FSSAI ने जड़ी-बूटियों और मसालों में कीटनाशकों की सीमा बढ़ाई
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (FSSAI), कीटनाशक विषाक्तता, कोडेक्स एलिमेंटेरियस, खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006, राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक। मेन्स के लिये:कीटनाशक विषाक्तता का खतरा, FSSAI के दिशा निर्देश और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने में इसका कार्य। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
चर्चा में क्यों?
भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा मसालों में कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) बढ़ाने के हालिया फैसले ने संभावित स्वास्थ्य जोखिमों और व्यापार प्रभावों के कारण कार्यकर्त्ताओं एवं वैज्ञानिकों में आक्रोश उत्पन्न कर दिया है।
- FSSAI के आदेश ने जड़ी बूटियों और मसालों में कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) को 0.01 मिलीग्राम/किलोग्राम से बढ़ाकर 0.1 मिलीग्राम/किलोग्राम कर दिया है।
FSSAI के आदेश से जुड़ा मामला क्या है?
- FSSAI की पूर्व स्थिति में विसंगतियाँ:
- FSSAI का आदेश उसके अपने पिछले रुख के विपरीत है। अप्रैल 2022 में प्राधिकरण ने अधिकांश भारतीय कीटनाशकों के लिये क्षेत्र परीक्षण डेटा की कमी को स्वीकार किया और कोडेक्स मानकों, द्वारा स्थापित अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) का उपयोग करने की वकालत की।
- हालाँकि, मसालों और जड़ी-बूटियों के लिये नवीनतम आदेश इस रणनीति से हटकर है।
- FSSAI का आदेश उसके अपने पिछले रुख के विपरीत है। अप्रैल 2022 में प्राधिकरण ने अधिकांश भारतीय कीटनाशकों के लिये क्षेत्र परीक्षण डेटा की कमी को स्वीकार किया और कोडेक्स मानकों, द्वारा स्थापित अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) का उपयोग करने की वकालत की।
- डेटा की पारदर्शिता और विश्वसनीयता:
- मसालों एवं खाद्य पदार्थों को बनाने में प्रयुक्त की जाने वाली जड़ी बूटियों सहित खाद्य व वस्तुओं के लिये कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) खाद्य सुरक्षा और मानक (संदूषक, विषाक्त पदार्थ एवं अवशेष) विनियमन, 2011 के तहत निर्दिष्ट की गई है, जो केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड तथा पंजीकरण समिति (CIBRC) केंद्रीय कृषि एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से प्राप्त क्षेत्र परीक्षण डाटा पर आधारित है।
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हालाँकि, ये अध्ययन अक्सर कीटनाशक कंपनियों से ही उत्पन्न होते हैं, इसलिये हितों का टकराव होता है।
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- राष्ट्रीय स्तर पर कीटनाशक अवशेषों की निगरानी के लिये केंद्र (MPRNL) हमारे भोजन में कीटनाशकों की मात्रा की जाँच करती है, लेकिन यह मसालों का परीक्षण नहीं करती है और इसमें व्यापक डेटा का अभाव है।
- मसालों एवं खाद्य पदार्थों को बनाने में प्रयुक्त की जाने वाली जड़ी बूटियों सहित खाद्य व वस्तुओं के लिये कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) खाद्य सुरक्षा और मानक (संदूषक, विषाक्त पदार्थ एवं अवशेष) विनियमन, 2011 के तहत निर्दिष्ट की गई है, जो केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड तथा पंजीकरण समिति (CIBRC) केंद्रीय कृषि एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के माध्यम से प्राप्त क्षेत्र परीक्षण डाटा पर आधारित है।
- उपभोक्ताओं और व्यापार पर प्रभाव:
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जैसा कि हाल ही में अत्यधिक कीटनाशकों से युक्त भारतीय खाद्य पदार्थों का विदेशों से वापस आने से पता चलता है, यूरोप जैसे देशों में जहाँ कीटनाशकों के उपयोग के संबंध में कड़े कानून हैं, उन्होंने भारतीय उत्पादों को अस्वीकार कर दिया है जो उनके अधिकतम अवशिष्ट स्तर से अधिक हैं।
- जैसे अप्रैल 2024 में भारत में कुछ लोकप्रिय मसाला कंपनियों को कथित रूप से अपने उत्पादों में कीटनाशक 'एथिलीन ऑक्साइड' को अनुमेय सीमा से अधिक मात्र में प्रयोग करने पर सिंगापुर और हांगकांग में प्रतिबंधित कर दिया गया है।
- एथिलीन ऑक्साइड एक हानिकारक कीटनाशक है जो मानव उपभोग के लिये अनुपयुक्त है और जिसका दीर्घकालिक उपभोग कैंसर का कारण बन सकता है।
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कीटनाशक विषाक्तता क्या है?
- परिचय:
- कीटनाशक, ऐसे रासायनिक अथवा जैविक पदार्थ हैं जिनका उद्देश्य कीटों से होने वाली हानि को रोकना, कीटों को नष्ट तथा नियंत्रित करना है, इनका उपयोग कृषि एवं गैर-कृषि दोनों क्षेत्रों में होता है।
- वे मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये भी गंभीर संकट उत्पन्न करते हैं, खासकर जब उनका अत्यधिक उपयोग या दुरुपयोग किया जाता है, अथवा उन्हें अवैध रूप से बेचा जाता है।
- भारत में कीटनाशक विनियमन:
- कीटनाशकों को कीटनाशक अधिनियम, 1968 एवं कीटनाशक नियम, 1971 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है।
- 1968 का कीटनाशक अधिनियम भारत में कीटनाशकों के पंजीकरण, निर्माण और बिक्री को समाहित करता है।
- यह अधिनियम कृषि और किसान कल्याण विभाग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित है।
- कीटनाशकों को कीटनाशक अधिनियम, 1968 एवं कीटनाशक नियम, 1971 के अंतर्गत विनियमित किया जाता है।
- कीटनाशकों के प्रकार:
- कीटनाशक: पौधों को कीड़ों और कीटों से बचाने के लिये जिन रसायनों का उपयोग किया जाता है, उन्हें कीटनाशक कहा जाता है।
- कवकनाशी: फसल सुरक्षा रसायनों के इस वर्ग का उपयोग पौधों में कवक रोगों के प्रसार को नियंत्रित करने के लिये किया जाता है।
- शाकनाशी: शाकनाशी वह रसायन हैं जो कृषि क्षेत्र में खरपतवारों को समाप्त करते हैं अथवा उनकी वृद्धि को नियंत्रित करते हैं।
- जैव-कीटनाशक: ये जैविक मूल के कीटनाशक होते हैं, जो जानवरों, पौधों, बैक्टीरिया आदि से प्राप्त होते हैं।
- अन्य: इसमें पादप वृद्धि नियामक, सूत्रकृमिनाशक (नेमाटीसाइड), कृंतकनाशक और धूम्रकारी (फ्यूमिगेंट) सम्मिलित हैं।
- कीटनाशक विषाक्तता की अवधारणा:
- कीटनाशक विषाक्तता एक शब्द है जो मनुष्यों अथवा पशुओं पर कीटनाशकों के संपर्क के प्रतिकूल प्रभावों को संदर्भित करता है।
- कीटनाशकों के संपर्क से कैंसर, प्रजनन एवं प्रतिरक्षा या तंत्रिका तंत्र सहित स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, कीटनाशक विषाक्तता विश्व भर में कृषि श्रमिकों की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।
- कीटनाशक विषाक्तता के प्रकार:
- तीव्र विषाक्तता तब होती है जब कोई व्यक्ति कम समय में अत्यधिक मात्रा में कीटनाशक ग्रहण करता है, श्वास के माध्यम से अथवा किसी अन्य माध्यम से उसके संपर्क में आता है।
- दीर्घकालिक विषाक्तता तब होती है जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक कीटनाशकों की कम मात्रा के संपर्क में रहता है, जो शरीर में विभिन्न अंगों और प्रणालियों को नुकसान पहुँचा सकता है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण क्या है?
- परिचय:
- भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
- खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 ने खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम, 1954, फल उत्पाद आदेश, 1955, मांस खाद्य उत्पाद आदेश, 1973 जैसे अधिनियमों को प्रतिस्थापित कर दिया।
- यह केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत संचालित होता है।
- भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
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अधिकार:
- FSSAI के पास खाद्य पदार्थों के विनिर्माण, भंडारण, वितरण, बिक्री और आयात को विनियमित करने तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये मानक निर्धारित करने का अधिकार है।
- संरचना और संगठन:
- यह 22 सदस्यों और एक अध्यक्ष से मिलकर बना है। इसमें एक-तिहाई महिला सदस्यों का होना अनिवार्य है।
- कार्य:
- खाद्य सुरक्षा मानक निर्धारित करना: इसके पास देश में खाद्य सुरक्षा मानकों को लागू एवं निर्धारित करने के लिये नियम बनाने की शक्ति है।
- खाद्य परीक्षण मान्यता: इसके पास देश में खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाओं के प्रत्यायन (आधिकारिक मान्यता देना) हेतु दिशानिर्देश स्थापित करने की शक्ति है।
- निरीक्षण प्राधिकारी की शक्तियाँ: खाद्य सुरक्षा अधिकारियों को ऐसे किसी भी स्थान पर प्रवेश करने और निरीक्षण करने का अधिकार है जहाँ खाद्य उत्पादों का विनिर्माण, भंडारण या प्रदर्शन किया जाता है।
- खाद्य सुरक्षा अनुसंधान: FSSAI का अनुसंधान एवं विकास प्रभाग खाद्य सुरक्षा मानकों के क्षेत्र में अनुसंधान हेतु उत्तरदायी है। ये लगातार अंतर्राष्ट्रीय खाद्य मानकों को अपनाने का प्रयास करते हैं।
- खतरों की पहचान करना: FSSAI के लिये खाद्य खपत, संदूषण, उभरते जोखिमों आदि के संबंध में डेटा एकत्र करना अनिवार्य है।
- FSSAI के कार्यक्रम और अभियान:
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: जड़ी-बूटियों और मसालों में कीटनाशकों की अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) बढ़ाने पर FSSAI के हालिया आदेश के संदर्भ में कीटनाशक विषाक्तता के विषय में विस्तार से बताइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्स:प्रश्न. खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्रक की चुनौतियों के समाधान हेतु भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीति को सविस्तार स्पष्ट कीजिये। (2019) |
नाबार्ड की जलवायु रणनीति 2030
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, हरित वित्तपोषण, ग्रीनवॉशिंग, सौर ऊर्जा संचालित सिंचाई, जलवायु-स्मार्ट कृषि मेन्स के लिये:नाबार्ड की जलवायु रणनीति, हरित वित्तपोषण से संबंधित चुनौतियाँ |
स्रोत: नाबार्ड
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) ने अपने जलवायु रणनीति 2030 दस्तावेज़ का अनावरण किया, जिसका उद्देश्य भारत की हरित वित्तपोषण की आवश्यकता को संबोधित करना है।
नाबार्ड की जलवायु रणनीति क्या है?
- परिचय: नाबार्ड की जलवायु रणनीति 2030 चार प्रमुख स्तंभों के आसपास संरचित है:
- हरित ऋण में तेज़ी लाना: विभिन्न क्षेत्रों में हरित वित्तपोषण बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना।
- बाज़ार-निर्माण की भूमिका: हरित वित्त के लिये अनुकूल बाज़ार वातावरण बनाने में व्यापक भूमिका निभाना।
- आंतरिक हरित परिवर्तन: नाबार्ड के संचालन के भीतर स्थायी प्रथाओं को लागू करना।
- रणनीतिक संसाधन संघटन: हरित पहलों का समर्थन करने के लिये प्रभावी ढंग से संसाधनों का संघटन करना।
- उद्देश्य: यह रणनीति स्थायी पहल के लिये आवश्यक निवेश और हरित वित्त के वर्तमान प्रवाह के बीच वित्तीय अंतर से निपटने के लिये डिज़ाइन की गई है।
- भारत को वर्ष 2030 तक सालाना लगभग 170 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता है, जिसका कुल संचयी लक्ष्य 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक है।
- हालाँकि, वर्तमान हरित वित्त प्रवाह अपर्याप्त है, वर्ष 2019-20 तक केवल लगभग 49 बिलियन अमेरिकी डॉलर ही जुटाए गए थे।
- इसके अतिरिक्त, भारत में अधिकांश वित्त शमन प्रयासों के लिये निर्धारित किया गया है, अनुकूलन और लचीलेपन के लिये केवल 5 बिलियन अमेरिकी डॉलर आवंटित किये गए हैं।
- यह बैंक योग्यता और वाणिज्यिक व्यवहार्यता में चुनौतियों के कारण इन क्षेत्रों में न्यूनतम निजी क्षेत्र की भागीदारी को दर्शाता है।
नोट:
- नाबार्ड भारत में ग्रामीण क्षेत्र के वित्त पर ध्यान केंद्रित करने वाला शीर्ष विकास बैंक है।
- वर्ष 1982 में राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक अधिनियम के तहत स्थापित, यह संसद द्वारा अनिवार्य कृषि, लघु उद्योगों, कुटीर उद्योगों एवं ग्रामीण परियोजनाओं के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
- इसका मुख्यालय मुंबई में है।
हरित वित्तपोषण क्या है?
- परिचय: हरित वित्तपोषण से तात्पर्य सकारात्मक पर्यावरणीय प्रभाव वाले निवेशों का समर्थन करने के लिये वित्तीय संसाधनों के संघटन से है।
- ये निवेश नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं एवं ऊर्जा दक्षता पहल से लेकर स्थायी बुनियादी ढाँचे के विकास और जलवायु-स्मार्ट कृषि तक हो सकते हैं।
- महत्त्व: पारंपरिक वित्तीय प्रणाली अक्सर दीर्घकालिक पर्यावरणीय स्थिरता पर अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देती है। हरित वित्तपोषण का लक्ष्य इस अंतर को समाप्त करना है:
- निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को सुविधाजनक बनाना: नवीकरणीय ऊर्जा और स्वच्छ प्रौद्योगिकियों के लिये वित्त में वृद्धि करके और साथ ही हरित वित्तपोषण, जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता तथा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में सहायता करता है।
- जलवायु अनुकूलन और लचीलेपन को बढ़ावा देना: बाढ़ सुरक्षा और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों जैसे हरित बुनियादी ढाँचे में निवेश समुदायों को बदलती जलवायु के अनुकूल होने तथा प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव को कम करने में सहायता कर सकता है।
- नए आर्थिक अवसरों को ढूँढना: हरित अर्थव्यवस्था की ओर बदलाव स्वच्छ प्रौद्योगिकियों और स्थायी प्रथाओं के लिये नए बाज़ार बनाता है, नवाचार व रोज़गार सृजन को प्रोत्साहित करता है।
- हरित वित्तपोषण से संबंधित चुनौतियाँ:
- उच्च प्रारंभिक लागतः दीर्घकालिक लागत बचत और पर्यावरणीय लाभों के बावजूद, निवेशक हरित परियोजनाओं में भाग लेने से हतोत्साहित हो सकते हैं क्योंकि उन्हें आमतौर पर पारंपरिक परियोजनाओं की तुलना में बड़े प्रारंभिक निवेश की आवश्यकता होती है।
- असंगत समयसीमा: हरित पहल में अक्सर भुगतान की लंबी अवधि होती है और यह निवेशकों और वित्तीय संस्थानों के अल्पकालिक निवेश क्षितिज या वित्तीय लक्ष्यों में समायोजित नहीं हो पाती है।
- मानकीकरण और ग्रीनवॉशिंग का अभाव: हरित निवेश के लिये विश्व स्तर पर स्वीकृत मानकों की अनुपस्थिति उनके पर्यावरणीय प्रभाव एवं वित्तीय प्रदर्शन के मूल्यांकन में अस्पष्टता और असंगतता का कारण बनती है।
- इसके अलावा इसमें, स्पष्ट और मानकीकृत मानदंडों के बिना, ग्रीनवॉशिंग का जोखिम है, जहाँ निवेश को पर्याप्त स्थिरता लाभ प्रदान किये बिना पर्यावरण के अनुकूल के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया जाता है।
हरित वित्तपोषण में कैसे सुधार किया जा सकता है?
- हरित परियोजनाओं के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-संचालित जोखिम मूल्यांकनः AI एल्गोरिदम विकसित करना जो अधिक सटीकता और दक्षता के साथ हरित परियोजनाओं से जुड़े पर्यावरणीय एवं वित्तीय जोखिमों का आकलन कर सकता है।
- यह पारंपरिक वित्तीय संस्थानों को हरित वित्तपोषण में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
- उपग्रह डेटा-संचालित सतत निवेश निर्णयः उपग्रह इमेजरी और डेटा एनालिटिक्स का उपयोग करके टिकाऊ कृषि या वनों की कटाई जैसे क्षेत्रों में संभावित निवेश के पर्यावरणीय प्रभाव का मूल्यांकन कर निवेशकों को डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करके।
- सरकारी गारंटी के साथ हरित अवसंरचना बॉण्ड: निजी निवेशकों के लिये जोखिम को कम करने और बड़े पैमाने पर टिकाऊ बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिये आंशिक सरकारी गारंटी के साथ हरित बुनियादी ढाँचा बॉण्ड तैयार करना।
- ज़मीनी स्तर पर हरित पहलों के लिये सूक्ष्म अनुदानः वर्षा जल संचयन, सौर-संचालित सिंचाई, अथवा सामुदायिक रूप से खाद तैयार करने जैसी पहल जैसी लघु-स्तरीय हरित परियोजनाओं को विकसित और लागू करने में स्थानीय समुदायों का समर्थन करने हेतु सूक्ष्म-अनुदान कार्यक्रमों की स्थापना करना।
- वित्तीय उत्पादों के लिये हरित प्रभाव स्कोर: एक ऐसी प्रणाली स्थापित करना जहाँ वित्तीय वस्तुओं का मूल्यांकन उनके पर्यावरणीय प्रभाव, या "हरित प्रभाव स्कोर" के अनुसार किया जाता है। यह ग्राहकों को हरित विकल्पों को प्राथमिकता देने और सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: हरित अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को सरल बनाने के लिये हम सतत् विकास के ढाँचे के भीतर हरित वित्तपोषण को किन रचनात्मक तरीकों द्वारा बढ़ावा दे सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. नवंबर 2021 में ग्लासगो में विश्व के नेताओं के शिखर सम्मेलन में COP26 संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में आरंभ की गई हरित ग्रिड पहल का प्रयोजन स्पष्ट कीजिये। अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) में यह विचार पहली बार कब दिया गया था? (2021) |
सर्वोच्च न्यायालय ने EVM तथा VVPAT प्रणाली को सही ठहराया
प्रिलिम्स के लिये:इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM), वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल, भारत का चुनाव आयोग, सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत का चुनाव आयोग, जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, दिनेश गोस्वामी समिति मेन्स के लिये:भारत में चुनाव सुधार, चुनाव में पारदर्शिता। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया मामलें, 2024 में पेपर मतपत्रों की वापसी को खारिज़ करते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) प्रणाली को बरकरार रखा। साथ ही न्यायालय द्वारा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों में वर्तमान यादृच्छिक 5% सत्यापन को बनाए रखते हुए, वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) पर्चियों के साथ EVM वोटों के 100% क्रॉस-सत्यापन के अनुरोध को खारिज़ कर दिया।
- हालाँकि, न्यायालय ने मौज़ूदा प्रणाली को मज़बूत करने के लिये भारत के चुनाव आयोग (ECI) को कई निर्देश जारी किये।
EVM और VVPAT पर सर्वोच्च न्यायलय की वर्तमान टिप्पणी क्या है?
- मतदान प्रणाली पर प्रश्न उठाने के लिये अपर्याप्त साक्ष्य: न्यायालय ने कई विधिक उदाहरणों का हवाला देते हुये ये तथ्य दिया कि वर्तमान मतदान प्रणाली पर प्रश्न उठाने के लिये साक्ष्य अपर्याप्त हैं, विशेषतः VVPAT के कार्यान्वयन के बाद।
- वर्ष 2013 के सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत निर्वाचन आयोग के मामले में, न्यायालय ने घोषणा की कि निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिये वोटर वैरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल प्रणाली आवश्यक है।
- इसके उपरांत, वर्ष 2019 में प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में VVPAT पर्चियों के साथ EVM वोटों के 50% क्रॉस-सत्यापन की वकालत करने वाली एक याचिका को संबोधित करते हुये, न्यायालय ने प्रति विधानसभा क्षेत्र में VVPAT सत्यापन करने वाले मतदान केंद्रों की संख्या 1 से बढ़ाकर 5 करने के निर्णय का समर्थन किया।
- EVM माइक्रोकंट्रोलर की तटस्थता: सर्वोच्च न्यायलय ने पाया कि EVM निर्माताओं द्वारा अलग से प्रोग्राम किये गए माइक्रोकंट्रोलर तटस्थ हैं, क्योंकि वे किसी भी राजनीतिक दल या उम्मीदवार का पक्ष नहीं लेते हैं, बल्कि केवल मतदाताओं द्वारा दबाये गये बटन को रिकॉर्ड करते हैं।
- सर्वोच्च न्यायलय ने यह भी बताया कि EVM के माइक्रोकंट्रोलर या मेमोरी तक पहुँचने का कोई भी अनधिकृत प्रयास अनधिकृत एक्सेस डिटेक्शन मैकेनिज़्म (UADM) को ट्रिगर करता है, जिससे EVM स्थायी रूप से अक्षम हो जाती है।
- EVM में सुरक्षा उपाय: सुरक्षा उपायों पर प्रकाश डालते हुये, न्यायालय ने कहा कि EVM में स्थापित प्रोग्राम को निर्माण के दौरान सुरक्षित रूप से रखा जाता है और वन टाइम प्रोग्राम माइक्रोकंट्रोलर चिप में बर्न हो जाते हैं, जिससे छेड़छाड़ की कोई भी संभावना समाप्त हो जाती है।
- इसके अतिरिक्त, EVM की सभी तीन इकाइयों - मतपत्र इकाई, नियंत्रण इकाई और VVPAT- में फर्मवेयर के साथ माइक्रोकंट्रोलर होते हैं जिन्हें निर्माता द्वारा भारत निर्वाचन आयोग को डिलीवरी करने के बाद बदला नहीं जा सकता है।
भारत में EVM और VVPAT की शुरुआत कैसे हुई?
- 1977-1979: EVM का विचार 1977 में आया था और इसका प्रोटोटाइप 1979 में इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL), हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया था।
- 1980: चुनाव आयोग (Election Commission Of India- ECI) ने 6 अगस्त, 1980 को एक EVM का प्रदर्शन किया। इसके उपयोग पर सर्वसम्मति के बाद, ECI ने EVM के उपयोग के लिये अनुच्छेद 324 के तहत निर्देश जारी किये।
- 1982: केरल की पारूर सीट पर चुनाव के दौरान 50 मतदान केंद्रों पर EVM का इस्तेमाल किया गया था। उच्चतम न्यायलय (SC) ने EVM के उपयोग की वैधता के खिलाफ फैसला सुनाया।
- 1988: दिसंबर 1988 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में एक संशोधन हुआ जिसमें एक नया खंड, 61A जोड़ा गया, जो चुनाव आयोग (EC) को इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) को नियोजित करने में सक्षम बनाता है। संशोधन 15 मार्च, 1989 को लागू हो गया।
- 1990: दिनेश गोस्वामी को चुनाव सुधार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो EVM के तकनीकी विश्लेषण का सुझाव देती है। तकनीकी विशेषज्ञ समिति द्वारा EVM का सुझाव "बिना समय की बर्बादी के तकनीकी रूप से मज़बूत, सुरक्षित और पारदर्शी" बताया गया था।
- 1998: मध्य प्रदेश, राजस्थान और नई दिल्ली में 16 विधानसभा चुनावों में EVM का इस्तेमाल किया गया था।
- 2001: EVM का उपयोग विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, केरल, पुडुचेरी, तमिलनाडु और केरल में राज्य विधानसभा चुनावों के लिये किया गया था। इसके बाद हुए प्रत्येक राज्य के विधानसभा चुनाव में इस मशीन का प्रयोग किया गया।
- 2004: लोकसभा चुनाव में सभी 543 सीटों पर EVM का इस्तेमाल किया गया।
- 2013: चुनाव संचालन नियम, 1961 में हुये संशोधन ने मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रायल (VVPAT) मशीनों के उपयोग की शुरुआत की। नगालैंड में नोकसेन विधानसभा सीट के लिये उपचुनाव में उपयोग किया गया।
- 2019: यह पहला लोकसभा चुनाव था जिसमें EVM पूर्ण रूप से VVPAT EVM पर आधारित था।
नोट:
- पेपर बैलेट प्रणाली एक पारंपरिक मतदान पद्धति है जहाँ मतदाता भौतिक पेपर मतपत्रों पर अपनी पसंद के उम्मीदवार के लिये चिह्नित करते हैं, जिन्हें परिणाम निर्धारित करने के लिये चुनाव अधिकारियों द्वारा मैन्युअल रूप से गिना जाता है।
- यह प्रणाली पारदर्शी है लेकिन इसमें समय लग सकता है और गिनती के दौरान त्रुटियों की संभावना हो सकती है।
EVM पेपर बैलेट सिस्टम से किस प्रकार बेहतर है?
- सटीकता और कम त्रुटियाँ: EVM के उपयोग से मानवीय त्रुटियाँ जैसे गलत गिनती, दोहरी वोटिंग अथवा अस्पष्ट चिह्नों के कारण अमान्य वोट की संभावना समाप्त हो जाती है।
- EVM की डिजिटल प्रकृति वोटों का सटीक सारणीकरण सुनिश्चित करती है, जिससे मैन्युअल गिनती की तुलना में अधिक सटीक चुनाव परिणाम सुनिश्चित होते हैं।
- तेज़ गिनती और परिणाम: पारंपरिक कागज़ी मतपत्रों की तुलना में EVM वोटों की गिनती के लिये आवश्यक समय को काफी कम कर देता है, जिससे चुनाव परिणाम जल्दी घोषित हो जाते हैं।
- यह तेज़ गिनती प्रक्रिया मैन्युअल गिनती विधियों से जुड़ी अनिश्चितताओं और देरी को कम करने में सहायता करती है।
- पर्यावरण के अनुकूल: EVM कागज़ के उपयोग को कम करके पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान करते हैं, इस प्रकार बड़ी मात्रा में कागज़ी मतपत्रों की छपाई और प्रबंधन से संबंधित पर्यावरणीय प्रभाव एवं लागत को कम करते हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की ओर बदलाव चुनावी प्रक्रियाओं में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग की ओर बदलाव चुनावी प्रक्रियाओं में पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
- उन्नत सुरक्षा उपाय: EVM में उन्नत सुरक्षा सुविधाएँ जैसे एन्क्रिप्शन, सुरक्षित बूथिंग और छेड़छाड़ का पता लगाने वाले तंत्र शामिल हैं, जिससे उनमें छेड़छाड़ या धोखाधड़ी की संभावना कम हो जाती है, जो बूथ कैप्चरिंग, मतपत्रों में स्याही डालने तथा मतपेटी भरने के माध्यम से पेपर मतपत्र प्रणालियों में होना संभव है।
- वोटों का डिजिटल एन्क्रिप्शन चुनावी प्रक्रिया की अखंडता और गोपनीयता सुनिश्चित करता है, जिससे चुनाव परिणामों में समग्र सुरक्षा एवं विश्वास बढ़ता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वोटर वेरिफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) सिस्टम चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता कैसे बढ़ाते हैं? चुनाव परिणामों में जनता के विश्वास और आत्मविश्वास को बढ़ावा देने में इन प्रौद्योगिकियों से संबंधित महत्त्व एवं चुनौतियों पर चर्चा कीजिये। |
और पढ़ें: भारत में चुनावी सुधार
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भारत में लोकतंत्र की गुणता को बढ़ाने के लिए भारत के चुनाव आयोग ने 2016 में चुनावी सुधारों का प्रस्ताव दिया है। सुझाए गए सुधार क्या हैं और लोकतंत्र को सफल बनाने में वे किस सीमा तक महत्त्वपूर्ण हैं? (2017) |