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एडिटोरियल

  • 02 Aug, 2023
  • 24 min read
शासन व्यवस्था

डिजिटल ब्लैकआउट: द शैडो ऑफ इंटरनेट शटडाउन

यह एडिटोरियल 30/07/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित ‘‘Not so Digital India which’’ लेख पर आधारित है। इसमें भारत में ‘इंटरनेट शटडाउन’ और उसके प्रभावों के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

एक्सेस नाउ एंड कीपइटऑन गठबंधन (Access Now and the KeepItOn Coalition) की रिपोर्ट, भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 19(1)(g), डिजिटल इंडिया, अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ मामला (2020), सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 21, COVID-19

मेन्स के लिये:

इंटरनेट शटडाउन से संबंधित विभिन्न तर्क।

इंटरनेट शटडाउन (Internet shutdowns) इंटरनेट या इलेक्ट्रॉनिक संचार में जानबूझकर लागू किया गया व्यवधान है, जो उन्हें किसी विशिष्ट आबादी के लिये या किसी स्थान के भीतर अनुपलब्ध या प्रभावी रूप से अनुपयोगी बना देता है और ऐसा प्रायः सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण स्थापित करने के लिये किया जाता है। ये मोबाइल इंटरनेट, ब्रॉडबैंड इंटरनेट या दोनों को ही प्रभावित कर सकते हैं। 

मणिपुर में इंटरनेट शटडाउन लागू होने के लगभग तीन माह बाद भी राज्य के निवासियों को अभी तक इंटरनेट तक प्रतिबंधित एवं बाधित पहुँच की स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। मणिपुर सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति द्वारा दिए गए कुछ सुझावों के अनुरूप, कुछ प्रकार की ऑनलाइन सेवाओं तक ही सीमित एवं सशर्त पहुँच प्रदान की है। 

एक्सेस नाउ एंड कीपइटऑन गठबंधन (Access Now and the KeepItOn Coalition) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने वर्ष 2022 में 84 बार इंटरनेट शटडाउन लागू किया और लगातार पाँचवें वर्ष सूची में शीर्ष पर रहा। भारत में इस क्षेत्र में सक्रिय एक विधिक सेवा संगठन, सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (Software Freedom Law Centre) द्वारा संचालित इंटरनेट शटडाउन ट्रैकर (Internet Shutdown Tracker) पोर्टल के अनुसार, भारत में वर्ष 2012 से अब तक कुल 665 इंटरनेट शटडाउन के मामले देखे गए और इनमें से 50 प्रतिशत से अधिक शटडाउन वर्ष 2019 से हुए। 

इंटरनेट शटडाउन के कारण:

  • विधि-व्यवस्था संबंधी चिंताएँ: 
    • इंटरनेट शटडाउन का एक प्राथमिक कारण नागरिक अशांति, विरोध प्रदर्शन या सांप्रदायिक तनाव के दौरान विधि-व्यवस्था को बनाए रखना है। 
    • गलत सूचना के प्रसार को रोकने, विरोध प्रदर्शनों के आयोजन पर अंकुश लगाने या संभावित हिंसा को नियंत्रित करने के लिये प्रशासन या प्राधिकारी वर्ग (Authorities) द्वारा शटडाउन लागू किया जा सकता है। 
  • राष्ट्रीय सुरक्षा: 
    • आतंकवादी गतिविधियों, संभावित खतरों आदि को रोकने या महत्त्वपूर्ण अभियानों के दौरान गोपनीयता बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इंटरनेट शटडाउन लागू किया जा सकता है। 
  • परीक्षा में कदाचार रोकना: 
    • कुछ मामलों में, कदाचार और प्रश्नपत्रों के लीक होने पर रोक के लिये महत्त्वपूर्ण परीक्षाओं के दौरान इंटरनेट सेवाओं को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया जाता है। 
  • ‘हेट स्पीच’ और ‘फेक न्यूज़’ पर अंकुश लगाना: 
    • सरकारें ऐसे हेट स्पीच, अफवाहों और फेक न्यूज़ पर नियंत्रण के लिये इंटरनेट शटडाउन का आदेश दे सकती हैं जो हिंसा भड़का सकती हैं या सामाजिक अशांति उत्पन्न कर सकती हैं। 
  • सार्वजनिक सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: 
    • संचार चैनलों को प्रबंधित करने और दहशत या गलत सूचना के प्रसार पर नियंत्रण के लिये प्राकृतिक आपदाओं या आपात स्थिति के दौरान इंटरनेट शटडाउन लागू किया जा सकता है। 
  • सोशल मीडिया नियंत्रण: 
    • संवेदनशील घटनाओं के दौरान सूचना के प्रसार को नियंत्रित करने या गोपनीयता एवं सुरक्षा से संबंधित चिंताओं को हल करने के उद्देश्य विशेष सोशल मीडिया मंचों या ऐप्स को शटडाउन किया जा सकता है। 
  • कंटेंट के प्रसार को नियंत्रित करना: 
    • इंटरनेट शटडाउन का उपयोग विशिष्ट कंटेंट जैसे, वीडियो या इमेज के प्रसार को रोकने के लिये भी किया जा सकता है, जिन्हें हानिकारक या आपत्तिजनक माना जाता है। 
  • विरोध और असहमति: 
    • कुछ मामलों में असंतोष को दबाने और सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शनों के समन्वय पर अंकुश लगाने के लिये इंटरनेट शटडाउन का सहारा लिया जाता है। 

भारत में इंटरनेट शटडाउन को नियंत्रित करने वाले प्रमुख कानून:  

  • भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 की धारा 5(2), दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (सार्वजनिक आपातकाल और सार्वजनिक सुरक्षा) नियम, 2017 के साथ पठित: 
    • ये नियम संघ या राज्य के गृह सचिव को सार्वजनिक आपातकाल या सार्वजनिक सुरक्षा के मामले में किसी भी टेलीग्राफ सेवा (इंटरनेट सहित) को निलंबित करने का आदेश देने की अनुमति देते हैं। 
    • ऐसे आदेश की एक समिति द्वारा पाँच दिनों के अंदर समीक्षा की जानी चाहिये और यह 15 दिनों से अधिक तक लागू नहीं रह सकता। किसी अत्यावश्यक स्थिति में, संघ या राज्य के गृह सचिव द्वारा अधिकृत संयुक्त सचिव स्तर या उससे ऊपर के अधिकारी द्वारा यह आदेश जारी किया जा सकता है। 
  • दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 144: 
    • यह धारा एक ज़िला मजिस्ट्रेट, एक सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट या किसी अन्य कार्यकारी मजिस्ट्रेट (जिसे राज्य सरकार द्वारा विशेष शक्ति सौंपी गई हो) को सार्वजनिक शांति में किसी भी उपद्रव या गड़बड़ी से बचाव या उस पर रोक के लिये ऐसे आदेश जारी करने का अधिकार देती है। 
    • ऐसे आदेशों में किसी क्षेत्र विशेष में एक निर्दिष्ट अवधि के लिये इंटरनेट सेवाओं का निलंबन शामिल हो सकता है। 
  • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A: 
    • यह धारा केंद्र सरकार को इंटरनेट पर किसी भी ऐसी सूचना तक पहुँच को अवरुद्ध करने का अधिकार देती है जिसे वह भारत की संप्रभुता, अखंडता, रक्षा, सुरक्षा या मैत्रीपूर्ण संबंधों अथवा लोक व्यवस्था या शालीनता अथवा किसी अपराध को उकसाने के लिये हानिकारक मानती है। 
  • हालाँकि यह धारा केवल विशिष्ट वेबसाइटों या कटेंट को अवरुद्ध करने पर लागू होती है, संपूर्ण इंटरनेट पर नहीं। 

इंटरनेट शटडाउन के प्रमुख प्रभाव:  

  • अभिव्यक्ति और सूचना की स्वतंत्रता पर प्रभाव: 
    • इंटरनेट शटडाउन अभिव्यक्ति और सूचना की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है जिसकी गारंटी भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (Universal Declaration of Human Rights) के अनुच्छेद 19 द्वारा दी गई है। 
    • ये लोगों को सूचना साझा करने एवं उस तक पहुँच रखने, राय व्यक्त करने, ऑनलाइन नागरिक मंचों पर भागीदारी करने और अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने से अवरुद्ध करते हैं। 
    • ये शटडाउन से प्रभावित क्षेत्रों में या उन क्षेत्रों से सूचना के प्रवाह को भी प्रभावित करते हैं, जिससे रिपोर्टिंग और सार्वजनिक जागरूकता की स्थिति कमज़ोर होती है। 
  • आर्थिक प्रभाव: 
    • इंटरनेट शटडाउन की वास्तविक आर्थिक लागत भी होती है जो व्यक्तियों के साथ-साथ पूरे देश को प्रभावित करती है। 
    • वे प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक हानि और बेरोज़गारी में योगदान करते हैं, विशेषकर उन लोगों के लिये जो अपनी आजीविका के लिये ऑनलाइन मंचों पर निर्भर होते हैं। 
    • वे डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन सेवाओं, ई-कॉमर्स, शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और इंटरनेट कनेक्टिविटी पर निर्भर अन्य क्षेत्रों को भी बाधित करते हैं। 
      • यूके में अवस्थित डिजिटल प्राइवेसी ग्रुप Top10VPN.com के एक आकलन के अनुसार,वर्ष 2020 में ही इंटरनेट शटडाउन से भारत को 20,000 करोड़ रुपए ($2.8 बिलियन) से अधिक का नुकसान हुआ। 
    • वर्ष 2019 में कश्मीर में छह माह की संचार नाकेबंदी: 
      • कश्मीर में संचार नाकाबंदी (communication blockade)—जो वर्ष 2019 में छह माह तक जारी रही थी, के परिणामस्वरूप पाँच लाख से अधिक लोगों को अपने रोज़गार से हाथ धोना पड़ा था। लंबे समय तक जारी रहे इस इंटरनेट शटडाउन ने क्षेत्र में व्यवसायिक और आर्थिक गतिविधियों को गंभीर रूप से बाधित कर दिया। 
    • वर्ष 2021 में शटडाउन के कारण राजस्थान को नुकसान: 
      • राजस्थान में वर्ष 2021 में एक माह तक जारी रहे शटडाउन से उसे 800 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। 
      • यह परिदृश्य उस तात्कालिक और महत्त्वपूर्ण वित्तीय प्रभाव को उजागर करता है जो अल्पकालिक इंटरनेट शटडाउन से भी स्थानीय अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है। 
    • देश भर में इंटरनेट शटडाउन: 
      • वर्ष 2022 में देश भर में अलग-अलग क्षेत्रों में इंटरनेट शटडाउन से 1,500 करोड़ रुपए से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ। 
      • यह आँकड़ा उस अवधि के दौरान देश के विभिन्न क्षेत्रों में लागू विभिन्न शटडाउन के संचयी प्रभाव को दर्शाता है। 
      • वर्ष 2023 की पहली छमाही में ही इंटरनेट शटडाउन से अनुमानित 2,091 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। यह देश में इंटरनेट व्यवधानों के वित्तीय परिणामों के संदर्भ में बिगड़ती स्थिति का संकेत देता है। 
  • ‘डिजिटल डिवाइड’ का गहरा होना: 
    • इंटरनेट शटडाउन उन लोगों के बीच डिजिटल डिवाइड (Digital Divide) को भी गहरा करता है जिनके पास विश्वसनीय एवं सस्ते इंटरनेट तक पहुँच है और जिनके पास यह पहुँच नहीं है। 
    • ये ग्रामीण आबादी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, निम्न आय परिवारों और दिव्यांगजनों जैसे हाशिये पर स्थित समूहों को असमान रूप से प्रभावित करते हैं। 
    • ये सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ के दृष्टिकोण के भी विरुद्ध हैं जिसका उद्देश्य डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना और सेवाओं के माध्यम से नागरिकों को सशक्त बनाना है। 
  • भारत में इंटरनेट शटडाउन से संबंधित महत्त्वपूर्ण निर्णय: अनुराधा भसीन बनाम भारत संघ (2020)
    • इस ऐतिहासिक मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया, जहाँ माना कि इंटरनेट के माध्यम से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार और व्यापार एवं कारोबार का अधिकार क्रमशः भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) और अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत संरक्षित मूल अधिकार हैं।  
    • न्यायालय ने यह भी माना कि इंटरनेट शटडाउन संवैधानिक समीक्षा के अधीन है और इसे आवश्यकता एवं आनुपातिकता के सिद्धांतों का पालन करना चाहिये। न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि इंटरनेट तक पहुँच पर कोई भी प्रतिबंध प्रासंगिक भौतिक तथ्यों पर आधारित होना चाहिये और व्यक्त उद्देश्य की प्राप्ति के लिये न्यूनतम प्रतिबंधात्मक उपाय होना चाहिये। 
    • निर्णय में यह सुनिश्चित करने के लिये दिशानिर्देश भी जरी किये गए कि इंटरनेट शटडाउन अनिश्चित काल के लिये लागू नहीं हो और इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने वाला कोई भी आदेश प्रकाशित किया जाना चाहिये तथा यह न्यायिक समीक्षा के अधीन होना चाहिये। इस निर्णय ने भारत में इंटरनेट शटडाउन की वैधता और संवैधानिकता के मूल्यांकन के लिये एक महत्त्वपूर्ण विधिक दृष्टांत एवं रूपरेखा प्रदान की। 
  • फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स बनाम जम्मू और कश्मीर केंद्रशासित प्रदेश (2020): 
    • इस मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने जम्मू और कश्मीर प्रशासन को इंटरनेट पहुँच पर सभी मौजूदा प्रतिबंधों की समीक्षा करने का निर्देश दिया और कहा कि इंटरनेट तक पहुँच का अधिकार एक मूल अधिकार है और इसका सम्मान किया जाना चाहिये। 
  • इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन बनाम भारत संघ (2020): 
    • इस मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act- CAA) के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन के दौरान इंटरनेट शटडाउन सहित देश के विभिन्न हिस्सों में इंटरनेट शटडाउन के अन्य मामलों को इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन (IFF) द्वारा चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई की। 
    • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार को नोटिस जारी कर IFF की दलीलों पर जवाब की मांग की गई। 

इंटरनेट शटडाउन से संबंधित विभिन्न तर्क:  

  • पक्ष में तर्क: 
    • हेट स्पीच और फेक न्यूज़ पर रोक के लिये आवश्यक: 
      • इंटरनेट का उपयोग विभिन्न धार्मिक और जातीय समूहों के विरुद्ध घृणा और शत्रुता के प्रसार के लिये किया जा सकता है। 
      • इंटरनेट शटडाउन ज़ेनोफोबिक प्रवृत्तियों और गलत सूचनाओं का मुक़ाबला करने में मदद कर सकता है। 
    • विधि-व्यवस्था बनाए रखना: 
      • हिंसा और अव्यवस्था भड़काने वाले उत्तेजक संदेशों एवं अफ़वाहों के प्रसार पर रोक लगाकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और नागरिक अशांति से निपटने के लिये अधिकारियों द्वारा इंटरनेट शटडाउन को अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। 
    • अराजकता से बचना: 
      • कुछ चरम स्थितियों में जहाँ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्यवधान और भ्रम का स्रोत बन जाते हैं, शांति-व्यवस्था की बहाली के लिये इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करना आवश्यक सिद्ध हो सकता है। 
  • विपक्ष में तर्क: 
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन: 
      • फाहीमा शिरीन बनाम केरल राज्य मामले में केरल उच्च न्यायालय ने इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में चिह्नित किया, जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार और शिक्षा के अधिकार का अंग है। 
      • इंटरनेट शटडाउन इन अधिकारों का उल्लंघन करता है और लोगों की संचार, अभिव्यक्ति, लर्निग तथा सूचना तक पहुँच की क्षमता को सीमित करता है। 
    • सामाजिक लागत: 
      • इंटरनेट शटडाउन से इंटरनेट कनेक्टिविटी पर निर्भर शिक्षा, स्वास्थ्य, सार्वजनिक सेवाओं जैसी आवश्यक सेवाएँ प्रभावित होती हैं। 
      • इंटरनेट शटडाउन शिक्षा के क्षेत्र में डिजिटल डिवाइड और असमानता भी उत्पन्न करता है। यह बात कोविड-19 महामारी के दौरान स्पष्ट रूप से प्रकट हुई जब ऑनलाइन लर्निंग अत्यंत आवश्यक बन गई। 
    • उद्देश्य प्राप्त करने में विफलता: 
      • इस बात का कोई निर्णायक साक्ष्य मौजूद नहीं है कि इंटरनेट शटडाउन से लोक व्यवस्था का संरक्षण होता है या इसकी बहाली में मदद मिलती है। 
      • वस्तुतः इंटरनेट शटडाउन का और अधिक असंतोष, हताशा एवं आक्रोश के रूप में विपरीत असर ही उत्पन्न हो सकता है। 
    • सामाजिक अव्यवस्था: 
      • इंटरनेट शटडाउन से सूचना और पारदर्शिता की कमी की स्थिति बनती है जिससे घबराहट और उन्माद में वृद्धि हो सकती है। 
      • यह ज़मीनी स्थिति की निगरानी रखने और इसकी रिपोर्ट करने के नागरिक समाज, मीडिया तथा मानवाधिकार रक्षकों के प्रयासों में भी बाधा उत्पन्न कर सकता है। 

आगे की राह:

  • कानूनी ढाँचे में सुधार करना: 
    • सरकार को टेलीग्राफ अधिनियम और उसके नियमों को निरस्त या संशोधित करना चाहिये, जो पुराने एवं अस्पष्ट हैं तथा उन संवैधानिक तथा मानवाधिकार संबंधी मानकों का अनुपालन नहीं करते हैं जहाँ इंटरनेट तक पहुँच पर किसी भी प्रतिबंध से आवश्यक, वैध, आनुपातिक एवं समयबद्ध होने की अपेक्षा रखी गई है। 
    • केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के लिये भी स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करने चाहिये कि असाधारण परिस्थितियों में इंटरनेट पर प्रतिबंध कब और कैसे लगाए जाएँ (जिस तरह की अनुशंसा इंटरनेट शटडाउन पर एक संसदीय पैनल की रिपोर्ट में की गई है)। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का सम्मान करना: 
    • प्राधिकारी वर्ग को अनुराधा भसीन मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गए निर्देशों का पालन करना चाहिये, जहाँ इंटरनेट तक पहुँच के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में चिह्नित किया गया है और किसी भी इंटरनेट प्रतिबंध के लिये तर्कसंगतता एवं आनुपातिकता के सिद्धांत निर्धारित किये गए हैं। 
    • प्राधिकारी वर्ग को इंटरनेट सेवाओं को निलंबित करने वाले सभी आदेशों को प्रकाशित भी करना चाहिये और उन्हें आम लोगों के लिये सुलभ बनाना चाहिये तथा न्यायिक समीक्षा के अधीन लाना चाहिये। 
  • शटडाउन के विकल्पों की तलाश: 
    • सरकार को विधि-व्यवस्था की गड़बड़ी, सांप्रदायिक हिंसा, आतंकवादी हमलों, परीक्षाओं में कदाचार और राजनीतिक अस्थिरता से निपटने के लिये अन्य कम हस्तक्षेपकारी उपायों पर विचार करना चाहिये। जैसे विशिष्ट वेबसाइटों या कंटेंट को अवरुद्ध करना, चेतावनी या सलाह जारी करना, नागरिक समाज एवं मीडिया से संलग्नता बढ़ाना या सुरक्षा बलों की तैनाती में उनके संख्या बल की वृद्धि करना। 
  • शटडाउन के प्रभाव का आकलन: 
    • सरकार को मानवाधिकारों, लोकतंत्र और विकास पर इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव का नियमित मूल्यांकन करना चाहिये। 
    • इसे उन लोगों को मुआवज़ा भी देना चाहिये जो इंटरनेट शटडाउन के कारण नुकसान या क्षति का सामना करते हैं (विशेष रूप से ग्रामीण आबादी, महिलाओं, अल्पसंख्यकों, निम्न आय परिवारों और दिव्यांगजन जैसे कमज़ोर समूहों को)। 

अभ्यास प्रश्न: भारत के संदर्भ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सूचना तक पहुँच, आर्थिक गतिविधियों एवं लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर इंटरनेट शटडाउन के प्रभाव का परीक्षण करते हुए सूचना प्रवाह एवं लोगों की अवैध गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित करने के एक उपाय के रूप में इंटरनेट शटडाउन के निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये। 


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