भारतीय समाज
विश्व जनसंख्या रिपोर्ट- 2021: यूएनएफपीए
- 17 Apr 2021
- 10 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (United Nations Population Fund- UNFPA) ने ‘माय बॉडी इज़ माय ओन’ (My Body is My Own) शीर्षक से विश्व जनसंख्या रिपोर्ट (World Population Report)- 2021 जारी की।
- यह पहली बार है जब संयुक्त राष्ट्र (United Nation) की रिपोर्ट ने शारीरिक स्वायत्तता पर ध्यान केंद्रित किया है, जिसे हिंसा के डर के बिना आपके शरीर के विषय में या किसी और के लिये निर्णय लेने की शक्ति तथा एजेंसी के रूप में परिभाषित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
दैहिक स्वायत्तता का उल्लंघन:
- दैहिक स्वायत्तता के सिद्धांत के विषय में:
- इस सिद्धांत के अनुसार बच्चों सहित प्रत्येक मनुष्य को अपने शरीर पर स्वतंत्र आत्मनिर्णय लेने का अधिकार है। यह एक असंबद्ध शारीरिक घुसपैठ को मानवाधिकार का उल्लंघन मानता है।
- हालाँकि इस सिद्धांत को पारंपरिक रूप से यातना, अमानवीय उपचार और जबरन नज़रबंद करने जैसी प्रथाओं के संबंध में लाया गया है। दैहिक अखंडता में मानव अधिकारों के उल्लंघन की एक विस्तृत शृंखला पर लागू होने की क्षमता है जो बच्चों के नागरिक अधिकारों को भी प्रभावित करती है।
- इसके दायरे में विकलांगों के आत्मनिर्णय का अधिकार, हिंसा से मुक्ति और संतोषजनक यौन जीवन का आनंद शामिल हैं।
- कुछ उदाहरण:
- बाल विवाह।
- महिला जननांग विकृति।
- गर्भ निरोधक विकल्पों का अभाव, अनचाहे गर्भधारण को बढ़ावा देता है।
- घर और भोजन के बदले अवांछित सेक्स।
- असमान यौन झुकाव और लिंग पहचान वाले व्यक्ति हमलों तथा अपमान से डरते हैं।
वैश्विक परिदृश्य:
- स्वयं के शरीर के विषय में निर्णय लेने का अधिकार:
- 57 विकासशील देशों की लगभग आधी महिलाओं को अपने शरीर के विषय में निर्णय लेने का अधिकार नहीं है, जिसमें गर्भनिरोधक का उपयोग करना, स्वास्थ्य देखभाल की माँग करना या यहाँ तक कि अपनी कामवासना के संबंध में स्वयं निर्णय नहीं ले पाना शामिल है।
- केवल 75% देश कानूनी रूप से अपने यहाँ गर्भनिरोधक के लिये पूर्ण और समान पहुँच सुनिश्चित करते हैं।
- कोविड का प्रभाव:
- महिलाओं को पूरे विश्व में शारीरिक स्वायत्तता के मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया जाता है, कोविड-19 महामारी ने इसे और बढ़ा दिया है।
भारतीय परिदृश्य:
- भारत में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 (National Family Health Survey-4) वर्ष 2015-2016 के अनुसार:
- स्वास्थ्य देखभाल:
- वर्तमान में केवल 12% विवाहित महिलाएँ (15-49 वर्ष की आयु) ही स्वतंत्र रूप से अपनी स्वास्थ्य सेवा के विषय में निर्णय ले पाती हैं।
- 63% विवाहित महिलाएँ अपने जीवनसाथी के साथ परामर्श कर निर्णय लेती हैं।
- 23% महिलाओं के जीवनसाथी, मुख्य रूप से उनकी स्वास्थ्य-देखभाल के विषय में निर्णय लेते हैं।
- गर्भ निरोधक:
- वर्तमान में केवल 8% विवाहित महिलाएँ (15-49 वर्ष) ही स्वतंत्र रूप से गर्भनिरोधक के उपयोग पर निर्णय ले पाती हैं।
- 83% महिलाएँ अपने पति के साथ संयुक्त रूप से निर्णय लेती हैं। महिलाओं को गर्भ निरोधक के उपयोग के विषय में दी गई जानकारी भी सीमित है।
- गर्भनिरोधक का उपयोग करने वाली केवल 47% महिलाओं को इस विधि के दुष्प्रभावों के विषय में जानकारी दी गई है।
- 54% महिलाओं को अन्य गर्भ निरोधकों के विषय में जानकारी प्रदान की गई।
महिलाओं से संबंधित NFHS-5 के कुछ आँकड़े:
- गर्भनिरोधक:
- अंततः गर्भ निरोधक प्रसार दर (Contraceptive Prevalence Rate) अधिकांश राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में बढ़ा है और यह हिमाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल (74%) में सबसे अधिक है।
- घरेलू हिंसा:
- इसमें आमतौर पर अधिकांश राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में गिरावट आई है।
- हालाँकि इसमें पाँच राज्यों (सिक्किम, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, असम और कर्नाटक) में वृद्धि देखी गई है।
- स्वास्थ्य, प्रमुख घरेलू खरीद और आने वाले रिश्तेदारों से संबंधित निर्णय:
- बिहार में NFHS-4 (2015-2016) के 75.2% की तुलना में NFHS-5 (2019-2020) में 86.5% की अधिकतम वृद्धि दर्ज की गई है।
- नगालैंड में लगभग 99% और मिज़ोरम में 98.8% महिलाएँ घरेलू निर्णय लेने में भाग लेती हैं।
- निर्णय लेने में महिलाओं की भागीदारी में 7-5% की गिरावट के साथ लद्दाख और सिक्किम में सबसे अधिक कमी दर्ज की गई है।
सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय:
- न्यायमूर्ति के. एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ 2017:
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक महिला के प्रजनन अधिकारों में गर्भ धारण करने, बच्चे को जन्म देने और बाद में बच्चे को पालने का अधिकार शामिल है तथा यह अधिकार महिलाओं की निजता, उनके सम्मान एवं दैहिक अखंडता के अधिकार का हिस्सा है।
- इस निर्णय ने गर्भपात और सरोगेसी के लिये संभावित संवैधानिक चुनौतियों को हल करने हेतु आवश्यक प्रोत्साहन दिया।
- चिकित्सकीय समापन (संशोधन) विधेयक [Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill], 2021 गर्भावस्था की अवधि को 20 सप्ताह से 24 सप्ताह तक बढ़ाने का प्रावधान करता है, जिससे महिलाओं के लिये सुरक्षित और कानूनी रूप से अवांछित गर्भावस्था को समाप्त करना आसान हो जाता है।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष के विषय में:
- यह संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) का एक सहायक अंग है जो इसके यौन तथा प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी के रूप में काम करता है।
- UNFPA का जनादेश संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (Economic and Social Council- ECOSOC) द्वारा स्थापित किया गया है।
स्थापना:
- इसे वर्ष 1967 में ट्रस्ट फंड के रूप में स्थापित किया गया था, इसका परिचालन वर्ष 1969 में शुरू हुआ।
- इसे वर्ष 1987 में आधिकारिक तौर पर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष नाम दिया गया, लेकिन इसका संक्षिप्त नाम UNFPA (जनसंख्या गतिविधियों के लिये संयुक्त राष्ट्र कोष) को भी बरकरार रखा गया।
उद्देश्य:
- UNFPA प्रत्यक्ष रूप से स्वास्थ्य पर सतत् विकास लक्ष्य नंबर 3, शिक्षा पर लक्ष्य 4 और लिंग समानता पर लक्ष्य 5 के संबंध में कार्य करता है।
निधि:
- UNFPA पूरी तरह से अनुदान देने वाली सरकारों, अंतर-सरकारी संगठनों, निजी क्षेत्रों, संस्थानों और वैयक्तिक स्वैच्छिक योगदान द्वारा समर्थित है, न कि संयुक्त राष्ट्र के नियमित बजट द्वारा।
आगे की राह
- वास्तविक निरंतर प्रगति काफी हद तक लैंगिक असमानता और सभी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने तथा उन्हें बनाए रखने वाली सामाजिक एवं आर्थिक संरचनाओं को बदलने पर निर्भर करती है।
- इसमें पुरुषों को सहयोगी बनना होगा और उन लोगों को अपने विशेषाधिकार तथा प्रभुत्व को छोड़ना होगा जो अधिक दैहिक स्वायत्तता का उपयोग करते हैं।
- UNFPA के लक्ष्यों जैसे- गर्भ निरोधक, मातृ मृत्यु, लिंग आधारित हिंसा आदि अन्य हानिकारक प्रथाओं को वर्ष 2030 तक रोकने के लिये दैहिक स्वायत्तता को समझना आवश्यक है।