जैव विविधता और पर्यावरण
दिल्ली में जल गुणवत्ता
- 04 Mar 2020
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प्रीलिम्स के लिये:केंद्रीय भू-जल बोर्ड, भारतीय मानक ब्यूरो, अटल भू-जल योजना, राष्ट्रीय जल नीति मेन्स के लिये:भारत में भू-जल प्रदूषण से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
2 मार्च, 2020 को जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राज्यसभा में प्रस्तुत आँकड़ों के अनुसार, दिल्ली के नौ ज़िलों का भू-जल प्रदूषित है।
प्रमुख बिंदु:
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जिसमें दिल्ली के अलावा हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल हैं, में कम-से-कम 30 ज़िलों का भू-जल प्रदूषित है। इन ज़िलों के भू-जल में आर्सेनिक, आयरन, लेड, कैडमियम, क्रोमियम, नाइट्रेट जैसी धातुएँ पाई गईं हैं।
- केंद्रीय भू-जल बोर्ड (Central Ground Water Board) के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2019 में राजधानी के अधिकांश ज़िले आंशिक रूप से भू-जल प्रदूषण से प्रभावित थे।
- भारतीय मानक ब्यूरो (Bureau of Indian Standards- BIS) द्वारा घोषित भू-जल मानक की तुलना में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से एकत्रित नमूनों की गुणवत्ता कम पाई गई।
प्रदूषण की स्थिति:
- नार्थ ईस्ट दिल्ली और ईस्ट दिल्ली के भू-जल में आर्सेनिक का स्तर निर्धारित सीमा से ऊपर पाया गया है।
- उत्तर, पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम ज़िलों में स्थित नजफगढ़ ड्रेन में लेड पाया गया, जबकि दक्षिण-पश्चिम ज़िलों में कैडमियम पाया गया। उत्तर-पश्चिम, दक्षिण, पूर्व और नई दिल्ली ज़िलों में क्रोमियम पाया गया।
- विद्युत चालकता का स्तर निर्धारित सीमा 3000 micro mhos/cm से ऊपर है।
- फ्लोराइड तथा नाइट्रेट क्रमशः निर्धारित सीमा 1.5mg/litre तथा 45mg/litre से ऊपर है।
- आर्सेनिक निर्धारित सीमा 0.01mg/litre से ऊपर है।
- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सभी ज़िलों के आँकड़ों में से 30 ज़िलों में नाइट्रेट तथा 25 ज़िलों में फ्लोराइड का स्तर निर्धारित मानकों से काफी ऊपर पाया गया।
भू-जल संरक्षण:
- भू-जल प्रदूषण:
- भू-जल प्रदूषण वर्तमान दौर की सबसे प्रमुख समस्याओं में से एक है। भू-जल प्रदूषण के प्रमुख कारकों का पता लगाना आसान कार्य नहीं है। उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों के जल में घुलने से भी प्रदूषण संबंधी समस्या उत्पन्न होती है जिसे बढ़ाने में मनुष्य की मुख्य भूमिका होती है। भू-जल प्रदूषण मुख्यतः विषैले कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थो के जल स्रोतों में मिलने से होता है।
- प्रभाव:
- सेप्टिक टैंकों (Septic Tank) का निर्माण सही ढंग से न किये जाने के कारण भू-जल का स्रोत दूषित हो जाता है। दूषित भू-जल के कारण स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
- भू-जल के बहुत अधिक दूषित होने के कारण जलीय जंतु जैसे-मछलियाँ जल्दी मर जाती हैं।
- भू-जल प्रदूषण के कारण पर्यावरण-चक्र में परिवर्तन हो सकता है।
- इसके कारण अर्थव्यवस्था प्रभावित हो सकती है।
- महत्त्वपूर्ण कारक:
- औद्योगिक कचरा तथा कार्बनिक विषाक्त पदार्थों सहित अन्य उत्पादों का जलस्रोतों में डाला जाना।
- रिफाइनरियों एवं बंदरगाहों से पेट्रोलियम पदार्थ एवं तेलयुक्त तरल द्रव्य का रिसाव।
- व्यावसायिक पशुपालन उद्यमों, पशुशालाओं एवं बूचड़खानों से उत्पन्न कचरे का अनुचित निपटान।
- कृषि क्रियाओं से उत्पन्न जैविक अपशिष्ट, उर्वरकों और कीटनाशकों से भी भू-जल प्रदूषित होता है।
- केंद्र सरकार की योजनाएँ:
- अटल भू-जल योजना:
- इस योजना का कुल परिव्यय 6000 करोड़ रुपए है तथा यह योजना पाँच वर्षों की अवधि (2020-21 से 2024-25) के लिये लागू की जाएगी।
- इस योजना का उद्देश्य चिन्हित प्राथमिकता वाले 7 राज्यों- गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में जन भागीदारी के माध्यम से भू-जल प्रबंधन में सुधार लाना है।
- इस योजना के कार्यान्वयन से इन राज्यों के 78 ज़िलों में लगभग 8350 ग्राम पंचायतों को लाभ मिलने की उम्मीद है।
- राष्ट्रीय जल नीति:
- सर्वप्रथम 1987 में राष्ट्रीय जल नीति बनाई गई थी, तत्पश्चात् क्रमशः वर्ष 2002 और 2012 में इसे संशोधित किया गया। राष्ट्रीय जल नीति में जल को एक प्राकृतिक संसाधन मानते हुए इसे जीवन, आजीविका, खाद्य सुरक्षा और निरंतर विकास का आधार माना गया है।
- अटल भू-जल योजना:
केंद्रीय भूमि जल बोर्ड:
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड जल संसाधन मंत्रालय (जल शक्ति मंत्रालय), भारत सरकार का एक अधीनस्थ कार्यालय है।
- इस अग्रणी राष्ट्रीय अभिकरण को देश के भूजल संसाधनों के वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन, अन्वेषण, माॅनीटरिंग, आकलन, संवर्द्धन एवं विनियमन का दायित्व सौंपा गया है ।
- वर्ष 1970 में कृषि मंत्रालय के तहत समन्वेषी नलकूप संगठन को पुन:नामित कर केंद्रीय भूमि जल बोर्ड की स्थापना की गई थी। वर्ष 1972 के दौरान इसका विलय भू-विज्ञान सर्वेक्षण के भूजल खंड के साथ कर दिया गया था।
- केंद्रीय भूमि जल बोर्ड एक बहु संकाय वैज्ञानिक संगठन है जिसमें भूजल वैज्ञानिक, भूभौतिकीविद्, रसायनशास्त्री, जल वैज्ञानिक, जल मौसम वैज्ञानिक तथा अभियंता कार्यरत हैं।
आगे की राह:
जल पृथ्वी का सर्वाधिक मूल्यवान संसाधन है, भू-जल प्रदूषण को कम करने एवं भू-जल स्तर को बढ़ाने संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय अतिशीघ्र लिये जाने चाहिये। जलभराव, लवणता, कृषि में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग और औद्योगिक अपशिष्ट जैसे मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान दिया जाना चाहिये, साथ ही सीवेज के जल के पुनर्चक्रण के लिये अवसंरचना का विकास करने की आवश्यकता है जिससे ऐसे जल का पुनः उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।