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डेली न्यूज़

  • 27 Apr, 2022
  • 39 min read
भारतीय राजनीति

91वांँ संशोधन तथा मंत्रिमंडल सदस्यों की अधिकतम संख्या

प्रिलिम्स के लिये:

जनहित याचिका (पीआईएल), कैबिनेट मंत्री, 91वांँ संशोधन अधिनियम, 2003

मेन्स के लिये:

जनहित याचिका, संसद

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया है कि गोवा के छह बार के मुख्यमंत्री तथा 50 साल से विधायक रहे प्रताप सिंह राणे को लेकर दायर एक जनहित याचिका (Public Interest Litigation- PIL)) में उनके "कैबिनेट मंत्री के पद की आजीवन स्थिति" को चुनौती देने से संबंधित एक बहस योग्य मुद्दे को उठाया गया है।

  • जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि गोवा में 12 सदस्यीय कैबिनेट है और राणे को कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने के परिणामस्वरूप कैबिनेट सदस्यों की संख्या बढ़कर 13 हो जाती है, जो संविधान द्वारा निर्धारित अनिवार्य सीमा से अधिक है।
  • यह सीमा भारतीय संविधान में 91वें संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा निर्धारित की गई थी।

प्रमुख बिंदु 

91वांँ सविधान संशोधन:  

  • संविधान (91वांँ संशोधन) अधिनियम, 2003 के अनुच्छेद 164 में खंड 1A सम्मिलित किया गया जिसके अनुसार, "किसी राज्य की मंत्रिपरिषद में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या राज्य विधानसभा के सदस्यों की कुल संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये। 
    • इसमें यह भी प्रावधान था कि किसी राज्य में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की संख्या 12 से कम नहीं होगी। 
  • इसी तरह के संशोधन अनुच्छेद 75 के तहत भी किये गए थे। 
    • इसके अनुसार, प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
    • मंत्रिपरिषद् में प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की कुल संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होनी चाहिये। 
  • 91वें संशोधन का उद्देश्य बड़ी कैबिनेट और इसके परिणामस्वरूप सरकारी खजाने पर पड़ने वाले आर्थिक भार को रोकना था। 

मंत्रिपरिषद:

  • संविधान का अनुच्छेद 74 मंत्रिपरिषद की स्थिति से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 75 मंत्रियों की नियुक्ति, कार्यकाल, ज़िम्मेदारी, योग्यता, शपथ और वेतन तथा भत्ते से संबंधित है। 
  • मंत्रिपरिषद में मंत्रियों की तीन श्रेणियांँ होती हैं, अर्थात् कैबिनेट मंत्री, राज्य मंत्री और उप मंत्री। इन सभी मंत्रियों में प्रधानमंत्री का पद सर्वोच्च होता है। 
    • कैबिनेट मंत्री: ये केंद्र सरकार के महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों जैसे- गृह, रक्षा, वित्त, विदेश मामले आदि के प्रमुख होते हैं।
      • कैबिनेट केंद्र सरकार का मुख्य नीति निर्धारण निकाय है।
    • राज्य मंत्री: इन्हें या तो मंत्रालयों/विभागों का स्वतंत्र प्रभार दिया जा सकता है या कैबिनेट मंत्रियों के साथ रखा जा सकता है।
    • उप मंत्री: ये कैबिनेट मंत्रियों या राज्य मंत्रियों से संबंधित होते हैं और उनके प्रशासनिक, राजनीतिक और संसदीय कार्यो में सहायता करते हैं।

जनहित याचिका:

  • जनहित याचिका (PIL) का अर्थ है "जनहित" की सुरक्षा के लिये न्यायालय में दायर मुकदमे, जैसे- प्रदूषण, आतंकवाद, सड़क सुरक्षा, निर्माण संबंधी खतरे आदि। 
    • कोई भी ऐसा मामला जिससे व्यापक रूप से जनता के हित प्रभावित होते हैं, का निवारण न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर करके किया जा सकता है।
  • जनहित याचिका को किसी भी क़ानून या किसी अधिनियम में परिभाषित नहीं किया गया है। इसकी व्याख्या न्यायाधीशों द्वारा बड़े पैमाने पर जनता के हित के रूप में  की गई है।  
  • जनहित याचिका न्यायिक सक्रियता के माध्यम से न्यायालयों द्वारा जनता को दी गई शक्ति है।
    • हालाँकि याचिका दायर करने वाले व्यक्ति को न्यायालय की संतुष्टि के लिये यह साबित करना होगा कि याचिका सार्वजनिक हित में दायर की जा रही है, न कि एक निकाय द्वारा केवल मुकदमेबाज़ी के रूप में।
  • न्यायालय मामले का स्वतः संज्ञान ले सकता है या किसी भी सार्वजनिक रूप से जागरूक व्यक्ति की याचिका पर मामले की शुरुआत हो सकती है।
  • जनहित याचिका के तहत जिन मामलों पर विचार किया जाता है, उनमें से कुछ हैं:
    • बंधुआ मज़दूरी से संबंधित मुद्दे
    • उपेक्षित बच्चे
    • श्रमिकों को न्यूनतम मज़दूरी का भुगतान न करना और अनौपचारिक श्रमिकों का शोषण
    • महिलाओं पर अत्याचार
    • पर्यावरण प्रदूषण और पारिस्थितिक संतुलन में गड़बड़ी
    • खाद्य अपमिश्रण
    • विरासत और संस्कृति का रखरखाव
  • जनहित याचिका आंदोलन के युग की शुरुआत न्यायमूर्ति पी.एन. भगवती द्वारा एसपी गुप्ता बनाम भारत संघ 1981 मामले में की गई।
    • इस मामले में यह माना गया कि सार्वजनिक या सामाजिक कार्रवाई समूह का कोई भी सदस्य जो वास्तविक रूप से कार्य करता है, उच्च न्यायालयों (अनुच्छेद 226 के तहत) या सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 32 के तहत) के रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान कर सकता है।
    • जनहित याचिका के माध्यम से कोई भी व्यक्ति उन व्यक्तियों के कानूनी या संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ निवारण की मांग कर सकता है जो सामाजिक या आर्थिक या किसी अन्य अयोग्यता के कारण न्यायालय की शरण में नहीं जा सकते हैं।

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत  वर्ष के प्रश्न (PYQ):

प्रश्न. निम्नलिखित में से उस कथन का चुनाव कीजिये, जो मंत्रिमंडल स्वरूप की सरकार के अंतर्निहित सिद्धांत को अभिव्यक्त करता है:

(a) ऐसी सरकार के विरुद्ध आलोचना को कम-से-कम करने की व्यवस्था, जिसके उत्तरदायित्व जटिल हैं तथा उन्हें सभी के संतोष के लिये निष्पादित करना कठिन है।
(b) ऐसी सरकार के कामकाज़ में तेज़ी लाने की क्रियाविधि, जिसके उत्तरदायित्व दिन-प्रतिदिन बढ़ते जा रहे हैं।
(c) सरकार का जनता के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने के लिये संसदीय लोकतंत्र की एक क्रियाविधि।
(d) उस शासनाध्यक्ष के हाथों को मज़बूत करने का एक साधन जिसका जनता पर नियंत्रण ह्रासोन्मुख दशा में है।

उत्तर: (C)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति से संबंधित विधेयक

प्रिलिम्स के लिये:

विश्वविद्यालयों में कुलपति पर तमिलनाडु विधेयक, राज्य विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति में राज्यपाल की भूमिका।

मेन्स के लिये:

केंद्र-राज्य संबंधों में राज्यपाल की भूमिका।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में तमिलनाडु विधानसभा ने दो विधेयक पारित किये, जो 13 राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों (VC) की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्ति को स्थानांतरित करने का प्रावधान करते हैं।

  • इससे पहले महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल सरकारों ने राज्यपाल द्वारा विश्वविद्यालयों के कुलपति की नियुक्ति के संबंध में समान प्रावधान किये हैं।
  • कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान में राज्य के कानून ‘राज्य और राज्यपाल’ के बीच सहमति की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं।
  • ज़्यादातर मामलों में ‘सहमति’ या ‘परामर्श’ शब्द राज्य के कानून से अनुपस्थित हैं।

विधेयकों की मुख्य विशेषताएँ: 

  • तमिलनाडु में पारित इन विधेयकों में ज़ोर दिया गया है कि "कुलपति की  नियुक्ति सरकार द्वारा ‘खोज एवं चयन समिति’ की अनुशंसा के आधार पर गठित एक तीन सदस्यीय पैनल के माध्यम से की जाएगी"। 
  • वर्तमान में राज्यपाल, राज्य विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति की हैसियत से चयन सूची में से किसी एक को कुलपति के रूप में नियुक्त करने की शक्ति रखता है। 
  • विधेयकों में राज्य सरकार को आवश्यकता पड़ने पर कुलपतियों को हटाने पर अंतिम निर्णय लेने का अधिकार देने का भी प्रयास किया गया है।
  • कुलपतियों को हटाने का निर्णय उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश या मुख्य सचिव की जाँच के आधार पर की जाएगी।

यूजीसी की भूमिका: 

  • शिक्षा समवर्ती सूची के अंतर्गत आती है, लेकिन संघ सूची की प्रविष्टि 66- "उच्च शिक्षा या अनुसंधान और वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों में मानकों का समन्वय तथा निर्धारण", केंद्र को उच्च शिक्षा पर पर्याप्त अधिकार देता है। 
  • विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में नियुक्तियों के मामले में मानक-निर्धारण की भूमिका निभाता है।
  • यूजीसी (विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों एवं अन्य शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति के लिये न्यूनतम योग्यता व उच्च शिक्षा में मानकों की मान्यता हेतु अन्य उपाय) विनियम, 2018 के अनुसार, "आगंतुक/कुलाधिपति", ज़्यादातर राज्यों में राज्यपाल “सर्च कम सिलेक्शन समितियों” द्वारा अनुशंसित नामों के पैनल में से कुलपति की नियुक्ति करेगा।  
  • उच्च शिक्षण संस्थानों, विशेष रूप से जिन्हें यूजीसी द्वारा फंड प्राप्त होता है, को यूजीसी के नियमों का पालन करना अनिवार्य है।
  • आमतौर पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के मामले में यूजीसी के नियमों का पालन बिना किसी रुकावट के किया जाता है, लेकिन कभी-कभी राज्य विश्वविद्यालयों के मामले में राज्यों द्वारा इसका विरोध किया जाता है।

न्यायपालिका की राय:

सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों में कहा है कि यूजीसी के नियमों के प्रावधानों के विपरीत कुलपति के रूप में किसी भी नियुक्ति को वैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन कहा जा सकता है, जो कि अधिकार-पृच्छा रिट की एक गारंटी है।  

  • राज्य के कानून और केंद्रीय कानून के बीच किसी भी तरह के विरोध की स्थिति में, केंद्रीय कानून मान्य होगा, क्योंकि शिक्षा' को संविधान की सातवीं अनुसूची की समवर्ती सूची में रखा गया है। 

राज्य विश्वविद्यालयों में राज्यपाल की भूमिका: 

  • ज़्यादातर मामलों में राज्य का राज्यपाल संबंधित राज्य के विश्वविद्यालयों का पदेन कुलपति होता है। 
  • राज्यपाल के रूप में वह मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से कार्य करता है लेकिन कुलाधिपति के रूप में वह मंत्रिपरिषद से स्वतंत्र रूप में कार्य करता है और विश्वविद्यालय के सभी मामलों पर निर्णय लेता है। 
  • केंद्रीय विश्वविद्यालयों के संबंध में: 
    • केंद्रीय विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 (Central Universities Act, 2009) और अन्य विधियों के तहत भारत का राष्ट्रपति केंद्रीय विश्वविद्यालय का कुलाध्यक्ष होगा।
    • दीक्षांत समारोह की अध्यक्षता करने तक सीमित भूमिका के साथ ही वह केंद्रीय विश्वविद्यालयों में कुलाधिपति के रूप में नाममात्र का प्रमुख होता है जिसे राष्ट्रपति द्वारा आगंतुक के रूप में नियुक्त किया जाता है।
    • कुलपति को भी केंद्र सरकार द्वारा गठित खोज और चयन समितियों (Search and Selection Committees) द्वारा चुने गए नामों के पैनल से विज़िटर द्वारा नियुक्त किया जाता है। 
    • अधिनियम में यह भी कहा गया है कि राष्ट्रपति को उसे कुलाध्यक्ष के रूप में विश्वविद्यालयों के शैक्षणिक और गैर-शैक्षणिक पहलुओं के निरीक्षण के लिये अधिकृत करने एवं जानकारी प्राप्त करने का अधिकार होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पर्सिवरेंस रोवर द्वारा मंगल ग्रह पर ली गईं ग्रहण की तस्वीरें

प्रिलिम्स के लिये:

पर्सिवरेंस रोवर, मंगल ग्रह, राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन

मेन्स के लिये:

पर्सिवरेंस रोवर द्वारा मंगल ग्रह पर ली गईं ग्रहण की तस्वीरों का महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) के पर्सिवरेंस रोवर ने मंगल ग्रह पर सूर्यग्रहण की तस्वीरें लीं। 

  • पर्सिवरेंस रोवर ने मंगल के दो चंद्रमाओं में से एक फोबोस पर ग्रहण के कारण पड़ने वाले प्रभावों से युक्त विशेषताओं वाली तस्वीरें लीं। फोबोस बहुत धीरे-धीरे मंगल की ओर बढ़ रहा है और अब से लाखों वर्षों बाद वे टकराएंगे। 
  • ये अवलोकन वैज्ञानिकों को चंद्रमा की कक्षा को बेहतर ढंग से समझने और इसका गुरुत्वाकर्षण कैसे मंगल की सतह पर आकर्षित करता है तथा अंततः लाल ग्रह के क्रस्ट व मेंटल को आकार देता है, को जानने में मदद कर सकते हैं। 

सूर्यग्रहण :

  • जब पृथ्वी तथा सूर्य के मध्य चंद्रमा आ जाता है तब सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता और पृथ्वी की सतह के कुछ हिस्से पर दिन में अँधेरा छा जाता है। इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं।
  • चंद्रमा की छाया के दो भाग होते हैं: एक मध्य क्षेत्र छाया (Umbra) और एक बाहरी क्षेत्र उपच्छाया (Penumbra)। छाया का कौन सा भाग पृथ्वी के ऊपर से गुज़रता है, इसके आधार पर तीन प्रकार के सूर्यग्रहण देखे जा सकते हैं:
    • पूर्ण सूर्यग्रहण- सूर्य का पूरा मध्य भाग चंद्रमा द्वारा अवरुद्ध/ढक लिया जाता है।
    • आंशिक सूर्यग्रहण- सूर्य की सतह का केवल एक हिस्सा की अवरुद्ध होता है।
    • वलयाकार सूर्यग्रहण- सूर्य को इस प्रकार ढका जाता है कि सूर्य की डिस्क से केवल एक छोटा वलय जैसा प्रकाश का गोलाकर छल्ला दिखाई देता है। इस रिंग को रिंग ऑफ फायर के नाम से जाना जाता है।
      • वलयाकार सूर्यग्रहण तब होता है जब चंद्रमा पृथ्वी से सबसे दूर होता है। चूंँकि चंद्रमा पृथ्वी से दूर होता है, इस कारण यह छोटा लगता है और सूर्य के पूरे दृश्य को अवरुद्ध करने या ढकने में असमर्थ होता है, जिसके कारण अंँगूठी जैसी संरचना देखी जा सकती है।

Captures-Eclipse-on-Mars

पर्सिवरेंस रोवर:

  • पर्सिवरेंस रोवर के बारे में: 
    • पर्सिवरेंस अत्यधिक उन्नत, महँगी और परिष्कृत चलायमान प्रयोगशाला है जिसे मंगल ग्रह पर भेजा गया है।
    • यह मिशन पिछले मिशनों से भिन्न है क्योंकि यह महत्त्वपूर्ण चट्टानों और मिट्टी के नमूनों की खुदाई करने एवं उन्हें एकत्रित करने में सक्षम है तथा इन्हें मंगल की सतह पर एक गुप्त स्थान पर सुरक्षित किया जा सकता है।
    • यह नासा के मार्स 2020 मिशन का केंद्रबिंदु है जिसमें छोटा रोबोट और समाक्षीय (Coaxial) हेलीकॉप्टर इनजेनिटी भी शामिल है।
  • लॉन्च:   30 जुलाई  2020 
  • लैंडिंग: 18 फरवरी 2021 
  • शक्ति का स्रोत:
    • इसमें एक बहु-मिशन रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर है जो प्लूटोनियम (प्लूटोनियम डाइऑक्साइड) के प्राकृतिक रेडियोधर्मी क्षय से गर्मी को बिजली में परिवर्तित कर देता है।
  • उद्देश्य: 
    • पर्सिवरेंस का प्राथमिक उद्देश्य प्राचीन सूक्ष्मजीवों के जीवन के संकेतों की तलाश करना है।
    • पर्सिवरेंस रोवर लाल ग्रह के रेजोलिथ, चट्टान और धूल का अध्ययन व विश्लेषण कर रहा है, यह गुप्त रूप से छुपे हुए नमूने एकत्र करने वाला पहला रोवर है।

मंगल ग्रह:

  • आकार और दूरी:
    • यह सूर्य से दूरी के क्रम में चौथा ग्रह है और सौरमंडल का दूसरा सबसे छोटा ग्रह है।
    • मंगल  ग्रह पृथ्वी के आकार का लगभग आधा है।
  • पृथ्वी से समानता (कक्षा और घूर्णन):
    • मंगल ग्रह सूर्य का परिक्रमण 24.6 घंटे में पूरा करता है, जो पृथ्वी पर लगभग एक दिन (23.9 घंटे) के समान है।
    • मंगल ग्रह का घूर्णन अक्ष सूर्य के चारों ओर अपनी कक्षा के तल के सापेक्ष 25 डिग्री झुका हुआ है। यह पृथ्वी के अक्षीय झुकाव 23.4 डिग्री के समान है।
    • पृथ्वी की भांँति मंगल ग्रह पर भी अलग-अलग मौसम पाए जाते हैं, लेकिन ये पृथ्वी के मौसम की तुलना में अधिक समय तक अपरिवर्तित रहते हैं क्योंकि मंगल ग्रह की अवस्थिति दूर है जिससे इसे सूर्य की परिक्रमा करने में अधिक समय लगता है।
    • मंगल ग्रह के दिनों को सोल कहा जाता है- 'सौर दिवस' का छोटा रूप।
  • सतह:
    • इसकी सतह भूरी, सुनहरी और हल्के पीले रंग जैसी है। मंगल ग्रह चट्टानों में लोहे का ऑक्सीकरण या जंग लगने तथा धूल के कारण लाल दिखाई देता है। इसलिये इसे लाल ग्रह भी कहा जाता है।
    • मंगल ग्रह परओलंपस मॉन्स सौरमंडल का सबसे बड़ा ज्वालामुखी है। यह न्यू मैक्सिको राज्य के आकार के समान आधार वाले पृथ्वी के माउंट एवरेस्ट से तीन गुना लंबा है।
  • वातावरण:
    • मंगल ग्रह का वातावरण पतला है जो ज़्यादातर कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और आर्गन गैसों से बना है।
  • मैग्नेटोस्फीयर:
    • मंगल ग्रह में कोई चुंबकीय क्षेत्र नहीं है, लेकिन दक्षिणी गोलार्द्ध क्षेत्र में मंगल ग्रह की भू-पर्पटी अत्यधिक चुंबकीय है, जो इसके चुंबकीय क्षेत्र होने का संकेत डेता है।
  • उपग्रह:
    • मंगल के दो छोटे उपग्रह- फोबोस और डीमोस हैं। 

अन्य मंगल मिशन:

  • एक्सोमार्स रोवर (2021): 
    • यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने सितंबर 2022 में मंगल पर एक संयुक्त मिशन भेजने की योजना बनाई है।
      • यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से इसे निलंबित कर दिया गया है।
  • तियानवेन-1: चीन का मंगल मिशन:  
    • चीन का पहला मंगल मिशन सतह के नीचे पानी की तलाश करेगा ताकि जीवन की खोज की जा सके।
  • यूएई का होप मार्स मिशन (यूएई का पहला इंटरप्लेनेटरी मिशन) (2021): 
    • यूएई का होप मार्स मिशन मंगल के जलवायु की पूरी जानकारी प्रदान करेगा। 
  • भारत का मंगल ऑर्बिटर मिशन (MOM) या मंगलयान (2013): 
    • इसे नवंबर 2013 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा आंध्र प्रदेश के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।
  • मार्स 2 और मार्स 3 (1971):  
    • सोवियत संघ द्वारा मार्स 2 और मार्स 3 अंतरिक्षयान वर्ष 1971 में लॉन्च किये गए।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


शासन व्यवस्था

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019

प्रिलिम्स के लिये:

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019, 1985 का असम समझौता, नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC)

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, धर्मनिरपेक्षता, संविधान की छठी अनुसूची 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में गृह मंत्रालय (एमएचए) ने 2020-21 के लिये अपनी नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट में कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 एक सहानुभूतिपूर्ण और सुधारात्मक कानून है और यह किसी भी भारतीय को नागरिकता से वंचित नहीं करता है।

  • CAA का उद्देश्य अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों के प्रवासियों को नागरिकता देना है। यह 12 दिसंबर, 2019 को अधिसूचित किया गया और 10 जनवरी, 2020 को लागू हुआ था।
  • इस कानून का पूरे देश में व्यापक विरोध हुआ था।

CAA की चुनौतियाँ:

  • विशेष लक्षित समुदाय: ऐसी आशंकाएंँ हैं कि CAA के  बाद राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का देशव्यापी संकलन किया जाएगा, जिसमें प्रस्तावित नागरिक रजिस्टर से बहिष्कृत गैर-मुसलमान लाभान्वित होंगे, जबकि बहिष्कृत मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी।
  • उत्तर-पूर्व से संबंधित मुद्दे: यह 1985 के असम समझौते का खंडन करता है, जिसमें कहा गया है कि 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों, चाहे वे किसी भी धर्म के हों, को निर्वासित कर दिया जाएगा।
    • असम में अनुमानित 20 मिलियन अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं और ये प्रवासी राज्य के संसाधनों और अर्थव्यवस्था पर दबाव डालने के अलावा राज्य की जनसांख्यिकी को अनिवार्य रूप से परिवर्तित करते हैं।
  • मौलिक अधिकारों के खिलाफ: आलोचकों का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता के अधिकार की गारंटी देता है जो नागरिकों और विदेशियों दोनों पर लागू होता है) तथा संविधान की प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन है।
  • भेदभावपूर्ण: भारत में कई अन्य शरणार्थी हैं जिनमें श्रीलंका के तमिल और म्यांँमार के हिंदू रोहिंग्या शामिल हैं। ये अधिनियम के दायरे में नहीं आते हैं।
  • प्रशासन में कठिनाई: सरकार के लिये अवैध प्रवासियों और सताए गए लोगों के बीच अंतर करना मुश्किल होगा। 
  • द्विपक्षीय संबंधों में बाधा: यह अधिनियम उपर्युक्त तीन देशों में धार्मिक उत्पीड़न पर प्रकाश डालता है और इस प्रकार उनके साथ हमारे द्विपक्षीय संबंधों को खराब कर सकता है। 

गृह मंत्रालय द्वारा स्पष्टीकरण:

  • भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं: CAA भारतीय नागरिकों पर लागू नहीं होता है। इसलिये यह किसी भी तरह से किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकार को समाप्त या कम नहीं करता है। 
  • भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की कानूनी प्रक्रिया अपरिवर्तित रहती है: 
  • इसके अलावा नागरिकता अधिनियम, 1955 में प्रदान की गई किसी भी श्रेणी के किसी विदेशी द्वारा भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की वर्तमान कानूनी प्रक्रिया परिचालन में है और CAA इस कानूनी स्थिति में किसी भी तरह से संशोधन या परिवर्तन नहीं करता है। 
    • अत: किसी भी देश के किसी भी धर्म के कानूनी प्रवासियों के पंजीकरण या देशीयकरण के लिये कानून में पहले से प्रदान की गई पात्रता शर्तों को पूरा करने के बाद ही भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकेगी। 
  • पूर्वोत्तर भारत से संबंधित मुद्दों को सुलझाना: वार्षिक रिपोर्ट में एक बार फिर पूर्वोत्तर में कानून को लेकर आशंकाओं को दूर करने का प्रयास किया गया है जिसमें कहा गया है कि संविधान की छठी अनुसूची के तहत क्षेत्रों और इनर लाइन परमिट शासन के तहत आने वाले क्षेत्रों को शामिल करने से क्षेत्र की स्वदेशी और आदिवासी आबादी की सुरक्षा सुनिश्चित होगी। 

आगे की राह

  • इसके बारे में नियमों की अधिसूचना, जिसके बिना कानून लागू नहीं किया जा सकता है, सरकार की ओर से कोई प्रतिबद्धता न होने के कारण लंबित है।
  • इस प्रकार गृह मंत्रालय को चाहिये कि वह CAA नियमों को अत्यंत पारदर्शिता के साथ अधिसूचित करे तथा इससे जुड़ी आशंकाओं को दूर करे। 

यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न:भारतीय संविधान में पाँचवीं अनुसूची और छठी अनुसूची के प्रावधान संबंधित हैं:(2015) 

(a) अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा करना
(b)
राज्यों के बीच की सीमाओं का निर्धारण
(c)
पंचायतों की ज़िम्मेदारी, शक्तियों, अधिकार का निर्धारण 
(d)
सभी सीमावर्ती राज्यों के हितों की रक्षा करना

उत्तर: (a) 

  • पाँचवीं अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों व अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन एवं नियंत्रण के लिये प्रावधान करती है।
  • छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम में जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन से संबंधित है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत की तकनीकी क्षमता का दोहन

प्रिलिम्स के लिये:

स्टार्टअप के लिये पहल

मेन्स के लिये:

भारत में स्टार्टअप और स्टार्टअप की वास्तविक क्षमता को प्राप्त करने में चुनौतियांँ, स्टार्टअप को बढ़ावा देने हेतु उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में देश की तकनीकी क्षमता का दोहन करने के लिये वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (Council of Scientific and Industrial Research- CSIR) तथा इंटरनेशनल सेंटर फॉर एंटरप्रेन्योरशिप एंड टेक्नोलॉजी (International Centre for Entrepreneurship and Technology- iCreate) के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।

इंटरनेशनल सेंटर फॉर एंटरप्रेन्योरशिप एंड टेक्नोलॉजी (iCreate):

  • iCreate गुजरात सरकार की उत्कृष्टता का एक स्वायत्त केंद्र है तथा टेक इनोवेशन पर आधारित स्टार्टअप को व्यवसायों में परिवर्तित करने हेतु भारत का सबसे बड़ा संस्थान है।

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR):

  • CSIR को विविध विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अपने अत्याधुनिक अनुसंधान व विकास तथा औद्योगिक ज्ञान के आधार हेतु जाना जाता है।  
  • यह एक समकालीन अनुसंधान एवं विकास संगठन है।  
  • CSIR के पास 37 राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, 39 आउटरीच केंद्रों, एक इनोवेशन कॉम्प्लेक्स और अखिल भारतीय उपस्थिति वाली तीन इकाइयों का एक गतिशील नेटवर्क है। 
  • CSIR के पास 8366 भारतीय पेटेंट और 7806 विदेशी पेटेंट का पेटेंट पोर्टफोलियो है। 
  • CSIR समुद्र विज्ञान, भूभौतिकी, रसायन, दवाओं, जीनोमिक्स, जैव प्रौद्योगिकी और नैनो प्रौद्योगिकी से लेकर खनन, वैमानिकी, इंस्ट्रूमेंटेशन, पर्यावरण इंजीनियरिंग तथा सूचना प्रौद्योगिकी तक विज्ञान व प्रौद्योगिकी के व्यापक स्पेक्ट्रम को कवर करता है।
  • यह सामाजिक प्रयासों से संबंधित कई क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण तकनीकी हस्तक्षेप प्रदान करता है।
    • सामाजिक प्रयासों में पर्यावरण, स्वास्थ्य, पेयजल, भोजन, आवास, ऊर्जा, कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र शामिल हैं।  
  • इसके अलावा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मानव संसाधन विकास में सीएसआईआर की भूमिका उल्लेखनीय है।

समझौता ज्ञापन के प्रमुख बिंदु: 

  • समझौता ज्ञापन के तहत CSIR और iCreate देश में उद्यमियों और नवप्रवर्तनकर्त्ताओं के लिये संयुक्त संसाधन उपलब्ध कराकर नवाचार तकनीकी स्टार्टअप हेतु एक सहयोगी समर्थन प्रणाली स्थापित करने का इरादा रखते हैं।
  • यह साझेदारी वैज्ञानिक नवोन्मेष और हाई-टेक स्टार्टअप्स की मार्केटिंग क्षमता को भी उत्प्रेरित करेगी।
    • फिनटेक, नियोबैंक और ई-कॉमर्स उद्यमी डिजिटल वातावरण का निर्माण करते है तथा उनका उद्यम इसका पूरा लाभ उठा सकता है जिससे डिजिटल बूम की स्थिति पैदा हो सकती है।
  • इसके अलावा iCreate चिह्नित CSIR प्रयोगशालाओं में नए इन्क्यूबेटरों को स्थापित करने में मदद करेगा।  
    • ऐसे स्टार्टअप CSIR के उपकरण, सुविधाओं और वैज्ञानिक जनशक्ति का उपयोग करेंगे।
  • CSIR उभरते उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिये बौद्धिक संपदा सहायता प्रदान करेगा तथा भारत के अभिनव स्टार्टअप को वित्तीय रूप से समर्थन देने के तरीकों का पता लगाएगा।
  • CSIR वैज्ञानिकों द्वारा वैज्ञानिक नवाचार के माध्यम से संबोधित की जा सकने वाली वास्तविक ज़रूरतों की पहचान करने के लिये iCreate अपने गहरे उद्योग संबंध और बाज़ार संपर्कों का भी लाभ उठाएगा। 
    • इस प्रकार यह CSIR से निकलने वाले नवाचारों के तेज़ी से व्यावसायीकरण को बढ़ावा देगा। 

भारत में स्टार्टअप की स्थिति: 

  • स्टार्टअप के बारे में: 
    • वर्तमान में भारत वैश्विक स्तर पर तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र वाला देश है (स्टार्टअप की संख्या के अनुसार)। वर्ष 2020 तक भारत में 15,000 से अधिक स्टार्टअप स्थापित किये जा चुके हैं जो वर्ष 2010 तक स्थापित 5000 स्टार्टअप्स की तुलना में कहीं अधिक हैं।
    • इस स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत  स्मार्टफोन और इंटरनेट की पैठ, क्लाउड कंप्यूटिंग, एप्लीकेशन प्रोग्रामिंग इंटरफेस (API) और एक राष्ट्रीय भुगतान स्टैक शामिल हैं।
    • इसके अतिरिक्त भारत में कोविड-19 महामारी के दौरान, वर्ष 2011-20 की अवधि  में स्थापित स्टार्टअप्स से कहीं अधिक केवल वर्ष 2021 में यूनिकॉर्न स्टार्टअप्स (1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक के मूल्यांकन वाले स्टार्टअप) स्थापित हुए हैं। 
    • हालाँकि अभी भी कई चुनौतियाँ विद्यमान हैं जो भारत में स्टार्टअप्स की वास्तविक क्षमता को साकार करने में  बाधा के रूप में कार्य करती हैं जैसे- भारतीय स्टार्टअप का निर्माण और स्केलिंग, विविधता व डिजिटल डिवाइड, कॉम्प्लेक्स रेगुलेटरी एन्वायरनमेंट आदि।
  • अन्य संबंधित पहलें:
    • स्टास्टार्टअप इकोसिस्टम के आधार पर राज्यों की रैंकिंग: यह एक विकसित मूल्यांकन उपकरण है जिसका उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के समर्थन के लिये समग्र रूप से अपने स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना है।
    • SCO स्टार्टअप मंच: स्टार्टअप मंच को पहली बार शंघाई सहयोग संगठन में उद्देश्य से अक्तूबर 2020 में लॉन्च किया गया था।
    • प्रारंभ: 'प्रारंभ ' शिखर सम्मेलन का उद्देश्य दुनिया भर के स्टार्टअप्स और युवाओं को एक मंच प्रदान करना है ताकि वे नए विचार, नवाचार और आविष्कार प्रस्तुत कर सकें।
    • स्टार्टअप इंडिया सीड फंड योजना: इसका उद्देश्य अवधारणा के प्रमाण (POC), प्रोटोटाइप विकास, उत्पाद परीक्षण, बाज़ार में प्रवेश और व्यावसायीकरण आदि के संदर्भ में स्टार्टअप को वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
    • फिशरीज़ स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज: मत्स्य पालन, पशुपालन व डेयरी मंत्रालय के अधीन मत्स्य पालन विभाग ने स्टार्टअप इंडिया के सहयोग से वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने फिशरीज़ स्टार्टअप ग्रैंड चैलेंज का उद्घाटन किया।

स्रोत: पी.आई.बी.


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