एडिटोरियल (08 Feb, 2025)



जनजातीय कल्याण के लिये वित्तपोषण

यह एडिटोरियल 07/05/2024 को द इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित “Budget and Adivasis: Is it about development or politics?” पर आधारित है। लेख में केंद्रीय बजट 2025-2026 में जनजातीय कल्याण के लिये वित्तपोषण में ऐतिहासिक 46% वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है,, जिसमें पीएम जनमन, DA-JGUAऔर एकलव्य स्कूल पर ज़ोर दिया गया है। हालाँकि, अप्रयुक्त धन, संसाधनों का विचलन और विस्थापन जैसी चुनौतियाँ गंभीर चिंताएँ बनी हुई हैं।

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय बजट 2025-26,  पीएम जनमन, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, अवैध खनन, GI टैग रजिस्ट्री, आदिवासी कल्याण, वन धन योजना, ट्राइफेड, आयुर्वेद, स्वदेश दर्शन योजना, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM), पोषण अभियान, पीएम विश्वकर्मा योजना, एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) पहल।    

मेन्स के लिये:

भारत के लिये जनजातीय समुदायों का महत्त्व, भारत में जनजातीय समुदायों के सामने आने वाले प्रमुख मुद्दे। 

केंद्रीय बजट 2025-26 ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय को आवंटन में 46% की वृद्धि के साथ आदिवासी कल्याण के लिये अभूतपूर्व प्रतिबद्धता प्रदर्शित की है। बजट में तीन प्रमुख पहलों को प्राथमिकता दी गई है- कमज़ोर आदिवासी समूहों के लिये पीएम जनमन, व्यापक विकास के लिये DA-JGUA और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिये एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय। बढ़ा हुआ बजट भारत के आदिवासी समुदायों के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है, लेकिन महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ बनी हुई हैं - अप्रयुक्त धन और संसाधनों के विचलन से लेकर विस्थापन-संचालित विकास परियोजनाओं तक, जिन पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये आवंटन प्रभावी आदिवासी कल्याण के लिये ज़मीन पर वास्तविक बदलाव में तब्दील हों।

भारत के लिये जनजातीय समुदायों का क्या महत्त्व है?

  • भारत की जैव विविधता और वन संरक्षण के संरक्षक: आदिवासी अपने पारंपरिक ज्ञान और सतत् प्रथाओं के माध्यम से  वनों, वन्यजीवों और जैव विविधता को संरक्षित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • वे वनों की कटाई, अवैध खनन और अवैध शिकार के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति के रूप में कार्य करते हैं, तथा पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करते हैं। 
    • ISFR, 2019 के अनुसार देश का लगभग 60% वन क्षेत्र मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे आदिवासी राज्यों में है। 
  • समृद्ध सांस्कृतिक और भाषाई विरासत: भारत के जनजातीय समुदाय विविध भाषाओं, कला रूपों, लोककथाओं और स्वदेशी ज्ञान प्रणालियों को संरक्षित करते हैं, जिससे राष्ट्रीय पहचान समृद्ध होती है। 
    • उनकी परंपराएँ, त्यौहार और हस्तशिल्प पर्यटन और रचनात्मक अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। 
    • GI टैग रजिस्ट्री से पता चलता है कि गोंड पेंटिंग (मध्य प्रदेश) और पट्टचित्र (ओडिशा) जैसे कई आदिवासी कला रूपों को भौगोलिक संकेत (GI) का दर्जा प्राप्त हुआ है, जिससे आर्थिक क्षमता में वृद्धि हुई है।
  • भारत की आर्थिक और कृषि विविधता के लिये महत्त्वपूर्ण: आदिवासी लोग कृषि, लघु वनोपज (MFP) संग्रहण और पारंपरिक शिल्प में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिससे भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मज़बूत होती है।
    • वे लाख, तेंदू पत्ते, बाँस और औषधीय जड़ी-बूटियों के प्रमुख उत्पादक हैं, फिर भी मूल्य निर्धारण और बाज़ार पहुँच में शोषण का सामना करते हैं। 
    • ट्राइफेड के अनुसार, जनजातीय लोग अपनी वार्षिक आय का 20-40% लघु वनोपज से प्राप्त करते हैं। 
      • वन धन योजना का लक्ष्य देश भर में 50,000 वन धन विकास केंद्र स्थापित करना है, जिससे लगभग 10 लाख आदिवासी उद्यमियों को लाभ मिलेगा।
  • भारतीय लोकतंत्र में महत्त्वर्ण राजनीतिक प्रभाव: 104 मिलियन से अधिक की आबादी (जनगणना 2011) के साथ, आदिवासी एक महत्त्वपूर्ण मतदाता समूह हैं, जो राज्य और राष्ट्रीय चुनावों को प्रभावित करते हैं। 
    • झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे आदिवासी बहुल राज्यों में चुनावी राजनीति में उनकी भूमिका स्पष्ट है। 
    • शासन में जनजातीय लोगों का बढ़ता प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है कि उनकी सामाजिक-आर्थिक चिंताओं का प्रभावी ढंग से समाधान किया जाए। 
    • भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू की नियुक्ति राष्ट्रीय नेतृत्व में बढ़ते आदिवासी प्रतिनिधित्व को दर्शाती है।
  • जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और सतत् विकास के लिये आवश्यक: आदिवासियों के पास जलवायु अनुकूलन, जल संरक्षण और सतत् कृषि का गहन पारंपरिक ज्ञान है, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्त्वपूर्ण है। 
    • उनकी स्वदेशी जल संचयन विधियाँ, जैव विविधता संरक्षण प्रथाएँ, तथा आपदा सहनीयता तकनीकें आधुनिक स्थिरता रणनीतियों के लिये शिक्षा प्रदान करती हैं। 
    • यूनेस्को ने माना है कि स्वदेशी ज्ञान प्रणालियाँ बदलती जलवायु का अवलोकन करके जलवायु कार्रवाई पर सतत् विकास लक्ष्य 13 की प्राप्ति में योगदान देती हैं।
    • उदाहरण के लिये यह पाया गया है कि ज़ाबो कृषि (नगालैंड) जैसी जनजातीय जल संरक्षण तकनीकें भूजल पुनर्भरण में सुधार करती हैं तथा सतत् कृषि को बढ़ावा देती हैं। 
  • भारत की पारंपरिक चिकित्सा और आयुर्वेद का ज्ञान: जनजातीय समुदायों के पास हर्बल चिकित्सा, आयुर्वेद और नृजातीय-वनस्पति पद्धतियों का विशाल ज्ञान है, जो भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में योगदान देता है। 
    • वैकल्पिक चिकित्सा प्राकृतिक उपचारों और औषधीय पौधों के उपयोग से समर्थित है, हालांकि ये संसाधन अति-व्यावसायीकरण के कारण खतरे में हैं।
    • आयुष और जनजातीय स्वास्थ्य मिशन जैसी सरकारी पहलों को जनजातीय ज्ञान संरक्षण और उचित लाभ-साझाकरण सुनिश्चित करना चाहिये।
    • यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में जनजातीय और जातीय समुदाय अपने स्वास्थ्य देखभाल के लिये 8,000 से अधिक पौधों की प्रजातियों का उपयोग करते हैं।
  • सतत् पर्यटन और पारिस्थितिकी पर्यटन के लिये महत्त्वपूर्ण: जनजातीय क्षेत्र भारत के कुछ सर्वाधिक जैवविविध परिदृश्यों समृद्ध हैं, जो उन्हें सतत् और पारिस्थितिकी पर्यटन में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। 
    • उनके सांस्कृतिक उत्सव, हस्तशिल्प और पारंपरिक व्यंजन पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलता है। 
    • स्वदेश दर्शन योजना के अंतर्गत स्थानीय पर्यटन को बढ़ावा देने और जनजातीय क्षेत्रों में आजीविका को समर्थन देने के लिये 1,000 जनजातीय गृहस्थलों को बढ़ावा दिया जा रहा है।

भारत में जनजातीय समुदायों के समक्ष प्रमुख मुद्दे क्या हैं? 

  • भूमि हस्तांतरण और विस्थापन: औद्योगिक परियोजनाओं, खनन और संरक्षण प्रयासों के कारण जनजातीय समुदायों को बड़े पैमाने पर विस्थापन का सामना करना पड़ रहा है, जिससे पारंपरिक आजीविका का नुकसान हो रहा है। 
    • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के उचित कार्यान्वयन के अभाव में भूमि के स्वामित्व से वंचित किया जाता है, जिससे वे और अधिक हाशिये पर चले जाते हैं। 
      • जनजातीय मामलों के मंत्रालय के अनुसार, केवल 50% FRA दावों को मंजूरी दी गई है, जिससे लाखों आदिवासी भूमिहीन हो गए हैं। 
    • इसके अलावा, कभी-कभी पुनर्वास नीतियाँ अपर्याप्त रहती हैं, जिससे वे अत्यधिक गरीबी में चले जाते हैं। 
      • वर्ष 2022 की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व से विस्थापित सैकड़ों आदिवासियों को जून 2022 तक पुनर्वास और मुआवजा नहीं दिया गया।
  • खराब स्वास्थ्य और कुपोषण: जनजातीय आबादी उच्च मृत्यु दर, कुपोषण और स्वास्थ्य देखभाल की कमी से पीड़ित है, जो दूरदराज के क्षेत्रों में खराब बुनियादी ढाँचे के कारण और भी बदतर हो जाती है।
    • तपेदिक, सिकल सेल एनीमिया और कुपोषण की व्यापकता चिंताजनक होने के बावजूद, सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल अप्रभावी हैं।
      • सिकल सेल रोग भारत में जनजातीय आबादी में व्यापक रूप से फैला हुआ है, जहाँ अनुसूचित जनजातियों में 86 में से लगभग 1 जन्म लेने वाले बच्चे सिकल सेल रोग से ग्रसित हो जाते है।
    • इसके अलावा, एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि पाँच वर्ष से कम आयु के 30.8% आदिवासी बच्चे कुपोषण से पीड़ित हैं, जिसके कारण उनका कद छोटा रह जाता है और वे कमजोर हो जाते हैं।
  • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का अभाव और EMRS कार्यान्वयन में कमी: भाषा संबंधी बाधाएँ, अपर्याप्त सुविधाएँ, तथा उच्च शिक्षा में पढ़ाई छोड़ने की उच्च दर, आदिवासी छात्रों के लिये समस्याएँ हैं।
    • गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से बनाए गए एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) निर्माण में देरी और शिक्षकों की कमी का सामना कर रहे हैं।
      • इसके अलावा, हाल ही में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों के लिये भर्ती प्रक्रिया के केंद्रीकरण तथा हिंदी प्रवीणता की अनिवार्यता ने भी चिंता उत्पन्न कर दी है।
  • आजीविका संकट: पारंपरिक जनजातीय व्यवसाय जैसे कि झूम खेती, वनोपज संग्रहण और हस्तशिल्प, वनों की कटाई, कानूनी प्रतिबंधों और बाज़ार शोषण के कारण कम हो रहे हैं।
    • मनरेगा और अन्य रोज़गार कार्यक्रमों से कुछ मदद मिलती है, लेकिन भ्रष्टाचार के कारण वास्तविक लाभ कम हो जाता है तथा मज़दूरी भी कम रहती है।
    • ऋण प्राप्त करने में निरंतर कठिनाई के कारण, कई लोग बिना लाइसेंस वाले साहूकारों के कर्ज के जाल में फंसने को मज़बूर हो जाते हैं।
    • हालिया रिपोर्टों में कहा गया है कि वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जनजाति समूह के केवल 12.3% लोगों के पास वेतन रोज़गार था, जो इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर करता है। 
  • जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण का प्रभाव: वनों और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर जनजातीय समुदाय जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण से अत्यधिक प्रभावित होते हैं। 
    • अनियमित वर्षा के कारण कृषि उपज और वनोपज की उपलब्धता कम हो गई है। 
      • वनरोपण और संरक्षण को बढ़ावा देने वाली सरकारी नीतियाँ अक्सर आदिवासियों की भागीदारी सुनिश्चित किये बिना उन्हें विस्थापित कर देती हैं। 
  • स्वदेशी संस्कृति की हानि और भाषाई हाशिए पर जाना: शहरीकरण, संस्थागत समर्थन की कमी और मुख्यधारा की नीतियाँ सभी आदिवासी भाषाओं और सांस्कृतिक विरासत के तेज़ी से विलुप्त होने में योगदान दे रही हैं।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 मातृभाषा शिक्षा पर ज़ोर देती है, लेकिन आदिवासी भाषाओं में पाठ्यपुस्तकों, शिक्षकों और नीति-स्तरीय मान्यता का अभाव है। 
    • डिजिटल और जनसंचार माध्यमों का प्रसार इस सांस्कृतिक दुर्बलता को और बढ़ा रहा है।
    • यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को 'लुप्तप्राय' घोषित किया है। कई अलिखित भाषाएँ विशेष रूप से विलुप्त होने के खतरे में हैं
  • मानवाधिकार उल्लंघन और सुरक्षा मुद्दे: आदिवासी लोग अक्सर राज्य द्वारा किये जाने वाले विस्थापन, पुलिस ज्यादतियों और माओवादी उग्रवाद के शिकार बन जाते हैं और सरकार और चरमपंथी समूहों के बीच फंस जाते हैं। 
    • संवैधानिक संरक्षण के बावजूद आदिवासियों के खिलाफ भूमि हड़पने, जबरन बेदखली और हिंसा की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। आदिवासी कार्यकर्त्ताओं के खिलाफ UAPA जैसे कानूनों का दुरुपयोग और अपर्याप्त कानूनी सहायता न्याय को दुर्गम बनाती है। निजी मिलिशिया और कॉरपोरेट भूमि अधिग्रहण के बढ़ने से आदिवासियों की कमज़ोरी और भी बदतर हो गई है।
    • NCRB के 2021 के आँकड़ों के अनुसार, अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों के खिलाफ अपराधों में 9.3% की वृद्धि हुई है। 

जनजातीय कल्याण और विकास के लिये भारत सरकार की क्या पहल हैं? 

  • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006: आदिवासियों को व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकार प्रदान करता है, उन्हें भूमि और संसाधनों के प्रबंधन के लिये सशक्त बनाता है।
  • पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम (पेसा), 1996: ग्राम सभाओं को भूमि और संसाधनों पर निर्णय लेने की शक्तियाँ देकर जनजातीय क्षेत्रों में स्वशासन को मज़बूत करता है।
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS): दूरदराज के क्षेत्रों में आदिवासी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये 740 विद्यालय स्वीकृत किये गए हैं।
  • प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (पीएम-जनमन): विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (PVTG) के लिये स्वास्थ्य, शिक्षा और आजीविका पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • वन धन विकास योजना (VDVY): लघु वनोपज (MFP) के मूल्य संवर्द्धन और विपणन को बढ़ावा देती है।
  • लघु वन उपज (MFP) के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)- वन उपज एकत्र करने वाले आदिवासियों के लिये उचित मूल्य सुनिश्चित करता है।
  • जनजातीय स्वास्थ्य और पोषण पोर्टल - 'स्वास्थ्य' - जनजातीय स्वास्थ्य संकेतकों पर नज़र रखने वाला एक डिजिटल प्लेटफॉर्म।

जनजातीय कल्याण और विकास को बढ़ाने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है? 

  • वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का प्रभावी कार्यान्वयन: व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों (IFR और CFR) की समय पर मान्यता सुनिश्चित करने से आदिवासियों को अपनी भूमि और प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करने में सशक्त बनाया जा सकेगा। 
    • भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण (जैसा कि बजट 2025-25 में परिकल्पित है ), फास्ट-ट्रैक FRA न्यायाधिकरणों की स्थापना, और दावा सत्यापन में स्थानीय ग्राम सभाओं को शामिल करने से प्रक्रिया में तेज़ी आ सकती है। 
    • वन अधिकार अधिनियम और मनरेगा के बीच संबंध को मज़बूत करने से वनरोपण और संरक्षण में स्थायी रोज़गार उपलब्ध हो सकता है।
  • एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) का विस्तार और सुदृढ़ीकरण: EMRS (2025-26) के लिये 7,088 करोड़ रुपए का बजट आवंटन एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन बुनियादी ढाँचे, गुणवत्तापूर्ण शिक्षकों और आधुनिक शिक्षण पद्धति को सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है। 
    • जनजातीय भाषा की पाठ्यपुस्तकें, डिजिटल शिक्षण प्लेटफॉर्म और व्यावसायिक प्रशिक्षण शुरू करने से शैक्षिक परिणामों में सुधार हो सकता है। 
    • EMRS को पीएम दक्ष योजना से जोड़ने से शैक्षणिक शिक्षा के साथ-साथ कौशल आधारित प्रशिक्षण भी सुनिश्चित होगा।
  • मोबाइल स्वास्थ्य इकाइयों और आयुष एकीकरण के माध्यम से जनजातीय स्वास्थ्य सेवा में सुधार: जनजातीय क्षेत्र उच्च कुपोषण, मातृ मृत्यु दर और स्थानिक रोगों से पीड़ित हैं, जिसके लिये विकेंद्रीकृत स्वास्थ्य सेवा समाधान की आवश्यकता है। 
    • दूरदराज के क्षेत्रों में  टेलीमेडिसिन के साथ मोबाइल स्वास्थ्य क्लीनिकों की तैनाती से स्वास्थ्य देखभाल संबंधी अंतराल को कम किया जा सकता है।
    • जनजातीय क्षेत्रों में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और पोषण अभियान को मज़बूत करने से शिशु और मातृ स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार हो सकता है।
  • लघु वन उपज (MFP) के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के माध्यम से सतत् आजीविका सुनिश्चित करना: जनजातीय आजीविका तेंदू पत्ते, महुआ और शहद जैसे लघु वन उपज (MFP) पर निर्भर करती है, फिर भी बाज़ार में शोषण के कारण संकटपूर्ण बिक्री होती है।
    • अधिक लघु वनोपजों के लिये MSP कवरेज़ का विस्तार करने तथा वन धन विकास केंद्रों (VDVK) को मज़बूत करने से जनजातीय लोगों की आय में वृद्धि हो सकती है। 
    • समुदाय-नेतृत्व वाली वन उपज सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करने से उचित मूल्य सुनिश्चित होगा तथा बिचौलियों पर निर्भरता कम होगी। 
      • प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना को वन धन विकास केंद्रों के साथ एकीकृत करने से मूल्य संवर्द्धन और जनजातीय उद्यमिता को और अधिक बढ़ावा मिल सकता है।
  • स्वयं सहायता समूहों और माइक्रोफाइनेंस के माध्यम से जनजातीय महिलाओं को सशक्त बनाना: जनजातीय महिलाओं को आर्थिक रूप से हाशिये पर रहने और सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिसके लिये लक्षित वित्तीय समावेशन नीतियों की आवश्यकता होती है। 
    • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों (SHG) को मज़बूत करने से ऋण और उद्यमिता के अवसरों तक उनकी पहुँच में सुधार होगा। 
    • ब्याज मुक्त ऋण, वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम और डिजिटल बैंकिंग तक पहुँच प्रदान करने से आदिवासी महिलाएँ आर्थिक रूप से सशक्त होंगी। 
    • स्वयं सहायता समूहों को एक जिला एक उत्पाद (ODOP) पहल से जोड़ने से जनजातीय हस्तशिल्प के लिये बाज़ार तक पहुँच सुनिश्चित हो सकती है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व और जनजातीय शासन को बढ़ावा देना: आरक्षित सीटों के बावजूद, उच्च निर्णय लेने वाले निकायों में जनजातीय लोगों का प्रतिनिधित्व कम है, जिससे नीति कार्यान्वयन प्रभावित होता है। 
    • PESA (पंचायतों का अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 को मज़बूत करने से ग्राम सभाओं को निर्णय लेने में सशक्त बनाया जाएगा।
    • बजट आबंटन में जनजातीय लोगों की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करके विकास योजना का विकेंद्रीकरण करने से शासन की दक्षता में सुधार होगा। 
    • जनजातीय नेताओं के लिये क्षमता निर्माण कार्यक्रमों को लागू करने से उनकी राजनीतिक एजेंसी को बढ़ावा मिल सकता है। 
  • भूमि विस्थापन और पुनर्वास चुनौतियों का समाधान: खनन, बाँध परियोजनाओं और संरक्षण के कारण जनजातीय विस्थापन भूमिहीनता और सामाजिक-आर्थिक अस्थिरता को जन्म देता है।
  • आर्थिक विकास के लिये जनजातीय पर्यटन का विकास: जनजातीय क्षेत्रों में पारिस्थितिकी पर्यटन और सांस्कृतिक पर्यटन से स्थायी रोज़गार उत्पन्न हो सकता है तथा जनजातीय विरासत को संरक्षित किया जा सकता है।
    • सामुदायिक स्वामित्व वाले जनजातीय पर्यटन उद्यमों को विकसित करने से निजी संचालकों के बजाय आदिवासियों को प्रत्यक्ष लाभ सुनिश्चित होगा। 
    • होमस्टे, हस्तशिल्प केंद्रों और निर्देशित इको-टूर को बढ़ावा देने से सांस्कृतिक स्थिरता सुनिश्चित करते हुए आय में वृद्धि हो सकती है। स्वदेश दर्शन योजना को जनजातीय पर्यटन सर्किटों के साथ एकीकृत करने से ज़िम्मेदार पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा।
  • जनजातीय गाँवों के लिये विकेंद्रीकृत नवीकरणीय ऊर्जा माइक्रोग्रिड: कई जनजातीय क्षेत्र अभी भी ग्रिड से बाहर हैं या वहाँ विद्यूत आपूर्ति अविश्वसनीय रहती है, जिससे शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और आजीविका प्रभावित होती है। 
    • सामुदायिक स्वामित्व वाले सौर, पवन या बायोमास माइक्रोग्रिड स्थापित करने से स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध हो सकती है, तथा बाहरी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम हो सकती है। 
    • आदिवासियों को सौर पैनल रखरखाव, बायोगैस उत्पादन और बैटरी भंडारण में प्रशिक्षण देने से स्थानीय रोज़गार उत्पन्न होगा। ये माइक्रोग्रिड जल्दी खराब होने वाले कृषि उत्पादों के लिये कोल्ड स्टोरेज को भी विद्युत् प्रदान कर सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार होगा।
  • वैश्विक और घरेलू बाजारों के लिये जनजातीय सुपरफूड विकसित करना: जनजातीय क्षेत्रों में पोषक तत्त्वों से भरपूर सुपरफूड जैसे बाज़रा, जंगली शहद, बाँस चावल और मोरिंगा पाए जाते हैं, जिनकी वैश्विक स्तर पर उच्च मांग है। 
    • जनजातीय सुपरफूड्स के लिये भौगोलिक संकेत (GI) प्रमाणन बनाने से प्रीमियम मूल्य निर्धारण और बाज़ार पहुँच सुनिश्चित हो सकती है। 
    • खेत से लेकर मेज तक जनजातीय समूह स्थापित करने से बिचौलिये समाप्त हो जाएंगे और प्रत्यक्ष लाभ में वृद्धि होगी। 
      • इन उत्पादों को ONDC और जैविक खाद्य ब्रांडों जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों के साथ जोड़ने से पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ जनजातीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिल सकता है।

निष्कर्ष: 

भारत ने जनजातीय देखभाल पर बजट में वृद्धि कर समावेशी विकास की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। फिर भी, अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवा, शैक्षिक कमियाँ और भूमि विस्थापन जैसे मुद्दे अभी भी मौजूद हैं। समुदाय-संचालित परियोजनाओं और कुशल कार्यान्वयन के माध्यम से इन अंतरालों को कम करना आवश्यक है। तभी जनजातीय समुदाय समान प्रगति और वास्तविक सशक्तीकरण का अनुभव कर पाएँगे।

दृष्टि अभ्यास प्रश्न: 

Q. विभिन्न सरकारी पहलों के बावजूद, भारत के आदिवासी समुदाय सामाजिक-आर्थिक हाशिये पर बने हुए हैं। आदिवासी विकास में प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण करने और उनके सतत् और समावेशी विकास को सुनिश्चित करने के लिये एक समग्र रणनीति का सुझाव दीजिये।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2013)

जनजाति

राज्य

1. लिंबू (लिम्बु)

सिक्किम

2. कार्बी

हिमाचल प्रदेश

3. डोंगरिया कोंध

ओडिशा

4. बोंडा

तमिलनाडु

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा सही सुमेलित है?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c)केवल 1, 3 और 4
(d)1, 2, 3 और 4

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत में विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (PVTGs) के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. PVTG 18 राज्यों और एक केंद्रशासित प्रदेश में निवास करते हैं।
  2.  स्थिर या कम होती जनसंख्या PVTG स्थिति निर्धारण के मानदंडों में से एक है।
  3.  देश में अब तक 95 PVTG आधिकारिक तौर पर अधिसूचित हैं।
  4.  PVTGs की सूची में ईरूलर और कोंडा रेड्डी जनजातियाँ शामिल की गई हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है?

(a)1, 2 और 3
(b)2, 3 और 4
(c)1, 2 और 4
(d)1, 3 और 4

उत्तर: (c)