जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण प्रणाली को उन्नत बनाना
यह एडिटोरियल 10/05/2024 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “Roti, kapda, makaan: Why not good air?” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में वायु प्रदूषण की समस्या और वायु प्रदूषण नियंत्रण में गति लाने के लिये आवश्यक उपायों की चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:वायु प्रदूषण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, राष्ट्रीय हरित अधिकरण, राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम, वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली (SAFAR), पोर्टल, वायु गुणवत्ता प्रबंधन हेतु नवीन आयोग, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान। मेन्स के लिये:वायु प्रदूषण के प्रमुख प्रेरक तत्त्व, महत्त्वपूर्ण पहलों के बावजूद भारत में लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण के कारण। |
वायु प्रदूषण (Air Pollution) एक सामान्य पर्यावरणीय परिदृश्य बन गया है, जिसे प्रायः आर्थिक प्रगति के अपरिहार्य परिणाम के रूप में देखा जाता है। वायु प्रदूषण आर्थिक हानि और स्वास्थ्य प्रभाव सहित विभिन्न गंभीर परिणाम उत्पन्न कर सकता है, इसलिये इसका तत्काल समाधान किया जाना महत्त्वपूर्ण है।
IQAir की एक नई वैश्विक रिपोर्ट में पाया गया कि वर्ष 2023 में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरे सबसे प्रदूषित देश में से एक था जहाँ औसत जनसंख्या-भारित सूक्ष्म कण पदार्थ (PM) 2.5 की सांद्रता 54.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (μg /m3) दर्ज की गई थी। वायु प्रदूषण का आर्थिक प्रभाव अत्यंत गंभीर है। वायु प्रदूषण के कारण होने वाली वार्षिक मौतों से 2.7 लाख करोड़ रुपए की आर्थिक हानि होती है, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 1.36% है। इसके अलावा, हाल के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि यदि वायु प्रदूषण प्रतिवर्ष 50% धीमी गति से बढ़ता तो भारत की GDP 4.5% अधिक हो सकती थी।
वायु प्रदूषण:
- परिचय: वायु प्रदूषण वायुमंडल में ठोस, द्रव एवं गैस पदार्थों, शोर और रेडियोधर्मी विकिरण की ऐसी सांद्रता में उपस्थिति की स्थिति है, जो मनुष्यों, जीवित प्राणियों, संपत्ति या पर्यावरणीय प्रक्रियाओं के लिये हानिकारक सिद्ध होती है।
- प्रदूषक (pollutants) के रूप में जाने जाने वाले ये पदार्थ प्राकृतिक या मानव-जनित हो सकते हैं और औद्योगिक प्रक्रियाओं, वाहन उत्सर्जन, कृषि गतिविधियों एवं प्राकृतिक घटनाओं (जैसे वनाग्नि एवं ज्वालामुखी विस्फोट) जैसे विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न हो सकते हैं।
- वायु प्रदूषण के प्रमुख कारक:
- वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक उत्सर्जन: कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx ) और गैर-मीथेन वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (NMVOCs) वाहनों से निकलने वाले प्राथमिक प्रदूषक हैं (> 80%)।
- लौह एवं इस्पात, चीनी, कागज, सीमेंट, उर्वरक, कॉपर और एल्युमीनियम जैसे विभिन्न उद्योग निलंबित कण पदार्थ (SPM), सल्फर ऑक्साइड (SOx), नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nox) एवं कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) का उत्सर्जन करते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, सड़क परिवहन वर्तमान में भारत के ऊर्जा-संबंधी CO2 उत्सर्जन में 12% हिस्सेदारी रखता है और शहरी वायु प्रदूषण में प्रमुख योगदानकर्ता है।
- ठोस अपशिष्ट को जलाना: ऊर्जा एवं संसाधन संस्थान (TERI) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन (MT) से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा खुले वातावरण में या अनौपचारिक डंप स्थलों पर जलाया जाता है।
- ठोस अपशिष्ट को खुले में जलाने से PM, डाइऑक्सिन (dioxins) और फ्यूरेन (furans) सहित विभिन्न प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है।
- पराली जलाना और अन्य कृषि संबंधी गतिविधियाँ: विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में धान एवं गेहूँ जैसे अनाज की कटाई के बाद पराली को जानबूझकर जलाना, विशेष रूप से सर्दियों के मौसम में NCR क्षेत्र में वायु प्रदूषण में उल्लेखनीय योगदान देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2023 में पंजाब और दिल्ली के अन्य निकट पड़ोसी राज्यों में इस अभ्यास को हतोत्साहित करने के प्रयासों के तहत पराली जलाने वाले किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के दायरे से बाहर करने का प्रस्ताव किया था।
- फसल अवशेष को जलाने के अलावा, अन्य कृषि संबंधी गतिविधियाँ- जैसे जुताई, उर्वरक एवं कीटनाशकों का उपयोग और अनुपयुक्त तरीके से पशु पालन, भी वायु प्रदूषण में योगदान करती हैं।
- ये गतिविधियाँ वायु में अमोनिया, मीथेन और PM का उत्सर्जन करती हैं।
- घरेलू कुकिंग एवं हीटिंग: भारत के लगभग 62-65% ग्रामीण परिवार खाना पकाने और ताप प्राप्त करने (हीटिंग) जैसे उद्देश्यों के लिये बायोमास, कोयला एवं केरोसिन जैसे ठोस ईंधन पर निर्भर हैं।
- इन ईंधनों के अधूरे दहन से PM, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOCs) सहित विभिन्न हानिकारक प्रदूषकों का उत्सर्जन होता है।
- कोयला आधारित बिजली संयंत्र: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, भारत में कोयला आधारित थर्मल पावर स्टेशन (जिनके पास प्रदूषण नियंत्रण प्रौद्योगिकी का अभाव है) सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) के 50% से अधिक, नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) के 30%, कण पदार्थ (PM) के लगभग 20% और अन्य मानव-जनित उत्सर्जनों के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- पायरोलिसिस का अनुचित उपयोग: पायरोलिसिस (Pyrolysis), जो सिंथेटिक पदार्थ के विखंडन की एक तकनीक है, महीन कार्बन पदार्थ और पायरो गैस एवं तेल जैसे अवशेष उत्पन्न करती है, जो प्रदूषण में योगदान करती है।
- राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal) ने वर्ष 2014 में प्रयुक्त टायरों को खुले में जलाने या ईंट भट्टों में ईंधन के रूप में प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- वाहन उत्सर्जन और औद्योगिक उत्सर्जन: कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx ) और गैर-मीथेन वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (NMVOCs) वाहनों से निकलने वाले प्राथमिक प्रदूषक हैं (> 80%)।
वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये सरकार की प्रमुख पहलें
- राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम
- वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली – सफर (SAFAR) पोर्टल
- वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग
- ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (दिल्ली के लिये)
- वाहन प्रदूषण कम करने के लिये:
नोट: एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहने के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मूल अधिकार के एक अंग के रूप में देखा।
भारत इन महत्त्वपूर्ण पहलों के बावजूद वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने में सक्षम क्यों नहीं हो पा रहा है?
- अवसंरचना विकास की तुलना में अधिक गति से वाहन वृद्धि: भारत के तीव्र आर्थिक विकास ने वाहन स्वामित्व में वृद्धि की है, विशेष रूप से दोपहिया वाहनों और सस्ते कारों के मामले में, जहाँ उत्सर्जन मानक प्रायः ढीले होते हैं।
- सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भारत में सवारी वाहनों की बिक्री में 26.7% की वृद्धि हुई।
- मेट्रो नेटवर्क और इलेक्ट्रिक बसों जैसी सार्वजनिक परिवहन अवसंरचना इस वृद्धि के साथ तालमेल नहीं रख पाई है, जिसके परिणामस्वरूप यातायात भीड़ बढ़ गई है और उत्सर्जन की वृद्धि हुई है।
- इसके अलावा, जबकि भारत स्टेज VI उत्सर्जन मानकों जैसी नीतियों का उद्देश्य वाहन उत्सर्जन को कम करना है, ऐसी नीतियों का प्रभाव उत्पन्न होने में समय लगता है क्योंकि वाहन बेड़े में रातोंरात बदलाव नहीं आता।
- निगरानी और डेटा संग्रहण के लिये अपर्याप्त अवसंरचना: भारत के कई शहरों, विशेष रूप से छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों या विश्वसनीय डेटा संग्रह तंत्रों का अभाव है।
- उदाहरण के लिये, बिहार (जो वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में दिल्ली से 63 गुना बड़ा है) में केवल 35 सतत् परिवेशी वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन मौजूद हैं।
- NCAP का अकुशल क्रियान्वयन: वर्ष 2019 में लॉन्च किये गए राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Programme- NCAP) का लक्ष्य वर्ष 2024 तक PM के स्तर को 20-30% तक कम करना था। बाद में इस लक्ष्य को वर्ष 2026 तक 40% कम करने के रूप में संशोधित किया गया।
- हालाँकि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार अभी तक आवंटित धनराशि का औसतन केवल 60% ही उपयोग किया गया है, जहाँ 27% शहरों ने अपने निर्धारित बजट का 30% से भी कम खर्च किया है।
- विशाखापत्तनम और बेंगलुरु ने अपने NCAP फंड का मात्र 0% और 1% खर्च किया है।
- हालाँकि पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार अभी तक आवंटित धनराशि का औसतन केवल 60% ही उपयोग किया गया है, जहाँ 27% शहरों ने अपने निर्धारित बजट का 30% से भी कम खर्च किया है।
- क्षेत्रीय और सीमा-पार प्रदूषण का समाधान करने में विफलता: NCAP के डिज़ाइन में यह खामी मौजूद है कि इसके अंतर्गत शहरों को अपनी सीमाओं के भीतर प्रदूषण को कम करने की आवश्यकता है, लेकिन शहर अपनी सीमाओं के बाहर से आने वाले उत्सर्जन को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली के मामले में शहर का लगभग एक-तिहाई प्रदूषण ही इसकी सीमाओं के भीतर उत्पन्न होता है, जबकि शेष औद्योगिक उत्सर्जन या पराली दहन के कारण पड़ोसी राज्यों से आता है।
भारत में वायु प्रदूषण नियंत्रण में तेज़ी लाने के उपाय:
- वायु गुणवत्ता बांड पेश करना: उद्योगों और अन्य प्रमुख प्रदूषक निकायों के लिये वायु गुणवत्ता बांड (Air Quality Bonds) की खरीद को अनिवार्य बनाया जाए, जहाँ बांड राशि उनके उत्सर्जन के समानुपाती हो।
- इस प्रकार संग्रह किये गए धन का उपयोग उपचारात्मक प्रयासों, जन जागरूकता अभियानों और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिये सब्सिडी देने हेतु किया जा सकता है।
- अनुपालन न करने पर जुर्माना या बांड राशि की हानि आरोपित की जाए।
- ‘बायोचार ब्रिगेड’: बायोचार (Biochar)—नियंत्रित वातावरण में जैविक अपशिष्ट को जलाने से उत्पन्न चारकोल जैसा एक पदार्थ, के निर्माण और वितरण करने के लिये ग्रामीण समुदायों, विशेष रूप से महिला स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाया जाए।
- बायोचार को मृदा में भी मिलाया जा सकता है जो इसकी उर्वरता बढ़ाएगा और कार्बन पृथक्करण में मदद करेगा। इसका उपयोग ईंधन स्रोत के रूप में भी किया जा सकता है, जिससे प्रदूषणकारी जलावन लकड़ी पर निर्भरता कम हो जाएगी।
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना ग्रामीण परिवारों को LPG सिलेंडर प्रदान करती है, जिससे जलावन लकड़ी के उपयोग में कमी आती है। ऐसा ही एक कार्यक्रम बायोचार उत्पादन एवं उपयोग को बढ़ावा दे सकता है।
- शहरी वन वितान (कैनोपी) को बढ़ाना: शहरी वन वितान (कैनोपी) आवरण की वृद्धि के लिये शहरों के बीच एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता शुरू की जा सकती है।
- एक निर्धारित समय सीमा के भीतर हरित स्थानों में सबसे महत्त्वपूर्ण वृद्धि करने वाले शहर आगे की हरित पहलों के लिये अनुदान के रूप में पुरस्कृत किये जा सकते हैं।
- कूर्टिबा (ब्राज़ील) को हरित स्थानों पर ध्यान केंद्रित करने वाली अपनी नवीन शहरी योजना के लिये जाना जाता है। भारत भी इससे प्रेरणा ग्रहण करते हुए अपनी जलवायु एवं शहरी वातावरण के लिये विशिष्ट सदृश रणनीतियाँ अपना सकता है।
- वायु गुणवत्ता आधारित टोल (Air Quality-Based Tolling): रियल-टाइम वायु गुणवत्ता डेटा के आधार पर राजमार्गों और पुलों पर गतिशील टोल मूल्य निर्धारण को लागू किया जाए।
- इस रणनीति से यातायात प्रवाह को नियंत्रित किया जा सकता है और उच्च प्रदूषण वाले दिनों में उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। इससे प्राप्त राजस्व का उपयोग सार्वजनिक परिवहन सुधार या स्वच्छ वायु पहल के लिये किया जा सकता है।
- स्टॉकहोम (स्वीडन) ने यातायात की भीड़ को प्रबंधित करने के लिये इसी तरह की एक प्रणाली लागू की है। भारत वायु गुणवत्ता प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस अवधारणा को अपना सकता है।
- राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता जागरूकता कॉर्प्स (National Air Quality Awareness Corps): प्रशिक्षित स्वयंसेवकों और पेशेवरों से बने एक समर्पित राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता जागरूकता कॉर्प्स का गठन किया जाए, जो ज़मीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चला सके, समुदायों को शिक्षित कर सके और वायु प्रदूषण न्यूनीकरण प्रयासों में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा दे सके।
- भवन निर्माण में ‘बायोमिमिक्री’ का उपयोग: बायोमिमिक्री (Biomimicry) के माध्यम से भवन निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा सकता है। उदाहरण के लिये, दीमक के टीलों के मॉडल पर आधारित प्राकृतिक वेंटिलेशन सिस्टम को शामिल करना या पत्तियों से प्रेरित सूक्ष्म संरचनाओं के साथ भवन के अग्रभाग को विकसित करना प्राकृतिक रूप से वायु प्रवाह को बढ़ा सकता है।
- वर्टिकल गार्डन और रूफटॉप प्लांटिंग के रूप में हरियाली को एकीकृत करने से न केवल सौंदर्य मूल्य में वृद्धि होती है, बल्कि यह प्राकृतिक वायु शोधक के रूप में भी कार्य करती है और हानिकारक गैसों एवं कण पदार्थों को अवशोषित करती है।
- यूरोप के ग्रीन सिटी सॉल्यूशंस द्वारा प्रमुख शहरी स्थलों पर ‘ट्री बेंच’ स्थापित करना ऐसे प्रयासों का एक प्रमुख उदाहरण है।
- काई (moss) आवरण से युक्त ये बेंचें हवा से प्रदूषकों को प्रभावी ढंग से अवशोषित करती हैं और प्रदूषण से निपटने के लिये एक अनूठा समाधान प्रस्तुत करती हैं।
अभ्यास प्रश्न: भारत के शहरी क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के प्राथमिक स्रोतों का आकलन कीजिये और बढ़ते प्रदूषण स्तर से निपटने के लिये कार्रवाई योग्य उपाय प्रस्तावित कीजिये। वायु गुणवत्ता में दीर्घकालिक सुधार की प्राप्ति में तकनीकी प्रगति और जन जागरूकता की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा,विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न1. हमारे देश के शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) का परिकलन करने में साधारणतया निम्नलिखित वायुमंडलीय गैसों में से किनको विचार में लिया जाता है? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (b) मेन्स:प्रश्न1. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा हाल ही में जारी किये गए संशोधित वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशा-निर्देशों (AQGs) के मुख्य बिंदुओं का वर्णन कीजिये। विगत 2005 के अद्यतन से, यह किस प्रकार भिन्न हैं? इन संशोधित मानकों को प्राप्त करने के लिये, भारत के राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में किन परिवर्तनों की आवश्यकता है? (2021) |