सामाजिक न्याय
प्रधानमंत्री जन धन योजना के सात वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:वित्तीय समावेशन, कोर बैंकिंग प्रणाली, प्रधानमंत्री जन धन योजना मेन्स के लिये:प्रधानमंत्री जन धन योजना की उपलब्धियांँ और चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने बैंकों से कहा है कि वे प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) में फ्लेक्सी-आवर्ती योजनाओं की तरह खाताधारकों की माइक्रो-क्रेडिट और सूक्ष्म निवेश उत्पादों तक पहुंँच में सुधार सुनिश्चित करें।
- PMJDY जो कि वित्तीय समावेशन के लिये एक राष्ट्रीय मिशन है, ने अपने कार्यान्वयन के सात वर्ष सफलतापूर्वक पूरे कर लिये हैं।
प्रमुख बिंदु
- PMJDY के उद्देश्य:
- समाज के वंचित वर्गों अर्थात् कमज़ोर वर्ग और निम्न आय वर्ग हेतु किफायती कीमत पर विभिन्न वित्तीय सेवाओं तक पहुंँच सुनिश्चित करना और इसके लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- योजना के छह स्तंभ:
- बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंँच - शाखा और बैंकिंग संवाददाता।
- खोले गए खाते बैंकों की कोर बैंकिंग प्रणाली से ऑनलाइन जुड़े खाते हैं।
- योजना का मुख्य फोकस 'हर घर' (Every Household) से हटकर हर बैंक रहित वयस्क ( Every Unbanked Adult) पर हो गया है।
- रुपए की ओवरड्राफ्ट (OD) सुविधा के साथ हर घर से 10,000 रुपए की मूल बचत के साथ बैंक खाते।
- वित्तीय साक्षरता कार्यक्रम- बचत को बढ़ावा देना, एटीएम का उपयोग, बैंकिंग कार्य हेतु बुनियादी मोबाइल फोन का उपयोग करना आदि।
- रुपे (RuPay) डेबिट कार्ड या आधार सक्षम भुगतान प्रणाली (AePS) के माध्यम से इंटरऑपरेबिलिटी की सुविधा।
- क्रेडिट गारंटी फंड का निर्माण- बकाया मामले में बैंकों को कुछ गारंटी प्रदान करने के लिये।
- बीमा- अगस्त 2018 के बाद खोले गए PMJDY खातों के लिये रुपे कार्ड पर मुफ्त दुर्घटना बीमा कवर राशि को एक लाख रुपए से बढ़ाकर दो लाख रुपए कर दिया गया है।
- असंगठित क्षेत्र के लिये पेंशन योजना
- बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंँच - शाखा और बैंकिंग संवाददाता।
- उपलब्धियांँ:
- लेखा-जोखा:
- अगस्त 2021 में खातों की संख्या बढ़कर 43.04 करोड़ हो गई, जो अगस्त 2015 में 17.9 करोड़ थी।
- इसमें से 55.47% जन धन खाताधारक महिलाएंँ हैं और 66.69% खाताधारकों में ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों के लोग शामिल हैं।
- जमा राशि:
- वर्ष 2015-2021 के दौरान जमा राशि 22,901 करोड़ रुपए से बढ़कर 1.46 लाख करोड़ रुपए हो गई हैं।
- सक्रिय खाते:
- भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, एक पीएमजेडीवाई खाते को उस स्थिति में निष्क्रिय माना जाता है यदि खाते में दो वर्ष से अधिक समय तक कोई ग्राहक प्रेरित लेन-देन नहीं होता है।
- अगस्त 2021 में कुल 43.04 करोड़ PMJDY खातों में से 36.86 करोड़ (85.6%) सक्रिय थे।
- सक्रिय खातों के प्रतिशत में निरंतर वृद्धि इस बात का संकेत है कि इनमें से अधिक-से- अधिक खाते ग्राहकों द्वारा नियमित रूप से उपयोग किये जा रहे हैं।
- भारतीय रिज़र्व बैंक के मौजूदा दिशा-निर्देशों के अनुसार, एक पीएमजेडीवाई खाते को उस स्थिति में निष्क्रिय माना जाता है यदि खाते में दो वर्ष से अधिक समय तक कोई ग्राहक प्रेरित लेन-देन नहीं होता है।
- RuPay कार्ड का प्रयोग:
- RuPay कार्ड की संख्या और उनका उपयोग भी समय के साथ बढ़ा है।
- जन-धन दर्शक एप:
- इस एप का उपयोग उन गाँवों की पहचान करने के लिये किया जा रहा है, जहाँ 5 किमी. के भीतर बैंकिंग सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप ऐसे गाँवों की संख्या में उल्लेखनीय कमी आई है।
- PMJDY महिलाओं हेतु प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (PMGKP):
- पीएमजीकेपी के तहत कुल 30,945 करोड़ रुपए कोविड लॉकडाउन के दौरान महिला PMJDY खाताधारकों के खातों में जमा किये गए हैं।
- सुचारु DBT लेन-देन:
- लगभग 5 करोड़ PMJDY खाताधारक विभिन्न योजनाओं के तहत सरकार से प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्राप्त करते हैं।
- लेखा-जोखा:
- प्रभाव:
- वित्तीय समावेशन में वृद्धि:
- PMJDY जन-केंद्रित आर्थिक पहलों की आधारशिला रही है। चाहे वह डीबीटी हो या कोविड-19 वित्तीय सहायता, पीएम-किसान, मनरेगा के तहत बढ़ी हुई मज़दूरी, जीवन और स्वास्थ्य बीमा कवर, इन सभी पहलों का पहला कदम प्रत्येक वयस्क को एक बैंक खाता प्रदान करना है, जिसे पीएमजेडीवाई ने लगभग पूरा कर लिया है।
- वित्तीय प्रणाली का औपचारिकरण:
- यह गरीबों को उनकी बचत को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाने का एक अवसर प्रदान करती है, गाँवों में उनके परिवारों को धन भेजने के अलावा उन्हें सूदखोर साहूकारों के चंगुल से बाहर निकालने का अवसर भी प्रदान करती है।
- लीकेज को रोकना:
- ‘प्रधानमंत्री जन धन खातों’ के माध्यम से ‘प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण’ की सुविधा देकर यह सुनिश्चित किया गया है कि प्रत्येक रुपया अपने निर्धारित लाभार्थी तक ही पहुँचे और प्रणालीगत रिसाव या लीकेज को रोका जा सके।
- वित्तीय समावेशन में वृद्धि:
- चुनौतियाँ
- कनेक्टिविटी:
- फिज़िकल और डिजिटल कनेक्टिविटी की कमी ग्रामीण भारत के लिये वित्तीय समावेशन प्राप्त करने में एक बड़ी बाधा बन रही है।
- तकनीकी मुद्दे:
- खराब कनेक्टिविटी, नेटवर्किंग और बैंडविड्थ जैसी समस्याओं से लेकर देश भर के विभिन्न बैंकों, खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल बुनियादी अवसंरचना को बनाए रखने हेतु लागत प्रबंधन संबंधी तकनीकी मुद्दे बैंकों को प्रभावित कर रहे हैं।
- अस्पष्ट प्रक्रिया:
- अधिकांश लोग जागरूक हैं, किंतु इसके बावजूद कई लोगों के व्यवहार में परिवर्तन नहीं आया है, क्योंकि वे खाता खोलने की उचित प्रक्रिया और आवश्यक दस्तावेज़ों से अवगत नहीं हैं।
- कनेक्टिविटी:
आगे की राह
- सूक्ष्म बीमा योजनाओं के तहत ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ खाताधारकों का कवरेज सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिये।
- पात्र खाताधारकों को ‘प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना’ (PMJJBY) और ‘प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना’ (PMSBY) के तहत कवर किया जा सकता है।
- भारत भर में स्वीकृत बुनियादी अवसंरचना के निर्माण के माध्यम से ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ खाताधारकों के बीच ‘रुपे डेबिट कार्ड’ के उपयोग सहित डिजिटल भुगतान को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।
स्रोत: पीआईबी
भारतीय अर्थव्यवस्था
ई-श्रम पोर्टल
प्रिलिम्स के लियेई-श्रम पोर्टल मेन्स के लियेई-श्रम पोर्टल का महत्त्व और भारत में असंगठित क्षेत्र की स्थिति, सरकार द्वारा इस संबंध में शुरू की गई पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने ‘ई-श्रम पोर्टल’ लॉन्च किया है।
प्रमुख बिंदु
- ‘ई-श्रम’ पोर्टल के विषय में:
- उद्देश्य: देश भर में कुल 38 करोड़ असंगठित श्रमिकों जैसे- निर्माण मज़दूरों, प्रवासी कार्यबल, रेहड़ी-पटरी वालों और घरेलू कामगारों को पंजीकृत करना।
- इसके तहत श्रमिकों को एक ‘ई-श्रम कार्ड’ जारी किया जाएगा, जिसमें 12 अंकों का एक विशिष्ट नंबर शामिल होगा।
- यदि कोई कर्मचारी ‘ई-श्रम’ पोर्टल पर पंजीकृत है और दुर्घटना का शिकार होता है, तो मृत्यु या स्थायी विकलांगता की स्थिति में 2 लाख रुपए और आंशिक विकलांगता की स्थिति में 1 लाख रुपए का पात्र होगा।
- पृष्ठभूमि: ई-श्रम पोर्टल का गठन सर्वोच्च न्यायालय के उस निर्णय के बाद किया गया है, जिसमें न्यायालय ने सरकार को जल्द-से-जल्द असंगठित श्रमिकों की पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने का निर्देश दिया था, ताकि वे विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत दी जाने वाली कल्याणकारी सुविधाओं का लाभ उठा सकें।
- क्रियान्वयन: देश भर में असंगठित कामगारों के पंजीकरण का कारण संबंधित राज्य/ केंद्रशासित प्रदेश की सरकारों द्वारा किया जाएगा।
- उद्देश्य: देश भर में कुल 38 करोड़ असंगठित श्रमिकों जैसे- निर्माण मज़दूरों, प्रवासी कार्यबल, रेहड़ी-पटरी वालों और घरेलू कामगारों को पंजीकृत करना।
- भारत में असंगठित क्षेत्र की स्थिति:
- श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने असंगठित श्रम बल को चार समूहों के अंतर्गत वर्गीकृत किया है:
- पेशा/व्यवसाय
- इसके तहत छोटे एवं सीमांत किसान, भूमिहीन खेतिहर मज़दूर, बटाईदार, मछुआरे, पशुपालन और बीड़ी बनाने के कार्य में संलग्न लोग शामिल हैं।
- रोज़गार की प्रकृति:
- संलग्न खेतिहर मज़दूर, बंधुआ मज़दूर, प्रवासी श्रमिक, ठेका और आकस्मिक मज़दूर इस श्रेणी में शामिल हैं।
- विशेष रूप से व्यथित श्रेणी
- इस श्रेणी में ताड़ी टैपर, मैला ढोने वाले, सिर के भार के वाहक, पशु चालित वाहनों के चालक, लोडर और अनलोडर शमिल हैं।
- सेवा श्रेणी
- इसमें दाई, घरेलू कामगार, मछुआरे, महिलाएँ, नाई, सब्जी और फल विक्रेता, समाचार पत्र विक्रेता आदि शामिल हैं।
- पेशा/व्यवसाय
- ‘आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण’ (PLFS 2018-19) के अनुसार, 90% श्रमिक यानी 465 मिलियन में से 419 मिलियन श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न हैं।
- महामारी के दौरान रोज़गार की मौसमी प्रकृति और औपचारिक कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों की कमी के कारण ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में अनौपचारिक श्रमिकों को सबसे अधिक नुकसान हुआ है।
- श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने असंगठित श्रम बल को चार समूहों के अंतर्गत वर्गीकृत किया है:
- असंगठित क्षेत्र का समर्थन करने के लिये पूर्व में की गई पहलें:
- प्रधानमंत्री श्रम योगी मान-धन (PM-SYM)
- श्रम सुधार
- प्रधानमंत्री रोज़गार प्रोत्साहन योजना (PMRPY)
- PM स्वनिधि : स्ट्रीट वेंडर्स के लिये सूक्ष्म ऋण योजना
- आत्मनिर्भर भारत अभियान
- दीनदयाल अंत्योदय योजना, राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन
- PM गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY)
- वन नेशन वन राशन कार्ड
- आत्मनिर्भर भारत रोज़गार योजना
- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि
- भारत के अनौपचारिक श्रमिक वर्ग को विश्व बैंक की सहायता
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाएँ
प्रिलिम्स के लिये:जलविद्युत परियोजनाएँ मेन्स के लिये:हिमालयी क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने कहा है कि ऊपरी गंगा क्षेत्र में किसी भी नई जलविद्युत परियोजना की अनुमति नहीं दी जाएगी और लोगों को स्वीकृत पर्यावरण नियमों का पालन करना होगा ताकि वर्ष के दौरान हर समय नदी में न्यूनतम प्रवाह निर्धारित कर इसके स्वास्थ्य को बनाए रखा जा सके।
प्रमुख बिंदु
- संदर्भ:
- उत्तराखंड में सात परियोजनाओं को मुख्य रूप से इस आधार पर निर्माण पूरा करने की अनुमति दी गई है क्योंकि उनका 50% से अधिक कार्य पूर्ण है।
- ये सात परियोजनाएँ इस प्रकार हैं:
- टिहरी चरण 2: भागीरथी नदी पर 1000 मेगावाट
- तपोवन विष्णुगढ़ : धौलीगंगा नदी पर 520 मेगावाट
- विष्णुगढ़ पीपलकोटी : अलकनंदा नदी पर 444 मेगावाट
- सिंगोली भटवारी : मंदाकिनी नदी पर 99 मेगावाट
- फटा भुयांग: मंदाकिनी नदी पर 76 मेगावाट
- मध्यमहेश्वर : मध्यमहेश्वर गंगा पर 15 मेगावाट
- कालीगंगा 2: कालीगंगा नदी पर 6 मेगावाट
- मुद्दे:
- कार्यकर्त्ताओं ने इस बात पर चिंता जताई है कि दो परियोजनाओं- सिंगोली भटवारी और फटा भुयांग, जो विशेष रूप से केदारनाथ त्रासदी (2013) से जुड़ी थीं, को अनुमति दी गई है।
- फरवरी 2021 की बाढ़ में क्षतिग्रस्त विष्णुगढ़ परियोजना को भी प्रगति की अनुमति दी गई है, जबकि लापरवाही के कारण 200 से अधिक लोगों की मौत हुई क्योंकि वहाँ आपदा चेतावनी प्रणाली नहीं थी।
- जलविद्युत परियोजनाएँ, बाँध और निर्माण गतिविधियाँ नाजुक हिमालयी क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं, जिससे वे आपदाओं के प्रति संवेदनशील हो रहे हैं।
- हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं की चुनौतियांँ:
- स्थिरता में कमी:
- ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान है।
- पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से वातावरण में शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन उत्पन्न होती है, जो ग्लोबल वार्मिंग को और अधिक बढ़ा देती है।
- ग्लेशियरों के अपने स्थान से खिसकने तथा पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने से पर्वतीय ढलानों की स्थिरता में कमी आने और ग्लेशियर झीलों की संख्या एवं उनके क्षेत्रफल में वृद्धि होने का अनुमान है।
- जलवायु परिवर्तन:
- जलवायु परिवर्तन ने मौसम के अनिश्चित पैटर्न को बढ़ा दिया है जैसे बर्फबारी और वर्षा में वृद्धि।
- बर्फ का थर्मल प्रोफाइल बढ़ रहा है, जिसका अर्थ है कि बर्फ का तापमान जो -6 से -20 डिग्री सेल्सियस तक होता था, अब यह घटकर -2 डिग्री सेल्सियस हो गया है, जिससे इस तापमान पर यह पिघलने के लियेअतिसंवेदनशील हो जाता है।
- आपदाओं की बारंबारता में बढ़ोतरी:
- बादलों के फटने की घटनाओं में बढ़ोतरी देखी गई है तथा तीव्र वर्षा और हिमस्खलन के साथ इस क्षेत्र के निवासियों के जीवन और आजीविका के नुकसान का जोखिम बढ़ गया है।
- की गई पहल:
- नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग हिमालयन ईकोसिस्टम (National Mission on Sustaining Himalayan Ecosystem- NMSHE) जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan on Climate Change- NAPCC) के तहत आठ मिशनों में से एक है। इसका उद्देश्य हिमालय के ग्लेशियरों, पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों, जैव विविधता और वन्यजीव संरक्षण को बनाए रखने तथा उनकी सुरक्षा के उपायों को सुनिश्चित करना है।
- स्थिरता में कमी:
आगे की राह
- यह अनुशंसा की जाती है कि हिमालयी क्षेत्र में 2,200 मीटर की ऊँचाई से अधिक पर जलविद्युत विकास नहीं होना चाहिये।
- जनसंख्या वृद्धि और आवश्यक औद्योगिक एवं बुनियादी ढाँचे के विकास को ध्यान में रखते हुए सरकार को जलविद्युत के विकास के लिये गंभीरता से विचार करना चाहिये ताकि अधिक पारिस्थितिकी तरीके से अर्थव्यवस्था का सतत् विकास सुनिश्चित किया जा सके।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ के महत्त्वपूर्ण घटक
प्रिलिम्स के लियेनीति आयोग, राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन, इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट, रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट मेन्स के लियेनीति आयोग की सिफारिशें और उनका महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘नीति आयोग’ ने ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ (NMP) की सफलता के लिये महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में ‘इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट’ (InvITs) और ‘रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट’ (REITs) जैसे मुद्रीकरण उपकरणों को बढ़ाने हेतु नीति एवं नियामक परिवर्तन लाने की सिफारिश की है।
प्रमुख बिंदु
- राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन
- ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 तक चार वर्ष की अवधि में केंद्र सरकार की मुख्य संपत्ति के माध्यम से कुल 6 लाख करोड़ रुपए का मुद्रीकरण किया जा सकता है।
- यह योजना प्रधानमंत्री की ‘रणनीतिक विनिवेश नीति’ के अनुरूप है, जिसके तहत सरकार केवल कुछ चिह्नित क्षेत्रों में उपस्थिति बनाए रखेगी और शेष को निजी क्षेत्रों के लिये खोल दिया जाएगा।
- इसके तहत सरकार की योजना राजमार्गों, गैस पाइपलाइनों, रेलवे पटरियों और बिजली ट्रांसमिशन लाइनों जैसी सार्वजनिक संपत्तियों के मुद्रीकरण के लिये इन्फ्रास्ट्रक्चर इंवेस्टमेंट ट्रस्ट’ (InvITs) एवं ‘रियल एस्टेट इंवेस्टमेंट ट्रस्ट’ (REITs) का उपयोग करना है।
- ‘राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन’ का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2022 से वित्त वर्ष 2025 तक चार वर्ष की अवधि में केंद्र सरकार की मुख्य संपत्ति के माध्यम से कुल 6 लाख करोड़ रुपए का मुद्रीकरण किया जा सकता है।
- नीति आयोग की सिफारिशें
- InvITs को ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) के तहत लाना: यद्यपि भारत में InvITs संरचनाओं का उपयोग वर्ष 2014 से किया जा रहा है, किंतु ऐसे ट्रस्टों को 'कानूनी व्यक्ति' नहीं माना जाता है।
- इसलिये ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ InvIT ऋणों पर लागू नहीं होती है। ऋणदाताओं के पास परियोजना परिसंपत्तियों के लिये कोई मौजूदा प्रक्रिया नहीं है।
- हालाँकि ‘वित्तीय परिसंपत्तियों के प्रतिभूतिकरण एवं पुनर्निर्माण और सुरक्षा ब्याज अधिनियम, 2002’ (सरफेसी अधिनियम) तथा ‘ऋणों की वसूली और दिवालियापन अधिनियम, 1993’ के तहत ऋणदाताओं को संरक्षण प्रदान किया जाता है।
- इस प्रकार IBC प्रावधानों को InvITs तक विस्तारित करने से ऋणदाताओं को एक तीव्र एवं अधिक प्रभावी ऋण पुनर्गठन और समाधान विकल्प तक पहुँचने में मदद मिलेगी।
- इसलिये ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ InvIT ऋणों पर लागू नहीं होती है। ऋणदाताओं के पास परियोजना परिसंपत्तियों के लिये कोई मौजूदा प्रक्रिया नहीं है।
- टैक्स ब्रेक: आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 54EC के तहत सुरक्षित निवेश हेतु InvITs में कर लाभ की अनुमति देने से यह कर-कुशल और उपयोगकर्त्ता अनुकूल तंत्र, खुदरा निवेशकों (व्यक्तिगत / गैर-पेशेवर निवेशकों) को आकर्षित करेगा।
- हालाँकि इससे राजकोष के राजस्व में हानि के कारण लागत में वृद्धि होगी, लेकिन दीर्घकालिक लाभ लागत से अधिक हो सकता है क्योंकि पूंजीगत लाभ छूट के साथ निर्दिष्ट बॉन्ड में निवेश से अतीत में सफलता साबित हुई थी।
- आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 54EC, करदाताओं को कुछ सरकार समर्थित बुनियादी ढाँचा फर्मों द्वारा जारी बॉन्ड में निवेश के माध्यम से अचल संपत्तियों में लेन-देन से दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ की भरपाई करने की अनुमति देती है।
- यह भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम, विद्युत वित्त निगम और भारतीय रेलवे वित्त निगम द्वारा जारी बॉन्ड पर लागू होता है।
- InvITs को ‘दिवाला और दिवालियापन संहिता’ (IBC) के तहत लाना: यद्यपि भारत में InvITs संरचनाओं का उपयोग वर्ष 2014 से किया जा रहा है, किंतु ऐसे ट्रस्टों को 'कानूनी व्यक्ति' नहीं माना जाता है।
- इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (InvITs) के बारे में:
- ये ऐसे उपकरण हैं जो म्यूचुअल फंड की तरह काम करते हैं।
- इन्हें कई निवेशकों की छोटी रकम को उन परिसंपत्तियों में निवेश करने के लिये डिज़ाइन किया गया है जो एक अवधि में नकदी प्रवाह उत्पन्न करते हैं। इस नकदी प्रवाह का एक हिस्सा निवेशकों को लाभांश के रूप में वितरित किया जाएगा।
- InvIT ‘इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग’ (IPO) में न्यूनतम निवेश राशि 10 लाख रुपए है, इसलिये यह उच्च आय वाले व्यक्तियों, संस्थागत और गैर-संस्थागत निवेशकों के लिये उपयुक्त है।
- InvITs को स्टॉक की तरह ही IPO के माध्यम से एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध किया जाता है।
- InvITs को भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) (इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट्स) विनियम, 2014 द्वारा विनियमित किया जाता है।
- InvITs की संरचना इस प्रकार की जाती है कि निवेशकों को पूर्वानुमेय नकदी प्रवाह (Predictable Cash Flows) के साथ बुनियादी ढांँचे की संपत्ति में निवेश करने का अवसर मिल सके, जबकि परिसंपत्ति के मालिक उन परिसंपत्तियों से भविष्य में होने वाले राजस्व नकदी प्रवाह को रोकने हेतु अग्रिम संसाधन जुटा सकते हैं, जिन्हें बदले में नई परिसंपत्तियों में लगाया जा सकता है या कर्ज़ के रूप में चुकाने हेतु इस्तेमाल किया जा सकता है।
- रियल एस्टेट इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट (ReITs) के बारे में:
- ReITs, InvITs इस अंतर के साथ समानता रखते हैं कि ये प्रतिभूतियांँ अचल संपत्ति से जुड़ी हुई हैं।
- ReITs की संरचना म्यूचुअल फंड के समान है। हालांँकि म्यूचुअल फंड में जहाँ अंतर्निहित परिसंपत्ति बॉण्ड, स्टॉक और सोना है, वहीँ ReITs में निवेशक भौतिक अचल संपत्ति में निवेश करते हैं।
- एकत्र किये गए धन को आय-सृजन हेतु अचल संपत्ति में लगाया जाता है।
- यह आय इकाई धारकों के बीच वितरित हो जाती है।
- किराए और पट्टों से प्राप्त होने वाली नियमित आय के अलावा अचल संपत्ति की पूंजी वृद्धि से प्राप्त लाभ भी इकाई धारकों के लिये एक आय है।
- ReITs के लिये न्यूनतम अंशदान सीमा 50,000 रुपए है।
आगे की राह
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: इन्फ्रास्ट्रक्चर नियामकों और सेबी को एक InvITs के सफल दिवाला समाधान (Insolvency Resolution) हेतु मिलकर काम करने की आवश्यकता होगी, जिसमें प्रायोजक, निवेश प्रबंधक और/या ट्रस्टी या एक बुनियादी ढांँचे की संपत्ति के हस्तांतरण में बदलाव शामिल हो सकता है।
- आयकर अधिनियम में संशोधन: औद्योगिक समूहों ने विशेष रूप से NMP संपत्ति रखने वाले पात्र InvITs में निवेश के लिये पूंजीगत लाभ कर राहत प्रदान करने हेतु आयकर कानून में एक अलग धारा का प्रस्ताव किया है, जो धारा 54ईसी का विस्तार करने से बेहतर होगी।
- समग्र सुधार: परिचालन के तौर-तरीकों को सुव्यवस्थित करना, निवेशकों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना और वाणिज्यिक दक्षता को सुविधाजनक बनाना 'मुद्रीकरण अभियान के 'कुशल एवं प्रभावी' परिणाम सुनिश्चित कर सकता है।
स्रोत: द हिंदू
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
विदेशी जहाज़ों हेतु चीन के नए समुद्री नियम
प्रिलिम्स के लियेनाइन डैश लाइन, मलक्का जलडमरूमध्य, दक्षिण चीन सागर मेन्स के लियेभारत के लिये हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी का महत्त्व, संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि के प्रमुख प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने नए समुद्री नियमों को अधिसूचित किया है, जिसमें जहाज़ों को चीनी जल क्षेत्र (प्रादेशिक जल क्षेत्र) में प्रवेश करने पर सामानों के विवरण की जानकारी देनी होगी, जो 1 सितंबर, 2021 से प्रभावी होगा।
- चीन अपने नक्शे पर तथाकथित "नाइन डैश लाइन" (Nine Dash Line) के तहत दक्षिण चीन सागर के अधिकांश जल पर दावा करता है, जो फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया और इंडोनेशिया सहित कई अन्य देशों द्वारा विवादित है।
प्रमुख बिंदु
- परिचय :
- सबमर्सिबल, परमाणु जहाज़ों, रेडियोधर्मी सामग्री ले जाने वाले जहाज़ों और थोक तेल, रसायन, तरलीकृत गैस एवं अन्य ज़हरीले तथा हानिकारक पदार्थों को ले जाने वाले जहाज़ों के संचालक, जो चीन की समुद्री यातायात सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं, को चीनी क्षेत्रीय जल में प्रवेश करने पर सामानों के विवरण की जानकारी देनी होगी।
- चीन लगभग 1.3 मिलियन वर्ग मील दक्षिण चीन सागर पर अपने संप्रभु क्षेत्र के रूप में दावा करता है। वह क्षेत्र में कृत्रिम द्वीपों पर सैन्य ठिकाने बना रहा है।
- इसे समुद्री पहचान क्षमता को बढ़ावा देने के लिये सख्त नियमों को लागू करके समुद्र में चीन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु किये गए प्रयासों के संकेत के रूप में देखा जाता है।
- चीन की दृष्टि से इस क्षेत्र में अमेरिका की घुसपैठ मुखर प्रकृति की है जो इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता का सबसे बड़ा विध्वंसक हो सकता है।
- सबमर्सिबल, परमाणु जहाज़ों, रेडियोधर्मी सामग्री ले जाने वाले जहाज़ों और थोक तेल, रसायन, तरलीकृत गैस एवं अन्य ज़हरीले तथा हानिकारक पदार्थों को ले जाने वाले जहाज़ों के संचालक, जो चीन की समुद्री यातायात सुरक्षा को खतरे में डाल सकते हैं, को चीनी क्षेत्रीय जल में प्रवेश करने पर सामानों के विवरण की जानकारी देनी होगी।
- आशय :
- नेविगेशन और व्यापार पर प्रभाव :
- भारतीय वाणिज्यिक जहाज़ों के साथ-साथ भारतीय नौसेना के जहाज़ नियमित रूप से दक्षिण चीन सागर की जलधारा को पार करते हैं, जिसके माध्यम से प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय समुद्री मार्ग गुज़रते हैं।
- इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता भारत के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है। भारत दक्षिण चीन सागर के तटवर्ती राज्यों के साथ तेल और गैस क्षेत्र में सहयोग सहित विभिन्न गतिविधियाँ करता है।
- 5 ट्रिलियन डॉलर से अधिक का व्यापार दक्षिण चीन सागर के माध्यम से होता है और भारत का 55% व्यापार इस जल क्षेत्र और मलक्का जलडमरूमध्य के माध्यम से होता है।
- अंतर्राष्ट्रीय कानून के साथ विसंगति :
- इसे संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (United Nations Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) के साथ असंगत होने के रूप में देखा जाता है, जिसमें कहा गया है कि सभी देशों के जहाज़ों को किसी भी "प्रादेशिक जल ” के माध्यम से गैर-दुर्भावना के साथ पार करने का अधिकार देता है"।
- क्षेत्रीय अशांति :
- अगर चीन नए नियमों को विवादित दक्षिण चीन सागर और ताइवान जलडमरूमध्य में सख्ती से लागू करता है तो इससे तनाव बढ़ने की आशंका है। इस क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगी देश नौवहन की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए नौसैनिक अभियान चलाकर चीन के दावों को चुनौती दे सकते हैं।
- नेविगेशन और व्यापार पर प्रभाव :
- नाइन डैश लाइन:
- यह चीन के दक्षिणी हैनान द्वीप के सैकड़ों किलोमीटर दक्षिण और पूर्व में विस्तृत है, जो सामरिक रूप से पेरासल और स्प्रैटली द्वीप शृंखलाओं को कवर करती है।
- इसे अधिकांश देशों द्वारा UNCLOS के साथ असंगत माना जाता है, किसी राष्ट्र के तट से 12 समुद्री मील के भीतर के क्षेत्र को उस राष्ट्र का क्षेत्र माना जाता है, इसमें वह राष्ट्र अपने कानून बना सकता है और जिस साधन का जैसे चाहे प्रयोग कर सकता है।
- लगभग 2000 वर्ष पूर्व इन दोनों द्वीप शृंखलाओं पर चीन का अधिकार माना जाता था।
- हेग स्थित मध्यस्थता के स्थायी न्यायालय (Permanent Court of Arbitration) ने वर्ष 2016 में एक निर्णय जारी किया जिसमें चीन के दावों को अंतर्राष्ट्रीय कानून में आधार की कमी के रूप में खारिज कर दिया। चीन ने तब इस फैसले को खारिज कर दिया था।
- यह चीन के दक्षिणी हैनान द्वीप के सैकड़ों किलोमीटर दक्षिण और पूर्व में विस्तृत है, जो सामरिक रूप से पेरासल और स्प्रैटली द्वीप शृंखलाओं को कवर करती है।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि
- यह एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार एवं ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करता है तथा समुद्री साधनों के प्रयोग के लिये नियमों की स्थापना करता है। संयुक्त राष्ट्र ने इस कानून को वर्ष 1982 में अपनाया था लेकिन यह नवंबर 1994 में प्रभाव में आया।
- कन्वेंशन बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी को प्रादेशिक समुद्र सीमा के रूप में और 200 समुद्री मील की दूरी को विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र सीमा के रूप में परिभाषित करता है।
- भारत वर्ष 1982 में UNCLOS का हस्ताक्षरकर्त्ता बना।
दक्षिण चीन सागर
- दक्षिण चीन सागर दक्षिण-पूर्व एशिया में पश्चिमी प्रशांत महासागर की एक शाखा है।
- यह चीन के दक्षिण में, वियतनाम के पूर्व और दक्षिण में, फिलीपींस के पश्चिम में और बोर्नियो द्वीप के उत्तर में है।
- सीमावर्ती राज्य और क्षेत्र (उत्तर से दक्षिणावर्त): चीनी जनवादी गणराज्य, चीन गणराज्य (ताइवान), फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, सिंगापुर और वियतनाम।
- यह ताइवान जलडमरूमध्य से पूर्वी चीन सागर और लुज़ोन जलडमरूमध्य द्वारा फिलीपीन सागर से जुड़ा हुआ है।
- इसमें कई शोल, रीफ, एटोल और द्वीप शामिल हैं। पैरासेल द्वीप समूह, स्प्रैटली द्वीप समूह और स्कारबोरो शोल सबसे महत्त्वपूर्ण हैं।
मलक्का जलडमरूमध्य
- यह एक जलमार्ग है जो अंडमान सागर (हिंद महासागर) और दक्षिण चीन सागर (प्रशांत महासागर) को जोड़ता है।
- यह पश्चिम में सुमात्रा के इंडोनेशियाई द्वीप और प्रायद्वीपीय (पश्चिम) मलेशिया व पूर्व में चरम दक्षिणी थाईलैंड के बीच संचालित है और इसका क्षेत्रफल लगभग 25,000 वर्ग मील है।
- जलडमरूमध्य का नाम मेलाका (पहले मलक्का) के व्यापारिक बंदरगाह से लिया गया है जो मलय तट पर 16वीं और 17वीं शताब्दी में महत्त्वपूर्ण था।
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR)
प्रिलिम्स के लिये:BTR, छठी अनुसूची मेन्स के लिये:पूर्वोत्तर में अशांति का कारण और शांति स्थापना हेतु प्रयास |
चर्चा में क्यों?
बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में 1996 के जातीय और सांप्रदायिक दंगों के कारण विस्थापित हुए लोग अब अपने छोड़े गए क्षेत्रों में लौटने के लिये तैयार हैं।
- गृह मंत्रालय (MHA), असम सरकार और बोडो समूहों ने असम में बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (BTAD) में सत्ता-साझाकरण समझौते को फिर से निर्मित करने और इसका नाम बदलने के संदर्भ एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर किये।
प्रमुख बिंदु
- बोडो के बारे में:
- जनसंख्या: असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वह असम की आबादी की लगभग 5-6% है।
- असम में कोकराझार, बक्सा, उदलगुरी और चिरांग ज़िले बोडो प्रादेशिक क्षेत्र ज़िला (BTAD) का गठन करते हैं और यह कई जातीय समूहों का निवास स्थान है।
- जनसंख्या: असम में अधिसूचित अनुसूचित जनजातियों में बोडो सबसे बड़ा समुदाय है। वह असम की आबादी की लगभग 5-6% है।
- विवाद:
- अलग राज्य की मांग: बोडो राज्य की पहली संगठित मांग वर्ष 1967-68 में प्लेन ट्राइबल काउंसिल ऑफ असम नामक राजनीतिक दल द्वारा की गई थी।
- असम समझौता: वर्ष 1985 में जब असम आंदोलन की परिणति असम समझौते में हुई, तो कई बोडो लोगों ने इसे अनिवार्य रूप से असमिया भाषी समुदाय के हितों पर ध्यान केंद्रित करने के रूप में देखा।
- इसके परिणामस्वरूप ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन (ABSU) और नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के नेतृत्त्व में कई बोडो समूह जातीय समुदाय के लिये अलग क्षेत्र की मांग करते रहे हैं, इसके बाद हुए एक आंदोलन में लगभग 4000 लोगों की मृत्यु हो गई थी।
- लोगों का विस्थापन: वर्ष 1993 और 2014 के बीच 970 से अधिक बांग्ला भाषी मुस्लिम, आदिवासी और बोडो चरमपंथी लोग मुख्य रूप से वर्तमान में भंग हो चुके नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (NDFB) द्वारा अंधाधुंध गोलीबारी के कारण हुई झड़पों में मारे गए।
- हिंसा से विस्थापित हुए 8.4 लाख लोगों में से कुछ जर्जर राहत शिविरों में रह रहे हैं, जबकि अन्य वर्तमान BTR से आगे के क्षेत्रों में स्थानांतरित हो गए हैं। बोडो-संथाल संघर्ष में 2.5 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे।
- बोडो समझौता:
- पहला बोडो समझौता: वर्षों के हिंसक संघर्षों के बाद 1993 में ABSU के साथ पहले बोडो समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे सीमित राजनीतिक शक्तियों के साथ एक बोडोलैंड स्वायत्त परिषद का निर्माण हुआ।
- दूसरा बोडो समझौता: इसके तहत असम राज्य में बोडो क्षेत्रों के लिये एक स्वशासी निकाय बनाने पर सहमति बनी।
- इसके अनुसरण में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) को 2003 में कुछ और वित्तीय तथा अन्य शक्तियों के साथ बनाया गया था।
- तीसरा बोडो समझौता: इस समझौते पर 2020 में हस्ताक्षर किये गए, इसने BTAD का नाम बदलकर बोडोलैंड प्रादेशिक क्षेत्र (BTR) कर दिया।
- यह बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC) की छठी अनुसूची के तहत अधिक विधायी, कार्यकारी और प्रशासनिक स्वायत्तता एवं राज्य के बदले BTC क्षेत्र के विस्तार का वादा करता है।
- यह BTAD के क्षेत्र में परिवर्तन और BTAD के बाहर बोडो के लिये प्रावधान प्रदान करता है।
- BTR में वे क्षेत्र शामिल हैं जो बोडो बहुल हैं लेकिन वर्तमान में BTAD से बाहर हैं।
बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद (BTC)
- यह भारत के असम राज्य में एक स्वायत्त क्षेत्र है।
- यह भूटान और अरुणाचल प्रदेश की तलहटी से ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर चार ज़िलों (कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदलगुरी) से बना है।
- 2003 के समझौते के तहत गठित BTC के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्र को बोडो प्रादेशिक स्वायत्त ज़िला (BTAD) कहा जाता था।
- BTC छठी अनुसूची के तहत शासित क्षेत्र है। हालाँकि BTC छठी अनुसूची के तहत संवैधानिक प्रावधान का अपवाद है।
- चूँकि इसमें 46 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से 40 निर्वाचित होते हैं।
- इन 40 सीटों में से 35 अनुसूचित जनजाति और गैर-आदिवासी समुदायों के लिये आरक्षित हैं, पाँच अनारक्षित हैं तथा बाकी छह BTAD के कम प्रतिनिधित्त्व वाले समुदायों से राज्यपाल द्वारा नामित किये जाते हैं।
स्वायत्त ज़िले और क्षेत्रीय परिषदें
- ADC के साथ छठी अनुसूची एक स्वायत्त क्षेत्र के रूप में गठित प्रत्येक क्षेत्र के लिये अलग क्षेत्रीय परिषदों का भी प्रावधान करती है।
- कुल मिलाकर पूर्वोत्तर में 10 क्षेत्र हैं जो स्वायत्त ज़िलों के रूप में पंजीकृत हैं - तीन असम, मेघालय और मिजोरम में और एक त्रिपुरा में।
- इन क्षेत्रों को ज़िला परिषद (ज़िले का नाम) और क्षेत्रीय परिषद (क्षेत्र का नाम) के रूप में नामित किया गया है।
- स्वायत्त ज़िला और क्षेत्रीय परिषद में 30 से अधिक सदस्य नहीं होते हैं, जिनमें से चार राज्यपाल द्वारा और बाकी चुनावों के माध्यम से मनोनीत होते हैं।
- ये सभी पाँच साल के कार्यकाल के लिये सत्ता में बने रहते हैं।