ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस
प्रिलिम्स के लिये:ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस, बोन-मैरो ट्रांसप्लांट (प्रत्यारोपण), CCR5-डेल्टा 32 म्यूटेशन। मेन्स के लिये:एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिसिएंसी सिंड्रोम स्टेज (AIDS), एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट। |
चर्चा में क्यों?
जर्मनी का एक बुजुर्ग व्यक्ति जिसे डसेलडोर्फ रोगी (Dusseldorf Patient) के रूप में जाना जाता है, ‘HIV (Human Immunodeficiency Virus) से ठीक होने वाला’ तीसरा व्यक्ति बन गया है, दवा बंद करने के चार वर्ष बाद भी उसके शरीर में वायरस के कोई संकेत नहीं मिले हैं।
- यह उपलब्धि विशिष्ट HIV प्रतिरोधी आनुवंशिक उत्परिवर्तन (Mutation) वाले व्यक्तियों के माध्यम से अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण द्वारा प्राप्त हुई है।
HIV से अन्य रिकवरी:
- बर्लिन का एक रोगी रक्त कैंसर के इलाज हेतु वर्ष 2007 और 2008 में दो स्टेम सेल प्रत्यारोपण के बाद HIV से ठीक होने वाला पहला व्यक्ति था।
- डॉक्टरों ने CCR5-डेल्टा 32 नामक एक आनुवंशिक उत्परिवर्तन के साथ दाता का चयन किया जो वाहक को HIV के प्रति लगभग प्रतिरक्षित करता है।
- वर्ष 2019 में लंदन के रोगी में इसी तरह के परिणाम दोहराए गए थे। वर्ष 2022 में सफल उपचार के दो और मामले सामने आए।
CCR5-डेल्टा 32 म्यूटेशन:
- सिस्टीन-सिस्टीन केमोकाइन रिसेप्टर 5 (CCR5) वायरस और एक कोशिका से दूसरी कोशिका प्रसार में शामिल प्रमुख HIV सह-रिसेप्टर (HIV co-receptor) है।
- HIV CD4 कोशिकाओं में उनके CCR5 रिसेप्टर्स के माध्यम से प्रवेश करता है। CCR5-डेल्टा 32 म्यूटेशन द्वारा इसके प्रवेश को प्रभावी रूप से बंद कर दिया जाता है, जो इन रिसेप्टर्स को CD4 कोशिकाओं पर विकसित होने से रोकता है।
- विश्व भर में केवल 1% लोगों के पास म्यूटेशन की दो प्रतियाँ हैं और 20% लोगों के पास केवल एक ही प्रति है, इसमें ज़्यादातर यूरोपीय मूल के हैं। म्यूटेशन वाले लोग HIV के प्रति लगभग प्रतिरक्षित होते हैं, फिर भी इसके कुछ मामलों की सूचना मिली है।
HIV:
- परिचय:
- HIV यानी ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस एक ऐसा वायरस है जो मानव शरीर में प्रतिरक्षा प्रणाली को क्षति पहुँचाता है।
- यह मुख्य रूप से CD4 प्रतिरक्षा कोशिकाओं को लक्षित करता है और उन्हें नुकसान पहुँचाता है, CD4 प्रतिरक्षा कोशिकाएँ संक्रमण और बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता के लिये आवश्यक होती हैं।
- HIV समय बीतने के साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर कर देता है, जिससे शरीर विभिन्न प्रकार के संक्रमण और कैंसर की चपेट में आ जाता है।
- संचरण:
- इसके संचरण के प्राथमिक स्रोत- रक्त, शुक्राणु, यौनिक तरल पदार्थ, स्तनपान आदि माने जाते हैं।
- गंभीरता:
- यदि उपचार नहीं किया जाता है, तो वायरस किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली को नष्ट कर देता है तथा उसे एक्वायर्ड इम्यूनोडिफिसिएंसी सिंड्रोम (AIDS) स्टेज में कहा जाता है, जिसमें प्रतिरक्षा प्रणाली के कमज़ोर होने के कारण कई अन्य संक्रमण घेर लेते हैं जिसके परिणामस्वरूप मृत्यु हो सकती है।
- उपचार:
- हालाँकि वर्तमान में संक्रमण का कोई इलाज नहीं है, लेकिन एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) का उपयोग करके वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है।
- ये दवाएँ शरीर के भीतर वायरस की प्रतिकृति बनाने की क्षमता को कम कर देती हैं, जिससे CD4 प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि हो जाती है।
- हालाँकि वर्तमान में संक्रमण का कोई इलाज नहीं है, लेकिन एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) का उपयोग करके वायरस को नियंत्रित किया जा सकता है।
अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (Bone Marrow Transplant):
- अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण एक चिकित्सा उपचार है जो किसी व्यक्ति के अस्थि मज्जा को स्वस्थ कोशिकाओं के साथ प्रतिस्थापित कर देता है।
- प्रतिस्थापन कोशिकाएँ व्यक्ति के स्वयं के शरीर से या दाता से ली जा सकती हैं।
- अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण को स्टेम सेल प्रत्यारोपण या विशेष रूप से हेमटोपोइएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण भी कहा जाता है।
- प्रत्यारोपण का उपयोग कुछ प्रकार के कैंसर के उपचार हेतु किया जा सकता है, जैसे कि ल्यूकेमिया, मायलोमा और लिम्फोमा तथा अन्य रक्त एवं प्रतिरक्षा प्रणाली रोग जो अस्थि मज्जा को प्रभावित करते हैं।
- अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण स्वयं व्यक्ति (Autologous- ऑटोलॉगस प्रत्यारोपण) या दाता (Allogeneic- एलोजेनिक प्रत्यारोपण) से प्राप्त कोशिकाओं का उपयोग कर किया जा सकता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित बीमारियों में से कौन-सी टैटू बनवाने द्वारा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित हो सकती है? (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (b) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जाति आधारित भेदभाव
प्रिलिम्स के लिये:जाति व्यवस्था, संविधान के महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद, संबंधित सरकारी योजनाएँ मेन्स के लिये:समाज और अर्थव्यवस्था में जाति की भूमिका, जाति व्यवस्था की स्थिति, पहलें |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सिएटल जाति-आधारित भेदभाव पर प्रतिबंध लगाने वाला पहला अमेरिकी शहर बना। इसमें लिंग और धर्म के आधार पर भेदभाव के खिलाफ संरक्षित एक वर्ग के रूप में जाति को भी शामिल किया गया है।
- जाति विरोधी आंदोलन के कार्यकर्त्ताओं ने इसे ऐतिहासिक जीत बताया है।
भारत में सामाजिक भेदभाव की स्थिति:
- परिचय:
- जाति अपने कठोर सामाजिक नियंत्रण और नेटवर्क के माध्यम से कुछ के लिये आर्थिक गतिशीलता की सुविधा प्रदान करती है तो अन्य के लिये अलाभ या वंचना की व्यापक स्थिति के साथ बाधाएँ खड़ी करती है।
- यह भूमि एवं पूंजी के स्वामित्त्व पैटर्न को भी आकार देती है और साथ ही राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक पूंजी तक पहुँच को नियंत्रित करती है।
- जनगणना (2011) के अनुसार, भारत में अनुमानित 20 करोड़ दलित हैं।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़े:
- वर्ष 2021 में अनुसूचित जातियों (SC) के खिलाफ अपराधों के 50,900 मामले दर्ज किये गए, वर्ष 2020 (50,291 मामलों) की तुलना में इसमें 1.2% की वृद्धि हुई।
- अपराध की दर विशेष रूप से मध्य प्रदेश (113.4 लाख की अनुसूचित जाति की आबादी में 63.6 प्रति लाख) और राजस्थान (112.2 लाख की अनुसूचित जाति की आबादी में 61.6 प्रति लाख) में उच्च थी।
- ऑक्सफैम इंडिया द्वारा जारी इंडिया डिस्क्रिमिनेशन रिपोर्ट:
- शहरी क्षेत्रों में भेदभाव में कमी: यह कमी शिक्षा एवं सहायक सरकारी नीतियों के कारण देखी गई है।
- आय में अंतर: वर्ष 2019-20 में गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों के स्व-नियोजित श्रमिकों की औसत आय 15,878 रुपए, जबकि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति पृष्ठभूमि के लोगों की औसत आय 10,533 रुपए थी।
- स्व-नियोजित गैर-अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कर्मचारी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति पृष्ठभूमि के अपने समकक्षों की तुलना में एक-तिहाई अधिक कमाते हैं।
- ग्रामीण क्षेत्रों में भेदभाव में वृद्धि: ग्रामीण भारत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों को आकस्मिक रोज़गार में भेदभाव में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है।
भारत में भेदभाव के खिलाफ सुरक्षा उपाय:
- संवैधानिक प्रावधान:
- कानून के समक्ष समानता:
- अनुच्छेद 14 कहता है कि किसी भी व्यक्ति को भारत क्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
- यह अधिकार सभी व्यक्तियों चाहे वे भारतीय नागरिक हों या विदेशी नागरिक या किसी अन्य प्रकार का कानूनी निगमों जैसे, सांविधिक निगम, कंपनियाँ, पंजीकृत समितियाँ आदि को दिया गया है।
- भेदभाव का निषेध:
- भारत के संविधान में अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि राज्य किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा।
- अवसर की समानता:
- भारत के संविधान में अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि राज्य के तहत रोज़गार के मामलों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समानता होगी। कोई भी नागरिक केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, वंश, जन्म स्थान या इनमें से किसी भी आधार पर राज्य के अधीन किसी पद के लिये अपात्र नहीं होगा।
- अस्पृश्यता का उन्मूलन:
- संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है।
- शैक्षणिक और सामाजिक-आर्थिक हितों को बढ़ावा देना:
- अनुच्छेद 46 के तहत राज्य द्वारा 'कमज़ोर वर्ग के लोगों और विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के शैक्षणिक एवं आर्थिक हितों को बढ़ावा देने और उन्हें सामाजिक अन्याय व अन्य सभी प्रकार के शोषण से बचाने के लिये प्रावधान का उल्लेख है।
- अनुसूचित जाति के दावे:
- अनुच्छेद 335 में प्रावधान है कि संघ या राज्य के मामलों के संबंध में सेवाओं और पदों पर नियुक्तियाँ करते समय, प्रशासन की दक्षता बनाए रखने के साथ अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों को लगातार ध्यान में रखा जाएगा।
- विधानमंडल में आरक्षण:
- संविधान के अनुच्छेद 330 और अनुच्छेद 332 में क्रमशः लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में सीटों के आरक्षण का प्रावधान है।
- स्थानीय निकायों में आरक्षण:
- पंचायतों से संबंधित भाग IX और नगर पालिकाओं से संबंधित संविधान के भाग IXA के तहत स्थानीय निकायों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण की परिकल्पना तथा प्रावधान किया गया है।
- कानून के समक्ष समानता:
संबंधित सरकारी पहलें:
- भूमि सुधार:
- भूमि के समान वितरण और वंचितों के उत्थान हेतु भूमि सुधार के प्रयास किये गए। स्वतंत्र भारत के भूमि सुधार के चार घटक थे:
- बिचौलियों का उन्मूलन
- किरायेदारी में सुधार
- भू-धारिता सीलिंग का निर्धारण करना (Fixing Ceilings on Landholdings)
- ज़मींदारी का समेकन।
- भूमि के समान वितरण और वंचितों के उत्थान हेतु भूमि सुधार के प्रयास किये गए। स्वतंत्र भारत के भूमि सुधार के चार घटक थे:
- संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950:
- इसने हिंदू दलितों के साथ-साथ सिख धर्म और बौद्ध धर्म को अपनाने वाले दलितों को अनुसूचित जातियों के रूप में वर्गीकृत किया।
- सर्वोच्च न्यायालय अब दलित ईसाइयों और दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के रूप में शामिल करने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (Pradhan Mantri Kaushal Vikas Yojana- PMKVY):
- यह उत्पादकता बढ़ाने और देश की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण एवं प्रमाणन को संरेखित करने के उद्देश्य से युवाओं को कौशल प्रशिक्षण के लिये प्रेरित करने पर लक्षित है।
- संकल्प योजना:
- आजीविका संवर्द्धन के लिये कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता या ‘संकल्प’ (Skills Acquisition and Knowledge Awareness for Livelihood Promotion- SANKALP) कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय ( Ministry of Skill Development & Entrepreneurship- MSDE) का एक परिणाम-उन्मुख कार्यक्रम है जहाँ विकेंद्रीकृत योजना-निर्माण एवं गुणवत्ता सुधार पर विशेष बल दिया गया है।
- ‘स्टैंडअप इंडिया’ योजना:
- इसे अप्रैल 2016 में आर्थिक सशक्तीकरण और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित रखते हुए ज़मीनी स्तर पर उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये लॉन्च किया गया।
- इसका उद्देश्य संस्थागत ऋण संरचना की पहुँच अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों जैसे सेवा-वंचित समूहों तक सुनिश्चित करना है ताकि वे इसका लाभ उठा सकें।
- प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
- यह बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (Non-Banking Financial Companies- NBFCs) और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (Micro Finance Institutions- MFIs) जैसे विभिन्न वित्तीय संस्थानों के माध्यम से गैर-कॉर्पोरेट लघु व्यवसाय क्षेत्र को वित्तपोषण प्रदान करती है।
- इसके तहत समाज के वंचित वर्गों, जैसे- महिला उद्यमियों, एससी/एसटी/ओबीसी, अल्पसंख्यक समुदाय की लोगों आदि को ऋण दिया गया है। योजना ने नए उद्यमियों का भी विशेष ध्यान रखा है।
आगे की राह
- भेदभाव के खिलाफ दलितों और आदिवासियों जैसे हाशिये के समुदायों की रक्षा हेतु कानूनों तथा नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन करना।
- जातिगत भेदभाव और संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के हानिकारक प्रभावों को उज़ागर करने हेतु लोगों के बीच विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाना।
- भूमि के अधिक समान वितरण हेतु दूसरी पीढ़ी के भूमि सुधारों के साथ-साथ स्टैंडअप इंडिया, PMKVY और मुद्रा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से सीमांत समुदायों का आर्थिक सशक्तीकरण करना।
- जातिगत भेदभाव को दूर करने हेतु नागरिक समाज संगठनों, सरकारी एजेंसियों और वंचित समुदायों के बीच सहयोग एवं संवाद को बढ़ावा देना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'स्टैंडअप इंडिया स्कीम' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: c
मेन्स:प्रश्न. बहु-सांस्कृतिक भारतीय समाज को समझने में क्या जाति की प्रासंगिकता समाप्त हो गई है? उदाहरणों सहित विस्तृत उत्तर दीजिये। (2020) प्रश्न. “जाति व्यवस्था नई-नई पहचानों और सहचारी रूपों को धारण कर रही है। अतः भारत में जाति व्यवस्था का उन्मूलन नहीं किया जा सकता है। टिप्पणी कीजिये। (2018) प्रश्न. स्वतंत्रता के बाद अनुसूचित जनजातियों के प्रति भेदभाव को दूर करने के लिये राज्य द्वारा की गई दो प्रमुख विधिक पहलें क्या हैं? (2017) प्रश्न. अपसारी उपागमों और रणनीतियों के बावजूद महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अम्बेडकर का दलितों की बेहतरी का एक समान लक्ष्य था। स्पष्ट कीजिये। (2015) प्रश्न. इस मुद्दे पर चर्चा कीजिये कि क्या और किस प्रकार दलित प्राख्यान (एसर्शन) के समकालीन आंदोलन जाति विनाश की दिशा में काम करते हैं। (2015) |
स्रोत: द हिंदू
मासिक धर्म अवकाश
प्रिलिम्स के लिये:जनहित याचिका, महिलाओं का मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक निःशुल्क पहुँच विधेयक, 2022 मेन्स के लिये:महिलाओं से संबंधित मुद्दे, भारत में मासिक धर्म अवकाश के प्रयास। |
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में श्रमिकों और छात्रों के लिये मासिक धर्म अवकाश से संबंधित एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया।
- न्यायालय ने इसे एक नीतिगत मामला बताया और कहा कि मासिक धर्म के दौरान तकलीफ के लिये अवकाश के अलग-अलग आयाम हैं और यह नियोक्ताओं को महिला कर्मचारियों को कार्य पर रखने से हतोत्साहित कर सकता है
विश्व स्तर पर मासिक धर्म अवकाश हेतु किस प्रकार की नीतियाँ लागू हैं?
- परिचय:
- मासिक धर्म अवकाश जिसे मासिक चक्र अवकाश के रूप में भी जाना जाता है, उन सभी नीतियों को संदर्भित करता है जो महिला कर्मचारियों या छात्राओं को मासिक धर्म में दर्द या परेशानी के कारण अवकाश की अनुमति देता है।
- मासिक धर्म अवकाश को बढ़ावा देने वाले देश:
- स्पेन, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ताइवान, दक्षिण कोरिया, ज़ाम्बिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम।
- स्पेन पहला यूरोपीय देश है जो महिला कर्मचारियों को मासिक धर्म में सवेतन अवकाश प्रदान करता है, जिसमें प्रतिमाह तीन दिन का अवकाश अधिकार शामिल है, जिसे बढ़ाकर पाँच दिन किया जा सकता है।
- स्पेन, जापान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ताइवान, दक्षिण कोरिया, ज़ाम्बिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम।
मासिक धर्म अवकाश हेतु भारत में प्रयास:
- भारत में कुछ कंपनियों ने मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ पेश की हैं, जिसमें ज़ोमैटो भी शामिल है, जिसने वर्ष 2020 में प्रतिवर्ष 10 दिन की सवेतन अवधि के अवकाश की घोषणा की।
- स्विगी और बायजू जैसी अन्य कंपनियों ने भी इसका अनुसरण किया है।
- बिहार और केरल मात्र ऐसे भारतीय राज्य हैं जिन्होंने महिलाओं हेतु मासिक धर्म अवकाश नीतियाँ पेश की हैं।
- बिहार की नीति वर्ष 1992 में पेश की गई थी, जिसमें महिला कर्मचारियों को प्रत्येक महीने दो दिन का मासिक धर्म अवकाश दिया जाता था।
- केरल ने हाल ही में घोषणा की कि राज्य के उच्च शिक्षा विभाग के तहत विश्वविद्यालयों में छात्राओं को मासिक धर्म और मातृत्त्व अवकाश प्रदान किया जाएगा और केरल के एक विद्यालय ने भी इसी प्रकार की प्रणाली शुरू की है।
मासिक धर्म अवकाश के संबंध में किये जा रहे विधायी उपाय:
- बीते समय में किये गए प्रयास:
- संसद में मासिक धर्म अवकाश और मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पाद विधेयक पेश किये गए हैं, लेकिन उन पर मुहर लगना अभी तक बाकी है।
- उदाहरण के लिये मासिक धर्म लाभ विधेयक, 2017' और महिला यौन, प्रजनन एवं मासिक धर्म अधिकार विधेयक 2018
- महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य उत्पादों तक मुफ्त पहुँच विधेयक, 2022:
- प्रस्तावित विधेयक मासिक धर्म की अवधि के दौरान महिलाओं और ट्रांस महिलाओं के लिये तीन दिनों के सवैतनिक अवकाश का प्रावधान करता है और इसे छात्राओं के लिये भी लाभकारी बनाने का प्रयास करता है।
- विधेयक में अनुसंधान का हवाला दिया गया है जो इंगित करता है कि लगभग 40% लड़कियाँ पीरियड्स के दौरान स्कूल नहीं छोड़ती हैं तथा लगभग 65% ने कहा कि इसका स्कूल में उनकी दैनिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है।
स्रोत: द हिंदू
ग्रामीण भारत की स्थिति
प्रिलिम्स के लिये:केंद्रीय बजट 2023-24, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), स्वास्थ्य बीमा, पेंशन। मेन्स के लिये:ग्रामीण भारत की स्थिति, चुनौतियाँ और संभावनाएँ। |
चर्चा में क्यों?
ग्रामीण भारत पहले से ही संकट में है, इसके बावजूद केंद्रीय बजट 2023-24 में आर्थिक विकास को पुनर्रूप में लाने के लिये बहुत कम बजट प्रदान करने के साथ इसने सब्सिडी योजनाओं के आवंटन में भारी कटौती की है, हालाँकि कुछ महत्त्वपूर्ण योजनाओं के आवंटन में मामूली वृद्धि हुई है।
ग्रामीण भारत के संदर्भ में केंद्रीय बजट:
- कृषि और संबद्ध गतिविधियाँ:
- पीएम किसान सहित कृषि और संबद्ध गतिविधियों के आवंटन में वित्त वर्ष 2023 में 1.36 ट्रिलियन करोड़ रुपए से लेकर वित्त वर्ष 2024 में 1.44 ट्रिलियन करोड़ रुपए (5.8% की वृद्धि) की मामूली वृद्धि हुई है।
- कृषि अनुसंधान और विकास:
- कृषि अनुसंधान एवं विकास पर आवंटन केवल 9,504 करोड़ रुपए है, हालाँकि यह वित्त वर्ष 2023 में 8,658 करोड़ रुपए से अधिक है।
- यह कृषि सकल मूल्यवर्द्धन का केवल 0.4% है, जबकि अन्य देश कृषि सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) का 1-2% खर्च करते हैं।
- कृषि सब्सिडी:
- इस बजट में खाद्य सब्सिडी में 31% की कटौती की गई है। पिछले वर्ष के 287,194 करोड़ रुपए की तुलना में अब इसमें 197,350 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
- उर्वरक सब्सिडी में पिछले वर्ष से 22% की कटौती की गई है और अब 175,099 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है।
- गरीबों हेतु तरलीकृत पेट्रोलियम गैस (Liquified Petroleum Gas- LPG) पर सब्सिडी 75% घटाकर अब 2,257 करोड़ रुपए कर दी गई है।
- कॉटन कार्पोरेशन द्वारा मूल्य समर्थन योजना के तहत कपास की खरीद का बजट 2022-23 के 782 करोड़ रुपए से घटाकर एक लाख रुपए कर दिया गया है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिति:
- परिचय:
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 के अनुसार, भारत की 65% आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है और 47% आबादी की आजीविका का मुख्य आधार कृषि है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में कृषि के प्रभुत्त्व के बारे में आम धारणा के विपरीत लगभग दो-तिहाई ग्रामीण आय अब गैर-कृषि गतिविधियों से उत्पन्न होती है।
- आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले छह वर्षों में कृषि क्षेत्र की औसत वार्षिक वृद्धि दर 4.6% रही है। हालाँकि ऐसे अन्य कई कारण हैं जिनसे कृषि क्षेत्र और ग्रामीण आय काफी प्रभावित हो रही है।
- आर्थिक स्थिति:
- महामारी पूर्व स्थिति:
- राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा वर्ष 2018-19 के लिये कृषि परिवारों की स्थिति आकलन सर्वेक्षण ने भारत में एक अभूतपूर्व आर्थिक संकट का खुलासा किया, जिसका प्रमुख कारण मांग और आपूर्ति की समस्या थी।
- वर्ष 2014 से पहले अर्थव्यवस्था में गंभीर मंदी और बढ़ती मज़दूरी, भारत के उर्वरक-सब्सिडी सुधारों का खराब कार्यान्वयन तथा गैसोलीन की उच्च कीमतों के कारण इनपुट लागत में वृद्धि के कारण उत्पन्न होने वाली समस्याओं की चेतावनी के संकेत पहले से ही थे।
- वर्ष 2014 और 2015 में लगातार सूखे की स्थिति बनी रहने के कारण यह समस्या और बढ़ गई।
- लेकिन वर्ष 2016 में कृषि क्षेत्र के पुनरोद्धार होने से पूर्व विमुद्रीकरण ने एक और नई समस्या खड़ी कर दी जिससे कई किसानों की स्थिति काफी दयनीय हो गई।
- तब से अर्थव्यवस्था ने एक तेज़ मंदी का अनुभव किया है, जिसके बाद कोविड महामारी आई है।
- कोविड महामारी के बाद से अर्थव्यवस्था में बड़ी मंदी देखी गई है।
- महामारी के बाद:
- वास्तविक रूप से देखें तो वर्ष 2021-2022 में प्रति व्यक्ति आय अभी भी वर्ष 2018-2019 के स्तर से नीचे रही है तथा वर्ष 2016-2017 एवं वर्ष 2021-2022 के बीच समग्र वृद्धि पिछले चार दशकों में 3.7% के न्यूनतम स्तर पर रही है। .
- महामारी पूर्व स्थिति:
ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिये चुनौतियाँ:
- मुद्रास्फीति:
- ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च मुद्रास्फीति के कारण ग्रामीण आबादी की क्रय शक्ति में गिरावट देखने को मिली है। उच्च मुद्रास्फीति के कारण वास्तविक ग्रामीण वेतन वृद्धि नकारात्मक रही है।
- हालाँकि सुधार के कुछ संकेत दिखने लगे हैं, परंतु कमज़ोर ग्रामीण मांग तेज़ी से बढ़ रहे उपभोक्ता उत्पादों और अन्य टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं के लिये एक समस्या बनी है।
- कृषि क्षेत्र संबंधी मुद्दे:
- भारत में कई ग्रामीण परिवारों के लिये कृषि आजीविका का प्राथमिक स्रोत है।
- सिंचाई सुविधाओं की कमी, अपर्याप्त ऋण सुविधाएँ, कृषि उपज के लिये कम कीमत और अप्रत्याशित मौसम की स्थिति जैसे मुद्दे फसल की विफलता, बढ़ते कर्ज और किसानों की घटती आय का कारण बन सकते हैं।
- ग्रामीण रोज़गार के अवसरों की कमी:
- ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के सीमित अवसरों ने लोगों को काम की तलाश में शहरी क्षेत्रों में पलायन करने के लिये मजबूर किया है, जिससे ग्रामीण समुदायों का सामाजिक और आर्थिक विस्थापन हुआ है।
- खराब बुनियादी ढाँचा:
- ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं जैसे- पानी, बिजली, स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सुविधाओं तक पहुँच की कमी ने इन क्षेत्रों के विकास एवं वृद्धि की क्षमता को सीमित कर दिया है।
- अपर्याप्त सामाजिक सुरक्षा:
- स्वास्थ्य बीमा, वृद्धावस्था पेंशन और दिव्यांगता लाभ जैसे पर्याप्त सामाजिक सुरक्षा तंत्र की कमी के परिणामस्वरूप ग्रामीण परिवारों की भेद्यता में वृद्धि हुई है।
- राजकोषीय स्वायत्तता का अभाव:
- पंचायतों के पास कर की दरें और राजस्व आधार निर्धारित करने के संबंध में केवल सीमित शक्तियाँ हैं क्योंकि इस तरह के अभ्यास के लिये व्यापक मानदंड राज्य सरकार द्वारा तय किये जाते हैं।
- परिणामतः ऊर्ध्वाधर अंतर की सीमा और सशर्त अनुदानों की मात्रा बहुत अधिक है।
- यह ग्राम पंचायतों की राजकोषीय स्वायत्तता को कम करता है तथा कर्ज़ लेने एवं विकास की स्वतंत्रता हेतु इसमें कम गुंजाइश है।
भारत में ग्रामीण विकास से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- संविधान में राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के अनुच्छेद 40 में कहा गया है कि राज्य ग्राम पंचायतों का गठन करने के लिये कदम उठाएगा और उनको ऐसी शक्तियाँ और प्राधिकार प्रदान करेगा जो उन्हें स्वायत्त शासन की इकाइयों के रूप में कार्य करने योग्य बनाने के लिये आवश्यक हों।
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं का गठन ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र के निर्माण के लिये किया गया और इन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
- संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची में कृषि विस्तार, भूमि सुधार सहित 29 कार्यों को पंचायती राज निकायों के क्षेत्राधिकार में रखा गया है।
- पंचायतों को 11वीं अनुसूची में दर्शाए गए विषयों सहित पंचायतों के विभिन्न स्तरों पर कानून द्वारा हस्तांतरित विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिये योजनाएँ तैयार करने का अधिकार दिया गया है।
ग्रामीण सशक्तीकरण से संबंधित पहल:
आगे की राह
- आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 में जलवायु परिवर्तन, बढ़ती उत्पादन लागत और कम उत्पादकता जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिये पुनर्विन्यास की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
- सब्सिडी पर फिर से विचार करके बुनियादी ढाँचे और अनुसंधान एवं विकास में निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है तथा बाजरा, दालों, तिलहन, बागवानी, पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्य पालन में विविधीकरण पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
- सर्वेक्षण में ग्रामीण गैर-कृषि क्षेत्र पर ध्यान देने और एमएसएमई (MSMEs) के लिये आय और रोज़गार को पुनर्जीवित करने के लिये नीतियों पर भी ध्यान देने का आह्वान किया गया है।
- भारत में राज्य सरकारी व्यय में 60%, शिक्षा और स्वास्थ्य व्यय पर 70%, सार्वजनिक पूंजीगत व्यय में एक बड़ा हिस्सा खर्च करते हैं। केंद्र को कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्रों में आय और आजीविका, समावेशी विकास तथा स्थिरता में सुधार के लिये राज्यों के साथ मिलकर कार्य करना है।