जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट शटडाउन
प्रीलिम्स के लियेअनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार वाद मेन्स के लियेइंटरनेट शटडाउन से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
नवगठित जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में 4G इंटरनेट सेवाओं की बहाली की अपील को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि क्षेत्र विशिष्ट की ‘विशेष परिस्थितियों’ के मद्देनज़र आवश्यक है कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं’ और ‘मानवाधिकारों’ के मध्य यथोचित संतुलन स्थापित किया जाए।
प्रमुख बिंदु
- सर्वोच्च न्यायालय ने रेखांकित किया कि ‘विदेशी ताकतें सीमाओं पर घुसपैठ करने और राष्ट्र की अखंडता को अस्थिर करने की पूरी कोशिश कर रही हैं, जिसके कारण मानवाधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा के मध्य संतुलन स्थापित करना आवश्यक है।’
- इसी के साथ सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को इस संबंध में सभी मुद्दों की जाँच करने के लिये एक ‘विशेष समिति’ का गठन करने का भी आदेश दिया है।
पृष्ठभूमि
- उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर के कई संस्थानों ने प्रदेश में 4G इंटरनेट के अभाव में प्रभावी ढंग से कार्य करने में आ रही समस्याओं के मद्देनज़र न्यायालय में याचिका दायर की थी।
- एक याचिकाकर्त्ता ‘फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स’ के अनुसार, डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों और मीडियाकर्मियों के लिये 4G इंटरनेट स्पीड के अभाव में सही ढंग से कार्य करना अपेक्षाकृत काफी मुश्किल हो रहा है।
- याचिकाकर्त्ता के अनुसार, जब इस संबंध में याचिका दायर की गई थी, तो प्रदेश में कोरोनावायरस (COVID-19) संक्रमण के मात्र 33 मामले थे, किंतु अब COVID-19 संक्रमण के मामले 700 से भी पार जा चुके हैं।
- ‘फाउंडेशन ऑफ मीडिया प्रोफेशनल्स’ के अनुसार, COVID-19 से संबंधित नवीनतम अपडेट प्राप्त करने और रोगियों को ऑनलाइन परामर्श देने में उच्च स्पीड इंटरनेट की आवश्यकता होती है, किंतु 4G इंटरनेट के अभाव में ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।
- एक अन्य याचिकाकर्त्ता के रूप में ‘J&K प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन’ ने कहा कि प्रदेश में 4G इंटरनेट पर प्रतिबंध के कारण बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा काफी हद तक प्रभावित हो रही है।
- याचिकाकर्त्ताओं ने कहा कि इस प्रकार के प्रतिबंधों से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार मामले में दिये गए तर्कशीलता और आनुपातिकता के सिद्धांतों का उल्लंघन हो रहा है।
अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार
- उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने बीते वर्ष अगस्त माह में अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया था और इसी के साथ राज्य का विभाजन दो केंद्रशासित क्षेत्रों- जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के रूप में कर दिया गया था।
- इसके पश्चात् जम्मू-कश्मीर में तकरीबन 5 महीनों तक इंटरनेट ब्लैक आउट देखा गया अर्थात् इस अवधि में जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की इंटरनेट तक पहुँच नहीं थी।
- अनुच्छेद 370 की समाप्ति के तकरीबन 5 महीने बाद अनुराधा भसीन बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के आधार पर मोबाइल उपयोगकर्त्ताओं के लिये 2G इंटरनेट को आंशिक रूप से बहाल कर दिया गया।
- इस मामले की सुनवाई में न्यायालय ने कहा कि किसी भी क्षेत्र में इंटरनेट के अनिश्चितकालीन निलंबन ‘की अनुमति नहीं है और इंटरनेट पर प्रतिबंध लगाते समय अनुच्छेद 19(2) के तहत आनुपातिकता के सिद्धांतों का पालन किया जाना आवश्यक है।
विशेष समिति का गठन
- जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस बी. आर. गवई की न्यायपीठ ने केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में एक विशेष समिति के गठन का आदेश दिया, जो कि जम्मू-कश्मीर में 2G मोबाइल इंटरनेट के प्रतिबंध के विस्तार की जाँच करेगी।
- उल्लेखनीय है कि इस समिति में संचार विभाग के सचिव और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव भी शामिल होंगे।
- न्यायालय ने समिति से कहा कि वह याचिकाकर्त्ताओं और उत्तरदाताओं द्वारा प्रस्तुत किये गए विभिन्न तर्कों और उपलब्ध कराई गई विभिन्न सामग्रियों की जाँच करे।
- इसके अतिरिक्त समिति को याचिकाकर्त्ताओं द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक उपायों की समीक्षा करने का कार्य भी सौंपा गया है।
- उल्लेखनीय है कि याचिकाकर्त्ताओं ने सुझाव दिया था कि उन क्षेत्रों में, जहाँ आवश्यक है, इंटरनेट पर प्रतिबंधों को सीमित कर दिया जाए और कुछ क्षेत्रों में परीक्षण के आधार पर उच्च स्पीड इंटरनेट (जैसे 3G और 4G) की अनुमति दी जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
फ्लाई ऐश का सुंदरबन की पारिस्थितिकी पर प्रभाव
प्रीलिम्स के लिये:मुरी गंगा, हुगली नदी, सागर द्वीप, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण मेन्स के लिये:फ्लाई ऐश और पारिस्थितिकी |
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण विशेषज्ञों एवं मत्स्य संगठनों ने हुगली नदी में फ्लाई ऐश से भरे बर्गों (एक प्रकार की नौका) के डूबने की हालिया घटनाओं को ‘सुंदरवन की पारिस्थितिकी’ के लिये एक गंभीर खतरे के रूप में चिह्नित किया है।
प्रमुख बिंदु:
- फ्लाई ऐश से भरी नौकाओं के डूबने की घटनाओं में से एक हुगली नदी पर तथा दूसरी मुरी गंगा (Muri Ganga) नदी; जो सागर द्वीप के पास हुगली से मिलती है, पर हुई है।
- लगभग 100 बांग्लादेशी नौकाएँ जिनमें प्रत्येक का वज़न 600-800 टन होता है, नियमित रूप से भारतीय जल-मार्गों से गुजरते हैं।
- इन नौकाओं के माध्यम से भारत के तापीय ऊर्जा संयत्रों से उत्पन्न फ्लाई ऐश को बांग्लादेश में ले जाया जाता है जहाँ फ्लाई ऐश का उपयोग सीमेंट उत्पादन में किया जाता है।
मुरी गंगा (Muri Ganga):
- मुरी गंगा हुगली नदी की एक सहायक नदी है जो पश्चिम बंगाल के बहती है। यह सागर द्वीप (Sagar Island) को काकद्वीप (Kakdwip) से जोड़ती है।
हुगली नदी (Hugli River):
- हुगली, गंगा नदी की एक वितरिका है। हुगली नदी कलकत्ता से लगभग 200 किलोमीटर उत्तर में गंगा से निकलती है तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
सागर द्वीप (Sagar Island):
- हुगली नदी और मुरी गंगा तथा बंगाल की खाड़ी से घिरा हुआ है। यह द्वीप उच्च ज्वार के समय समुद्री लहरों से प्रभावित रहता है।
फ्लाई ऐश (Fly Ash):
- फ्लाई ऐश (Fly Ash) प्राय: कोयला संचालित विद्युत संयंत्रों से उत्पन्न प्रदूषक है, जिसका वर्तमान में कई आर्थिक गतिविधियों जैसे- सीमेंट निर्माण, ईंट निर्माण, सड़क निर्माण आदि में प्रयोग किया जाता हैं।
फ्लाई ऐश का पारिस्थितिकी पर प्रभाव:
- फ्लाई एश में मौजूद विभिन्न विषैले तत्त्वों के मिश्रण के कारण नदी प्रदूषित हो रही है तथा ये प्रदूषक मत्स्य उत्पादन तथा उपभोग को प्रभावित कर सकता है।
- फ्लाई ऐश के कारण न केवल मत्स्यन अपितु मैंग्रोव क्षेत्र की पारिस्थितिकी भी प्रभावित हो सकती हैं।
- जहाज के दुर्घटनाग्रस्त होने पर फ्लाई ऐश धीरे-धीरे बाहर निकलकर नदी के तल में जमा हो जाती है।
- फ्लाई ऐश मे उपस्थित प्रदूषक जैसे- सीसा, क्रोमियम, मैग्नीशियम, जस्ता, आर्सेनिक आदि पानी में मिल जाते हैं। ये प्रदूषक जलीय वनस्पतियों एवं जीवों को नुकसान पहुँचाते हैं।
परिवहन का नियमन:
- ‘भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण’ (Inland Waterways Authority of India- IWAI) सीमा-पार जलयानों की आवाजाही को नियंत्रित करता है।
आगे की राह:
- बांग्लादेश में फ्लाई ऐश ले जाने वाले अधिकांश जहाज काफी पुराने हैं तथा इतनी लंबी यात्रा के लिये उपयुक्त नहीं है। अत: सरकार को सुंदरवन से गुजरने वाले इन जहाज़ों पर रोक लगाई जानी चाहिये।
भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI):
- अंतर्देशीय जलमार्गों के विकास और विनियमन हेतु भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) की स्थापना 27 अक्तूबर, 1986 को की गई।
- IWAI जहाज़रानी मंत्रालय (Ministry of Shipping) के अधीन एक सांविधिक निकाय है।
- यह जहाज़रानी मंत्रालय से प्राप्त अनुदान के माध्यम से राष्ट्रीय जलमार्गों पर अंतर्देशीय जल परिवहन अवसंरचना के विकास और अनुरक्षण का कार्य करता है।
- वर्ष 2018 में IWAI ने कार्गो मालिकों एवं लॉजिस्टिक्स संचालकों को जोड़ने हेतु समर्पित पोर्टल ‘फोकल’ (Forum of Cargo Owners and Logistics Operators-FOCAL) लॉन्च किया था जो जहाज़ों की उपलब्धता के बारे में रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराता है।
स्रोत: डाउन-टू-अर्थ
गुजरात कृषि उपज बाज़ार (संशोधन) अध्यादेश, 2020
प्रीलिम्स के लियेगुजरात कृषि उपज बाज़ार (संशोधन) अध्यादेश, 2020 मेन्स के लियेकिसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य चुनौतियाँ और प्रयास |
चर्चा में क्यों?
गुजरात में राज्य-संचालित कृषि उपज बाज़ार समितियों (Agricultural Produce Market Committees-APMCs) के ‘एकाधिकार’ को समाप्त करते हुए राज्य सरकार ने गुजरात कृषि उपज बाज़ार (संशोधन) अध्यादेश, 2020 को मंज़ूरी दे दी है।
प्रमुख बिंदु
- ध्यातव्य है कि इस अध्यादेश के माध्यम से निजी संस्थाओं को अपनी बाज़ार समितियाँ स्थापित करने की अनुमति प्राप्त होगी, जो किसानों को उनकी उपज के लिये सर्वोत्तम संभव पारिश्रमिक पेश कर सकेंगी।
- गुजरात सरकार का यह अध्यादेश बाज़ार समितियों के अधिकार क्षेत्र को उनकी भौतिक सीमाओं तक सीमित करता है।
- अब तक एक विशेष तालुका के किसानों को अपनी उपज को अपने संबंधित APMCs को ही बेचना पड़ता था। यहाँ तक कि व्यापारी भी अपने स्वयं के तालुकों तक ही सीमित थे। APMCs द्वारा अपने क्षेत्राधिकार और उससे बाहर होने वाले सभी लेन-देन पर उपकर लगाया जाता था
- गत वित्तीय वर्ष में गुजरात के 24 APMCs ने मिलकर 35,000 करोड़ रुपए का लेनदेन किया और लेनदेन पर उपकर (0.5 प्रतिशत लेनदेन) के रूप में 350 करोड़ रुपए कमाए थे।
- विश्लेषण के अनुसार, उपकर के माध्यम से अर्जित किया गया अधिकांश लाभ ऐसे लेन-देनों से प्राप्त हुआ था, जो APMCs की भौतिक सीमा से बाहर किये गए थे।
- नए नियमों के अनुसार, अब APMCs केवल उन लेन-देनों पर उपकर लगा सकती हैं जो उनकी सीमाओं के भीतर होते हैं।
- नियमों के अनुसार, किसी भी निजी संस्था के स्वामित्त्व वाले कोल्ड स्टोरेज या गोदाम को निजी बाज़ार में परिवर्तित किया जा सकता है, जो कि मौजूदा APMCs के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकते हैं और किसानों को सर्वोत्तम मूल्य प्रदान कर सकते हैं।
- इस अध्यादेश के तहत व्यापारियों को एक ‘एकीकृत एकल व्यापार लाइसेंस’ (Unified Single Trading Licence) भी प्रदान करने की व्यवस्था की गई है, जिसके माध्यम से वे राज्य में कहीं भी व्यापारिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं।
महत्त्व
- उल्लेखनीय है कि कई किसान निकायों ने राज्य के इस निर्णय का स्वागत किया है, क्योंकि इससे किसानों को उनकी उपज की गुणवत्ता के आधार पर उचित मूल्य प्राप्त करने में सहायता मिलेगी।
- अध्यादेश के माध्यम से जो आमूलचूल परिवर्तन किये गए हैं, वे न केवल APMCs को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाएंगे, बल्कि राज्य संचालित APMCs के एकाधिकार को समाप्त करके एक बड़ा परिवर्तन लाएंगे।
- अब किसानों को केवल एक विशेष APMCs को अपना माल बेचने के लिये बाध्य नहीं होना पड़ेगा, जिससे किसानों को अपनी उपज का सही मूल्य प्राप्त हो सकेगा।
- यह अध्यादेश राज्य में APMCs के एकाधिकार को समाप्त कर देगा जो एक संघ बनाकर यह तय करते थे कि किसानों को उपज की क्या कीमतें प्रदान की जाए।
कृषि उपज बाज़ार समिति
(Agricultural Produce Market Committees-APMCs)
- कृषि उपज बाज़ार समिति (Agricultural Produce Market Committees-APMCs) एक राज्य सरकार द्वारा गठित एक वैधानिक बाज़ार समिति होती है, जिसे कुछ अधिसूचित कृषि, बागवानी अथवा पशुधन उत्पादों में व्यापार के संबंध में गठित किया जाता है।
- उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान के तहत कृषि विपणन राज्य सूची का विषय है। इसीलिये कृषि बाज़ार अधिकांशतः राज्य APMC अधिनियमों के तहत स्थापित और विनियमित किये जाते हैं। इसीलिये कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने-अपने कानून अधिनियमित किये हुए हैं।
- APMCs के प्रमुख कार्य
- मूल्य निर्धारण प्रणाली और बाज़ार क्षेत्र में होने वाले लेन-देन में पारदर्शिता सुनिश्चित करना;
- यह सुनिश्चित करना कि किसानों को उनकी उपज का भुगतान उसी दिन प्राप्त हो;
- कृषि प्रसंस्करण को बढ़ावा देना;
- बिक्री के लिये बाज़ार क्षेत्र में लाए गए कृषि उपज और उनकी दरों पर से संबंधित आँकड़ों को सार्वजनिक करना;
- कृषि बाजारों के प्रबंधन में सार्वजनिक निजी भागीदारी को बढ़ावा देना।
आगे की राह
- उल्लेखनीय है कि छोटे APMCs को अनुचित प्रतिस्पर्द्धा से बचाना इस संबंध में एक बड़ा मुद्दा, जिससे इस अध्यादेश में संबोधित नहीं किया गया है, हालाँकि सरकार आगामी दिनों में एक ऐसा नियम लाने की योजना बना रही है जो मौजूदा APMCs के पाँच किलोमीटर के दायरे में एक निजी बाज़ार की स्थापना की अनुमति नहीं देगा।
- राज्य सरकार का यह निर्णय एक परिवर्तनकारी कदम है, हालाँकि इससे राज्य के APMCs के राजस्व पर काफी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि APMCs अपने राजस्व का एक विशिष्ट हिस्सा उनकी भौतिक सीमा से बाहर होने वाले लेनदेनों पर उपकर लगाकर प्राप्त करती हैं।
- आवश्यक है कि इस निर्णय को पूर्ण रूप से लागू करने से पूर्व राज्य संचालित APMCs को विश्वास में लिया जाए और उनके विभिन्न मुद्दों को हल किया जाए।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
‘भारतीय बैंक संघ’ द्वारा ‘बैड बैंक’ की सिफारिश
प्रीलिम्स के लिये:बैड बैंक, सशक्त पैनल की सिफारिशें, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी, परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी मेन्स के लिये:NPAs पर भारतीय बैंक संघ की सिफारिशें |
चर्चा में क्यों?
हाल में ‘भारतीय बैंक संघ’ (Indian Banks’ Association- IBA) ने वित्त मंत्रालय को 'सशक्त पैनल' की अनुशंसाओं के आधार पर ‘बैड बैंक’ का निर्माण करने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु:
- ‘बैड बैंक’ के निर्माण के बाद बैंकों के 60,000 करोड़ रुपये से अधिक के ‘बैड लोन’ 'परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी' (Asset Reconstruction Company) को स्थानांतरित करने की संभावना है।
- सरकार ‘बैड बैंक’ (Bad Bank) में लगभग 9,000-10,000 करोड़ रुपये के योगदान के साथ 50% तक पूँजी निवेश कर सकती है।
बैड बैंक की अवधारणा:
- ‘बैड बैंक' एक आर्थिक अवधारणा है जिसके अंतर्गत आर्थिक संकट के समय घाटे में चल रहे बैंकों द्वारा अपनी देयताओं को एक नए बैंक को स्थानांतरित कर दिया जाता है|
- जब किसी बैंक की गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियाँ सीमा से अधिक हो जाती हैं, तब राज्य के आश्वासन पर एक ऐसे बैंक का निर्माण किया जाता है जो मुख्य बैंक की देयताओं को एक निश्चित समय के लिये धारण कर लेता है|
सशक्त पैनल (Sashakt Panel):
- जुलाई, 2018 में सुनील मेहता की अध्यक्षता में दबावपूर्ण परिसंपत्तियों (Stressed Assets) के समाधान के लिये सुझाव दिये थे। सुनील मेहता जो वर्तमान में ‘प्रोजेक्ट सशक्त’ (Project Sashakt) के भी अध्यक्ष हैं। अत: ‘सुनील मेहता’ समिति को 'सशक्त पैनल' (Sashakt Panel) के रूप में भी जाना जाता है। पैनल ने तनावग्रस्त परिसंपत्तियों को हल करने के लिये ‘पाँच-आयामी दृष्टिकोण’ का प्रस्ताव दिया था।
- पैनल ने सिफारिश की थी कि ARC के तहत बड़े बैड लोन का समाधान किया जा सकता है।
IBA की सिफारिश:
- ‘भारतीय बैंक संघ’ (IBA) जो कि एक दबाव समूह है, ने ‘प्रोजेक्ट सशक्त’ की सिफारिशों को आधार बनाकर तीन संस्थाओं की स्थापना की सिफारिश की गई है:
- परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी' (Asset Reconstruction Company- ARC):
- ARC एक विशेष वित्तीय संस्थान है जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों की बैलेंस शीट को स्वच्छ और संतुलित रखने में उनकी सहायता करने के लिये उनसे ‘गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों’ (Non-Performing Assets- NPA) या खराब ऋण खरीदती है। दूसरे शब्दों में ARC बैंकों से खराब ऋण खरीदने के कारोबार में कार्यरत वित्तीय संस्थान हैं।
परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी (Asset Management Company- AMC):
- AMC परिसंपत्तियों का प्रबंधन, जिसमें प्रबंधन का अधिग्रहण या परिसंपत्तियों के पुनर्गठन जैसे कार्य करेगी। 500 करोड़ रुपए से अधिक के फँसे ऋण के लिये AMC की स्थापना की जाएगी। AMC बैंकों द्वारा NPA घोषित किये हुए ऋण को खरीदेगा जिससे इस कर्ज़ का भार बैंकों पर नहीं पड़ेगा।
- यह कंपनी पूरी तरह से स्वतंत्र होगी। इसमें सरकार का कोई दखल नहीं होगा। AMC सरकारी एवं निजी दोनों क्षेत्रों के निवेशकों से धन जुटाएगी।
वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund- AIF):
- परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनी’ (AMC) को AIF के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा।
- IBA ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से बैड लोन की प्राप्ति के लिये एक स्वतंत्र ARC के गठन की सिफारिश की है।
भारत में NPAs की स्थिति:
- CARE रेटिंग एजेंसी के विश्लेषण के अनुसार, दिसंबर 2018 में वाणिज्यिक बैंकों की 'सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्ति' दिसंबर 2018 में 9.7 ट्रिलियन रुपए से घटकर 9 ट्रिलियन हो गई है। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की हिस्सेदारी अभी भी अधिक बनी हुई है। दिसंबर, 2019 के अनुसार, इनकी हिस्सेदारी 7.2 ट्रिलियन रुपए है।
स्रोत: बिजनेस स्टैंडर्ड
कोविड कवच एलिसा
प्रीलिम्स के लिये:कोविड कवच एलिसा मेन्स के लिये:COVID-19 से निपटने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) और राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान (National Institute of Virology- NIV) ने संयुक्त रूप से COVID-19 की परीक्षण में तेज़ी लाने हेतु 'कोविड कवच एलिसा' (COVID KAVACH ELISA) को विकसित और प्रमाणित किया है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि 'कोविड कवच एलिसा' से मानव शरीर में मौजूद COVID-19 के एंटीबॉडी का पता लगाया जाएगा।
- 'कोविड कवच एलिसा' (COVID KAVACH ELISA) से ढाई घंटे के एक निरंतर परीक्षण में एक साथ 90 नमूनों का परीक्षण किया जा सकता है। साथ ही एलिसा परीक्षण ज़िला स्तर पर भी आसानी से संभव है।
- 'कोविड कवच एलिसा' के परीक्षण हेतु मुंबई के दो शहरों को चिह्नित किया गया था। इस परीक्षण के दौरान 'कोविड कवच एलिसा' में उच्च संवेदनशीलता और विशिष्टता पायी गई है।
- पुणे के राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान द्वारा COVID-19 के एंटीबॉडी का पता लगाने हेतु विकसित की गई स्वदेशी 'कोविड कवच एलिसा' परीक्षण किट संक्रमण के अनुपात को समझने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
- वास्तविक समय में ‘रिवर्स ट्रांसक्रिपटेस पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन’ (Reverse Transcriptase Polymerase Chain Reaction- RT-PCR) की परीक्षण की तुलना में 'कोविड कवच एलिसा' में न्यूनतम जैव-सुरक्षा की आवश्यकता होती है।
- कई उच्च परीक्षण किट जो हाल ही में भारतीय बाज़ार में आई हैं उनकी तुलना में इस परीक्षण किट में अत्यधिक संवेदनशीलता और विशिष्टता है।
- यह रिकॉर्ड समय में ‘मेक इन इंडिया’ (Make in India) का एक आदर्श उदाहरण है।
उत्पादन हेतु भागीदारी:
- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) ने एलिसा परीक्षण किट के बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिये ‘ज़ाइडस कैडिला’ (Zydus Cadila) के साथ भागीदारी की है।
- ज़ाइडस कैडिला एक नवाचार संचालित वैश्विक स्वास्थ्य सेवा कंपनी है जिसको एलिसा परीक्षण किट से संबंधित प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित कर दिया गया है।
एंटीबॉडी परीक्षण (Antibody Test):
- COVID-19 के परीक्षण के लिये एंटीबॉडी परीक्षण एक स्क्रीनिंग प्रक्रिया के रूप में कार्य करेगा जो कुछ घंटों में ही त्वरित परिणाम देता है।
- एंटीबॉडी परीक्षण वायरस के कारण शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया का पता लगाता है। यह एक संकेत देता है कि व्यक्ति वायरस के संपर्क में आया है या नहीं।
- यदि परीक्षण सकारात्मक है तो स्वाब (Swab) एकत्र किया जाता है और पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction- PCR) किट का उपयोग करके एक राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid- RNA) परीक्षण किया जाता है।
- हालाँकि एंटीबॉडी परीक्षण यह स्पष्ट नहीं होता है कि कोई व्यक्ति COVID-19 संक्रमण से संक्रमित है कि नहीं। इसका उपयोग मात्र स्क्रीनिंग के लिये किया जाता है।
राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान
(National Institute of Virology- NIV):
- राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान को रॉकफेलर फाउंडेशन और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के संयुक्त प्रयासों से वर्ष 1952 में पुणे में स्थापित किया गया था।
- राष्ट्रीय विषाणु विज्ञान संस्थान के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- मनुष्यों को प्रभावित करने वाले वायरल रोगों पर अध्ययन।
- वायरस के प्रकोप, अलगाव और लक्षण की जाँच करना।
- वायरस के प्राकृतिक चक्र और प्रसार का अध्ययन।
- वायरल रोगों के बारे में लोगों को जागरूक करना।
स्रोत: पीआईबी
ई-नाम पोर्टल पर मंडियों की संख्या में वृद्धि
प्रीलिम्स के लिये:ई-नाम पोर्टल मेन्स के लिये:ई-नाम पोर्टल की मदद से किसानों की सहायता हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (Ministry of Agriculture & Farmers Welfare) ने 10 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 177 नई मंडियों को कृषि उत्पाद के विपणन हेतु ‘ई-नाम’ (e-NAM) पोर्टल से जोड़ा है।
प्रमुख बिंदु:
- उल्लेखनीय है कि ‘ई-नाम’ से जुड़ने वाली मंडियों की संख्या बढ़कर 962 (पहले इनकी संख्या 785) हो गई है।
- ‘ई-नाम’ पोर्टल से जोड़ी गई मंडियाँ इस प्रकार हैं- गुजरात (17), हरियाणा (26), जम्मू और कश्मीर (1), केरल (5), महाराष्ट्र (54), ओडिशा (15), पंजाब (17), राजस्थान (25), तमिलनाडु (13) और पश्चिम बंगाल (1)।
- ध्यातव्य है कि इससे पहले ‘ई-नाम’ पोर्टल से 17 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों की 785 मंडियों को जोड़ा गया था। इन मंडियों से 1.66 करोड़ किसान, 1.30 लाख व्यापारी और 71,911 कमीशन एजेंट जुड़े थे।
- 9 मई 2020 तक 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक कीमत के बाँस और नारियल जैसे उत्पादों का कारोबार किया गया है।
- ध्यातव्य है कि 2 अप्रैल 2020 को COVID-19 के मद्देनज़र देशभर में लॉकडाउन के दौरान मंडियों से भीड़भाड़ कम करने हेतु ई-नाम पोर्टल में संशोधन कर एफपीओ ट्रेड मॉड्यूल (FPO Trade Module), लॉजिस्टिक्स मॉड्यूल (Logistics Module) और ईएनडब्ल्यूआर (eNWR) आधारित भंडारण मॉड्यूल की शुरूआत की गई थी।
- 2 अप्रैल 2020 से अब तक ‘ई-नाम’ पोर्टल पर 15 राज्यों के 82 एफपीओ ने 12048 क्विंटल (2.22 करोड़ रूपये के) जिंसों का कारोबार किया है।
- ‘ई-नाम’ पोर्टल के साथ 9 लॉजिस्टिक्स सर्विस एग्रीगेटर्स ने साझेदारी की है जिसमें 2,31,300 ट्रांसपोर्टर्स हैं, जो परिवहन सेवा ज़रूरतों को पूरा करने के लिये 11,37,700 ट्रकों को उपलब्ध करा रहे हैं।
ई-नाम पोर्टल में संशोधन:
- ई-नाम में गोदामों से व्यापार की सुविधा हेतु वेयरहाउस आधारित ट्रेडिंग मॉड्यूल:
- वेयरहाउसिंग विकास और विनियामक प्राधिकरण (Warehousing Development and Regulatory Authority- WDRA) से पंजीकृत वेयरहाउस में भुगतान की सुविधा शुरू की गई है। इस सुविधा से सीमांत किसान अपने उत्पादों को सीधे WDRA से पंजीकृत वेयरहाउस से कर सकेंगे। WDRA से पंजीकृत गोदामों में किसान अपने उत्पाद को रख सकेंगे।
- किसान उत्पादक संगठन ट्रेडिंग मॉड्यूल:
- ‘किसान उत्पादक संगठन ट्रेडिंग मॉड्यूल’ लॉन्च किया गया है ताकि किसान उत्पादक संगठन अपने संग्रह केंद्रों से उत्पाद और गुणवत्ता मानकों की तस्वीर अपलोड कर खरीददारों को बोली लगाने में मदद कर सकें।
- लॉजिस्टिक मॉड्यूल:
- वर्तमान में ई-नाम पोर्टल व्यापारियों को व्यक्तिगत ट्रांसपोर्टरों की जानकारी प्रदान करता है। लेकिन व्यापारियों द्वारा लॉजिस्टिक की ज़रूरत के मद्देनज़र एक बड़ा लॉजिस्टिक एग्रीगेटर प्लेटफार्म बनाया गया है, जो उपयोगकर्त्ताओं को विकल्प प्रदान करेगा। लॉजिस्टिक एग्रीगेटर प्लेटफॉर्म के माध्यम से उपयोगकर्त्ताओं तक कृषि उत्पाद को शीघ्रता से पहुँचाया जा सकेगा।
ई-नाम’ (eNAM):
- केंद्र सरकार द्वारा अप्रैल 2016 में ई-नाम (eNAM) नामक पोर्टल की शुरुआत की गई थी।
- ई-नाम एक पैन इंडिया ई-व्यापार प्लेटफॉर्म है। कृषि उत्पादों के लिये एक एकीकृत राष्ट्रीय बाज़ार का सृजन करने के उद्देश्य से इसका निर्माण किया गया है।
- इसके तहत किसान अपने नज़दीकी बाज़ार से अपने उत्पाद की ऑनलाइन बिक्री कर सकते हैं तथा व्यापारी कहीं से भी उनके उत्पाद के लिये मूल्य चुका सकते हैं।
- इसके परिणामस्वरूप व्यापारियों की संख्या में वृद्धि होगी, जिससे प्रतिस्पर्द्धा में भी बढ़ोतरी होगी।
- इसके माध्यम से मूल्यों का निर्धारण भली-भाँति किया जा सकता है तथा किसानों को अपने उत्पाद का उचित मूल्य प्राप्त होगा।
- ई-नाम पोर्टल पर वर्तमान में, खाद्यान्न, तिलहन, रेशे, सब्जियों और फलों सहित 150 वस्तुओं का व्यापार किया जा रहा है। साथ ही इस पर 1,005 से अधिक ‘किसान उत्पादक संगठन’ पंजीकृत हैं।
स्रोत: पीआईबी
फसलों पर तपेदिक रोधी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग पर रोक
प्रीलिम्स के लिये:केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति, एकीकृत कीट प्रबंधन मेन्स के लिये:कृषि क्षेत्र में आवश्यक सुधार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति’ (Central Insecticides Board and Registration Committee- CIBRC) के तहत कार्यरत पंजीकरण समिति (Registration Committee- RC) ने फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन (Streptomycin) और टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को प्रतिबंधित किये जाने का सुझाव दिया है।
मुख्य बिंदु:
- पंजीकरण समिति के सुझावों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में जीवाणु रोग नियंत्रण के अन्य विकल्प उपलब्ध हैं वहाँ फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को तात्कालिक रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
- जबकि जिन क्षेत्रों में जीवाणु रोग नियंत्रण के अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं हैं वहाँ वर्ष 2022 के अंत तक चरणबद्ध तरीके से फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन के प्रयोग को कम किया जाना चाहिये।
- परंतु तब तक (वर्ष 2022 के अंत तक) निर्धारित मानकों का कड़ाई से पालन करते हुए इन एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
- समिति की अंतिम रिपोर्ट में स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट (9%) और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड (1%) के उत्पादन, बिक्री और प्रयोग के सुझाव को स्वीकृति दी गई है।
केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति
(Central Insecticides Board and Registration Committee- CIBRC):
- CIBRC की स्थापना ‘कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय’ (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) द्वारा वर्ष 1970 में की गई थी।
- CIBRC की स्थापना का उद्देश्य मनुष्यों,पशुओं और कीटनाशकों से जुड़े अन्य खतरों को देखते हुए देश में कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग को विनियमित करना था।
- देश में कीटनाशकों का विनियमन ‘कीटनाशक अधिनियम, 1968’ और ‘कीटनाशक नियम, 1971’ के तहत विनियमित किया जाता है।
चुनौतियाँ:
- कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग:
- यद्यपि CIBRC द्वारा मात्र 8 फसलों में स्ट्रेप्टोमाइसिन के उपयोग की अनुमति दी गई है परंतु नियमों की अनदेखी करते हुए इसका प्रयोग अन्य फसलों में भी किया जाता है।
- विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा पिछले कुछ वर्षों से फसलों पर महत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया जाता रहा है।
- नवंबर, 2019 में विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह (World Antibiotic Awareness Week- WAAW) के समय CSE ने महत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग के संदर्भ में विस्तृत आँकड़े उपलब्ध कराए थे।
- इस अध्ययन में देखा गया कि दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के कृषि फार्मों पर नियमित रूप से स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन (90:10 के अनुपात में) के मिश्रण का भारी मात्रा में उपयोग किया जाता है।
प्रतिजैविक प्रतिरोध:
- विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि में बड़ी मात्रा में स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से प्रतिजैविक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) का संकट उत्पन्न हो सकता है।
- इस मत के अनुसार, एंटीबायोटिक दवाओं के ज़्यादा संपर्क में आने से व्यक्ति में एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधी क्षमता का विकास हो सकता है, जिससे किसी बीमारी के उपचार हेतु व्यक्ति को सामान्य एंटीबायोटिक देने से बीमारी पर इसका कोई लाभ नहीं होगा।
मनुष्यों में स्ट्रेप्टोमाइसिन का प्रयोग:
- CSE के अनुसार, पहले से तपेदिक (Tuberculosis -TB) का इलाज करा चुके मरीज़ों के मामले में स्ट्रेप्टोमाइसिन एक महत्त्वपूर्ण दवा का कम करती है। भारत में TB से ग्रस्त लोगों में ऐसे मरीज़ों की संख्या 10% है।
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साथ ही इसका प्रयोग मल्टी ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB) के मरीज़ों और ट्यूबरकुलस मेनिनजाइटिस (TB Meningitis or Brain TB) के मामलों में भी किया जाता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने स्ट्रेप्टोमाइसिन को मनुष्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण दवा के रूप में माना है।
समाधान:
- पंजीकरण समिति के अनुसार, फसलों में लगने वाले रोगों को ‘एकीकृत कीट प्रबंधन’ (Integrated Pest Management) या ऐसी ही अन्य प्रक्रियाओं को अपना कर नियंत्रित किया जा सकता है।
‘एकीकृत कीट प्रबंधन’
(Integrated Pest Management- IPM):
- IPM एक पारिस्थितिकी तंत्र आधारित (Ecosystem-Based) रणनीति है, जिसमें लंबे समय के लिये कीटों की रोकथाम और उनके हनिकारक प्रभावों पर नियंत्रण पर ध्यान रखते हुए कुछ तकनीकों का समायोजन किया जाता है।
- इनमें जैविक नियंत्रण, पारिस्थितिकी बदलाव, अलग-अलग प्रजातियों के प्रतिरोधकों का प्रयोग आदि शामिल है।
- इस प्रक्रिया में पौधों, हानिकारक कीटों, जैविक परिस्थिति आदि का विस्तृत अध्ययन कर कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।
- इसके तहत कीटनाशकों के प्रयोग में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस प्रक्रिया में मनुष्यों, पशुओं और प्रकृति को कम-से-कम क्षति हो।
- पंजीकरण समिति ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) से CSE के सुझावों के अनुरूप बेहतर और सुरक्षित विकल्पों पर शोध की शुरुआत करने का आग्रह किया है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
Rapid Fire (करेंट अफेयर्स): 12 मई, 2020
‘भरोसा’ हेल्पलाइन
केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने एक आभासी मंच के माध्यम से ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (Central University of Odisha-COU) के ‘भरोसा’ नामक एक हेल्पलाइन नंबर (08046801010) का शुभारंभ किया है, जिसका उद्देश्य COVID-19 महामारी के कठिन समय के दौरान छात्र समुदाय की परेशानियों को दूर करना है। इस हेल्पलाइन का उद्देश्य ओडिशा के सभी विश्वविद्यालयों के छात्रों को लॉकडाउन महामारी के दौरान मानसिक और मनोवैज्ञानिक सहायता प्रदान करना है। उल्लेखनीय है कि मौजूदा दौर में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति चिंता करना काफी आवश्यक है और ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय (COU) द्वारा शुरू की गई यह हेल्पलाइन इस दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। मानव संसाधन विकास मंत्री ने देश भर के केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालयों तथा अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों से भी ‘भरोसा’ पहल का अनुकरण करने का आग्रह किया। ओडिशा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आई. रामब्रह्मम के अनुसार, ‘भरोसा’ हेल्पलाइन ओडिशा के किसी भी विश्वविद्यालय के छात्रों की चिंताओं का निदान कर सकती है और परियोजना के प्रायोगिक चरण में 400 कॉलें आई थीं। इस अवसर पर केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री ने छात्रों के सुरक्षित भविष्य के लिये मानव संसाधन विकास मंत्रालय के प्रयासों को रेखांकित करते हुए नए शैक्षणिक कैलेंडर और शिक्षा की आभासी प्रणाली के संबंध में उठाए गए कदमों पर बल दिया।
‘चैंपियंस’ पोर्टल
एक बड़ी पहल के रूप में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of Micro, Small and Medium Enterprises) ने ‘चैंपियंस’ पोर्टल शुरु किया है। यह प्रौद्योगिकी आधारित एक प्रबंधन सूचना प्रणाली है जिसका उद्देश्य MSME क्षेत्र को राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर सक्षम बनाने,आवश्यक गुणवत्ता प्राप्त करने और प्रशासनिक बाधाओं को दूर करने में मदद करना है। इस पोर्टल के माध्यम से MSME क्षेत्र से संबंधित समस्त जानकारियाँ एक स्थान पर उपलब्ध कराई गई हैं। यह एक नियंत्रण कक्ष-सह-प्रबंधन सूचना प्रणाली (Control Room-cum-Management Information System) है जिसे टेलीफोन, इंटरनेट और वीडियो कॉन्फ्रेंस जैसी सूचना व संचार तकनीकों (ICT) के अलावा, आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, डेटा एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग द्वारा सक्षम बनाया गया है। इसे भारत सरकार की मुख्य केंद्रीयकृत लोक शिकायत निवारण और निगरानी प्रणाली और MSME मंत्रालय की अन्य वेब प्रणालियों के साथ सीधे जोडा गया है। इस पूरी प्रणाली को बिना किसी लागत के NIC की मदद से स्वदेशी तकनीक से विकसित किया गया है। इस नियंत्रण प्रणाली के हिस्से के रूप में अब तक, 66 राज्यों में स्थानीय स्तर के नियंत्रण कक्ष बनाए जा चुके हैं। उल्लेखनीय है कि इस नियंत्रण प्रणाली के हिस्से के रूप में अब तक 66 राज्यों में स्थानीय स्तर के नियंत्रण कक्ष बनाए जा चुके हैं।
अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस
संपूर्ण विश्व में 12 मई को अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस (International Nurses Day) के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस का आयोजन मुख्य रूप से आधुनिक नर्सिंग की जनक फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) की याद में किया जाता है। उल्लेखनीय है कि अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस समाज के प्रति नर्सों के योगदान को चिह्नित करता है। अंतर्राष्ट्रीय नर्स दिवस 2020 की थीम 'नर्सिंग द वर्ल्ड टू हेल्थ' (Nursing the World to Health) है। इस दिवस को सर्वप्रथम वर्ष 1965 में इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ नर्स (International Council of Nurses-ICN) द्वारा मनाया गया था। किंतु जनवरी, 1974 से यह दिवस 12 मई को फ्लोरेंस नाइटिंगेल (Florence Nightingale) की सालगिरह पर मनाया जाने लगा। वे एक ब्रिटिश नागरिक थीं। उन्हें युद्ध में घायल व बीमार सैनिकों की सेवा के लिये जाना जाता है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने 1850 के दशक के क्रीमियन युद्ध (Crimean War) में दूसरी नर्सों को प्रशिक्षण दिया तथा उनके प्रबंधक के रूप में भी कार्य किया। उन्हें ‘लेडी विद द लैंप’ कहा जाता है। ध्यातव्य है कि उनके विचारों तथा सुधारों से आधुनिक स्वास्थ्य प्रणाली काफी प्रभावित हुई है। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने ही सांख्यिकी के माध्यम से यह सिद्ध किया कि किस प्रकार स्वास्थ्य से किसी भी महामारी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। संपूर्ण विश्व जब कोरोनावायरस (COVID-19) महामारी का सामना कर रहा है, तो ऐसे में नर्सों की भूमिका काफी महत्त्वपूर्ण हो गई है।
गांधी शांति पुरस्कार 2020
COVID-19 के कारण देश भर में लागू किये गए लॉकडाउन के मद्देनज़र गांधी शांति पुरस्कार 2020 के लिये नामांकन प्राप्त करने की अंतिम तिथि 15 जून, 2020 तक बढ़ा दी गई है। इससे पूर्व वर्ष 2020 के लिये नामांकन प्राप्त करने की अंतिम तिथि 30 अप्रैल, 2020 थी। उल्लेखनीय है कि यह पुरस्कार अहिंसा और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से लाए गए सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिये प्रदान किया जाता है। प्रत्येक वर्ष प्रदान किये जाने वाले इस पुरस्कार के साथ एक करोड़ रुपए की राशि और एक प्रशस्ति पात्र प्रदान की जाती है। नियमों के अनुसार, यह पुरस्कार किसी भी व्यक्ति को प्रदान किया जा सकता है, चाहे वह किसी भी राष्ट्र, प्रजाति, धर्म और लिंग से संबंधित हो। उल्लेखनीय है कि इस पुरस्कार की शुरुआत वर्ष 1995 में की गई थी और तब से यह अनवरत प्रदान किया जा रहा है।