विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
AI-जनित कार्य एवं कॉपीराइट स्वामित्त्व
प्रिलिम्स के लिये:कृत्रिम बुद्धिमत्ता, कॉपीराइट उल्लंघन, ChatGPT मेन्स के लिये:कॉपीराइट उल्लंघन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बीच अंतर्विरोध का प्रभाव, कृत्रिम बुद्धिमत्ता जनित कार्यों के संदर्भ में उचित और परिवर्तनकारी उपयोग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence- AI) के संदर्भ में कॉपीराइट उल्लंघन के मुद्दे ने काफी ध्यान आकर्षित किया है, साथ ही आवश्यक चर्चाओं को जन्म दिया है।
- इस अंतर्विरोध का एक प्रसिद्ध उदाहरण एंडी वारहोल फाउंडेशन और लिन गोल्डस्मिथ के गायक प्रिंस के चित्र के बीच संबंध है।
- विवाद इस बात पर केंद्रित है कि क्या वारहोल द्वारा छवि के अन्य संस्करणों को उत्पन्न करने हेतु छवि का उपयोग उचित रुप से किया गया है या यह कॉपीराइट उल्लंघन है।
कॉपीराइट उल्लंघन और AI के बीच संबंध:
- कॉपीराइट सामग्री का प्रशिक्षण डेटा के रूप में उपयोग:
- अपने एल्गोरिदम को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करने के लिये चैटजीपीटी (ChatGPT) जैसे AI सिस्टम को प्रायः व्यापक मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है।
- इसमें कॉपीराइट सामग्री जैसे चित्र, टेक्स्ट/लेख और संगीत शामिल हैं, जो कॉपीराइट के उल्लंघन जैसी चिंताओं को बढ़ा सकते हैं।
- अपने एल्गोरिदम को प्रभावी ढंग से प्रशिक्षित करने के लिये चैटजीपीटी (ChatGPT) जैसे AI सिस्टम को प्रायः व्यापक मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है।
- AI तकनीकों का उपयोग मौजूदा कॉपीराइट किये गए कार्यों की प्रतिकृति बनाने या नकल करने के लिये किया जा सकता है। एल्गोरिदम ऐसी सामग्री का विश्लेषण और निर्माण कर सकते हैं जो संरक्षित कार्यों से काफी हद तक मिलती-जुलती है, यह इस तरह की प्रतिकृति की वैधता और नैतिक निहितार्थों पर प्रश्नचिह्न लगाता है।
- उचित और परिवर्तनकारी उपयोग:
- उचित उपयोग या फेयर यूज़ अमेरिका का एक कानूनी सिद्धांत है (जैसा कि हाल ही में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा माना गया) जो कुछ परिस्थितियों में बिना अनुमति के भी कॉपीराइट सामग्री के सीमित उपयोग की अनुमति देता है।
- यह निर्धारित करने के लिये कि AI-जनित कार्य फेयर यूज़ हेतु योग्य है अथवा नहीं, उसके उपयोग के उद्देश्य, प्रकृति, मात्रा और प्रभाव जैसे कारकों पर विचार किया जाना आवश्यक है।
- प्रायः परिवर्तनकारी उपयोग (Transformative use) को फेयर यूज़ एनालिसिस का एक महत्त्वपूर्ण कारक माना जाता है, जिसमें कॉपीराइट किये गए कार्य में नए अर्थ या अभिव्यक्ति को जोड़ना शामिल है।
- उचित उपयोग या फेयर यूज़ अमेरिका का एक कानूनी सिद्धांत है (जैसा कि हाल ही में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट द्वारा माना गया) जो कुछ परिस्थितियों में बिना अनुमति के भी कॉपीराइट सामग्री के सीमित उपयोग की अनुमति देता है।
- दायित्व और उत्तरदायित्व:
- AI-जनित कार्यों में कॉपीराइट उल्लंघन के लिये दायित्व निर्धारित करना जटिल हो सकता है, जिसमें AI डेवलपर्स, उपयोगकर्त्ताओं और स्वयं कृत्रिम बुद्धिमत्ता की भूमिका के विषय में प्रश्न शामिल हैं।
- कॉपीराइट कानून का अनुपालन सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी AI-जनित कार्यों के निर्माता और उपयोगकर्त्ता दोनों की है।
- यदि AI प्रणाली मानव हस्तक्षेप के बिना काम करती है, तो सही कॉपीराइट स्वामी का निर्धारण करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
भारत में AI-जनित कंटेंट की वर्तमान कानूनी स्थिति:
- भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 और पेटेंट अधिनियम, 1970 कॉपीराइट उल्लंघन हेतु उचित व्यवहार एवं प्रगणित अपवादों के लिये विशिष्ट प्रावधान करता है।
- AI मॉडल के प्रशिक्षण के लिये कॉपीराइट सामग्री का उपयोग कानूनी ग्रे सूची में रखा जाता है।
- जैसा कि कॉपीराइट कानून AI द्वारा पूरी तरह से उत्पन्न किसी भी रचना की रक्षा नहीं करते हैं, भले ही यह मानव-निर्मित पाठ संकेतक से उपजी हो।
- कॉपीराइट और AI पर हाल ही में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय जैसे अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयों एवं अन्य न्यायालय के अवलोकन और फैसले, भारतीय कॉपीराइट कानून में निष्पक्षता की व्याख्या को प्रभावित कर सकते हैं।
- भारतीय कॉपीराइट कानून और उचित उपयोग प्रावधानों को AI-जनित सामग्री द्वारा उत्पन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिये अनुकूलित करने की आवश्यकता होगी।
आगे की राह
- कानूनी उदाहरणों की कमी के बावजूद सिविक चंद्रन बनाम सी. अम्मिनी अम्मा (1996) के मामले में केरल उच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित फोर फैक्टर टेस्ट (अर्थात् चार कारकों के आधार पर परीक्षण) इस बात का निर्धारण करने में उपयोगी सिद्ध हो सकता है कि किसी उपयोग को फेयर यूज़ माना जाए अथवा नहीं। यह अमेरिका के फेयर यूज़ सिद्धांत के फोर फैक्टर टेस्ट के समान ही है। ये फैक्टर/कारक हैं:
- उपयोग का उद्देश्य, जिसमें इस बात को शामिल किया गया है कि AI द्वारा उत्पादित सामग्री का उपयोग व्यावसायिक या गैर-लाभकारी शैक्षिक उद्देश्यों के लिये है अथवा नहीं।
- कॉपीराइट कार्य की प्रकृति (Nature)।
- संपूर्ण कॉपीराइट किये गए कार्य की तुलना में उपयोग किये गए हिस्से की मात्रा और पर्याप्तता।
- संभावित बाज़ार या कॉपीराइट किये गए कार्य के मूल्य/महत्त्व पर इसके उपयोग का प्रभाव।
- AI प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ कदम-कदम से कदम मिलाने के लिये बौद्धिक संपदा कानूनों को अपडेट किया जाना चाहिये।
- AI परियोजनाओं के लिये निरीक्षण एवं अनुपालन तंत्र के साथ डेटा उपयोग और शासन नीतियों को लागू किया जाना चाहिये।
- AI फर्मों के लिये अनिवार्य किया जाना चाहिये कि वे कॉपीराइट सुरक्षा, ऑडिट और आकलन के लिये ज़िम्मेदार अनुपालन अधिकारियों को नियुक्त करें।
- कॉपीराइट उल्लंघन और AI के बीच अंतःप्रतिच्छेदन का प्रभाव AI प्रौद्योगिकी के विकास एवं इसके संभावित अनुप्रयोगों पर पड़ सकता है। कॉपीराइट मालिकों के अधिकारों की रक्षा और AI के क्षेत्र में नवाचार को बढ़ावा देने के बीच संतुलन स्थापित करना इस क्षेत्र के विकास व उन्नति के लिये आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नमेन्स:प्रश्न. वैश्वीकृत संसार में, बौद्धिक संपदा अधिकारों का महत्त्व हो जाता है और वे मुकदमेबाज़ी का एक स्रोत हो जाते हैं। कॉपीराइट, पेटेंट और व्यापार गुप्तियों के बीच मोटे तौर पर विभेदन कीजिये। (2014) |
स्रोत: द हिंदू
सामाजिक न्याय
GANHRI द्वारा NHRC की मान्यता का स्थगन
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), GANHRI, मानवाधिकार, संयुक्त राष्ट्र, पेरिस सिद्धांत, सर्वोच्च न्यायालय मेन्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र निकाय द्वारा NHRC की मान्यता का स्थगन |
चर्चा में क्यों?
एक दशक में दूसरी बार ‘ग्लोबल अलायंस ऑफ नेशनल ह्यूमन राइट्स इंस्टीट्यूशंस’ (Global Alliance of National Human Rights Institutions- GANHRI) ने नियुक्तियों में राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी आपत्तियों का हवाला देते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) की मान्यता को स्थगित कर दिया।
- GANHRI ने वर्ष 2017 में NHRC को 'A' श्रेणी की मान्यता प्रदान की थी, जिसे एक वर्ष पूर्व स्थगित कर दिया गया, यह NHRC की स्थापना (1993) के बाद से इस तरह का पहला उदाहरण है।
- मान्यता के बिना NHRC संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व करने में असमर्थ होगा।
GANHRI:
- GANHRI संयुक्त राष्ट्र की मान्यता प्राप्त और विश्वसनीय भागीदार है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1993 में मानव अधिकारों के प्रचार और संरक्षण हेतु राष्ट्रीय संस्थानों की अंतर्राष्ट्रीय समन्वय समिति (International Coordinating Committee of National Institutions- ICC) के रूप में की गई थी।
- वर्ष 2016 से इसे राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों का वैश्विक गठबंधन (GANHRI) के रूप में जाना जाता है और यह सदस्य-आधारित नेटवर्क संगठन है जो विश्व भर से NHRI को संगठित करता है।
- यह 120 सदस्यों से बना है, भारत भी GANHRI का सदस्य है।
- इसका सचिवालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
स्थगन के कारण
- GANHRI द्वारा प्रस्तुत किये गए कारण:
- कर्मचारियों और नेतृत्व में विविधता का अभाव
- उपेक्षित समूहों की सुरक्षा के लिये अपर्याप्त कार्रवाई
- मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच में पुलिस को शामिल करना
- नागरिक समाज के साथ अनुचित सहयोग
- GANHRI ने कहा कि NHRC अपने जनादेश को पूरा करने में विशेष रूप से हाशिये पर स्थित समुदायों, धार्मिक अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार के संरक्षकों के अधिकारों की रक्षा करने में बार-बार विफल रहा है।
- NHRC की स्वतंत्रता, बहुलवाद, विविधता और जवाबदेही की कमी राष्ट्रीय संस्थानों की स्थिति ('पेरिस सिद्धांत') पर संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों के विपरीत है।
पेरिस सिद्धांत और 'A' स्थिति:
- संयुक्त राष्ट्र के पेरिस सिद्धांत, संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1993 में अपनाए गए। महासभा अंतर्राष्ट्रीय मानदंड प्रदान करती है जिसके आधार पर राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थानों (NHRI) को मान्यता दी जा सकती है।
- पेरिस सिद्धांतों ने छह मुख्य मानदंड निर्धारित किये हैं जिन्हें NHRI को पूरा करना आवश्यक है। ये:
- जनादेश और क्षमता
- सरकार से स्वायत्तता
- एक संविधि या संविधान द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता
- बहुलवाद
- पर्याप्त संसाधन
- जाँच की पर्याप्त शक्तियाँ
- GANHRI विभिन्न क्षेत्रों में 16 मानवाधिकार एजेंसियों से बना समूह है, जिसे पेरिस सिद्धांतों का पालन करने के लिये उच्चतम रेटिंग ('A') प्राप्त है। इसमें प्रत्येक क्षेत्र से 4 एजेंसियाँ अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और एशिया-प्रशांत शामिल हैं।
- 'A' रेटिंग इन्हें मानव अधिकारों के मुद्दों पर GANHRI और संयुक्त राष्ट्र के काम में शामिल होने का अवसर देती है।
- NHRC ने वर्ष 1999 में अपनी 'ए' रेटिंग प्राप्त की और वर्ष 2006, 2011 और 2017 में इसे बनाए रखा। NHRC के कर्मचारियों और अन्य नियुक्तियों में कुछ समस्याओं के कारण GANHRI ने इसमें देरी की थी। NHRC का नेतृत्व जस्टिस अरुण मिश्रा कर रहे हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC):
- परिचय:
- भारत का NHRC एक स्वतंत्र वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना 12 अक्तूबर, 1993 को मानवाधिकार अधिनियम, 1993 के संरक्षण प्रावधानों के अनुसार की गई थी, जिसे बाद में वर्ष 2006 में संशोधित किया गया था।
- यह भारत में मानवाधिकारों का प्रहरी है अर्थात् भारतीय संविधान द्वारा गारंटीकृत व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा सम्मान से संबंधित अधिकार या अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध में सन्निहित होने के भारत में न्यायालय द्वारा लागू किये जाने योग्य है।
- यह पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप स्थापित किया गया था जिसे पेरिस (अक्तूबर 1991) में मानवाधिकारों के प्रचार और संरक्षण के लिये अपनाया गया था तथा 20 दिसंबर, 1993 को इसका समर्थन किया गया था।
- संरचना:
- प्रमुख सदस्य: यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य और सात डीम्ड सदस्य शामिल हैं।
- कोई व्यक्ति जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो इसका अध्यक्ष बनने की योग्यता रखता है।
- नियुक्ति: अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा छह सदस्यीय समिति की अनुशंसाओं के आधार पर की जाती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा का उपसभापति, संसद के दोनों सदनों के मुख्य विपक्षी नेता और केंद्रीय गृह मंत्री शामिल होते हैं।
- कार्यकाल: अध्यक्ष और सदस्य तीन वर्ष की अवधि के लिये या 70 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक, जो भी पहले हो, पद धारण करते हैं।
- राष्ट्रपति कुछ परिस्थितियों में अध्यक्ष या किसी सदस्य को पद से निष्कासित कर सकता है।
- निष्कासन: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की गई जाँच में उन्हें केवल साबित कदाचार या अक्षमता के आरोपों पर निष्कासित किया जा सकता है।
- प्रभाग: आयोग के पाँच विशिष्ट प्रभाग भी हैं अर्थात् विधि प्रभाग, अन्वेषण प्रभाग, नीति अनुसंधान एवं कार्यक्रम प्रभाग, प्रशिक्षण प्रभाग और प्रशासन प्रभाग।
- प्रमुख सदस्य: यह एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसमें एक अध्यक्ष, पाँच पूर्णकालिक सदस्य और सात डीम्ड सदस्य शामिल हैं।
NHRC से संबंधित चुनौतियाँ:
- जाँच तंत्र का अभाव:
- NHRC में जाँच करने के लिये एक समर्पित तंत्र का अभाव है। इसके अतिरिक्त यह मानवाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जाँच के लिये संबंधित केंद्र और राज्य सरकारों पर निर्भर है।
- शिकायतों के लिये समय-सीमा:
- घटना के एक वर्ष बाद NHRC में पंजीकृत शिकायतों पर विचार नहीं किया जाता जिसके परिणामस्वरूप कई शिकायतें अनसुनी रह जाती हैं।
- निर्णयन का अधिकार नहीं:
- NHRC केवल सिफारिशें कर सकता है, उसके पास स्वयं निर्णयों को लागू करने या अनुपालन सुनिश्चित करने का अधिकार नहीं है।
- निधियों का कम आकलन:
- NHRC को कभी-कभी राजनीतिक संबद्धता वाले न्यायाधीशों और नौकरशाहों के लिये सेवानिवृत्त के बाद के स्थान के रूप में माना जाता है। इसके अतिरिक्त अपर्याप्त धन इसके प्रभावी कामकाज़ को बाधित करता है।
- शक्तियों की सीमाएँ:
- राज्य मानवाधिकार आयोगों के पास राष्ट्रीय सरकार से सूचनाओं की मांग करने का अधिकार नहीं है।
- जिसके परिणामस्वरूप उन्हें राष्ट्रीय नियंत्रण के तहत सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- NHRC की शक्तियाँ सशस्त्र बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन से संबंधित हैं जो काफी हद तक प्रतिबंधित हैं।
आगे की राह
- सरकार को NHRC के फैसलों को लागू करने योग्य बनाने हेतु कदम उठाने चाहिये, साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहिये कि सिफारिशों एवं निर्देशों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाए। यह NHRC के हस्तक्षेपों के प्रभाव तथा जवाबदेही को बढ़ाएगा।
- नागरिक समाज और मानवाधिकार कार्यकर्त्ताओं के सदस्यों को शामिल करके NHRC की संरचना में विविधता लाना चाहिये। इससे उनकी विशेषज्ञता एवं दृष्टिकोण से नई अंतर्दृष्टि ,मिलेगी साथ ही ये मानवाधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने में अधिक व्यापक दृष्टिकोण में योगदान करेंगे।
- NHRC को मानवाधिकारों में प्रासंगिक विशेषज्ञता और अनुभव वाले कर्मचारियों का एक स्वतंत्र कैडर स्थापित करने की आवश्यकता है। यह आयोग को पूरी तरह से जाँच करने, शोध करने एवं सिफारिशें प्रदान करने में सक्षम बनाएगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रिलिम्स: प्रश्न. मूल अधिकारों के अतिरिक्त भारत के संविधान का निम्नलिखित में से कौन-सा/से भाग मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा 1948 (Universal Declaration of Human Rights 1948) के सिद्धांतों एवं प्रावधानों को प्रतिबिंबित करता/करते है/हैं? (2020)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2011)
‘‘मानव अधिकारों की व्यापक उद्घोषणा’’ के अंतर्गत उपर्युक्त में से कौन-सा/कौन-से अधिकार मानव अधिकार/अधिकारों में आता है/आते हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. यद्यपि मानवाधिकार आयोगों ने भारत में मानव अधिकारों के संरक्षण में काफी हद तक योगदान दिया है, फिर भी वे ताकतवर और प्रभावशालियों के विरुद्ध अधिकार जताने में असफल रहे हैं। इनकी संरचनात्मक और व्यावहारिक सीमाओं का विश्लेषण करते हुए सुधारात्मक उपायों के सुझाव दीजिये। (2021) प्रश्न. भारत में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एन.एच.आर.सी.) सर्वाधिक प्रभावी तभी हो सकता है, जब इसके कार्यों को सरकार की जवाबदेही को सुनिश्चित करने वाले अन्य यान्त्रिकत्वों (मैकेनिज़्म) का पर्याप्त समर्थन प्राप्त हो। उपरोक्त टिप्पणी के प्रकाश में मानव अधिकार मानकों की प्रोन्नति करने और उनकी रक्षा करने में न्यायपालिका और अन्य संस्थाओं के प्रभावी पूरक के तौर पर एन.एच.आर.सी. की भूमिका का आकलन कीजिये। (2014) |
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2023
प्रिलिम्स के लिये:खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2023 (KIUG), स्वैंप डियर, एक भारत श्रेष्ठ भारत, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 मेन्स के लिये:खेलो इंडिया कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने लखनऊ, उत्तर प्रदेश में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स (KIUG) के तीसरे संस्करण का वर्चुअल उद्घाटन किया, जिससे भारत में खेलों के लिये एक नए युग की शुरुआत हुई।
KIUG 2023 के विषय में मुख्य तथ्य:
- खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के तीसरे संस्करण के शुभंकर का नाम जीतू रखा गया है, जो उत्तर प्रदेश के राजकीय पशु स्वैंप डियर (बारहसिंघा) का प्रतिनिधित्व करता है।
- खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का पहला संस्करण वर्ष 2020 में ओडिशा में आयोजित हुआ था तथा दूसरा संस्करण वर्ष 2022 में बंगलूरू, कर्नाटक में आयोजित किया गया था (कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2021 से 2022 में स्थानांतरित)।
- इन खेलों में 21 खेल श्रेणियों में प्रतिस्पर्द्धा करने वाले 200 से अधिक विश्वविद्यालयों के 4750 से अधिक एथलीट भाग लेंगे। प्रतियोगिताएँ वाराणसी, लखनऊ, गौतम बुद्ध नगर और गोरखपुर में आयोजित होंगी।
- प्रधानमंत्री ने इस बात पर भी बल दिया कि यह खेल 'एक भारत श्रेष्ठ भारत' की भावना को बढ़ावा देते हुए एकता की भावना को भी बढ़ावा देंगे।
खेलो इंडिया कार्यक्रम:
- परिचय:
- खेलो इंडिया अर्थात् 'लेट्स प्ले इंडिया' को वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा ज़मीनी स्तर पर विद्यार्थियों के साथ जुड़कर भारत की खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिये प्रस्तावित किया गया था।
- इस पहल ने विभिन्न खेलों के लिये देश भर में बेहतर खेल संरचना एवं अकादमियों के निर्माण पर भी ध्यान केंद्रित किया।
- इसे युवा मामले और खेल मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जाता है।
- खेलो इंडिया अर्थात् 'लेट्स प्ले इंडिया' को वर्ष 2017 में भारत सरकार द्वारा ज़मीनी स्तर पर विद्यार्थियों के साथ जुड़कर भारत की खेल संस्कृति को पुनर्जीवित करने के लिये प्रस्तावित किया गया था।
- खेलो इंडिया के तहत प्रतियोगिताएँ:
- इसके तहत खेलो इंडिया यूथ गेम्स (KIYG), खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स (KIUG) और खेलो इंडिया विंटर गेम्स को वार्षिक राष्ट्रीय खेल प्रतियोगिताओं के रूप में स्थापित किया गया, जहाँ क्रमशः राज्यों और विश्वविद्यालयों का प्रतिनिधित्व करने वाले युवाओं ने पदक के लिये प्रतिस्पर्द्धा की और अपने कौशल का प्रदर्शन किया।
- प्रासंगिकता:
- पारंपरिक खेल विधाओं को पुनर्जीवित करना:
- खेलो इंडिया ने भारत के पारंपरिक खेलों की प्रतिष्ठा को बहाल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- सरकार ने गतका, कलारीपयट्टू, थांग-ता और मलखम्ब एवं योगासन जैसे स्वदेशी खेलों को बढ़ावा देने तथा प्रोत्साहित करने के लिये छात्रवृत्ति प्रदान की है। इस पहल ने युवाओं के बीच इन पारंपरिक खेलों को संरक्षित और लोकप्रिय बनाने में मदद की है।
- शिक्षा में खेलों का एकीकरण:
- खेलो इंडिया पहल के साथ-साथ राष्ट्रीय शैक्षिक नीति 2020 के प्रस्ताव के अनुरूप पाठ्यक्रम के अंतर्गत खेल को एक विषय के रूप में शामिल करना तथा देश के पहले राष्ट्रीय खेल विश्वविद्यालय के निर्माण से इस उद्देश्य को और मज़बूती मिलेगी।
- महिला खिलाड़ियों का सशक्तीकरण:
- खेलो इंडिया ने खेलो इंडिया महिला लीग जैसी पहलों के माध्यम से खेलों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
- कई शहरों में आयोजित इस लीग में लगभग 23,000 महिला एथलीटों की सक्रिय भागीदारी देखी गई है।
- पारंपरिक खेल विधाओं को पुनर्जीवित करना:
- उत्कृष्टता के केंद्र:
- खेलो इंडिया पूरे भारत में अत्याधुनिक खेल सुविधाओं की स्थापना का भी समर्थन करता है, जिसे खेलो इंडिया स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (KISCE) कहा जाता है। इन केंद्रों का उद्देश्य क्षमतावान खिलाड़ियों के लिये आधारभूत सुविधाएँ उपलब्ध कराना और प्रत्येक खिलाड़ी में खेल संबंधी अनुशासन को बनाए रखने हेतु आवश्यक प्रयास करना है।
- कुछ KISCEs हैं:
- राजीव गांधी स्टेडियम, आइज़ोल
- कलिंगा स्टेडियम, भुवनेश्वर
- खुमान लंपक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स, इंफाल
स्रोत:पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
भारत में चाइल्ड वेस्टिंग
प्रिलिम्स के लिये:इंडिया चाइल्ड वेस्टिंग, UNICEF, WHO, विश्व बैंक, कुपोषण, WHA, SDG मेन्स के लिये:इंडिया चाइल्ड वेस्टिंग |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में UNICEF (संयुक्त राष्ट्र बाल कोष), WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन), विश्व बैंक समूह ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसका शीर्षक है- "बाल कुपोषण का स्तर और रुझान: संयुक्त बाल कुपोषण अनुमान (JME)", जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2020 में 18.7% भारतीय बच्चे खराब पोषक तत्त्वों के सेवन के कारण वेस्टिंग से प्रभावित थे।
संयुक्त कुपोषण अनुमान (JME):
- वर्ष 2011 में JME समूह को सामंजस्यपूर्ण बाल कुपोषण के अनुमानों को संबोधित करने हेतु बनाया गया था।
- एजेंसी की टीम बच्चों के स्टंटिंग, अधिक वज़न, कम वज़न, वेस्टिंग तथा गंभीर वेस्टिंग के लिये वार्षिक अनुमान जारी करती है।
- स्टंटिंग, वेस्टिंग, अधिक वज़न और कम वज़न के संकेतकों के लिये बाल कुपोषण का अनुमान अल्प एवं अतिपोषण के परिमाण का वर्णन करता है।
- UNICEF-WHO-WB संयुक्त बाल कुपोषण अनुमान अंतर-एजेंसी समूह नियमित रूप से प्रत्येक संकेतक के लिये व्यापकता और संख्या में वैश्विक एवं क्षेत्रीय अनुमानों को अद्यतन करता है।
- वर्ष 2023 के संस्करण के प्रमुख निष्कर्षों में सभी उल्लिखित संकेतकों के लिये वैश्विक और क्षेत्रीय रुझान के साथ-साथ बौनापन (स्टंटिंग) और अधिक वज़न वाले बच्चों के लिये देश-स्तरीय मॉडल अनुमान शामिल हैं।
रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- वेस्टिंग:
- विश्व में वेस्टिंग वाले सभी बच्चों की संख्या में से आधी भारत में निवास करती है।
- वर्ष 2022 में वैश्विक स्तर पर पाँच वर्ष से कम आयु के 45 मिलियन बच्चे (6.8%) वेस्टिंग से प्रभावित थे, जिनमें से 13.6 मिलियन गंभीर वेस्टिंग से पीड़ित थे।
- गंभीर बौनापन (वेस्टिंग) वाले सभी बच्चों में से तीन-चौथाई से अधिक एशिया में रहते हैं और अन्य 22% अफ्रीका में रहते हैं।
- स्टंटिंग: .
- वर्ष 2022 में भारत में स्टंटिंग दर 31.7% थी, जो एक दशक पूर्व वर्ष 2012 में 41.6% थी।
- वर्ष 2022 में विश्व भर में पाँच वर्ष से कम उम्र के करीब 148.1 मिलियन बच्चे स्टंटिंग से प्रभावित थे।
- लगभग सभी प्रभावित बच्चे एशिया (वैश्विक हिस्सेदारी का 52%) अफ्रीका के थे।
- वर्ष 2022 में विश्व भर में पाँच वर्ष से कम उम्र के करीब 148.1 मिलियन बच्चे स्टंटिंग से प्रभावित थे।
- वर्ष 2022 में भारत में स्टंटिंग दर 31.7% थी, जो एक दशक पूर्व वर्ष 2012 में 41.6% थी।
- अधिक वज़न:
- पाँच वर्ष से कम उम्र के 37 मिलियन बच्चे विश्व स्तर पर अधिक वज़न वाले हैं इनमें वर्ष 2000 के बाद से लगभग चार मिलियन की वृद्धि हुई है।
- वर्ष 2012 में 2.2% की तुलना में वर्ष 2022 में भारत में अधिक वज़न का प्रतिशत 2.8% था।
- प्रगति:
- वर्ष 2025 विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) के वैश्विक पोषण लक्ष्यों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्य 2.2 तक पहुँचने के लिये अपर्याप्त प्रगति की है।
- WHA के वैश्विक पोषण लक्ष्य हैं:
- 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बौनेपन को 40% तक कम करना।
- 19-49 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं में एनीमिया के प्रसार को 50% तक कम करना ।
- कम वज़न वाले बच्चों में 30% की कमी सुनिश्चित करना।
- सुनिश्चित करें कि बचपन में अधिक वज़न न बढ़े।
- प्रारंभ के छह माह में केवल स्तनपान की दर को कम-से-कम 50% तक करना।
- बचपन में वेस्टिंग(कद के अनुपात में वज़न का कम होना) को कम करके 5% से कम रखना।
- WHA के वैश्विक पोषण लक्ष्य हैं:
- सभी देशों में से केवल एक-तिहाई देश वर्ष 2030 तक स्टंटिंग (आयु के अनुपात में कद का कम होना) से प्रभावित बच्चों की संख्या को आधा करने के लिये सही दिशा पर कार्यरत हैं और लगभग एक-चौथाई देशों के लिये प्रगति का आकलन संभव नहीं हो पा रहा है।
- यहाँ तक कि कम देशों में अधिक वज़न के लिये वर्ष 2030 के 3% प्रसार के लक्ष्य को प्राप्त करने की अपेक्षा है, वर्तमान में छह देशों में से केवल एक ही सही दिशा पर है।
- लगभग आधे देशों के लिये वेस्टिंग (कद के अनुपात में वज़न का कम होना) के लक्ष्य की दिशा में प्रगति का आकलन संभव नहीं है।
- वर्ष 2025 विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) के वैश्विक पोषण लक्ष्यों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्य 2.2 तक पहुँचने के लिये अपर्याप्त प्रगति की है।
सिफारिशें
- गंभीर वेस्टिंग से पीड़ित बच्चों को जीवित रहने के लिये शीघ्र निदान तथा समय पर उपचार एवं देखभाल की आवश्यकता होती है।
- विश्व को वर्ष 2030 तक स्टंटिंग वाले बच्चों की संख्या को 89 मिलियन तक कम करने के वैश्विक लक्ष्य को प्राप्त के लिये अत्यधिक गहन प्रयासों की आवश्यकता है।
- कुछ क्षेत्रों में उपलब्ध आँकड़ों में अंतर वैश्विक लक्ष्यों की दिशा में प्रगति का सटीक आकलन करना चुनौतीपूर्ण बना देता है। इसलिये देश, क्षेत्रीय तथा वैश्विक स्तर पर बाल कुपोषण पर प्रगति की निगरानी और विश्लेषण करने के लिये नियमित डेटा संग्रह महत्त्वपूर्ण है।
कुपोषण क्या है?
- परिचय:
- कुपोषण किसी व्यक्ति में पोषक तत्त्वों के सेवन में कमी, अधिकता या असंतुलन को संदर्भित करता है।
- कुपोषण शब्द शर्तों के दो व्यापक समूहों को शामिल करता है।
- पहला है 'अल्पपोषण'- जिसमें स्टंटिंग (उम्र के हिसाब से कम लंबाई), वेस्टिंग (ऊँचाई के हिसाब से कम वज़न), कम वज़न (उम्र के हिसाब से कम वज़न) और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी या अपर्याप्तता (महत्त्वपूर्ण विटामिन और खनिजों की कमी) शामिल हैं।
- दूसरा है अधिक वज़न मोटापा और आहार से संबंधित गैर-संचारी रोग (जैसे- हृदय रोग, स्ट्रोक, मधुमेह और कैंसर)।
- बचपन में अधिक वज़न की स्थिति तब होती है जब भोजन और पेय पदार्थों से बच्चों की कैलोरी की मात्रा उनकी ऊर्जा आवश्यकताओं से अधिक हो जाती है।
- कुपोषण से संबंधित भारतीय पहल:
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जैव विविधता और पर्यावरण
WMC ने ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस वॉच को मंज़ूरी दी
प्रिलिम्स के लिये:WMO, जलवायु परिवर्तन, ग्रीन हाउस गैस, UNFCCC मेन्स के लिये:ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस वॉच की आवश्यकता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में 19वीं विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस (World Meteorological Congress- WMC) ने ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस (GHG) वॉच (G3W) की GHG निगरानी पहल को मंज़ूरी दी है, ताकि ऊष्मा को अवशोषित करने वाली गैसों को कम करने के साथ ही जलवायु परिवर्तन का मुकाबला किया जा सके।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- WMO) ने WHO के सहयोग से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का प्रबंधन करने हेतु जलवायु, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य विज्ञान तथा सेवाओं को आगे बढ़ाने के लिये कार्यान्वयन योजना 2023-2033 तैयार की है।
नोट: 19वीं विश्व मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस (Cg-19) वर्तमान में 22 मई से 2 जून, 2023 तक जेनेवा के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन केंद्र (Conference Centre of Geneva- CICG) में हो रही है। यह विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) का सर्वोच्च निकाय है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO):
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) 192 देशों की सदस्यता वाला एक अंतर-सरकारी संगठन है।
- भारत, विश्व मौसम विज्ञान संगठन का सदस्य देश है।
- इसकी उत्पत्ति अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन (IMO) से हुई है, जिसे वर्ष 1873 के वियना अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान कॉन्ग्रेस के बाद स्थापित किया गया था।
- 23 मार्च, 1950 को WMO कन्वेंशन के अनुसमर्थन द्वारा स्थापित WMO, मौसम विज्ञान (मौसम और जलवायु), परिचालन जल विज्ञान तथा इससे संबंधित भू-भौतिकीय विज्ञान हेतु संयुक्त राष्ट्र की विशेष एजेंसी बन गया है।
- WMO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
ग्रीनहाउस गैस वॉच (G3W):
- परिचय:
- यह UNFCCC पक्षकारों एवं अन्य हितधारकों को कार्रवाई योग्य जानकारी के प्रावधान का समर्थन करने के लिये ग्रीनहाउस गैस के प्रवाह की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समन्वित टॉप-टू-बॉटम निगरानी की स्थापना करेगा।
- ग्रीनहाउस गैस वॉच महत्त्वपूर्ण सूचना अंतराल को भरने का कार्य करेगी और एकीकृत तथा परिचालनात्मक फ्रेमवर्क प्रदान करेगी। यह फ्रेमवर्क सभी अंतरिक्ष-आधारित और सतह-आधारित अवलोकन प्रणाली के साथ ही साथ प्रतिरूपण और डेटा सम्मिलन क्षमताओं को एक ही छत के नीचे लाने का कार्य करेगा।
- कार्यान्वयन:
- निगरानी बुनियादी ढाँचा, GHG निगरानी में WMO की लंबे समय से चली आ रही गतिविधियों का संचालन और विस्तार करेगा, जिसे ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच (Global Atmosphere Watch- GAW) के हिस्से के रूप में तथा इसकी एकीकृत वैश्विक GHG सूचना प्रणाली (IG3IS) के माध्यम से लागू किया गया है।
- WMO की GAW वायुमंडलीय संरचना, इसके परिवर्तन की एकल समन्वित वैश्विक समझ के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करती है और वातावरण, महासागरों एवं जीवमंडल के बीच अंतर्संबंध की समझ को बेहतर बनाने में मदद करता है।
- IG3IS का उद्देश्य एक एकीकृत वैश्विक GHG सूचना प्रणाली का समन्वय करना, वायुमंडलीय अवलोकन तथा मॉडलिंग के साथ इन्वेंट्री एंड फ्लक्स मॉडल आधारित जानकारी को जोड़ना है, ताकि राष्ट्रीय और शहरी पैमाने पर ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के सर्वोत्तम संभव अनुमान प्रदान किये जा सकें।
- निगरानी बुनियादी ढाँचा, GHG निगरानी में WMO की लंबे समय से चली आ रही गतिविधियों का संचालन और विस्तार करेगा, जिसे ग्लोबल एटमॉस्फियर वॉच (Global Atmosphere Watch- GAW) के हिस्से के रूप में तथा इसकी एकीकृत वैश्विक GHG सूचना प्रणाली (IG3IS) के माध्यम से लागू किया गया है।
- घटक:
- सतह-आधारित तथा उपग्रह आधारित अवलोकन
- गतिविधि डेटा और प्रोसेस-आधारित मॉडल के आधार पर GHG उत्सर्जन का पूर्वानुमान
- GHG चक्रण का प्रतिनिधित्व करने वाले ग्लोबल हाई-रिज़ॉल्यूशन अर्थ सिस्टम मॉडल
- उच्च सटीकता वाले उत्पादों के निर्माण हेतु मॉडल से जुड़े डेटा एसिमिलेशन सिस्टम
- महत्त्व:
- वर्तमान में, भूमि और अंतरिक्ष आधारित GHG प्रेक्षणों या मॉडलिंग उत्पादों का कोई व्यापक, समय पर अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान उपलब्ध नहीं है।
- GHG निगरानी अवसंरचना कार्बन चक्र की समझ को बेहतर बनाने में मदद करेगी। न्यूनीकरण गतिविधियों की योजना बनाने के लिये पूर्ण कार्बन चक्र को समझना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- GHG पर विश्व स्तर पर सुसंगत, ग्रिडयुक्त जानकारी और उचित समय संकल्प के साथ उनके प्रवाह से GHG के स्रोतों के बेहतर मूल्यांकन में मदद मिलेगी और जीवमंडल, महासागर और स्थायी तुषार क्षेत्रों के साथ उनके संबंध का संकेत मिलेगा।
ग्रीनहाउस गैस
- परिचय:
- ग्रीनहाउस गैस (GHG) ऐसी गैस है जो तापीय अवरक्त तरंगदैर्घ्य पर विकिरण ऊर्जा को अवशोषित और उत्सर्जित करती है, जिससे ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न होता है।
- पृथ्वी के वायुमंडल में प्राथमिक GHGs कार्बन डाइऑक्साइड (CO2), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) और ओज़ोन (O3) हैं।
- GHGs पर अंकुश लगाने की पहल:
- वैश्विक स्तर पर :
- राष्ट्रीय स्तर पर :
वर्ष 2023-2033 हेतु कार्यान्वयन योजना:
- उद्देश्य:
- इस योजना का उद्देश्य "विश्व भर में जलवायु, पर्यावरण एवं स्वास्थ्य विज्ञान और सेवाओं के प्रभावी एकीकरण के माध्यम से मौज़ूदा तथा उभरती चरम मौसम की घटनाओं, जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरणीय जोखिमों का सामना करने वाले लोगों को बेहतर स्वास्थ्य और कल्याण" प्रदान करना है।
- यह जलवायु परिवर्तन, मौसम, वायु प्रदूषण, पराबैंगनी विकिरण, चरम घटनाओं और स्वास्थ्य के साथ अन्य पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव के प्रबंधन हेतु एक समन्वित दृष्टिकोण को बढ़ावा देता है।
- आवश्यकता:
- वर्ष 2030-2050 तक, जलवायु परिवर्तन से कुपोषण, मलेरिया, डायरिया और अत्यधिक गर्मी के कारण सालाना लगभग 250,000 अतिरिक्त मौतें होने का अनुमान है।
- यदि मौज़ूदा उत्सर्जन स्तर बना रहता है, तो सदी के अंत तक 8.4 बिलियन लोगों तक दो प्रमुख वेक्टर जनित मलेरिया और डेंगू रोगों से खतरा उत्पन्न हो सकता है।
- अत्यधिक गर्मी को लेकर उत्पन्न चिंताएँ और पूर्व चेतावनी प्रणाली संबंधी जानकारी को मज़बूत बनाने के महत्त्व तथा जलवायु से संबंधित जोखिमों जैसे ग्रीष्म लहरों, वनाग्नि एवं वायु गुणवत्ता से संबद्ध मुद्दों के लिये जोखिम प्रबंधन के महत्त्व को देखते हुए यह कार्यान्वयन योजना आवश्यक हो जाती है।
- वर्ष 2022 में, भारत ने सबसे गर्म माह मार्च का अनुभव किया, जिससे विभिन्न क्षेत्रों में शुरुआती ग्रीष्म लहरें चलीं।
- अत्यधिक गर्मी वर्ष 2030 तक 600 मिलियन भारतीयों को अत्यधिक उच्च तापमान का सामना करना पड़ेगा।