भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सुधार
यह एडिटोरियल 10/12/2024 को द हिंदू बिज़नेस लाइन में प्रकाशित “Elevating manufacturing to global standards” पर आधारित है। यह लेख ओम्नीबस तकनीकी विनियमन जैसे सुधारों के माध्यम से विनिर्माण के सकल घरेलू उत्पाद में योगदान को 15% से 25% तक बढ़ाने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को सामने लाता है, जो गुणवत्ता मानकीकरण, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता और सतत् विकास पर केंद्रित है।
प्रिलिम्स के लिये:विनिर्माण, मेक इन इंडिया, प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना, इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण योजना, भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA, उद्योग 4.0, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, सक्रिय औषधीय अवयव (API), आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना, विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (LPI)- 2023, इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग मेन्स के लिये:भारत के विनिर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति, कारण क्यों भारत का विनिर्माण क्षेत्र वैश्विक मानकों से पीछे है। |
भारत अपनी विनिर्माण यात्रा में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें रणनीतिक विनियामक सुधारों के माध्यम से सकल घरेलू उत्पाद में इस क्षेत्र के योगदान को 15% से बढ़ाकर 25% करने का एक महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण है। मशीनरी और विद्युत उपकरण सुरक्षा (सर्वव्यापी तकनीकी विनियमन) आदेश, 2024 (जो भारत में मशीनरी एवं विद्युत उपकरणों के लिये अनिवार्य सुरक्षा मानक निर्धारित करता है) की शुरुआत उत्पाद की गुणवत्ता को मानकीकृत करने, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने तथा औद्योगिक विकास के लिये एक सुदृढ़ पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की दिशा में एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करती है। यह रणनीतिक हस्तक्षेप एक ऐसे विनिर्माण क्षेत्र के निर्माण के लिये भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है जो अभिनव, संधारणीय और वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्द्धी है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र की वर्तमान स्थिति क्या है?
- विनिर्माण भारत की आर्थिक वृद्धि के एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ के रूप में उभर रहा है, जो सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रहा है।
- महामारी से पूर्व, इस क्षेत्र ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 16-17% का योगदान दिया था, जिसमें 27.3 मिलियन श्रमिकों को रोज़गार मिला था।
- सरकार का लक्ष्य वर्ष 2025 तक इस हिस्सेदारी को 25% तक बढ़ाना है।
- वर्ष 2030 तक भारत का लक्ष्य वैश्विक अर्थव्यवस्था में प्रतिवर्ष 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक जोड़ना है, जो वैश्विक आपूर्ति शृंखला में इसकी रणनीतिक भूमिका को दर्शाता है।
- महामारी से पूर्व, इस क्षेत्र ने भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 16-17% का योगदान दिया था, जिसमें 27.3 मिलियन श्रमिकों को रोज़गार मिला था।
- क्षेत्रीय विकास और प्रदर्शन: भारत के विनिर्माण क्षेत्र ने हाल के वर्षों में मज़बूत वृद्धि प्रदर्शित की है, जो उत्पादन, निर्यात और घरेलू मांग में वृद्धि से प्रेरित है।
- HSBC मैन्युफैक्चरिंग PMI मार्च 2024 में 59.1 के 16 वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया जो उत्पादन, नए ऑर्डर और रोज़गार सृजन में प्रबल वृद्धि का संकेत देता है।
- वित्त वर्ष 2023 में विनिर्माण निर्यात 447.46 बिलियन अमेरिकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया, जो वित्त वर्ष 2022 की तुलना में 6.03% की वृद्धि दर्ज करता है।
- निवेश और रोज़गार रुझान: विनिर्माण क्षेत्र में FDI प्रवाह 165.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो पिछले दशक की तुलना में 69% की वृद्धि दर्शाता है।
- विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार में लगातार वृद्धि हुई है, जो सत्र 2017-18 में 5.7 करोड़ से बढ़कर सत्र 2019-20 में 6.24 करोड़ हो गया है तथा PLI प्रोत्साहनों से रोज़गार सृजन में भी वृद्धि हुई है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र के प्रमुख विकास चालक कौन-से हैं?
- सरकारी पहल और नीतिगत सुधार: सरकार ने विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता और बुनियादी अवसंरचना को बढ़ावा देने के लिये ‘मेक इन इंडिया’ एवं ‘प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना’ जैसी प्रमुख पहल शुरू की हैं।
- उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना 14 क्षेत्रों को कवर करती है, जिससे 500 बिलियन डॉलर मूल्य का विनिर्माण उत्पादन सृजित होने की उम्मीद है।
- इसके अलावा, विनिर्माण उद्योग में वित्त वर्ष 2022 में लगभग 21.34 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश हुआ, जो नीति प्रभावशीलता को दर्शाता है।
- बढ़ती घरेलू मांग: भारत का बढ़ता मध्यम वर्ग, शहरीकरण और बढ़ती प्रयोज्य आय ऑटोमोबाइल, उपभोक्ता वस्तुओं एवं इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग को बढ़ाती है, जिससे विनिर्माण के लिये एक मज़बूत घरेलू बाज़ार का निर्माण होता है।
- भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स का घरेलू बाज़ार वर्ष 2025 तक 400 बिलियन डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो स्मार्टफोन और उपकरणों की बिक्री से प्रेरित है।
- वर्ष 2023 में ऑटो सेक्टर में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई, जिसे इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME) योजना जैसे सरकारी EV प्रोत्साहनों से समर्थन मिला।
- रणनीतिक व्यापार समझौते और निर्यात संवृद्धि: भारत का संयुक्त अरब अमीरात के साथ CEPA जैसे प्रमुख व्यापार समझौतों और यूरोपीय संघ व ब्रिटेन के साथ वार्ता पर भारत का ध्यान केंद्रित होने से निर्मित वस्तुओं के लिये नए निर्यात बाज़ार खुलेंगे।
- यह चीनी आयात से विविधीकरण द्वारा पूरित है।
- वित्त वर्ष 2023 में भारत का निर्यात 6% बढ़कर 447 बिलियन डॉलर हो गया। अकेले भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA से वर्ष 2030 से पूर्व द्विपक्षीय व्यापार बढ़कर 100 बिलियन डॉलर हो जाने का अनुमान है।
- तकनीकी उन्नति और उद्योग 4.0: स्वचालन, IoT, AI और रोबोटिक्स के अंगीकरण से भारतीय विनिर्माण एक उच्च-मूल्य, प्रौद्योगिकी-संचालित क्षेत्र में परिवर्तित हो रहा है, जिससे उत्पादकता बढ़ रही है और लागत कम हो रही है।
- भारतीय विनिर्माण में उद्योग 4.0 एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें वर्ष 2025 तक दो तिहाई से अधिक भारतीय निर्माता डिजिटल परिवर्तन को अपना लेंगे।
- सरकार का डिजिटल इंडिया अभियान, विशेष रूप से SME के बीच तकनीक अपनाने को बढ़ावा देकर, इसकी पूर्ति करता है।
- हरित विनिर्माण में बढ़ता निवेश: स्थिरता और स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान भारत में हरित विनिर्माण प्रथाओं को बढ़ावा दे रहा है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ उद्योगों को पर्यावरणीय दृष्टि से संधारणीय तरीके अपनाने के लिये प्रोत्साहित करती हैं।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सालाना 5 मिलियन मीट्रिक टन हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करना है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 125 गीगावाट (वर्ष 2023) है, जो सस्ती, हरित/स्वच्छ विद्युत ऊर्जा के साथ विनिर्माण प्रक्रियाओं का समर्थन करती है।
- वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में समुत्थानशीलन: वैश्विक विनिर्माण कंपनियों के लिये चीन का विकल्प बनने पर भारत का ध्यान वैश्विक विविधीकरण प्रवृत्तियों के अनुरूप है।
- PLI योजना जैसी नीतियों का उद्देश्य भारत को इलेक्ट्रॉनिक्स और फार्मास्यूटिकल्स जैसे महत्त्वपूर्ण GVC में एकीकृत करना है।
- अप्रैल 2021 में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने तथा उन्हें सुदृढ़ करने के लिये आपूर्ति शृंखला सुदृढ़ीकरण पहल (SCRI) की शुरुआत की।
- भारत सक्रिय औषधीय अवयवों (API) का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसकी वैश्विक API उद्योग में 8% हिस्सेदारी है, जिससे GVC में इसकी स्थिति मज़बूत हुई है।
- विनिर्माण में MSME के लिये समर्थन: सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) विनिर्माण की रीढ़ हैं तथा इन्हें आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) और प्रौद्योगिकी उन्नयन कार्यक्रम जैसे सरकारी उपायों द्वारा समर्थन दिया जाता है।
- MSME भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 30% और भारत के निर्यात में 45% से अधिक का योगदान करते हैं। ECLGS ने 3.68 लाख करोड़ रुपए के 1.19 करोड़ ऋणों की गारंटी दी है, जिससे इन उद्यमों को महत्त्वपूर्ण वित्तीय सहायता मिली है।
- क्षेत्र-विशिष्ट विकास उत्प्रेरक: ऑटोमोटिव, फार्मास्यूटिकल्स और टेक्सटाइल जैसे प्रमुख क्षेत्रों में सुधारों, निवेश प्रोत्साहनों एवं वैश्विक साझेदारियों के माध्यम से लक्षित विकास देखा गया है।
- भारत अब विश्व का सबसे बड़ा दोपहिया वाहन निर्माता है। वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का वस्त्र और परिधान निर्यात 44.4 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसे “तकनीकी वस्त्र मिशन (NTTM)” जैसी योजनाओं से समर्थन मिला।
- आत्मनिर्भरता पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना (आत्मनिर्भर भारत): आत्मनिर्भरता अभियान इलेक्ट्रॉनिक्स, रक्षा उपकरण और अर्द्धचालक जैसे महत्त्वपूर्ण वस्तुओं के घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देता है, आयात निर्भरता को कम करता है तथा स्थानीय रोज़गार सृजन करता है।
- भारत ने वर्ष 2023 में 10 बिलियन डॉलर की सेमीकंडक्टर विनिर्माण प्रोत्साहन योजना का अनावरण किया, जिसका उद्देश्य घरेलू सेमीकंडक्टर उद्योग विकसित करना है।
- दिसंबर 2021 में, केंद्र ने सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले फैब के साथ-साथ चिप पैकेजिंग, असेंबल व परीक्षण केंद्रों की स्थापना को बढ़ावा देने के लिये उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना की घोषणा की थी।
- वित्त वर्ष 2023 में रक्षा विनिर्माण उत्पादन 1 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जबकि सत्र 2017-2022 में निर्यात में 334% की वृद्धि हुई।
भारत का विनिर्माण क्षेत्र वैश्विक मानकों से पीछे क्यों है?
- कमज़ोर बुनियादी अवसंरचना और रसद बाधाएँ: भारत निम्न स्तरीय रसद बुनियादी अवसंरचना से ग्रस्त है, जो लागत बढ़ाती है और प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावित करती है। बिजली की कमी और अपर्याप्त परिवहन नेटवर्क आपूर्ति शृंखलाओं एवं उत्पादन दक्षता में बाधा डालते हैं।
- भारत में लॉजिस्टिक्स लागत सकल घरेलू उत्पाद का 14-18% है, जबकि विकसित देशों में यह 8-10% है।
- गति शक्ति पहल के बावजूद, विश्व बैंक का लॉजिस्टिक्स परफॉर्मेंस इंडेक्स (LPI)- 2023 में भारत 38वें स्थान पर है।
- नीतिगत असंगतियाँ और नौकरशाही बाधाएँ: व्यापार और कराधान नीतियों में लगातार बदलाव, साथ ही बोझिल विनियामक आवश्यकताओं के कारण अस्थिर निवेश वातावरण बनता है। जटिल भूमि अधिग्रहण कानून परियोजनाओं में और विलंब करते हैं।
- भारत इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रैंकिंग (वर्ष 2020) में 63वें स्थान पर है और अनुबंध प्रवर्तन (163वें स्थान पर) तथा भूमि अधिग्रहण में विलंब जैसे मुद्दे अभी भी निवेशकों को हतोत्साहित करते हैं।
- उदाहरणों में ओडिशा में विलंबित POSCO स्टील संयंत्र परियोजना (जिसे बाद में निलंबित कर दिया गया) शामिल है।
- श्रम बाज़ार की चुनौतियाँ: चार श्रम संहिताओं के कार्यान्वयन में अवरोध उद्योगों के लिये मापनीयता/स्केलेबिलिटी और लचीलेपन को बाधित करती है। अनौपचारिक कार्यबल विनिर्माण पर हावी है, जिससे अकुशलता व कम उत्पादकता होती है।
- भारत के औपचारिक विनिर्माण कार्यबल में संविदा कर्मचारियों की हिस्सेदारी सत्र 2002-03 में 23.1% से बढ़कर सत्र 2021-22 में 40.2% हो गई है।
- उदाहरण के लिये, अक्तूबर 2024 में, तमिलनाडु में सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स के घरेलू उपकरण संयंत्र में 1,000 से अधिक श्रमिकों ने उच्च वेतन एवं यूनियन मान्यता के लिये विरोध प्रदर्शन किया।
- अपर्याप्त अनुसंधान एवं विकास तथा प्रौद्योगिकी अंगीकरण: भारत का विनिर्माण कम अनुसंधान एवं विकास निवेश तथा नवाचार की कमी के कारण बहुत हद तक पुरानी प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है। इससे मूल्य संवर्द्धन तथा विविधीकरण में बाधा आती है।
- भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय सकल घरेलू उत्पाद का 0.7% है, जो दक्षिण कोरिया (4.8%) या चीन (2.4%) से बहुत कम है।
- उदाहरण के लिये, भारत का EV बाज़ार लिथियम-आयन बैटरी के लिये चीनी आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है तथा सॉलिड स्टेट बैटरी या सोडियम-आयन प्रौद्योगिकी जैसे विकल्पों पर स्थानीय अनुसंधान सीमित है।
- प्रमुख इनपुट के लिये आयात पर निर्भरता आयातित कच्चे माल और घटकों पर अत्यधिक निर्भरता वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के प्रति भेद्यता को बढ़ाती है। इससे आत्मनिर्भरता प्रभावित होती है तथा इनपुट लागत बढ़ जाती है।
- सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे महत्त्वपूर्ण इनपुट पर निर्भरता के कारण वित्त वर्ष 2023-24 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 85 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया। यह ‘मेक इन इंडिया’ जैसी पहल को कमज़ोर करता है।
- वैश्विक व्यापार एकीकरण की कमियाँ: वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में भारत की सीमित भागीदारी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की इसकी क्षमता को सीमित करती है। व्यापार नीतियों पर संरक्षणवादी रुख इस मुद्दे को और भी बढ़ा देता है।
- वैश्विक वस्तु निर्यात में भारत की हिस्सेदारी 1.8% है, जबकि चीन की हिस्सेदारी 14.7% है।
- वर्ष 2021 में भारत ने RCEP में शामिल न होने का निर्णय लिया, जिससे इसने संभवतः GVC में एकीकृत होने के अवसर खो दिये।
- उभरते बाज़ारों से प्रतिस्पर्द्धा: वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देश कम श्रम एवं परिचालन लागत के साथ बेहतर कारोबारी माहौल प्रदान करते हैं, जिससे उद्योग चीन से दूर जा रहे हैं।
- बांग्लादेश परिधान क्षेत्र में एक शक्तिशाली देश है, जिसका निर्यात वर्ष 2023 तक 92% बढ़कर 47 बिलियन डॉलर हो जाएगा (हालाँकि वर्तमान में राजनीतिक अशांति के कारण इसमें गिरावट आ रही है तथा भारत अभी भी पूरी क्षमता का दोहन करने में पीछे है।)
- डिजिटल और कौशल अंतराल: डिजिटल बुनियादी अवसंरचना और कुशल जनशक्ति की कमी उन्नत विनिर्माण तकनीकों के अंगीकरण में बाधा डालती है। उद्योग की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम अपर्याप्त हैं।
- इंडिया स्किल्स रिपोर्ट- 2023 से पता चला है कि भारत का केवल 48.7% कार्यबल ही रोज़गार योग्य है। इस बीच, वर्ष 2023 में ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स में भारत की रैंक सुधर कर 40वें स्थान पर आ गई है, लेकिन SME में तकनीकों के अंगीकरण की दर कम बनी हुई है।
- खंडित MSME क्षेत्र: भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) का प्रभुत्व है, जिनके पास ऋण, प्रौद्योगिकी एवं निर्यात बाज़ार तक पहुँच का अभाव है, जिससे उनकी विकास क्षमता सीमित हो जाती है।
- देश में 64 मिलियन MSME में से केवल 14% के पास ही ऋण तक पहुँच है। आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना जैसी पहलों ने इस मुद्दे को केवल आंशिक रूप से ही हल किया है।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र को वैश्विक मानक तक बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- बुनियादी अवसंरचना को बढ़ाना और रसद लागत को कम करना: गति शक्ति पहल के तहत मल्टी-मॉडल परिवहन प्रणालियों, बंदरगाह संपर्क और समर्पित माल गलियारों में निवेश में तेज़ी लाई जानी चाहिये।
- बेहतर बुनियादी अवसंरचना से परिवहन लागत कम हो सकती है और आपूर्ति शृंखला दक्षता बढ़ सकती है, जिससे वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा मिलेगा।
- माल ढुलाई लागत को 25% तक कम करने के लिये ईस्ट-वेस्ट डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है। प्रमुख बंदरगाहों पर बंदरगाह क्षमता और स्वचालन का विस्तार किया जाना चाहिये, जैसे कि हाल ही में आधुनिकीकृत JNPT टर्मिनल।
- स्थानीय सोर्सिंग को बढ़ाने के लिये प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों में "घटक विनिर्माण क्लस्टर" स्थापित करना चाहिये।
- विनियामक फ्रेमवर्क को सरल बनाना: श्रम कानूनों, भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय अनुमोदन को सरल बनाने से अनुपालन लागत कम हो सकती है तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित हो सकता है।
- विनिर्माण परियोजनाओं के लिये एकीकृत एकल-खिड़की अनुमोदन प्रणाली लागू की जानी चाहिये।
- ज़मीनी स्तर पर कारोबार को आसान बनाने के लिये MSME के लिये संपूर्ण अनुमोदन प्रक्रिया को डिजिटल बनाना चाहिये।
- अनुसंधान एवं विकास (R&D) को बढ़ावा देना: अनुसंधान एवं विकास में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाना तथा कर छूट व सब्सिडी के माध्यम से नवाचार को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- टेस्ला की गीगाफैक्ट्रीज़ से सीख लेते हुए उद्योग और शिक्षा जगत के बीच सहयोगात्मक अनुसंधान एवं विकास पारिस्थितिकी तंत्र विकसित किया जाना चाहिये।
- उन्नत सामग्री, AI-संचालित उत्पादन और अर्द्धचालक जैसे उभरते क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को वित्तपोषित करने के लिये ‘विनिर्माण नवाचार निधि’ की शुरुआत की जानी चाहिये।
- प्रौद्योगिकी अंगीकरण और उद्योग 4.0 को बढ़ावा देना: उत्पादकता और गुणवत्ता में सुधार के लिये विनिर्माण प्रक्रियाओं में स्वचालन, रोबोटिक्स, IoT एवं AI के व्यापक रूप से अंगीकरण को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- MSME के लिये सब्सिडी वाली प्रौद्योगिकी अपनाने की योजनाएँ उन्नत उपकरणों तक पहुँच को लोकतांत्रिक बना सकती हैं।
- उद्योग 4.0 प्रथाओं को अपनाने वाली फर्मों के लिये प्रोत्साहनों को शामिल करने हेतु PLI योजना के दायरे का विस्तार किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये, IoT-सक्षम मशीनों में निवेश करने वाले निर्माताओं के लिये कर क्रेडिट प्रस्तावित किया जा सकता है।
- वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में एकीकरण: इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र और फार्मास्यूटिकल्स में वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के साथ भारत के विनिर्माण को संरेखित करने के लिये व्यापार समझौतों पर वार्ता की जानी चाहिये। निर्यात-उन्मुख बुनियादी अवसंरचना, जैसे कि SEZ को सुदृढ़ करना इस एकीकरण को और भी सुविधाजनक बना सकता है।
- कर छूट और त्वरित अनुमोदन के साथ बंदरगाहों के निकट निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र स्थापित किया जाना चाहिये।
- मध्य पूर्व और अफ्रीका में भारतीय वस्तुओं की पहुँच बढ़ाने के लिये भारत-संयुक्त अरब अमीरात CEPA का लाभ उठाया जाना चाहिये।
- आपूर्ति शृंखला व्यवधान, महामारी या भू-राजनीतिक तनाव जैसे वैश्विक संकटों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के लिये सुदृढ़ रणनीति विकसित की जानी चाहिये।
- अर्द्धचालक और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे क्षेत्रों के लिये एक "महत्त्वपूर्ण इनपुट रिज़र्व" स्थापित किया जाना चाहिये।
- क्षेत्र-विशिष्ट रणनीति विकसित करना: इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मास्यूटिकल्स और रक्षा विनिर्माण जैसे उच्च-संभावना वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- इन क्षेत्रों में उच्च मूल्य विनिर्माण और उत्पाद विविधीकरण के लिये लक्षित प्रोत्साहन लागू किया जाना चाहिये।
- एक सुदृढ़ सेमीकंडक्टर पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिये फॉक्सकॉन के साथ साझेदारी करके सेमीकंडक्टर मिशन को आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- EV बैटरी विनिर्माण हेतु प्रोत्साहनों को शामिल करने के लिये FAME-II योजना का विस्तार किया जाना चाहिये।
- मेगा फूड पार्क योजना और टेक्सटाइल क्लस्टर जैसी पहलों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- प्रौद्योगिकी और ऋण सुलभता के साथ MSME को सशक्त बनाना: MSME, जो भारतीय विनिर्माण की रीढ़ है, के लिये किफायती वित्तपोषण और आधुनिक प्रौद्योगिकी अंगीकरण की सुविधा प्रदान किया जाना चाहिये।
- MSME को वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने के लिये ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का भी लाभ उठाया जाना चाहिये।
- कौशल विकास पर ध्यान: अपस्किलिंग और रीस्किलिंग कार्यक्रमों को आयरलैंड की औद्योगिक अपस्किलिंग पहलों के अनुरूप उन्नत विनिर्माण प्रौद्योगिकियों एवं वैश्विक उत्पादन मानकों की आवश्यकताओं के अनुरूप होना चाहिये।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसे कार्यक्रमों में विशेष प्रशिक्षण मॉड्यूल को एकीकृत किया जाना चाहिये।
- विशिष्ट प्रशिक्षण के लिये वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के सहयोग से उत्कृष्टता केंद्र (CoE) स्थापित किया जाना चाहिये।
- हरित-संधारणीय-चक्रीय विनिर्माण को प्रोत्साहन: भारतीय विनिर्माण को वैश्विक पर्यावरण मानकों के अनुरूप बनाने के लिये हरित प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता है। उद्योगों को नवीकरणीय ऊर्जा अंगीकरण और कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- स्टील और सीमेंट जैसे ऊर्जा-गहन उद्योगों को कार्बन-मुक्त करने के लिये राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन का विस्तार किया जाना चाहिये। संधारणीय विनिर्माण प्रथाओं के वित्तपोषण के लिये ग्रीन बॉण्ड में तीव्रता लाने की आवश्यकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) फ्रेमवर्क को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- डिजिटल परिवर्तन का लाभ उठाना: आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के लिये ब्लॉकचेन जैसे डिजिटल उपकरणों को अपनाने और बाज़ार के रुझानों का पूर्वानुमान लगाने के लिये बड़े डेटा विश्लेषण की आवश्यकता है। हितधारकों के बीच कुशल समन्वय के लिये डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
- विनिर्माण इकाइयों, विशेष रूप से SME को डिजिटल बनाने के लिये डिजिटल इंडिया पहल का विस्तार किया जाना चाहिये। पारदर्शिता और पता लगाने की क्षमता सुनिश्चित करने के लिये फार्मास्यूटिकल्स जैसे उच्च-निर्यात क्षेत्रों में ब्लॉकचेन को लागू किया जाना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को बढ़ावा देना: PPP मॉडल का लाभ उठाकर बुनियादी अवसंरचना, प्रौद्योगिकी और कौशल विकास में निजी उद्यमों की भूमिका का विस्तार किया जाना चाहिये।
- जापान के सहयोगी विनिर्माण केंद्रों के समान स्मार्ट विनिर्माण पार्कों में सार्वजनिक निजी भागीदारी (PPP) विकसित की जानी चाहिये।
- बंगलूरू-BIAL ITIR (सूचना प्रौद्योगिकी निवेश क्षेत्र) बुनियादी अवसंरचना और औद्योगिक विकास के लिये एक सफल PPP मॉडल है।
- गुणवत्ता मानकों और प्रमाणन को बढ़ावा देना: ISO और CE जैसे अंतर्राष्ट्रीय गुणवत्ता प्रमाणन के अनुपालन को बढ़ावा दिया जाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि भारतीय उत्पाद वैश्विक मानदंडों पर खरे उतरें।
- वस्त्र, ऑटोमोटिव और इलेक्ट्रॉनिक्स के लिये क्षेत्र-विशिष्ट “गुणवत्ता उन्नयन मिशन” शुरू किया जाना चाहिये।
- उदाहरण के लिये, यूरोपीय संघ को निर्यात के लिये CE प्रमाणन प्राप्त करने हेतु सब्सिडी से उत्पाद की स्वीकार्यता में सुधार हो सकता है।
- पारंपरिक एवं विरासत उद्योगों को पुनर्जीवित करना: प्रक्रियाओं को आधुनिक बनाकर, उनका विस्तार करके भारत के समृद्ध हस्तशिल्प और चीनी मिट्टी जैसे पारंपरिक उद्योगों को मुख्यधारा की विनिर्माण अर्थव्यवस्था में एकीकृत किया जाना चाहिये।
- तकनीक-सक्षम हस्तशिल्प इकाइयों को शामिल करने के लिये ‘SFURTI योजना’ (कारीगरों के लिये क्लस्टर विकास ) का विस्तार किया जाना चाहिये।
- वैश्विक प्रीमियम बाज़ारों को लक्षित करने के लिये आधुनिक खादी और हथकरघा उत्पादों के लिये निर्यात प्रोत्साहन प्रदान किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
भारत के विनिर्माण क्षेत्र में आर्थिक विकास, रोज़गार सृजन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएँ हैं। बुनियादी अवसंरचना की कमी, नीतिगत विसंगतियों और तकनीकी पिछड़ेपन जैसी महत्त्वपूर्ण चुनौतियों का समाधान करके, यह क्षेत्र वैश्विक मानकों के अनुरूप हो सकता है। PLI योजना, राष्ट्रीय विनिर्माण नीति और हरित विनिर्माण प्रयास जैसी सरकारी पहल सतत् विकास के लिये एक मज़बूत आधार तैयार कर रही हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्विक मानकों को पूरा करने में भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इसकी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जाने चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015) (a) कोयला उत्पादन उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न 1. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न 2. सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014) |