भारत-अफ्रीका साझेदारी
- ज़मीन और जनसंख्या दोनों दृष्टि से अफ्रीका विश्व का दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है जिसमें 54 देश हैं और विश्व की कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत यहाँ निवास करता है।
- भारत और अफ्रीका के बीच अनुक्रियाओं का एक दीर्घ और समृद्ध इतिहास रहा है जिसमें दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर आधारित सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विनिमय उल्लेखनीय हैं।
- हाल के वर्षों इन सबंधों को आगे बढ़ाने और मजबूत करने के लिये कई कदम उठाए गए हैं।
दक्षिण-दक्षिण सहयोग
- राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक पर्यावरणीय और तकनीकी क्षेत्रों में दक्षिणी गोलार्द्ध के देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के लिये यह एक व्यापक संरचना है।
- दो या अधिक विकासशील देशों में यह सहयोग द्विपक्षीय, क्षेत्रीय, अंतःक्षेत्रीय या अंतर्क्षेत्रीय आधार पर हो सकता है।
- दक्षिण-दक्षिण सहयोग के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNOSSC) की स्थापना वर्ष 1974 में वैश्विक तौर पर और संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था के अंतर्गत दक्षिण-दक्षिण सहयोग को प्रोत्साहन देने, उसका समन्वय और समर्थन करने के लिये की गई थी।
- ’बदलती वैश्विक व्यवस्था में भारत-अफ्रीका साझेदारी – प्राथमिकताएँ, संभावनाएं और चुनौतियाँ’ पर राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में भारत ने बताया कि भारत और अफ्रीका के कई साझे हित हैं और एक दूसरे की उन्नति, शांति और समृद्धि में भी महत्त्वपूर्ण हित जुड़े हैं। इस कांफ्रेंस का आयोजन इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स (ICWA) ने किया था।
विश्व मामलों की भारतीय परिषद (ICWA), नई दिल्ली
- भारतीय बुद्धिजीवियों के एक समूह द्वारा वर्ष 1943 में एक थिंक टैंक के रूप में स्थापित।
- एक गैर सरकारी, गैर राजनीतिक और निर्लाभ संगठन के रूप में रजिस्ट्रेशन ऑफ सोसाइटीज एक्ट, 1860 के तहत पंजीकृत।
- यह विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय संबंध और विदेश मामलों के अध्ययन हेतु समर्पित है।
सम्मेलन में तीन मुख्य थीमों पर विचार विचार किया गया:
- उन तरीकों पर विचार किया जिनके अनुसार तेजी से बदलते हुए वैश्विक साँचे में भारत और अफ्रीका उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंधों को पुनः आकार दे सकें।
- अफ्रीका महाद्वीप के विभिन्न देशों के साथ भारत के संबंधों की गतिकी की विशिष्टताओं पर ध्यान केन्द्रित किया।
- महत्त्वपूर्ण रूप से इसने उन तरीकों पर ज़ोर दिया जिनमें भारत में अफ्रीकी अध्ययन की स्थिति का बिन्दु के रूप में यह निष्कर्ष दिया गया कि भारत-अफ्रीका साझेदारी में असंख्य अवसर और अपार सभावनाएँ हैं और उनका उपयोग करने के लिये हमें तेज़ी से आगे बढ्ने की आवश्यकता है। इसके लिये निम्नलिखित कारण दिये गए हैं:
- अफ्रीका महाद्वीप स्वयं पूरी तरह बदल रहा हैं और प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक स्रोतों के साथ यहाँ कुछ सबसे तेज़ गति से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाएँ हैं।
- विभिन्न कारणों से अफ्रीकी महाद्वीप की कुछ बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक नई रुचि जागृत हुई है जिसका अनुमान सम्मेलन में अफ्रीका के लिये नई छीना-झपटी के उल्लेख से मिलता है।
अफ्रीका के लिये छीना-झपटी: यह नव उपनिवेशवाद अवधि (1881-1914).के दौरान अफ्रीकी भूभाग हेतु यूरोपियंस के परस्पर विरोधी दावों, कब्जों, विभाजन और उपनिवेशिकरण की अधिकता के वज़ह से हुआ।
इन मुद्दों का समाधान कैसे करें?
कदम जो उठाए जा सकते हैं
- विविधता पर ध्यान दें: प्रत्येक राष्ट्र की वैयक्तिकता का भिन्न तरीके से ध्यान रखकर , क्योंकि अफ्रीका एक एकल राजनीतिक इकाई नहीं है और यहाँ काफी विविधता है।
- सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करके : सभ्यता संबंधी एवं ऐतिहासिक संबंधों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ने पर, क्योंकि संबंधों को और आगे ले जाने के लिये विश्वास और आत्मविश्वास ज़रूरी हैं।
- आकांक्षापूर्ण अर्थव्यवस्थाओं के लिये समर्थन: आकांक्षापूर्ण अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाएँ जो भारत के समान स्तर पर आना चाहती हैं, यदि वे पूर्णतया विकसित देशों के समकक्ष न भी आ सकें, से सहभागिता कर (एजेंडा 2063)।
एजेंडा 2063- अफ्रीका को भविष्य के वैश्विक पावर हाउस में रूपांतरित करने के लिये यह अफ्रीका का ब्लूप्रिंट और मास्टर प्लान है। यह महाद्वीप का रणनीतिक ढाँचा है जो समावेशी और संवहनीय विकास के लिये इसके लक्ष्यों को प्रदान करने हेतु लक्षित है और एकता, आत्मनिर्णय, स्वतन्त्रता, उन्नति और सामूहिक समृद्धि के लिये पैन-अफ्रीकन अभियान की ठोस अभिव्यक्ति है।
- संवृद्धि और विकास: आर्थिक संवृद्धि, आर्थिक एवं औद्योगिक साझेदारी पर ध्यान केन्द्रित कर, पहले से परिकल्पित परियोजनाओं पर साथ कार्य करने के लिये सहक्रिया खोजना और चालू योजनाओं पर उन्हें लागू करना।
- सुरक्षा: विवाद का भाव पैदा किये बिना अपने स्वयं के सुरक्षा हितों को सावधानी से व्यवस्थित करना। ऐसा न करने पर यह एक नाजुक स्थिति बन सकती है तथा और अधिक असुरक्षा को जन्म दे सकती है। अतः उस प्रकार के संपर्कों पर कार्य करना, विश्वास को मजबूत करना और भावी फ़ायदों के लिये कार्य करना।
- व्यक्तियों का आपसी संपर्क: यह सुनिश्चित करने के लिये मेहनत से कार्य करना कि अफ्रीकी छात्र जो भारत में अध्ययन के लिये आते हैं, अफ्रीका में भारत के राजदूत के रूप में कार्य करें और भारत का गुणगान करें।
वे मुद्दे जिन पर और काम करने की आवश्यकता है
व्यापार
के दशक में यह लगभग नगण्य था लेकिन वर्तमान में यह 65 बिलियन डॉलरका स्तर पार कर चुका है।
भारत और अफ्रीकी देश दोनों मिलकर विश्व जनसंख्या का लगभग एक तिहाई हैं, अतः एक-दूसरे का ध्यान रखते हुए सहयोग करना और आगे बढ़ना लाभकारी है।
भारत का व्यवसाय और उद्यम इसकी स्थिति बदलते रहे हैं और वर्तमान में अफ्रीका में बड़ी संख्या में भारतीय कंपनियाँ मौजूद हैं। अतः वर्ष 1990 के दशक के आर्थिक सुधारों के बाद राष्ट्र निर्माण का भाव परिवर्तित हो चुका है और भारतीय उद्यम काफी आक्रामक और बहुराष्ट्रीय हो गए हैं।
अफ्रीका के बारे में एक विविधतापूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाए क्योंकि वहाँ अन्य के अलावा अंग्रेजीभाषी, फ्रेंचभाषी और पुर्तगालीभाषी (अफ्रीकी देशों का भाषाई वर्गीकरण) हैं। अंग्रेजीभाषी अफ्रीकियों के साथ व्यापार एवं व्यवसाय के हमारे पारंपरिक रिश्ते रहे हैं, लेकिन बाकी अन्य दो के साथ हमारे रिश्ते शुरू होने की प्रक्रिया में हैं और उन पर और बल दिये जाने की आवश्यकता है।
भारत को यूरेनियम, सोना, प्लूटोनियम, कॉपर आदि जैसे कच्चे माल की आवश्यकता है जिसे अफ्रीका से मंगाया जा सकता है और इसके बदले भारत उन्हें तैयार उत्पाद दे सकता है। हमारे हित विषम हैं जहां भारत कुछ बेहतर स्थिति में है जिसे हम और आगे ले जा सकते हैं।
सुरक्षा
- भारत और अफ्रीकी राष्ट्रों- दोनों द्वारा सुरक्षा आवश्यकताओं पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये और प्रशिक्षण मामले में दोनों एक-दूसरे की सहायता कर सकते हैं।
- ऊर्जा सुरक्षा पर और अधिक बल देने और उसे बढ़ाये जाने की आवश्यकता है। भारत पहले से ही सूडान, अंगोला, नाइजीरिया और गुयाना क्षेत्र की खाड़ी से तेल के आयात की कोशिश कर रहा है। यह विशेष रूप से इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि पश्चिम एशियाई देशों पर वहाँ जारी उथलपुथल और अस्थिरता के कारण पूर्णतया भरोसा नहीं किया जा सकता। इसके अलावा, सौर गठबंधन (Solar Alliance) का सदस्य होने के नाते इसे एकसाथ मजबूत बनाने के कई और तर्क हैं।
- आतंकवादरोधी और समुद्री डकैतीरोधी गठबंधन द्वारा समुद्री क्षेत्रों की सुरक्षा के लिये समुद्री सुरक्षा को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।
- आतंकवादी संपर्क के कारण सुरक्षा संबंध लगातार महत्त्वपूर्ण बने हुए हैं। अफ्रीका में दो बड़े आतंकवादी संगठन चल रहे हैं। पश्चिम अफ्रीकी क्षेत्र में बोको हरम तथा पूर्व अफ्रीकी क्षेत्र में अल-शबाब। ये दोनों बड़े बहुराष्ट्रीय आतंकी संगठन अल-कायदा से जुड़े हैं जो आगे पाकिस्तान के लश्करे तैयबा और जैशे मोहम्मद से जुड़ जाते हैं। इसलिये एक साथ आने के लिये एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु है।
- भारत और अफ्रीका के सामान्य हित के क्षेत्र, जैसे- सुरक्षा के क्षेत्र के रूप में हिन्द महासागर और आर्थिक सहयोग के मुद्दों पर और ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
- ऊर्जा और अवसंरचना में आर्थिक निवेश को सुरक्षा सहयोग निर्माण के हिस्से के तौर पर देखा जाना चाहिये।
एक-दूसरे से सीखना
- दक्षिण अफ्रीका में ट्रुथ एंड रिकोन्सिलियेशन कमीशन (TRC) रंगभेद को समाप्त करने के लिये बनाया गया था। भारत ऐसे नए प्रयोगों से शिक्षा ले सकता है।
- अफ्रीकी देश जैसे नाइजीरिया या कांगो यह सीख सकते हैं कि भारत में लोकतन्त्र वास्तव में कैसे कार्य करता है।
ट्रुथ एंड रिकोन्सिलियेशन कमीशन (TRC)
यह न्यायालय के समान न्याय को सुदृढ़ करने वाला एक निकाय था जिसे वर्ष 1995 में दक्षिण अफ्रीका सरकार ने गठित किया था। इसका कार्य था देश के घावों को भरने में सहायता करना और रंगभेद काल में हुए मानव अधिकारों के उल्लंघनों के मामलों का पता लगाना और अपने लोगों में मेल-मिलाप करना।
रंगभेद
यह वह नीति थी जो दक्षिण अफ्रीका के अल्पसंख्यक गोरों और बहुसंख्यक काले लोगों के बीच संबंधों को निर्देशित करती थी। इसने काले लोगों का जातीय अलगाव, राजनीतिक और आर्थिक भेदभाव स्वीकृत किया था।
कृषि
- इसमें अत्यधिक संभावना है क्योंकि कई अफ्रीकी देशों में बड़ी मात्रा में अप्रयुक्त कृषि भूमि है। इसमें उद्यम करने पर खाद्य सुरक्षा मुद्दे को हल किया जा सकता है।
- इस क्षेत्र की भारत के साथ पूर्ण पूरकता है क्योंकि हमारे पास कृषि उत्पादन में दक्ष जनसंख्या, एक बड़ा बाजार और प्रोसेसिंग क्षमता है।
- अफ्रीका में भारतीयों के लिये कृषि कार्य को संभव बनाने के लिये भारत सरकार को एक विशेष प्रयोजन वाहन (SPV) या इकाई बनानी चाहिये, क्योंकि इस प्रकार के विशाल उद्यम की व्यवस्था करना किसी एकल निकाय के लिये संभव नहीं है।
विशेष प्रयोजन वाहन (SPV)
विशेष प्रयोजन वाहन को विशेष प्रयोजन इकाई भी कहा जाता है, यह वित्तीय जोखिमों को अलग रखने के लिये मूल कंपनी द्वारा निर्मित एक सहायक संस्था है। एक अलग कंपनी के रूप में इसकी कानूनी स्थिति इसके उत्तरदायित्वों को सुरक्षित करती है, चाहे मूल कंपनी दिवालिया क्यों न हो जाए।
सामान्य जुड़ाव
- भूतकाल से संबद्धताएँ जैसे गांधी-मंडेला-एंक्रूमा जैसे नेताओं को आपस में सम्बद्ध करके।
- उपनिवेश विरोधी, जातिवाद अपनी जड़ों को खोज रहा है और वह उसे पुनः प्राप्त करना चाहता है अतः हमें इस कारक का दोहन करना चाहिये जिसमें पारंपरिक और सांस्कृतिक जुड़ाव, जैसे- बंबइया फिल्में और शास्त्रीय नृत्य एक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।
- भारत को अफ्रीका तक पहुँच बनाने और चीन की तरह सम्बद्ध होने की आवश्यकता है ताकि हमारी संस्कृतियों का मिश्रण हो सके और विकास के लिये और अधिक संभावनाएँ खोजी जा सकें।
आगे की राह
- भारत और अफ्रीका को एक मज़बूत आधार बनाने की आवश्यकता है जो पहले से ही विद्यमान है तथा सतत तरीके से और अधिक कूटनीतिक मिशन स्थापित करने और अधिक व्यापार मिशन, लगातार उच्चस्तरीय अनुबंध हेतु कार्य करना चाहिये, जिसमें शिखर स्तर पर संपर्क भी शामिल है। महत्त्वपूर्ण रूप से भारतीय अनुसंधान संस्थाओं और विश्वविद्यालयों में अफ्रीका के अध्ययन के विकास के लिये सतत प्रयास किए जाने चाहिये।
- यह विश्वास किया जाता है वास्तव में अफ्रीका महाद्वीप में मानव जाति का विकास हुआ, इसलिये अफ्रीकी विचार भारत के सांस्कृतिक सुपर पावर होने के विचार को पीछे धकेलते हैं। अतः भारत और अफ्रीका में मानव जाति की नजदीकी के प्रदर्शन के लिये सहभागिता और सहयोग का प्रयास मददगार हो सकता है।
- सहयोग के समकालीन क्षेत्रों, जैसे- अर्थव्यवस्था, निवेश, अवसंरचना विकास और मानव संसाधन पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिये।
भारत और अफ्रीका के बीच सहभागिता हेतु मजबूत पारंपरिक और ऐतिहासिक आधार हैं और दोनों के मध्य सामान्य आधार या संपर्क भी हैं। अतः यहाँ से आगे संबंध बनाने के लिये इनको आधार बनाने की आवश्यकता है, चाहे यह संस्कृति हो, सुरक्षा हो या व्यापार, प्रौद्योगिकी हो या कृषि।