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डेली न्यूज़

  • 25 Apr, 2022
  • 56 min read
भूगोल

सागर नितल प्रसरण

प्रिलिम्स के लिये:

सागर नितल प्रसरण, प्लेट विवर्तनिकी, सर्कम-पैसिफिक बेल्ट, पैंजिया 

मेन्स के लिये:

सागर नितल प्रसरण संकल्पना और संबंधित भौगोलिक विशेषताएंँ

चर्चा में क्यों?

पिछले 19 मिलियन वर्षों के आंँकड़ों का विश्लेषण करने वाले एक अध्ययन के अनुसार, सागर नितल प्रसरण की दर (Seafloor Spreading Rates) वैश्विक स्तर पर लगभग 35% तक धीमी हो गई है।

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अध्ययन की मुख्य विशेषताएंँ:

  • इस अध्ययन हेतु शोधकर्त्ताओं द्वारा विश्व की सबसे बड़ी फैली हुई कटकों (मध्य-महासागरीय कटक) में से 18 का चयन किया।
    • कटक या पर्वत कटक एक भौगोलिक विशेषता है जिसमें पर्वतों या पहाड़ियों की एक शृंखला होती है जो एक विस्तारित दूरी के लिये निरंतर ऊंँचा शिखर बनाती हैं।
  • शोधकर्त्ताओं द्वारा समुद्री क्रस्ट पर चट्टानों में चुंबकीय रिकॉर्ड का अध्ययन कर गणना की गई कि पिछले 19 मिलियन वर्षों में समुद्री क्रस्ट कितना बना। 
    • समुद्री क्रस्ट की बेसाल्ट चट्टानों में चुंबकीय गुण विद्यमान होता है।  
    • जब मैग्मा सतह पर पहुंँच जाता है और क्रस्ट बनाने के लिये ठंडा होना शुरू हो जाता है तब इन चट्टानों का चुंबकत्व पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से प्रभावित होता है।
  • लेकिन ये रिकॉर्ड अधूरे हैं क्योंकि सबडक्शन ज़ोन में क्रस्ट नष्ट हो जाते हैं।
    • सबडक्शन ज़ोन (Subduction Zone) एक ऐसा बिंदु है जहाँ दो टेक्टोनिक प्लेट टकराती हैं तथा उनमें से एक प्लेट दूसरी के नीचे पृथ्वी के मेंटल में डूब जाती है।

सागर नितल प्रसरण:

  • वर्ष 1960 में अमेरिकी भूभौतिकीविद् हैरी एच. हेस द्वारा सागर नितल प्रसरण परिकल्पना प्रस्तावित की गई थी।
  • सागर नितल प्रसरण मैग्मा के दरार में ऊपर उठने की प्रक्रिया है क्योंकि पुरानी पपड़ी खुद को विपरीत दिशाओं में खींचती है। ठंडा समुद्री जल मैग्मा को ठंडा करता है, जिससे एक नया क्रस्ट बनता है।
  • मैग्मा के ऊपर की ओर गति करने और अंततः इसके शीतल होने में लगे लाखों वर्षों में समुद्र तल पर ऊँचे उभार/रिज (High Ridges) निर्मित हो गए हैं। 
    • हालांँकि सागर नितल क्षेत्र (Seafloor) निम्नस्खलन क्षेत्र/सबडक्शन ज़ोन (Subduction Zones) में विलीन हो जाते हैं, जहाँ महासागरीय क्रस्ट महाद्वीपों के नीचे तैरते रहते हैं तथा पुनः मेंटल में मिलकर (Mantle) फैलते हुए समुद्र नितल प्रसरण रिज पर जमा हो जाते हैं।
  • रिंग ऑफ फायर में पूर्वी प्रशांत उत्थान सागर नितल प्रसरण का एक प्रमुख स्थल है।
    • यह प्रशांत प्लेट, कोकोस प्लेट (मध्य अमेरिका के पश्चिम में), नज़का प्लेट (दक्षिण अमेरिका के पश्चिम में), उत्तर-अमेरिकी प्लेट और अंटार्कटिक प्लेट की अपसारी सीमा पर स्थित है।

सागर नितल प्रसरण में कमी का कारण:

  • महाद्वीपों पर बढ़ते पर्वत सागर नितल प्रसरण में कमी के प्रमुख कारकों में से एक हो सकते हैं (क्योंकि यह सागर नितल प्रसरण प्रतिरोध का कारण बनता है)।
    • लगभग 200 मिलियन वर्ष पहले जब पैंजिया महाद्वीप टूटने लगा था, तब किसी भी बड़ी प्लेट के टकराने की घटना या संबंधित पर्वत शृंखलाएंँ विद्यमान नहीं थीं।
    • उस समय महाद्वीप समतल थे।
  • पैंजिया महाद्वीप के खंडन/विभाजन की परिपक्व अवस्था: जैसे-जैसे पैंजिया टूटता गया, नए महासागरीय बेसिन निर्मित होते गए और अंततः खंडित महाद्वीप एक-दूसरे में टकराने लगे।
    • यह भारत और यूरेशिया, अरब प्रायद्वीप तथा यूरेशिया के साथ-साथ अफ्रीका व यूरेशिया के बीच विभाजित हुआ।
      • यह पैंजिया महाद्वीप के विभाजन एवं  फैलाव के 'परिपक्व' चरण (Mature Stage) का एक स्वाभाविक परिणाम है।
  • मेंटल कन्वेक्शन (Mantle Convection) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा पृथ्वी के कोर से ऊष्मा को सतह पर ऊपर की ओर स्थानांतरित किया जाता है।  
    • मेंटल पृथ्वी की आतंरिक परतो में से एक है जो नीचे कोर से और ऊपर क्रस्ट से घिरा होता है।
    • मेंटल कन्वेक्शन से मेंटल के गतिशील होने का पता चलता है क्योंकि यह सफेद-गर्म कोर (White-Hot Core) से भंगुर लिथोस्फीयर (Brittle Lithosphere) में ऊष्मा को स्थानांतरित करता है। 
      • मेंटल नीचे से गर्म तथा ऊपर से ठंडा होता है और इसका समग्र तापमान लंबे समय के बाद कम हो जाता है।  

सागर नितल प्रसरण का प्रभाव:

  • सागर नितल प्रसरण समुद्र के जल स्तर और कार्बन चक्र को प्रभावित करता है।
    • समुद्र का जल स्तर: 
      • सागर नितल प्रसरण के साथ कटक (रिज) का भी विस्तार होता है तथा गर्म और नए स्थलमंडल (लिथोस्फीयर) का तेज़ी से निर्माण होने के साथ कटक से तेज़ गति से दूर जाने, ठंडा होने एवं सिकुड़ने के फलस्वरूप समुद्र स्तर में वृद्धि होती है।
    • कार्बन चक्र: 
      • समुद्र तल के अधिक फैलाव के कारण ज्वालामुखी घटनाएँ बढ़ रही हैं, इससे वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि हो रही है।   

 स्रोत: डाउन टू अर्थ 


भारतीय राजव्यवस्था

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस, स्वामित्व योजना

मेन्स के लिये:

73वांँ संविधान संशोधन, स्थानीय स्वशासन।

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में देश में 24 अप्रैल, 2022 को 12वांँ राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया गया।

प्रमुख बिदु 

राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस:

  • पृष्ठभूमि:  
    • पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस वर्ष 2010 में मनाया गया था। तब से भारत में प्रत्येक वर्ष 24 अप्रैल को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।
    • यह दिन वर्ष 1992 में संविधान के 73वें संशोधन के अधिनियमन का प्रतीक है।
  • राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर प्रदान किये जाने वाले पुरस्कार:
    • पंचायती राज मंत्रालय देश भर में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाली पंचायतों/राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को उनके अच्छे कार्य के लिये पुरस्कृत करता रहा है।
    • यह पुरस्कार विभिन्न श्रेणियों के अंतर्गत दिये जाते हैं:
      • दीन दयाल उपाध्याय पंचायत शक्तीकरण पुरस्कार।
      • नानाजी देशमुख राष्ट्रीय गौरव ग्राम सभा पुरस्कार।
      • बाल सुलभ ग्राम पंचायत पुरस्कार।
      • ग्राम पंचायत विकास योजना पुरस्कार।
      • ई-पंचायत पुरस्कार (केवल राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को दिया गया)।

पंचायती राज:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 40 में पंचायतों का उल्लेख किया गया है और अनुच्छेद 246 में राज्य विधानमंडल को स्थानीय स्वशासन से संबंधित किसी भी विषय पर कानून बनाने का अधिकार दिया गया है।
  • स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र की स्थापना के लिये 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पंचायती राज संस्थान (Panchayati Raj Institution) को संवैधानिक स्थिति प्रदान की गई और उन्हें देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
  • पंचायती राज संस्थान भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन (Rural Local Self-government) की एक प्रणाली है।
    • स्थानीय स्वशासन का अर्थ है स्थानीय लोगों द्वारा निर्वाचित निकायों के माध्यम से  स्थानीय मामलों का प्रबंधन।
  • देश भर के पंचायती राज संस्थानों (PRI) में ई-गवर्नेंस को मज़बूत करने के लिये पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) ने एक वेब-आधारित पोर्टल ई-ग्राम स्वराज (e-Gram Swaraj) लॉन्च किया है।
    • यह ग्राम पंचायतों के नियोजन, लेखा और निगरानी कार्यों को एकीकृत करता है। एरिया प्रोफाइलर एप्लीकेशन, स्थानीय सरकार निर्देशिका (Local Government Directory- LGD) एवं सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (Public Financial Management System- PFMS) के साथ इसका संयोजन ग्राम पंचायत की गतिविधियों की आसान रिपोर्टिंग व ट्रैकिंग करता है।

73वें संवैधानिक संशोधन की मुख्य विशेषताएँ:

  • 73वें संवैधानिक संशोधन द्वारा संविधान में "पंचायतों" शीर्षक से भाग IX जोड़ा गया।
  • लोकतांत्रिक प्रणाली की बुनियादी इकाइयों के रूप में ग्राम सभाओं (ग्राम) को रखा गया जिसमें मतदाता के रूप में पंजीकृत सभी वयस्क सदस्य शामिल होते हैं।
  • उन राज्यों जिनकी जनसंख्या 20 लाख से कम है ,को छोड़कर ग्राम, मध्यवर्ती (प्रखंड/तालुका/मंडल) और ज़िला स्तरों पर पंचायतों की त्रि-स्तरीय प्रणाली लागू की गई है (अनुच्छेद 243B)
  • सभी स्तरों पर सीटों को प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरा जाना है [अनुच्छेद 243C(2)]
  • सीटों का आरक्षण:
    • अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिये सीटों का आरक्षण किया गया है तथा सभी स्तरों पर पंचायतों के अध्यक्ष के पद भी जनसंख्या में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अनुपात के आधार पर आरक्षित किये गए हैं।
    • उपलब्ध सीटों की कुल संख्या में से एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित हैं।
    • सभी स्तरों पर अध्यक्षों के एक-तिहाई पद भी महिलाओं के लिये आरक्षित हैं (अनुच्छेद 243D)
  • कार्यकाल: 
    • पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष निर्धारित है लेकिन कार्यकाल से पहले भी इसे भंग किया जा सकता है। 
    • पंचायतों के नए चुनाव उनके कार्यकाल की अवधि की समाप्ति या पंचायत भंग होने की तिथि से 6 महीने के भीतर ही करा लिये जाने चाहिये (अनुच्छेद 243E)
  • मतदाता सूची के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण के लिये प्रत्येक राज्य में स्वतंत्र चुनाव आयोग होंगे (अनुच्छेद 243K)
  • पंचायतों की शक्ति: पंचायतों को ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित विषयों के संबंध में आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजना तैयार करने के लिये अधिकृत किया गया है (अनुच्छेद 243G)
  • राजस्व का स्रोत (अनुच्छेद 243H): राज्य विधायिका पंचायतों को निम्नलिखित के लिये अधिकृत कर सकती है:
    • राज्य के राजस्व से बजटीय आवंटन।
    • कुछ करों के राजस्व का हिस्सा।
    • राजस्व का संग्रह और प्रतिधारण।
  • प्रत्येक राज्य में एक वित्त आयोग का गठन करना ताकि उन सिद्धांतों का निर्धारण किया जा सके जिनके आधार पर पंचायतों और नगरपालिकाओं के लिये पर्याप्त वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी (अनुच्छेद 243I)
  • छूट:
    • यह अधिनियम सामाजिक-सांस्कृतिक और प्रशासनिक कारणों से नगालैंड, मेघालय तथा मिज़ोरम एवं कुछ अन्य क्षेत्रों में लागू नहीं होता है। इन क्षेत्रों में शामिल हैं:
      • आंध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा और राजस्थान राज्यों में पाँचवीं अनुसूची के तहत सूचीबद्ध अनुसूचित क्षेत्र
      • मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र जिसके लिये ज़िला परिषदें मौजूद हैं।
      • पश्चिम बंगाल राज्य में दार्जिलिंग ज़िले के पहाड़ी क्षेत्र जिनके लिये दार्जिलिंग गोरखा हिल काउंसिल मौजूद है।
    • हालाँकि संसद ने पंचायतों के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 [The Provisions of the Panchayats (Extension to the Scheduled Areas) Act-PESA] के माध्यम से भाग 9 और 5वीं अनुसूची क्षेत्रों के प्रावधानों को बढ़ाया है।
      • वर्तमान में 10 राज्य (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना) पाँचवीं अनुसूची क्षेत्र में शामिल हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा  विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न: स्थानीय स्वशासन को एक अभ्यास के रूप में सर्वोत्तम रूप से समझाया जा सकता है। (2017) 

(a) संघवाद
(b) लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
(c)  प्रशासनिक प्रतिनिधिमंडल
(d) प्रत्यक्ष लोकतंत्र 

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)

  1. किसी भी व्यक्ति के पंचायत का सदस्य बनने के लिये निर्धारित न्यूनतम आयु 25 वर्ष है।
  2. समयपूर्व विघटन के बाद पुनर्गठित पंचायत केवल शेष अवधि के लिये ही मान्य होती है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों   
(d) न तो 1 और न ही 2 

उत्तर: (b) 

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243F के अनुसार, ग्राम पंचायत का सदस्य बनने के लिये आवश्यक न्यूनतम आयु 21 वर्ष है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारतीय संविधान की धारा 243ई(4) के अनुसार,  पंचायत की अवधि की समाप्ति से पहले एक पंचायत के विघटन पर गठित पंचायत केवल उस शेष अवधि के लिये ही कार्य करती है। अत: कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प (B) सही उत्तर है।

स्रोत: पी.आई.बी.


कृषि

10,000 FPOs का गठन और संवर्द्धन

प्रिलिम्स के लिये:

किसान उत्पादक संगठन, क्लस्टर आधारित व्यावसायिक संगठन, केंद्रीय क्षेत्र की योजना।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, कृषि विपणन, कृषि मूल्य निर्धारण, FPOs के गठन और संवर्द्धन योजना का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने 10,000 किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के गठन और संवर्द्धन की केंद्रीय क्षेत्र की योजना के तहत क्लस्टर आधारित व्यापार संगठन (CBBOs) के राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया।

10,000 FPOs के गठन और संवर्द्धन की योजना:

  • शुभारंभ
    • फरवरी, 2020 में चित्रकूट (उत्तर प्रदेश) में 6865 करोड़ रुपए के बजटीय प्रावधान के साथ  योजना का शुभारंभ किया गया
  • परिचय: 
    • वर्ष 2020-21 में FPO के गठन के लिये 2200 से अधिक एफपीओ उत्पादन क्लस्टर आवंटित किये गए हैं।
    • कार्यान्वयन एजेंसियाँ (IAs) प्रत्येक FPO को 5 वर्षों की अवधि के लिये पंजीकृत करने तथा व्यावसायिक सहायता प्रदान करने हेतु क्लस्टर-आधारित व्यावसायिक संगठनों (CBBOs) को शामिल कर रही हैं।
      • CBBOs, FPO के प्रचार से संबंधित सभी मुद्दों हेतु संपूर्ण जानकारी का एक मंच होगा।
  • वित्तीय सहायता:
    • 3 वर्ष की अवधि हेतु प्रति FPO के लिये 18.00 लाख रुपए का आवंटन।
    • FPO के प्रत्येक किसान सदस्य को 2 हज़ार रुपए (अधिकतम 15 लाख रुपए प्रति FPO) का इक्विटी अनुदान प्रदान किया जाएगा।
    • FPO को संस्थागत ऋण सुलभता सुनिश्चित करने के लिये पात्र ऋण देने वाली संस्था से प्रति FPO 2 करोड़ रुपए तक की ऋण गारंटी सुविधा का प्रावधान किया गया है।
  • महत्त्व:
    • किसान की आय में वृद्धि:
      • यह किसानों के खेतों या फार्म गेट से ही उपज की बिक्री को बढ़ावा देगा जिससे किसानों की आय में वृद्धि होगी।
      • इससे आपूर्ति शृंखला छोटी होने के परिणामस्वरूप विपणन लागत में कमी आएगी जिससे किसानों को बेहतर आय प्राप्त होगी।
    • रोज़गार सृजन:
      • यह ग्रामीण युवाओं को रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करेगा तथा फार्म गेट के निकट विपणन और मूल्य संवर्द्धन हेतु बुनियादी ढांँचे में अधिक निवेश को प्रोत्साहित करेगा।
    • कृषि को व्यवहार्य बनाना:
      • यह भूमि को संगठित कर खेती को अधिक व्यवहार्य बनाएगा।
  • प्रगति:
    • योजना के तहत 5.87 लाख से अधिक किसानों को जोड़ा गया है।
    • लगभग 3 लाख किसानों को FPOs के शेयरधारकों के रूप में पंजीकृत किया गया है।
    • किसान सदस्यों द्वारा इक्विटी योगदान 36.82 करोड़ रुपए है।
    • जारी किये गए इक्विटी अनुदान सहित FPOs का कुल इक्विटी आधार 50 करोड़ रुपए है।

किसानों के लिये अन्य पहल पहलें:

किसान उत्पादक संगठन (FPOs):  

  • FPOs, किसान-सदस्यों द्वारा नियंत्रित स्वैच्छिक संगठन हैं, FPOs के सदस्य इसकी नीतियों के निर्माण और निर्णयन में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। 
  • FPOs की सदस्यता लिंग, सामाजिक, नस्लीय, राजनीतिक या धार्मिक भेदभाव के बिना उन सभी लोगों के लिये खुली होती है जो इसकी सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम हैं और सदस्यता की ज़िम्मेदारी को स्वीकार करने के लिये तैयार हैं।
  • गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और कुछ अन्य राज्यों में FPOs ने उत्साहजनक परिणाम दिखाए हैं तथा इनके माध्यम से किसान अपनी उपज से बेहतर आय प्राप्त करने में सफल रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये राजस्थान के पाली ज़िले में आदिवासी महिलाओं ने एक उत्पादक कंपनी का गठन किया और इसके माध्यम से उन्हें शरीफा/कस्टर्ड एप्पल के उच्च मूल्य प्राप्त हो रहे हैं।  
  • FPOs को आमतौर पर संस्थानों/संसाधन एजेंसियों (आरए) को बढ़ावा देकर निर्मित किया जाता  है।
  • संसाधन एजेंसियांँ एफपीओ को बढ़ावा देने और उनका पोषण करने के लिये नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट (नाबार्ड) जैसे संस्थानोंऔर एजेंसियों से उपलब्ध सहायता का लाभ उठाती हैं।

आगे की राह: 

  • CBBOs की भूमिका FPOs को मज़बूत करने की होनी चाहिये ताकि किसानों द्वारा उनका उपयोग किया जा सके। 
  • FPO केवल एक कंपनी मात्र नहीं है, यह किसानों के लाभ का एक समूह है। अधिक-से-अधिक किसानों को FPOs में शामिल होना चाहिये।  
  • भारतीय कृषि में छोटे और सीमांत किसानों का वर्चस्व है जिनकी औसत भूमि जोत 1.1 हेक्टेयर से कम है।
  • ये छोटे और सीमांत किसान जो कुल जोत के 86 प्रतिशत से अधिक हैं, उत्पादन और पोस्ट-प्रोडक्शन परिदृश्य दोनों में ज़बरदस्त चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
  • ऐसी ही चुनौतियों का समाधान करने और किसानों की आय बढ़ाने हेतु एफपीओ के गठन के माध्यम से किसान उत्पादकों का समूहीकरण बहुत महत्त्वपूर्ण है।  

स्रोत: पी.आई.बी.  


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

ब्ल्यू स्ट्रैग्लर तारे

प्रिलिम्स के लिये:

ब्लू स्ट्रैगलर तारा, भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स), एस्ट्रोसैट, लाल दानव तारा, श्वेत वामन तारा, हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल डायग्राम

मेन्स के लिये:

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की पहल, तारों का विकास

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारतीय ताराभौतिकी संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स), बंगलूरू के वैज्ञानिकों कों ब्लू स्ट्रैगलर तारे के विशिष्ट लक्षण को समझने के तरीके के लिये समर्थन प्राप्त हुआ है।

  • शोधकर्ताओं ने अंतरिक्ष में भारत की पहली विज्ञान वेधशाला, एस्ट्रोसैट के यूवीआईटी उपकरण (पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप) द्वारा अवलोकन किया है।
  • इससे पहले सितंबर 2021 में ब्लू स्ट्रैगलर (Blue Stragglers) का पहला व्यापक विश्लेषण करते हुए भारतीय शोधकर्त्ताओं ने इनकी उत्पत्ति के संदर्भ में एक परिकल्पना प्रस्तुत की थी।

ब्लू स्ट्रैगलर तारों के विषय में: 

  • ब्लू स्ट्रैगलर्स खुले या गोलाकार समूहों में सितारों का एक ऐसा वर्ग है जो अन्य तारों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े और नीले रंग के होने के कारण अलग ही दिखाई देते हैंI  
  • कुछ तारे ऐसे होते हैं कि जब उनके आकार में विस्तार और शीतलन  की उम्मीद की जाती है, तो वे इसके ठीक विपरीत होते हैं। 
  • इनके नीले रंग की वजह से संकेत मिलता है कि वे चमकीले और गर्म होते हैं। 
    • इस प्रकार ये रंग-परिमाण आरेख में अपने आसपास के ठंडे लाल तारों से बाहर की ओर दिखाई देते हैं।
  • चूंँकि वे विकास के क्रम में अपने समूह केअन्य तारों से पिछड़ते हुए दिखाई देते हैं, इसलिये उन्हें उनके गर्म, नीले रंग के कारण विशेष रूप से नीले रंग के स्ट्रैगलर कहा जाता है।
  • एलन सैंडेज (कैलिफोर्निया के पासाडेना में कार्नेगी ऑब्ज़र्वेटरीज़ के एक खगोलशास्त्री) ने वर्ष 1952-53 में गोलाकार क्लस्टर M3 में ब्लू स्ट्रैगलर की खोज की थी। 
  • अधिकांश ब्लू स्ट्रैगलर सूर्य से कई हज़ार प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं और इनमें से ज़्यादातर लगभग 12 बिलियन वर्ष या उससे भी अधिक पुराने हैं। 
  • मिल्की वे आकाशगंगा का सबसे बड़ा और सबसे चमकीला ग्लोबुलर ओमेगा सेंटॉरी (Omega Centauri) है।

Blue-Stragglers

इस विशेषता के संभावित कारण:

  • संभावना 1: ये समूह में तारों के परिवार से संबंधित नहीं हैं, इसलिये इनमें समूह के गुण होने की संभावना नहीं होती। 
  • संभावना 2: यदि वे समूह से संबंधित हैं, तो इन तारों के बाइनरी साथी से द्रव्यमान प्राप्त करने के कारण उत्क्रमणीय व्यवहार होता है।
    • इस दूसरे परिदृश्य में स्ट्रैगलर विशाल साथी तारे से पदार्थ खींचता है और अधिक बड़े पैमाने पर गर्म एवं नीले रंग में बढ़ता है तथा लाल रंग के एक सामान्य या छोटे सफेद बौने तारे के रूप में समाप्त होता है।
    • शोध में वैज्ञानिकों को सफेद बौने साथियों के नीले स्ट्रैगलरों के निर्णायक सबूत मिले। 
  • संभावना 3: स्ट्रैगलर एक साथी तारे से पदार्थ खींचता है लेकिन एक तीसरा तारा है जो इस प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाता है।

  तारे की आयु या विकास का अध्ययन: 

  • तारे के व्यवहार का अध्ययन करने के लिये किसी तारे के रंग और उसके परिमाण के बीच एक ग्राफ तैयार किया जाता है।
    • यह तारे की सतह के तापमान का संकेत देता है, जो इसके द्वारा दी गई कुल ऊर्जा से संबंधित है।  
    • यदि सभी तारों को एक गोलाकार समूह में लाया जाता है, तो कई तारे एक बैंड के भीतर स्थान ग्रहण करते दिखते हैं जिसे मुख्य अनुक्रम के रूप में जाना जाता है।
    • इस ग्राफ को हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख कहा जाता है। 
    • यह आरेख, तारों के तापमान को उनके प्रकाश के प्रतिकूल अथवा तारों के रंग को उनके संपूर्ण परिमाण के प्रतिकूल प्रदर्शित करता है।
    • यह सितारों के एक समूह को उनके विकास क्रम के विभिन्न चरणों में प्रदर्शित करता है।
  • उदाहरण के लिये सूर्य, जिसे मुख्य अनुक्रम तारा भी कहा जाता है।
    • इसके द्रव्यमान और उम्र को देखते हुए यह अनुमान लगाया जाता है कि एक बार जब यह अपने संपूर्ण हाइड्रोजन को हीलियम में बदल देगा, तो इसका कोर सघन हो जाएगा, जबकि इसके बाहरी परतों का विस्तार होगा।
    • इस चरण के बाद इसकी ऊर्जा समाप्त हो जाती है और यह एक छोटा, शीत तारा (Cooling Star) बन जाता है तथा अपने जीवन के अंतकाल में यह एक सफेद बौना तारा (White Dwarf) कहलाता है।

Temperature

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (IIA):

  • IIA का मुख्यालय बंगलूरू में है तथा यह एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान है जो पूरी तरह से भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तपोषित है।
  • IIA मुख्य रूप से खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी और संबंधित क्षेत्रों के विषयों में अनुसंधान करता है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1971 में हुई थी।

स्रोत: द हिंदू 


भारतीय राजव्यवस्था

दलबदल विरोधी कानून

प्रिलिम्स के लिये:

दलबदल विरोधी कानून, दसवीं अनुसूची, संसद, संवैधानिक संशोधन।

मेन्स के लिये:

भारतीय संविधान, संवैधानिक संशोधन, दलबदल विरोधी कानून और संबंधित मुद्दे, दसवीं अनुसूची, न्यायिक समीक्षा, सूचना का अधिकार

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उपराष्ट्रपति ने कहा कि देश में मौजूद दलबदल विरोधी कानून में व्याप्त कमियों को दूर करने के लिये इसमें संशोधन करने का समय आ गया है।

दलबदल विरोधी कानून:

  • दल-बदल विरोधी कानून संसद/विधानसभा सदस्यों को एक पार्टी से दूसरी पार्टी में शामिल होने पर दंडित करता है। 
  • संसद ने इसे 1985 में दसवीं अनुसूची के रूप में संविधान में जोड़ा। इसका उद्देश्य दल बदलने वाले विधायकों को हतोत्साहित कर सरकारों में स्थिरता लाना था।
    • दसवीं अनुसूची जिसे दलबदल विरोधी अधिनियम के रूप में जाना जाता है, को 52वें संशोधन अधिनियम, 1985 के माध्यम से संविधान में शामिल किया गया था और यह किसी अन्य राजनीतिक दल में दलबदल के आधार पर निर्वाचित सदस्यों की अयोग्यता के लिये प्रावधान निर्धारित करता है।
  • हालाँकि यह सांसद/विधायकों के एक समूह को दलबदल के लिये दंड के बिना किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल होने (अर्थात् विलय) की अनुमति देता है। इस प्रकार यह दलबदल करने वाले विधायकों को प्रोत्साहित करने या स्वीकार करने के लिये राजनीतिक दलों को दंडित नहीं करता है। 
    • 1985 के अधिनियम के अनुसार, एक राजनीतिक दल के निर्वाचित सदस्यों के एक-तिहाई सदस्यों द्वारा 'दलबदल' को 'विलय' माना जाता था।
    • 91वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के अनुसार, दलबदल विरोधी कानून में एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है, बशर्ते कि उसके कम-से-कम दो-तिहाई सदस्य विलय के पक्ष में हों।
  • इस प्रकार इस कानून के तहत एक बार अयोग्य सदस्य उसी सदन की किसी सीट पर किसी भी राजनीतिक दल से चुनाव लड़ सकते हैं।
  • दलबदल के आधार पर अयोग्यता संबंधी प्रश्नों पर निर्णय के लिये मामले को सदन के सभापति या अध्यक्ष के पास भेजा जाता है, जो कि 'न्यायिक समीक्षा' के अधीन होता है।
    • हालाँकि कानून एक समय-सीमा प्रदान नहीं करता है जिसके भीतर पीठासीन अधिकारी को दलबदल के मामले का फैसला करना होता है।

अयोग्यता का आधार:

  • यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता को छोड़ देता है। 
  • यदि वह पूर्व अनुमति प्राप्त किये बिना अपने राजनीतिक दल या ऐसा करने के लिये अधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा जारी किसी भी निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करता है या मतदान से दूर रहता है।
    • उसकी अयोग्यता के लिये पूर्व शर्त के रूप में ऐसी घटना के 15 दिनों के भीतर उसकी पार्टी या अधिकृत व्यक्ति द्वारा मतदान से मना नहीं किया जाना चाहिये।
  • यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
  • यदि छह महीने की समाप्ति के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।

दलबदल विरोधी कानून से संबंधित मुद्दे:

  • प्रतिनिधि और संसदीय लोकतंत्र को कमज़ोर करना:
    • दलबदल विरोधी कानून के लागू होने के पश्चात् सांसद या विधायक को पार्टी के निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करना होता है।
    • यह उन्हें किसी भी मुद्दे पर अपने निर्णय के अनुरूप वोट देने की स्वतंत्रता नहीं देता है जिससे प्रतिनिधि लोकतंत्र कमज़ोर होता है।
  • अध्यक्ष की विवादास्पद भूमिका: 
    • दल-बदल विरोधी मामलों में सदन के अध्यक्ष या स्पीकर की कार्रवाई की समय सीमा से संबंधित कानून में कोई स्पष्टता नहीं है।
      • कुछ मामलों में छह महीने और कुछ में तीन वर्ष भी लग जाते हैं। कुछ ऐसे मामले भी हैं जो अवधि समाप्त होने के बाद निपटाए जाते हैं। 
  • विभाजन की कोई मान्यता नहीं: 
    • 91वें संवैधानिक संशोधन 2004 के कारण दलबदल विरोधी कानून ने दलबदल विरोधी शासन को एक अपवाद बनाया।
    • हालाँकि यह संशोधन किसी पार्टी में 'विभाजन' को मान्यता नहीं देता है बल्कि इसके बजाय 'विलय' को मान्यता देता है।
  • चुनावी जनादेश का उल्लंघन: 
    • दलबदल उन विधायकों द्वारा चुनावी जनादेश का अपमान है जो एक पार्टी के टिकट पर चुने जाते हैं, लेकिन फिर मंत्री पद या वित्तीय लाभ के लालच के चलते दूसरे में स्थानांतरित होना सुविधाजनक समझते हैं।
  • सरकार के सामान्य कामकाज पर प्रभाव: 
    • 1960 के दशक में विधायकों द्वारा लगातार दलबदल की पृष्ठभूमि के खिलाफ कुख्यात "आया राम, गया राम" का नारा गढ़ा गया था। दलबदल के कारण सरकार में अस्थिरता पैदा होती है और प्रशासन प्रभावित होता है।
  • हॉर्स-ट्रेडिंग को बढ़ावा: 
    • दलबदल विधायकों के खरीद-फरोख्त को भी बढ़ावा देता है जो स्पष्ट रूप से एक लोकतांत्रिक व्यवस्था के जनादेश के खिलाफ माना जाता है।
  • केवल थोक दलबदल की अनुमति:
    • यह थोक दलबदल (एक साथ कई सदस्यों द्वारा दल परिवर्तन) की अनुमति देता है लेकिन खुदरा दलबदल (बारी-बारी से या एक-एक करके सदस्यों द्वारा दल परिवर्तन) की अनुमति नहीं देता। अतः इसमें निहित खामियों को दूर करने के लिये संशोधन की आवश्यकता है।
    • उन्होंने चिंता जताई कि यदि कोई राजनेता किसी पार्टी को छोड़ता है, तो वह ऐसा कर सकता है, लेकिन उस अवधि के दौरान उसे नई पार्टी में कोई पद नहीं दिया जाना चाहिये। 

सुझाव:

  • चुनाव आयोग ने सुझाव दिया है कि दलबदल के मामलों में इसके लिये निर्णायक प्राधिकारी होना चाहिये।
  • दूसरों ने तर्क दिया है कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को दलबदल याचिकाओं पर सुनवाई करनी चाहिये।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने सुझाव दिया है कि संसद को उच्च न्यायपालिका के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में स्वतंत्र न्यायाधिकरण का गठन करना चाहिये ताकि दलबदल के मामलों का तेज़ी और निष्पक्ष रूप से फैसला किया जा सके।
  • कुछ टिप्पणीकारों ने कहा है कि यह कानून विफल हो गया है और इसे हटाने की सिफारिश की है। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने सुझाव दिया है कि यह केवल अविश्वास प्रस्ताव के मामले में सरकारों को बचाने के लिये लागू होता है। 

आगे की राह

  • मूल समस्या की उत्पत्ति अनिवार्य रूप से किसी राजनीतिक समस्या का कानूनी समाधान खोजने के प्रयास में निहित है।
  • यदि सरकार की अस्थिरता का कारण दलबदल के आधार पर सदस्यों को अयोग्य ठहराया जाना है तो इसके लिये इन दलों के आंतरिक लोकतंत्र को मज़बूत करना होगा ताकि पार्टी विखंडन की घटनाओं को रोका जा सके। 
  • भारत में राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने वाले कानून की अत्यंत आवश्यकता है। इस तरह के कानून में राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार (RTI) के दायरे में लाया जाना चाहिये, साथ ही पार्टी के भीतर लोकतंत्र को मज़बूत करना चाहिये।
  • प्रतिनिधि लोकतंत्र में दल-बदल विरोधी कानून के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिये, कानून के विस्तार को केवल उन कानूनों तक सीमित किया जा सकता है, जहाँ सरकार की हार से विश्वास समाप्त हो सकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. भारत के संविधान की निम्नलिखित में से कौन-सी एक अनुसूची में दलबदल विरोधी कानून संबंधी उपबंध हैं?

(a) दूसरी अनुसूची
(b) पाँचवीं अनुसूची
(c) आठवीं अनुसूची
(d) दसवीं अनुसूची

उत्तर: (d) 

स्रोत: द हिंदू


कृषि

वर्टिकल फार्मिंग

संदर्भ:

भारत हर दिन कुछ नया कर रहा है। साथ ही औद्योगिकीकरण में नाटकीय रूप से वृद्धि देखी जा रही है जिसके कारण कृषि योग्य भूमि अधिक जोखिम में हैं। भारत के संदर्भ में वर्टिकल फार्मिंग इन सभी समस्याओं का समाधान  है।

वर्टिकल फार्मिंग:

  • पृष्ठभूमि:
    • 1915 में गिल्बर्ट एलिस बेली ने वर्टिकल फार्मिंग शब्द गढ़ा और उन्होंने इस पर एक किताब लिखी।
    • इस आधुनिक अवधारणा को पहली बार वर्ष 1999 में प्रोफेसर डिक्सन डेस्पोमियर द्वारा प्रस्तावित किया गया था। उनकी अवधारणा इस विचार पर केंद्रित थी कि शहरी क्षेत्रों को अपना भोजन खुद उगाना चाहिये जिससे परिवहन के लिये आवश्यक समय और संसाधनों की बचत हो सके।
  • परिचय: 
    •  वर्टिकल फार्मिंग में  पारंपरिक खेती की तरह ज़मीन पर क्षैतिज रूप से खेती करने के बजाय ऊर्ध्वाधर रूप में  खेती की जाती है  तथा  भूमि और जल संसाधनों पर अत्यधिक प्रभाव डाले बिना ऊर्ध्वाधर परतों में फसल उगाई जाती हैं। 
    • इसमें मिट्टी रहित कृषि तकनीक व अन्य कारक शामिल हैं।
    • एरोपोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स जैसी ऊर्ध्वाधर कृषि प्रणालियाँ 'संरक्षित खेती' के व्यापक दायरे में आती हैं, जहाँ एक कारक पानी, मिट्टी, तापमान, आर्द्रता आदि जैसे कई कारकों  को नियंत्रित कर सकता है।
    • बड़े पैमाने पर संरक्षित खेती उपभोक्ता के नज़दीक भोजन उपलब्ध कराकर हमारी फार्म-टू-प्लेट आपूर्ति शृंखला को छोटा और अनुकूलित करने की एक विशाल क्षमता प्रदान कर सकती है तथा इस तरह हमारे देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में सुधार के लिये एक लंबा मार्ग तय कर आयात निर्भरता को कम कर सकती है।

वर्टिकल फार्मिंग के प्रकार:

  • हाइड्रोपोनिक्स:
    • हाइड्रोपोनिक्स जल आधारित, पोषक तत्त्वों के घोल में पौधों को उगाने की एक विधि है।
    • इस विधि में जड़ प्रणाली को एक अक्रिय माध्यम जैसे- पेर्लाइट, मिट्टी के छर्रों, पीट, काई या वर्मीक्यूलाइट का उपयोग करके उगाया जाता है।
    • इसका मुख्य उद्देश्य ऑक्सीजन तक पहुँच प्रदान करना है जो उचित विकास के लिये आवश्यक है।

Hydroponics

  • एरोपोनिक्स: 
    • एरोपोनिक्स खेती का एक पर्यावरण के अनुकूल तरीका है जिसमें जड़ें हवा में लटकी रहती हैं और पौधे बिना मिट्टी के आर्द्र वातावरण में बढ़ते हैं।
    • यह हाइड्रोपोनिक्स का एक प्रकार है जहाँ पौधों के बढ़ने का माध्यम और बहते पानी दोनों अनुपस्थित होते हैं।
      • इस विधि में पौधों की जड़ों पर पानी और पोषक तत्त्वों के घोल का छिड़काव किया जाता है। 
      • यह तकनीक किसानों को ग्रीनहाउस के अंदर आर्द्रता, तापमान, पीएच स्तर और जल चालकता को नियंत्रित करने में सक्षम बनाती है। 

Aeroponics

  • एक्वापोनिक्स:
    • एक्वापोनिक्स एक प्रणाली है जिसमें एक बंद प्रणाली के भीतर हाइड्रोपोनिक्स और जलीय कृषि की जाती है।
    • एक्वापोनिक्स प्रक्रिया में तीन जैविक घटक होते हैं: मछलियाँ, पौधे और बैक्टीरिया। 
      • इस प्रणाली में पौधों और मछलियों के बीच एक सहजीवी संबंध पाया जाता है; अर्थात् मछली का मल पौधों के लिये उर्वरक के रूप में उपयोग किया जाता है, जबकि पौधे मछली हेतु जल को साफ करते हैं।

Aquaponics

वर्टिकल फार्मिंग का महत्त्व:

  • वित्तीय व्यवहार्यता: 
    • यद्यपि ऊर्ध्वाधर खेती/वर्टिकल फार्मिंग में शामिल प्रारंभिक पूंजी लागत आमतौर पर अधिक होती है लेकिन यदि संपूर्ण फसल उत्पादन की परिकल्पना आवश्यकतानुसार उचित तरीके से की जाए तो यह प्रक्रिया पूरी तरह से लाभ प्रदान करने वाली बन जाती है और पूरे वर्ष या किसी विशिष्ट अवधि के दौरान एक विशेष फसल को ऊर्ध्वाधर खेती के माध्यम से उगाने, उसकी कटाई करने तथा उत्पादन करने वित्तीय रूप से व्यवहार्य हो सकती है।
  • अत्यधिक जल कुशल:  
    • पारंपरिक कृषि पद्धतियों के माध्यम से उगाई जाने वाली फसलों की तुलना में वर्टिकल फार्मिंग विधि के माध्यम से उगाई जाने वाली सभी फसलें आमतौर पर 95% से अधिक जल कुशल होती हैं।
  • पानी की बचत:
    • भारत जैसे देश के लिये, जिसमें दुनिया के जल संसाधनों का लगभग 4% हिस्सा है, ऊर्ध्वाधर कृषि-आधारित प्रौद्योगिकियांँ न केवल हमारे खाद्य उत्पादन की दक्षता व उत्पादकता को बढ़ा सकती हैं, बल्कि पानी की बचत के मामले में भी सुधार कर सकती हैं, जो बदले में अपने खाद्य उत्पादन पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर कार्बन-तटस्थता प्राप्त करने के भारत के महत्वाकाँक्षी लक्ष्यों को समर्थन और प्रोत्साहन देगा।
  • बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य: 
    • इसके अतिरिक्त चूंँकि अधिकांश फसलें "कीटनाशकों के उपयोग के बिना" उगाई जाती हैं, इससे "समय के साथ-साथ बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य की दिशा में सकारात्मक योगदान" प्रदान करता है; इसलिये उपभोक्ता शून्य-कीटनाशक उत्पादन की उम्मीद कर सकते हैं, जो ग्रह के लिये स्वस्थ, ताज़ा और टिकाऊ भी है।
  • रोज़गार:
    • अंत में इस बात पर ज़ोर देना महत्त्वपूर्ण है कि संरक्षित खेती में हमारे देश के कृषि छात्रों के लिये नए रोज़गार, कौशल सेट और आर्थिक अवसर पैदा करने की क्षमता है, जो सीखने की अवस्था के अनुकूल होने के साथ तेज़ी से आगे बढ़ने में सक्षम है। 

आगे की राह

  • खाद्य सुरक्षा के लिये मिट्टी रहित तकनीकों को प्रोत्साहित करना: भूख से लड़ने और कुपोषण के बोझ से निपटने के लिये खाद्य उत्पादन व वितरण प्रणाली को मज़बूत करना महत्त्वपूर्ण है।
    • एक्वापोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स के विकास में खाद्य सुरक्षा के सभी आयाम शामिल हैं।
    • सरकार इन विधियों को पारंपरिक खेती के लिये व्यवहार्य विकल्प के रूप में मानती है और इन तकनीकों को बड़ी संख्या में किसानों के लिये सस्ती बनाने में सहायता प्रदान करेगी।
  • ज्ञान और कौशल प्रदान करना: हालाँकि इन वैकल्पिक तकनीकों का उपयोग विभिन्न हितधारकों द्वारा किया जा सकता है, घरेलू उपयोग के लिये कृषि करने वाले किसानों व छोटे से लेकर बड़े पैमाने पर खेती करने वाले किसानों तक सुरक्षित, सफल व टिकाऊ कार्यान्वयन हेतु उनमें विशिष्ट ज्ञान तथा कौशल विकसित किया जाना चाहिये।
  • सतत् खेती को सुगम बनाना: भारत जैसे देश में कृषि भूमि पर लगातार दबाव बना रहता है, अतः इसे अन्य विकल्प के रूप में उपयोग में लाया जाता है।
    • एरोपोनिक्स और हाइड्रोपोनिक्स प्रणाली के तहत खेती द्वारा भूमि की कमी को दूर कर स्थायी कृषि तकनीकों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा सकता है।
  • स्कूलों के लिये आगे की रणनीति: ऐसी प्रणालियाँ कठिन हैं लेकिन इन्हें बनाए रखना असंभव नहीं है, इन प्रणालियों की कम-से-कम बुनियादी समझ होना आवश्यक है।
    • स्कूली छात्रों को गणित, जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान और इंजीनियरिंग जैसे मुख्य एसटीईएम विषयों के व्यावहारिक ज्ञान के साथ कृषि कार्य के रूप में स्कूलों में एक्वापोनिक सिस्टम स्थापित करने के लिये प्रोत्साहित कर सकते हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


भारतीय अर्थव्यवस्था

घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण

प्रिलिम्स के लिये:

घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण, एनएसएसओ, एनएसओ

मेन्स के लिये:

घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण आयोजित करने का महत्त्व 

चर्चा में क्यों? 

शीघ्र ही अखिल भारतीय घरेलू उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (All-India Household Consumer Expenditure Survey) लंबे अंतराल के बाद इस वर्ष (2022) फिर से शुरू होने वाला है।

  • परिणामों में ग्रामीण और शहरी भागों के लिये अलग-अलग डेटा सेट तथा प्रत्येक राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेश के लिये अलग-अलग खर्च का पैटर्न, साथ ही विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूह शामिल होंगे।

प्रमुख बिंदु 

 सरकार द्वारा सर्वेक्षण को बंद करने का कारण:

  • सरकार द्वारा "डेटा गुणवत्ता" (Data Quality) मुद्दों का हवाला देते हुए वर्ष 2017-18 में किये गए पिछले सर्वेक्षण के निष्कर्षों को बंद कर दिया था।
    • वर्ष 2019 में सरकार द्वारा उन रिपोर्टों को खारिज कर दिया गया था जिसमें उपभोक्ता खर्च में गिरावट को दर्शाते हुए प्रतिकूल परिणामों के कारण वर्ष 2017-18 के सर्वेक्षण के निष्कर्षों को रोक दिया गया था। 
  • यह भी देखा गया कि न केवल उपभोग पैटर्न के स्तरों में बल्कि वस्तुओं और सेवाओं के वास्तविक उत्पादन जैसे अन्य प्रशासनिक डेटा स्रोतों की तुलना में परिवर्तन की दिशा में भी अंतर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई थी।
  • "विशेष रूप से परिवारों द्वारा स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में खपत के लिये सर्वेक्षण की क्षमता/संवेदनशीलता (Ability/Sensitivity) के बारे में चिंता व्यक्त की गई।

घरेलू उपभोक्ता खर्च सर्वेक्षण:

  • समय अंतराल:
    • यह एक पंचवर्षीय सर्वेक्षण है जिसे सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय के (Ministry of Statistics and Programme Implementation-MOSPI) के राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (National Sample Survey Office-NSSO) द्वारा प्रकाशित किया जाता है।
  • क्षेत्र/विस्तार:
    • पूरे देश के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों से प्राप्त सूचना के आधार पर यह घरेलू स्तर पर होने वाले व्यय के पैटर्न को दर्शाता है।
  • सूचना प्रदाता:
    • माल (खाद्य और गैर-खाद्य) एवं सेवाओं पर औसत व्यय का पता चलता है।
    • प्राप्त आँकड़ों के आधार पर किसी परिवार द्वारा वस्तुओं (खाद्य एवं गैर-खाद्य) तथा सेवाओं पर किये जाने वाले औसत खर्च एवं मासिक प्रति व्यक्ति व्यय (Monthly Per Capita Expenditure-MPCE) का अनुमान लगाया जाता है।
  • सामान्य महत्त्व:
    • यह अर्थव्यवस्था की मांग की गतिशीलता की गणना करने में मदद करता है।
    • वस्तुओं और सेवाओं के बास्केट्स के संदर्भ में स्थानांतरण प्राथमिकताओं को समझने में मदद करता है, इस प्रकार वस्तुओं के उत्पादकों व सेवाओं के प्रदाताओं को संकेत प्रदान करता है।
    • विभिन्न स्तरों पर जीवन स्तर तथा विकास प्रवृत्तियों का आकलन करता है।
  • नीति निर्माताओं के लिये महत्त्व:
    • CES एक विश्लेषणात्मक और साथ ही एक पूर्वानुमान उपकरण है जो सरकार को आवश्यक हस्तक्षेपों व नीतियों हेतु योजना बनाने में मदद करता है।
    • संभावित संरचनात्मक विसंगतियों का पता लगाने और उन्हें संबोधित करने के लिये जो जनसंख्या के एक विशिष्ट सामाजिक-आर्थिक या क्षेत्रीय विभाजन में एक विशेष तरीके से बदलाव की मांग कर सकते हैं।. 
    • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) और अन्य समष्टि-आर्थिक संकेतकों को पुन: आधार बनाना।

 स्रोत: द हिंदू 


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