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डेली न्यूज़

  • 26 Apr, 2022
  • 43 min read
सामाजिक न्याय

विश्व मलेरिया दिवस 2022

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व मलेरिया दिवस, मलेरिया को नियंत्रित करने के प्रयास। 

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य, मलेरिया और उसका उन्मूलन। 

चर्चा में क्यों?

मलेरिया को नियंत्रित करने और इसके उन्मूलन के वैश्विक प्रयास के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये हर वर्ष 25 अप्रैल को विश्व मलेरिया दिवस मनाया जाता है।  

  • विश्व मलेरिया दिवस पहली बार वर्ष 2008 में आयोजित किया गया था। इसे ‘अफ्रीका मलेरिया दिवस’ से विकसित किया गया था, यह वर्ष 2001 से विभिन्न अफ्रीकी देशों की सरकारों द्वारा मनाया जा रहा था।
  • वर्ष 2022 की थीम है- "मलेरिया रोग के बोझ को कम करने और जीवन बचाने के लिये नवाचार का उपयोग करें।"

मलेरिया: 

  • परिचय: 
    • मलेरिया एक मच्छर जनित रक्त रोग (Mosquito Borne Blood Disease) है जो प्लाज़्मोडियम परजीवी (Plasmodium Parasites) के कारण होता है। यह मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। 
    • इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है।
      • मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद परजीवी शुरू में यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करते हैं, उसके बाद लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells- RBC) को नष्ट कर देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप RBCs की क्षति होती है।
      • ऐसी 5 परजीवी प्रजातियांँ हैं जो मनुष्यों में मलेरिया संक्रमण का कारण हैं, इनमें से 2 प्रजातियाँ- प्लाज़्मोडियम फाल्सीपेरम (Plasmodium Falciparum) और प्लाज़्मोडियम विवैक्स (Plasmodium Vivax) हैं, जिनसे मलेरिया संक्रमण का सर्वाधिक खतरा विद्यमान है।
      • मलेरिया के लक्षणों में बुखार और फ्लू जैसे लक्षण शामिल होते हैं, जिसमें ठंड लगना, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान महसूस होती है।
      • इस रोग की रोकथाम एवं इलाज़ दोनों संभव हैं।

मलेरिया का टीका: 

  • RTS,S/AS01 जिसे मॉसक्यूरिक्स (Mosquirix) के नाम से भी जाना जाता है, एक इंजेक्शन वैक्सीन है। इस टीके को एक लंबे वैज्ञानिक परीक्षण के बाद प्राप्त किया गया है जो कि पूर्णतः सुरक्षित है। इस टीके के प्रयोग से मलेरिया का खतरा 40 प्रतिशत तक कम हो जाता है तथा इसके परिणाम अब तक के टीकों में सबसे अच्छे देखे गए हैं।
  • इसे ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GlaxoSmithKline- GSK) कंपनी द्वारा विकसित किया गया था तथा इसे वर्ष 2015 में यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी (European Medicines Agency) द्वारा अनुमोदित किया गया।
  • RTS,S वैक्सीन मलेरिया परजीवी, प्लाज़्मोडियम पी. फाल्सीपेरम (Plasmodium P. Falciparum) जो कि मलेरिया परजीवी की सबसे घातक प्रजाति है, के विरुद्ध प्रतिरक्षा प्रणाली को विकसित करती है।
  • भारतीय परिदृश्य: 
    • मलेरिया बर्डन: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी विश्व मलेरिया रिपोर्ट (WMR) 2020, जो कि दुनिया भर में मलेरिया के अनुमानित मामलों की जानकारी देती है, के अनुसार भारत ने अपने मलेरिया के बोझ को कम करने में काफी प्रगति की है।
      • भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसने वर्ष 2018 की तुलना में वर्ष 2019 में 17.6% की गिरावट दर्ज की है।

मलेरिया नियंत्रण के प्रयास:

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने अपनी 'ई-2025 पहल' के अंतर्गत वर्ष 2025 तक मलेरिया उन्मूलन क्षमता वाले 25 देशों की पहचान की है।
  • भारत में मलेरिया उन्मूलन के प्रयास वर्ष 2015 में शुरू किये गए थे तथा वर्ष 2016 में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय के नेशनल फ्रेमवर्क फॉर मलेरिया एलिमिनेशन (NFME) की शुरुआत के बाद इन प्रयासों में और अधिक तेज़ी आई। 
    • NFME मलेरिया के लिये WHO की वैश्विक तकनीकी रणनीति 2016–2030 (GTS) के अनुरूप है। ज्ञात हो कि वैश्विक तकनीकी रणनीति WHO के वैश्विक मलेरिया कार्यक्रम (GMP) का मार्गदर्शन करती है, जो मलेरिया को नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिये WHO के वैश्विक प्रयासों के समन्वय हेतु उत्तरदायी है।
  • मलेरिया उन्मूलन के लिये राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-22) जुलाई 2017 में शुरू की गई थी जिसमें आगामी पांँच वर्षों हेतु रणनीति निर्धारित की गई है
    • यह मलेरिया की स्थानिकता के आधार पर देश के विभिन्न हिस्सों में वर्ष-वार उन्मूलन का लक्ष्य प्रदान करता है।
  • ‘हाई बर्डन टू हाई इम्पैक्ट’ (High Burden to High Impact-HBHI) पहल का कार्यान्वयन जुलाई 2019 में चार राज्यों (पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश) में शुरू किया गया था।
  • उच्च दबाव वाले क्षेत्रों में लंबे समय तक चलने वाली कीटनाशक युक्त मच्छरदानियों (LLINs) के वितरण से इन राज्यों में मलेरिया के प्रसार में कमी आई है। 
  • इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मलेरिया उन्मूलन अनुसंधान गठबंधन-भारत (MERA-India) की स्थापना की है जो मलेरिया नियंत्रण पर काम करने वाले भागीदारों का एक समूह है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं के लिये ग्रेच्युटी

प्रिलिम्स के लिये:

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता, एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) 

मेन्स के लिये:

केंद्र प्रायोजित योजना, आधार, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया है कि आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता ग्रेच्युटी (Gratuity) के हकदार हैं, जो कि एक बुनियादी सामाजिक सुरक्षा उपाय है।

प्रमुख बिंदु 

सर्वोच्च न्यायालय का मत:  

  • न्यायालय ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी भुगतान के उनके अधिकार को मान्यता दी है।
  • न्यायालय ने रेखांकित किया कि केंद्र और राज्यों के लिये आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं एवं सहायिकाओं की सेवा शर्तों को बेहतर बनाने पर "सामूहिक रूप से विचार" (Collectively Consider) करने का यह उचित समय है।
  • न्यायालय ने इस बात की ओर भी ध्यान आकर्षित किया कि सार्वजनिक नीति में एकीकृत बाल विकास योजना (Integrated Child Development Scheme- ICDS) पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।  
    • यह योजना "बाल और महिला अधिकारों की प्राप्ति हेतु एक संस्थागत तंत्र" के रूप में कार्य करती है।  
    • फिर भी इन सेवाओं को लागू करने योग्य अधिकारों के बजाय राज्य चैरिटी के रूप में माना जाता है।
  • इस प्रकार सेवाओं के वितरण और सामुदायिक भागीदारी में गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिये उनकी सेवा शर्तों पर फिर से विचार करना आवश्यक है।

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता: 

  • आँगनवाड़ी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा कार्यान्वित एक केंद्र प्रायोजित योजना है जो भारत में  ग्रामीण बच्चों और मातृ देखभाल केंद्र के रूप में कार्य करती है।
  • इसकी शुरुआत वर्ष 1975 में भारत सरकार द्वारा बच्चों के भूख एवं  कुपोषण की समस्या से निपटने के लिये ICDS कार्यक्रम के हिस्से के रूप में की गई थी।
  • आँगनवाड़ी केंद्र छह प्रकार की सेवाएँ प्रदान करते हैं: पूरक पोषण, प्री-स्कूल अनौपचारिक शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा तथा निर्दिष्ट सेवाएँ।
  • आँगनवाड़ी सेवा योजना के तहत लाभार्थियों की पहचान आधार के अंतर्गत की जाती है।

आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं का महत्त्व:

  • अदालत ने माना है कि लगभग 158 मिलियन बच्चें “जो देश के भावी संसाधन है”,  की पोषण संबंधी ज़रूरतों का आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ता और सहायिकाएँ ख्याल रखती हैं।
  • आँगनवाड़ी कार्यकर्त्ताओं और सहायिकाओं ने वंचित क्षेत्रों में वंचित समूहों की ज़रूरतों को पूरा करने का कार्य किया है।
    • वे ICDS की रीढ़ हैं।
  • सामाजिक बाल देखभाल महिलाओं की आज़ादी में योगदान करता है। 
    • यह बच्चों की देखभाल के बोझ को हल्का करता है, महिलाओं के लिये रोज़गार का संभावित स्रोत प्रदान करता है, साथ ही उन्हें महिला संगठन बनाने का अवसर भी प्रदान करता है।

ग्रेच्युटी (उपदान):

  • ग्रेच्युटी एक ऐसा लाभ है जो ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम 1972 के तहत देय है।
  • ग्रेच्युटी एक वित्तीय घटक है जो एक नियोक्ता द्वारा कर्मचारी को संगठन में उसके द्वारा प्रदान की गई  सेवा के सम्मान में दिया जाता है।  
    • यह किसी कर्मचारी को मिलने वाले वेतन का एक हिस्सा होता है और इसे एक लाभ योजना के रूप में देखा जा सकता है, जिसे किसी व्यक्ति को उसकी सेवानिवृत्ति पर उसकी सहायता करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
  • एक नियोक्ता द्वारा ग्रेच्युटी का भुगतान तब किया जाता है, जब कोई कर्मचारी कम-से-कम 5 वर्ष की अवधि के लिये किसी संगठन की सेवा करने के बाद नौकरी छोड़ देता है। 
    • इसे एक कर्मचारी को नियोक्ता की निरंतर सेवा प्रदान करने हेतु वित्तीय "धन्यवाद" के रूप में भी माना जा सकता है।

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत किये गए प्रावधानों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018) 

  1. केवल बीपीएल श्रेणी में आने वाले परिवार ही सब्सिडी युक्त खाद्यान्न प्राप्त करने के पात्र हैं।
  2. घर की सबसे उम्रदराज़ महिला, जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे ऊपर है, राशन कार्ड जारी करने के लिये घर की मुखिया होगी।
  3. गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान तथा उसके बाद छह महीने तक प्रतिदिन 1600 कैलोरी का 'टेक-होम राशन' मिलता है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(A) केवल 1 और 2
(B) केवल 2
(C) केवल 1 और 3
(D) केवल 3

उत्तर: (B)

व्याख्या:

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली और लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के माध्यम से सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा के मुद्दे को संबोधित किया गया है।  
  • 5 जुलाई, 2013 को अधिनियमित राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) ने खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण में कल्याण से अधिकार-आधारित दृष्टिकोण में बदलाव को चिह्नित किया। 

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2022

प्रिलिम्स के लिये:

USCIRF, अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट 2022 

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारत में धार्मिक स्वतंत्रता और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों? 

अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता आयोग (USCIRF) की वार्षिक रिपोर्ट में भारत को दूसरे वर्ष अर्थात् 2021 में भी धार्मिक स्वतंत्रता का सर्वाधिक उल्लंघन करने के लिये ‘कंट्रीज़ ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न’ (प्रमुख चिंता वाले देशों) की श्रेणी में सूचीबद्ध करने की सिफारिश की गई है।

  • इससे पहले अमेरिकी विदेश विभाग ने वर्ष 2021 में भारत में मानवाधिकारों पर एक सशक्त और आलोचनात्मक रिपोर्ट जारी की थी।

USCIRF के बारे में: 

  • USCIRF एक स्वतंत्र, द्विदलीय अमेरिकी संघीय सरकारी आयोग है, जो विदेशों में धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के सार्वभौमिक अधिकार की रक्षा के लिये समर्पित है। 
  • यह अमेरिकी प्रशासन के लिये एक सलाहकार निकाय है। 
  • USCIRF’s की 2022 की वार्षिक रिपोर्ट विदेशों में धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता के अमेरिकी सरकार के प्रचार को बढ़ाने के लिये सिफारिशें प्रदान करती है।   
  • इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में है।
  • अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम की निष्क्रियता के बाद 1998 में अमेरिकी सरकार द्वारा स्थापित USCIRF की सिफारिशें राज्य विभाग पर गैर-बाध्यकारी हैं।
    • परंपरागत रूप से भारत USCIRF के दृष्टिकोण को मान्यता नहीं देता है।  

रिपोर्ट की विशेषताएँ:

  • रिपोर्ट का प्राथमिक फोकस देशों के दो समूहों पर है:
    • विशेष चिंता वाले देश (CPC): यह अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम, 1998 (IFRA) के अंतर्गत धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन के आधार पर देशों को विशेष चिंता वाले देश (Countries of Particular Concern- CPC)  में नामित करने के लिये अमेरिकी विदेश विभाग के सचिव को सिफारिश करता है। 
    • विशेष निगरानी सूची (SWL): SWL में उन देशों को शामिल किया जाता है, जिन देशों की सरकारों द्वारा गंभीर रूप से धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन किया जाता है या जिन पर ऐसा करने का आरोप है।
  • रिपोर्ट में वित्तीय विश्लेषण की अंतर्राष्ट्रीय समीक्षा (IRFA) के तहत यूएस स्टेट डिपार्टमेंट द्वारा हिंसक गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं के लिये ‘एंटिटीज़ ऑफ पर्टिकुलर कंसर्न’ (EPC) के रूप में USCIRF की सिफारिशें भी शामिल हैं।
  • इस रिपोर्ट में वर्ष 2021 के दौरान धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित महत्त्वपूर्ण वैश्विक विकास और प्रवृत्तियों पर भी प्रकाश डाला गया है, जिसमें वे देश भी शामिल हैं जो CPC या SWL सिफारिशों के मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।
    • इनमें कोविड-19 महामारी और धार्मिक स्वतंत्रता, ईश निंदा तथा हेट स्पीच कानून प्रवर्तन, अंतर्राष्ट्रीय दमन, यूरोप में धार्मिक असहिष्णुता, दक्षिण एशिया में धार्मिक स्वतंत्रता की बिगड़ती स्थिति एवं धार्मिक स्वतंत्रता की चिंताओं को बढ़ाने वाली राजनीतिक उथल-पुथल शामिल हैं।

USCIRF की नवीनतम सिफारिशें:

CPC सूची के लिये:

भारत के अलावा CPC के लिये अनुशंसित देश अफगानिस्तान, नाइजीरिया, सीरिया और वियतनाम हैं।

 CPC के रूप में म्याँमार, चीन, इरिट्रिया, ईरान, उत्तर कोरिया, पाकिस्तान, रूस, सऊदी अरब, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान को पुन: नामित करने की अनुशंसा की गई है।

  • विशेष निगरानी सूची के लिये:
    • अल्जीरिया, क्यूबा और निकारागुआ को वर्ष 2021 में इस सूची रखा गया।
    • अन्य दशों में अज़रबैजान, सीएआर, मिस्र, इंडोनेशिया, इराक, कज़ाखस्तान, मलेशिया, तुर्की और उज़्बेकिस्तान शामिल हैं।
  • EPCs के लिये: 
    • अल-शबाब, बोको हराम, हौथिस, हयात तहरीर अल-शाम (HTS), इस्लामिक स्टेट इन द ग्रेटर सहारा (ISGS), इस्लामिक स्टेट इन वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस (ISWAP या ISIS-वेस्ट अफ्रीका) और जमात नस्र अल-इस्लाम वाल मुस्लिमिन (जेएनआईएम)। 

भारत के बारे में चिंताएंँ:

  • रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि सरकार ने "महत्त्वपूर्ण आवाज़ों का दमन किया", विशेष रूप से अल्पसंख्यक समुदायों और उन पर रिपोर्टिंग करने वाले व्यक्तियों की।  
    • इसमें कश्मीर में मानवाधिकार कार्यकर्त्ता खुरान परवेज की गिरफ्तारी और जुलाई 2021 में ऑक्टोजेरियन फादर स्टेन स्वामी की मौत का उल्लेख है, जिसे गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 (यूएपीए) के तहत अक्तूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था।
  • रिपोर्ट में गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के सामने आने वाली चुनौतियों, विशेष रूप से विदेशी फंडिंग के बारे में भी बात की गई है।  
  • यह धर्मांतरण विरोधी कानूनों पर भी प्रकाश डालता है। अक्तूबर 2021 में कर्नाटक सरकार ने राज्य में चर्चों और पुजारियों के सर्वेक्षण का आदेश दिया तथा पुलिस को ईसाई धर्म में परिवर्तित हिंदुओं को खोजने के लिये घर-घर निरीक्षण करने हेतु अधिकृत किया। 

भारत में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25-28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का एक मौलिक अधिकार के रूप में उल्लेख किया गया है।
    • अनुच्छेद 25 (अंतःकरण की स्वतंत्रता एवं धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता)।
    • अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता)।
    • अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि हेतु करों के संदाय को लेकर स्वतंत्रता)।
    • अनुच्छेद 28 (कुछ विशिष्ट शैक्षिक संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने को लेकर स्वतंत्रता)।
  • इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 29-30 में अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा से संबंधित प्रावधान हैं।

स्रोत: द हिंदू 


भारतीय राजव्यवस्था

ओल्गा टेलिस वाद 1985

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम (1985), फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन का अधिकार, अतिक्रमण रोधी पूर्व स्वीकृति।

मेन्स के लिये:

जीवन का अधिकार, निर्णय और मामले, न्यायपालिका

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम 1985 के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के फैसले में कहा गया कि जहाँगीरपुरी (दिल्ली) मामले में फुटपाथ के निवासी, आतिक्रमणकारियों से भिन्न हैं, जो आगामी निर्णयों में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उठाए गए प्रश्न:

  • पृष्ठभूमि: यह मामला 1981 में तब शुरू हुआ जब महाराष्ट्र राज्य और बॉम्बे नगर निगम ने फैसला किया कि बॉम्बे शहर में फुटपाथ एवं झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों को बेदखल किया जाना चाहिये तथा उन्हें "उनके मूल स्थान या बॉम्बे शहर के बाहर के क्षेत्रों पर निर्वासित किया जाना चाहिये।"
  • फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन के अधिकार का प्रश्न: एक मुख्य प्रश्न यह था कि क्या फुटपाथ पर रहने वाले को बेदखल करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके गारंटीशुदा आजीविका के अधिकार से वंचित करना होगा।
    • अनुच्छेद 21 के अनुसार, "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"।
    • भारत में लगभग दो करोड़ लोग फुटपाथ पर रहने वालों में शामिल हैं।
  • अतिक्रमण हटाने के लिये पूर्व स्वीकृति का प्रश्न: संविधान पीठ को यह निर्धारित करने के लिये भी कहा गया था कि क्या बॉम्बे नगर निगम अधिनियम, 1888 में शामिल प्रावधान,  मनमाने और अनुचित तथा बिना किसी पूर्व सूचना के अतिक्रमण हटाने की अनुमति प्रदान करते हैं। 
  • अतिक्रमण पर प्रश्न: सर्वोच्च न्यायालय ने इस सवाल की जांँच करने का भी निर्णय लिया कि क्या फुटपाथ पर रहने वालों को अतिचारियों (Trespassers) के रूप में चिह्नित करना संवैधानिक रूप से अनुचित होगा।

ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम, 1985 मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:  

  • ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम निर्णय 1985, (Olga Tellis vs Bombay Municipal Corporation judgment in 1985) में न्यायालय ने निर्णय दिया कि फुटपाथ पर रहने वालों को बिना तर्क के बल प्रयोग कर तथा उन्हें समझाने का मौका दिये बिना बेदखल करना असंवैधानिक है।
    • यह उनके आजीविका के अधिकार (Right to Livelihood) का उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने फुटपाथ पर रहने वालों को केवल आतिक्रमणकारी मानने वाले प्राधिकारियों पर कड़ी आपत्ति जताई थी। 
    • “वे (फुटपाथ पर रहने वाले) निहायत खराब आर्थिक स्थिति के कारण ज़्यादातर गंदी या दलदली जगहों पर रहने की जगह ढूंँढ लेते हैं।

राज्य सरकार का बचाव: 

  • विबंधन (Estoppel) का प्रश्न: राज्य सरकार और निगम ने विरोध किया कि फुटपाथ पर रहने वालों को रोका जाना चाहिये।
    • विबंधन (Estoppel) एक न्यायिक उपकरण है जिसके द्वारा एक अदालत किसी व्यक्ति को दावा करने से ‘रोक’ सकती है।  
    • विबंधन किसी को यह दावा करने से रोक सकता है कि फुटपाथ पर उसके द्वारा बनाई गई झोपड़ी को उसके आजीविका के अधिकार के कारण ध्वस्त नहीं किया जा सकता है। 
  • सार्वजनिक रास्ते का अधिकार: वे फुटपाथ या सार्वजनिक सड़कों पर अतिक्रमण करने और झोपड़ियों को बनाने के किसी भी मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं क्योंकि लोगों को उन रास्तों पर आवाजाही का अधिकार है।

सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय:

  • विबंधन पर: अदालत ने विबंधन के सरकार के तर्क को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि "संविधान के खिलाफ कोई विबंधन नहीं हो सकता।" .
    • कोर्ट ने कहा कि फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन का अधिकार दाँव पर लगा है।  
  • आजीविका के अधिकार पर: आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का एक "अभिन्न घटक" है। 
    • यदि आजीविका के अधिकार को जीने के संवैधानिक अधिकार के हिस्से के रूप में नहीं माना जाता है, तो किसी व्यक्ति को उसके जीवन के अधिकार से वंचित करने का सबसे आसान तरीका यह होगा कि उसे उसकी आजीविका के साधन से वंचित कर दिया जाए।
  • पूर्व सूचना पर: दूसरे प्रश्न कि क्या वैधानिक प्राधिकारियों को बिना पूर्व सूचना के अतिक्रमण हटाने की अनुमति देने वाले कानून के प्रावधान मनमाना थे।
    • ऐसे अधिकारों को ‘अपवाद’ के रूप में संचालित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, न कि "सामान्य नियम" की भाँति।
    • बेदखली की प्रक्रिया प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों के पक्ष में होनी चाहिये जो न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों का पालन करती हो जैसे- दूसरे पक्ष को सुनवाई का अवसर देना। 
    • सुनवाई का अधिकार पीड़ित व्यक्तियों को निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेने और गरिमा के साथ अपनी बात रखने का अवसर प्रदान करता है।
  • अतिचार: अदालत ने फुटपाथ पर रहने वाले लोगों को अतिचारी मानने वाले अधिकारियों पर कड़ी आपत्ति जताई है। 
    • शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि फुटपाथ पर रहने वाले लोग "बेहद बेबसी से गंदे फुटपाथों" पर रहते हैं, न कि किसी को अपमानित करने, डराने या परेशान करने के उद्देश्य से।
    • वे फुटपाथ पर रहते हैं और कमाते हैं क्योंकि उनके पास "शहर में देखभाल के छोटे-छोटे काम हैं और रहने के लिये कोई घर नहीं है।"

विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: भारत के संविधान का कौन सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने की सुरक्षा का अधिकार प्रदान करता है? (2019) 

(a) अनुच्छेद 19  
(b) अनुच्छेद 21 
(c) अनुच्छेद 25  
(d) अनुच्छेद 29 

उत्तर: (b) 

व्याख्या: 

  • विवाह का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक घटक है जिसमें कहा गया है कि "कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा"। 

स्रोत- द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

यूरोपीय संघ डिजिटल सेवा अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ (EU), डिजिटल सेवा अधिनियम (DSA), रूस-यूक्रेन संघर्ष

मेन्स के लिये:

डिजिटल सेवा अधिनियम, साइबर सुरक्षा, IT और कंप्यूटर

चर्चा में क्यों? 

  • हाल ही में यूरोपीय संसद और यूरोपीय संघ (EU) के सदस्य देशों ने घोषणा की है कि वे डिजिटल सेवा अधिनियम (DSA), 2022 पर एक राजनीतिक समझौते पर पहुंँच गए हैं।
  • यह बड़ी इंटरनेट कंपनियों को गलत सूचना, अवैध और हानिकारक सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करने और "इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं तथा उनके मौलिक अधिकारों की उचित सुरक्षा प्रदान करने" के संदर्भ में एक ऐतिहासिक कानून है।
  • प्रस्तावित अधिनियम तकनीकी कंपनियों के स्व-नियमन के युग को समाप्त करने और 'इस सिद्धांत को व्यावहारिक रूप से लागू करने का प्रयास करता है कि जो ऑफलाइन अवैध है, वह ऑनलाइन भी अवैध होना चाहिये'।
  • भारत में इसी तरह के मुद्दे पर एक विधेयक (डेटा संरक्षण विधेयक 2019) संसद में लंबित है। 

डीएसए तथा इसके प्रावधान:

  • डीएसए के बारे में: जैसा कि यूरोपीय संघ आयोग द्वारा परिभाषित किया गया है, डीएसए "एकल बाज़ार में बिचौलियों के दायित्वों और जवाबदेही पर सामान्य नियमों की एक सारणी" है तथा सभी यूरोपीय संघ के उपयोगकार्त्तओं के लिये उच्च सुरक्षा सुनिश्चित करता है, चाहे उनका देश कोई भी हो।
  • उद्देश्य: जब उपयोगकर्त्ता सामग्री को मॉडरेट करने की बात आती है तो डीएसए बिचौलियों, विशेष रूप से गूगल, फेसबुक और यूट्यूब जैसे बड़े प्लेटफॉर्म के काम करने के तरीके को सख्ती से नियंत्रित करेगा। 
  • स्व-नियमन युग की समाप्ति: प्लेटफॉर्म को यह तय करने के बजाय कि अपमानजनक या अवैध सामग्री से कैसे निपटना है, डीएसए इन कंपनियों के पालन के लिये विशिष्ट नियम और दायित्व निर्धारित करेगा।
  • प्रयोज्यता: ईयू के अनुसार, डीएसए "सरल वेबसाट्स से लेकर इंटरनेट इन्फ्रास्ट्रक्चर सेवाओं और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म तक ऑनलाइन सेवाओं की एक बड़ी श्रेणी" पर लागू होगा।
    • इनमें से प्रत्येक के लिये दायित्व उनके आकार और भूमिका के अनुसार अलग-अलग होंगे।
    • कानून अपने दायरे में ऐसे प्लेटफॉर्म को लाता है जो इंटरनेट एक्सेस, डोमेन नेम रजिस्ट्रार, होस्टिंग सेवाएँ जैसी क्लाउड कंप्यूटिंग और वेब-होस्टिंग सेवाएँ प्रदान करते हैं।
    • हालाँकि इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि ‘वेरी लार्ज ऑनलाइन प्लेटफॉर्म’ (VLOP) और ‘वेरी लार्ज ऑनलाइन सर्च इंजन’ (VLOSE) को "अधिक कठोर आवश्यकताओं" का सामना करना पड़ेगा।
      • उदाहरण के लिये यूरोपीय संघ में 45 मिलियन से अधिक मासिक सक्रिय उपयोगकर्त्ताओं वाली कोई भी सेवा इस श्रेणी में आएगी।
      • यूरोपीय संघ में 45 मिलियन से कम मासिक सक्रिय उपयोगकर्त्ताओं वाले लोगों को कुछ नए दायित्वों से छूट दी जाएगी।
  • कार्यान्वयन: एक बार जब DSA कानून बन जाता है तो प्रत्येक यूरोपीय संघ के सदस्य राज्य की  "डिजिटल सेवाओं के लिये यूरोपीय बोर्ड" के साथ इन्हें लागू करने में प्राथमिक भूमिका होगी।
    • EU आयोग VLOPs और VLOSEs के लिये उन्नत पर्यवेक्षण और प्रवर्तन करेगा।
    • इन नियमों के उल्लंघन पर बहुत बड़ा जुर्माना हो सकता है, कंपनी के वैश्विक वार्षिक कारोबार का 6% जितना अधिक।

नए नियम:

  • सामग्री को तीव्रता से हटाना: ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और बिचौलियों जैसे- फेसबुक, गूगल, यूट्यूब आदि को अवैध या हानिकारक सामग्री को "तीव्रता के साथ हटाने के लिये नई प्रक्रियाओं" को शामिल करना होगा। 
  • देखभाल का कर्तव्य लागू करना: अमेज़न जैसे मार्केटप्लेस को उन विक्रेताओं पर "देखभाल के कर्तव्य" (Impose A Duty Of Care) का पालन करना होगा जो ऑनलाइन उत्पादों को बेचने हेतु अपने प्लेटफॉर्म का उपयोग कर रहे हैं।
    • उपभोक्ताओं को ठीक से सूचित करने हेतु उन्हें बेचे गए उत्पादों और सेवाओं पर जानकारी एकत्र कर उपलब्ध करना होगा।
  • ऑडिटिंग मैकेनिज़्म:  DSA "बहुत बड़े डिजिटल प्लेटफॉर्म और सेवाओं के लिये उनके द्वारा बनाए गए प्रणालीगत जोखिमों का विश्लेषण करने तथा जोखिम में कमी लाने हेतु विश्लेषण करने के लिये दायित्व" को जोड़ता है। 
    • गूगल और फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म को यह ऑडिट हर वर्ष करना होगा।
  • स्वतंत्र शोधकर्त्ता: अधिनियम इन जोखिमों को बेहतर ढंग से समझने के लिये अध्ययन हेतु स्वतंत्र रूप से जाँच करने वाले शोधकर्त्ताओं को इन प्लेटफॉर्मों से सार्वजनिक डेटा तक पहुंँच प्रदान करने की अनुमति देने का प्रस्ताव करता है। 
  • भ्रामक इंटरफेस पर प्रतिबंध: DSA 'डार्क पैटर्न' या "भ्रामक इंटरफेस" पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव करता है, जो उपयोगकर्त्ताओं से कुछ ऐसा कराने के लिये डिज़ाइन किया जाता है, जिसके लिये वे अन्यथा सहमत नहीं होंगे।
  • संकट तंत्र: DSA में एक नया खंड संकट तंत्र शामिल है, यह रूस-यूक्रेन संघर्ष को संदर्भित करता है, जिसे "राष्ट्रीय डिजिटल सेवा समन्वयकों के बोर्ड की सिफारिश पर आयोग द्वारा सक्रिय" किया जाएगा। 
    • हालाँकि ये विशेष उपाय केवल तीन महीने के लिये ही लागू होंगे।
  • पारदर्शिता के उपाय: यह "उपयोगकर्त्ताओं को सामग्री या उत्पादों की सिफारिश करने के लिये उपयोग किये जाने वाले एल्गोरिदम सहित विभिन्न मुद्दों पर ऑनलाइन प्लेटफॉर्म हेतु पारदर्शिता उपायों" का भी प्रस्ताव करता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आंतरिक सुरक्षा

देशों का सैन्य व्यय

प्रिलिम्स के लिये:

रिपोर्ट की मुख्य बातें

मेन्स के लिये:

सैन्य खर्च और इसे संबंधित चिंताएँ

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (Stockholm International Peace Research Institute-SIPRI) द्वारा प्रकाशित नवीनतम आंँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2021 में महामारी के कारण उत्पन्न आर्थिक गिरावट के बावजूद विश्व सैन्य व्यय में बढ़ोतरी देखी गई जो 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डाॅलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंँच गया। 

  • वर्ष 2021 में तीव्र आर्थिक सुधार के परिणामस्वरूप वैश्विक सैन्य बोझ कुल वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में 0.1 प्रतिशत अंक से बढ़कर वर्ष 2020 में 2.2% हो गया जो वर्ष 2021 में 2.3% रहा।

SIPRI: 

  • SIPRI एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जो संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण में अनुसंधान के लिये समर्पित है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1966 में स्टॉकहोम (स्वीडन) में हुई थी।

World-Military-Expenditure

वैश्विक परिदृश्य:

  •  सर्वाधिक सैन्य व्यय करने वाले शीर्ष देश:
    • वर्ष 2021 में पांँच सबसे बड़े सैन्य व्ययकर्त्ता देशों में अमेरिका, चीन, भारत, ब्रिटेन और रूस शामिल थे।
    • इन्होने कुल वैश्विक सैन्य व्यय का 62% अपने सैन्य क्षेत्र में व्यय किया जिसमें अकेले अमेरिका और चीन ने 52% का व्यय किया।
  • एशिया और ओशिनिया: 
    • वर्ष 2021 में एशिया और ओशिनिया का सैन्य व्यय कुल 586 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।  
      • इस क्षेत्र में किया गया व्यय वर्ष 2020 की तुलना में 3.5% अधिक था, जिसकी वर्ष 1989 से लगातार बढ़ने की प्रवृत्ति को जारी है। 
      • वर्ष 2021 में हुई वृद्धि का मुख्य कारण चीनी और भारतीय सैन्य व्यय में वृद्धि थी। 
        • वर्ष 2021 के दौरान कुल सैन्य खर्च में दोनों देशों का हिस्सा 63% है।
  • रूस के सैन्य खर्च में वृद्धि: 
    • ऐसे समय में जब रूस, यूक्रेन सीमा पर अपनी सेना बढ़ा रहा था, उसने वर्ष 2021 में अपने सैन्य खर्च को 2.9% बढ़ाकर 65.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया।
  • नाटो सदस्यों का व्यय: 
    • यूरोपीय उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के आठ सदस्य वर्ष 2021 में अपने सशस्त्र बलों पर सकल घरेलू उत्पाद का 2% या अधिक खर्च करने के लक्ष्य तक पहुँच गए।

भारत के संबंध में मुख्य तथ्य:  

  • भारत का सैन्य खर्च 76.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर है जो दुनिया में तीसरे स्थान पर है। 
    • यह वर्ष 2020 से 0.9% और वर्ष 2012 से 33% अधिक था।
  • चीन और पाकिस्तान के साथ चल रहे तनाव तथा सीमा विवादों के बीच जो कभी-कभी सशस्त्र संघर्षों में बदल जाते हैं, को ध्यान में रखते हुए भारत ने अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण व हथियारों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता दी है। 
  • स्वदेशी हथियार उद्योग को मज़बूत करने के संदर्भ में वर्ष 2021 के भारतीय सैन्य बजट में पूंजी परिव्यय का 64% घरेलू रूप से उत्पादित हथियारों के अधिग्रहण के लिये निर्धारित किया गया है।

स्रोत: द हिंदू


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