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भारतीय समाज

जाति - आर्थिक रूपांतरण में एक बाधा

  • 24 Jun 2022
  • 15 min read

यह एडिटोरियल 23/06/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “The role of caste in economic transformation” लेख पर आधारित है। इसमें राष्ट्र के आर्थिक रूपांतरण में एक बाधा के रूप में जाति की उल्लेखनीय भूमिका के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारत कम-से-कम दो दशकों से रोज़गार-विहीन विकास के चरण में है जबकि, ग्रामीण क्षेत्रों में निर्धनता और संकट में वृद्धि हो रही है।

  • आज भारत जिन सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है, उनमें से एक है- विकास का एक ऐसा पैटर्न कैसे सृजित किया जाए जो उस तरह के रोज़गार अवसर और समावेशी विकास उत्पन्न करे जैसा अधिकांश पूर्वी एशियाई देशों ने किया है?
  • इस प्रश्न का सबसे उपयुक्त उत्तर यह होगा कि देश के आर्थिक विकास में सभी जातियों का समावेशन किया जाए। जाति भले एक अवशिष्ट चर नहीं हो, लेकिन एक सक्रिय एजेंट अवश्य है जो आर्थिक रूपांतरण के लिये बाधाएँ उत्पन्न करती है।

जाति व्यवस्था आर्थिक वृद्धि और विकास को कैसे बाधित करती है?

  • आम पूर्वाग्रह:
    • जाति अपने कठोर सामाजिक नियंत्रण और नेटवर्क के माध्यम से कुछ के लिये आर्थिक गतिशीलता की सुविधा प्रदान करती है तो अन्य के लिये अलाभ या वंचना की व्यापक स्थिति के साथ बाधाएँ खड़ी करती है।
    • यह भूमि एवं पूंजी के स्वामित्व पैटर्न को भी आकार देती है और इसके साथ ही राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पूंजी तक पहुँच को नियंत्रित करती है।
  • भूमि स्वामित्व और उत्पादकता:
    • ब्रिटिश शासन:
      • भारत विश्व में सर्वाधिक भूमि असमानताओं वाले देश में से एक है।
      • भूमि के इस असमान वितरण को ब्रिटिश औपनिवेशिक हस्तक्षेप ने कायम रखा, जिसने पारंपरिक असमानता को और वैधता प्रदान कर दी।
        • अंग्रेज़ों द्वारा अपनी प्रशासनिक सुविधा और लाभ के लिये कुछ जातियों को अन्य जातियों की कीमत पर भूमि स्वामित्व सौंपा गया। उन्होंने जाति विशेष से संबंधित काश्तकारों और खेत मज़दूरों (निचली जाति की प्रजा जो अनुदान या उपहार में प्राप्त भूमि पर खेती करती थी) बीच एक कृत्रिम भेद का निर्माण किया, जिसने भू-राजस्व नौकरशाही के भीतर जाति को संस्थागत बना दिया।
        • अंग्रेज़ों ने भूमि शासन की श्रेणियों और प्रक्रियाओं में जाति को अंकित कर दिया जो अभी भी भारत में उत्तर-औपनिवेशिक भूमि स्वामित्व पैटर्न को रेखांकित करती हैं।
    • भारत की आज़ादी के बाद हुए भूमि सुधारों ने बड़े पैमाने पर दलितों और निचली जातियों को बहिर्वेशित कर दिया।
      • इसने ग्रामीण भारत में अन्य जातियों की कीमत पर मध्यवर्ती जातियों को मुख्यतः प्रोत्साहित किया और सशक्त बनाया।
    • हरित क्रांति:
      • कृषि क्षेत्र में परिवर्तन लाने वाली हरित क्रांति ने भी भूमि असमानता को दूर नहीं किया क्योंकि इसे प्रायः प्रौद्योगिकीय हस्तक्षेप के माध्यम से हासिल किया गया था।
      • इस भूमि पैटर्न से संबद्ध और हरित क्रांति से लाभान्वित होने वाली जातियों ने ग्रामीण भारत में अन्य जातियों पर अपना सामाजिक नियंत्रण और सुदृढ़ ही कर लिया।
  • शिक्षा की उपेक्षा:
    • भारतीय शिक्षा प्रणाली औपनिवेशिक काल से ही एक कुलीन पूर्वाग्रह से पीड़ित रही है।
      • ब्रिटिश उपनिवेशवादियों ने अपने स्वयं के प्रशासनिक उद्देश्य की पूर्ति के लिये कुलीनों (प्रायः उच्च जातियों से संबंधित) के छोटे समूहों को ही शिक्षित किया।
    • हालाँकि भारतीय संविधान ने अपने निदेशक सिद्धांतों के तहत निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की गारंटी दी थी, व्यावहारिक रूप से यह साकार नहीं हो सका। इसके बजाय, कुलीन वर्ग के लिये उच्च शिक्षा पर ही अधिक ध्यान दिया गया।
      • शिक्षा तक पहुँच में असमानता अन्य आर्थिक क्षेत्रों में असमानता (वेतन/भुगतान में अंतर सहित) के रूप में परिणत हुई।
  • उद्यमिता के लिये बाधा:
    • जिन जातियों का पहले से ही व्यापार और औद्योगिक क्षेत्रों पर नियंत्रण था, उन्होंने दूसरों के प्रवेश का विरोध किया।
      • यहाँ तक कि जिनके पास कृषि क्षेत्रों में आर्थिक अधिशेष की स्थिति थी, वे भी गैर-कृषि आधुनिक क्षेत्रों में निवेश करने से अवरुद्ध रखे गए।
    • सामाजिक असमानताओं ने आर्थिक संक्रमण/रूपांतरण के लिये बाधाएँ खड़ी की जिसके कारण कृषि पूंजी का प्रवाह आधुनिक क्षेत्रों की ओर नहीं हो सका।
    • इस विषय में दक्षिण भारत में सापेक्षिक सफलता का श्रेय ‘वैश्य निर्वात’ (यानी पारंपरिक व्यापारी जातियों की अनुपस्थिति) की स्थिति को दिया जाता है।

भारत आर्थिक रूपांतरण में क्यों पीछे रह गया?

  • तीन मानदंड:
    • वैश्विक दक्षिण के देशों (विशेष रूप से भारत, चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश) में संरचनात्मक रूपांतरण के भिन्न-भिन्न परिणाम ‘भूमि समानता’, ‘शिक्षा तक पहुँच’ और ‘उद्यमिता तक पहुँच’ पर उनके ध्यान के अलग-अलग स्तर के कारण है।
      • शिक्षा पर ध्यान:
        • चीनी और अन्य पूर्वी एशियाई देशों ने बुनियादी शिक्षा में निवेश किया और धीरे-धीरे उच्च शिक्षा की ओर आगे बढ़े।
      • निचले स्तर के कार्यों पर ध्यान:
        • दक्षिण-पूर्व एशिया और चीन ने निचले स्तर के विनिर्माण कार्यों (Low End Manufacturing Jobs) पर अपनी पकड़ मज़बूत की, जबकि भारत मुख्यतः ऊपरी स्तर के प्रौद्योगिकीय कार्य-अवसरों (High End Technology Jobs) पर केंद्रित रहा।
      • मानव पूंजी पर ध्यान:
        • चीन में ग्रामीण उद्यमिता पारंपरिक कृषि क्षेत्र से बाहर बड़े पैमाने पर विकसित होने में सफल रही क्योंकि चीन ने मानव पूंजी में निवेश किया।
        • इसने कृषि पूंजीपतियों द्वारा शहरी उद्यमों में विविधीकरण को भी सक्षम किया।
        • भारत द्वारा मानव पूंजी निर्माण की उपेक्षा के कारण ही आज विनिर्माण के क्षेत्र में चीन भारत से बहुत आगे है।
        • विनिर्माण क्षेत्र में उनकी सफलता मानव पूंजी में निवेश का प्रत्यक्ष परिणाम है।
  • ब्रिटिश औपनिवेशिक हस्तक्षेप:
    • एक राष्ट्र के रूप में भारत को जिस सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा, वह था अंग्रेज़ों का हस्तक्षेप, जिसने जाति आधारित और नस्लीय भेदभाव तो अत्यंत सघन किया।
    • यह हस्तक्षेप एक प्रमुख कारण रहा कि भारत अपने पड़ोसी देशों की तुलना आर्थिक परिवर्तन की वैसी गति नहीं प्राप्त कर सका।

भेदभाव को खत्म करने और आर्थिक रूपांतरण को बढ़ावा देने के लिये कौन-सी पहलें की गई हैं?

  • संवैधानिक प्रावधान:
    • विभेद का प्रतिषेध:
      • भारत के संविधान के अनुच्छेद 15 में कहा गया है कि ‘‘राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा।’’
    • अवसर की समता:
      • भारत के संविधान के अनुच्छेद 16 में कहा गया है कि ‘‘राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिये अवसर की समता होगी।’’
      • ‘‘राज्य के अधीन किसी नियोजन या पद के संबंध में केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास या इनमें से किसी के आधार पर न तो कोई नागरिक अपात्र होगा और न उससे विभेद किया जाएगा।’’
    • अनिवार्य शिक्षा:
      • संविधान के अनुच्छेद 21A में अंतःस्थापित ‘शिक्षा का अधिकार’ के तहत कहा गया है कि ‘‘राज्य, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले सभी बच्चों के लिये निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने का ऐसी रीति में, जो राज्य विधि द्वारा अवधारित करे, उपबंध करेगा।’’
  • भूमि सुधार:
    • भूमि की सीमा:
      • कानूनों ने एक सीमा निर्धारित की कि कोई व्यक्ति या निगम कितनी भूमि धारण कर सकता है, (जिसे ‘सीलिंग’ के रूप में भी जाना जाता है) और सरकार को भूमिहीनों को अधिशेष भूमि का पुन:वितरण करने की अनुमति दी गई है।
  • मानव विकास:
    • प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY):
      • यह उत्पादकता बढ़ाने और देश की आवश्यकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण एवं प्रमाणन को संरेखित करने के उद्देश्य से युवाओं को कौशल प्रशिक्षण लेने के लिये प्रेरित करने पर लक्षित है।
    • संकल्प योजना:
      • आजीविका संवर्द्धन के लिये कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता या ‘संकल्प’ (SANKALP- Skills Acquisition and Knowledge Awareness for Livelihood Promotion)कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) का एक परिणाम-उन्मुख कार्यक्रम है जहाँ विकेंद्रीकृत योजना-निर्माण और गुणवत्ता सुधार पर विशेष बल दिया गया है।
    • स्टैंड अप इंडियायोजना:
      • इसे अप्रैल, 2016 में आर्थिक सशक्तिकरण और रोज़गार सृजन पर ध्यान केंद्रित रखते हुए ज़मीनी स्तर पर उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये लॉन्च किया गया।
      • इसका उद्देश्य संस्थागत ऋण संरचना की पहुँच अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों जैसे सेवा-वंचित समूहों तक सुनिश्चित करना है ताकि वे इसके लाभ उठा सकें।
    • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना:
      • यह बैंकों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFCs) और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (MFIs) जैसे विभिन्न अंत-पहुँच वित्तीय संस्थानों के माध्यम से गैर-कॉर्पोरेट लघु व्यवसाय क्षेत्र को वित्तपोषण प्रदान करती है।
      • इसके तहत समाज के वंचित वर्गों, जैसे महिला उद्यमियों, एससी/एसटी/ओबीसी उधारकर्ताओं, अल्पसंख्यक समुदाय के उधारकर्ताओं आदि को ऋण दिया गया है। योजना ने नए उद्यमियों का भी विशेष ध्यान रखा है।

आगे की राह

  • पड़ोसी देशों से सीख:
    • चूँकि चीन और दक्षिण-पूर्वी एशियाई देश सफल रहे हैं, भारत को भी प्रेरणा लेते हुए अपने आर्थिक रूपांतरण के समर्थन के लिये मानव विकास, निचले स्तर के कार्य-अवसरों, ग्रामीण विकास आदि क्षेत्रों पर अधिकाधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
  • आरक्षण नीति का युक्तिकरण:
    • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि आरक्षित श्रेणी के अंतर्गत प्रत्येक समुदाय/जाति को रोज़गार/शैक्षिक अवसरों में समान प्रतिनिधित्व प्रदान किया जाए।
    • आरक्षण में किसी विशेष समुदाय/जाति की संतृप्ति आरक्षण के मूल उद्देश्य, यानी सभी के लिये समान अवसर का उल्लंघन करती है।
  • पहलों का लेखापरीक्षण:
    • कार्यान्वित पहलों का राज्य स्तर पर ऑडिट किया जाना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो कि ये पहलें अपने उद्देश्य अनुरूप कुशल परिणाम दे रही हैं।
  • गोइंग रूरल’:
    • ग्रामीण स्तर पर पिछड़े वर्गों की सामाजिक आर्थिक आवश्यकताओं का ज़मीनी स्तर पर सर्वेक्षण उनकी स्थिति की वास्तविक तस्वीर प्रदान कर सकेगा।
      • यह फिर सरकार को उनके कल्याण हेतु एक कुशल खाका तैयार करने में सक्षम करेगा, जो अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण तरीके से योगदान कर सकेगा।

अभ्यास प्रश्न: जाति केवल एक सामाजिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह एक सक्रिय अभिकर्ता भी है जो आर्थिक रूपांतरण को अवरुद्ध करती है। चर्चा कीजिये।

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