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डेली न्यूज़

  • 29 Nov, 2023
  • 43 min read
शासन व्यवस्था

CERT-In को RTI अधिनियम के दायरे से छूट

प्रिलिम्स के लिये:

Right to Information Act 2005, Indian Computer Emergency Response Team (CERT-In), Cyber Security सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-In), साइबर सुरक्षा

मेन्स के लिये:

सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, पारदर्शिता और दायित्व, साइबर सुरक्षा

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

केंद्र ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के माध्यम से हाल ही में एक अधिसूचना जारी कर भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-In) को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के दायरे से छूट दे दी है।

  • CERT-In, अब अपनी गतिविधियों और कामकाज के बारे में जानकारी तक सार्वजनिक पहुँच को सीमित करते हुए RTI अधिनियम, 2005 के दायरे से बाहर कार्य करेगा।

CERT-In को किस प्रकार छूट दी गई?

  • केंद्र ने CERT-In को पारदर्शिता कानून के दायरे से छूट देने के लिये RTI अधिनियम की धारा 24(2) के तहत दी गई अपनी शक्तियों का उपयोग किया है।
    • RTI अधिनियम, 2005 की धारा 24(2) केंद्र सरकार को सरकार द्वारा स्थापित खुफिया या सुरक्षा संगठनों को जोड़कर या हटाकर अनुसूची में बदलाव करने की अनुमति देती है।
    • इसके अलावा, मानवाधिकार उल्लंघन के आरोपों से संबंधित जानकारी केंद्रीय सूचना आयोग की मंज़ूरी के बाद ही प्रदान की जा सकती है।
  • केंद्र, आधिकारिक राजपत्र में एक अधिसूचना के माध्यम से दूसरी अनुसूची में संशोधन कर सकता है। हालाँकि ऐसी प्रत्येक अधिसूचना संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी।
    • RTI अधिनियम की धारा 24 की उपधारा 4 के तहत राज्य सरकार को भी ऐसी ही शक्तियाँ दी गई हैं।
  • उन शक्तियों का उपयोग करते हुए केंद्र ने 26 अन्य खुफिया और सुरक्षा संगठनों के साथ CERT-In को RTI अधिनियम की दूसरी अनुसूची में शामिल किया है, जिन्हें पूर्व में ही अधिनियम द्वारा छूट दे दी गई है।

CERT-In क्या है?

  • परिचय:
    • CERT-In एक नोडल एजेंसी है जिसका कार्य हैकिंग और फिशिंग जैसे साइबर सुरक्षा खतरों से निपटना है। यह इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत संचालित होता है।
    • CERT-In जनवरी 2004 से परिचालन में है।
  • CERT-In के कार्य:
    • सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम, 2008 के अनुसार, CERT-In को साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में निम्नलिखित कार्य करने के लिये राष्ट्रीय एजेंसी के रूप में नामित किया गया है:
      • साइबर घटनाओं पर सूचना का संग्रहण, विश्लेषण और प्रसार।
      • साइबर सुरक्षा घटनाओं का पूर्वानुमान और अलर्ट।
      • साइबर सुरक्षा घटनाओं से निपटने हेतु आपातकालीन उपाय।
      • साइबर घटना प्रतिक्रिया गतिविधियों का समन्वय।
      • सूचना सुरक्षा प्रथाओं, प्रक्रियाओं, रोकथाम, प्रतिक्रिया और साइबर घटनाओं की रिपोर्टिंग से संबंधित दिशानिर्देश, सलाह, भेद्यता नोट तथा श्वेतपत्र जारी करना।
        • साइबर सुरक्षा से संबंधित ऐसे अन्य कार्य जो निर्धारित किये जा सकते हैं।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • CERT-In भारत के लिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह देश की महत्त्वपूर्ण सूचना अवसंरचना और डिजिटल संपत्तियों को साइबर हमलों से बचाने में सहायता करता है।
    • यह देश के विभिन्न क्षेत्रों, जैसे सरकार, रक्षा, बैंकिंग, दूरसंचार आदि की साइबर लचीलापन और तत्परता को बढ़ाने में भी सहायता करता है।
    • यह एक सुरक्षित साइबर वातावरण को बढ़ावा देकर देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास में भी योगदान देता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 क्या है?

  • परिचय:
    • वर्ष 2005 में अधिनियमित, RTI अधिनियम एक विधायी ढाँचा है जो भारतीय नागरिकों को सार्वजनिक अधिकारियों द्वारा रखी गई जानकारी तक पहुँच प्रदान करता है।
    • इसकी नींव संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित है, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
      • सूचना की स्वतंत्रता अधिनियम, 2002 को RTI अधिनियम में बदल दिया गया।
    • संवैधानिक समर्थन:
    • अनुच्छेद 19(1)(a) से व्युत्पन्न, RTI अधिनियम को एक मौलिक अधिकार माना जाता है, जैसा कि राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में दर्शाया गया है।
  • समय अवधि और छूट:
    • सामान्य तौर पर, किसी आवेदक को जीवन या स्वतंत्रता से संबंधित जानकारी 30 दिनों या 48 घंटों के भीतर प्रदान की जानी चाहिये।
      • धारा 8(1) में छूट का प्रावधान दिया गया है, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा, रणनीतिक राज्य मामले, विदेशी संबंध और अन्य महत्त्वपूर्ण बिंदु शामिल है।
  • कार्यान्वयन:
    • जन सूचना अधिकारी (PIO), RTI अधिनियम के कार्यान्वयन का एक प्रमुख घटक है।
      • PIO किसी सार्वजनिक प्राधिकरण के अंतर्गत एक नामित अधिकारी है जो जानकारी मांगने वाले नागरिकों तथा उस जानकारी को एकत्रित करने वाले सरकारी संगठन के मध्य एक सेतु के रूप में कार्य करता है।
  • अपीलीय प्राधिकरण:
    • PIO की प्रतिक्रिया से तुष्ट न होने पर, नागरिक उसी सार्वजनिक प्राधिकरण के अधीन प्रथम अपीलीय प्राधिकरण में अपील कर सकते हैं। आवश्यकता पड़ने पर केंद्रीय अथवा राज्य सूचना आयोग में आगे अपील की जा सकती है।
  • RTI अधिनियम में हालिया संशोधन:
    • वर्ष 2023 के संशोधन:
      • हाल ही में डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023 की धारा 44(3) द्वारा RTI अधिनियम की धारा 8 (1)(j) को संशोधित किया गया है, जिससे सभी व्यक्तिगत जानकारी को प्रकटीकरण से छूट मिल गई है तथा पहले से निहित अपवादों को हटा दिया गया है जो इस तरह की जानकारी जारी करने की अनुमति देते हैं।
    • सूचना का अधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2019:
      • मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) तथा सूचना आयुक्तों (IC) के कार्यकाल एवं शर्तों में संशोधन।
        • IC की शर्तें केंद्र सरकार के निर्देश के अधीन बनाई गई हैं (वर्तमान में 3 वर्ष के लिये निर्धारित, न कि विगत निर्धारित 5-वर्षीय कार्यकाल के लिये)।
      • CIC और IC (केंद्र व राज्य) के वेतन, भत्ते तथा अन्य सेवा शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जाएँगी।
      • CIC तथा IC की नियुक्ति के समय विगत सरकारी सेवा के लिये पेंशन अथवा सेवानिवृत्ति लाभों में कटौती के प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

मेन्स:

प्रश्न: “सूचना का अधिकार अधिनियम केवल नागरिकों के सशक्तीकरण के बारे में ही नहीं है, अपितु यह आवश्यक रूप से जवाबदेही की संकल्पना को पुनः परिभाषित करता है।” विवेचना कीजिये। (2018)


सामाजिक न्याय

कॉल फॉर सेफर एंड हेल्थियर वर्किंग एनवायरनमेंटस: ILO

प्रिलिम्स के लिये :

सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण,अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन,एशिया-प्रशान्त क्षेत्रकार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य पर विश्व काॅन्ग्रेस (WCSHW)।

मेन्स के लिये :

सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण:ILO, स्वास्थ्य, शिक्षा, मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित मुद्दे।

स्रोत : द हिन्दू 

चर्चा में क्यों 

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने 'कॉल फॉर सेफर एंड हेल्थियर वर्किंग एनवायरनमेंटस' शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिस पर सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य पर 23वीं विश्व काॅन्ग्रेस (WCSHW) के दौरान चर्चा की जाएगी।   

  • WCSHW, जो पहली बार 1955 में आयोजित किया गया था, कार्य स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिये सबसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में से एक है। इसका लक्ष्य 120 से अधिक देशों को सुरक्षा और नुकसान की रोकथाम हेतु जोड़ना है।

मुख्य विशेषताएँ:

  • वार्षिक मृत्यु: 
    • विश्व स्तर पर लगभग 30 लाख (3 मिलियन) कर्मचारी की हर साल काम से संबंधित दुर्घटनाओं और बीमारियों के कारण मृत्यु हो जाती है।
    • इनमें से 63 प्रतिशत से अधिक मौतें एशिया-प्रशांत क्षेत्र में होती हैं।
  • मृत्यु के प्रमुख कारण:
    • लंबे समय तक काम करने के घंटों (प्रति सप्ताह 55 घंटे या अधिक) के कारण 2016 में सबसे अधिक मौतें हुईं, जिससे लगभग 7.45 लाख मौतें हुईं।
    • औद्योगिक कणों, गैसों और धुएँ के संपर्क में आने से लगभग 4.5 लाख मौतें हुईं
    • औद्योगिक कार्यों के दौरान मशीनों से लगने वाली चोटों के कारण लगभग 3.63 लाख मौतें हुईं।
  • घातक व्यावसायिक आघात दर (FOIR): 
    • घातक व्यावसायिक आघात दरों के आधार पर खनन एवं उत्खनन, निर्माण व उपयोगिताओं जैसे क्षेत्रों को विश्व में सबसे खतरनाक क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया था।  FOIR एक सांख्यिकीय माप है जिसका उपयोग एक विशेष अवधि के दौरान किसी विशिष्ट व्यावसायिक समूह, उद्योग या भौगोलिक क्षेत्र में कार्य-संबंधी दुर्घटनाओं या आघातों से होने वाली मौतों की संख्या निर्धारित करने के लिये किया जाता है।
  • ILO कन्वेंशन: 
    • अब तक 187 सदस्य देशों में से 79 देशों ने ILO व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कन्वेंशन की पुष्टि की है, जबकि 62 देशों ने व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य कन्वेंशन, 2006 के लिये प्रमोशनल फ्रेमवर्क की पुष्टि की है।
      • भारत ने दोनों सम्मेलनों का अनुमोदन नहीं किया है। हाल ही में उत्तरकाशी सुरंग हादसा के मद्देनजर, केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने केंद्र सरकार से सम्मेलनों का अनुमोदन करने का आग्रह किया था।
  • कार्य-संबंधी रोग:
    • काम से संबंधित मौतों (26 लाख) का एक बड़ा हिस्सा काम से संबंधित बीमारियों के लिये ज़िम्मेदार है, जिनमें संचार संबंधी रोग, घातक नवोप्लाज़्म (कैंसर ट्यूमर) और श्वसन रोग शामिल हैं।
    • व्यावसायिक जोखिम के कारण बीमारियों के बदलते रुझान, जैसे क्रोमियम के संपर्क के कारण श्वासनली, ब्रोन्कस और फेफड़ों के कैंसर के मामलों में वृद्धि एवं एस्बेस्टस के संपर्क के कारण मेसोथेलियोमा के बढ़ते मामले।
  • कुछ स्वास्थ्य जोखिमों में कमी:
    • अस्थमाजन्य पदार्थों और सूक्ष्म कणों, गैसों व धुएँ के संपर्क में आने से होने वाली मौतों में 20% से अधिक की कमी आई है।
  • सिफारिशें:
    • ILO ने कार्यस्थल पर सुरक्षा और स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिये "कार्यस्थल पर मौलिक सिद्धांत एवं अधिकार" की पाँच श्रेणियाँ बनाने का आह्वान किया। इन सिद्धांतों में शामिल हैं:
      • संघ की स्वतंत्रता और सामूहिक सौदेबाज़ी के अधिकार की प्रभावी मान्यता
      • सभी प्रकार के जबरन या अनिवार्य श्रम का उन्मूलन
      • बाल श्रम का उन्मूलन
      • रोज़गार और व्यवसाय के संबंध में भेदभाव का उन्मूलन
      • एक सुरक्षित और स्वस्थ कार्य वातावरण

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन क्या है?

  • यह संयुक्त राष्ट्र की एकमात्र त्रिपक्षीय संस्था है। यह श्रम मानक निर्धारित करने, नीतियों को विकसित करने एवं सभी महिलाओं तथा पुरुषों के लिये सभ्यतापूर्ण कार्य को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रम तैयार करने हेतु 187 सदस्य देशों की सरकारों, नियोक्ताओं और श्रमिकों को एक साथ लाता है।
  • वर्ष 1919 में वर्सेल्स/वर्साय की संधि (Treaty of Versailles) द्वारा राष्ट्र संघ की एक संबद्ध एजेंसी के रूप में इसकी स्थापना हुई और वर्ष 1946 में यह संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध पहली विशिष्ट एजेंसी बन गया।
  • मुख्यालय: इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के 138 एवं 182 अभिसमय किससे संबंधित हैं? (2018)

(a) बाल श्रम
(b)  कृषि के तरीकों का वैश्विक जलवायु परिवर्तन से अनुकूलन
(c) खाद्य कीमतों एवं खाद्य सुरक्षा का विनियमन
(d) कार्यस्थल पर लिंग समानता

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • वर्ष 2017 में केंद्रीय मंत्रिमंडल, भारत सरकार ने अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के न्यूनतम आयु कन्वेंशन, 1973 (नंबर 138) तथा वर्स्ट फॉर्म्स ऑफ चाइल्ड लेबर कन्वेंशन, 1999 (नंबर 182) के अनुसमर्थन को मंज़ूरी दी।
  • अभिसमय संख्या 138: भारत अभिसमय संख्या 138 को अनुमोदित करने वाला 170वाँ ILO सदस्य देश है, जिसके लिये राज्य पार्टियों को न्यूनतम आयु निर्धारित करने की आवश्यकता होती है जिसके तहत हल्के कार्य तथा कलात्मक प्रदर्शन के अतिरिक्त किसी को भी रोज़गार अथवा किसी भी व्यवसाय में कार्य करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। 
  • अभिसमय संख्या 182: इस अभिसमय का अनुमोदन करने वाला भारत ILO का 181वाँ सदस्य देश बना। यह दासता, जबरन श्रम तथा तस्करी सहित बाल श्रम के सबसे खराब रूपों, सशस्त्र संघर्ष में बच्चों का उपयोग, वेश्यावृत्ति, अश्लील साहित्य एवं अवैध गतिविधियों (जैसे नशीली दवाओं की तस्करी) के लिये बच्चे का उपयोग एवं जोखिम भरे कार्य, पर रोक लगाने तथा उन्हें समाप्त करने का आह्वान करता है।
  • ये सभी बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2016 के अनुरूप कार्यरत हैं, जो किसी भी व्यवसाय अथवा प्रक्रिया में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोज़गार अथवा कार्य पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाता है एवं किशोरों (14 से 18 वर्ष) के जोखिमपूर्ण व्यवसाय तथा कार्यों में रोज़गार पर भी प्रतिबंध लगाता है। 
  • इसके अतिरिक्त, बाल श्रम (प्रतिषेध और विनियमन) केंद्रीय नियम, जैसा कि हाल ही में संशोधित किया गया है, पहली बार बाल एवं किशोर श्रमिकों की रोकथाम, प्रतिषेध, बचाव तथा पुनर्वास के लिये एक व्यापक व विशिष्ट रूपरेखा प्रदान करता है।
  • दो प्रमुख ILO सम्मेलनों के अनुसमर्थन के साथ भारत ने आठ प्रमुख ILO सम्मेलनों में से छह का अनुमोदन किया है। चार अन्य सम्मेलन जबरन श्रम के उन्मूलन, समान पारिश्रमिक तथा रोज़गार और व्यवसाय में पुरुषों एवं महिलाओं के बीच कोई भेदभाव न करने से संबंधित हैं।
  • अतः विकल्प (a) सही उत्तर है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

फाइबर ऑप्टिक केबल

प्रिलिम्स के लिये:

फाइबर ऑप्टिक केबल्स, ऑप्टिकल फाइबर्स, चार्ल्स काओ, टोटल इंटरनल रिफ्लेक्शन, क्वांटम टेक्नोलॉजीज़ और एप्लीकेशन पर राष्ट्रीय मिशन।

मेन्स के लिये:

फाइबर ऑप्टिक केबल, इंटरनेट का विकास, फाइबराइज़ेशन में चुनौतियाँ, सरकार की पहल।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्शन की बढ़ती मांग के साथ ऑप्टिकल फाइबर को हाई-स्पीड डेटा ट्रांसमिशन की आधुनिक वास्तविकता में बदल दिया गया है। 

ऑप्टिकल फाइबर क्या है?

  • परिचय:
    • ऑप्टिकल फाइबर काँच से बने पतले, बेलनाकार तार होते हैं, जिनका व्यास सामान्यतः मानव बाल के बराबर होता है।
    • इन तंतुओं में पाठ, चित्र, ऑडियो, वीडियो, फोन कॉल और डिजिटलीकृत किये जा सकने वाले किसी भी डेटा सहित विभिन्न प्रकार की सूचनाओं को प्रकाश की गति के साथ अत्यधिक दूरी तक प्रसारित करने की उल्लेखनीय क्षमता है।
    • वे मज़बूत, हल्के और उल्लेखनीय रूप से लचीले हैं, जो उन्हें भूमिगत, जल के नीचे उपयोग या स्पूल के चारों ओर लपेटने में उपयुक्त बनाते हैं।
    • लगभग 60 वर्ष पूर्व भौतिक विज्ञानी चार्ल्स काओ ने प्रचलित तांबे के तारों को हटाकर, दूरसंचार के लिये एक बेहतर माध्यम के रूप में ग्लास फाइबर का उपयोग करने की अवधारणा को प्रस्तावित किया था। 
      • फाइबर ऑप्टिक संचार में उनके अभूतपूर्व योगदान के कारण उन्हें वर्ष 2009 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार दिया गया।

  • कार्य-प्रणाली:
    • पूर्ण आंतरिक परावर्तन का सिद्धांत: पूर्ण आंतरिक परावर्तन (TIR) की घटना ऑप्टिकल फाइबर के भीतर प्रकाश के गमन का आधार बनाती है।
      • यदि प्रकाश एक विशिष्ट कोण पर उच्च अपवर्तनांक माध्यम (जैसे काँच) से निचले अपवर्तनांक माध्यम (जैसे वायु) तक गमन करता है, तो यह माध्यम से बाहर नहीं निकल सकता है, लेकिन पूरी तरह से इसके भीतर परावर्तित हो सकता है। इस घटना को पूर्ण आंतरिक परावर्तन कहा जाता है।
    • सिग्नल एन्कोडिंग: सूचना को तेज़ी से चमकती प्रकाश स्पंदन/पल्स के रूप में ऑप्टिकल सिग्नल में एन्कोड किया जाता है, जो आमतौर पर बाइनरी अंक (शून्य और एक) का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • इन ऑप्टिकल संकेतों को ऑप्टिकल फाइबर के एक छोर में फीड किया जाता है, जहाँ वे पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण काँच की भित्तियों के बीच टकराते (Bouncing) और परावर्तित होते हुए गमन करते हैं।
    • सिग्नल ट्रांसपोर्ट: ऑप्टिकल फाइबर निर्बाध रूप से एन्कोडेड सिग्नल को कई किलोमीटर तक पहुँचाने में मदद करता है।
      • गंतव्य पर एक रिसीवर प्रेषित ऑप्टिकल सिग्नल से एन्कोडेड जानकारी को पुन: उत्पन्न करता है।
  • लाभ:
    • तीव्र गति/हाई स्पीड: फाइबर अधिक बैंडविड्थ प्रदान करता है और 10 Gbps तथा उससे अधिक तक मानकीकृत प्रदर्शन करता है। तांबे के उपयोग के साथ इसे प्राप्त कर पाना असंभव है।
      • अधिक बैंडविड्थ का मतलब है कि फाइबर तांबे के तार की तुलना में कहीं अधिक दक्षता के साथ अधिक जानकारी का वहन कर सकता है।
    • ट्रांसमिशन की रेंज: चूँकि फाइबर-ऑप्टिक केबल्स में डेटा प्रकाश के रूप में गुज़रता है, ट्रांसमिशन के दौरान अत्यंत कम सिग्नल हानि होती है और डेटा तीव्र गति से तथा अधिक दूरी तक स्थानांतरित हो सकता है।
    • हस्तक्षेप के प्रति अतिसंवेदनशील नहीं: फाइबर-ऑप्टिक केबल कॉपर केबल की तुलना में शोर तथा विद्युत चुंबकीय हस्तक्षेप के प्रति भी बहुत कम संवेदनशील होती है।
      • यह वास्तव में इतना कुशल है कि ज़्यादातर मामलों में लगभग 99.7% सिग्नल राउटर तक पहुँचता है।
    • स्थायित्व: कॉपर केबल को प्रभावित करने वाले कई पर्यावरणीय कारकों का फाइबर-ऑप्टिक केबल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
      • केबल का कोर भाग काँच से बना होता है, जो एक इन्सुलेटर का कार्य करता है, इसलिये इसमें विद्युत प्रवाह प्रवाहित नहीं हो सकती है।

भारत में फाइबर ऑप्टिक्स का वर्तमान परिदृश्य क्या है?

  • फाइबर ऑप्टिक्स का  उपयोग दूरसंचार तकनीक, चिकित्सा विज्ञान, लेज़र तकनीक और सेंसिंग में व्यापक रूप से किया जाने लगा है।
  • संचार को सुरक्षित करने और क्वांटम विज्ञान को बढ़ावा देने के लक्ष्य के साथ भारत सरकार ने वर्ष 2020 के केंद्रीय बजट में एक राष्ट्रीय मिशन की घोषणा की। इस 'नेशनल मिशन ऑन क्वांटम टेक्नोलॉजीज़ एंड एप्लीकेशन' के लिये प्रस्तावित बजट पाँच वर्षों की अवधि में 8,000 करोड़ रुपए है।
  • फाइबर ऑप्टिक नेटवर्क की संभावनाएँ तेज़ी से बढ़ रही हैं, जो हमारे घरों तक पहुँच रहा है। क्वांटम ऑप्टिक्स के साथ फाइबर ऑप्टिक संचार एक नए युग के शिखर पर खड़ा हुआ है।

जैव विविधता और पर्यावरण

रैट-होल माइनिंग

प्रिलिम्स के लिये:

रैट-होल माइनिंग, सिल्क्यारा-बड़कोट सुरंग, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT)

मेन्स के लिये:

रैट-होल माइनिंग, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्तराखंड की सिल्क्यारी सुरंग के अंदर फँसे 41 श्रमिकों को निकालने के लिये रैट-होल माइनिंग विधि का उपयोग किया गया है।

रैट-होल माइनिंग/खनन क्या है?

  • परिचय:
    • रैट होल माइनिग मेघालय में प्रचलित संकीर्ण, क्षैतिज सीम से कोयला निष्कर्षण की एक विधि है।
    • शब्द "रैट होल (चूहे का बिल)" ज़मीन में खोदे गए संकीर्ण गड्ढों को संदर्भित करता है जो आमतौर पर एक व्यक्ति के सुरंग में उतरने और कोयला निष्कर्षण हेतु पर्याप्त होता है।
    • एक बार गड्ढे खोदने के बाद, खनन कर्मचारी कोयले की परतों तक पहुँचने के लिये रस्सियों या बाँस की सीढ़ियों का उपयोग करते हैं। फिर कोयले को गैंती, फावड़े और टोकरियों जैसे आदिम उपकरणों का उपयोग करके मैन्युअल/परंपरागत रूप से निष्कर्षित जाता है।
  • प्रकार:
    • साइड-कटिंग प्रक्रिया: साइड-कटिंग प्रक्रिया में पहाड़ी ढलानों पर संकीर्ण सुरंगें खोदी जाती हैं तथा श्रमिक कोयले की परत मिलने तक गहराई तक जाते हैं।
      • मेघालय की पहाड़ियों में कोयले की परत प्रायः दो मीटर से भी पतली होती है।
    • बॉक्स-कटिंग: बॉक्स-कटिंग में एक आयताकार रास्ता बनाया जाता है, जो 10 से 100 वर्गमीटर तक होता है एवं उसके माध्यम से 100 से 400 फीट गहरा एक अधोलंब गड्ढा खोदा जाता है।
      • एक बार कोयले की परत मिल जाने के बाद, चूहे के बिल के आकार की सुरंगें क्षैतिज रूप से खोदी जाती हैं, जिनके माध्यम से श्रमिक कोयला निकाल सकते हैं।
  • चिंताएँ:
    • रैट होल खनन से गंभीर सुरक्षा एवं पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न होते हैं। खदानें आम तौर पर अनियमित होती हैं, जिनमें उचित वेंटिलेशन, संरचनात्मक सहायता अथवा श्रमिकों के लिये सुरक्षा गियर जैसे सुरक्षा उपायों का अभाव होता है।
    • यह प्रक्रिया न केवल खनिकों के लिये खतरनाक है अपितु पर्यावरण के लिये भी हानिकारक है। रैट-होल खनन को कई पारिस्थितिक मुद्दों से जोड़ा गया है, जैसे नदियों का अम्लीकरण, भूमि क्षरण, वनों का विनाश एवं जल प्रदूषण
      • इन खदानों से निकलने वाला अम्लीय अपवाह, जिसे एसिड माइन ड्रेनेज (AMD) के रूप में जाना जाता है, विशेष रूप से हानिकारक है, यह जल की गुणवत्ता को खराब कर रहा है और प्रभावित जल निकायों में जैवविविधता को हानि पहुँचा रहा है। 
    • अधिकारियों द्वारा ऐसी प्रथाओं को विनियमित या प्रतिबंधित करने के प्रयासों के बावजूद, वे अक्सर आर्थिक कारकों और स्थानीय आबादी के लिये व्यवहार्य वैकल्पिक आजीविका की अनुपस्थिति के कारण बनी रहती हैं।

रैट-होल खनन पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया?

  • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने वर्ष 2014 में अवैज्ञानिक होने के कारण रैट-होल खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन यह प्रथा बड़े पैमाने पर जारी है।
  • पूर्वोत्तर राज्य में कई दुर्घटनाओं के परिणामस्वरूप रैट-होल खनिकों की मौतें हुई हैं।
  • वर्ष 2018 में अवैध खनन में शामिल 15 लोग बाढ़ वाली खदान के अंदर फँस गए थे। दो महीने से अधिक समय तक चले बचाव अभियान के बाद केवल दो शव ही बरामद किये गये थे।
  • ऐसी ही एक और दुर्घटना 2021 में हुई जब पाँच खनिज श्रमिक बाढ़ वाली खदान में फँस गए। बचाव दल द्वारा एक महीने के बाद अभियान बंद करने से पूर्व तीन शव पाए गए थे। इसमें इस पद्धति से होने वाले पर्यावरण प्रदूषण को भी शामिल किया गया।
  • हालाँकि खनन राज्य सरकार के लिये राजस्व का एक प्रमुख स्रोत है। मणिपुर सरकार ने एनजीटी के प्रतिबंध को यह तर्क देते हुए चुनौती दी है कि इस क्षेत्र के लिये खनन का कोई अन्य व्यवहार्य विकल्प नहीं है।
    • 2022 में मेघालय उच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त एक पैनल ने पाया कि मेघालय में रैट-होल खनन निर्बाध रूप से जारी है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष का प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. "प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बावजूद, विकास के लिये कोयला खनन अभी भी अपरिहार्य है"। विवेचना कीजिये। (2017)


जैव विविधता और पर्यावरण

नीति आयोग ने CCUS नीति ढाँचा किया जारी

प्रिलिम्स के लिये :

कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS), कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन, नीति आयोग, कार्बन टैक्स, आईपीसीसी, कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम

मेन्स के लिये :

कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS), CCUS प्रक्रिया का महत्त्व, CCUS से जुड़ी चुनौतियाँ, आगे की राह।

स्रोत: पी.आई.बी. 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अनुसंधान एवं शिक्षा जगत के विशेषज्ञों ने कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण (CCUS) में सरकार तथा उद्योग दोनों से निवेश की आवश्यकता और CCUS के माध्यम से भारत के शुद्ध शून्य लक्ष्यों की दिशा में सहयोगात्मक रूप से काम करने के लिये क्षेत्र के अग्रणी विशेषज्ञों के महत्त्व पर प्रकाश डाला।

कार्बन कैप्चर, यूटिलाइज़ेशन और स्टोरेज (CCUS) क्या है?

  • CCUS के बारे में : सीसीयूएस, प्रौद्योगिकियों और प्रक्रियाओं का एक समूह है जिसका उद्देश्य बिजली संयंत्रों, औद्योगिक सुविधाओं तथा रिफाइनरियों जैसे बड़े पैमाने के बिंदु स्रोतों से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन को कम करना है।
  • उद्देश्य: CCUS का प्राथमिक उद्देश्य CO2 को वायुमंडल में फैलने से रोकना है तथा इसे उद्योगों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीति माना जाता है।
  • प्रक्रिया: इस प्रक्रिया में तीन मुख्य चरण शामिल हैं:
    • कैप्चर: इस चरण में इस स्रोत से वायु में छोड़े जाने से पहले CO2 उत्सर्जन का अवशोषण करना शामिल है
      • विभिन्न कैप्चर प्रौद्योगिकियाँ हैं, जिनमें दहन के बाद का कैप्चर, दहन-पूर्व कैप्चर और ऑक्सी-ईंधन दहन शामिल हैं।
    • परिवहन: इस चरण में संपीड़ित CO2 को पोत (ship) या पाइपलाइन द्वारा कैप्चर बिंदु से भंडारण बिंदु तक ले जाना शामिल है।
    • भंडारण: परिवहित CO2 भूमिगत भूवैज्ञानिक संरचनाओं में संग्रहीत होता है जिसमें समाप्त हो चुके तेल और गैस क्षेत्र या गहरे खारे जलभृत शामिल होते हैं।
    • उपयोग: एक बार संग्रहीत कर लेने के बाद CO2 को मुक्त होने के बदले विभिन्न तरीकों से उपयोग किया जा सकता है। इसमें रसायन या ईंधन निर्माण जैसी औद्योगिक प्रक्रियाओं में CO2 का उपयोग शामिल हो सकता है। 

CCUS का महत्त्व क्या है?

  • डीकार्बोनाइज़ेशन में रणनीतिक भूमिका:
    • 'भारत में कार्बन कैप्चर, उपयोग और भंडारण के लिये नीति फ्रेमवर्क और परिनियोजन तंत्र' शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में, नीति आयोग विशेष रूप से हार्ड-टू-एबेट/Hard-to-abate  (कठिनता-से-मुक्ति) वाले क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करने की रणनीति के रूप में CCUS के महत्त्व पर बल देता है। 
      • हार्ड-टू-एबेट उद्योगों में स्टील, सीमेंट और पेट्रोकेमिकल जैसी श्रेणियाँ शामिल हैं।
    • IPCC इस बात पर बल देती है कि वैश्विक स्तर पर शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करने के लिये CCUS प्रौद्योगिकियों की तैनाती महत्त्वपूर्ण है।
  • ऊर्जा सुरक्षा:
    • ऊर्जा मिश्रण में CCUS का समावेश ऊर्जा ग्रिड को समुत्थानशीलता प्रदान करता है।
    • CCUS न्यून कार्बन वाली विद्युत और हाइड्रोजन उत्पादन की सुविधा प्रदान करता है। CCUS के माध्यम से उत्पादित हाइड्रोजन, जीवाश्म ईंधन के प्रत्यक्ष विकल्प के रूप में कार्य करता है।
    • यह विविधता दुनिया भर में सरकारों की बढ़ती प्राथमिकताओं के अनुरूप ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाती है।
  • CCUS के औद्योगिक अनुप्रयोग:
    • कंक्रीट और सीमेंट औद्योगिक क्षेत्र: कंक्रीट और सीमेंट उद्योग में CCUS तकनीक चूना पत्थर और मिट्टी के दहन के दौरान उत्सर्जित CO2 को कैप्चर/संग्रहीत करती है। इस CO2 को फिर कंक्रीट मिश्रण में इंजेक्ट किया जाता है, जिससे इसकी शक्ति और स्थायित्व बढ़ सकता है, इस प्रक्रिया को कार्बोनेशन के रूप में जाना जाता है।
    • आधारभूत रसायन और ईंधन औद्योगिक क्षेत्र: CCUS सिंथेटिक गैस उत्पादन के लिये CO2 के स्रोत के रूप में कार्य करता है, जो संधारणीय विमानन ईंधन पहल के साथ संरेखित जैव-जेट ईंधन के उत्पादन के लिये आवश्यक है।
    • फाइन केमिकल्स सेक्टर: फाइन केमिकल उद्योग कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को कैप्चर करके इसे बायोमास के साथ मिश्रित कर उच्च-कार्यात्मक प्लास्टिक जैसे ऑक्सीजन युक्त यौगिकों में परिवर्तित कर CCUS का उपयोग करता है।
  • लागत प्रभावी समाधान:
    • CCUS उद्योगों को विद्युत संयंत्रों तथा विनिर्माण सुविधाओं जैसे मौजूदा बुनियादी ढाँचे का उपयोग जारी रखने की अनुमति देता है, जिससे नवीन, निम्न कार्बन विकल्पों में पूंजी निवेश की आवश्यकता कम हो जाती है।

CCUS से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?

  • उच्च प्रारंभिक लागत:
    • बड़े पैमाने पर CCUS को लागू करने के लिये मूलभूत बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता होती है, जिसमें कैप्चर किये गए CO2 तथा उपयुक्त भंडारण स्थलों के परिवहन के लिये पाइपलाइन शामिल हैं। इससे लॉजिस्टिक संबंधी चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं एवं पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है।
  • तकनीकी संपूर्णता:
    • CCUS प्रौद्योगिकियाँ विकास के प्रारंभिक चरण में हैं तथा अभी तक व्यापक रूप से नियोजित नहीं की गई हैं। इसके अतिरिक्त जब CCUS प्रौद्योगिकियों को लागू करने एवं संचालित करने की बात आती है तो ज्ञान व अनुभव में अंतराल की समस्या देखी जाती है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के साथ प्रतिस्पर्द्धा:
    • प्रौद्योगिकियों हेतु नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों के उपयोग के स्थान पर CCUS प्रक्रियाओं का प्रयोग चर्चा का विषय रहा है। किंतु कुछ लोगों का तर्क है कि नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश डीकार्बोनाइज़ेशन के लिये अधिक प्रत्यक्ष एवं सतत् मार्ग प्रदान कर सकता है।
  • नियामक ढाँचे का अभाव:
    • स्पष्ट एवं सहायक नियामक ढाँचे की अनुपस्थिति CCUS के नियोजन में बाधा डाल सकती है। दायित्व, दीर्घकालिक ज़िम्मेदारियों व पर्यावरण मानकों के संबंध में नियमों में अस्पष्टता निवेश में बाधा बन सकती है।
    • CCUS परियोजनाओं की आर्थिक व्यवहार्यता कार्बन की कीमत, सरकारी प्रोत्साहन तथा धन की उपलब्धता सहित विभिन्न कारकों पर निर्भर करती है।

आगे की राह

  • नीति और नियामक समर्थन: सरकारों को CCUS परियोजनाओं के लिये स्पष्ट एवं सहायक नियामक ढाँचा स्थापित करना चाहिये। इसमें दायित्व, दीर्घकालिक ज़िम्मेदारियों, पर्यावरण मानकों व अनुमति प्रक्रियाओं से संबंधित मुद्दों को संबोधित करना शामिल है।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: वित्तीय प्रोत्साहन, सब्सिडी और टैक्स क्रेडिट प्रदान करने से CCUS परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित किया जा सकता है। कार्बन मूल्य निर्धारण तंत्र, जैसे कार्बन टैक्स या कैप-एंड-ट्रेड सिस्टम को लागू करना, CCUS को आर्थिक रूप से अधिक व्यवहार्य बना सकता है।
  • बुनियादी ढाँचा का विकास: सरकारों और उद्योगों को CCUS के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश करना चाहिये, जिसमें CO2 परिवहन के लिये पाइपलाइन तथा उपयुक्त भंडारण स्थल शामिल हैं।
  • क्षमता निर्माण: शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करने से CCUS प्रौद्योगिकी में ज्ञान एवं कौशल की कमी को दूर किया जा सकता है। CCUS परियोजनाओं की सफल तैनाती और संचालन के लिये एक कुशल कार्यबल विकसित करना आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा कथन 'कार्बन के सामाजिक मूल्य' पद का सर्वोत्तम रूप से वर्णन करता है? (2020)

  आर्थिक मूल्य के रूप में यह निम्नलिखित में से किसका माप है?

(a) प्रदत वर्ष में एक टन CO2 के उत्सर्जन से होने वाली दीर्घकालिक क्षति। 
(b) किसी देश की जीवाश्म ईंधनों की आवश्यकता, जिन्हें जलाकर देश अपने नागरिकों को वस्तुएँ और  सेवाएँ प्रदान करता है।
(c) किसी जलवायु शरणार्थी (Climate Refugee) द्वारा किसी नए स्थान के प्रति अनुकूलित होने हेतु   किये गए प्रयास।
(d) पृथ्वी ग्रह पर किसी व्यक्ति विशेष द्वारा अंशदत कार्बन पदचिह्न। 

उत्तर: A


मेन्स:

प्रश्न. क्या कार्बन क्रेडिट के मूल्य में भारी गिरावट के बावजूद जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) के तहत स्थापित कार्बन क्रेडिट और स्वच्छ विकास तंत्र को बनाए रखा जाना चाहिये? आर्थिक विकास के लिये भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के संबंध में चर्चा कीजिये। (2014)


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