भारत-अफ्रीका सहयोग के नवीन आयाम
यह एडिटोरियल 06/09/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Africa can make India’s ‘critical mineral mission’ shine” लेख पर आधारित है। इसमें भारत के रणनीतिक हितों, विशेष रूप से इसकी आपूर्ति शृंखला के लिये महत्त्वपूर्ण खनिजों को सुरक्षित करने में, अफ्रीका के भारी महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है। लेख में चीन के प्रभुत्व से उत्पन्न चुनौतियों और मूल्य संवर्द्धन एवं औद्योगीकरण पर अफ्रीका के फोकस को संबोधित करते हुए अफ्रीका के साथ भारत के गहरन संबंधों पर बल दिया गया है।
प्रीलिम्स के लिये:अफ्रीका, महत्त्वपूर्ण खनिज, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र, अफ्रीकी संघ, भारत द्वारा जी20 अध्यक्षता,2023 , अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, हिंद महासागर क्षेत्र, भारत-मोज़ाम्बिक-तंज़ानिया त्रिपक्षीय अभ्यास, दुर्लभ मृदा तत्त्व मेन्स के लिये:भारत के लिये अफ्रीका का महत्त्व, भारत- अफ्रीका के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र। |
अफ्रीका, जिसे प्रायः ‘भविष्य की भूमि’ (land of the future) के रूप में वर्णित किया जाता है, भारत के रणनीतिक एवं आर्थिक हितों के लिये, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में, अत्यंत महत्त्व रखता है। विश्व के ज्ञात महत्त्वपूर्ण खनिज भंडारों में से 30% के साथ अफ्रीका महाद्वीप भारत के लिये अपनी आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करने का एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है। अफ्रीका के साथ भारत के गहरे राजनीतिक, आर्थिक एवं ऐतिहासिक संबंध रहे हैं, जो तीन मिलियन प्रवासी समुदाय तथा 75 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश से और सुदृढ़ हुए हैं। यह परिदृश्य भारत के लिये इस भूभाग में सहयोग बढ़ाने के लिये एक ठोस आधार प्रदान करता है।
हालाँकि भारत को इस क्षमता का लाभ उठाने में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अफ्रीका में महत्त्वपूर्ण खनिजों के मूल्य शृंखला पर चीन का स्थापित नियंत्रण आर्थिक और सुरक्षा जोखिम पैदा करता है। इसके अलावा, अफ्रीकी देश सक्रिय रूप से ‘पिट-टू-पोर्ट’ (pit-to-port) मॉडल से आगे बढ़ने के लिये नीतियाँ लागू कर रहे हैं, जहाँ मूल्य संवर्द्धन और खनिज-आधारित औद्योगिकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। भारत मूल्य संवर्द्धन एवं ज़िम्मेदार अभ्यासों के लिये अफ्रीकी प्राथमिकताओं के साथ अपने महत्त्वपूर्ण खनिज मिशन को संरेखित कर अफ्रीका के विकासात्मक एजेंडे का समर्थन करते हुए और अपनी आपूर्ति शृंखला को सुरक्षित करते हुए पारस्परिक रूप से लाभकारी साझेदारी का निर्माण कर सकता है।
भारत के लिये अफ्रीका का क्या महत्त्व है?
- व्यापक आर्थिक क्षमता (‘Economic Powerhouse’): अफ्रीका की आर्थिक क्षमता भारतीय व्यवसायों और निवेशकों के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है।
- वर्ष 2023 में 4% और 2024 में 4.3% की अनुमानित जीडीपी वृद्धि के साथ अफ्रीका महाद्वीप तेज़ी से एक आकर्षक बाज़ार बनता जा रहा है।
- भारत-अफ्रीका द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2022-23 में 98 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें से 43 बिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान खनन एवं खनिज क्षेत्रों का रहा।
- वर्ष 2021 से क्रियान्वित अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (African Continental Free Trade Area- AfCFTA) 1.3 बिलियन लोगों के एकल बाज़ार का निर्माण करता है, जो भारतीय निर्यात और निवेश के लिये अपार संभावनाएँ प्रदान करता है।
- अनुमान है कि वर्ष 2050 तक अफ्रीका की जनसंख्या 2.5 बिलियन तक पहुँच जाएगी, जो भारतीय वस्तुओं और सेवाओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाज़ार प्रस्तुत करेगी।
- भू-राजनीतिक सहयोगी: अफ्रीका के 54 राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक महत्त्वपूर्ण समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिससे यह महाद्वीप भारत के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण भू-राजनीतिक सहयोगी बन जाता है।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद(UNSC) और अन्य वैश्विक निकायों में अफ्रीकी प्रतिनिधित्व के लिये भारत का समर्थन अधिक समतामूलक विश्व व्यवस्था के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है।
- वर्ष 2023 में भारत की G-20 अध्यक्षता के दौरान अफ्रीकी संघ (African Union- AU) को G-20 का स्थायी सदस्य बनाया गया।
- चूँकि वैश्विक शक्ति समीकरण बदल रहे हैं, एक मज़बूत भारत-अफ्रीका साझेदारी क्षेत्र के अन्य प्रभावशाली खिलाड़ियों, विशेष रूप से चीन, को संतुलित करने में मदद कर सकती है।
- ऊर्जा सुरक्षा: अफ्रीका विविध ऊर्जा संसाधन प्रदान कर भारत की ऊर्जा सुरक्षा रणनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- भारत वर्तमान में अपनी तेल मांग का लगभग 15% (लगभग 34 मिलियन टन) अफ्रीका से प्राप्त करता है।
- नाइजीरिया और अंगोला जैसे देश भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता हैं।
- इसके अलावा, अफ्रीका के विशाल खनिज भंडार, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण खनिज (critical minerals), भारत के ऊर्जा संक्रमण और प्रौद्योगिकीय उन्नति के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत की अगुवाई वाले अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) ने अफ्रीका में सौर परियोजनाओं के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर निर्धारित किये हैं।
- यह ऊर्जा साझेदारी न केवल भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करेगी, बल्कि अफ्रीका के विद्युतीकरण लक्ष्यों को भी समर्थन देगी, जिससे दोनों पक्षों के लिये लाभ की स्थिति बनेगी।
- भारत वर्तमान में अपनी तेल मांग का लगभग 15% (लगभग 34 मिलियन टन) अफ्रीका से प्राप्त करता है।
- समुद्री सुरक्षा: अफ्रीका का पूर्वी तट हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में भारत के समुद्री सुरक्षा हितों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भारत ने मोज़ाम्बिक और मेडागास्कर सहित कई अफ्रीकी देशों के साथ रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
- वर्ष 2008 से सोमालिया तट पर भारतीय नौसेना के एंटी-पाइरेसी अभियानों ने न केवल भारतीय बल्कि वैश्विक समुद्री व्यापार की रक्षा की है।
- वर्ष 2022 में भारत-मोज़ाम्बिक-तंज़ानिया त्रिपक्षीय अभ्यास (IMT TRILAT) के पहले संस्करण का आयोजन किया गया, जो तीनों देशों की नौसेनाओं के बीच एक संयुक्त समुद्री अभ्यास है।
- प्रवासी गतिशीलता (Diaspora Dynamics): अफ्रीका में 3 मिलियन आबादी के साथ भारतीय प्रवासी समुदाय दोनों क्षेत्रों के बीच सेतु का काम करता है।
- ऐतिहासिक रूप से, भारतीय मूल के समुदायों ने अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- भारत प्रवासी भारतीय दिवस जैसी पहलों के माध्यम से इस संबंध का लाभ उठा रहा है, जहाँ वर्ष 2019 में अफ्रीका के भारतीय प्रवासियों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। इसका उद्देश्य दोनों क्षेत्रों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना था।
भारत की महत्त्वपूर्ण खनिज की आवश्यकता में अफ्रीका क्या भूमिका निभा सकता है?
- ‘लिथियम लाइफलाइन’ (Lithium Lifeline): अफ्रीका के विशाल लिथियम भंडार, विशेष रूप से ज़िम्बाब्वे, नामीबिया और घाना जैसे देशों में, भारत की इलेक्ट्रिक वाहन (EV) संबंधी महत्त्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- ज़िम्बाब्वे विश्व में लिथियम का छठा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- भारत ने वर्ष 2030 तक 30% EV प्रवेश का लक्ष्य रखा है; ऐसे में अफ्रीकी लिथियम को सुरक्षित करना ‘गेम-चेंजर’ सिद्ध हो सकता है।
- उदाहरण के लिये, यदि भारत ज़िम्बाब्वे के अनुमानित लिथियम भंडार का 5% भी सुरक्षित कर ले तो वह संभावित रूप से 500,000 से अधिक इलेक्ट्रिक कारों को ऊर्जा प्रदान कर सकता है।
- दुर्लभ मृदा तत्व (Rare Earth Elements- REEs): अफ्रीका में दुर्लभ मृदा तत्त्वों के बड़े भंडार मौजूद हैं, जो उच्च-तकनीक उद्योगों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।
- दक्षिण अफ्रीका, मलावी और केन्या जैसे देशों में REE की अप्रयुक्त क्षमता मौजूद है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स और रक्षा क्षेत्रों में बढ़ती मांग के साथ भारत के REE आयात में वृद्धि होने की उम्मीद है।
- उदाहरण के लिये, एक F-35 लड़ाकू विमान के लिये 417 किलोग्राम REEs की आवश्यकता होती है।
- प्लैटिनम समूह की धातुएँ (Platinum Group Metals- PGMs): दक्षिण अफ्रीका में विश्व के 90% से अधिक प्लैटिनम भंडार मौजूद हैं और यह पैलेडियम एवं रोडियम जैसी अन्य प्लैटिनम समूह धातुओं का भी एक प्रमुख उत्पादक है।
- ये धातु कैटेलाइटिक कंवर्टर्स (catalytic converters) और फ्यूल सेल्स (fuel cells) के लिये आवश्यक हैं।
- भारत द्वारा हाइड्रोजन फ्यूल सेल वाहनों पर बल दिए जाने के कारण अफ्रीका से PGM आपूर्ति सुनिश्चित किया जाना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- ‘कॉपर कंडिट’ (Copper Conduit): ज़ाम्बिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) जैसे अफ्रीकी देश प्रमुख तांबा/कॉपर उत्पादक हैं। भारत की तांबे की मांग वर्ष 2026 तक 1.433 मिलियन टन होने की उम्मीद है, जो नवीकरणीय ऊर्जा और EV क्षेत्रों की मांग से प्रेरित है।
- भारत के वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट के महत्त्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य के लिये अफ्रीका से तांबा प्राप्त करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकता है।
- ‘ग्रेफाइट गोल्डमाइन’ (Graphite Goldmine): मेडागास्कर और मोज़ाम्बिक स्थापित फ्लेक एवं पाउडर ग्रेफाइट उत्पादक हैं, जो EV बैटरी एवं ऊर्जा भंडारण प्रणालियों के लिये आवश्यक घटक हैं।
- एक सामान्य EV बैटरी के लिये लगभग 50-100 किलोग्राम ग्रेफाइट की आवश्यकता होती है।
- अफ्रीकी देशों के साथ साझेदारी से भारत को वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50% संचयी विद्युत स्थापित क्षमता प्राप्त करने के अपने लक्ष्य की पूर्ति में मदद मिल सकती है
भारत और अफ्रीका के बीच संघर्ष के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं?
- निवेश जड़ता: अफ्रीका के साथ भारत की बढ़ती आर्थिक भागीदारी के बावजूद, महाद्वीप में भारतीय निवेश चीन और पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत पीछे है।
- भारतीय कंपनियाँ प्रायः जोखिम धारणा, स्थानीय बाज़ार की जानकारी की कमी और स्थापित कंपनियों से प्रतिस्पर्द्धा से जूझती रहती हैं।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2020 में भारतीय स्वामित्व वाली कंपनी आर्सेलर-मित्तल (ArcelorMittal) विभिन्न चुनौतियों के कारण सेनेगल में 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लौह अयस्क परियोजना से बाहर निकल गई।
- यह निवेश अंतराल अफ्रीका में भारत की आर्थिक उपस्थिति और प्रभाव को सीमित करता है।
- भारतीय उत्पादों के बारे में धारणा संबंधी मुद्दे: कुछ अफ्रीकी बाज़ारों में यह धारणा बनी हुई है कि पश्चिमी उत्पादों या चीन के उत्पादों की तुलना में भारतीय उत्पाद निम्न गुणवत्ता के होते हैं।
- यह मुद्दा फार्मास्यूटिकल्स से लेकर मशीनरी तक विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
- भारत से आयातित दूषित सिरप दवा वर्ष 2022 में पश्चिमी अफ्रीकी देश गाम्बिया में किडनी फेलियर जैसे प्रकोप का कारण बनी, जिससे 60 से अधिक बच्चों की मौत हो गई।
- यद्यपि ये घटनाएँ सभी भारतीय उत्पादों का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं, फिर भी इनसे अफ्रीका में भारत की प्रतिष्ठा और बाज़ार हिस्सेदारी को क्षति पहुँचती है।
- कूटनीतिक दुविधा: अफ्रीका के साथ भारत के संबंधों की इस बात के लिये आलोचना की जाती रही है कि यह पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका पर ही अधिक केंद्रित है तथा अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा करता है।
- यह असंतुलन व्यापार के आँकड़ों में परिलक्षित होता है, जहाँ वर्ष 2022-23 में अकेले दक्षिण अफ्रीका को भारत का निर्यात 8.47 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
- पश्चिमी अफ्रीकी देशों पर, उनकी आर्थिक क्षमता के बावजूद, तुलनात्मक रूप से कम ध्यान दिया गया है।
- इस असमान सहभागिता के कारण कुछ अफ्रीकी क्षेत्रों में भारत अवसर से चूक सकता है, जबकि उनके अंदर उपेक्षा की भावना पैदा हो सकती है।
- परियोजना क्रियान्वयन की समस्या: अफ्रीका में भारत की विकास परियोजनाओं को प्रायः विलंब और क्रियान्वयन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
- भारत द्वारा वित्तपोषित केन्या के रिवाटेक्स टेक्सटाइल फैक्ट्री पुनरुद्धार परियोजना में व्यापक देरी हुई है।
- ये मुद्दे भरोसे को नष्ट कर सकते हैं और अफ्रीकी देशों में भारत के साथ भविष्य की परियोजनाओं में शामिल होने में संकोच उत्पन्न कर सकते हैं, विशेष रूप से जब चीन की कंपनियों द्वारा प्रायः तेज़ गति से (यद्यपि कभी-कभी इसकी आलोचना भी की जाती है) परियोजना निष्पादन किया जाता है।
- संसाधन प्रतिद्वंद्विता: चूँकि भारत और चीन दोनों अफ्रीका में संसाधनों को सुरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ गई है, जिससे कभी-कभी टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- यह परिदृश्य विशेष रूप से तेल और गैस क्षेत्र में प्रकट है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2006 में भारत को अंगोला में तेल परिसंपत्तियों की बोली में चीन से पराजय का सामना करना पड़ा।
- इस प्रतिस्पर्द्धा के कारण कीमतें बढ़ सकती हैं और कूटनीतिक संबंध तनावपूर्ण बन सकते हैं, जहाँ अफ्रीकी देश इन एशियाई दिग्गजों के बीच संबंधों को संतुलित करने का प्रयास करते हैं।
अफ्रीका के साथ संबंधों की प्रगति के लिये भारत कौन-से उपाय कर सकता है?
- व्यापार संधि रूपांतरण – परस्पर लाभ के समझौते संपन्न करना: अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) जैसे प्रमुख अफ्रीकी क्षेत्रीय मंचों के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौतों पर वार्ता की जाए और उन्हें क्रियान्वित किया जाए।
- अफ्रीकी वस्तुओं पर टैरिफ कम करने पर ध्यान केंद्रित किया जाए, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ अफ्रीका को तुलनात्मक लाभ प्राप्त है, जैसे कृषि और खनिज।
- उदाहरण के लिये, भारत भारतीय फार्मास्यूटिकल्स और IT सेवाओं के लिये अधिक पहुँच के बदले अफ्रीकी कॉफी, कोको और दुर्लभ खनिजों के लिये अधिमान्य पहुँच की पेशकश कर सकता है।
- कौशल साझाकरण में वृद्धि: अफ्रीका में भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (Indian Technical and Economic Cooperation- ITEC) जैसे क्षमता निर्माण कार्यक्रमों का विस्तार एवं आधुनिकीकरण किया जाए।
- ‘अफ्रीका के लिये डिजिटल कौशल’ (Digital Skills for Africa) पहल लॉन्च की जाए, जो अफ्रीकी युवाओं को IT, AI और डेटा विज्ञान में प्रशिक्षित करने पर लक्षित हो।
- प्रमुख अफ्रीकी देशों में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM) की शाखाएँ स्थापित की जाएँ।
- संसाधन पारस्परिकता: महत्त्वपूर्ण खनिजों के निष्कर्षण में भारतीय और अफ्रीकी कंपनियों के बीच संयुक्त उद्यमों पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक रणनीतिक खनिज साझेदारी कार्यक्रम का विकास किया जाए।
- इन परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिये भारत-अफ्रीका खनिज विकास कोष की स्थापना की जाए।
- ज़िम्बाब्वे में लिथियम, DRC में कोबाल्ट और दक्षिण अफ्रीका में दुर्लभ मृदा तत्व जैसे प्रमुख संसाधनों को लक्षित किया जाए।
- अवसंरचना प्रोत्साहन: अफ्रीका में भारतीय अवसंरचना परियोजनाओं की देखरेख करने और उनमें तेज़ी लाने के लिये एक समर्पित ‘भारत-अफ्रीका अवसंरचना आयोग’ का गठन किया जाए।
- परियोजना पूर्ण करने के लिये स्पष्ट समयसीमा और जवाबदेही के उपाय निर्धारित किये जाएँ।
- सौर ऊर्जा प्रतिष्ठानों, जल उपचार संयंत्रों और डिजिटल कनेक्टिविटी पहलों जैसी उच्च-प्रभावपूर्ण एवं त्वरित गति से पूर्ण होने वाली परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाए।
- अफ्रीकी कृषि का आधुनिकीकरण: भारतीय कृषि प्रौद्योगिकियों और अभ्यासों को अफ्रीका में स्थानांतरित करने के लिये ‘भारत-अफ्रीका कृषि नवाचार गलियारे’ (India-Africa Agriculture Innovation Corridor) का विकास किया जाए।
- वर्ष 2026 तक पूरे महाद्वीप में भारतीय कृषि तकनीकों और उपकरणों का प्रदर्शन करते हुए इंडो-अफ्रीकी मॉडल फार्म स्थापित किये जाएँ।
- अफ्रीकी सरकारों के साथ साझेदारी में ‘डिजिटल फार्मर’ ऐप लॉन्च किया जाए, जिसका लक्ष्य 10 मिलियन अफ्रीकी किसानों तक फसल परामर्श और बाज़ार संपर्क सेवाएँ पहुँचाना हो।
- उदाहरण के लिये, प्रमुख अफ्रीकी कृषि बाज़ारों में भारत के e-NAM (electronic National Agriculture Market) प्लेटफॉर्म की सफलता को दोहराया जा सकता है।
निष्कर्ष
भारत के लिये अफ्रीका का रणनीतिक महत्त्व उसके महत्त्वपूर्ण खनिजों के विशाल भंडार, आर्थिक क्षमता और भू-राजनीतिक महत्त्व से रेखांकित होता है। भारत व्यापक व्यापार समझौते संपन्न कर, कौशल विकास को बढ़ाकर और अवसंरचना एवं कृषि में निवेश कर अफ्रीका के साथ अपने संबंधों को सुदृढ़ कर सकता है, साथ ही महत्त्वपूर्ण खनिजों की अपनी आवश्यकताओं को भी सुरक्षित कर सकता है।
अभ्यास प्रश्न: भारत के लिये अफ्रीका के रणनीतिक महत्त्व, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण खनिजों की इसकी आवश्यकताओं के संदर्भ में, की चर्चा कीजिये। भारत अफ्रीकी देशों के साथ संलग्नता को गहन करने के लिये अपने ऐतिहासिक संबंधों और ‘सॉफ्ट पावर’ का किस प्रकार लाभ उठा सकता है?
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