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एडिटोरियल

  • 01 Jun, 2024
  • 19 min read
जैव विविधता और पर्यावरण

मरुस्थलीकरण दानव का मुकाबला

यह एडिटोरियल 31/05/2024 को ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित “A quarter of India’s land is undergoing desertification. Stop this. Trees defend against soaring heat” लेख पर आधारित है। इसमें भारत में मरुस्थलीकरण के बढ़ते खतरे और इस खतरे को दूर करने की आवश्यकता के बारे में चर्चा की गई है।

प्रिलिम्स के लिये:

मरुस्थलीकरण, लवणता प्रवेश, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, भूमि क्षरण तटस्थता, पार्टियों का 14वांँ सम्मेलन, बॉन चैलेंज, प्रतिपूरक वनरोपण निधि, जैव लवणीय कृषि, हेलोफाइट्स।

मेन्स के लिये:

भारत में मरुस्थलीकरण के लिये अग्रणी कारक, भूमि क्षरण तटस्थता लक्ष्य।

मरुस्थलीकरण (Desertification) एक मूक संकट है जो धीरे-धीरे भारत को जकड़ रहा है, जहाँ चिंताजनक रूप से देश का 25% भूभाग इस प्रक्रिया से गुज़र रहा है। जबकि अत्यधिक गर्मी और उच्च रिकॉर्ड तापमान सुर्खियों में हैं, अंतर्निहित मुद्दा अनियंत्रित मरुस्थलीकरण का है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि यह चिंताजनक प्रक्रिया मूक तरीके से देश की उपजाऊ भूमि को बंजर भूमि में बदल रही है।

मरुस्थलीकरण केवल एक पर्यावरणीय चिंता भर नहीं है, यह भारत की खाद्य सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और इसकी कृषि क्षमता (agricultural prowess) की नींव के लिये भी एक बड़ा खतरा है। देश में आधे से अधिक अवक्रमित भूमि या तो वर्षा-सिंचित कृषि भूमि है, जो देश की खाद्य सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार है, या यह वन भूमि है जो जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध सर्वोत्तम बचाव प्रदान करती है। इस परिदृश्य में, भारत के भूमि संसाधनों की दीर्घकालिक संवहनीयता और इसकी आबादी की भलाई सुनिश्चित करने के लिये मरुस्थलीकरण को प्रभावी ढंग से संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है।

भारत में मरुस्थलीकरण की वर्तमान स्थिति: 

  • स्थिति: पिछले 15 वर्षों में लगभग सभी भारतीय राज्यों में अवक्रमित या बंजर भूमि (degraded land) में वृद्धि देखी गई है।
    • देश की लगभग 22-23% बंजर भूमि राजस्थान में है, जिसके बाद महाराष्ट्र और गुजरात का स्थान है।
    • इसरो (ISRO) के वर्ष 2021 के अनुमान के अनुसार,
      • मिज़ोरम भारत में मरुस्थलीकरण की सबसे तीव्र दर का सामना कर रहा है।
        • वर्ष 2003-05 और 2018-19 के बीच 0.18 मिलियन हेक्टेयर भूमि अवक्रमित हुई, जो 188% से अधिक की वृद्धि है।
      • अरुणाचल प्रदेश में वर्ष 2003-05 और 2018-19 के बीच भूमि अवक्रमण या क्षरण में 46% की वृद्धि देखी गई।
      • नगालैंड के मरुस्थलीय क्षेत्र में 29.4% की वृद्धि हुई।
  • प्रभावित भूमि प्रकार:
    • वर्षा-सिंचित कृषि भूमि (Rainfed Farmland): लगभग 37 मिलियन हेक्टेयर अवक्रमित भूमि असिंचित कृषि भूमि है, जहाँ जल अपरदन (80%) और वायु अपरदन (17%) अवक्रमण के मुख्य कारण हैं।
    • वन भूमि (Forest Land): लगभग 21 मिलियन हेक्टेयर वन भूमि (कुल वन क्षेत्र का 30%) अवक्रमित हो चुकी है, जिसका मुख्य कारण वनों की कटाई एवं अत्यधिक चराई के कारण वनस्पति का क्षरण (96%) है।

भारत में मरुस्थलीकरण के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • वनों की कटाई और वन अवक्रमण: भारत में लकड़ी (timber) और कृषि कार्य एवं बसावट के लिये भूमि की अत्यधिक मांग ने वनों की कटाई को बढ़ावा दिया है। IISc के ऊर्जा एवं आर्द्रभूमि अनुसंधान समूह की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी घाटों में 5% सदाबहार वन क्षेत्र नष्ट हो गया है।
  • भूजल का अत्यधिक दोहन: सिंचाई और औद्योगिक उद्देश्यों के लिये भूजल का अत्यधिक दोहन भूजल स्तर को कम कर देता है, जिससे भूमि अवतलन की स्थिति बनती है और मृदा की नमी कम हो जाती है।
    • उदाहरण: कृषि के लिये अत्यधिक दोहन के कारण पंजाब और हरियाणा में जलभृतों में जल स्तर में गिरावट ने इन क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण की चिंता को बढ़ा दिया है।
  • तटीय क्षेत्रों में लवणता का प्रवेश: गुजरात और तमिलनाडु जैसे तटीय क्षेत्रों में, भूजल भंडारों और कृषि भूमि में समुद्री जल के प्रवेश के कारण मृदा लवणीकरण की स्थिति बनी है तथा उत्पादकता में कमी आई है।
    • एक अनुमान के अनुसार सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र के 627 गाँव लवणता के प्रवेश से अत्यधिक प्रभावित हुए हैं।
  • खनन और औद्योगिक गतिविधियाँ: अनियमित खनन और औद्योगिक परिचालन के परिणामस्वरूप मृदा प्रदूषण, वायु प्रदूषण और आसपास की भूमि के क्षरण की स्थिति बनी है, जिससे मरुस्थलीकरण की वृद्धि हो रही है। 
  • भूमि क्षरण तटस्थता का अपर्याप्त कार्यान्वयन: भारत ने मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD) को अंगीकृत किया है और भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) प्राप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है, लेकिन संबंधित कार्यक्रमों एवं नीतियों का कार्यान्वयन कई क्षेत्रों में अपर्याप्त रहा है।
  • शहरीकरण और अवसंरचना का विकास: तीव्र शहरीकरण और राजमार्गों, हवाई अड्डों एवं औद्योगिक गलियारों जैसी वृहत अवसंरचना परियोजनाओं के निर्माण के कारण उत्पादक कृषि भूमि की हानि हुई है तथा प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में व्यवधान उत्पन्न हुआ है, जिससे मरुस्थलीकरण में वृद्धि हुई है।
    • उदाहरण: कई राज्यों में विस्तृत दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा परियोजना के परिणामस्वरूप उपजाऊ भूमि के विशाल खंडों का अधिग्रहण हुआ है, जिससे आसपास के क्षेत्रों में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण की वृद्धि हुई है।
  • विदेशी वनस्पति प्रजातियों का आक्रमण: विदेशी वनस्पति प्रजातियों के प्रवेश और प्रसार ने (जो प्रायः मानवीय गतिविधियों और जलवायु परिवर्तन के कारण संभव हुआ है) स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित किया है तथा मरुस्थलीकरण में योगदान किया है।
    • उदाहरण: भारत के शुष्क और अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा (Prosopis juliflora) या मेस्क्वाइट (mesquite) वनस्पति प्रजाति के बढ़ते प्रकोप के कारण स्थानीय वनस्पति के विस्थापन, मृदा क्षरण और मरुस्थलीकरण की स्थिति बनी है।

भूमि क्षरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality- LDN) क्या है?

  • परिचय: LDN वह स्थिति है, जहाँ पारिस्थितिकी तंत्र क्रियाओं एवं सेवाओं को समर्थन देने और खाद्य सुरक्षा की संवृद्धि के लिये आवश्यक भूमि संसाधनों की मात्रा एवं गुणवत्ता, निर्दिष्ट लौकिक एवं स्थानिक पैमानों और पारिस्थितिकी तंत्रों के भीतर स्थिर बनी रहती है या इसमें वृद्धि होती है।
  • उद्देश्य: इस अवधारणा का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि स्वस्थ और उत्पादक भूमि की मात्रा स्थिर बनी रहे या संवहनीय भूमि प्रबंधन अभ्यासों के माध्यम से भूमि क्षरण को रोककर इसमें वृद्धि की जाए।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता: LDN को वर्ष 2015 में सतत विकास लक्ष्य 15 का एक लक्ष्य बनाया गया और विश्व के विभिन्न देशों ने वर्ष 2030 तक भूमि की ‘शुद्ध हानि नहीं’ (no net loss) के लक्ष्य की प्राप्ति के लिये स्वैच्छिक लक्ष्य निर्धारित करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
  • भारत का LDN लक्ष्य: भारत ने वर्ष 2030 तक भूमि क्षरण को रोकने तथा कम से कम 26 मिलियन हेक्टेयर बंजर भूमि, वन एवं कृषि भूमि की पुनर्बहाली की प्रतिबद्धता जताई है।

मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय पहलें:

  • मरुस्थलीकरण को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCCD): इसकी स्थापना वर्ष 1994 में हुई थी। यह पर्यावरण और विकास को संवहनीय भूमि प्रबंधन से संबद्ध करने वाला एकमात्र कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय समझौता है।
  • बड़े पैमाने पर पुनर्बहाली पहल:
    • बॉन चैलेंज (Bonn Challenge) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर वनविहीन और अवक्रमित भूमि को पुनः उपजाऊ बनाना है।
      • इस परिणाम को प्राप्त करने से प्रति वर्ष 1.7 बिलियन टन कार्बन संग्रहित किया जा सकेगा, जो वैश्विक उत्सर्जन के 14% के बराबर है।
    • अफ्रीकी वन भूदृश्य पुनरुद्धार पहल (African Forest Landscape Restoration Initiative- AFR100) का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अफ्रीका में 100 मिलियन हेक्टेयर अवक्रमित भूदृश्यों को पुनर्बहाल करना है।

मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये भारत को क्या उपाय करने चाहिये?

  • देशी प्रजातियों के साथ कृषि वानिकी और पुनर्वनीकरण को बढ़ावा देना: बड़े पैमाने पर कृषि वानिकी पहलों को लागू करना, पेड़ों एवं झाड़ियों को कृषि प्रणालियों में एकीकृत करना, मृदा की उर्वरता को पुनर्बहाल करना, कटाव को कम करना और मरुस्थलीकरण से निपटने के लिये सूक्ष्म जलवायु परिस्थितियों का निर्माण करना।
    • नाइजर, माली, बुर्किना फासो, सेनेगल, इथियोपिया और मलावी में सफल सिद्ध हुई कृषि वानिकी पहल भारत के लिये एक प्रमुख मॉडल हो सकती है।
  • सीड बायोप्राइमिंग (Seed Biopriming) और सीड एनकैप्सुलेशन (Seed Encapsulation): सीड बायोप्राइमिंग तकनीकों के उपयोग को विकसित करना एवं बढ़ावा देना, जिसमें मरुस्थली क्षेत्रों में बीज की व्यवहार्यता और जल-उपयोग दक्षता में सुधार करने के लिये लाभकारी सूक्ष्मजीवों के साथ बीजों का उपचार करना शामिल है।
  • कोहरा संग्रहण जाल (Fog Harvesting Nets): कोहरे से नमी को इकट्ठा करने के लिये शुष्क क्षेत्रों में विशेष जाल लगाना। इस प्रकार संग्रहित जल का उपयोग सिंचाई के लिये या देशी वनस्पति को सहारा देने के लिये किया जा सकता है, जिससे पौधों की वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा और मरुस्थलीकरण की प्रवृत्ति को व्युत्क्रमित किया जा सकता है।
  • जैव लवणीय कृषि (Biosaline Agriculture) और लवणमृदोद्भिद खेती (Halophyte Cultivation): जैव लवणीय कृषि के अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना, जिसमें लवणीय या अवक्रमित मृदा में लवण-सहिष्णु फसलों या हैलोफाइट की खेती करना शामिल है।
    • सैलिकोर्निया (Salicornia) और एट्रिप्लेक्स (Atriplex) जैसे लवणमृदोद्भिदों या हैलोफाइट्स को आहार, चारा एवं जैव ईंधन उत्पादन के लिये उगाया जा सकता है, जिससे मरुस्थलीय क्षेत्रों में आर्थिक अवसर उपलब्ध होंगे।
  • मरुस्थलीकरण अनुकूलन क्षेत्रों की स्थापना: विशिष्ट क्षेत्रों को ‘मरुस्थलीकरण अनुकूलन क्षेत्र’ (Desertification Adaptation Zones) के रूप में चिह्नित एवं नामित करना, जहाँ संवहनीय कृषि पद्धतियों, मृदा संरक्षण उपायों और पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्बहाली जैसे लक्षित हस्तक्षेपों को सख्ती से लागू किया जाए।
    • इन क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों को मरुस्थलीकरण नियंत्रण प्रयासों में उनकी सक्रिय भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये राशि प्रोत्साहन एवं सहायता प्रदान करना।
    • चीन के निंगशिया (Ningxia) प्रांत में स्थानीय समुदायों को शामिल करते हुए किये गए व्यापक उपाय प्रेरक हो सकते हैं।
  • मरुस्थलीकरण पूर्व-चेतावनी प्रणाली स्थापित करना: उन्नत निगरानी और पूर्व-चेतावनी प्रणाली विकसित करना जो विभिन्न क्षेत्रों में मरुस्थलीकरण की प्रवृत्तियों का पता लगाने तथा पूर्वानुमान व्यक्त करने के लिये रिमोट सेंसिंग, भू-आधारित सेंसर और पर्यावरणीय डेटा को एकीकृत करती है।
    • निर्णय-निर्माण के मार्गदर्शन में प्राप्त सूचना का उपयोग और समयबद्ध हस्तक्षेप लागू करने से मरुस्थलीकरण के प्रभावों को कम किया जा सकता है।
  • संरक्षण पर केंद्रित मरुस्थलीय पर्यटन: ज़िम्मेदार मरुस्थलीय पर्यटन कार्यक्रमों को डिजाइन करना, जो मरुस्थलीकरण के बारे में जागरूकता बढ़ाएँ और स्थानीय समुदायों के लिये राजस्व उत्पन्न करें।
    • ये कार्यक्रम पर्यटन उद्योग में संरक्षण प्रयासों को प्रोत्साहित कर सकते हैं और संवहनीय अभ्यासों को बढ़ावा दे सकते हैं।

अभ्यास प्रश्न: मरुस्थलीकरण से निपटने में भारत के समक्ष विद्यमान प्राथमिक चुनौतियों पर विचार कीजिये और इन चुनौतियों का समाधान करने में भूमि क्षरण तटस्थता (LDN) लक्ष्यों की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कीजिये।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2014) 


कार्यक्रम/परियोजना

मंत्रालय
1. सूखा - प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय
2. मरुस्थल विकास कार्यक्रम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय
3. वर्षा पूरित क्षेत्रों हेतु राष्ट्रीय जल संभर विकास परियोजना ग्रामीण विकास मंत्रालय

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 3
(c) 1, 2 और 3
(d) इनमें से कोई नहीं

उत्तर: (d) 


मेन्स:

प्रश्न. मरुस्थलीकरण के प्रक्रम की जलवायविक सीमाएँ नहीं होती हैं। उदाहरणों सहित औचित्य सिद्ध कीजिये। (2020) 


प्रश्न. भारत के सूखा-प्रवण और अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में लघु जलसंभर विकास परियोजनाएँ किस प्रकार जल संरक्षण में सहायक हैं? (2016)


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