कृषि
मात्स्यिकी सब्सिडी पर समझौता
प्रिलिम्स के लिये:विश्व व्यापार संगठन, मंत्रिस्तरीय सम्मेलन, भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र, विशेष और विभेदक उपचार मेन्स के लिये:भारत के मत्स्य क्षेत्र का महत्त्व, भारत के हित और अर्थव्यवस्था पर अंतर्राष्ट्रीय समूहों की नीतियों का प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व व्यापार संगठन (WTO) की मंत्रिस्तरीय बैठक में मत्स्य पालन (मात्स्यिकी) सब्सिडी (AFS) पर समझौता हुआ।
WTO मंत्रिस्तरीय सम्मेलन
- WTO:
- यह वर्ष1995 में अस्तित्व में आया।
- विश्व व्यापार संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के मद्देनज़र स्थापित टैरिफ और व्यापार (GATT) पर सामान्य समझौते के स्थान पर अपनाया गया।
- इसका उद्देश्य व्यापार प्रवाह को सुचारू, स्वतंत्र और अनुमानित रूप से संचालित करना है।
- इसमें 164 सदस्य शामिल हैं।
- यह वर्ष1995 में अस्तित्व में आया।
- विश्व व्यापार संगठन का मंत्रिस्तरीय सम्मेलन (MC):
- यह विश्व व्यापार संगठन का शीर्ष निर्णय लेने वाला निकाय है और आमतौर पर हर दो वर्ष में इसकी बैठक होती है।
- विश्व व्यापार संगठन के सभी सदस्य मंत्रिस्तरीय सम्मेलन में शामिल होते हैं और वे किसी भी बहुपक्षीय व्यापार समझौते के तहत आने वाले सभी मामलों पर निर्णय ले सकते हैं।
समझौते के बारे में:
- परिचय:
- यह समझौता वैश्विक मछली स्टॉक की बेहतर सुरक्षा के लिये अवैध, गैर-सूचित और अनियमित तरीके (IUU) से मछली पकड़ने के मामले में सब्सिडी पर रोक लगाएगा।
- यह समझौता गहरे समुद्री क्षेत्र जो कि तटीय देशों और क्षेत्रीय मत्स्य प्रबंधन संगठनों/व्यवस्थाओं के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं, में मछली पकड़ने के मामले में भी सब्सिडी प्रदान करने पर रोक लगाता है।
- संक्रमण अवधि भत्ता:
- विशेष और विभेदक उपचार (S&DT) के तहत विकासशील देशों तथा अल्प विकसित देशों (LDC) को इस समझौते के लागू होने की तारीख से दो साल की संक्रमण अवधि की अनुमति दी गई है।
- निर्दिष्ट अवधि के लिये विनियम को लागू करने हेतु उनका कोई दायित्व नहीं होगा।
- विशेष और विभेदक उपचार (S&DT) के तहत विकासशील देशों तथा अल्प विकसित देशों (LDC) को इस समझौते के लागू होने की तारीख से दो साल की संक्रमण अवधि की अनुमति दी गई है।
- छूट प्राप्त क्षेत्र:
- WTO के किसी सदस्य पर अपने पोत या प्रचालक को सब्सिडी प्रदान करने या बनाए रखने के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है, जब तक कि वह गैर-सूचित और अनियमित तरीके नहीं अपना रहा है।
- जब तक इस तरह की सब्सिडी को जैविक रूप से टिकाऊ स्तर पर स्टॉक के पुनर्निर्माण के लिये लागू किया जाता है, तब तक मछली पकड़ने हेतु सब्सिडी प्रदान करने पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है।
- लाभ:
- यह गैर-सूचित और अनियमित तरीके से मछली पकड़ने में लगे जहज़ों या ऑपरेटरों को दी जाने वाली सब्सिडी को समाप्त कर देगा।
- यह बड़े पैमाने पर गैर-सूचित और अनियमित तरीके से मछली पकड़ने की जाँच करेगा जो भारत जैसे तटीय देशों को मत्स्य संसाधनों से वंचित करेगा, जिसका हमारे मछली पकड़ने वाले समुदायों की आजीविका पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पडेगा।
भारत का स्टैंड
- इतनी बड़ी आबादी और मात्स्यिकी संसाधनों का सतत् दोहन करने में अनुशासित राष्ट्रों में से एक होने के बावजूद भारत सबसे कम मात्स्यिकी सब्सिडी देने वाले देशों में से एक है।
- भारत अन्य उन्नत तरीकों से मछली पकड़ने वाले देशों की तरह संसाधनों का दोहन नहीं करता है और भारत का मत्स्य पालन क्षेत्र मुख्य रूप से कई मिलियन छोटे पैमाने के पारंपरिक मछुआरों पर निर्भर करता है।
- इसलिये विश्व व्यापार संगठन के वे सदस्य जिन्होंने अतीत में भारी सब्सिडी प्रदान की है और औद्योगिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने के कार्य में लगे हुए हैं तथा जो मछली के स्टॉक में कमी के लिये ज़िम्मेदार है, उन्हें ' प्रदूषणकर्त्ता भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle)' एवं 'सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों' के आधार पर सब्सिडी को प्रतिबंधित करने हेतु और अधिक दायित्वों को लेना चाहिये।
- इसलिये विश्व व्यापार संगठन के वे सदस्य जिन्होंने अतीत में भारी सब्सिडी प्रदान की है और औद्योगिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर मछली पकड़ने के कार्य में लगे हुए हैं तथा जो मछली के स्टॉक में कमी के लिये ज़िम्मेदार है, उन्हें ' प्रदूषणकर्त्ता भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle)' एवं 'सामान्य लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों' के आधार पर सब्सिडी को प्रतिबंधित करने हेतु और अधिक दायित्वों को लेना चाहिये।
- परिचय:
- समुद्री, तटीय और अंतर्देशीय फिशरीज़ क्षेत्रों में जलीय जीवों का कब्ज़ा है।
- जलीय कृषि के साथ-साथ समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन, प्रसंस्करण, विपणन तथा वितरण दुनिया भर में लाखों लोगों को भोजन, पोषण व आय का स्रोत प्रदान करते हैं।
- कई लोगों के लिये यह उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।
- वैश्विक मत्स्य संसाधनों की स्थिरता के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक अवैध, असूचित और अनियमित रूप से मछली पकड़ना है।
- भारतीय परिदृश्य:
- भारत विश्व में जलीय कृषि के माध्यम से मछली उत्पादक दूसरा प्रमुख देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 7.56% हिस्सा है और देश के सकल मूल्यवर्द्धित (GVA) में लगभग 1.24% और कृषि GVA में 7.28% से अधिक का योगदान देता है।
- मत्स्य पालन और जलीय कृषि लाखों लोगों के लिये भोजन, पोषण, आय और आजीविका का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।
- भारत का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक 22 मिलियन मीट्रिक टन मछली उत्पादन करना है।
- मत्स्य पालन क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में तीन बड़े परिवर्तन देखे हैं:
- अंतर्देशीय जलीय कृषि का विकास, विशेष रूप से मीठे पानी की जलीय कृषि।
- मछली पकड़ने में मशीनीकरण का विकास।
- खारे पानी के झींगा जलीय कृषि की सफल शुरुआत।
- संबंधित सरकारी पहल:
- फिशिंग हार्बर:
- पाँच प्रमुख फिशिंग हार्बर (कोच्चि, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप, पेटुआघाट) को आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित करना।
- समुद्री शैवाल पार्क:
- तमिलनाडु में बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क एक हब और स्पोक मॉडल पर विकसित गुणवत्तापूर्ण समुद्री शैवाल आधारित उत्पादों के उत्पादन का केंद्र होगा।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना:
- यह 15 लाख मछुआरों, मत्स्य पालकों आदि को प्रत्यक्ष रोज़गार देने का प्रयास है जो अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसरों के रूप में इस संख्या का लगभग तीन गुना है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक मछुआरों, मत्स्य पालकों और मत्स्य श्रमिकों की आय को दोगुना करना है।
- ‘पाक बे’ योजना:
- ‘डायवर्सिफिकेशन ऑफ ट्राउल फिशिंग बोट्स फ्रॉम पाक स्ट्रेट्स इनटू डीप सी फिशिंग बोट्स’ नामक यह योजना वर्ष 2017 में ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ के तौर पर लॉन्च की गई थी।
- इसे ‘ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम’ के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था।
- ‘डायवर्सिफिकेशन ऑफ ट्राउल फिशिंग बोट्स फ्रॉम पाक स्ट्रेट्स इनटू डीप सी फिशिंग बोट्स’ नामक यह योजना वर्ष 2017 में ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ के तौर पर लॉन्च की गई थी।
- समुद्री मत्स्य पालन विधेयक, 2021:
- इस विधेयक में ‘मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958’ के तहत पंजीकृत जहाज़ों को ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) में मछली पकड़ने के लिये लाइसेंस देने का प्रस्ताव शामिल है।
- इस विधेयक में ‘मर्चेंट शिपिंग एक्ट, 1958’ के तहत पंजीकृत जहाज़ों को ‘अनन्य आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) में मछली पकड़ने के लिये लाइसेंस देने का प्रस्ताव शामिल है।
- फिशिंग हार्बर:
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. 'एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (Agreement on Agriculture)' एग्रीमेंट ऑन एप्लीकेशन ऑफ सैनिटरी एंड फाइटोसैनिटरी मेज़र्स (Agreement on Application of Sanitary and Phytosanitary Measures)' और 'पीस क्लॉज़ (Peace Clause)' शब्द प्रायः समाचारों में किसके मामलों के संदर्भ में आते हैं? (a) खाद्य और कृषि संगठन उत्तर: (c) व्याख्या:
प्रश्न. यदि 'व्यापार युद्ध' के वर्तमान परिदृश्य में विश्व व्यापार संगठन (WTO) को जिंदा बने रहना है, तो विशेष रूप से भारत के हित को ध्यान में रखते हुए इसके सुधार के कौन-कौन से प्रमुख क्षेत्र हैं? (2018, मुख्य परीक्षा) |
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
भारत में गर्भपात कानून
प्रिलिम्स के लिये:गर्भपात कानून, गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम MTP (2021)। मेन्स के लिये:गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम MTP एक्ट (2021) और इसका महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अविवाहित महिलाओं को 24 सप्ताह में गर्भपात की अनुमति दी थी, लेकिन हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP) अधिनियम के प्रावधानों का हवाला देते हुए ऐसें मामले में गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
दिल्ली उच्च न्यायालय की स्थिति
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम अधिनियम ने केवल विवाहित महिलाओं को 20 सप्ताह के बाद गर्भपात की अनुमति दी थी, इसलिये अविवाहित महिलाओं को गर्भपात कराने की अनुमति नहीं होगी।
- इसमें गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति नियम, 2003 के नियम 3B का उल्लेख है, क्योंकि यह महिला की वैवाहिक स्थिति में बदलाव की बात करता है और इसमें लिव-इन रिलेशनशिप तथा अविवाहित महिलाएँ शामिल नहीं थी।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
- पीठ ने कहा कि वर्ष 2021 में संशोधित MTP अधिनियम के प्रावधानों की धारा 3 के स्पष्टीकरण में “पति” के बजाय “पार्टनर” शब्द शामिल है, जो संसद की मंशा को दर्शाता है कि यह केवल वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न स्थितियों को सीमित करने के लिये नहीं था।
- इसने यह भी कहा कि याचिकाकर्त्ता को इस आधार पर कानून के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित थी और ऐसा करना कानून के 'उद्देश्य एवं भावना' के विपरीत होगा।
- इसके अलावा पीठ ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक को महिला की जाँच करने के लिये दो डॉक्टरों का एक मेडिकल बोर्ड स्थापित करने का निर्देश दिया (MTP अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार) जिसका कार्य यह निर्धारित करना है कि यह सुरक्षित है या नहीं तथा यह भी सुनिश्चित करना है कि गर्भपात करने पर माँ की जान को खतरा न हो।
- अगर उनकी राय है कि ऐसा करना सुरक्षित है, तो AIIMS उस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की अनुमति दे सकता है।
भारतीय संदर्भ में गर्भपात कानून:
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- 1960 के दशक तक भारत में गर्भपात अवैध था और ऐसा करने पर एक महिला के लिये भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 312 के तहत तीन वर्ष की कैद और/अथवा ज़ुर्माने का प्रावधान किया गया था।
- 1960 के दशक के मध्य में सरकार ने शांतिलाल शाह समिति का गठन किया और डॉ. शांतिलाल शाह की अध्यक्षता वाले समूह को गर्भपात के मामले की जाँच करने तथा यह तय करने के लिये कहा गया कि क्या भारत को इसके लिये एक कानून की आवश्यकता है अथवा नहीं।
- शांतिलाल शाह समिति की रिपोर्ट के आधार पर लोकसभा और राज्यसभा में एक चिकित्सकीय समापन विधेयक पेश किया गया था और अगस्त 1971 में इसे संसद द्वारा पारित किया गया था।
- 1 अप्रैल, 1972 को गर्भ का चिकित्सकीय समापन (MPT) अधिनियम, 1971 लागू हुआ जो जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत में लागू हुआ।
- इसके अलावा भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 312, गर्भवती महिला की सहमति से गर्भपात किये जाने पर भी स्वेच्छा से "गर्भपात का कारण" अपराध है, सिवाय इसके कि जब गर्भपात महिला के जीवन को बचाने के लिये किया जाता है।
- इसका अर्थ यह है कि स्वयं महिला पर या चिकित्सक सहित किसी अन्य व्यक्ति पर गर्भपात का मुकदमा चलाया जा सकता है।
- परिचय:
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP) 1971, एक्ट ने दो चरणों में एक चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी:
- गर्भधारण के 12 सप्ताह बाद तक के गर्भपात के लिये एक डॉक्टर की राय ज़रूरी थी।
- इस कानून के अनुसार, कानूनी तौर पर गर्भपात केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, जैसे- जब महिला की जान को खतरा हो, महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को खतरा हो, बलात्कार के कारण गर्भधारण हुआ हो, पैदा होने वाले बच्चे का गर्भ में उचित विकास न हुआ हो और उसके विकलांग होने का डर हो। 12 से 20 सप्ताह के बीच के गर्भधारण के संदर्भ में इन सभी बातों का निर्धारण करने के लिये दो डॉक्टरों की राय आवश्यक होती थी।
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम (MTP) 1971, एक्ट ने दो चरणों में एक चिकित्सक द्वारा गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी:
- हाल के संशोधन:
- वर्ष 2021 में संसद ने 20 सप्ताह तक के गर्भधारण के लिये एक डॉक्टर की सलाह के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने के लिये कानून में बदलाव किया।
- संशोधित कानून के तहत 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये दो डॉक्टरों की राय की आवश्यकता होती है।
- इसके अलावा 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिये, नियम महिलाओं की सात श्रेणियों को निर्दिष्ट करते हैं जो MTP अधिनियम के तहत निर्धारित नियमों की धारा 3 बी के तहत समाप्ति की मांग करने के लिये पात्र होंगी।
- यौन हमले या बलात्कार की स्थिति में
- अवयस्क
- विधवा और तलाक होने जैसी परिस्थितियों अर्थात् वैवाहिक स्थिति में बदलाव के समय की गर्भावस्था
- शारीरिक रूप से विकलांग महिलाएँ (विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत निर्धारित मानदंडों के अनुसार प्रमुख विकलांगता)
- मानसिक मंदता सहित मानसिक रूप से बीमार महिलाएँ
- भ्रूण की विकृति जिसमें जीवन के साथ असंगत होने का पर्याप्त जोखिम होता है या यदि बच्चा पैदा होता है तो वह गंभीर रूप से विकलांग, शारीरिक या मानसिक असामान्यताओं से पीड़ित हो सकता है,
- मानवीय आधार या आपदाओं या आपात स्थितियों में गर्भावस्था वाली महिलाएँ।
- वर्ष 2021 में संसद ने 20 सप्ताह तक के गर्भधारण के लिये एक डॉक्टर की सलाह के आधार पर गर्भपात की अनुमति देने के लिये कानून में बदलाव किया।
MTP अधिनियम से संबंधित चुनौतियाँ:
- जबकि कानून गर्भवती महिला की वैवाहिक स्थिति में उसके पति या पत्नी के साथ तलाक और विधवापन में बदलाव को मान्यता देता है, लेकिन यह अविवाहित महिलाओं की स्थिति को संबोधित नहीं करता है।
- यह उच्च विनियमित प्रक्रिया है जिसके तहत कानून गर्भवती महिला की निर्णय लेने की शक्ति को मान्यता प्राप्त मेडिकल प्रैक्टिशनर (RMP) को हस्तांतरित करता है और यह RMP के विवेक पर निर्भर है कि गर्भपात किया जाना चाहिये या नहीं।
आगे की राह
- गर्भपात पर भारत के कानूनी ढाँचे को काफी हद तक प्रगतिशील माना जाता है, खासकर संयुक्त राज्य अमेरिका सहित कई देशों की तुलना में जहाँ गर्भपात गंभीर रूप से प्रतिबंधित हैं।
- इसके अलावा सार्वजनिक नीति निर्माण पर गंभीरता से पुनर्विचार करने की आवश्यकता है, साथ ही सभी हितधारकों को महिलाओं और उनके प्रजनन अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिये शामिल करने की आवश्यकता है, न कि उन चिकित्सकों पर नियंत्रण करना है जो गर्भपात की सेवा प्रदान करते हैं।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
नीट और तमिलनाडु का विरोध
प्रिलिम्स के लिये:नीट, केंद्र और राज्य की शक्तियाँ मेन्स के लिये:केंद्रीय कानूनों का उल्लंघन करने वाले राज्यों के परिणाम |
चर्चा में क्यों?
NEET के खिलाफ कानूनी लड़ाई तमिलनाडु द्वारा आज भी जारी है सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 में NEET से और छूट देने से इनकार कर दिया था।
राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (NEET):
- परिचय:
- राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (NEET) जिसे पहले अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT) भी कहा जाता था, भारतीय मेडिकल और डेंटल कॉलेज में MBBS एवं BDS प्रोग्राम के लिये योग्यता परीक्षा है।
- इसे नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित किया जाता है।
- राष्ट्रीय पात्रता प्रवेश परीक्षा (NEET) जिसे पहले अखिल भारतीय प्री-मेडिकल टेस्ट (AIPMT) भी कहा जाता था, भारतीय मेडिकल और डेंटल कॉलेज में MBBS एवं BDS प्रोग्राम के लिये योग्यता परीक्षा है।
- ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य:
- भारतीय चिकित्सा परिषद (MCI) (राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा प्रतिस्थापित) ने वर्ष 2009 में NEET का प्रस्ताव रखा था।
- अगले वर्ष MCI ने एक सामान्य प्रवेश परीक्षा के माध्यम से देश में MBBS और BDS प्रवेश को विनियमित करने के लिये एक अधिसूचना जारी की।
- वर्ष 2013 में सर्वोच्च न्यायालय ने NEET को असंवैधानिक करार दिया था और निर्णय दिया कि MCI के पास मेडिकल/डेंटल कॉलेजों में प्रवेश को विनियमित करने के लिये अधिसूचना जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।
- अप्रैल 2016 में न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे (जिन्होंने वर्ष 2013 में असहमति का फैसला सुनाया) की अध्यक्षता वाली पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने वर्ष 2013 के अपने निर्णय को दोहराया और अंततः NEET के संचालन को अनिवार्य कर दिया।
- कुछ हितधारकों के अनुरोधों के बाद केंद्र सरकार ने मई 2016 में एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें राज्य द्वारा संचालित मेडिकल कॉलेजों को एक वर्ष के लिये सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के दायरे से छूट दी गई थी।
- NEET को वर्ष 2016 में सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के आधार पर पूरे देश में लागू किया गया था।
- तमिलनाडु सरकार ने शुरू से ही प्रवेश परीक्षा का पुरज़ोर विरोध किया और शुरूआत में नीट आधारित दाखिले से छूट मिल गई।
- तमिलनाडु सरकार ने शुरू से ही प्रवेश परीक्षा का पुरज़ोर विरोध किया और शुरूआत में नीट आधारित दाखिले से छूट मिल गई।
तमिलनाडु के विरोध का कारण:
- तमिलनाडु ने NEET आधारित प्रवेश प्रक्रिया के प्रभावों का अध्ययन करने के लिये उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए के राजन की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
- न्यायमूर्ति ए के राजन ने बताया कि:
- मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिये एकमात्र मानदंड के रूप में NEET की शुरुआत ने उन सीटों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जो ऐतिहासिक रूप से तमिलनाडु बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एग्जामिनेशन (TNBSE) उत्तीर्ण करने वाले छात्रों द्वारा प्राप्त किये गए थे।
- इसने केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के छात्रों के लाभ के लिये काम किया।
- NEET के बाद मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेने वाले अधिकांश छात्र कोचिंग लिये हुए थे।
- किसी विषय को सीखने के विपरीत कोचिंग छात्रों को केवल विशेष परीक्षा में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने के लिये तैयार करने पर केंद्रित होती है।
- NEET की शुरुआत यह सुनिश्चित करने के लिये की गई थी कि केवल मेडिकल सीटों की तलाश करने वाले मेधावी छात्रों को ही मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिले और साथ ही कैपिटेशन फीस जमा करने की प्रथा को समाप्त किया जाए, जिसने भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया।
- हालाँकि यह मानता है कि सभी उम्मीदवार एक ही स्थिति से और समान बाधाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
- राजन की रिपोर्ट इसे एक त्रुटिपूर्ण दृष्टिकोण के रूप में उजागर करती है।
- हालाँकि यह मानता है कि सभी उम्मीदवार एक ही स्थिति से और समान बाधाओं के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं।
- मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश के लिये एकमात्र मानदंड के रूप में NEET की शुरुआत ने उन सीटों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है जो ऐतिहासिक रूप से तमिलनाडु बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एग्जामिनेशन (TNBSE) उत्तीर्ण करने वाले छात्रों द्वारा प्राप्त किये गए थे।
- न्यायमूर्ति ए के राजन ने बताया कि:
- राजनेताओं का तर्क
- NEET परीक्षा के दोहराव के कारण मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पाने वाले छात्रों का प्रतिशत वर्ष 2016-17 के 47% से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 71.42% हो गया।
- दूसरी या तीसरी बार परीक्षा देना और प्रतिष्ठित मेडिकल सीट प्राप्त करने के लिये वित्तीय एवं सामाजिक संसाधनों की आवश्यकता होती है।
- यह गरीब सामाजिक पृष्ठभूमि वाले परिवारों की पहुँच से बहुत दूर है।
NEET में संभावित चुनौतियाँ:
- कोचिंग उद्योग:
- इससे NEET छात्रों के उच्च माध्यमिक शिक्षा के प्रयासों पर बोझ पड़ता है, साथ ही यह कई अरब डॉलर के कोचिंग संस्थानों को बढ़ावा दे रहा है।
- इसने उच्च माध्यमिक स्तर पर विषयों में महारत हासिल करने के बजाय 'बी-ऑल-एंड-ऑल' परीक्षा को पास करने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।
- इससे NEET छात्रों के उच्च माध्यमिक शिक्षा के प्रयासों पर बोझ पड़ता है, साथ ही यह कई अरब डॉलर के कोचिंग संस्थानों को बढ़ावा दे रहा है।
- संचालन
- प्रतिरूपण के मामलों की रिपोर्ट के साथ NEET के संचालन में विसंगतियाँ रही हैं।
- हाल ही में आयोजित NEET परीक्षा में भी CBI ने प्रतिरूपण रैकेट का खुलासा किया और आठ लोगों को गिरफ्तार किया।
- इस तरह के रैकेट/गिरोह योग्यता की अवधारणा को ही चुनौती देते हैं।
- आर्थिक असमानता:
- यद्यपि इसने राज्य द्वारा संचालित संस्थानों में योग्यता आधारित प्रवेश सुनिश्चित की है जहाँ फीस कम है।
- समृद्ध आर्थिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार NEET में खराब अंक प्राप्त करके भी डीम्ड विश्वविद्यालयों और निजी कॉलेजों में गरीब, निम्न एवं मध्यम वर्ग के परिवारों से संबंधित मेधावी उम्मीदवारों को छात्र बाहर कर रहे हैं।
- समृद्ध आर्थिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार NEET में खराब अंक प्राप्त करके भी डीम्ड विश्वविद्यालयों और निजी कॉलेजों में गरीब, निम्न एवं मध्यम वर्ग के परिवारों से संबंधित मेधावी उम्मीदवारों को छात्र बाहर कर रहे हैं।
- यद्यपि इसने राज्य द्वारा संचालित संस्थानों में योग्यता आधारित प्रवेश सुनिश्चित की है जहाँ फीस कम है।
वर्तमान स्थिति:
- राष्ट्रपति ने वर्ष 2017 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित दो विधेयकों को मंज़ूरी देने से इनकार कर दिया, जिसमें स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री मेडिकल पाठ्यक्रमों के लिये NEET आधारित प्रवेश से छूट की मांग की गई थी।
- वर्ष 2021 में तमिलनाडु विधानसभा द्वारा केवल बारहवीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा के अंकों के आधार पर MBBS/BDS पाठ्यक्रमों हेतु छात्रों को प्रवेश देने के लिये एक नया विधेयक अपनाया गया था।
- फरवरी 2022 में राज्यपाल द्वारा विधेयक वापस किये जाने के बाद विधेयक को सदन द्वारा फिर से अपनाया गया और राज्यपाल को वापस भेज दिया गया।
- उसके बाद विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिये गृह मंत्रालय (MHA) को भेज दिया गया है।
- गृह राज्यमंत्री ने लोकसभा को सूचित किया कि नीट विरोधी विधेयक पर तमिलनाडु सरकार से स्पष्टीकरण मांगा गया है।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और आयुष मंत्रालय ने विधेयक पर टिप्पणियाँ प्रस्तुत की थीं जिन्हें तमिलनाडु राज्य सरकार के साथ उसकी टिप्पणियों और स्पष्टीकरणों के लिये साझा किया गया है।
स्रोत: द हिंदू
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
मंकीपॉक्स
प्रिलिम्स के लिये:वायरल जूनोसिस, मंकीपॉक्स, स्मॉल पॉक्स। मेन्स के लिये:जूनोटिक रोग, स्वास्थ्य। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल की घोषणा करते हुए मंकीपॉक्स वायरस को लेकर गंभीर चेतावनी जारी की है।
- अब तक (वर्ष 2022 तक) विश्व में वायरस के 16,000 से अधिक मामले रिपोर्ट किये गए हैं जो कभी अफ्रीका तक ही सीमित थे।
वैश्विक स्वास्थ्य हेतु आपातकाल:
- परिचय:
- वैश्विक आपातकाल घोषित करने का मतलब है कि मंकीपॉक्स का प्रकोप एक असाधारण घटना है जो अधिक देशों में फैल सकता है और इसके लिये समन्वित वैश्विक प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।
- स्वास्थ्य आपातकाल के मानदंड:
- वायरस गैर-स्थानिक हो गया है। वायरस का प्रसार उन देशों में तेज़ी से हुआ है जहाँ यह पहले कभी नहीं देखा गया।
- WHO के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय चिंता का सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित करने के तीन मानदंडों को पूरा किया गया है।
- इस तरह की घोषणा के लिये तीन मानदंड हैं:
- यह "असाधारण घटना" है,
- यह बीमारी के अंतर्राष्ट्रीय प्रसार के माध्यम से अन्य देशों के लिये "सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम को बढ़ाता है",
- इसके लिये "संभावित रूप से समन्वित अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।"
- इस तरह की घोषणा के लिये तीन मानदंड हैं:
- एक महीने के भीतर इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या पाँच गुना बढ़ गई है।
- वैज्ञानिक सिद्धांत, साक्ष्य और अन्य प्रासंगिक जानकारी (कई अज्ञात छोड़कर) वर्तमान में अपर्याप्त है।
- मानव स्वास्थ्य के लिये जोखिम के साथ ही इसके अंतर्राष्ट्रीय प्रसार और अंतर्राष्ट्रीय यातायात में हस्तक्षेप की संभावना है।
- पूर्व आपातकाल की घोषणा:
- WHO ने पहले सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट जैसे कि कोविड -19 महामारी, वर्ष 2014 में पश्चिम अफ्रीकी इबोला का प्रकोप, वर्ष 2016 में लैटिन अमेरिका में ज़ीका वायरस और पोलियो के उन्मूलन के लिये चल रहे प्रयास हेतु आपात स्थिति की घोषणा की थी।
- आपातकालीन घोषणा ज़्यादातर वैश्विक संसाधनों और प्रकोप पर ध्यान आकर्षित करने के लिये मध्यस्थ के रूप में कार्य करती है।
मंकीपॉक्स
- परिचय:
- मंकीपॉक्स एक दुर्लभ, वायरल जूनोटिक बीमारी है जिसमें चेचक के समान लक्षण प्रदर्शित होते हैं, हालाँकि यह चिकित्सकीय रूप से कम गंभीर है।
- मंकीपॉक्स का संक्रमण पहली बार वर्ष 1958 में अनुसंधान के लिये रखे गए बंदरों की कॉलोनियों में चेचक जैसी बीमारी के दो प्रकोपों के बाद खोजा गया जिसे 'मंकीपॉक्स' नाम दिया गया।
- लक्षण:
- इससे संक्रमित लोगों में चिकन पॉक्स जैसे दिखने वाले दाने निकल आते हैं लेकिन मंकीपॉक्स के कारण होने वाला बुखार, अस्वस्थता और सिरदर्द आमतौर पर चिकन पॉक्स के संक्रमण की तुलना में अधिक गंभीर है।
- रोग के प्रारंभिक चरण में मंकीपॉक्स को चेचक से अलग किया जा सकता है क्योंकि इसमें लिम्फ ग्रंथि (Lymph Gland) बढ़ जाती है।
- संचरण:
- मंकीपॉक्स वायरस ज़्यादातर जंगली जानवरों जैसे- कृन्तकों और प्राइमेट्स से लोगों के बीच फैलता है, लेकिन मानव-से-मानव संचरण भी होता है।
- संक्रमित जानवरों का अपर्याप्त पका हुआ मांस खाना भी एक जोखिम कारक होता है।
- मानव-से-मानव संचरण का कारण संक्रमित श्वसन पथ स्राव, संक्रमित व्यक्ति की त्वचा के घावों से या रोगी या घाव से स्रावित तरल पदार्थ द्वारा तथा दूषित वस्तुओं के निकट संपर्क के कारण हो सकता है।
- इसका संचरण टीकाकरण या प्लेसेंटा (जन्मजात मंकीपॉक्स) के माध्यम से भी हो सकता है।
- भेद्यता:
- यह तेज़ी से फैलता है और संक्रमित होने पर दस में से एक व्यक्ति की मौत का कारण बन सकता है।
- उपचार और टीका:
- मंकीपॉक्स के संक्रमण को रोकने के लिये कोई विशिष्ट उपचार या टीका उपलब्ध नहीं है।
- WHO द्वारा मंकीपॉक्स को लेकर वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किये जाने के बाद यूरोपीय संघ ने मंकीपॉक्स के इलाज के लिये चेचक के टीके, इम्वेनेक्स की अनुशंसा की है।
- WHO द्वारा मंकीपॉक्स को लेकर वैश्विक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किये जाने के बाद यूरोपीय संघ ने मंकीपॉक्स के इलाज के लिये चेचक के टीके, इम्वेनेक्स की अनुशंसा की है।
- मंकीपॉक्स के संक्रमण को रोकने के लिये कोई विशिष्ट उपचार या टीका उपलब्ध नहीं है।
विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. कोविड-19 महामारी के दौरान वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने में WHO की भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2020, मेन्स) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
5जी और फाइबरीकरण
प्रिलिम्स के लिये:5जी, फाइबरीकरण, ऑप्टिकल फाइबर के घटक, संबंधित सरकारी पहल मेन्स के लिये:अर्थव्यवस्था में इंटरनेट का महत्त्व , इंटरनेट का विकास, फाइबरीकरण में चुनौतियाँ, सरकार की पहल |
चर्चा में क्यों?
भारत देश में 5जी सेवाओं को शुरू करने के लिये ऑफ एयरवेव्स की नीलामी करने की तैयारी कर रहा है।
- इस तरह के रोलआउट के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे हेतु मौजूदा रेडियो टॉवरों को ऑप्टिकल-फाइबर केबल के माध्यम से जोड़ा जाना आवश्यक है।
ऑप्टिकल फाइबर:
- परिचय:
- ऑप्टिकल फाइबर डिजिटल अवसंरचना की रीढ़ है, डेटा पतले फाइबर के लंबे स्ट्रैंड के माध्यम से यात्रा करने वाले प्रकाश-स्पंदों (Light Pulses) द्वारा प्रेषित होता है।
- फाइबर कम्युनिकेशन में संचरण के लिये धातु के तारों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि इसमें सिग्नल कम हानि के साथ यात्रा करते हैं।
- ऑप्टिकल फाइबर पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Reflection- TIR) के सिद्धांत पर कार्य करता है।
- प्रकाश किरणों का उपयोग बड़ी मात्रा में डेटा संचारित करने के लिये किया जा सकता है (बिना किसी मोड़ के लंबे सीधे तार के मामले में)।
- तार में मोड़ वाले ऑप्टिकल केबलों को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि वे सभी प्रकाश किरणों को अंदर की ओर मोड़ते हैं (TIR का उपयोग कर)।
- लाभ:
- हाई स्पीड:
- फाइबर अधिक बैंडविड्थ प्रदान करता है और 10 Gbps तथा उससे अधिक तक मानकीकृत प्रदर्शन करता है। तांबे के उपयोग के साथ इसे प्राप्त कर पाना असंभव है।
- अधिक बैंडविड्थ का मतलब है कि फाइबर तांबे के तार की तुलना में कहीं अधिक दक्षता के साथ अधिक सूचनाओं का वहन कर सकता है।
- ट्रांसमिशन की रेंज:
- चूँकि फाइबर-ऑप्टिक केबल्स में डेटा प्रकाश के रूप में गुज़रता है, ट्रांसमिशन के दौरान अत्यंत कम सिग्नल हानि होती है और डेटा उच्च गति से तथा अधिक दूरी तक स्थानांतरित हो सकता है।
- व्यतिकरण के प्रति अतिसंवेदनशील नहीं:
- फाइबर ऑप्टिक केबल कॉपर केबल की तुलना में शोर और विद्युत-चुंबकीय व्यतिकरण के प्रति कम संवेदनशील है।
- यह वास्तव में इतना कुशल है कि ज़्यादातर मामलों में लगभग 99.7% सिग्नल राउटर तक पहुँचता है।
- सहनशीलता:
- फाइबर-ऑप्टिक केबल कॉपर केबल को प्रभावित करने वाले कई पर्यावरणीय कारकों से पूर्णतया प्रतिरक्षित है।
- केबल का कोर भाग काँच से बना होता है, जो एक इन्सुलेटर का कार्य करता है, इसलिये इसमें विद्युत प्रवाह प्रवाहित नहीं हो सकता है।
- हाई स्पीड:
फाइबरीकरण:
- परिचय:
- ऑप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से रेडियो टॉवरों को एक-दूसरे से जोड़ने की प्रक्रिया को फाइबरीकरण कहा जाता है।
- बैकहॉल बड़े परिवहन का एक घटक है जो पूरे नेटवर्क में डेटा ले जाने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह नेटवर्क के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जो नेटवर्क के कोर को एज (edge) से जोड़ता है।
- उपभोक्ताओं और व्यवसायों को बेहतर कवरेज प्रदान करने के लिये मोबाइल टॉवरों का घनत्व बढ़ाना आवश्यक है।
- फाइबरीकरण में चुनौतियाँँ:
- संसाधन:
- फाइबरीकरण के लक्षित स्तर तक पहुँचने के लिये भारत को 70% टॅावरों को फाइबर केबल से जोड़ने के लिये लगभग 2.2 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता है।
- अगले चार वर्षों में 15 लाख टावर लगाने के लिये करीब 2.5 लाख करोड़ रुपए की ज़रूरत होगी।
- फाइबरीकरण के लक्षित स्तर तक पहुँचने के लिये भारत को 70% टॅावरों को फाइबर केबल से जोड़ने के लिये लगभग 2.2 लाख करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता है।
- मांग:
- भारतनेट और स्मार्ट सिटीज़ जैसे सरकारी कार्यक्रम फाइबर को बिछाने की मांग को बढ़ाते हैं, जिससे एक पूर्ण टॉवर फाइबराइजेशन की आवश्यकता होती है।
- भारत ने वर्ष 2020 में देश के हर गाँव को 1,000 दिनों में ऑप्टिकल फाइबर केबल (OFC) से जोड़ने का लक्ष्य रखा था।
- इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये केबलों को एक दिन में 1,251 किमी. की गति से बिछाया जाना चाहिये, जो वर्तमान की 350 किमी. प्रति दिन की औसत गति के लगभग 3.6 गुना है।
- राइट ऑफ़ वे (RoW) नियम:
- भारतीय टेलीग्राफ राइट ऑफ वे (RoW), नियम 2016 को दूरसंचार विभाग (DoT), भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में अधिसूचित किया गया था।
- इसके नियमों का उद्देश्य देश में कहीं भी ओवरग्राउंड टेलीग्राफ लाइन (OTL) की स्थापना के लिये सांकेतिक एकमुश्त मुआवजा और एक समान प्रक्रिया को शामिल करना है।
- जबकि सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को इन नियमों को लागू करने की आवश्यकता है, वे पूर्ण संरेखण में नहीं हैं और अभी भी संरेखित करने के लिये कुछ संशोधनों की आवश्यकता है।
- कई ज़िलों और स्थानीय निकायों ने उन संबंधित राज्यों में अधिसूचित RoW नीतियों के लिये सहमति नहीं दी है और RoW नियमों, 2016 के साथ संरेखित राज्य RoW नीतियों को अधिभावी करते हुए अपने स्वयं के उपनियमों का पालन कर रहे हैं।
- इसके नियमों का उद्देश्य देश में कहीं भी ओवरग्राउंड टेलीग्राफ लाइन (OTL) की स्थापना के लिये सांकेतिक एकमुश्त मुआवजा और एक समान प्रक्रिया को शामिल करना है।
- भारतीय टेलीग्राफ राइट ऑफ वे (RoW), नियम 2016 को दूरसंचार विभाग (DoT), भारत सरकार द्वारा वर्ष 2016 में अधिसूचित किया गया था।
- संसाधन:
फाइबराइजेशन में भारत की स्थिति:
- ऑप्टिकल फाइबर और केबल में विशेषज्ञता वाली एक प्रौद्योगिकी कंपनी STL के अनुमान के मुताबिक, 5जी में बदलाव के लिये भारत को कम-से-कम 16 गुना ज़्यादा फाइबर की ज़रूरत है।
- पूरे भारत में फाइबर कनेक्टिविटी को अपग्रेड करने की आवश्यकता है, जो वर्तमान में भारत के केवल 30% दूरसंचार टॉवरों को जोड़ता है।
- भारत ने अप्रैल 2020 और नवंबर 2021 के बीच 132 से अधिक देशों को 138 मिलियन डॉलर के ऑप्टिकल फाइबर का निर्यात किया।
- भारतीय ऑप्टिकल फाइबर केबल की खपत वर्ष 2021 में 17 मिलियन फाइबर किमी. से बढ़कर वर्ष 2026 तक 33 मिलियन फाइबर किमी. हो जाने का अनुमान है।
- लगभग 30% मोबाइल टॉवरों में ही फाइबर कनेक्टिविटी है; इसे कम-से-कम 80% तक बढ़ाने की ज़रूरत है।
- भारत में प्रति व्यक्ति फाइबर किलोमीटर (fkm) अन्य प्रमुख बाज़ारों की तुलना में कम है।
- आदर्श रूप से एक देश को अच्छा फाइबराइजेशन सुनिश्चित करने के लिये प्रति व्यक्ति 1.3 किमी फाइबर की आवश्यकता होती है।
- जापान में 1.35, अमेरिका में 1.34 और चीन में 1.3 की तुलना में भारत का fkm सिर्फ 0.09 है।
- आदर्श रूप से एक देश को अच्छा फाइबराइजेशन सुनिश्चित करने के लिये प्रति व्यक्ति 1.3 किमी फाइबर की आवश्यकता होती है।
- ये टॉवर साइट जो फाइबर के माध्यम से जुड़ी हुई हैं उन्हें फाइबर पॉइंट ऑफ प्रेजेंस (POP) कहा जाता है।
- वर्तमान में टॉवर साइट पर ये फाइबर POP एक से पाँच Gbps की गति से डेटा को संभाल सकते हैं।
5G परिनियोजन में सैटेलाइट संचार
- चूँकि प्रसंस्करण शक्ति को केंद्रीकृत डेटा केंद्रों से उपयोगकर्त्ताओं के करीब सर्वरों तक वितरित करने की आवश्यकता होती है, उपग्रह संचार व्यापक क्षेत्रों में बड़ी संख्या में एज सर्वरों को उच्च क्षमता वाला बैकहॉल कनेक्टिविटी प्रदान कर सकता है।
- यह उन क्षेत्रों में 5जी ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी की सुविधा प्रदान कर सकता है जहाँ स्थलीय बुनियादी ढाँचे को तैनात करना संभव नहीं है जैसे दूर-दराज़ के गाँवों, द्वीपों या पहाड़ी क्षेत्रों में।
- सैटेलाइट-आधारित नेटवर्क कारों, हवाई जहाज़ों और हाई-स्पीड ट्रेनों सहित जलपोतों पर उपयोगकर्त्ताओं तक 5G ब्रॉडबैंड पहुंँचाने का एकमात्र साधन है।
- अंतरिक्ष-आधारित प्रसारण क्षमताएँ कनेक्टेड कारों के लिये दुनिया में कहीं भी ओवर-द-एयर सॉफ़्टवेयर अपडेट का समर्थन करती हैं।
- अंतरिक्ष-आधारित प्रसारण क्षमताएँ कनेक्टेड कारों के लिये दुनिया में कहीं भी ओवर-द-एयर सॉफ़्टवेयर अपडेट का समर्थन करती हैं।
आगे की राह
- उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन:
- ऑप्टिकल फाइबर के घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये सरकार को एक PLI योजना शुरू करने पर विचार करना चाहिये, जिसका उद्देश्य घरेलू इकाइयों में निर्मित ऑप्टिकल फाइबर से बढ़ती बिक्री पर कंपनियों को प्रोत्साहन देना है।
- मार्ग का अधिकार (RoW) नियम:
- गतिशक्ति संचार ऑनलाइन पोर्टल 5जी सहित दूरसंचार अवसंरचना परियोजनाओं के लिये RoW अनुमोदन के केंद्रीकरण को सक्षम कर सकता है और आगामी 5जी रोलआउट के लिये समयबद्ध तरीके से आवश्यक बुनियादी ढाँचे को तैनात करने हेतु सहायक ऑपरेटरों को सक्षम बना सकता है।
- हाल ही में DoT ने RoW नियमों को संशोधित किया, जिससे देश में एरियल ऑप्टिकल फाइबर केबल को स्थापित करना आसान हो गया।
- यह आधारभूत प्रदाताओं को स्ट्रीट लाइट पोल और ट्रैफिक लाइट पोस्ट के माध्यम से केबल ओवरहेड तैनात करने में सक्षम बना सकता है।
- फाइबरयुक्त टॉवरों में डेटा क्षमता बढ़ाने की भी ज़रूरत है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:Q. चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के प्रादुर्भाव ने ई-गवर्नेंस को सरकार का एक अविभाज्य अंग बनाने में पहल की है। चर्चा कीजिये। (2020) |