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डेली न्यूज़

  • 30 Mar, 2022
  • 53 min read
भारतीय राजनीति

त्रिपुरा के डारलोंग समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने के लिये विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा, कुकी आदिवासी, अनुसूचित जनजाति, पद्मश्री, एनसीएसटी, डारलोंग, त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद, रियांग या ब्रूस, संथाल।

मेन्स के लिये:

भारत में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति और संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 पारित किया।

  • विधेयक में डारलोंग समुदाय को कुकी आदिवासी समुदाय की उप-जनजाति के रूप में अनुसूचित जनजातियों (STs) की सूची में शामिल करने की मांग की गई थी।
  • संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश, 1950 में संशोधन करके इस विधेयक को पारित किया गया है।
  • ज्ञात है की राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग पिछले चार वर्षों से निष्क्रिय है।

त्रिपुरा में डारलोंग समुदाय की स्थिति:

  • डारलोंग त्रिपुरा का एक आदिवासी समुदाय है, जिसकी आबादी 11,000 है।
  • समुदाय में शिक्षा और सांस्कृतिक गतिविधियों का उच्च प्रसार है तथा समुदाय के सदस्य स्थानीय प्रशासन में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत हैं।
    • उदाहरण के लिये कुछ साल पहले आदिवासी संगीतज्ञ और रोज़म (एक आदिवासी वाद्य यंत्र) उस्ताद थंगा डारलोंग को संस्कृति में उनके योगदान हेतु प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

त्रिपुरा में जनजातीय आबादी:

  • त्रिपुरा में 20 आदिवासी समुदाय हैं, जो 18 जनवरी, 1982 को गठित त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त ज़िला परिषद (Tripura Tribal Areas Autonomous District Council) में निवास करते हैं।
  • आदिवासी परिषद त्रिपुरा के कुल क्षेत्रफल के लगभग 70% हिस्से को कवर करती है और राज्य की कुल आबादी में से लगभग 30% आबादी यहाँ निवास करती है।
  • इनमें से अधिकांश वर्तमान समय में भी झूम कृषि या स्थानांतरित कृषि (Slash and Burn Cultivation) प्रणाली का अनुसरण करते हैं तथा जीविकोपार्जन के लिये पारंपरिक स्रोतों पर निर्भर हैं।
  • राज्य के आदिवासी समुदायों में त्रिपुरा/त्रिपुरी, रियांग, जमातिया, नोआतिया, उचाई, चकमा, मोग, लुशाई, कुकी, हलाम, मुंडा, कौर, ओरंग, संथाल, भील, भूटिया, चैमल, गारो, खसिया और लेप्चा शामिल हैं।
    • हलाम समुदाय में कई छोटे आदिवासी कबीले हैं। इनमें से कई भाषायी रूप से लुप्तप्राय समूह हैं, जैसे- बोंगखर, कार्बोंग आदि।

जनजातीय आबादी के कल्याण हेतु हाल ही में उठाए गए कदम:

  • हाल ही में सरकार ने आकांक्षी ज़िलों के लिये ब्रॉडबैंड और 4जी कनेक्टिविटी विकसित करने की योजना प्रस्तुत की है।
    • इसके लिये वित्त अनुसूचित जनजाति घटक के तहत आवंटित किया जाएगा।
  • आदिवासियों के स्वास्थ्य देखभाल संबंधी मुद्दे पर इस क्षेत्र में अनुसंधान के लिये हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) को धन आवंटित किया गया था।

भारत में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति:

  • परिचय:
    • वर्ष 1931 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जनजातियों को ‘बहिर्वेशित’ और ‘आंशिक रूप से बहिर्वेशित’ क्षेत्रों में ‘पिछड़ी जनजातियों’ के रूप में माना गया। वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम के तहत पहली बार ‘पिछड़ी जनजातियों’ के प्रतिनिधियों को प्रांतीय विधानसभाओं में आमंत्रित किया गया।
    • संविधान अनुसूचित जनजातियों की मान्यता के मानदंडों को परिभाषित नहीं करता है और इसलिये वर्ष 1931 की जनगणना में निहित परिभाषा का उपयोग स्वतंत्रता के बाद के आरंभिक वर्षों में किया गया था।
    • हालाँकि संविधान का अनुच्छेद 366(25) अनुसूचित जनजातियों को परिभाषित करने के लिये प्रक्रिया निर्धारित करता है: “अनुसूचित जनजातियों का अर्थ उन ऐसी जनजातियों या जनजातीय समुदायों के अंदर कुछ वर्गों या समूहों से है, जिन्हें इस संविधान के उद्देश्यों के लिये अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति माना जाता है।”
      • 342(1): राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में राज्यपाल के परामर्श के बाद एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में जनजातियों या जनजातीय समुदायों या जनजातियों या जनजातीय समुदायों के समूहों को अनुसूचित जनजाति के रूप में निर्दिष्ट कर सकता है। 
    • अब तक लगभग 705 से अधिक जनजातियाँ ऐसी हैं जिन्हें अधिसूचित किया गया है। सबसे अधिक संख्या में आदिवासी समुदाय ओडिशा में पाए जाते हैं।
    • पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण हेतु प्रावधान करती है।
    • संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।
  • कानूनी प्रावधान:

विगत वर्षों के प्रश्न

प्रश्न. भारत के संविधान की पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची में किससे संबंधित प्रावधान हैं? (2015)

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा।
(b) राज्यों के बीच सीमाओं का निर्धारण।
(c) पंचायतों की शक्तियों, अधिकार और ज़िम्मेदारियों का निर्धारण।
(d) सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों की रक्षा।

उत्तर: (a)


प्रश्न. भारत के 'चांगपा' समुदाय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014) 

  1. वे मुख्य रूप से उत्तराखंड राज्य में रहते हैं।
  2. वे चांगथांगी (पश्मीना) बकरियों को पालते हैं, जो अच्छी ऊन प्रदान करती हैं।
  3. उन्हें अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 

  • चांगपा अर्द्ध-खानाबदोश समुदाय हैं जो चांगथांग (यह लद्दाख और तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में फैला हुआ है) या लद्दाख के अन्य क्षेत्रों में निवास करते हैं। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • वे चांगथांगी (पश्मीना) बकरियों को पालते हैं और बेहतरीन गुणवत्ता के प्रामाणिक कश्मीरी ऊन के कुछ आपूर्तिकर्त्ताओं में से हैं। अत: कथन 2 सही है।
  • वर्ष 2001 तक चांगपा को अनुसूचित जनजाति के रूप में वर्गीकृत किया गया था। अत: कथन 3 सही है।

स्रोत: द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

मानव रक्त में माइक्रोप्लास्टिक

प्रिलिम्स के लिये:

माइक्रोप्लास्टिक।

मेन्स के लिये:

पर्यावरण प्रदूषण एवं गिरावट।

चर्चा में क्यों?

नीदरलैंड में शोधकर्त्ताओं के एक समूह द्वारा किये गए अध्ययन के अनुसार, पहली बार मानव रक्त में ‘माइक्रोप्लास्टिक’ नामक प्लास्टिक के छोटे कणों का पता चला है।

  • शोधकर्त्ताओं ने मौजूदा तकनीकों को उन कणों का पता लगाने एवं उनका विश्लेषण करने के लिये अनुकूलित किया, जो आकार में 700 नैनोमीटर जितने छोटे थे।
  • उन्होंने पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (PET) और पॉलीइथाइलीन सहित पाँच सामान्य प्लास्टिक श्रेणियों को लक्षित किया।

माइक्रोप्लास्टिक क्या हैं?

  • परिचय:
    • ये पाँच मिलीमीटर से कम व्यास वाले प्लास्टिक कण होते हैं जो कि प्रायः गहनों में इस्तेमाल होने वाले मानक मोती की तुलना में भी छोटे होते हैं। ये हमारे समुद्र एवं जलीय जीवन के लिये हानिकारक हो सकते हैं।
    • माइक्रोप्लास्टिक की दो श्रेणियाँ हैं: प्राथमिक एवं द्वितीयक।
  • वर्गीकरण:
    • प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक: वे छोटे कण जिन्हें व्यावसायिक उपयोग और माइक्रोफाइबर कपड़ों एवं अन्य वस्त्रों में प्रयोग के लिये डिज़ाइन किया जाता है।
      • उदाहरण के लिये व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों, प्लास्टिक छर्रों एवं प्लास्टिक फाइबर में पाए जाने वाले माइक्रोबीड्स।
    • द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक: ये पानी की बोतलों जैसे- बड़े प्लास्टिक के टूटने से बनते हैं।
      • यह टूटना पर्यावरणीय कारकों, मुख्य रूप से सूर्य के विकिरण एवं समुद्र की लहरों के संपर्क में आने के कारण होता है।

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • वैज्ञानिकों ने 22 रक्तदाताओं के रक्त के नमूनों का विश्लेषण किया और 17 नमूनों में प्लास्टिक के कण पाए।
    • आधे से अधिक नमूनों में PET प्लास्टिक मौजूद था, जिसका इस्तेमाल आमतौर पर पेयजल की बोतलों में किया जाता है।
    • एक-तिहाई में पॉलीस्टाइनिन मौजूद था, जिसका उपयोग भोजन एवं अन्य उत्पादों की पैकेजिंग के लिये किया जाता है।
    • एक-चौथाई रक्त के नमूनों में पॉलीइथाइलीन मौजूद था, जिससे प्लास्टिक वाहक बैग बनाए जाते हैं।
  • यह अपनी तरह का पहला संकेत है कि हमारे रक्त में बहुलक कण मौजूद हैं।
    • पूर्ववर्ती अध्ययनों से पता चलता है कि वयस्कों की तुलना में शिशुओं के मल में माइक्रोप्लास्टिक 10 गुना अधिक था और प्लास्टिक की बोतलों के उपयोग से बच्चे एक दिन में लाखों माइक्रोप्लास्टिक कण निगल रहे हैं।
  • ये कण पूरे शरीर में फैल जाते हैं और शरीर के विभिन्न अंगों में लंबे समय तक मौजूद रह सकते हैं। स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इनके प्रभावों के बारे में अभी तक पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।
  • अध्ययन का परिणाम इस परिकल्पना का समर्थन करता है कि इन प्लास्टिक कणों के मानव संपर्क के परिणामस्वरूप रक्तप्रवाह में कणों का अवशोषण होता है, लेकिन जोखिमकारी प्रभावों का आकलन करने के लिये और अध्ययन की आवश्यकता है।

माइक्रोप्लास्टिक से संबंधित चिंताएँ:

  • माइक्रोप्लास्टिक, लाल रक्त कोशिकाओं की बाहरी झिल्लियों से चिपक सकता है और ऑक्सीजन के परिवहन की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।
  • ये कण गर्भवती महिलाओं के प्लेसेंटा में भी पाए गए हैं, वहीं चूहों में माइक्रोप्लास्टिक भ्रूण के फेफड़ों से दिल, दिमाग और अन्य अंगों में तेज़ी से फैलते हैं।
  • माइक्रोप्लास्टिक मानव कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाते हैं और इसके कारण एक वर्ष में लाखों लोगों की असमय मौत हो जाती है।
    • सामान्य तौर पर बच्चे इन कणों के प्रति अधिक सुभेद्य होते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक से निपटने हेतु पहलें:

  • सिंगल यूज़ प्लास्टिक का उन्मूलन: वर्ष 2019 में भारत के प्रधानमंत्री ने राजधानी दिल्ली में इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाने के साथ वर्ष 2022 तक देश के अन्य सभी हिस्सों में भी सिंगल यूज़ प्लास्टिक को खत्म करने का संकल्प लिया था।
  • महत्त्वपूर्ण नियम: प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 में कहा गया है कि प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रह, प्रसंस्करण और निपटान के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना हेतु प्रत्येक स्थानीय निकाय को उचित कदम उठाना चाहिये।
  • अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective): अन-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) यूएनईपी-इंडिया, भारतीय उद्योग परिसंघ और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।
    • यह हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक के कारण उत्पन्न होने वाले खतरों को कम करने का प्रयास करता है।
  • समुद्री कचरे पर वैश्विक भागीदारी (Global Partnership on Marine Litter- GPML): मनीला घोषणा में उल्लिखित एक अनुरोध के प्रत्युत्तर में GMPL को वर्ष 2012 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
  • लंदन कन्वेंशन, 1972: डंपिंग वेस्ट और अन्य मैटर द्वारा समुद्री प्रदूषण की रोकथाम को लेकर वर्ष 1972 में आयोजित कन्वेंशन पर समुद्री प्रदूषण के सभी स्रोतों को नियंत्रित करने तथा अपशिष्ट पदार्थों के समुद्र में डंपिंग के नियमन के माध्यम से समुद्र के प्रदूषण को रोकने के लिये हस्ताक्षर किये गए थे।
  • प्लास्टिक समझौते: प्लास्टिक पैक्ट्स सभी प्रारूपों और उत्पादों के लिये प्लास्टिक पैकेजिंग मूल्य शृंखला को बदलने हेतु व्यवसाय आधारित पहल है।

आगे की राह

  • डिग्रेडेशन मैकेनिज़्म का संयोजन: माइक्रोप्लास्टिक्स के प्रभावी और पूर्ण अपघटन के लिये फोटोडिग्रेडेशन एवं बायोलॉजिकल डिग्रेडेशन सिस्टम के संयोजन का सुझाव दिया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: दुनिया भर में प्लास्टिक कचरे के निपटान के लिये यह मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते पर आधारित एक नई वैश्विक संधि की मांग करता है।
    • प्लास्टिक संबंधी वैश्विक समस्या का समाधान तभी होगा जब सभी देश अपने-अपने तटों पर माइक्रोप्लास्टिक की निगरानी करने का निर्णय लें और केवल बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के उपयोग के आदेश को लागू करें।
  • प्लास्टिक की खपत को कम करना: माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण के स्तर में कमी सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा प्लास्टिक की खपत को कम किया जा सकता है।
    • समुद्र तटों और महासागरों में कूड़े की मात्रा को कम करने के लिये सरकार, उद्योग और नागरिक समाज को मिलकर काम करना चाहिये।
    • व्यक्तिगत स्तर पर पहल: व्यक्तिगत पहल जैसे कि शून्य-अपशिष्ट, डिस्पोज़ेबल और खुद के बर्तनों का उपयोग करना, बोतलबंद पानी तथा प्लास्टिक पैकेजिंग का उपयोग न करना आदि कुछ ऐसे कदम हैं जिन्हें प्रत्येक नागरिक द्वारा माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये उठाया जा  सकता है।
  • पुनर्चक्रण परियोजनाओं के लिये आर्थिक सहायता: कर छूट, रिसर्च एंड डेवलपमेंट फंड, प्रौद्योगिकी ऊष्मायन, सार्वजनिक-निजी भागीदारी सहित आर्थिक समर्थन और एकल-उपयोग वाली वस्तुओं की रिसाइक्लिंग तथा कचरे को संसाधन में परिवर्तित करने वाली परियोजनाओं को सहायता दी जानी चाहिये।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. पर्यावरण में निर्मुक्त होने वाली ‘सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है?

(a) ये समुद्री पारितंत्र के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर होने का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्र में सफल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a)

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ब्रिक्स मीडिया फोरम

प्रिलिम्स के लिये:

ब्रिक्स देश, ब्रिक्स मीडिया फोरम, न्यू डेवलपमेंट बैंक, आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह।

मेन्स के लिये:

भारत और/या भारत के हितों को प्रभावित करने वाले महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, समूह एवं समझौते, ब्रिक्स का महत्त्व। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में ब्रिक्स देशों (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) द्वारा पत्रकारों के लिये तीन माह का प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किया गया है।

प्रमुख बिंदु 

ब्रिक्स मीडिया फोरम:

  • वर्ष  2015 में फोरम की स्थापना पांँच देशों के मीडिया संगठनों द्वारा की गई थी, जिनमें द हिंदू (इंडिया), ब्राज़ील के सीएमए ग्रुप, रूस के स्पुतनिक, चीन के सिन्हुआ और दक्षिण अफ्रीका के इंडिपेंडेंट मीडिया शामिल हैं।
  • फोरम का उद्देश्य ब्रिक्स मीडिया के बीच एक कुशल समन्वय तंत्र स्थापित करना, नवाचार-संचालित मीडिया विकास को आगे बढ़ाना और तंत्र के तहत आदान-प्रदान एवं व्यावहारिक सहयोग के माध्यम से ब्रिक्स देशों के विकास को मज़बूती के साथ गतिप्रदान करना है।

BRICS

BRICS का एतिहास:

  • आइडिया की उत्पत्ति: BRICS की चर्चा वर्ष 2001 में Goldman Sachs के अर्थशास्री जिम ओ’ नील द्वारा ब्राज़ील, रूस, भारत और चीन की अर्थव्यवस्थाओं के लिये विकास की संभावनाओं पर एक रिपोर्ट में की गई थी। वर्ष 2006 में चार देशों ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की सामान्य बहस के अंत में विदेश मंत्रियों की वार्षिक बैठकों के साथ एक नियमित अनौपचारिक राजनयिक समन्वय शुरू किया।
  • औपचारिक व्यवस्था: वर्ष 2006 में ब्रिक विदेश मंत्रियों की पहली बैठक के दौरान समूह को औपचारिक रूप दिया गया था।
    • पहला BRIC शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रूस के येकतेरिनबर्ग में हुआ और इसमें वैश्विक वित्तीय व्यवस्था में सुधार जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई।
    • दिसंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को BRIC में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया गया और इसे BRICS कहा जाने लगा। 
    • मार्च 2011 में दक्षिण अफ्रीका ने पहली बार चीन के सान्या में तीसरे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लिया।
  • महत्त्वपूर्ण पहल: वर्ष 2014 में ब्राज़ील के फोर्टालेजा में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान BRICS नेताओं ने न्यू डेवलपमेंट बैंक (मुख्यालय-शंघाई, चीन) की स्थापना के लिये समझौते पर हस्ताक्षर किये। 
    • ब्रिक्स राष्ट्रों ने वर्ष 2014 में छठे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में फोर्टालेजा घोषणा के दौरान ब्रिक्स आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था (CRA) बनाने पर भी सहमति जताई।

ब्रिक्स का महत्त्व:

  • पाँच बड़े राष्ट्र: ब्रिक्स का महत्त्व इस तथ्य में परिलक्षित हो सकता है कि यह निम्नलिखित का प्रतिनिधित्व करता है:
    • दुनिया की आबादी का 42%।
    • भूमि क्षेत्र का 30%।
    • वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 24%।
    • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का 16%।
  • उत्तर और दक्षिण के बीच समन्वयकर्त्ता: इस समूह ने ग्लोबल नॉर्थ और ग्लोबल साउथ के बीच एक सेतु के रूप में काम करने का प्रयास किया।
  • सामान्य वैश्विक परिप्रेक्ष्य: ब्रिक्स ने बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार का आह्वान किया है, ताकि वे विश्व अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों और उभरते बाज़ारों की बढ़ती केंद्रीय भूमिका को प्रतिबिंबित कर सकें।
  • विकास सहयोग: ब्रिक्स ने कई वैश्विक एवं क्षेत्रीय मुद्दों पर एक सामान्य दृष्टिकोण विकसित किया है; जिसमें न्यू डेवलपमेंट बैंक (NDB) की स्थापना; आकस्मिक रिज़र्व व्यवस्था के रूप में एक वित्तीय स्थिरता प्रणाली; और एक वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास वर्चुअल सेंटर स्थापित करना आदि शामिल हैं।

भारत के लिये ब्रिक्स का महत्त्व: 

  • भू-राजनीति: वर्तमान भू-राजनीति ने भारत के लिये अमेरिका और रूस-चीन ध्रुवों के बीच अपने रणनीतिक हितों को संतुलित करने हेतु एक मध्य मार्ग बनाना मुश्किल कर दिया है।
    • ऐसे में ब्रिक्स प्लेटफाॅर्म भारत को रूस-चीन ध्रुव को संतुलित करने का अवसर प्रदान करता है।
  • वैश्विक आर्थिक व्यवस्था: ब्रिक्स देशों ने अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय एवं मौद्रिक प्रणाली में सुधार के एक साझा उद्देश्य का आह्वान किया है, जिसमें एक अधिक न्यायपूर्ण व संतुलित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की तीव्र इच्छा भी शामिल थी।
    • इसके लिये ब्रिक्स समुदाय वैश्विक आर्थिक नीतियों को आकार देने और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देने में G20 में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • आतंकवाद: ब्रिक्स भारत को आतंकवाद के खिलाफ अपने प्रयासों को तेज़ करने के लिये एक प्लेटफाॅर्म भी प्रदान करता है।
  • वैश्विक समूह: भारत सक्रिय रूप से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) और परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (NSG) की सदस्यता हेतु लगातार प्रयास कर रहा है।
    • ऐसे लक्ष्यों को हासिल करने में चीन सबसे बड़ी बाधा है।
    • अतः ब्रिक्स चीन के साथ सक्रिय रूप से जुड़ने और आपसी विवादों को सुलझाने का अवसर प्रदान करता है। यह अन्य भागीदार देशों का समर्थन हासिल करने में भी मदद करता है।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQs), आईएएस

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. APEC द्वारा न्यू डेवलपमेंट बैंक की स्थापना की गई है।
  2. न्यू डेवलपमेंट बैंक का मुख्यालय शंघाई में है।

उपयुक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों 
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न. हाल ही में समाचारों में आई 'फोर्टालेजा उद्घोषणा' (फोर्टालेजा डिक्लरेशन)' निम्नलिखित में से किससे संबंधित है?

(a) ASEAN
(b) BRICS
(c) OECD
(d) WTO

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

मालाबार विद्रोह

प्रिलिम्स के लिये:

मालाबार विद्रोह, वरियमकुन्नाथु कुन्हाहमद हाजी, महात्मा गांधी, असहयोग आंदोलन, टीपू सुल्तान।

मेन्स के लिये:

मालाबार विद्रोह, आधुनिक भारतीय इतिहास, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद (ICHR) ने वर्ष 1921 के मालाबार विद्रोह (मोपला विद्रोह) के शहीदों को भारत के स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से हटाने की सिफारिश पर अपना निर्णय टाल दिया है।

  • सिफारिश में वरियमकुन्नाथु कुन्हाहमद हाजी और अली मुसलियार के नाम भी शामिल थे।

भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद:

  • परिचय:
    • यह एक स्वायत्त संगठन है, जिसकी स्थापना वर्ष 1972 में सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860 के तहत की गई थी।
    • यह शिक्षा मंत्रालय के अधीन है।
  • उद्देश्य:
    • विचारों के आदान-प्रदान हेतु इतिहासकारों को एक साथ लाना।
    • इतिहास के वस्तुपरक एवं वैज्ञानिक लेखन को राष्ट्रीय दिशा देना।
    • इतिहास में अनुसंधान को बढ़ावा देना और इसका समन्वय करना तथा इसका प्रसार सुनिश्चित करना।
    • परिषद ऐतिहासिक शोध हेतु अनुदान, सहायता और फैलोशिप भी प्रदान करता है।

पृष्ठभूमि

  • सोलहवीं शताब्दी में जब पुर्तगाली व्यापारी मालाबार तट पर पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि मप्पिला एक व्यापारिक समुदाय है, जो शहरी केंद्रों में केंद्रित है और स्थानीय हिंदू आबादी से काफी अलग है।
  • हालाँकि पुर्तगाली वाणिज्यिक शक्ति में वृद्धि के साथ मप्पिला समुदाय ने खुद को एक प्रतियोगी पाया और नए आर्थिक अवसरों की तलाश में तेज़ी से देश के आंतरिक भागों की ओर आगे बढ़ना शुरू कर दिया।
  • मप्पिलाज़ के स्थानांतरण से स्थानीय हिंदू आबादी और पुर्तगालियों के बीच धार्मिक पहचान के लिये टकराव उत्पन्न हुआ।

मोपला/मप्पिला:

  • मप्पिला नाम मलयाली भाषी मुसलमानों को दिया गया है जो उत्तरी केरल के मालाबार तट पर निवास करते हैं।
  • वर्ष 1921 तक मोपला ने मालाबार में सबसे बड़े और सबसे तेज़ी से बढ़ते समुदाय का गठन किया। मालाबार की एक मिलियन की कुल आबादी में मोपला 32% के साथ दक्षिण मालाबार क्षेत्र में केंद्रित थे।

मोपला विद्रोह:

  • परिचय:
    • मुस्लिम धर्मगुरुओं के उग्र भाषणों और ब्रिटिश विरोधी भावनाओं से प्रेरित होकर मप्पिलाज़ ने एक हिंसक विद्रोह शुरू किया। साथ ही कई हिंसक घटनाओं की सूचना दी गई तथा ब्रिटिश एवं हिंदू ज़मींदारों दोनों के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत की गई थी।
    • कुछ लोग इसे धार्मिक कट्टरता का मामला बताते हैं, वहीं कुछ अन्य लोग इसे ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ संघर्ष के उदाहरण के रूप में देखते हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो मालाबार विद्रोह को ज़मींदारों की अनुचित प्रथाओं के खिलाफ एक किसान विद्रोह मानते हैं। .
    • जबकि इतिहासकार इस मामले पर बहस जारी रखते हैं, इस प्रकरण पर व्यापक सहमति से पता चलता है कि यह राजनीतिक शक्ति के खिलाफ संघर्ष के रूप में शुरू हुआ था जिसने बाद में सांप्रदायिक रंग ले लिया।
      • अधिकांश ज़मींदार नंबूदिरी ब्राह्मण थे, जबकि अधिकांश काश्तकार मापिल्ला मुसलमान थे।
      • दंगों में 10,000 से अधिक हिंदुओं की सामूहिक हत्याएँ, महिलाओं के साथ बलात्कार, ज़बरन धर्म परिवर्तन, लगभग 300 मंदिरों का विध्वंस या उन्हें क्षति पहुँचाई गई, करोड़ों रुपए की संपत्ति की लूट और आगजनी तथा हिंदुओं के घरों को जला दिया गया।
  • समर्थन:
    • प्रारंभिक चरणों में आंदोलन को महात्मा गांधी और अन्य भारतीय राष्ट्रवादी नेताओं का समर्थन प्राप्त था लेकिन जैसे ही यह हिंसक हो गया उन्होंने खुद को इससे दूर कर लिया।
  • पतन:
    • वर्ष 1921 के अंत तक अंग्रेज़ों ने विद्रोह को कुचल दिया था, जिन्होंने दंगा रोकने के लिये एक विशेष बटालियन, मालाबार स्पेशल फोर्स का गठन किया था।
  • वैगन ट्रैज़डी (Wagon Tragedy)::
    • नवंबर 1921 में 67 मोपला कैदी उस समय मारे गए थे, जब उन्हें तिरूर से पोदनूर की केंद्रीय जेल में एक बंद माल डिब्बे में ले जाया जा रहा था और दम घुटने से इनकी मौत हो गई। इस घटना को वैगन ट्रैज़डी कहा जाता है।

कारण:

  • असहयोग और खिलाफत आंदोलन:
    • विद्रोह का ट्रिगर का कारण 1920 में कॉन्ग्रेस द्वारा खिलाफत आंदोलन के साथ शुरू किया गया असहयोग आंदोलन था।
    • इन आंदोलनों से प्रेरित ब्रिटिश विरोधी भावना ने मुस्लिम मप्पिलाज़ को प्रभावित किया।
  • नए काश्तकार कानून:
    • 1799 में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध में टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद मालाबार मद्रास प्रेसीडेंसी के हिस्से के रूप में ब्रिटिश अधिकार में आ गया था।
    • अंग्रेज़ों ने नए काश्तकारी कानून पेश किये थे, जो ज़मींदारों के पक्ष में थे और किसानों के लिये पहले की तुलना में कहीं अधिक शोषणकारी व्यवस्था थी।
    • नए कानूनों ने किसानों को भूमि के सभी गारंटीकृत अधिकारों से वंचित कर उन्हें भूमिहीन बना दिया।

स्रोत: द हिंदू


आंतरिक सुरक्षा

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल सुधार

प्रिलिम्स के लिये:

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPFs), असम राइफल्स (AR), सीमा सुरक्षा बल (BSF), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF), केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), भारत तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के प्रकार, राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), सशस्त्र सीमा बल (SSB)

मेन्स के लिये:

सीएपीएफ, विभिन्न सुरक्षा बलों और एजेंसियों एवं उनके जनादेश के संबंध में प्रमुख कार्य चुनौतियाँ और समाधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार ने पिछले 10 वर्षों में अर्द्धसैनिक बलों के कर्मियों की खुदकुशी के बारे में लोकसभा को जानकारी दी है

  • इसके अलावा वर्ष 2020 और 2021 में कोविड-19 महामारी के दौरान केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) के कई जवानों ने आत्महत्या की है
  • आत्महत्या की घटनाओं के पीछे घरेलू समस्याएँ, बीमारी और वित्तीय समस्याएँ जैसे कुछ अन्य कारक हैं।

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल:

CAPFs के प्रमुख कार्य:

  • सीमा सुरक्षा: भारत की सीमाओं की सुरक्षा करना और सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देना। 
    • सीमा पार अपराधों, तस्करी, अनधिकृत प्रवेश या भारत के क्षेत्र से बाहर निकलने तथा किसी भी अन्य अवैध गतिविधि को रोकने हेतु कार्य करती है।
  • औद्योगिक सुरक्षा: संवेदनशील प्रतिष्ठानों, सुरक्षा ज़ोखिम वाले व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करना।
  • अन्य कार्य: काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन, एंटी नक्सल ऑपरेशन, आंतरिक सुरक्षा कार्य, वीआईपी सुरक्षा, लीड इंटेलिजेंस एजेंसी, विदेश में राजनयिक मिशनों की सुरक्षा, संयुक्त राष्ट्र (UN) शांति अभियान, आपदा प्रबंधन, संयुक्त राष्ट्र पुलिस मिशनों के लिये नागरिक कार्रवाई नोडल एजेंसी आदि।

केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल से संबद्ध मुद्दे:

  • कार्य करने की स्थिति: वर्ष 2017 में गृह मामलों की स्थायी समिति ने सीमा सुरक्षा बल के कर्मियों की कार्य स्थितियों पर चिंता व्यक्त की।
    • समिति ने कहा कि उन्हें दिन में 16-18 घंटे कार्य करना पड़ता है तथा आराम या नींद के लिये बहुत कम समय मिलता है।
    • समिति के अनुसार, सीमा पर उपलब्ध कराई जाने वाली चिकित्सा सुविधाओं से भी कार्मिक संतुष्ट नहीं हैं।
    • इसके अलावा स्थायी समिति ने देखा कि वेतन और भत्ते के मामले में भी सीएपीएफ के कर्मियों को सशस्त्र बलों के समान वेतन और भत्ते प्राप्त नहीं होते हैं।
  • आधुनिकीकरण में बाधा: MHA, CAPFs को आधुनिक हथियार, गोला-बारूद और वाहन उपलब्ध कराने के लिये प्रयासरत है। इस संबंध में सुरक्षा को लेकर वर्ष 2012-17 की अवधि के लिये आधुनिकीकरण योजना- II को कैबिनेट समिति द्वारा अनुमोदित किया गया था।
    • योजना का उद्देश्य हथियारों, कपड़ों और उपकरणों के क्षेत्र में आधुनिकीकरण हेतु सीएपीएफ को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना है।
    • हालाँकि समिति ने पाया कि योजना के तहत खरीद प्रक्रिया बोझिल और समय लेने वाली थी।  
  • राज्यों की ज़िम्मेदारियाँ: केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) पर राज्यों की भारी निर्भरता है, यहांँ तक ​​कि रोज़मर्रा की कानून और व्यवस्था के मुद्दों के लिये भी राज्य सरकारें सीएपीएफ पर निर्भर हैं।
    • यह इन बलों की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को बाधित करने के अलावा उग्रवाद-रोधी और सीमा प्रहरी कार्यप्रणाली को भी प्रभावित करता है।
  • कैडर प्रबंधन का मुद्दा: सीएपीएफ की सभी सातों श्रणियों में प्रत्येक के पास अधिकारियों का अपना कैडर सिस्टम है लेकिन वे सभी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के नेतृत्व में संचालित होते हैं।
    • यह सीएपीएफ के अधिकारियों को हतोत्साहित करता है तथा इन बलों की प्रभावशीलता को प्रभावित करता है।
    • इसके अलावा पदोन्नति में रुकावट और कैडर समीक्षा की कमी के कारण सीएपीएफ के जवानों में निराशा व्याप्त होती है।
  • फ्रेट्रिसाइड के बढ़ते मामले: वर्ष 2019 के बाद से बलों में फ्रेट्रिसाइड (किसी के भाई या बहन की हत्या) की 25 से अधिक घटनाएँ हुई हैं।

आगे की राह

  • CAPF का आधुनिकीकरण: MHA को यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि खरीद में आने वाली अड़चनों की पहचान कर सुधारात्मक कार्रवाई की जानी चाहिये।
    • इसके अलावा सरकार को सार्वजनिक या निजी क्षेत्र के आयुध कारखानों और निर्माताओं के साथ बातचीत में शामिल होना चाहिये ताकि उपकरण एवं अन्य बुनियादी ढांँचे की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
    • नवीनतम उपकरणों की खरीद करते समय प्रशिक्षण आवश्यकताओं का भी ध्यान रखा जाना चाहिये और यदि आवश्यक हो तो उन्हें खरीद समझौते में ही शामिल किया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा हाइब्रिड हत्यारों के विकास को देखते हुए प्रशिक्षण सामग्री में पारंपरिकता के साथ-साथ नवीनतम तकनीकों जैसे कि आईसीटी और साइबर सुरक्षा का मिश्रण किया जाना चाहिये।
  • राज्यों की क्षमता में वृद्धि: राज्यों को अपने स्वयं के सिस्टम विकसित करने चाहिये तथा पर्याप्त प्रशिक्षण और उपकरण प्रदान कर अपने पुलिस बलों की शक्ति को बढ़ाना चाहिये।
    • राज्य सरकारों को अपने बालों के क्षमता निर्माण के लिये आवश्यक वित्तीय सहायता और अन्य मदद प्रदान कर केंद्र सरकार के प्रयासों का पूरक होना चाहिये।
  • कैडर नीति में सुधार के उपाय: कैडर नीति में असंतोष का हवाला देते हुए जोशी समिति द्वारा सिफारिश की गई है कि शीर्ष पदों को सीएपीएफ से संबंधित कैडर से भरा जाना चाहिये।
    • इसके अलावा समिति ने सिफारिश की है कि सभी CAPFs की कैडर समीक्षा एक निर्धारित समय सीमा के अंदर की जानी चाहिये।
    • इन सिफारिशों को जल्द-से-जल्द लागू करने के लिये यह उचित समय है।
  • कार्मिक सुधार: तनाव प्रबंधन पर नियमित रूप से कार्यशालाएंँ आयोजित की जानी चाहिये तथा योग और ध्यान को CAPFs कर्मियों के दैनिक अभ्यास का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
    • इसके अलावा संबंधित बल की तैनाती के नज़दीक ही उनके लिये आवास प्रावधान के साथ ही कर्मियों को अपने परिवार के सदस्यों से मिलने की भी सुविधा होनी चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय समाज

स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2022 रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व जनसंख्या 2022 रिपोर्ट की स्थिति, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के निष्कर्ष।

मेन्स के लिये:

स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2022 रिपोर्ट, महिलाओं से संबंधित मुद्दे, जनसंख्या और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की फ्लैगशिप स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन 2022 रिपोर्ट 2022 "सीइंग द अनसीन: द केस फॉर एक्शन इन नेग्लेक्टेड क्राइसिस ऑफ अनइंटेन्डेंट प्रेग्नेंसी" शीर्षक से लॉन्च की गई।

रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:

  • बढ़ता अनपेक्षित गर्भधारण:
    • वर्ष 2015 से 2019 के बीच हर वर्ष वैश्विक स्तर पर लगभग 121 मिलियन अनपेक्षित गर्भधारण हुए।
  • गर्भनिरोधक के सुरक्षित, आधुनिक तरीकों की कमी:
    • विश्व स्तर पर अनुमानित 257 मिलियन महिलाएँ जो गर्भावस्था से बचना चाहती हैं, गर्भनिरोधक के सुरक्षित, आधुनिक तरीकों का उपयोग नहीं कर रही हैं।
  • बढ़ते बलात्कार से संबंधित गर्भधारण:
    • लगभग एक-चौथाई महिलाओं को अनैच्छिक यौन क्रियाओं के लिये मजबूर किया जाता है।
      • यौन क्रिया के दौरान हिंसा का अनुभव करने वाली महिलाओं में गर्भनिरोधक का उपयोग 53% कम है।
      • सहमति से यौन संबंध से गर्भधारण की तुलना में बलात्कार से संबंधित गर्भधारण समान रूप से या अधिक होने की संभावना है।
  • गर्भपात में वृद्धि:
    • 60% से अधिक अनपेक्षित गर्भधारण और सभी गर्भधारण का लगभग 30% गर्भपात द्वारा समाप्त होता है।
      • विश्व स्तर पर किये जाने वाले सभी गर्भपात में से 45% असुरक्षित हैं।
      • विकासशील देशों में अकेले इलाज की लागत में असुरक्षित गर्भपात पर प्रतिवर्ष अनुमानित 553 मिलियन अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है।
  • मानवीय आपात स्थितियों का प्रभाव:
    • मानवीय आपात स्थितियों जैसे- यूक्रेन में जारी युद्ध की स्थिति के कारण महिलाओं द्वारा  गर्भनिरोधक उपायों तक पहुंँच बाधित हो रही हैं और/या महिलाओं द्वारा यौन हिंसा का अनुभव किया जा रहा है।
      • कुछ अध्ययनों से पता चला है कि 20% से अधिक शरणार्थी महिलाओं और लड़कियों को यौन हिंसा का सामना करना पड़ सकता है।
    • कोविड-19 महामारी के पहले 12 महीनों में गर्भनिरोधक आपूर्ति और सेवाओं में अनुमानित व्यवधान औसतन 3.6 माह तक चला, जिसकी वजह से महिलाओं द्वारा 1.4 मिलियन अनपेक्षित गर्भधारण किये गए।

अनपेक्षित गर्भधारण को बढ़ावा देने वाले कारक:

  • यौन और प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल एवं जानकारी का अभाव।
  • गर्भनिरोधक विकल्प जो महिलाओं के शरीर या परिस्थितियों के अनुकूल नहीं होते हैं।
  • महिलाओं की अपनी प्रजनन क्षमता और शरीर को नियंत्रित करने वाले हानिकारक मानदंड तथा कुरीतियाँ।
  • यौन हिंसा और ऐच्छिक प्रजनन।
  • स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पूर्वधारणा।
  • गरीबी और अवरुद्ध आर्थिक विकास।
  • लिंग असमानता।

अनपेक्षित गर्भधारण से संबंधित समस्याएंँ:

  • स्वास्थ्य को खतरा:
    • अनपेक्षित गर्भधारण कुछ स्वास्थ्य जोखिम उत्पन्न कर सकता है और माँ तथा बच्चे दोनों के लिये प्रतिकूल परिणामों से जुड़ा हो सकता है।
      • उदाहरण के लिये एक अनियोजित गर्भावस्था वाली महिला को प्रसव पूर्व देखभाल सुविधा प्राप्त होने की संभावना कम होती है और यह जीवन में प्रसवोत्तर अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं जैसे जोखिम का कारण हो सकता है।
  • अपरिपक्व जन्म की उच्च दर:
    • अनैच्छिक गर्भधारण को समय से पहले जन्म की उच्च दर तथा जन्म के समय कम वज़न के साथ जोड़कर देखा गया है, हालाँकि कुछ अध्ययनों में गर्भावस्था के इरादे से जनसांख्यिकीय कारकों को अलग करने की कठिनाई पर ध्यान दिया गया है।
  •  भविष्य में बच्चों पर प्रभाव:
    • एक नियोजित गर्भावस्था के परिणामस्वरूप पैदा हुए बच्चों की तुलना में अनियोजित गर्भावस्था के परिणामस्वरूप पैदा हुए बच्चों की स्कूली उपलब्धि, सामाजिक, भावनात्मक विकास तथा बाद में श्रम बाज़ार में सफलता के प्रदर्शन में कमी की संभावना अधिक हो सकती है।
      • अनैच्छिक गर्भधारण बाल दुर्व्यवहार का पूर्वानुमान लगाने और समझने में एक महत्त्वपूर्ण जोखिम कारक हो सकता है।
    • एक अनियोजित गर्भावस्था शैक्षिक लक्ष्यों को भी बाधित कर सकती है तथा भविष्य की कार्य क्षमता एवं पारिवारिक वित्तीय कल्याण को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है।

सुझाव:

  • निर्णय लेने वालों और स्वास्थ्य प्रणालियों को गर्भनिरोधक की पहुँच, स्वीकार्यता, गुणवत्ता एवं विविधता में सुधार करके तथा गुणवत्तापूर्ण यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य देखभाल की जानकारी में विस्तार करके अनैच्क्षिक गर्भधारण की रोकथाम को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
  • नीति निर्माताओं, समुदाय के नेताओं तथा सभी व्यक्तियों, महिलाओं और लड़कियों को सेक्स एवं गर्भनिरोधक व मातृत्व के बारे में सकारात्मक निर्णय लेने के लिये सशक्त बनाना चाहिये।
  • महिलाओं और लड़कियों के मूल्यों को पहचानने वाले समाज को बढ़ावा देना चाहिये।
    • यदि वे ऐसा करते हैं, तो महिलाएँ और लड़कियाँ समाज में पूरी तरह से योगदान करने में सक्षम होंगी तथा उनके पास बच्चे पैदा करने या न करने के लिये यह मौलिक विकल्प होंगे।

‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ क्या है?

  • परिचय:
  • स्थापना: 
    • इसे वर्ष 1967 में ट्रस्ट फंड के रूप में स्थापित किया गया था और इसका परिचालन वर्ष 1969 में शुरू हुआ।
    • इसे वर्ष 1987 में आधिकारिक तौर पर ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ नाम दिया गया, लेकिन इसका संक्षिप्त नाम UNFPA (जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष) को भी बरकरार रखा गया।
  • उद्देश्य:
    • UNFPA प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य संबंधी सतत् विकास लक्ष्य-3, शिक्षा संबंधी लक्ष्य-4 और लिंग समानता संबंधी लक्ष्य-5 के संबंध में कार्य करता है।
  • वित्तपोषण:
    • UNFPA संयुक्त राष्ट्र के बजट द्वारा समर्थित नहीं है, इसके बजाय यह पूरी तरह से दाता सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्र और आम लोगों के स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है।
  • रिपोर्ट:
    • ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन’ रिपोर्ट

स्रोत: ‘संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष’ वेबसाइट


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