे में किस प्रकार एकीकृत किया जा सकता है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न 1. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (2020) प्रश्न 2. आपदा प्रभावों और लोगों के लिये उसके खतरे को परिभाषित करने के लिये भेद्यता एक अत्यावश्यक तत्त्व है। आपदाओं के प्रति भेद्यता का किस प्रकार और किन-किन तरीकों के साथ चरित्र-चित्रण किया जा सकता है? आपदाओं के संदर्भ में भेद्यता के विभिन्न प्रकारों पर चर्चा कीजिये। (2019) प्रश्न 3. भारत में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (डी.आर.आर.) के लिये 'सेंदाई आपदा जोखिम न्यूनीकरण प्रारूप (2015-2030)' हस्ताक्षरित करने से पूर्व एवं उसके पश्चात् किये गए विभिन्न उपायों का वर्णन कीजिये। यह प्रारूप 'होगो कार्रवाई प्रारूप, 2005' से किस प्रकार भिन्न है? (2018) |