भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत की निर्यात क्षमता का लाभ उठाना
यह एडिटोरियल 15/05/2025 को टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित “How To Attract World’s Top Manufacturers” पर आधारित है। यह लेख वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने की महत्त्वाकांक्षा पर प्रकाश डाला गया है, जिसे 8% की स्थिर विकास दर बनाए रखकर हासिल नहीं किया जा सकता। चीन और वियतनाम जैसे देशों की सफलता से प्रेरित निर्यात-आधारित विनिर्माण लाखों गुणवत्तापूर्ण नौकरियों का सृजन करने तथा जीवन स्तर में उल्लेखनीय सुधार करने की कुंजी है।
प्रिलिम्स के लिये:निर्यात, बेरोज़गारी, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना, विदेशी मुद्रा भंडार, भारत का वस्तु निर्यात, जेनेरिक दवाएँ, ऑस्ट्रेलिया (ECTA), UAE (CEPA), PM गति शक्ति योजना, विश्व बैंक का ग्लोबल परफॉरमेंस इंडेक्स, अल्प विकसित देश, कार्बन सीमा समायोजन तंत्र, भारतमाला, सागरमाला, RAMP (रेजिंग एंड एसीलेरेटिंग MSME परफॉरमेंस), TIES (व्यापार अवसरंचना निर्यात स्कीम), PLI (उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन), ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स मेन्स के लिये:भारत के आर्थिक परिवर्तन में निर्यात-आधारित विकास का योगदान, भारत की निर्यात वृद्धि और क्षमताओं को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ। |
वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा सालाना 8% से अधिक आर्थिक वृद्धि को बनाए रखने और इसे गति देने पर निर्भर करती है, जो 20 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था हासिल करने तथा लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालने के लिये आवश्यक है। निर्यात पर एक लेज़र-शार्प फोकस आवश्यक है, क्योंकि चीन, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे वैश्विक उदाहरण दर्शाते हैं कि निर्यात-आधारित विकास समृद्धि को किस प्रकार बढ़ाता है। भारत को वैश्विक निर्माताओं को आकर्षित करने के लिये सेवाओं और पूंजी-गहन क्षेत्रों पर अपनी वर्तमान निर्भरता से हटकर अपनी श्रम शक्ति एवं औद्योगिक क्षमता का लाभ उठाने की आवश्यकता है। विश्व स्तरीय विनिर्माण का केंद्र बनकर, भारत 200 मिलियन से अधिक गुणवत्तापूर्ण नौकरियों का सृजन कर सकता है तथा जीवन स्तर को बढ़ा सकता है।
निर्यात-आधारित विकास भारत के आर्थिक परिवर्तन को किस प्रकार गति देगा?
- रोज़गार सृजन को बढ़ावा: निर्यात आधारित विकास, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों का विस्तार करके लाखों रोज़गार सृजित किया जा सकता है।
- वैश्विक बाज़ारों पर ध्यान केंद्रित करने वाले क्षेत्र भारत के युवा कार्यबल को रोज़गार के अवसर प्रदान करते हैं, जिससे बेरोज़गारी और अल्परोज़गार में कमी आती है।
- उदाहरण के लिये, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना के तहत स्मार्टफोन निर्माण में तीव्रता से वृद्धि के कारण महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन हुआ है।
- वित्त वर्ष 2023 में भारत का स्मार्टफोन निर्यात बढ़कर ₹90,000 करोड़ हो गया, जो साल-दर-साल दोगुना है, जिससे 300,000 प्रत्यक्ष नौकरियाँ और 600,000 अप्रत्यक्ष नौकरियाँ उत्पन्न हुईं।
- व्यापार घाटे को कम करना और विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाना: निर्यात वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने से आयात पर निर्भरता कम हो जाती है, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और नवीकरणीय ऊर्जा घटकों जैसे क्षेत्रों में।
- निर्यात को बढ़ावा देने से न केवल व्यापार घाटा कम होता है, बल्कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार भी सुदृढ़ होता है, जिससे अर्थव्यवस्था बाह्य झटकों के प्रति अधिक समुत्थानशील बनती है।
- वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान भारत का व्यापारिक निर्यात 6% बढ़कर रिकॉर्ड 447 बिलियन डॉलर हो गया, जिसे पेट्रोलियम, फार्मा एवं रसायन और समुद्री जैसे क्षेत्रों के आउटबाउंड शिपमेंट में स्वस्थ वृद्धि तथा दिसंबर 2024 में व्यापार घाटे को कम करके 21.94 बिलियन डॉलर तक लाने में मदद मिली।
- वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में एकीकरण: निर्यात-संचालित विनिर्माण भारत को वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एकीकृत करता है, जिससे उन्नत प्रौद्योगिकियों एवं अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं तक पहुँच आसान हो जाती है।
- इससे उत्पादकता और नवाचार में सुधार हो सकता है, जिससे घरेलू उद्योग वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बन सकेंगे।
- उदाहरण के लिये, एप्पल और उसके आपूर्तिकर्त्ताओं का लक्ष्य सत्र 2026-27 तक वैश्विक iPhone विनिर्माण में 32% और भारत में अपने उत्पादन मूल्य का 26% हिस्सा हासिल करना है।
- क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना: निर्यातोन्मुख विकास से टियर-2 और टियर-3 शहरों में औद्योगीकरण को बढ़ावा मिल सकता है, आर्थिक गतिविधियों का विकेंद्रीकरण हो सकता है तथा क्षेत्रीय असमानताओं में कमी आ सकती है।
- विनिर्माण केंद्रों के विस्तार से, विशेषकर तमिलनाडु, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में, अविकसित क्षेत्रों में समावेशी विकास हुआ है।
- वित्त वर्ष 2023 में, तमिलनाडु भारत में इलेक्ट्रॉनिक सामान का अग्रणी निर्यातक बनकर उभरा, जिसने देश के कुल इलेक्ट्रॉनिक सामान निर्यात में 30% का योगदान दिया, जो क्षेत्रीय निर्यात केंद्रों के उदय को दर्शाता है।
- तकनीकी उन्नयन को बढ़ावा देना: निर्यात-संचालित क्षेत्र फर्मों को उन्नत तकनीक अपनाने और वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये गुणवत्ता मानकों में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित करते हैं। इससे उद्योगों में तकनीकी उन्नयन और दक्षता में वृद्धि होती है।
- उदाहरण के लिये, मात्रा के संदर्भ में वैश्विक निर्यात में जेनेरिक दवाओं का हिस्सा 20% है, जिससे देश वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता बन गया है, जो वैश्विक मानकों के पालन तथा जेनेरिक व बायोसिमिलर में नवाचार द्वारा प्रेरित है।
- सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया को विश्व की सबसे बड़ी वैक्सीन निर्माता कंपनी के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसकी बहुउद्देशीय उत्पादन संस्थान मंजरी, पुणे में है, जिसकी वार्षिक क्षमता 4 बिलियन खुराक का उत्पादन है।
- उदाहरण के लिये, मात्रा के संदर्भ में वैश्विक निर्यात में जेनेरिक दवाओं का हिस्सा 20% है, जिससे देश वैश्विक स्तर पर जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा प्रदाता बन गया है, जो वैश्विक मानकों के पालन तथा जेनेरिक व बायोसिमिलर में नवाचार द्वारा प्रेरित है।
- भारत की सामरिक भू-राजनीतिक स्थिति को सुदृढ़ करना: निर्यात वृद्धि भारत की सॉफ्ट पावर को बढ़ाती है और प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ अंतरनिर्भरता बढ़ाकर आर्थिक कूटनीति को मज़बूत करती है।
- यह द्विपक्षीय और बहुपक्षीय समझौतों के माध्यम से ASEAN और अमेरिका के साथ व्यापार संबंधों को मज़बूत करने में सहायक रहा है।
- उदाहरण के लिये, भारत ने वर्ष 2022 में ऑस्ट्रेलिया (ECTA) और UAE (CEPA) के साथ व्यापार समझौतों पर हस्ताक्षर किये जिससे व्यापार की मात्रा बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त यह यूरोपीय संघ और यूनाइटेड किंगडम के साथ वार्ता कर रहा है।
- हरित विकास और संवहनीयता में तेज़ी लाना: निर्यातोन्मुख नवीकरणीय ऊर्जा और हरित प्रौद्योगिकी क्षेत्र भारत को वैश्विक ऊर्जा परिवर्तन में अग्रणी बना सकते हैं।
- हरित हाइड्रोजन और सौर ऊर्जा निर्यात पर केंद्रित नीतियाँ आर्थिक एवं पर्यावरणीय दोनों उद्देश्यों के अनुरूप हैं।
- उदाहरण के लिये, घरेलू निर्माताओं ने वर्ष 2023 में 4.8 गीगावाट सौर मॉड्यूल का निर्यात किया, जो वर्ष 2022 में 1.6 गीगावाट की तुलना में 204% अधिक है।
- इसके अलावा, वर्ष 2023 में भारत का पवन टरबाइन घटकों का निर्यात राजस्व के आधार पर वर्ष 2019 की तुलना में लगभग दोगुना हो गया।
- निर्यातोन्मुख विकास के माध्यम से विदेशी निवेश आकर्षित करना: मज़बूत निर्यात क्षेत्र वाले देश उच्च प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित करते हैं, क्योंकि वैश्विक कंपनियाँ अंतर्राष्ट्रीय व्यापार नेटवर्क में एकीकृत अर्थव्यवस्थाओं को प्राथमिकता देती हैं।
- इससे पूंजी प्रवाह और प्रौद्योगिकी अंतरण को और भी बढ़ावा मिलेगा।
- भारत ने वित्त वर्ष 2021-22 में 83.57 बिलियन अमरीकी डॉलर का अब तक का सबसे अधिक वार्षिक FDI प्रवाह दर्ज किया है, जिसमें इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे निर्यात-केंद्रित क्षेत्रों का प्रमुख योगदान है।
भारत की निर्यात वृद्धि और क्षमताओं को प्रभावित करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- उच्च रसद लागत और निम्नस्तरीय व्यापार अवसंरचना: भारत की रसद अकुशलताएँ और पुराना अवसंरचना निर्यात लागत को बढ़ाती है, जिससे भारतीय सामान वैश्विक स्तर पर कम प्रतिस्पर्द्धी बन जाते हैं।
- सीमित कंटेनर क्षमता, बंदरगाहों पर भीड़भाड़ एवं अंतिम बिंदु तक कनेक्टिविटी की चुनौतियाँ समस्या को और भी बढ़ा देती हैं।
- PM गति शक्ति योजना जैसी पहलों के माध्यम से सुधार के बावजूद, भारत का लॉजिस्टिक्स लागत-GDP अनुपात वैश्विक बेंचमार्क की तुलना में उच्च बना हुआ है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में बताया गया है कि भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद के 14-18% के दायरे में रही है, जबकि वैश्विक बेंचमार्क 8% है।
- यद्यपि विश्व बैंक के लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) में भारत की रैंकिंग वर्ष 2023 में सुधरकर 38वीं हो गई है, लेकिन बंदरगाह संचालन में बाधाएँ निर्यात दक्षता को प्रभावित कर रही हैं।
- निर्यात बास्केट में विविधीकरण का अभाव: भारत की निर्यात बास्केट कुछ क्षेत्रों, जैसे IT सेवाएँ, पेट्रोलियम उत्पाद, तथा रत्न एवं आभूषण तक ही सीमित है, जिससे यह क्षेत्रवार मंदी के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- हरित ऊर्जा निर्यात जैसे उभरते क्षेत्र अभी भी अविकसित हैं। मूल्य-वर्द्धित निर्यात की कमी, विशेष रूप से कृषि और वस्त्रों में, विकास की संभावनाओं को और भी सीमित करती है।
- वित्त वर्ष 2023 में, अकेले पेट्रोलियम उत्पादों का कुल व्यापारिक निर्यात में 21.1% हिस्सा था, जबकि नवंबर 2024 में भारत के व्यापारिक निर्यात में 4.83% की गिरावट हुई।
- वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में कमज़ोर एकीकरण: अपर्याप्त आपूर्ति शृंखला नेटवर्क, कम अनुसंधान एवं विकास, निवेश और व्यापार सुविधा समझौतों की कमी के कारण GVC में भारत की भागीदारी सीमित बनी हुई है।
- चीन और वियतनाम के विपरीत, भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्रों के लिये एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति बनाने में संघर्ष करना पड़ा है।
- विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा वस्त्र उत्पादक होने के बावजूद, सीमित स्वचालन और नवाचार के कारण भारत वस्त्र निर्यात में बांग्लादेश से पीछे है।
- यद्यपि इसका आंशिक कारण बांग्लादेश का अल्प विकसित देश होने के कारण शुल्क और कोटा-मुक्त अभिगम है, फिर भी भारत और बांग्लादेश के वस्त्र उद्योगों के बीच संरचनात्मक अंतर अभी भी कायम है।
- इसके अलावा, विनिर्माण केंद्र बनने की भारत की आकांक्षाओं के लिये एक चुनौती सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों पर 10% आयात शुल्क है, जो वियतनाम के लगभग 5% के औसत आयात शुल्क से अधिक है।
- व्यापार संरक्षणवाद और भू-राजनीतिक अनिश्चितताएँ: व्यापार संरक्षणवाद, टैरिफ और भू-राजनीतिक संरेखण में बदलाव भारत की निर्यात वृद्धि के लिये महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ खड़ी करते हैं।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों ने कार्बन टैरिफ एवं कड़े पर्यावरण मानक लागू कर दिये हैं, जिससे भारत के कार्बन-गहन निर्यात पर असर पड़ सकता है।
- इसके अतिरिक्त, रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के कारण महत्त्वपूर्ण कच्चे माल पर भी असर पड़ा है।
- उदाहरण: कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (CBAM) के पूर्णतः क्रियान्वित हो जाने पर, भारत को यूरोपीय संघ (EU) को अपने इस्पात निर्यात पर €173.8 प्रति टन (₹15,394) का शुल्क देना होगा।
- उदाहरण के लिये, अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे विकसित देशों ने कार्बन टैरिफ एवं कड़े पर्यावरण मानक लागू कर दिये हैं, जिससे भारत के कार्बन-गहन निर्यात पर असर पड़ सकता है।
- सीमित निर्यात वित्तपोषण और ऋण सुलभता: निर्यातकों, विशेष रूप से लघु और मध्यम उद्यमों (SME) को किफायती निर्यात वित्तपोषण प्राप्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- उच्च ब्याज दरें, जटिल ऋण प्रक्रियाएँ और निर्यात ऋण योजनाओं के बारे में सीमित जागरूकता, उनके परिचालन को बढ़ाने तथा नए बाज़ारों में विस्तार करने की क्षमता को सीमित करती हैं।
- हाल ही में, आर्थिक ऋण में समग्र वृद्धि के बावजूद, भारतीय निर्यातकों को भारी ऋण संकट का सामना करना पड़ रहा है।
- पिछले दो वर्षों में निर्यात ऋण में 5% की गिरावट आई है तथा निर्यात के लिये प्राथमिकता क्षेत्र ऋण में 41% की गिरावट आई है।
- भारतीय निर्यात संगठन महासंघ (FIEO) ने चिंता जताते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक और वित्त मंत्रालय से इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
- प्रमुख बाज़ारों में गैर-टैरिफ बाधाएँ (NTB): कड़े गुणवत्ता मानकों, तकनीकी विनियमों और प्रमाणन आवश्यकताओं सहित गैर-टैरिफ बाधाएँ भारतीय निर्यातकों के लिये महत्त्वपूर्ण बाधाओं के रूप में कार्य करती हैं।
- यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे प्रमुख बाज़ार फार्मास्यूटिकल्स, कृषि-उत्पादों और इंजीनियरिंग वस्तुओं पर कड़े मानक लागू कर रहे हैं, जिससे अनुपालन लागत बढ़ रही है।
- पिछले चार वर्षों में, भारत से 3,925 मानव खाद्य निर्यात शिपमेंट को सैनिटरी और फाइटोसैनिटरी उपायों का पालन न करने के कारण अमेरिकी सीमा शुल्क पर अस्वीकार कर दिया गया है।
- इसके अलावा, 2023 में, यूरोपीय संघ ने चावल के शिपमेंट में पाए जाने वाले कीटनाशक अवशेषों पर अलर्ट में वृद्धि जारी की, विशेष रूप से भारत और पाकिस्तान से निर्यात होने वाला बासमती चावल, जो कीटनाशकों के लिये यूरोपीय संघ की मैक्सिमम रेज़ीड्यू लिमिट (MRL) को पूरा नहीं करता है।
- अस्थिर वैश्विक मांग और मंदी का दबाव: वैश्विक आर्थिक मंदी और विकसित बाज़ारों में मुद्रास्फीति का दबाव भारतीय निर्यात की मांग को कम करता है।
- IT सेवाएँ और वस्त्र जैसे प्रमुख क्षेत्र इन उतार-चढ़ावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
- अमेरिका और यूरोपीय संघ में जारी मौद्रिक सख्ती ने उपभोक्ता खर्च एवं आयात मांग को बाधित कर दिया है।
- उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2024 में वस्त्र और परिधान निर्यात में 3.24% की गिरावट देखी गई, जो कुल 34.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा (हालाँकि हाल ही में इसमें सुधार हुआ है)।
- IT सेवाएँ और वस्त्र जैसे प्रमुख क्षेत्र इन उतार-चढ़ावों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं।
निर्यात वृद्धि और क्षमताओं को बढ़ावा देने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?
- लागत कम करने के लिये व्यापार बुनियादी अवसंरचना का आधुनिकीकरण: भारत को निर्यात लागत कम करने और दक्षता में सुधार करने के लिये अपने लॉजिस्टिक्स और व्यापार बुनियादी अवसंरचना को उन्नत करना जारी रखना चाहिये।
- PM गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के माध्यम से मल्टी-मॉडल परिवहन नेटवर्क का विस्तार, चल रही भारतमाला और सागरमाला परियोजनाओं का पूरक बन सकता है, जिससे उत्पादन केंद्रों से बंदरगाहों तक निर्बाध संपर्क सुनिश्चित हो सकेगा।
- AI-आधारित जोखिम प्रबंधन प्रणालियों जैसे डिजिटल उपकरणों का प्रयोग करके सीमा शुल्क प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने से निर्यात में होने वाले विलंब में भी कमी आएगी।
- परिवहन बाधाओं को कम करने के लिये बंदरगाहों के निकट निर्यात केंद्र बनाने पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिये।
- निर्यात बास्केट और बाज़ारों में विविधता लाना: भारत को उच्च मूल्य वाले विनिर्माण और प्रसंस्कृत वस्तुओं को बढ़ावा देकर पेट्रोलियम उत्पादों, IT सेवाओं और रत्न एवं आभूषण जैसी पारंपरिक निर्यात वस्तुओं पर अपनी निर्भरता से आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा, अर्द्धचालक और इलेक्ट्रिक वाहन जैसे क्षेत्रों में निर्यात को प्रोत्साहित करके हरित प्रौद्योगिकियों की वैश्विक मांग को पूरा किया जा सकता है।
- साथ ही, लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और ओशिनिया में गैर-पारंपरिक बाज़ारों तक पहुँचने के लिये भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA और भारत-UAE CEPA जैसे व्यापार समझौतों का लाभ उठाया जाना चाहिये, जिससे अमेरिका एवं यूरोपीय संघ पर निर्भरता कम हो सके।
- निर्यात पावरहाउस के रूप में MSME को बढ़ावा देना: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), जो भारत के निर्यात में लगभग 45% का योगदान करते हैं, को वैश्विक स्तर पर विस्तार करने के लिये वित्तीय एवं तकनीकी सहायता बढ़ाने की आवश्यकता है।
- RAMP (रेजिंग एंड एसीलेरेटिंग MSME परफॉरमेंस) कार्यक्रम को TIES (व्यापार अवसरंचना निर्यात स्कीम) के साथ जोड़ने से विनिर्माण क्षमताओं को उन्नत करने और लॉजिस्टिक्स में सुधार के लिये MSME को लक्षित सहायता प्रदान की जा सकती है।
- इसके अतिरिक्त, कम ब्याज दरों पर निर्यात ऋण तक अभिगम को सुविधाजनक बनाना और वैश्विक व्यापार के लिये GeM जैसे विपणन प्लेटफॉर्मों का विस्तार करना MSME को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये सशक्त बना सकता है।
- विनिर्माण में तकनीकी उन्नयन को बढ़ावा देना: भारतीय उद्योगों को उत्पाद की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये स्वचालन, रोबोटिक्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता सहित उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों के अंगीकरण की आवश्यकता है।
- PLI (उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन) योजनाओं के दायरे का विस्तार करके इसमें अधिक उभरते क्षेत्रों जैसे कि सटीक मशीनरी को शामिल करने से उद्योगों को आधुनिकीकरण के लिये प्रोत्साहन मिल सकता है।
- डिजिटल इंडिया पहल को औद्योगिक समूहों के साथ एकीकृत करने से स्मार्ट विनिर्माण प्रौद्योगिकियों को अपनाने में तेज़ी आएगी, जिससे वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में भागीदारी संभव होगी।
- वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) एकीकरण को मज़बूत करना: भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोटिव घटकों और वस्त्र जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्त्ता के रूप में अपनी स्थिति स्थापित करनी चाहिये।
- वैश्विक फर्मों के साथ संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करना तथा वियतनाम के इलेक्ट्रॉनिक्स केंद्रों के समान विनिर्माण क्लस्टरों का निर्माण करना वैश्विक निवेश को आकर्षित कर सकता है।
- PLI योजनाओं को स्किल इंडिया कार्यक्रमों के साथ जोड़ने से GVC आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये प्रशिक्षित कार्यबल की उपलब्धता सुनिश्चित होगी, जिससे भारतीय कंपनियाँ एप्पल व सैमसंग जैसी वैश्विक कंपनियों के लिये आपूर्तिकर्त्ता के रूप में काम कर सकेंगी।
- गैर-टैरिफ बाधाओं का समाधान: वैश्विक बाज़ारों में गैर-टैरिफ बाधाओं का मुकाबला करने के लिये, भारत को घरेलू परीक्षण, प्रमाणन और गुणवत्ता आश्वासन तंत्र विकसित करना चाहिये जो अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप हो।
- प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के साथ पारस्परिक मान्यता समझौते (MRA) स्थापित करने से निर्यातकों के लिये अनुपालन लागत कम हो सकती है।
- भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI) की पहलों को निर्यात संवर्द्धन परिषदों के साथ जोड़ने से निर्यातकों को वैश्विक नियामक कार्यढाँचे को प्रभावी ढंग से समझने में मदद मिलेगी।
- डिजिटल व्यापार और ई-कॉमर्स निर्यात का विस्तार: भारत को डिजिटल व्यापार को बढ़ावा देकर तीव्र गति से बढ़ते वैश्विक ई-कॉमर्स बाज़ार का लाभ उठाना चाहिये।
- भारतीय विनिर्माताओं को अंतर्राष्ट्रीय ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बिक्री के लिये सशक्त बनाने तथा सीमापार डिजिटल भुगतान की सुविधा प्रदान करने से उनका वैश्विक अभिगम बढ़ेगा।
- ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) को निर्यात संवर्द्धन पहलों के साथ एकीकृत किया जा सकता है, ताकि भारतीय लघु व्यवसायों को वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भाग लेने में सक्षम बनाया जा सके।
- भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में दृश्यता और मांग बढ़ाने के लिये ‘ब्रांड इंडिया’ पहल के तहत अपने उत्पादों एवं सेवाओं का सक्रिय रूप से विपणन करना चाहिये।
- उच्च तकनीक और नवाचार निर्यात के लिये अनुसंधान एवं विकास को मज़बूत करना: भारत को नवाचार-संचालित निर्यात को बढ़ावा देने के लिये अनुसंधान एवं विकास पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, सेमीकंडक्टर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में।
- अनुसंधान एवं विकास के लिये सकल घरेलू उत्पाद का उच्चतर हिस्सा आवंटित करने तथा निर्यात-केंद्रित नवाचार पार्क बनाने से भारतीय कंपनियाँ उच्च मूल्य वाले वैश्विक बाज़ारों में प्रतिस्पर्द्धा करने में सक्षम होंगी।
- वैश्विक विश्वविद्यालयों और संगठनों के साथ सहयोग करने से प्रौद्योगिकी अंतरण को बढ़ावा मिल सकता है तथा नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा मिल सकता है।
- भारत को वैश्विक कौशल निर्यात केंद्र के रूप में स्थापित करना: भारत वृद्ध होती आबादी और श्रम की कमी का सामना कर रहे विकसित देशों के साथ समझौते करके स्वयं को कुशल जनशक्ति निर्यात के केंद्र के रूप में सक्रिय रूप से बढ़ावा दे सकता है।
- वैश्विक प्रतिभा साझेदारी मॉडल भारतीय श्रमिकों को मेज़बान देशों की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण प्राप्त करने में सहायक हो सकता है, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा, निर्माण और IT जैसे उच्च मांग वाले क्षेत्रों में।
- इस रणनीति से न केवल धन प्रेषण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत के लिये एक वैश्विक कार्यबल ब्रांडिंग भी तैयार होगी।
- निर्यात-संबद्ध विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) का निर्माण: भारत निर्यात-विशिष्ट SPV की स्थापना कर सकता है, जो उद्योगों, राज्यों और व्यापार परिषदों से संसाधनों को एकत्रित करके एक ही क्षेत्र में निर्यात को बढ़ाने पर सामूहिक रूप से ध्यान केंद्रित करेगा।
- उदाहरण के लिये, हरित हाइड्रोजन या अर्द्धचालकों के लिये एक SPV अनुसंधान एवं विकास, वित्तपोषण, बुनियादी अवसंरचना में निवेश और निर्यात वित्तपोषण को समेकित कर सकता है।
- इस दृष्टिकोण से उद्योगों को बिना किसी अतिव्यापन या विखंडन के उच्च-संभावित निर्यात क्षेत्रों के विकास में तेज़ी से आगे बढ़ने में मदद मिलेगी।
- अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के निर्यात को बढ़ावा देना: ISRO के नेतृत्व में भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र ने कम लागत वाले और विश्वसनीय अंतरिक्ष मिशनों के लिये वैश्विक मान्यता प्राप्त की है।
- इस प्रतिष्ठा का लाभ उठाकर भारत स्वयं को उपग्रहों, प्रक्षेपण सेवाओं और अंतरिक्ष-संबंधी घटकों सहित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के एक प्रमुख निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है।
- भारतीय अंतरिक्ष नीति, 2023 के अंतर्गत निजी भागीदारों के साथ सहयोग तथा वैश्विक स्तर पर वाणिज्यिक उपयोग के लिये भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों की ब्रांडिंग, एक अद्वितीय निर्यात स्थान बना सकती है।
भारत में प्रमुख निर्यात केंद्र कौन-से हैं?
- गुजरात: वस्त्र, पेट्रोकेमिकल्स और रत्न (प्रमुख केंद्र: मुंद्रा, कांडला बंदरगाह)
- तमिलनाडु: ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र (प्रमुख बंदरगाह: चेन्नई)
- महाराष्ट्र: फार्मास्यूटिकल्स, IT सेवाएँ, इंजीनियरिंग (प्रमुख बंदरगाह: JNPT)
- कर्नाटक: आईटी सेवाएँ, एयरोस्पेस, इलेक्ट्रॉनिक्स (IT हब के रूप में बेंगलुरु)
- आंध्र प्रदेश: समुद्री उत्पाद, कृषि निर्यात, वस्त्र (प्रमुख केंद्र: विशाखापत्तनम)
- राजस्थान: रत्न, आभूषण, हस्तशिल्प (प्रमुख केंद्र: जयपुर, जोधपुर, उदयपुर)
- पश्चिम बंगाल: जूट, चाय, चमड़ा (प्रमुख केंद्र: कोलकाता)
- ओडिशा: खनिज, इस्पात, एल्युमिनियम (प्रमुख बंदरगाह: पारादीप)
- असम एवं पूर्वोत्तर: चाय, जैविक उत्पाद, हस्तशिल्प (मुख्य फोकस: ASEAN कनेक्टिविटी)
निष्कर्ष:
भारत एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहाँ निर्यात-संचालित विकास उसके आर्थिक भविष्य को बदल सकता है। डिजिटल क्षमताओं का लाभ उठाकर, विनिर्माण कौशल को उन्नत करके और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में स्वयं को एक विश्वसनीय विकल्प के रूप में स्थापित करके, भारत एक प्रमुख निर्यात शक्ति बन सकता है। वर्ष 2047 तक 20 ट्रिलियन डॉलर के आर्थिक लक्ष्य तक पहुँचने के लिए बुनियादी अवसंरचना के आधुनिकीकरण और MSME को सशक्त बनाने के अलावा उच्च मूल्य विनिर्माण, हरित प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी सहित उद्योगों के विकास पर रणनीतिक ध्यान देने की आवश्यकता होगी।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत के आर्थिक परिवर्तन में निर्यात-आधारित विकास मॉडल के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। सतत् आर्थिक विकास हासिल करने के लिये इस मॉडल को अपनाने में भारत के लिये प्रमुख चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न 1. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP की वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची दर का संकेत नहीं करतीं, यदि— (2018) (a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है। उत्तर: (c) प्रश्न 2. फरवरी 2006 में लागू SEZ अधिनियम, 2005 के कुछ उद्देश्य हैं। इस संदर्भ में, निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)
उपर्युक्त में से इस अधिनियम के उद्देश्य कौन-से हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (a) प्रश्न 3. एक "परिबद्ध अर्थव्यवस्था" एक अर्थव्यवस्था है जिसमें (2011) (a) मुद्रा आपूर्ति पूरी तरह से नियंत्रित है उत्तर: (d) |