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डेली न्यूज़

  • 29 Oct, 2020
  • 50 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

महामारी और राज्यों की वित्तीय स्थिति

प्रिलिम्स के लिये

सकल राजकोषीय घाटा, भारतीय रिज़र्व बैंक

मेन्स के लिये

राज्यों की राजकोषीय स्थिति और महामारी पर उनका प्रभाव, महामारी से मुकाबले में केरल और धारावी मॉडल

चर्चा में क्यों?

राज्यों की वित्तीय स्थिति पर भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) द्वारा किये गए एक अध्ययन के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में राज्यों के सकल राजकोषीय घाटे (Gross Fiscal Deficits- GFDs) में दोगुनी वृद्धि हो सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • राज्यों के सकल राजकोषीय घाटे की स्थिति
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश के लगभग आधे राज्यों ने अपने सकल राजकोषीय घाटे (GFDs) और सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात को 3 प्रतिशत या उससे अधिक सीमा पर निर्धारित किया है।
    • अधिकांश राज्यों द्वारा इस अनुपात में संशोधन किये जाने की संभावना इस तथ्य से स्पष्ट है कि महामारी की शुरुआत से पूर्व प्रस्तुत किये गए बजटों में सकल राजकोषीय घाटे (GFDs) को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का औसतन 2.4 प्रतिशत निर्धारित किया गया है, जबकि जिन राज्यों ने महामारी के बाद अपना बजट प्रस्तुत किया उनका यह अनुपात औसतन 4.6 प्रतिशत के आस-पास है।
      • बजटीय अनुमान के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020-21 में भारत के सभी राज्यों का समग्र सकल राजकोषीय घाटा (GFD), सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) का 2.8 प्रतिशत रह सकता है, हालाँकि यह केवल बजटीय अनुमान है और वास्तविकता इससे कहीं अधिक हो सकती है।
    • इस प्रकार हम कह सकते हैं कि भारत के लगभग सभी राज्य उच्च राजकोषीय घाटे और राजस्व में कमी के साथ महामारी का मुकाबला कर रहे हैं। ऐसे में राज्यों के लिये महामारी के विरुद्ध यह लड़ाई और भी चुनौतीपूर्ण हो गई है। 
  • कब तक रहेगी यह स्थिति?
    • वर्तमान में भारत के राज्य एक ऐसी स्थिति में पहुँच गए हैं जहाँ एक तरफ मांग में कमी के कारण राजस्व में कमी आ रही है, वहीं दूसरी ओर महामारी के कारण सरकारी व्यय में लगातार वृद्धि हो रही है। इसे ‘सीज़र इफेक्ट’ के रूप में भी जाना जाता है।
    • राज्यों की वित्तीय स्थिति पर तनाव की अवधि मुख्य तौर पर लॉकडाउन की अवधि और वायरस संक्रमण के बढ़ते जोखिम जैसे कारकों पर निर्भर करेगी। यद्यपि देश के लगभग सभी हिस्सों में लॉकडाउन को समाप्त कर दिया गया है किंतु भारत अभी भी विश्व में कोरोना वायरस के मामलों में दूसरे स्थान पर बना हुआ है।
      • ऐसे में आगामी कुछ वर्ष राज्य सरकारों के लिये काफी चुनौतीपूर्ण हो सकते हैं।
  • राज्यों पर प्रभाव
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की मानें तो आगामी कुछ वर्षों के लिये राज्यों के राजस्व, खासतौर पर कर राजस्व में कमी आ सकती है। विकास और कर राजस्व के बीच स्पष्ट संबंध होता है और विकास के नकारात्मक होने पर कर राजस्व जीडीपी की तुलना में अधिक तेज़ी से गिरता है। 
    • महामारी से संबंधित व्यय, खासतौर पर स्वास्थ्य और अन्य सहायक उपायों पर किये जाने वाले व्यय के कारण राज्य सरकारों के कुल व्यय में बढ़ोतरी हो रही है जिसके कारण ‘सीज़र इफेक्ट’ की अवधि और लंबी हो सकती है।
    • ऐसी स्थिति में राज्य सरकारों को निवेश संबंधी परियोजनाओं पर रोक लगाने जैसे कठिन निर्णय लेने पड़ सकते हैं। हालाँकि निवेश संबंधी विकास परियोजनाओं पर रोक लगाने से राज्य की आर्थिक वृद्धि पर काफी प्रभाव पड़ सकता है।
    • इस प्रभाव के कारण राज्यों की ऋणग्रस्तता में बढ़ोतरी होगी और यदि ऐसे में राज्यों की अर्थव्यवस्था में सुधार नहीं होता है तो उनकी राजकोषीय स्थिरता प्रभावित होगी और राज्यों द्वारा अब तक इस दिशा में जो प्रयास किये गए हैं वे सभी व्यर्थ हो जाएंगे। 

पूर्व में ऐसी स्थिति?

  • भारत में पूर्व की चार महामारियों- प्लेग (वर्ष 1896), स्पैनिश फ्लू (वर्ष 1918), एशियाई फ्लू (वर्ष 1957) और चेचक (वर्ष 1974) के आँकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इन सभी महामारियों के दौरान आर्थिक संकुचन देखा गया था। 
    • विश्लेषण के अनुसार, वर्ष 1918 में स्पैनिश फ्लू के कारण तत्कालीन अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक तकरीबन 13 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी।
  • अधिकांश महामारियों के दौरान लगभग 2 वर्ष की अवधि में आर्थिक विकास की गति वापस अपने स्थान पर आती है, किंतु वर्ष 1918 की महामारी के बाद अर्थव्यवस्था को महामारी के पूर्व की आर्थिक गति प्राप्त करने के लिये चार वर्ष का समय लग गया था।

केरल और धारावी मॉडल

  • केरल मॉडल: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के मुताबिक सशक्त स्थानीय संस्थानों और सामुदायिक भागीदारी के कारण केरल सरकार को महामारी से प्रभावित लोगों तक पहुँचने में काफी मदद मिली है।
    • कोरोना संक्रमण के मामलों में हो रही बढ़ोतरी के साथ केरल इस मामलों से निपटने के लिये सक्रीय रूप से स्थानीय स्वशासन (LSGs) की सेवाओं का उपयोग कर रहा है।
    • केरल में स्थानीय स्वशासन (LSGs) को सूचनाओं के संग्रह, जागरूकता फैलाने, संवेदनशील वर्ग की पहचान करने, क्वारंटाइन और लॉकडाउन संबंधी दिशा-निर्देशों का पालन करवाने, सार्वजनिक स्थानों को कीटाणुरहित करने और क्वारंटाइन केंद्रों पर आवश्यक सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करने का कार्य सौंपा गया है।
    • यही कारण है कि राज्य में महामारी के शुरुआती दौर में संक्रमण को रोकने में काफी सफलता मिली थी, किंतु जैसे-जैसे विदेश से लोग केरल आ रहे हैं और नियमों में छूट दी जा रही है वैसे-वैसे मामलों में भी बढ़ोतरी हो रही है।
  • धारावी मॉडल: रिज़र्व बैंक ने अपने अध्ययन में कहा है कि मुंबई के धारावी में महामारी से मुकाबले में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) और सामुदायिक भागीदारी ने काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
    • महामारी से इस मुकाबले के दौरान प्रशासन ने स्थानीय निजी डॉक्टरों, अस्पतालों, गैर-सरकारी संगठनों, स्वयंसेवकों और चुने हुए प्रतिनिधियों तथा नागरिक समाज संगठनों के साथ करार किया और साथ ही अधिक-से-अधिक परीक्षण, प्रोएक्टिव स्क्रीनिंग, कांटैक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन और क्वारंटाइन जैसे उपाय भी अपनाए गए।
    • सामुदायिक भागीदारी और सामूहिक एकजुटता ने धारावी में महामारी के प्रकोप को रोकने में प्रमुख भूमिका निभाई। 
    • ध्यातव्य है कि बीते दिनों विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी धारावी द्वारा किये गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा था कि अन्य देशों को भी इस तरह के उपाय अपनाने पर विचार करना चाहिये। 

आगे की राह 

  • आवश्यक है कि राज्य सरकारों द्वारा अपने व्यय को ऐसी निवेश परियोजनाओं पर केंद्रित करना चाहिये, जिनमें उत्पादकता काफी अधिक हो। वहीं सीमित राजस्व वाले राज्यों को उच्च उत्पादकता वाली विकास परियोजनाओं के स्थान पर श्रम-गहन परियोजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • राज्यों को कर अनुपालन में सुधार करके और कर आधार में विस्तार करने के लिये प्रशासन के अधिक-से-अधिक डिजिटलाइज़ेशन के माध्यम से कर संग्रहण में सुधार करना होगा।
    • डिजिटलाइज़ेशन के ज़रिये प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रणाली में सुधार किया जा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

न्यायालय की कार्यवाही का लाइव प्रसारण

प्रिलिम्स के लिये: 

 ई-कोर्ट, उच्चतम न्यायालय की ‘ई-समिति’

मेन्स के लिये: 

ई-कोर्ट की संभावनाएँ और चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) शरद ए. बोबडे ने न्यायालयों की कार्यवाही के लाइव प्रसारण का दुरुपयोग किये जाने के संदर्भ में अपनी चिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु:  

  • भारत के महान्यायवादी (Attorney general) के.के. वेणुगोपाल ने न्यायालयों की कार्यवाही तक सभी की पहुँच को आसान बनाने के लिये इसे लाइव प्रसारित किये जाने पर बल दिया था।
  • गौरतलब है कि हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा प्रयोगात्मक आधार पर अपनी अदालती सुनवाई का लाइव प्रसारण यूट्यूब पर  किया गया था।
    • गुजरात उच्च न्यायालय द्वारा इस प्रयोग के परिणाम के आधार पर लाइव प्रसारण को जारी रखने या इसके तौर-तरीकों के निर्धारण पर निर्णय लिया जाएगा।
  • मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर सार्वजनिक रूप से चर्चा नहीं की जानी चाहिये साथ ही न्यायालय की कार्यवाही के लाइव प्रसारण से इसके दुरुपयोग का भय भी बना रहेगा।  

पृष्ठभूमि:   

  • गौरतलब है कि वर्ष 2018 में स्वप्निल तिवारी बनाम भारतीय उच्चतम न्यायालय मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय पीठ ने सर्वसम्मति से माना था कि नागरिकों द्वारा न्यायालय की कार्यवाही का लाइव प्रसारण देखने की सुविधा संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत प्राप्त न्याय तक पहुँच के अधिकार का हिस्सा है। 
  • COVID-19 महामारी के कारण देश में लागू हुए लॉकडाउन के बाद देश के विभिन्न न्यायालयों में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मामलों की सुनवाई की जा रही है।
  • इन सुनवाइयों के दौरान अधिवक्ताओं, पीड़ित और आरोपी पक्ष, गवाह आदि को शामिल होने की सुविधा प्रदान की गई है।
  • 6 अप्रैल, 2020 को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने न्यायालयों की कार्यवाही के लाइव प्रसारण और वेब आधारित सुनवाई के लिये 7 दिशा निर्देश जारी किये थे।
  • उच्चतम न्यायालय की ‘ई-समिति’ द्वारा निर्धारित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग नियमों के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से चल रही अदालती कार्यवाही को जनता को देखने की अनुमति देने की बात कही गई है।
  • इससे पहले वर्ष 2019 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने फरीदाबाद में अपना पहला आभासी न्यायालय/वर्चुअल कोर्ट (Virtual Court) या ई-कोर्ट लॉन्च किया था।

लाभ:

  • न्यायालयों की कार्यवाही के लाइव प्रसारण से न्यायालय तक लोगों की पहुँच को आसान बनाया जा सकेगा।
  • इसके माध्यम से न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ेगी और इसके प्रति लोगों का विश्वास भी मज़बूत होगा। 
  • लाइव प्रसारण के माध्यम से लोग विश्व में किसी भी स्थान पर रहते हुए अपने मामले की निगरानी कर सकेंगे जिससे धन और समय की बचत होगी।
  • न्यायालय की कार्यवाही के प्रसारण से इसकी कार्यप्रणाली और कानून के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ेगी तथा किसी विवाद के मामले में न्यायालय जाने के संदर्भ में उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।

चुनौतियाँ:

  • न्यायालय की कार्यवाही का लाइव प्रसारण राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं के साथ कुछ मामलों (जैसे-वैवाहिक विवाद और यौन उत्पीड़न के मामले) में लोगों की निजता के अधिकार को भी प्रभावित कर सकता है।
  • इसके साथ ही न्यायालय की कार्यवाही का अनधिकृत पुनर्प्रसारण, इसका व्यावसायीकरण या इसके दुरूपयोग से जुड़े अन्य मुद्दे भी चिंता का विषय हैं।

आगे की राह:

  • न्यायालय की कार्यवाही का लाइव प्रसारण भारतीय न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • न्यायालय की कार्यवाही का लाइव प्रसारण बहुत ही संवेदनशील विषय है ऐसे में इसमें सभी प्रकार की सावधानियों को ध्यान में रखना बहुत ही आवश्यक है, उदाहरण के लिये- गुजरात उच्च न्यायालय में किसी अप्रिय या असुविधाजनक सामग्री को लाइव जाने से रोकने के लिये न्यायालय की कार्यवाही और इसके प्रसारण में 20 सेकेंड का विलंब सुनिश्चित किया जाता है।  

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

फ्रांँस के समर्थन में भारत

प्रिलिम्स के लिये

फ्रांँस और तुर्की की अवस्थिति

मेन्स के लिये 

भारत-फ्रांँस संबंध के दृष्टिकोण से हालिया घटनाक्रम का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

भारत ने फ्रांँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन का खुले तौर पर समर्थन किया है, ध्यातव्य है कि पाकिस्तान और तुर्की द्वारा फ्रांँस के लोगों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बचाव करने के लिये उनकी आलोचना की जा रही है।

प्रमुख बिंदु

भारत का समर्थन

  • अंतर्राष्ट्रीय विमर्श के सबसे बुनियादी मानकों के उल्लंघन का विरोध करते हुए भारत ने तुर्की और पाकिस्तान द्वारा की जा रही फ्रांँस के राष्ट्रपति की व्यक्तिगत आलोचना की निंदा की।
  • साथ ही भारत ने क्रूर आतंकवादी हमले के रूप में एक स्कूल शिक्षक की हत्या की घटना की भी निंदा की।
  • जबकि फ्रांँस में एक वर्ग विशेष को अपमानजनक लगने वाले कैरिकेचर या कार्टून को लेकर पहले भी विवाद हो चुके हैं, किंतु भारत के लिये दूसरे देशों में धर्म संबंधी विवाद पर अपना पक्ष देना काफी असामान्य घटना है।
  • ज्ञात हो कि वर्ष 2015 में भी फ्रांँस की चार्ली हेब्दो पत्रिका के पत्रकारों और कार्टूनिस्टों पर हुए हमले के बाद भारत ने इस घटना की निंदा की थी।
  • फ्रांँस के राष्ट्रपति को भारत का समर्थन इस तथ्य से भी प्रेरित है कि उनकी आलोचना मुख्य तौर पर पाकिस्तान और तुर्की द्वारा की जा रही है, ये वही दो देश हैं जो जम्मू-कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर बार-बार भारत पर हमला करते रहते हैं।

पृष्ठभूमि

  • असल में इस पूरे विवाद की शुरुआत फ्रांँस के एक स्कूल में हुई, जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आयोजित क्लास में सैमुअल पैटी नाम के एक शिक्षक ने अपने छात्रों को पैगंबर (Prophet) के कुछ कैरिकेचर दिखाए, जो कि व्यंग्य पत्रिका चार्ली हेब्दो द्वारा वर्ष 2015 में प्रकाशित किये गए थे।
  • इसके अगले ही दिन एक चरमपंथी द्वारा सैमुअल पैटी की हत्या कर दी गई, इस घटना में एक 18 वर्षीय चरमपंथी युवक मुख्य आरोपी है।
  • इस हत्या की निंदा करते हुए फ्रांँस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने अभिव्यक्ति और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की स्वतंत्रता का बचाव किया था।
  • इसके जवाब में तुर्की और पाकिस्तान ने फ्रांँसीसी राष्ट्रपति पर इस्लाम-विरोधी एजेंडा चलाने और मुसलमानों को भड़काने का आरोप लगाया था।
  • ज्ञात हो कि ईरान और सऊदी अरब ने भी कार्टून की निंदा की है तथा अब संपूर्ण मुस्लिम जगत में फ्रांँस के उत्पादों का बहिष्कार करने की मांग की जा रही है।

भारत-फ्रांँस संबंध

France

भारत और फ्रांँस के संबंध विशेष तौर पर आतंकवाद, रक्षा, परमाणु और अंतरिक्ष जैसे पारस्परिक हित के मुद्दों पर पारंपरिक रूप से काफी घनिष्ट और मैत्रीपूर्ण रहे हैं। 

  • वाणिज्यिक संबंध: भारत और फ्रांँस के बीच द्विपक्षीय निवेश और व्यापार तथा वाणिज्य के क्षेत्र में संबंध काफी महत्त्वपूर्ण हैं। ध्यातव्य है कि फ्रांँस, भारत के लिये विदेशी निवेश का एक प्रमुख स्रोत बन कर सामने आया है और वर्ष 2018 में फ्रांँस की तकरीबन 1000 कंपनियाँ भारत में कार्य कर रही थीं। आँकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2000 से दिसंबर 2018 के बीच फ्रांँस से भारत में कुल 6.59 बिलियन डॉलर का विदेशी निवेश हुआ था।
  • रक्षा संबंध: मैरीटाइम डोमेन अवेयरनेस (MDA) के क्षेत्र में सुधार के प्रयासों के तहत फ्रांँस भारतीय नौसेना के सूचना संलयन केंद्र (IFC-IOR) में एक संपर्क अधिकारी तैनात करने वाला पहला देश है।
    • दोनों देशों के बीच समय-समय पर मंत्रिस्तरीय रक्षा संबंधी वार्ता का आयोजन किया जाता है। दोनों देशों के बीच कुल तीन सैन्य अभ्यासों- अभ्यास वरुण (नौसेना), अभ्यास गरुण (वायु सेना) और अभ्यास शक्ति (थल सेना) का आयोजन किया जाता है।
    • हाल ही में फ्रांँस की डसॉल्ट एविएशन (Dassault Aviation) कंपनी द्वारा निर्मित पाँच राफेल लड़ाकू विमान (Rafale Fighter Jets) फ्रांँस से हरियाणा स्थित अंबाला एयर बेस (Ambala Air Base) पहुँचे थे। 
  • अंतरिक्ष: भारत और फ्रांँस के बीच अंतरिक्ष के क्षेत्र में सहयोग का एक समृद्ध इतिहास रहा है और इसरो, फ्रांँस की अंतरिक्ष एजेंसी, सीएनईएस (CNES) के साथ मिलकर बीते पचास से भी अधिक वर्षों से विभिन्न संयुक्त अनुसंधान कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है।
    • फ्रांँस ने वर्ष 2025 के लिये निर्धारित भारत के शुक्र ग्रह से संबंधित मिशन का हिस्सा बनने हेतु सहमति व्यक्त की है।

आगे की राह

  • फ्रांँस और भारत के संबंध साझा लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव पर टिके हुए हैं तथा दोनों देश सतत् विकास एवं जलवायु परिवर्तन जैसे विभिन्न मुद्दे साझा करते हैं।
  • फ्रांँस, भारत के लिये वैश्विक मुद्दों पर यूरोप के साथ गहरे जुड़ाव का रास्ता भी खोलता है, खासकर ब्रेक्जिट के कारण इस क्षेत्र में अनिश्चितता के बाद यह और भी महत्त्वपूर्ण हो गया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

PLACID परीक्षण

प्रिलिम्स के लिये

यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण

मेन्स के लिये

COVID-19 परीक्षण   

चर्चा में क्यों:

हाल ही में PLACID परीक्षण, एक बहुस्तरीय यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (Randomized Controlled Trial) से पता चला है कि COVID -19 रोगियों के उपचार के लिये कान्वलेसंट  प्लाज़्मा (Convalescent Plasma- CP) का उपयोग करने पर कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं दिखा और रोगियों के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ।

प्रमुख बिंदु

  • यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (RCT) एक ऐसा परीक्षण है जिसमें विषयों को एक या दो समूहों में यादृच्छिक रूप से बाँटा जाता है: एक (प्रायोगिक समूह) वह समूह जिस पर परीक्षण किया जा रहा है, और दूसरा (तुलना समूह या नियंत्रण) वह जो दूसरे वैकल्पिक उपचार (पारंपरिक) प्राप्त कर रहा है।
  • कान्वलेसंट प्लाज़्मा थेरेपी (Convalescent Plasma Therapy-CPT):
    • संक्रमण से मुक्त होने वाले रोगियों के रक्त से निकाला गया कान्वलेसंट प्लाज़्मा, संक्रमण के खिलाफ एंटीबॉडी का एक स्रोत है।
    • इस थेरेपी में उन लोगों से रक्त लिया जाता है जो बीमारी से उबर चुके हैं।
    • COVID-19 से ठीक हुए लोगों द्वारा दान किये गए रक्त में वायरस का एंटीबॉडी होता है। दान किये गए रक्त को रक्त कोशिकाओं को हटाने के लिये संसाधित किया जाता है, जो तरल (प्लाज़्मा) और एंटीबॉडी को स्थानांतरित कर देता है। ये COVID-19 के मरीज़ों को वायरस से लड़ने की उनकी क्षमता को बढ़ाने के लिये दिया जा सकता है।
    • COVID -19 के  प्रलेखित मामले (Documented Case) में निगेटिव आने के बाद और पिछले 28 दिनों तक स्वस्थ रहने के बाद ही कोई प्लाज़्मा दान कर सकता है।
  • PLACID परीक्षण:
    • इस परीक्षण  का आयोजन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research- ICMR) द्वारा किया गया था और इसका उद्देश्य COVID-19 के उपचार के लिये CPT की प्रभावशीलता की जाँच करना था।
    • यह दुनिया का पहला और सबसे बड़ा यादृच्छिक नियंत्रण परीक्षण (First and largest randomised Control Trial) है।
  • जाँच - परिणाम:
    • परीक्षण के परिणामों से पता चलता है कि कान्वलेसंट प्लाज़्मा के माध्यम से इलाज वाले रोगियों में सामान्य देखभाल वाले COVID-19 रोगियों की तुलना में 28 दिनों की मृत्यु दर में कोई अंतर नहीं था।
    • जबकि कान्वलेसंट प्लाज़्मा के उपयोग से मध्यम रूप से प्रभावित COVID-19 के रोगियों में साँस और थकान की समस्या में सुधार हुआ।
  • निष्कर्षों का प्रभाव:
    • ICMR अब राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों से CPT के विकल्प को हटाने पर विचार कर रहा है।
      • भारत में COVID-19 के इलाज के रूप में CPT ने सोशल मीडिया पर दानदाताओं के लिये कॉल और ब्लैक मार्केट में प्लाज़्मा की बिक्री जैसी संदिग्ध प्रथाओं को जन्म दिया है।
      • यद्यपि नियमों के अनुसार, कान्वलेसंट प्लाज़्मा संक्रमित होने पर उपचार का एक सुरक्षित रूप है,  परंतु इसमें संसाधन-गहन प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जैसे- प्लास्मफेरेसिस (रक्त कोशिकाओं से प्लाज़्मा को अलग करना), प्लाज़्मा भंडारण और एंटीबॉडी को निष्क्रिय करने की माप करने वाले संस्थानों की एक सीमित संख्या है।
      • हालाँकि विशेषज्ञों ने माना है कि ये दिशा-निर्देश अनिवार्य रूप से बाध्यकारी नहीं हैं और यह कान्वलेसंट प्लाज़्मा थेरेपी को खारिज करने के लिये जल्दबाजी होगी।

आगे का रास्ता

  • COVID-19 एक नया वायरस है और वैश्विक समुदाय अभी भी सबसे अच्छे चिकित्सीय विकल्पों की तलाश में है, इसलिये एक दृढ़ कदम उठाना जल्दबाज़ी होगी।
    • उदाहरण के लिये रेमेडिसिविर (Remdesivir) को यूएसए ड्रग रेगुलेटर द्वारा पसंद की दवा (Drug of Choice) के रूप में मंज़ूरी दी गई है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन के सॉलिडैरिटी ट्रायल (Solidarity Trial) में पाया गया है कि 28 दिन के दौरान इसका COVID-19 की मृत्यु दर पर कम या कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
  • कुछ उपचारों को सहानुभूति के आधार पर जारी रखा जा सकता है और एक या दो परीक्षणों के परिणामों से संपूर्ण उपचार या चिकित्सा को समाप्त नहीं करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-मध्य एशिया वार्ता की दूसरी बैठक

प्रिलिम्स के लिये

मध्य एशिया, अश्गाबात समझौता 

मेन्स के लिये

भारत और मध्य एशिया के बीच विकसित होते संबंध 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत-मध्य एशिया वार्ता की दूसरी बैठक में मध्य एशियाई गणराज्यों ने आतंकवाद के ‘सुरक्षित ठिकानों’ (Safe Havens) को नष्ट करने की मांग करते हुए संयुक्त रूप से अफगानिस्तान में शांति वार्ता के लिये समर्थन व्यक्त किया जो युद्धग्रस्त देश (अफगानिस्तान) के लिये एक नए युग की शुरुआत की उम्मीद है। 

प्रमुख बिंदु:

  • द्वितीय भारत-मध्य एशिया वार्ता के दौरान भारत एवं मध्य एशियाई देशों के प्रतिनिधियों ने आतंकवाद के सभी रूपों एवं अभिव्यक्तियों की कड़ी निंदा की और आतंकवादियों के सुरक्षित पनाहगाहों, नेटवर्क, बुनियादी ढाँचे एवं फंडिंग चैनलों को नष्ट करके इस खतरे का मुकाबला करने के लिये अपने दृढ़ संकल्प की पुष्टि की।
    • इस अवसर पर सभी देशों ने यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी देश में आतंकवादी हमले के  लिये अपनी ज़मीन का इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा।
  • इस वार्ता बैठक में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मध्य एशियाई क्षेत्र को भारत का ‘विस्तारित पड़ोसी’ (Extended Neighborhood) बताया।
  • भारत की तरफ से मध्य एशियाई देशों के लिये अतिरिक्त $1 बिलियन लाइन ऑफ क्रेडिट की घोषणा की गई जिसे प्रमुख अवसंरचना एवं कनेक्टिविटी परियोजनाओं पर खर्च किया जाएगा।
    • $1 बिलियन ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ के अलावा भारत ने मध्य एशिया में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु उच्च प्रभाव वाली सामुदायिक विकास परियोजनाओं के लिये अनुदान सहायता की पेशकश की।
  • कज़ाखस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज़्बेकिस्तान के विदेश मंत्रियों और किर्गिज गणराज्य के पहले उप विदेश मंत्री ने अपने संयुक्त वक्तव्य में ईरान में चाबहार बंदरगाह के बुनियादी ढाँचे के आधुनिकीकरण हेतु भारत के प्रयासों पर प्रकाश डाला जो मध्य और दक्षिण एशिया के बाज़ारों के बीच व्यापार एवं परिवहन संचार में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी बन सकता है।
    • गौरतलब है कि उज़्बेकिस्तान में पहली भारत-मध्य एशिया वार्ता (First India-Central Asia Dialogue) में तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने मध्य एशिया के देशों को चाबहार बंदरगाह परियोजना में भाग लेने के लिये आमंत्रित किया था। इसे संयुक्त रूप से भारत और ईरान द्वारा अफगानिस्तान में भारतीय वस्तुओं को उतारने और उन्हें विभिन्न स्थानों पर भेजने के लिये विकसित किया गया है।

भारत और मध्य एशिया:

  • सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत मध्य-एशियाई गणराज्यों के साथ घनिष्ठ संबंध विकसित करने की कोशिश कर रहा है। 
  • मध्य एशियाई देशों के भू-आबद्ध होने के कारण भारत का सभी पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार 2 बिलियन डॉलर के आसपास है। परिणामतः मध्य एशियाई देशों के बाज़ारों तक पहुँचने के लिये भारत द्वारा चाबहार बंदरगाह को विकसित करके वैकल्पिक मार्ग तैयार किया जा रहा है।
    • हालाँकि भौगोलिक रूप से अफगानिस्तान और मध्य एशिया भू-आबद्ध क्षेत्र हैं, इसके बावजूद ऐसे कई कारक हैं जिनकी वजह से  भारत, अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देश इस क्षेत्र में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने के लिये काम कर सकते हैं ताकि देशों के बीच व्यापार और वाणिज्य के क्षेत्र में आदान-प्रदान सुनिश्चित हो सके।
  • वर्ष 2019 में भारत द्वारा मध्य एशिया के देशों के साथ एयर कॉरिडोर पर बातचीत का प्रस्ताव रखा गया जिसे व्यापार को बढ़ावा देने की कोशिश के रूप में देखा गया।
    • यद्यपि भारत ने पहले से ही भारत और कई अफगान शहरों के बीच माल के परिवहन के लिये हवाई गलियारे खोले हैं। 
    • वहीं वर्ष 2018 के अश्गाबात समझौते में शामिल होकर भारत ने ‘क्षेत्र में कनेक्टिविटी के कई विकल्पों’ का समर्थन किया है। अश्गाबात समझौते का उद्देश्य ईरान, ओमान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान के बीच एक अंतर्राष्ट्रीय परिवहन और पारगमन गलियारे की स्थापना करना है।

मध्य एशिया (Central Asia): 

Kazakhstan

  • एशिया महाद्वीप में मध्य एशिया एक ऐसा क्षेत्र है जो पश्चिम में कैस्पियन सागर से लेकर पूर्व में चीन एवं मंगोलिया तक तथा दक्षिण में अफगानिस्तान एवं ईरान से लेकर उत्तर में रूस तक फैला हुआ है।
  • इस क्षेत्र के अंतर्गत पूर्व सोवियत गणराज्य कज़ाखस्तान, किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान आते हैं।
  • मध्य एशिया ऐतिहासिक रूप से यायावर लोगों एवं सिल्क रोड के साथ निकटता से संबंधित है।
  • इसने यूरोप, पश्चिम एशिया, दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के लोगों, की आवाजाही एवं माल व विचारों के आदान-प्रदान के लिये ‘एक चौराहे के रूप में’ कार्य किया है।
  • सिल्क रोड ने मुस्लिम देशों को यूरोप, दक्षिण एशिया और पूर्वी एशिया के लोगों से जोड़ा जिस कारण मध्य एशिया की अवस्थिति ने आदिवासीवाद (Tribalism) और परंपरावाद (Traditionalism) और आधुनिकीकरण (Modernization) के बीच संघर्ष को तेज़ किया।
  • मध्य एशिया की सामरिक, आर्थिक-सामाजिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक महत्ता के कारण वर्ष 1843 में भूगोलवेत्ता अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट (Alexander von Humboldt) द्वारा ‘’मध्य एशिया को आधुनिक दुनिया के लिये विश्व के एक अलग क्षेत्र के रूप में’’ उल्लेख किया गया है। 

स्रोत- द हिंदू


शासन व्यवस्था

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट- 2020

प्रिलिम्स के लिये

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER)

मेन्स के लिये

शिक्षा पर COVID-19 का प्रभाव  

चर्चा में क्यों?

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report- ASER) सर्वेक्षण के अनुसार, देश भर में COVID-19 के मद्देनज़र स्कूल बंद होने के कारण लगभग 20% ग्रामीण बच्चों को कोई पाठ्य-पुस्तक प्राप्त नहीं हुई।   

प्रमुख बिंदु:

  • पाठ्य-पुस्तकों तक पहुँच: आंध्र प्रदेश में 35% से कम बच्चों के पास पाठ्य-पुस्तकें थीं, जबकि राजस्थान में केवल 60% बच्चों के पास पाठ्य पुस्तकें थीं। पश्चिम बंगाल, नगालैंड और असम में 98% से अधिक बच्चों के पास पाठ्य पुस्तकें थीं।
  • लर्निंग सामग्री तक पहुँच: सर्वेक्षण सप्ताह के अनुसार, लगभग तीन ग्रामीण बच्चों में से एक ने किसी भी प्रकार की सीखने की गतिविधि में भाग नहीं लिया।
    • उनके स्कूल द्वारा प्रदान की गई किसी भी प्रकार की लर्निंग सामग्री या गतिविधि तीन में से दो बच्चों के पास उपलब्ध नहीं थी और दस में से केवल एक बच्चे की पहुँच ऑनलाइन कक्षाओं तक थी।
    • वर्ष 2018 के ASER सर्वेक्षण की तुलना में स्मार्टफोन उपयोग करने वालों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है  किंतु स्मार्टफोन तक पहुँच वाले एक-तिहाई बच्चों को अभी भी कोई सीखने की सामग्री नहीं प्राप्त हुई।
  • हालाँकि देश भर में दो-तिहाई ग्रामीण बच्चों ने बताया कि उन्हें कोई भी शिक्षण सामग्री नहीं मिली। 
    • बिहार में 8% से कम बच्चों को जबकि पश्चिम बंगाल, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में 20% बच्चों को उनके स्कूलों से लर्निंग सामग्री प्राप्त हुई।
    • वहीँ दूसरी ओर हिमाचल प्रदेश, पंजाब, केरल और गुजरात में 80% से अधिक ग्रामीण बच्चों को इस तरह का इनपुट प्राप्त हुआ है।
  • वर्ष 2018 में ASER के सर्वेक्षणकर्त्ताओं ने पाया कि लगभग 36% ग्रामीण परिवार जिनके बच्चे स्कूल जा रहे थे, के पास स्मार्टफोन था। वर्ष 2020 तक यह आँकड़ा बढ़कर 62% हो गया था। लगभग 11% परिवारों ने लॉकडाउन के बाद एक नया स्मार्टफोन खरीदा।
  • 75% छात्र जिन्हें मैसेजिंग एप के माध्यम से कुछ लर्निंग इनपुट मिले हैं, से यह संकेत मिल सकता है कि क्यों WhatsApp छात्रों के लिये ‘लर्निंग सामग्री संचरण’ का अब तक का सबसे लोकप्रिय साधन हो सकता है। 
    • इनपुट प्राप्त करने वालों में से लगभग एक-चौथाई बच्चों का शिक्षक के साथ व्यक्तिगत संपर्क था।
  • स्कूलों में नए सिरे से नामांकन प्रक्रिया: सर्वेक्षण में यह देखा गया है कि वर्ष 2018 में 6-10 वर्ष की आयु के सिर्फ 1.8% ग्रामीण बच्चों की तुलना में 5.3% ग्रामीण बच्चों ने इस वर्ष (2020) अभी भी स्कूल में दाखिला नहीं लिया है।
    • यह इंगित करता है कि COVID-19 महामारी के मद्देनज़र व्यवधानों के कारण ग्रामीण परिवार बच्चों को दाखिला कराने के लिये पहले की तरह स्कूलों के खुलने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। परिणामतः 6 वर्ष तक के लगभग 10% बच्चे अभी भी स्कूल में दाखिला नहीं ले पाए हैं।
    • हालाँकि 15-16 वर्ष के बच्चों का नामांकन स्तर वर्ष 2018 की तुलना में थोड़ा अधिक है। 
      • नामांकन पैटर्न में भी बदलाव देखा गया है। सरकारी स्कूलों में नामांकन स्तर बढ़ा है।

COVID-19 के दौरान बच्चों की शिक्षा को लेकर माता-पिता की भूमिका:

  • COVID-19 महामारी के दौरान बच्चों की शिक्षा एवं संसाधनों को लेकर माता-पिता ने मुख्य भूमिका निभाई है।
  • छोटी कक्षाओं के बच्चे बड़ी कक्षाओं के बच्चों की तुलना में अधिक मदद पा रहे हैं। इसी तरह अधिक पढ़े-लिखे माता-पिता के बच्चों को कम पढ़े-लिखे माता-पिता के मुकाबले अधिक मदद मिल रही है। उदाहरण के लिये 89.4% बच्चे जिनके माता-पिता कक्षा 9 या इससे अधिक शिक्षित थे, की तुलना में 54.8% बच्चे जिनके माता-पिता कक्षा 5 या उससे कम शिक्षित थे, की तरफ से लर्निंग सामग्री से संबंधित अधिक पारिवारिक समर्थन प्राप्त हुआ है।  
  • सर्वेक्षण में यह देखा गया है कि जैसे-जैसे बच्चे बड़ी कक्षाओं में पहुँच रहे हैं माता-पिता से मिलने वाली मदद घट रही है। उदाहरण के लिये कक्षा 1-2  के बच्चों की माताएँ उनकी मदद कर पा रही हैं, जबकि कक्षा 9 और ऊपर के 15% बच्चों को ही अपनी माताओं से मदद मिल पा रही है।         

लॉकडाउन खुलने के बाद की स्थिति:  

  • यद्यपि केंद्र सरकार ने COVID-19 सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करते हुए राज्यों को स्कूलों को फिर से खोलने की अनुमति दी है, इसके बावजूद देश के 25 करोड़ छात्रों में से अधिकांश छात्र 7 महीनों के बाद भी घर पर हैं।

शिक्षा में डिजिटल विभाजन:

  • ASER सर्वेक्षण में ‘सीखने में नुकसान’ की भी एक झलक मिलती है जिससे सबसे अधिक प्रभावित ग्रामीण भारत के छात्र हैं। 
    • सर्वेक्षण में बताया गया है कि ग्रामीण क्षेत्रों में विभिन्न स्तरों पर स्कूल एवं परिवारों की संसाधनों (जैसे- प्रौद्योगिकी) तक सीमित पहुँच के कारण शिक्षा क्षेत्र में डिजिटल विभाजन बढ़ा है।

डिजिटल विभाजन: 

  • सरलतम रूप में ‘डिजिटल विभाजन’ का अर्थ समाज में सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) के उपयोग तथा प्रभाव के संबंध में एक आर्थिक और सामाजिक असमानता से है।
  • डिजिटल विभाजन की परिभाषा में प्रायः सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) तक आसान पहुँच के साथ-साथ उस प्रौद्योगिकी के उपयोग हेतु आवश्यक कौशल को भी शामिल किया जाता है।
  • इसके तहत मुख्यतः इंटरनेट और अन्य प्रौद्योगिकियों के उपयोग को लेकर विभिन्न सामाजिक-आर्थिक स्तरों या अन्य जनसांख्यिकीय श्रेणियों में व्यक्तियों, घरों, व्यवसायों या भौगोलिक क्षेत्रों के बीच असमानता का उल्लेख किया जाता है।

डिजिटल विभाजन का शिक्षा पर प्रभाव:

  • इंटरनेट ज्ञान और सूचना का एक समृद्ध भंडार उपलब्ध कराता है, कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों (ICT) की पहुँच और उपलब्धता अकादमिक सफलता तथा मज़बूत अनुसंधान गतिविधियों से जुड़ी हुई है, क्योंकि इंटरनेट के माध्यम से किसी भी सूचना तक काफी जल्दी पहुँचा जा सकता है।
  • शिक्षा एक बहुत ही गतिशील क्षेत्र है और नवीनतम सूचना एवं ज्ञान प्राप्त करना इस क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
  • सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) उपकरणों की अपर्याप्तता ने विकासशील देशों में पहले से ही कमज़ोर शिक्षा प्रणाली को और अधिक अप्रभावी बना दिया है। इस प्रकार देश के विद्यालयों के शिक्षा मानकों में सुधार करने के लिये आवश्यक है कि वहाँ कंप्यूटर और इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराई जाएँ। 

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट सर्वेक्षण:

(Annual Status of Education Report- ASER) 

  • शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual Status of Education Report-ASER) एक वार्षिक सर्वेक्षण है जिसका उद्देश्य भारत में प्रत्येक राज्य और ग्रामीण ज़िले के बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति और बुनियादी शिक्षा के स्तर का विश्वसनीय वार्षिक अनुमान प्रदान करना है।
  • ASER सर्वेक्षण ग्रामीण शिक्षा एवं सीखने के परिणामों पर आधारित एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है जिसमें पढ़ने एवं अंकगणितीय कौशल को शामिल किया गया है। 
  • इसे पिछले 15 वर्षों से एनजीओ ‘प्रथम’ (NGO Pratham) द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
  • इस वर्ष ASER सर्वेक्षण को फोन कॉल के माध्यम से आयोजित किया गया है जिसमें 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के 5-16 आयु वर्ग के 59,251 स्कूली बच्चों के साथ 52,227 परिवारों को शामिल किया गया।
  • यह आम लोगों द्वारा किया जाने वाला देश का सबसे बड़ा सर्वेक्षण है, साथ ही यह देश में बच्चों की शिक्षा संबंधी परिणामों के बारे में जानकारी का एकमात्र उपलब्ध वार्षिक स्रोत भी है।

स्रोत- द हिंदू


जैव विविधता और पर्यावरण

वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिये डैशबोर्ड

प्रिलिम्स के लिये

राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम

मेन्स के लिये

भारत में पर्यावरण प्रदूषण 

चर्चा में क्यों?

मुंबई स्थित एक स्टार्ट-अप ‘रेस्पिरर लिविंग साइंसेज़’ (Respirer Living Sciences) के सहयोग से जलवायु और ऊर्जा संबंधी समाचार वेबसाइट ‘कार्बनकॉपी’ (CarbonCopy) द्वारा स्थापित एक डैशबोर्ड को लॉन्च किया गया जो वर्ष 2016 के बाद से राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (National Air Quality Monitoring Programme- NAMP) के अंतर्गत आने वाले सभी 122 शहरों के लिये पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter- PM) की तुलनात्मक तस्वीर प्रस्तुत करता है।

प्रमुख बिंदु:

  • 28 अक्तूबर, 2020 को लॉन्च किया गया यह नया डैशबोर्ड भारत के राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों (National Ambient Air Quality Standards- NAAQS) की एक व्यापक तस्वीर प्रदान करता है जो राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के अंतर्गत आता है।
  • यह डैशबोर्ड वर्ष 2016 से 2018 तक 122 शहरों में PM2.5 और PM10 स्तरों की तीन-वर्षीय परिवर्तनीय औसत प्रवृत्ति के बारे में बताता है।

डैशबोर्ड द्वारा प्रदर्शित मुख्य तथ्य:

  • कुल 122 शहरों में से 59 शहरों में PM2.5 संबंधी डेटा उपलब्ध था। इस संबंध में नोएडा की स्थिति सबसे खराब रही उसके बाद क्रमशः आगरा, दिल्ली, लखनऊ, गाजियाबाद, मुजफ्फरपुर, कानपुर, चंडीगढ़, हावड़ा और कोलकाता का स्थान रहा।
  • तीन वर्ष के PM10 निगरानी डेटा के अनुसार, दिल्ली की स्थिति सबसे खराब रही उसके बाद क्रमशः झारखंड और उत्तर प्रदेश सबसे प्रदूषित राज्य के रूप में सामने आए।
  •  राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम में सूचीबद्ध 23 राज्यों में से केवल तीन राज्य या केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़, हिमाचल प्रदेश और पंजाब PM10 निगरानी के संबंध में सभी तीन वर्षों के लिये औसत रीडिंग हेतु ज़िम्मेदार है।
  • रेस्पिरर लिविंग साइंसेज़ के अनुसार, ‘डेटा का विश्लेषण करते समय, प्रत्येक शहर में उपलब्ध मॉनिटरों की संख्या, वर्ष दर वर्ष निगरानी क्षमता में वृद्धि या कमी और मॉनिटर करने के लिये उपलब्ध मानकों की संख्या को देखना महत्त्वपूर्ण है।

स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस


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