डेली न्यूज़ (27 Jan, 2024)



भारत का भौगोलिक संकेतक परिदृश्य

प्रिलिम्स के लिये:

भौगोलिक संकेतक (GI) टैग, विश्व व्यापार संगठन (WTO), GI अधिनियम, 1999

मेन्स के लिये:

बौद्धिक संपदा अधिकार, पारंपरिक ज्ञान का संरक्षण

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

चर्चा में क्यों? 

भारत की दो दशकों से अधिक की भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication - GI) टैग यात्रा को सीमित परिणामों के साथ चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो पंजीकरण प्रक्रियाओं में सुधार की आवश्यकता का संकेत देता है।

भौगोलिक संकेतक (GI) क्या है?

  • परिचय:
    • भौगोलिक संकेतक (GI) टैग, एक ऐसा नाम या चिह्न है जिसका उपयोग उन विशेष उत्पादों पर किया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान या मूल से संबंधित होते हैं।
    • भौगोलिक संकेतकों को पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1(2) एवं 10 के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के एक भाग के रूप में मान्यता दी गई है और इन्हें बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (TRIPS) समझौते के अनुच्छेद 22-24 के तहत भी मान्यता प्राप्त है।
      • कई यूरोपीय संघ के देशों में, GI को दो बुनियादी श्रेणियों संरक्षित GI (Protected GI - PGI) और संरक्षित मूल स्थान (Protected Destination of Origin - PDO) में वर्गीकृत किया गया है। भारत में केवल PGI श्रेणी मौजूद है।
    • यह प्रमाणीकरण गैर-कृषि उत्पादों तक भी बढ़ाया जाता है, जैसे मानव कौशल पर आधारित हस्तशिल्प, कुछ क्षेत्रों में उपलब्ध सामग्री और संसाधन जो उत्पाद को अद्वितीय बनाते हैं।
    • GI का पारंपरिक ज्ञान, संस्कृति की रक्षा के लिये एक शक्तिशाली उपकरण है और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दे सकता है।
  • विधिक ढाँचा तथा दायित्व:
    • यह बौद्धिक संपदा अधिकार के व्यापार-संबंधित पहलुओं (TRIPS) पर विश्व व्यापार संगठन (WTO) समझौते द्वारा विनियमित एवं निर्देशित है।
    • वस्तुओं का ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999  भारत में वस्तुओं से संबंधित भौगोलिक संकेतकों के पंजीकरण तथा बेहतर संरक्षण प्रदान करने का प्रयास करता है।
    • इसके अतिरिक्त बौद्धिक संपदा के अभिन्न घटकों के रूप में औद्योगिक संपत्ति और भौगोलिक संकेतकों की सुरक्षा के महत्त्व को पेरिस कन्वेंशन के अनुच्छेद 1(2) एवं 10 में स्वीकार किया गया, साथ ही इसके संरक्षण पर अधिक बल भी दिया गया है।
  • GI-टैग पंजीकरण की स्थिति:
    • अन्य देशों की तुलना में भारत GI पंजीकरण (registration) के मामले में पीछे है। GI रजिस्ट्री के अनुसार, दिसंबर 2023 तक, बौद्धिक संपदा भारत को केवल 1,167 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से केवल 547 उत्पाद पंजीकृत किये गए हैं।
    • विश्व बौद्धिक संपदा संगठन के 2020 के आँकड़ों के अनुसार, 15,566 पंजीकृत उत्पादों के साथ जर्मनी GI पंजीकरण में सबसे आगे है, इसके बाद चीन (7,247) का स्थान आता है।
    • वैश्विक स्तर पर, पंजीकृत GI में वाइन और स्पिरिट का हिस्सा 51.8% है, इसके बाद कृषि उत्पाद एवं खाद्य पदार्थ (29.9%) आते हैं।
      • भारत में हस्तशिल्प (लगभग 45%) और कृषि (लगभग 30%) में अधिकांश GI उत्पाद शामिल हैं।
  • भारत में GI टैग के संबंध में चिंताएँ:
    • GI अधिनियम और पंजीकरण प्रक्रिया से संबंधित चिंताएँ:
      • दो दशक पहले बनाए गए GI अधिनियम, 1999 में वर्तमान चुनौतियों से निपटने के लिये समय पर संशोधन करने की आवश्यकता है।
      • सरल अनुपालन के लिये पंजीकरण फॉर्म और आवेदन प्रसंस्करण समय को सरल बनाने की आवश्यकता है।
        • भारत में वर्तमान आवेदन स्वीकृति अनुपात केवल लगभग 46% है।
      • उपयुक्त संस्थागत विकास की कमी GI सुरक्षा तंत्र के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती है।
      • मार्गदर्शन और समर्थन की कमी के कारण उत्पादक अक्सर GI पंजीकरण के बाद संघर्ष करते हैं।
    • उत्पादकों की परिभाषा में अस्पष्टता:
      • GI अधिनियम,1999 में "उत्पादकों" को परिभाषित करने में स्पष्टता की कमी के कारण मध्यस्थों की भागीदारी होती है।
        • मध्यस्थों को GI से लाभ होता है, जिससे वास्तविक उत्पादकों का अपेक्षित लाभ कम हो जाता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विवाद:
      • विशेषकर दार्जिलिंग चाय और बासमती चावल जैसे उत्पादों से संबंधित विवादों से संकेतक मिलता है कि पेटेंट, ट्रेडमार्क एवं कॉपीराइट की तुलना में GI के विकास पर कम ध्यान दिया जाता है।
    • शैक्षणिक सीमा:
      • GI पर सीमित अकादमिक फोकस भारत से केवल सात प्रकाशनों से स्पष्ट है।
        • प्रकाशनों में हालिया उद्भव- 2021 में जारी 35 लेख- शिक्षाविदों के बीच बढ़ती रुचि का संकेत देते हैं।
      • इटली, स्पेन और फ्राँस जैसे यूरोपीय देश GI से संबंधित अकादमिक प्रकाशनों में अग्रणी हैं।

GI-आधारित उत्पादों की क्षमता की पहचान करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • GI आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा ज़मीनी स्तर पर उत्पादकों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है
    • कानूनों को वास्तविक उत्पादकों को सीधा लाभ सुनिश्चित करते हुए "गैर-उत्पादकों" को लाभ से बाहर करने की आवश्यकता है
  • GI हितधारकों के बीच प्रौद्योगिकी, कौशल निर्माण और डिजिटल साक्षरता आधुनिकीकरण के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
  • सरकारी एजेंसियों को प्रदर्शनियों का आयोजन करने और विभिन्न मीडिया के माध्यम से GI-आधारित उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये व्यापार संघों के साथ सहयोग करने की ज़रूरत है ।
  • विदेशी बाज़ार में विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारतीय दूतावासों को GI-आधारित उत्पादों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देना चाहिये।
    • अनुकूल अंतर्राष्ट्रीय टैरिफ व्यवस्था और WTO में GI उत्पादों पर विशेष ध्यान वैश्विक उपस्थिति को बढ़ावा दे सकता है।
  • एक ज़िला एक उत्पाद योजना के साथ GI को एकीकृत करने से प्रचार और बाज़ार तक पहुँच बढ़ सकती है।
    • बाज़ार आउटलेट योजनाएँ विकसित करना, विशेष रूप से ग्रामीण बाज़ार (ग्रामीण हाट), GI उत्पाद दृश्यता को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • GI उत्पादों की गुणवत्ता में उपभोक्ताओं का विश्वास सुनिश्चित करने के लिये बाज़ारों में परीक्षण प्रयोगशालाएँ स्थापित करना आवश्यक है।
  • स्टार्टअप को GI के साथ संरेखित करना और उनके प्रदर्शन को सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ जोड़ना सामाजिक विकास में योगदान दे सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न1. निम्नलिखित में से किसे 'भौगोलिक संकेतक' का दर्जा प्रदान किया गया है? (2015)

  1. बनारस के जरी वस्त्र एवं साड़ी 
  2. राजस्थानी दाल-बाटी-चूरमा 
  3. तिरुपति लड्डू

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: C


प्रश्न 2. भारत ने वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक(पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 को किसके दायित्वों का पालन करने के लिये अधिनियमित किया? (2018)

(a) अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष
(c) व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन
(d) विश्व व्यापार संगठन

उत्तर: (D)


मेन्स:

प्रश्न. भैषजिक कंपनियाँ आयुर्विज्ञान के पारंपरिक ज्ञान को पेटेंट कराने से भारत सरकार किस प्रकार रक्षा कर रही है?(2019)


भारत में कम आयु वाले बच्चों में कैंसर को लेकर बढ़ती चिंता

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, कैंसर, कैंसर के प्रकार, नेशनल कैंसर ग्रिड, राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस

मेन्स के लिये:

कैंसर की रोकथाम, भारत में कम आयु वाले बच्चों में कैंसर, कैंसर की रोकथाम के लिये की गई पहल।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

चर्चा में क्यों? 

भारत में कम आयु वाले बच्चों में कैंसर एक उभरती हुई प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता है, जिसमें कैंसर रोगियों की उल्लेखनीय संख्या 15 वर्ष से कम आयु के बच्चों की है।

  • इंडिया पीडियाट्रिक जर्नल में हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन भारत में कम आयु वाले बच्चों में कैंसर की व्यापकता, प्रकार और चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।

अध्ययन के प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • अध्ययन विवरण और डेटा:
    • यह अध्ययन राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP) के भारत में कम आयु वाले बच्चों में कैंसर से संबंधित सबसे बड़े डेटासेट पर आधारित है।
  • भारत में कैंसर के मामले (2012-2019):
    • भारत में वर्ष 2012 से 2019 के बीच कैंसर के मामले 1,332,207 दर्ज किये गए।
      • इनमें से लगभग 3.2% और 4.6% मामले क्रमशः 0-14 वर्ष तथा 0-19 वर्ष आयु वर्ग से संबंधित थे।
      • भारत में सभी कैंसर रोगियों में से 3% से अधिक मरीज़ 15 वर्ष से कम उम्र के हैं; 4.6% मरीज़ 20 से कम उम्र के।
    • 0-4 और 5-9 आयु वर्ग में कैंसर के सभी मामलों में क्रमशः 42.1% और 42.5% ल्यूकीमिया के कारण होते हैं।
  • विभिन्न आयु समूहों में कैंसर:
    • कम आयु वाले बच्चों में कैंसर के तीसरे संस्करण के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण के आधार पर इसे 0-14 और 0-19 वर्ष के दो आयु समूहों में विभाजित किया गया है।
      • 0-19 वर्ष के आयु वर्ग में, प्रमुखतः ल्यूकीमिया (36%), लिम्फोमा (12%), अस्थि (11%) और केंद्रीय तंत्रिका तंत्र ट्यूमर (10%) हैं।
      • 0-14 वर्ष के आयु वर्ग में कैंसर के चार प्रमुख समूह ल्यूकीमिया (40%), लिम्फोमा (12%), केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) ट्यूमर (11%) और अस्थि का कैंसर (8%) हैं।
  • नॉन-हॉजकिन लिंफोमा और लैंगिक आधार पर भिन्नताएँ:
    • नॉन-हॉजकिन लिंफोमा हार्मोनल और जैविक परिवर्तनों से संबंधित है, यह उम्र के साथ बढ़ता है, खासकर पुरुषों में।
    • अध्ययन के अनुसार, अस्थि के ट्यूमर लड़कियों को अधिक नुकसान पहुँचाते हैं क्योंकि उनमें अस्थि-पंजर पहले ही परिपक्व हो जाते हैं।
  • लैंगिक असमानताएँ और सामाजिक निर्धारक:
    • अध्ययन में बताए गए आयु वर्गों में कैंसर पीड़ितों में अधिक संख्या लड़कों की होती है, इसका कारण है कि उनके जन्म को लड़कियों के जन्म की तुलना में अधिक प्राथमिकता दिया जाना तथा लैंगिक भेदभाव है।
      • कैंसर रजिस्ट्री में लैंगिक असमानता निम्न और मध्यम आय वाले देशों (LMIC) में रिपोर्ट किये गए आँकड़ों को प्रतिबिंबित करती है, इसका कारण महिला साक्षरता दर में कमी को बताया गया है।
        • विश्व स्तर पर कैंसर के मामलों में से 90% मामले निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रिपोर्ट किये जाते हैं, किंतु बाल चिकित्सा कैंसर अनुसंधान के लिये उन्हें 0.1% से भी कम वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
  • भारत में CNS ट्यूमर रजिस्ट्रीकरण में चुनौतियाँ:
    • भारत में CNS ट्यूमर का इलाज समर्पित कैंसर केंद्रों के बजाय मल्टीस्पेशलिटी अस्पतालों में न्यूरोसर्जिकल केंद्रों में किया जा सकता है।
    • NCRP वर्तमान में केवल 'दुर्दम' (जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ग्रेड 3 और 4 के रूप में परिभाषित किया गया है) CNS ट्यूमर्स को पंजीकृत करता है।
  • कैंसर के प्रकारों में वैश्विक असमानताएँ:
    • द लैंसेट ऑन्कोलॉजी (2017) के एक अध्ययन के अनुसार ल्यूकीमिया तथा अस्थि के कैंसर के मामलों का अनुपात भारत की तुलना में वैश्विक स्तर पर अधिक है।
    • इसके अतिरिक्त CNS ट्यूमर के मामलों का अंतर्राष्ट्रीय वितरण (17-26%) भी भारत की तुलना में अधिक है।

प्रमुख शब्दावली:

  • कैंसर:
    • यह एक जटिल और व्यापक शब्द है जिसका उपयोग शरीर में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित वृद्धि तथा संचरण से होने वाली बीमारियों के एक समूह का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
      • ये असामान्य कोशिकाएँ, जिन्हें कैंसर कोशिकाएँ कहा जाता है, स्वस्थ ऊतकों और अंगों पर आक्रमण करने तथा उन्हें नष्ट करने की क्षमता रखती हैं।
    • एक स्वस्थ शरीर में कोशिकाएँ विनियमित तरीके से विकसित होती हैं, विभाजित होती हैं और नष्ट हो जाती हैं, जिससे ऊतकों तथा अंगों के सामान्य कार्यान्वयन की अनुमति मिलती है।
      • हालाँकि कैंसर के मामले में कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन या असामान्यताएँ इस सामान्य कोशिका चक्र को बाधित करती हैं, जिससे कोशिकाएँ विभाजित होती हैं और अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं।
  • ल्यूकीमिया:
    • ल्यूकीमियाश्वेत रक्त कोशिकाओं का कैंसर है जो अस्थि मज्जा में शुरू होता है।
    • ल्यूकीमिया अस्थि मज्जा तथा लसीका (lymphatic) तंत्र सहित शरीर के रक्त उत्पादन करने वाले ऊतकों से संबंधित कैंसर है।
      • लसीका तंत्र वाहिकाओं, ऊतकों तथा अंगों का एक जाल है जो शरीर में द्रव संतुलन बनाए रखने में मदद करता है।
  • लिंफोमास:
    • लिंफोमा लसीका तंत्र की कोशिकाओं में शुरू होने वाले कैंसर को संदर्भित करने वाला एक शब्द है।
      • लिंफोमा के दो मुख्य प्रकार हैं जिनमें हॉजकिन (Hodgkin) लिंफोमा (हॉजकिन रोग) तथा गैर-हॉजकिन लिंफोमा (Non-Hodgkin lymphoma- NHL) शामिल हैं।
      • हॉजकिन लिंफोमा का उपचार किया जा सकता है। NHL का उपचार कैंसर के प्रकार पर निर्भर करता है।
    • ल्यूकीमिया तथा लिंफोमा दोनों लिंफोसाइटों में उत्पन्न होते हैं। हालाँकि ल्यूकीमिया आमतौर पर अस्थि मज्जा में उत्पन्न होता है तथा रक्तप्रवाह के माध्यम से संचारित होता है जबकि लिंफोमा आमतौर पर लिम्फ नोड्स अथवा प्लीहा (Spleen) में उत्पन्न होता है एवं लसीका तंत्र के माध्यम से फैलता है।
  • अस्थि कैंसर:
    • यह अस्थि में असामान्य कोशिकाओं की अनियंत्रित स्थिति को दर्शाता है। यह सामान्य अस्थि के ऊतकों को नष्ट कर देता है।
    • इस प्रकार की अस्थि का कैंसर अमूमन बच्चों तथा युवा वयस्कों में पैर अथवा बाँह की अस्थियों में होता है।
  • केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) ट्यूमर:
    • मस्तिष्क अथवा रीढ़ की अस्थि में असामान्य कोशिकाओं के उत्पन्न होने से ट्यूमर/अबुर्द होता है।
    • CNS ट्यूमर के दो प्रकार हो सकते हैं जिनमें दुदर्म (Malignant) अथवा सुदम (Benign) शामिल है। दोनों स्थिति में ही चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है।
      • कैंसरयुक्त ट्यूमर दुदर्म होता है जिसका अर्थ है कि यह तेज़ी से बढ़ सकता है तथा शरीर के अन्य भागों में फैल सकता है।
      • सुदम ट्यूमर का अर्थ है कि ट्यूमर फैलने की गति धीमी होगी तथा यह शरीर के अन्य भागों को प्रभावित नहीं करेगा।

कैंसर के उपचार से संबंधित भारत की पहल क्या हैं?


श्री श्री औनियाती सात्रा वैष्णव मठ

प्रिलिम्स के लिये:

श्री श्री औनियाती सात्रा वैष्णव मठ, माजुली द्वीप, असमिया वैष्णववाद, भक्ति आंदोलन, आर्द्रभूमि।

मेन्स के लिये:

श्री श्री औनियाती सात्रा वैष्णव मठ, भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ।

स्रोत:द हिंदू

चर्चा में क्यों?

श्री श्री औनियाती सात्रा असम के माजुली ज़िले में 350 वर्ष से अधिक पुराना वैष्णव मठ है।

श्री श्री औनियाती सात्रा वैष्णव मठ के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • स्थापना: 
    • श्री श्री औनियाती सात्रा की स्थापना वर्ष 1653 में असम के माजुली में की गई थी। इसका इतिहास 350 वर्षों से भी अधिक पुराना है, जो इसे इस क्षेत्र के सबसे पुराने सात्रों में से एक बनाता है।
      • सात्रा असमिया वैष्णववाद का एक संस्थागत केंद्र है, जो एक भक्ति आंदोलन है जो 15वीं शताब्दी में उभरा था।
    • सात्रा माजुली में स्थित है, जो दुनिया का सबसे बड़ा बसा हुआ नदी द्वीप है। माजुली भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित है।
  • धार्मिक महत्त्व: 
    • सात्रा असमिया वैष्णववाद का केंद्र है, एक भक्ति आंदोलन जो भगवान कृष्ण की पूजा के इर्द-गिर्द ही रहता है। 
    • ऐसा कहा जाता है कि गोविंदा के रूप में भगवान कृष्ण की मूल मूर्ति पुरी के भगवान जगन्नाथ मंदिर से लाई गई थी।
  • सांस्कृतिक विरासत: 
    • औनियाती सात्रा जैसे वैष्णव मठ न केवल पूजा स्थल हैं बल्कि पारंपरिक कला रूपों, साहित्य और सांस्कृतिक प्रथाओं के संरक्षण के केंद्र भी हैं। ये सात्रा क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
    • वैष्णव सात्रा परंपरागत रूप से सीखने और आध्यात्मिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में कार्य करते हैं। भिक्षु और शिष्य धार्मिक अध्ययन, ध्यान तथा सामुदायिक सेवा में संलग्न हैं।
  • भाओना और पारंपरिक कला रूप: 
    • भाओना, एक पारंपरिक कला रूप है, जिसका अभ्यास सात्रा में किया जाता है। यह अभिनय, संगीत तथा संगीत वाद्ययंत्रों का एक संयोजन है। 
    • भाओना एक महत्त्वपूर्ण प्रदर्शन कला है जिसका उद्देश्य मनोरंजन के माध्यम से ग्रामीणों को धार्मिक संदेश देना है।
    • मुख्य नाटक आमतौर पर गायन-बयान नामक एक संगीत प्रदर्शन से पहले होता है।

माजुली द्वीप से जुड़े मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • माजुली भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम में ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित एक नदी द्वीप है। इसे दुनिया के सबसे बड़े नदी द्वीप के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • यह द्वीप ब्रह्मपुत्र नदी प्रणाली की गतिशीलता का परिणाम है, जो नदी के बदलते मार्गों और चैनलों की विशेषता है।
  • यह द्वीप ब्रह्मपुत्र नदी और उसकी सहायक नदियों से घिरा हुआ है, जो एक अद्वितीय जलीय भू-आकृति का निर्माण करता है। बील्स और चैपोरिस (आइलेट्स) के नाम से जानी जाने वाली आर्द्रभूमियाँ क्षेत्र की पारिस्थितिक विविधता में योगदान करती हैं।

वैष्णववाद क्या है?

  • परिचय:
    • वैष्णववाद हिंदू धर्म के भीतर एक प्रमुख भक्ति आंदोलन है, साथ ही यह भगवान विष्णु एवं उनके विभिन्न अवतारों के प्रति गहरी भक्ति और प्रेम पर ज़ोर देता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • विष्णु की भक्ति: वैष्णववाद का केंद्रीय ध्यान विष्णु के प्रति भक्ति है, जिन्हें सर्वोच्च प्राणी तथा ब्रह्मांड का पालनकर्त्ता माना जाता है। वैष्णव, विष्णु के साथ व्यक्तिगत संबंध में विश्वास करते हैं, देवता के प्रति प्रेम, श्रद्धा और भक्ति व्यक्त करते हैं।
      • ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांडीय व्यवस्था एवं धार्मिकता को बहाल करने के लिये विष्णु ने विभिन्न रूपों में पृथ्वी पर अवतार लिया है, जिन्हें अवतार के रूप में जाना जाता है। राम और कृष्ण सहित लोकप्रिय अवतारों के साथ दस प्राथमिक अवतारों को सामूहिक रूप से दशावतार के रूप में जाना जाता है।
    • दशावतार: विष्णु के दस अवतार हैं: मत्स्य (मछली), कूर्म (कछुआ), वराह (सूअर), नरसिम्हा (आधा आदमी, आधा शेर), वामन (बौना), परशुराम (कुल्हाड़ी वाला योद्धा), राम (अयोध्या के राजकुमार), कृष्ण (दिव्य चरवाहा), बुद्ध (प्रबुद्ध) और कल्कि (सफेद घोड़े पर भविष्य के योद्धा)।
    • भक्ति एवं मुक्ति: वैष्णववाद भक्ति के मार्ग पर ज़ोर देता है, जिसमें विष्णु के प्रति गहन भक्ति और प्रेम शामिल है। कई वैष्णवों के लिये अंतिम लक्ष्य जन्म और मृत्यु (संसार) के चक्र से मुक्ति (मोक्ष) के साथ विष्णु के साथ मिलन है।
    • विभिन्न प्रकार के संप्रदाय: वैष्णववाद व्यक्तिगत आत्मा (जीव) और भगवान के बीच संबंधों की विभिन्न व्याख्याओं के साथ विभिन्न संप्रदायों एवं समूहों को शामिल करता है। कुछ संप्रदाय योग्य अद्वैतवाद (विशिष्टाद्वैत) पर ज़ोर देते हैं, जबकि अन्य द्वैतवाद (द्वैत) या शुद्ध अद्वैतवाद (शुद्धाद्वैत) का समर्थन करते हैं।
      • श्रीवैष्णव संप्रदाय: रामानुज की शिक्षाओं पर आधारित योग्य अद्वैतवाद पर ज़ोर देता है।
      • माधव संप्रदाय: माधव के दर्शन का अनुसरण करते हुए, ईश्वर और आत्मा के अलग-अलग अस्तित्व पर ज़ोर देते हुए, द्वैतवाद को स्वीकार करते हैं।
      • पुष्टिमार्ग संप्रदाय: वल्लभाचार्य की शिक्षाओं के अनुसार शुद्ध अद्वैतवाद को बनाए रखता है।
      • गौड़ीय संप्रदाय: चैतन्य द्वारा स्थापित, अकल्पनीय द्वैत एवं अद्वैत की शिक्षा देता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. हाल ही में भारत के प्रधानमंत्री ने हैदराबाद में रामानुज की बैठी हुई मुद्रा वाली विश्व की दूसरी सबसे ऊँची प्रतिमा का उद्घाटन किया। निम्नलिखित में से कौन-सा कथन रामानुज की शिक्षाओं का सही प्रतिनिधित्व करता है? (2022)

(a) मुक्ति का सर्वोत्तम साधन भक्ति है।
(b) वेद शाश्वत, स्वयंभू और पूर्ण हैं।
(c) उच्चतम आनंद के लिये तार्किक तर्क आवश्यक साधन है।
(d) मोक्ष ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जाना था।

उत्तर: (a)11वीं शताब्दी में तमिलनाडु में जन्मे रामानुज अलवर (विष्णु उपासक) से बहुत प्रभावित थे। उनके अनुसार मोक्ष प्राप्त करने का सर्वोत्तम साधन विष्णु की गहन भक्ति है। विष्णु अपनी कृपा से भक्त को अपने साथ मिलन का आनंद प्राप्त करने में मदद करते हैं। उन्होंने विशिष्टाद्वैत के सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसमें कहा गया है कि ईश्वर के साथ एकजुट होने पर भी आत्मा का अस्तित्त्व अलग बना रहता है।

रामानुज के सिद्धांत ने भक्ति की नई धारा को प्रेरित किया, जो बाद में उत्तर भारत में विकसित हुई।

अतः विकल्प (A) सही है।


मेन्स:

प्रश्न. भक्ति साहित्य की प्रकृति और भारतीय संस्कृति में इसके योगदान का मूल्यांकन कीजिये। (150 शब्द)


उन्नत चालक सहायता प्रणालियों की मांग

प्रिलिम्स के लिये:

उन्नत चालक सहायता प्रणाली, स्वायत्त ड्राइविंग

मेन्स के लिये:

भारत में सेल्फ-ड्राइविंग कारों का परिदृश्य, परिवहन का स्वचालन और चुनौतियाँ

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों? 

जैसे-जैसे वैश्विक स्तर पर स्वायत्त ड्राइविंग की गति बढ़ रही है, उन्नत चालक सहायता प्रणाली (ADAS) की मांग में वृद्धि के साथ भारत एक आश्चर्यजनक लेकिन महत्त्वपूर्ण बाज़ार के रूप में उभरा है।

उन्नत चालक सहायता प्रणाली (ADAS) क्या है?

  • परिचय:
    • उन्नत चालक सहायता प्रणाली (ADAS) को वाहन डिजिटल प्रौद्योगिकियों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो पूरी प्रक्रिया को पूरी तरह से स्वचालित किये बिना ड्राइवरों को नियमित नेविगेशन और पार्किंग में मदद करती है, जिसमें अधिक डेटा-संचालित तथा सुरक्षित चालक संबंधी अनुभवों को सक्षम करने के लिये कंप्यूटर नेटवर्क का उपयोग किया जाता है।
      • ADAS में किसी वाहन के आसपास के परिवेश की निगरानी के लिये सेंसर, कैमरे और रडार का उपयोग किया जाता हैं।
      • वे सक्रिय रूप से सुरक्षा संबंधी जानकारी, ड्राइविंग हस्तक्षेप और पार्किंग में सहायता प्रदान कर सकते हैं।
    • ADAS का लक्ष्य उन ऑटोमोटिव दुर्घटनाओं की घटनाओं और गंभीरता को कम करना है जिन्हें टाला नहीं जा सकता है ताकि होने वाली मौतें तथा चोटों को रोका जा सके।
      • ये उपकरण यातायात, सड़क में रुकावट, भीड़भाड़ के स्तर, यातायात से बचने के लिये सुझाए गए मार्गों आदि के बारे में महत्त्वपूर्ण आँकड़े प्रदान कर सकते हैं।
  • ADAS की विशेषताएँ: 
    • ADAS सुइट में स्वचालित आपातकालीन ब्रेकिंग, फॉरवर्ड कलिशन वार्निंग, ब्लाइंड स्पॉट कलिशन वार्निंग, ‘लेन-कीपिंग’ सहायता, ‘अडैप्टिव क्रूज़’ नियंत्रण जैसी सुविधाएँ शामिल हैं।

  • भारत में मांग में वृद्धि के कारण:
    • प्रगतिशील उपयोग:
      • भारत में स्वायत्त ड्राइविंग वाहनों को व्यापक रूप से अपनाया जा रहा है। कार विनिर्माता तेज़ी से मध्य-खंड (Mid-Segment) के वाहनों में मानक सुविधाओं के रूप में ADAS की प्रस्तुति कर रहे हैं जो उन्नत चालक सहायता तकनीक की बढ़ती मांग में योगदान दे रहा है।
    • सड़क सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
      • भारत की गंभीर सड़क दुर्घटनाओं तथा यातायात पैटर्न के देखते हुए सड़क सुरक्षा को महत्त्व दिया जा रहा है। कार विनिर्माता सुरक्षा बढ़ाने तथा उपभोक्ताओं को उन्नत चालक सहायता उपकरण प्रदान करने के लिये ADAS सुविधाओं को एकीकृत कर रहे हैं।
  • ADAS सिस्टम के लिये भारत में चुनौतियाँ:
    • सड़क अवसंरचना चुनौतियाँ:
      • भारत को विश्व स्तर पर सबसे चुनौतीपूर्ण ड्राइविंग वातावरणों में से एक माना जाता है।
        • विश्व बैंक के अनुसार, भारत में विश्व की सबसे खतरनाक सड़कें हैं, जिनमें दुर्घटनाओं में सालाना 8,00,000 से अधिक लोग मारे जाते हैं और अपंग हो जाते हैं।
      • भारत की विविध सड़क स्थितियाँ, उच्च गुणवत्ता से बनाए गए राजमार्गों से लेकर खराब निर्मित ग्रामीण सड़कों तक, लगातार सड़क चिह्नों और बुनियादी ढाँचे के लिये ADAS प्रणालियों के लिये चुनौतियाँ पैदा करती हैं।
    • विविध सड़क उपयोगकर्त्ता:
      • भारतीय सड़कों पर मोटर वाहनों के साथ-साथ पैदल चलने वालों, साइकिल चालकों और गैर-मोटर चालित वाहनों का मिश्रण होता है, जो एडीएएस अनुकूलन के लिये जटिलता पैदा करता है।
      • वर्ल्ड रिसोर्सेज़ इंस्टीट्यूट (World Resources Institute-WRI) India इंडिया के एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में लगभग 50% शहरी यात्राएँ पैदल, साइकिल या साइकिल-रिक्शा पर की जाती हैं, जो एडीएएस डिज़ाइन में गैर-मोटर चालित सड़क उपयोगकर्त्ताओं पर विचार करने के महत्त्व पर ज़ोर देती है
    • कनेक्टिविटी और डेटा:
      • एडीएएस सिस्टम को वास्तविक समय डेटा अपडेट और विश्वसनीय कनेक्टिविटी की आवश्यकता होती है, जो भारत के दूरस्थ या खराब नेटवर्क वाले क्षेत्रों में एक समस्या हो सकती है।
    • हैकिंग के प्रति संवेदनशील:
      • ADAS सिस्टम के बारे में उपभोक्ताओं और विशेषज्ञों की एक बड़ी चिंता साइबर हमलों के प्रति उनकी संवेदनशीलता है।
      • हैक किये गए वाहन बेहद खतरनाक होते हैं और इनसे दुर्घटनाएँ हो सकती हैं।
    •  ड्राइवर का व्यवहार:
      • एडीएएस सिस्टम की सफलता ज़िम्मेदार ड्राइविंग व्यवहार पर निर्भर करती है। भारत में इंस्टीट्यूट ऑफ रोड ट्रैफिक एजुकेशन (IRTE) के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि केवल 44% ड्राइवर एडीएएस तकनीक के बारे में जानते थे, जो इसके लाभों और उपयोग पर व्यापक शिक्षा की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

स्वायत्त ड्राइविंग क्या है?

  • परिचय:
    • एक स्वायत्त कार एक ऐसा वाहन है जो मानव भागीदारी के बिना अपने आसपास को समझने और संचालन करने में सक्षम है। यह ADAS जैसी तकनीकों से लैस हैं और इसमें मानव यात्री को किसी भी समय वाहन को नियंत्रित करने की आवश्यकता नहीं होती है, न ही मानव यात्री को वाहन में उपस्थित होने की आवश्यकता होती है।
      • स्वायत्त ड्राइविंग का तात्पर्य स्व-चालित वाहनों से भी हो सकता है।
  • स्वायत्त ड्राइविंग के स्तर:
    • ऑटोमोटिव इंजीनियर्स सोसायटी (SAE) ड्राइविंग ऑटोमेशन के 6 स्तरों को 0 (पूरी तरह से मैनुअल) से 5 (पूरी तरह से स्वायत्त) तक परिभाषित करती है।
    • भारत में कार निर्माता वर्तमान में लेवल 2 कार्यक्षमता की पेशकश पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।
      • ADAS को अपनाने में वृद्धि के बावजूद, अधिकांश कार निर्माताओं के लिये लेवल 2 वर्तमान सीमा प्रतीत होती है। पूर्ण स्वायत्त ड्राइविंग (स्तर 5) तकनीकी सीमाओं से लेकर नियामक चिंताओं तक की चुनौतियों के साथ एक दूर का लक्ष्य बना हुआ है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. विकास की वर्तमान स्थिति में, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), निम्नलिखित में से किस कार्य को प्रभावी रूप से कर सकती है?

  1. औद्योगिक इकाइयों में विद्युत की खपत कम करना
  2.  सार्थक लघु कहानियों और गीतों की रचना
  3.  रोगों का निदान
  4.  टेक्स्ट से स्पीच (Text- to- Speech) में परिवर्तन
  5.  विद्युत् ऊर्जा का बेतार संचरण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1, 2, 3 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर : (d)


वैभव फैलोशिप

प्रिलिम्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST), वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक योजना, विजिटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च फैकल्टी (VAJRA) योजना, अनिवासी भारतीय (NRI)

मेन्स के लिये:

भारत की तकनीकी प्रगति में भारतीय प्रवासियों का योगदान।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने हाल ही में वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (VAIBHAV) योजना के तहत फेलो के पहले समूह का अनावरण किया, यह एक रणनीतिक पहल है जिसका उद्देश्य विदेश में स्थित भारतीय मूल के वैज्ञानिकों के साथ अल्पकालिक सहयोग को बढ़ावा देना है।

  • वर्ष 2018 में शुरू की गई विजिटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च फैकल्टी (VAJRA) योजना और वैभव योजना के बीच काफी समानताएँ हैं।

वैभव योजना क्या है?

  • परिचय:
    • भारत सरकार ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित और चिकित्सा (STEMM) तथा भारतीय शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों में भारतीय डायस्पोरा के बीच सहयोग की सुविधा हेतु वैश्विक भारतीय वैज्ञानिक (VAIBHAV/वैभव) नामक एक नया फैलोशिप कार्यक्रम शुरू किया है।  
    • सहयोगात्म्क कार्यों के लिये वैभव फेलो भारतीय संस्थान की पहचान करके अधिकतम 3 वर्षों के लिये एक वर्ष में दो माह तक वहाँ रहकर कार्य कर सकते हैं।
      • वैभव फेलो से अपने भारतीय समकक्षों के साथ सहयोग करने एवं विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अत्याधुनिक क्षेत्रों में मेज़बान संस्थान में अनुसंधान गतिविधियों को शुरू करने में मदद करने की अपेक्षा की जाती है।
  • प्रोत्साहन:
    • फेलोशिप में फेलोशिप अनुदान (4,00,000 रुपए प्रति माह), अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू यात्रा, आवास तथा आकस्मिक सहायता शामिल होंगी।
    • सहयोगात्मक कार्यों का समर्थन करने के लिये मेज़बान संस्थानों को अनुसंधान अनुदान प्रदान किया जाता है।
  • वैभव योजना का महत्त्व:
    • वैज्ञानिक अनुसंधान में वैश्विक सहयोग को मज़बूती प्रदान करता है।
    • यह भारतीय शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थानों में ज्ञान के आदान-प्रदान एवं विशेषज्ञता को प्रोत्साहित करता है।
  • कार्यान्वयन:

विज़िटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च फैकल्टी योजना क्या है?

  • परिचय:
    • विज़िटिंग एडवांस्ड ज्वाइंट रिसर्च (Visiting Advanced Joint Research- VAJRA) फैकल्टी योजना विशेष रूप से विदेशी वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के लिये एक समर्पित कार्यक्रम है जिसमें प्रमुख रूप से NRI तथा PIO/OCI पर ज़ोर दिया गया है ताकि वे भारतीय सार्वजनिक वित्त पोषित शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थानों में एक विशिष्ट अवधि के लिये सहायक/विज़िटिंग फैकल्टी के रूप में कार्य कर सकें।
      • सहयोगात्मक अनुसंधान के महत्त्व को देखते हुए यह योजना ज्ञान तथा कौशल को अद्यतन करने एवं प्राप्त करने के लिये शोधकर्त्ताओं के बीच जानकारी साझा करने पर ज़ोर देती है और एक साझा समस्या को हल करने के लिये विभिन्न दृष्टिकोण की प्रस्तुति भी करती है।
    • संकाय द्वारा किये जाने वाले अनुसंधान का क्षेत्र भारत के लिये हितकर होना चाहिये जिसमें विज्ञान संबंधी ज्ञान का जीवन में अनुप्रयोग करना शामिल है।
      • भारत में रहने की अवधि के दौरान संकाय शिक्षण/संबोधक का कार्य भी कर सकता है।
      • फैकल्टी भारत के किसी संस्थान में वर्ष में न्यूनतम 1 माह तथा अधिकतम 3 माह की अवधि के लिये कार्य कर सकेगी।
        • भारतीय मेज़बान संस्थान कार्य पूरा होने के बाद भी उसे लंबी अवधि के लिये नियुक्त कर सकता है।
        • संकाय के लिये अंशकालिक पद प्रारंभ में 1 वर्ष के लिये पेश किया जाएगा तथा इसे प्रत्येक वर्ष नवीनीकृत किया जा सकता है।
  • प्रस्तावित प्रोत्साहन:
    • VAJRA संकाय को उनकी यात्रा और मानदेय को कवर करने के लिये एक वर्ष में उनकी सहभागिता के पहले महीने में 15,000 अमेरिकी डॉलर तथा अन्य दो महीनों में 10,000 अमेरिकी डॉलर प्रति माह की राशि प्रदान की जाएगी।
      • हालाँकि आवास, चिकित्सा/व्यक्तिगत बीमा आदि के लिये कोई अलग सहायता प्रदान नहीं की जाती है, मेज़बान संस्थान अतिरिक्त सहायता प्रदान करने पर विचार कर सकता है।
      • फैकल्टी को भुगतान भारतीय रुपए में किया जाएगा।
  • कार्यान्वयन:
    • वज्र संकाय योजना विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा कार्यान्वित की जाती है।
      • एसईआरबी विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग का एक वैधानिक निकाय है। इसकी स्थापना वर्ष 2008 में संसद के एक अधिनियम (विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड अधिनियम, 2008) के माध्यम से की गई थी।
      • एसईआरबी के उद्देश्यों में विज्ञान और इंजीनियरिंग में बुनियादी अनुसंधान को बढ़ावा देना तथा शोधकर्त्ताओ, शैक्षणिक संस्थानों एवं अन्य एजेंसियों को वित्तीय सहायता प्रदान करना शामिल है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. अमेरिका एवं यूरोपीय देशों की राजनीति एवं अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रवासियों को एक निर्णायक भूमिका निभानी है। उदाहरणों सहित टिप्पणी कीजिये। (2020)