विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
ब्ल्यू स्ट्रैग्लर तारे
- 04 Sep 2021
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रिलिम्स के लिये:ब्ल्यू स्ट्रैग्लर तारे, ग्लोबुलर, गैया (Gaiya) टेलीस्कोप, हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, एस्ट्रोसैट, AstroSat, ओमेगा सेंटॉरी मेन्स के लिये:ब्लू स्ट्रैगलर का परिचय तथा इनकी उत्पत्ति के संदर्भ में भारतीय शोधकर्त्ताओं द्वारा प्रस्तुत परिकल्पना |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ब्लू स्ट्रैगलर (Blue Stragglers) का पहला व्यापक विश्लेषण करते हुए भारतीय शोधकर्त्ताओं ने इनकी उत्पत्ति के संदर्भ में एक परिकल्पना प्रस्तुत की है।
- ब्लू स्ट्रैगलर्स खुले या गोलाकार समूहों में सितारों का एक ऐसा वर्ग हैं जो अन्य सितारों की तुलना में अपेक्षाकृत बड़े और नीले रंग के होने के कारण अलग ही दिखाई देते हैंI
प्रमुख बिंदु
- ब्लू स्ट्रैगलर तारों के विषय में:
- तारे असामान्य रूप से गर्म और चमकीले होते हैं तथा प्राचीन तारकीय समूहों, जिन्हें ग्लोबुलर (गोलाकार तारामंडल/तारा समूह) कहा जाता है, के कोर में पाए जाते हैं ।
- उनकी उत्पत्ति का एक संकेत यह है कि वे केवल घने तारकीय प्रणालियों में पाए जाते हैं, जहाँ सितारों के बीच की दूरी बहुत कम (एक प्रकाश वर्ष के एक अंश के बराबर) होती है ।
- एलन सैंडेज (कैलिफोर्निया के पासाडेना में कार्नेगी ऑब्ज़र्वेटरीज के एक खगोलशास्त्री) ने वर्ष 1952-53 में गोलाकार क्लस्टर M3 में ब्लू स्ट्रैगलर की खोज की थी।
- अधिकांश ब्लू स्ट्रैगलर सूर्य से कई हज़ार प्रकाश वर्ष दूर स्थित हैं और इनमें से ज़्यादातर लगभग 12 बिलियन वर्ष या उससे भी अधिक पुराने हैं।
- मिल्की वे आकाशगंगा का सबसे बड़ा और सबसे चमकीला ग्लोबुलर ओमेगा सेंटॉरी (Omega Centauri) है।
- ब्लू स्ट्रैगलर की विशेषता:
- लू स्ट्रैगलर सितारे तारकीय विकास के मानक सिद्धांतों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।
- एक ही बादल से एक ही निश्चित अवधि में जन्मे तारों का कोई एक समूह अलग से दूसरा समूह बना लेता है। तारे का निर्माण अंतर-तारकीय आणविक बादलों (बहुत ठंडी गैस और धूल के अपारदर्शी गुच्छ) में होता है।
- मानक तारकीय विकास के तहत जैसे-जैसे समय बीतता है, प्रत्येक तारा अपने द्रव्यमान के आधार पर अलग-अलग विकसित होने लगता है। जिसमें एक ही समय में उत्पन्न हुए सभी सितारों को हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख (Hertzsprung-Russell Diagram) पर स्पष्ट रूप से निर्धारित वक्र पर स्थित होना चाहिये।
- हर्ट्ज़स्प्रंग-रसेल आरेख तारों के तापमान को उनकी चमक के विरुद्ध या तारों के रंग को उनके पूर्ण परिमाण के विरुद्ध चित्रित करता है। यह सितारों के एक समूह को उनके विकास के विभिन्न चरणों में दर्शाता है।
- अभी तक इस आरेख की सबसे प्रमुख विशेषता इसका मुख्य अनुक्रम है, जो आरेख में ऊपर की तरफ बाईं ओर से (गर्म, चमकदार तारे) से नीचे दाईं ओर (शांत, दुर्बल तारे) तक चलता है।
- लू स्ट्रैगलर सितारे तारकीय विकास के मानक सिद्धांतों का उल्लंघन करते प्रतीत होते हैं।
- ब्लू स्ट्रैगलर विकसित होने के बाद मुख्य अनुक्रम से हट जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप उनके मार्ग में एक विपथन आ जाता है जिसे टर्नऑफ के रूप में जाना जाता है।।
- चूँकि ब्लू स्ट्रैगलर इस इस वक्र से दूर रहते हैं, इसलिये वे असामान्य तारकीय विकास क्रम से गुज़र सकते हैं।
- वे एक अधिक शांत, लाल रंग की अवस्था प्राप्त करने के विकास क्रम में अपने समूह के अधिकांश अन्य सितारों से पिछड़ते हुए दिखाई देते हैं।
- परिकल्पना के विषय में:
- भारतीय शोधकर्त्ताओं ने यह पाया कि:
- कुल ब्लू स्ट्रैग्लर में से आधे तारे एक करीबी द्वि-ध्रुवीय/बाइनरी साथी तारे से बड़े पैमाने पर द्रव्य स्थानांतरण के माध्यम से बनते हैं।
- एक तिहाई संभावित रूप से दो सितारों के बीच टकराव के माध्यम से बनते हैं।
- शेष दो से अधिक तारों की परस्पर क्रिया से बनते हैं।
- इस परिकल्पना के लिये शोधकर्त्ताओं ने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (European Space Agency- ESA) के गैया (Gaiya) टेलीस्कोप का उपयोग किया।
- आगे के अध्ययन के लिये, भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष वेधशाला, एस्ट्रोसैट (AstroSat) पर लगे पराबैंगनी इमेजिंग टेलीस्कोप, साथ ही नैनीताल स्थित 3.6 मीटर देवस्थल ऑप्टिकल टेलीस्कोप का उपयोग किया जाएगा।
- यह अध्ययन विभिन्न आकाशगंगाओं सहित बड़ी तारकीय आबादी के अध्ययन में रोमांचक परिणामों को उजागर करने के साथ ही इन तारकीय प्रणालियों की जानकारी की समझ में और सुधार लाने में सहायक होगा।
- भारतीय शोधकर्त्ताओं ने यह पाया कि: