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सामाजिक न्याय
मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु-विज्ञान संस्थान, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (NMHP), मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम 2017, किरण हेल्पलाइन, मानसिक स्वास्थ्य और सामान्यता वृद्धि प्रणाली (MANAS), गरीबी, आयुष्मान भारत। मेन्स के लिये:भारत में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की स्थिति, मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दे, भारत सरकार की मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित पहल। |
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation- WHO) के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में आत्महत्या दर 12.9/1,00,000 थी, जो क्षेत्रीय औसत 10.2 और वैश्विक औसत 9.0 से अधिक थी।
- भारत में 15 से 29 वर्ष के बीच के लोगों की मृत्यु दर का मुख्य कारण आत्महत्या है। हालाँकि आत्महत्या के कारण खोया गया प्रत्येक जीवन बहुत अधिक कीमती है, लेकिन यह मुश्किल से ही देश के मानसिक स्वास्थ्य विशेष रूप से युवा वयस्कों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उजागर करता है। महिलाएँ इस समस्या से आमतौर पर अधिक प्रभावित होती हैं।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य सेवा की स्थिति:
- परिचय:
- मानसिक स्वास्थ्य में भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल है।
- यह अनुभूति, धारणा और व्यवहार को प्रभावित करता है। साथ ही यह भी निर्धारित करता है कि कोई व्यक्ति तनाव, पारस्परिक संबंधों और निर्णय लेने की स्थिति का सामना कैसे करता है।
- भारत में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और स्नायु-विज्ञान संस्थान (National Institute of Mental Health and Neuro-Sciences) के आँकड़ों के अनुसार, कई कारणों से 80% से अधिक लोगों की मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच नहीं है।
- मानसिक स्वास्थ्य में भावनात्मक, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक कल्याण शामिल है।
- मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित भारत सरकार की पहल:
- राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (National Mental Health Program- NMHP): मानसिक विकारों की संख्या में वृद्धि तथा मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की कमी को देखते हुए सरकार द्वारा वर्ष 1982 में NMHP को अपनाया गया था।
- मानसिक स्वास्थ्य अधिनियम: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के एक भाग के रूप में प्रत्येक प्रभावित व्यक्ति के लिये सरकारी संस्थानों में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और उपचार की सुविधा एवं पहुँच उपलब्ध है।
- किरण हेल्पलाइन: वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन 'किरण' शुरू की।
- मानस मोबाइल एप: भारत सरकार ने सभी आयु समूहों में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 2021 में मानस (मानसिक स्वास्थ्य और सामान्यता वृद्धि प्रणाली) लॉन्च किया।
- मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दे:
- सोशल मीडिया: गिने-चुने सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के साथ युवाओं में तनाव और मानसिक अस्वस्थता के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
- सोशल मीडिया वास्तविक दुनिया से परे है और यह सार्थक गतिविधियों में निवेश को कम करता है।
- इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रतिकूल सामाजिक तुलना के माध्यम से आत्मसम्मान में कमी लाता है।
- कोविड-19 महामारी: कोविड-19 महामारी के बाद से इस समस्या में और वृद्धि हुई है। लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2020 और 2021 के बीच केवल एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर इस महामारी के कारण अवसाद में 28% तथा चिंता संबंधी मामलों में 26% तक की वृद्धि हुई है।
- स्कूल बंद होने और सामाजिक अलगाव के अतिरिक्त भविष्य संबंधी अनिश्चितता, वित्तीय एवं रोज़गार का नुकसान, दुख, बच्चों की देखभाल का बढ़ता बोझ आदि सभी के कारण भी युवा आयु समूहों के बीच अवसाद तथा चिंता में वृद्धि देखी गई है।
- निर्धनता: मानसिक स्वास्थ्य का निर्धनता से करीबी रिश्ता होता है। गरीबी में रहने वाले लोगों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं की स्थिति का अनुभव होने का खतरा अधिक होता है।
- दूसरी ओर गंभीर मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों का सामना करने वाले लोगों को रोज़गार के नुकसान और स्वास्थ्य पर व्यय में वृद्धि के कारण गरीबी की ओर बढ़ने की अधिक संभावना है।
- मानसिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे की कमी: वर्तमान में मानसिक बीमारियों वाले केवल 20-30% लोगों को पर्याप्त उपचार मिल पाता है।
- इतने बड़े उपचार अंतराल का एक प्रमुख कारण संसाधनों की अपर्याप्तता है। सरकार के स्वास्थ्य बजट का 2% से भी कम मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के लिये उपलब्ध है।
- साथ ही आवश्यक दवाओं की सूची में WHO द्वारा निर्धारित मानसिक स्वास्थ्य दवाओं की सीमित संख्या ही शामिल है।
- सोशल मीडिया: गिने-चुने सोशल मीडिया के बढ़ते उपयोग के साथ युवाओं में तनाव और मानसिक अस्वस्थता के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
भारत में मानसिक स्वास्थ्य संवर्द्धन की पुनर्कल्पना:
हमारे लोगों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा, संवर्द्धन और देखभाल के लिये एक तत्काल और अच्छी तरह से संसाधन युक्त "संपूर्ण समाज" के दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह निम्नलिखित चार स्तंभों पर आधारित होना चाहिये:
- मानसिक स्वास्थ्य को कलंक न समझना: मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को कलंक मानना, जो रोगियों को समय पर इलाज कराने से रोकता है और उन्हें शर्मनाक, अलग-थलग एवं कमज़ोर महसूस कराता है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य को शामिल करना: तनाव को कम करने, स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने, उच्च जोखिम वाले समूहों की जाँच और पहचान करने एवं परामर्श सेवाओं जैसे मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को मज़बूत करने के लिये उन्हें मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का एक अभिन्न अंग बनाना।
- स्कूलों पर विशेष ध्यान देना होगा।
- इसके अलावा हमें उन समूहों पर विशेष ध्यान देना चाहिये जो मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं जैसे कि घरेलू या यौन हिंसा के शिकार, बेरोज़गार युवा, सीमांत किसान, सशस्त्र बलों के कर्मी तथा कठिन परिस्थितियों में कार्य करने वाले कर्मी।
- मेंटल हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर: मेंटल हेल्थ केयर और इलाज के लिये एक मज़बूत इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना। मानसिक स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे और मानव संसाधनों में अंतराल को दूर करने के लिये पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी।
- कियायती पहलुओं पर काम करना: मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सभी के लिये किफायती बनाया जाना चाहिये। वित्तीय सुरक्षा के बिना बेहतर कवरेज से असमान परिणाम उभरकर सामने आएंगे।
- आयुष्मान भारत सहित सभी सरकारी स्वास्थ्य गारंटी योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की व्यापक संभव सीमा को शामिल किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. जब तक हम अपने भीतर शांति प्राप्त नहीं करते, तब तक हम बाहरी दुनिया में कभी भी शांति प्राप्त नहीं कर सकते। (2021) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
चिन-कुकी-मिज़ो समूह द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ
प्रिलिम्स के लिये:भारत में शरणार्थी, वर्ष 1951 का शरणार्थी सम्मेलन, वर्ष 1946 का विदेशी अधिनियम, नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA), रोहिंग्या शरणार्थी, शरणार्थियों के लिये संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त। मेन्स के लिये:चिन-कुकी-मिज़ो समूह द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियाँ, शरणार्थी संकट, भारत की शरणार्थी नीति। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चिन-कुकी-मिज़ो समुदायों का प्रतिनिधित्त्व करने वाले ज़ो रीयूनिफिकेशन ऑर्गनाइज़ेशन (ZORO) ने बांग्लादेश के चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (CHT) में रहने वाले जातीय अल्पसंख्यकों के "उन्मूलन की नीति" को समाप्त करने में भारत से मदद की मांग की है।
- बांग्लादेश की सेना द्वारा रोहिंग्या मुस्लिम चरमपंथी समूह, अराकान आर्मी की मिलीभगत से एक कथित हमले की घटना के बाद नवंबर 2022 से मिज़ोरम के लॉन्गतलाई ज़िले में शरण लेने वाले चिन-कुकी-मिज़ो समूह से जुड़े लोगों की संख्या 300 से अधिक है।
बांग्लादेश में चिन-कुकी-मिज़ो समूह द्वारा सामना किये जाने वाले मुद्दे:
- बांग्लादेशी सेना द्वारा इन्हें खत्म करने की नीति के कारण चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स (CHT) में स्वदेशी कुकी-चिन जनजातियों के संवैधानिक और मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है।
- CHT दक्षिण-पूर्वी बांग्लादेश में 13,000 वर्ग किमी. का पहाड़ी और जंगली क्षेत्र है, जो भारत के मिज़ोरम एवं त्रिपुरा तथा म्याँमार के चिन व रोहिंग्याओं से बसे हुए रखाइन राज्य की सीमा से लगा हुआ है।
- ब्रिटिश पूर्व चटगाँव हिल ट्रैक्ट्स में स्वशासी सरदार और सरदारनियाँ थीं (Self-governing Chiefdoms and Chieftaincies)। इन समूहों की आबादी को या तो ख्यौंगथा के रूप में वर्गीकृत किया गया था, जो जनजातियाँ नदी के किनारे रहती हैं, या तोंगथा, जो पहाड़ियों के घने जंगलों में रहती हैं।
- ये जनजातियाँ हिंदू राजाओं और मुस्लिम नवाबों के नियंत्रण से बाहर रहीं, लेकिन वर्ष 1860 में अंग्रेज़ों द्वारा CHT पर कब्ज़े ने उन्हें बाहरी दबावों के प्रति संवेदनशील बना दिया।
- अंग्रेज़ों ने जनजातियों की पहचान, रीति-रिवाजों, संस्कृति, परंपरा एवं पैतृक भूमि की रक्षा के लिये CHT को विशेष संवैधानिक दर्जा दिया। हालाँकि प्रतिबंधात्मक कानूनों को वर्ष 1903 तक निरस्त कर दिया गया था ताकि मैदानी क्षेत्र के निवासियों को उच्च क्षेत्रों में प्रवेश मिल सके।
- स्थानीय लोगों की अपेक्षाओं के विपरीत CHT को वर्ष 1947 में पाकिस्तान में सम्मिलित कर दिया गया था जिससे सभी स्थानीय जनजातियों को जीवन के सभी पहलुओं में भेदभाव का सामना करना पड़ा।
- जबकि CHT की जनजातीय आबादी में भारी गिरावट आई है, बांग्लादेश सरकार ने पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर स्थानीय जनजातियों विशेष रूप से कुकी-चिन लोगों की पैतृक भूमि पर अतिक्रमण कर लिया।
उनकी मांगें:
- CHT की कुकी-चिन जनजातियाँ पहाड़ियों में बड़े पैमाने पर गैर-आदिवासी लोगों की आमद के कारण एक अलग राज्य की मांग कर रही हैं लेकिन बांग्लादेश सरकार ने अपने दमनकारी उपायों को जारी रखने का फैसला किया है।
- ज़ोरो (ZORO) ने भारत से कहा है कि वह अपने बांग्लादेशी समकक्ष को कुकी-चिन राष्ट्रीय सेना (KNA) के साथ संघर्ष विराम की घोषणा करने तथा CHT में कुकी-चिन लोगों के अधिकारों का दुरुपयोग बंद करने की सलाह दे।
- संगठन ने भारत से गृह मंत्रालय एवं सीमा सुरक्षा बल को यह निर्देश देने की भी अपील की कि बांग्लादेश से भागकर मिज़ोरम में अपनी "स्वजातियों" के बीच शरण लेने वाले कुकी-चिन लोगों को न भगाया जाए।
भारत की शरणार्थी नीति:
- शरणार्थियों की बढ़ती आमद के बावजूद भारत में शरणार्थियों की समस्या के समाधान के लिये विशिष्ट कानून का अभाव है।
- भारत वर्ष 1951 के शरणार्थी सम्मेलन और वर्ष 1967 के प्रोटोकॉल का पक्षधर नहीं है, जो शरणार्थी संरक्षण से संबंधित प्रमुख कानूनी दस्तावेज़ हैं।
- हालाँकि शरणार्थी संरक्षण के मुद्दे पर भारत का शानदार रिकॉर्ड रहा है। भारत में विदेशी लोगों और संस्कृति को आत्मसात करने की एक नैतिक परंपरा है।
- इसके अलावा भारत का संविधान मनुष्यों के जीवन, स्वतंत्रता और गरिमा का भी सम्मान करता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग बनाम अरुणाचल प्रदेश राज्य (1996) मामले में कहा कि “विदेशी नागरिकों सहित सभी नागरिक समानता के अधिकार और जीवन के अधिकार के हकदार हैं।”
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 21 में गैर-प्रत्यावर्तन के अधिकार को शामिल किया गया है।
- गैर-प्रत्यावर्तन अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत एक सिद्धांत है जो कहता है कि अपने देश में उत्पीड़न से भागने वाले व्यक्ति को स्वयं के देश लौटने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये।
भारत में शरणार्थियों की स्थिति:
- अपनी स्वतंत्रता के बाद से भारत ने पड़ोसी देशों के शरणार्थियों के विभिन्न समूहों को स्वीकार किया है, जिनमें शामिल हैं:
- 1947 में पाकिस्तान से शरणार्थियों का पलायन।
- तिब्बती शरणार्थी जो 1959 में पहुँचे।
- 1960 के दशक की शुरुआत में चकमा और हाजोंग वर्तमान बांग्लादेश से।
- 1965 और 1971 में अन्य बांग्लादेशी शरणार्थी।
- 1980 के दशक के श्रीलंकाई तमिल शरणार्थी।
- म्याँमार से रोहिंग्या शरणार्थी।
शरणार्थियों को नियंत्रित करने हेतु वर्तमान विधायी ढाँचा:
- 1946 का विदेशी अधिनियम: धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को अवैध विदेशी नागरिकों का पता लगाने, हिरासत में लेने और निर्वासित करने का अधिकार है।
- पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920: धारा 5 के तहत अधिकारी भारत के संविधान के अनुच्छेद 258(1) के तहत किसी अवैध विदेशी को बलपूर्वक हटा सकते हैं।
- विदेशी नागरिक पंजीकरण अधिनियम,1939: इसके तहत एक अनिवार्य आवश्यकता यह है कि दीर्घकालिक वीज़ा (180 दिनों से अधिक) पर भारत आने वाले सभी विदेशी नागरिकों (भारत के विदेशी नागरिकों को छोड़कर) को भारत आने के 14 दिनों के भीतर पंजीकरण अधिकारी के साथ खुद को पंजीकृत करना आवश्यक है।
- विदेशियों का पंजीकरण अधिनियम, 1939 और विदेशियों के पंजीकरण के नियम, 1992 विदेशी पंजीकरण को अनिवार्य और विनियमित करते हैं।
- नागरिकता अधिनियम, 1955: इसमें अस्वीकार करने, समाप्ति और नागरिकता से वंचित करने का प्रावधान है।
- इसके अलावा नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (CAA) केवल बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सताए गए हिंदू, ईसाई, जैन, पारसी, सिख तथा बौद्ध प्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना चाहता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2016)
उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (c) प्रश्न. भारत की सुरक्षा को गैर-कानूनी सीमा पार प्रवसन किस प्रकार खतरा प्रस्तुत करता है? इसे बढ़ावा देने के कारणों को उजागर करते हुए ऐसे प्रवसन को रोकने की रणनीतियों का वर्णन कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स 2023
प्रिलिम्स के लिये:GDP, SDG, यूक्रेन में युद्ध, कोविड, महँगाई। मेन्स के लिये:वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने एक नई रिपोर्ट वर्ल्ड इकोनॉमिक सिचुएशन एंड प्रॉस्पेक्ट्स 2023 जारी की है, जिसमें कहा गया है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के वर्ष 2022 में 3% से गिरकर वर्ष 2023 में 1.9% होने की संभावना है।
- कोविड-19 महामारी, यूक्रेन में युद्ध और इसके परिणामस्वरूप खाद्य एवं ऊर्जा संकट, बढ़ती मुद्रास्फीति, ऋण सख्ती, साथ ही जलवायु आपातकाल जैसे गंभीर तथा पारस्परिक रूप से सशक्त संघर्ष।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- मुद्रास्फीति: 2022 में दुनिया की औसत मुद्रास्फीति दर 9% थी, जिसके कारण कई विकसित और विकासशील देशों में बजट से संबंधित बाधाएँ उत्पन्न हुईं।
- मंदी: मौजूदा मंदी ने कोविड-19 संकट से निपटने हेतु आर्थिक सुधार की गति को धीमा कर दिया है, जिससे वर्ष 2023 में मंदी की संभावनाओं के साथ कई देशों को खतरा है।
- अधिकांश विकासशील देशों ने वर्ष 2022 में रोज़गार में धीमी प्रगति देखी है।
- महामारी के प्रारंभिक चरण के दौरान महिलाओं के रोज़गार में अनुपातहीन नुकसान की स्थिति अभी तक पूरी तरह से सामान्य नहीं हुई है।
- वैश्विक उत्पादन में मामूली वृद्धि: युद्ध की स्थिति में बदलाव और आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान के कारण वैश्विक उत्पादन वृद्धि वर्ष 2024 में 2.7% तक हो सकती है।
- चीन की आर्थिक वृद्धि में वर्ष 2023 में 4.8% और 2024 में 4.5% बढ़ोत्तरी का अनुमान है।
- अमेरिका द्वारा इस वर्ष 0.4% और वर्ष 2024 में 1.7% की आर्थिक वृद्धि दर्ज किये जाने का अनुमान है।
- रूसी निर्यात: वर्ष 2022 में रूस के निर्यात में वृद्धि हुई क्योंकि चीन, भारत और तुर्किये के साथ व्यापार में वृद्धि हुई।
- दक्षिण एशियाई परिदृश्य: दक्षिण एशिया में उच्च खाद्य और ऊर्जा की कीमतों, मौद्रिक संकट तथा राजकोषीय कमी के कारण आर्थिक परिदृश्य अस्थिर है।
- औसत सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि जो वर्ष 2022 में 5.6% रही वर्ष 2023 में 4.8% रहने का अनुमान है।
- वर्ष 2022 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) से वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाले देशों अर्थात् बांग्लादेश, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसी अर्थव्यवस्थाओं के लिये संभावनाएँ चुनौतीपूर्ण हैं।
भारतीय परिदृश्य:
- विकास दर: भारत में विकास दर 5.8% रहने की उम्मीद है, हालाँकि यह वर्ष 2022 में अनुमानित 6.4% से थोड़ा कम है, क्योंकि उच्च ब्याज दर और वैश्विक मंदी निवेश तथा निर्यात पर दबाव डालती है।
- भारत में खाद्य और ऊर्जा संबंधी सब्सिडी ने आर्थिक संकट को दूर रखा।
- वर्ष 2024 में भारत 6.7% की दर से विकास करेगा, जो विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है।
- मुद्रास्फीति: वर्ष 2022 के लिये वार्षिक मुद्रास्फीति दर 7.1% रही। वर्ष 2023 में भारत की मुद्रास्फीति दर घटकर 5.5% होने की उम्मीद है क्योंकि वैश्विक उत्पादों की कीमतें मध्यम रहने और मुद्रा मूल्यह्रास की गति धीमी रहने से आयातित मुद्रास्फीति कम हो जाती है।
- बेरोज़गारी: वर्ष 2022 में बेरोज़गारी दर शहरी और ग्रामीण रोज़गार में वृद्धि के कारण महामारी पूर्व स्तर तक गिर गई, जो कि एक मज़बूत घरेलू मांग का संकेत है।
- हालाँकि युवा रोज़गार महामारी पूर्व के स्तर से नीचे रहा, विशेषकर युवा महिलाओं के मामले में।
सुझाव:
- मैक्रोइकोनॉमिक नीतियों का अंशांकन (Calibration): उत्पादन और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के बीच संतुलन बनाने के लिये मैक्रोइकोनॉमिक नीतियाँ पूर्ण रूप से सही होनी चाहिये।
- इसके लिये प्रमुख केंद्रीय बैंकों के बीच अधिक प्रभावी समन्वय की आवश्यकता होगी, जो मुद्रास्फीति संबंधी अपेक्षाओं को प्रबंधित और नियंत्रित करने के लिये सुस्पष्ट नीतियों द्वारा समर्थित हो।
- इन्फ्लेशन एक्स्पेक्टेशन की डी-एंकरिंग: मौजूदा ढाँचे में सुधार काफी लाभदायक हो सकता है, केंद्रीय बैंकों को भी विश्वसनीयता के नुकसान से बचने और इन्फ्लेशन एक्स्पेक्टेशन की डी-एंकरिंग के लिये एक सुविचारित एवं व्यापक प्रक्रिया अपनाने की आवश्यकता होगी।
- सार्वजनिक व्यय को पुनः प्राथमिकता देना: सरकारों को प्रत्यक्ष नीतिगत हस्तक्षेपों के माध्यम से कमज़ोर समूहों की सहायता के लिये सार्वजनिक व्यय को पुनः आवंटित करने और प्राथमिकता देने की आवश्यकता होगी।
- इसके लिये सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मज़बूत करने और लक्षित एवं अस्थायी सब्सिडी, नकद हस्तांतरण तथा उपयोगिता बिलों पर छूट के माध्यम से निरंतर समर्थन सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी।
- SDG वित्तपोषण को बढ़ाना: आपातकालीन वित्तीय सहायता तक पहुँच बढ़ाने और SDG वित्तपोषण को बढ़ाने के लिये मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की तत्काल आवश्यकता है:
- लक्षित और अस्थायी सब्सिडी, नकद हस्तांतरण और उपयोगिता बिल छूट के माध्यम से निरंतर सहायता प्रदान करके सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों को मज़बूत करना, जिसे उपभोक्ता करों या सीमा शुल्क में कटौती कर पूरा किया जा सकता है।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
शासन व्यवस्था
भारत के विद्युत बाज़ार का केंद्रीकरण
प्रिलिम्स के लिये:यूरोपीय संघ, बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED), वन नेशन वन ग्रिड वन फ्रीक्वेंसी वन प्राइस, इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003, विद्युत वितरण कंपनियाँ (DISCOMs), नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स। मेन्स के लिये:बाज़ार आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) मॉडल, MBED के केंद्रीकृत मॉडल से संबंद्ध चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
भारत अपनी विद्युत बाज़ार प्रणाली को विकेंद्रीकृत, स्वैच्छिक और अल्पकालिक बाज़ार से एक अनिवार्य पूल मॉडल में बदल रहा है जो निश्चित मूल्य अनुबंधों को समाप्त करता है, जबकि यूरोपीय संघ इसके विपरीत नीतियाँ अपना रहा है।
विद्युत बाज़ार से संबंधित यूरोपीय संघ की नीति:
- यूरोपीय संघ अपने विद्युत बाज़ार में परिवर्तन कर रहा है क्योंकि गैस की कमी के कारण वर्ष 2022 में विद्युत की कीमतें काफी बढ़ गई हैं।
- कीमतें उच्च इसलिये हुईं क्योंकि विद्युत की कीमतें सबसे महँगे विद्युत संयंत्र आमतौर पर गैस संयंत्र द्वारा निर्धारित की जाती हैं।
- यूरोपीय आयोग विद्युत संयंत्रों द्वारा विद्युत बेचने के विभिन्न तरीकों पर विचार कर रहा है।
- वे दीर्घकालिक अनुबंधों का उपयोग करना चाहते हैं जो विद्युत संयंत्रों को उनकी विद्युत के लिये एक निश्चित मूल्य देते हैं।
- इससे घरों और व्यवसायों के लिये विद्युत की कीमतों को अधिक स्थिर बनाने में मदद मिलेगी।
भारत का नया बाज़ार-आधारित आर्थिक प्रेषण (MBED) मॉडल:
- भारत MBED तंत्र नामक एक नया विद्युत बाज़ार मॉडल विकसित कर रहा है।
- यह देश की लगभग 1,400 बिलियन यूनिट की वार्षिक विद्युत खपत को प्रेषण के लिये केंद्रीकृत करेगा।
- MBED केंद्र के 'वन नेशन, वन ग्रिड, वन फ्रीक्वेंसी, वन प्राइस' फॉर्मूले के अनुरूप विद्युत बाज़ारों को बढ़ावा देने का एक तरीका है।
- यह सुनिश्चित करेगा कि पूरे तंत्र की मांग को पूरा करने के लिये देश भर में सबसे सस्ते विद्युत उत्पादन संसाधनों की आपूर्ति की जाए और इसलिये यह वितरण कंपनियों एवं जनरेटर दोनों के लिये फायदेमंद होगा। साथ ही इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को बचत भी होगी।
- यह विकेंद्रीकृत मॉडल स्पष्ट बदलाव को भी चिह्नित करेगा जो विद्युत अधिनियम, 2003 द्वारा समर्थित है।
- वर्तमान में विद्युत ग्रिड को राज्य लोड डिस्पैच सेंटर (SLDC) द्वारा प्रबंधित राज्य-वार स्वायत्त नियंत्रण क्षेत्रों में बाँटा गया है जिनका पर्यवेक्षण क्षेत्रीय लोड डिस्पैच सेंटर (RLDC) और नेशनल लोड डिस्पैच सेंटर (NLDC) द्वारा किया जाता है।
- MBED मॉडल राज्य के भीतर और एक राज्य से दूसरे राज्य दोनों में विद्युत प्रेषण का एक केंद्रीकृत समय-निर्धारण प्रस्तावित करता है। यह नया मॉडल मौजूदा विकल्पों और डिस्कॉम को सीमित कर देगा तथा स्टेट लोड डिस्पैच सेंटर को वास्तविक समय में बिजली खरीदनी या बेचनी होगी, भले ही यह मांग को संतुलित करने के लिये ही क्यों न हो।
- GNA (जनरल नेटवर्क एक्सेस), जो अधिक खुला और अनुकूलनीय है, को भारत में ऊर्जा ग्रिड के लिये दिशा-निर्देशों के एक नए सेट के रूप में भी विकसित किया जा रहा है।
MBED के केंद्रीकृत मॉडल से जुड़ी चिंताएँ:
- राज्य की स्वायत्तता पर प्रभाव: MBED का राज्यों के विद्युत क्षेत्र के प्रबंधन में सापेक्ष स्वायत्तता पर प्रभाव पड़ेगा, जिसमें उनके स्वयं के उत्पादन केंद्र भी शामिल हैं और यह राज्य के स्वामित्त्व वाली ज़्यादातर बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को पूरी तरह से केंद्रीकृत तंत्र पर निर्भर कर देगा।
- उभरते हुए विकेंद्रीकृत बाज़ार के साथ टकराव: यह नए बाज़ार के विकास में संघर्ष की स्थिति उत्पन्न कर सकता है, जैसे कुल ऊर्जा उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार और पॉवर ग्रिड से जुड़ने वाले इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या में वृद्धि आदि।
- प्रभावी ग्रिड प्रशासन और संचालन के लिये वास्तव में बाज़ारों और स्वैच्छिक पूलों के व्यापक विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है।
- ग्रे क्षेत्र: कुछ विद्युत संयंत्र, जैसे मुंबई में ट्रॉम्बे TPS और NCR क्षेत्र में दादरी TPS को बंद करने के लिये मजबूर किया जाएगा।
- ये पावर स्टेशन मुंबई या दिल्ली जैसे प्रमुख शहरों में सुरक्षित आपूर्ति और ग्रिड फेल होने की स्थिति में संचालन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
आगे की राह
- विद्युत भारतीय संविधान की समवर्ती सूची का विषय है, अतः नए मॉडल के प्रभावी कार्यान्वयन के लिये राज्यों की सिफारिशों पर विचार किया जाना चाहिये।
- सिक्योरिटी कांस्ट्रेंड इकोनॉमिक डिस्पैच (SCED), NLDC द्वारा विकसित एक एल्गोरिथम संभावित समाधान हो सकता है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रव्यापी आधार पर निर्धारित निर्णयों पर सूचित करने में नियामकों की सहायता करना है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त कथनों में से कौन से सही हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा सरकार की एक योजना 'उदय'(UDAY) का उद्देश्य है? (2016) (a) ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों के क्षेत्र में स्टार्टअप उद्यमियों को तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना। उत्तर: (d) |