सिंगरेनी ताप विद्युत संयंत्र
प्रिलिम्स के लिये:सिंगरेनी ताप विद्युत संयंत्र, फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड। मेन्स के लिये:भारत में थर्मल पावर सेक्टर की स्थिति, ताप विद्युत संयंत्र से जुड़े मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
तेलंगाना स्थित सिंगरेनी ताप विद्युत संयंत्र (Singareni Thermal Power Plant- STPP) दक्षिण भारत में पहला सार्वजनिक क्षेत्र का कोयला आधारित विद्युत उत्पादन स्टेशन बनने हेतु तैयार है, जो देश के सार्वजनिक उपक्रमों में पहला फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन (FGD) संयंत्र है।
- उत्पन्न फ्लाई ऐश के 100% उपयोग के साथ STPP ने दो बार सर्वश्रेष्ठ फ्लाई ऐश उपयोग पुरस्कार जीता है
फ्लू गैस डिसल्फराइज़ेशन:
- परिचय:
- FGD संयंत्र विद्युत उत्पादन हेतु कोयले को जलाने से उत्पन्न सल्फर और अन्य गैसों (नाइट्रोजन ऑक्साइड) को संसाधित करेगा।
- FGD संयंत्र, वायुमंडल में छोड़े जाने से पहले ग्रिप गैस से सल्फर डाइऑक्साइड को अलग कर देता है जिससे पर्यावरण पर इसका प्रभाव कम हो जाता है।
- FGD संयंत्र विद्युत उत्पादन हेतु कोयले को जलाने से उत्पन्न सल्फर और अन्य गैसों (नाइट्रोजन ऑक्साइड) को संसाधित करेगा।
- FGD सिस्टम के प्रकार:
- FGD सिस्टम को उस चरण के आधार पर "वेट" या "ड्राई" के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिसमें फ्लू गैस अभिक्रिया होती है। FGD सिस्टम के चार प्रकार हैं:
- वेट FGD सिस्टम तरल अवशोषक का उपयोग करते हैं।
- स्प्रे ड्राई एब्ज़ाॅर्बर (SDA) सेमी-ड्राई सिस्टम होते हैं जिनमें विलियन के साथ थोड़ी मात्रा में जल मिलाया जाता है।
- सर्कुलेटिंग ड्राई स्क्रबर्स (CDS) या तो ड्राई अथवा सेमी-ड्राई प्रणाली है।
- ड्राई सॉर्बेंट इंजेक्शन (DSI) सूखे सॉर्बेंट को सीधे भट्टी में या भट्टी में डाले जाने के बाद डक्टवर्क में इंजेक्ट करता है।
- FGD सिस्टम को उस चरण के आधार पर "वेट" या "ड्राई" के रूप में वर्गीकृत किया जाता है जिसमें फ्लू गैस अभिक्रिया होती है। FGD सिस्टम के चार प्रकार हैं:
- मंत्रालय के दिशा-निर्देश:
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के लिये FGD संयंत्रों की स्थापना की समय-सीमा गैर-सेवामुक्त संयंत्रों के लिये दिसंबर 2026 के अंत तक और सेवानिवृत्त होने वाले संयंत्रों के लिये दिसंबर 2027 के अंत तक निर्धारित की है।
- हालाँकि यह उन संयंत्रों के लिये अनिवार्य नहीं है जो वर्ष 2027 के दिसंबर अंत तक सेवामुक्त होने जा रहे हैं, बशर्ते वे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण से छूट प्राप्त हों।
- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) ने कोयला आधारित विद्युत संयंत्रों के लिये FGD संयंत्रों की स्थापना की समय-सीमा गैर-सेवामुक्त संयंत्रों के लिये दिसंबर 2026 के अंत तक और सेवानिवृत्त होने वाले संयंत्रों के लिये दिसंबर 2027 के अंत तक निर्धारित की है।
- उपयोग:
- FGD संयंत्र द्वारा उत्पादित जिप्सम का उपयोग उर्वरक, सीमेंट, कागज़, कपड़ा एवं निर्माण उद्योगों में किया जाएगा तथा इसकी बिक्री से FGD संयंत्र के रखरखाव में योगदान की संभावना है।
भारत में ताप विद्युत क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- ताप विद्युत क्षेत्र भारत में विद्युत उत्पादन का प्रमुख स्रोत रहा है, जो देश की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का लगभग 75% है।
- मई 2022 तक भारत में ताप विद्युत की कुल स्थापित क्षमता 236.1 गीगावाट है, जिसमें से 58.6% कोयले से और बाकी लिग्नाइट, डीज़ल तथा गैस से प्राप्त होती है।
- ताप विद्युत संयंत्रों से संबंधित मुद्दे:
- पर्यावरणीय प्रभाव: ताप विद्युत संयंत्र वायु में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं। इससे वायु प्रदूषण होता है, जिसका संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों पर गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव देखा जाता है।
- ताप विद्युत संयंत्र बहुत अधिक जल की खपत करते हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में जल की कमी हो जाती है।
- कोयले की आपूर्ति: भारत के ताप विद्युत संयंत्र कोयले परअत्यधिक निर्भर हैं, जो कि अधिकतर दूसरे देशों से आयात किया जाता है। इसके कारण आपूर्ति बाधित होने और कीमतों में उतार-चढ़ाव का जोखिम बना रहता है।
- वित्त वर्ष 2022 में भारत ने 208.93 मिलियन टन कोयला आयात किया था जिसका मूल्य करीब 2.3 लाख करोड़ रुपए था।
- वित्तीय स्थिति: भारत के कई ताप विद्युत संयंत्र सरकारी संस्थाओं के स्वामित्त्व में हैं और कोयले की बढ़ती कीमतों, कम मांग तथा अन्य कारकों के कारण वित्तीय नुकसान का सामना कर रहे हैं।
- इस कारण कई संयंत्र बंद हो गए हैं या कम क्षमता पर कार्य कर रहे हैं।
- काल प्रभावन अवसरंचना: भारत के कई ताप विद्युत संयंत्र वर्ष 1970 एवं 1980 के दशक में बनाए गए थे और उनके आधुनिकीकरण की ज़रूरत है।
- मौजूदा पर्यावरण मानकों को पूरा करने के लिये इन संयंत्रों का उन्नयन (Upgrading) करना महंगा हो सकता है।
- नवीकरणीय ऊर्जा से प्रतिस्पर्द्धा: जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा सस्ती होती जा रही है, ताप विद्युत संयंत्रों को बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
- इससे थर्मल पावर की मांग में कमी आई है और कुछ संयंत्रों के लिये लाभप्रद रूप से कार्य करना कठिन हो गया है।
- पर्यावरणीय प्रभाव: ताप विद्युत संयंत्र वायु में बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य प्रदूषकों का उत्सर्जन करते हैं। इससे वायु प्रदूषण होता है, जिसका संयंत्रों के आसपास रहने वाले लोगों पर गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव देखा जाता है।
आगे की राह
- प्रदूषण नियंत्रण उपायों को लागू करना: जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, FGD संयंत्रों की स्थापना ताप विद्युत संयंत्रों में वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के प्रमुख चरणों में से एक है।
- सरकार को उत्सर्जन कम करने और पर्यावरण की रक्षा के लिये सभी ताप विद्युत संयंत्रों में FGD प्लांट और अन्य प्रदूषण नियंत्रण उपायों लागू करना अनिवार्य बनाना चाहिये।
- कोयले की गुणवत्ता में सुधार: भारत में ताप विद्युत संयंत्रों में उपयोग किये जाने वाले कोयले की गुणवत्ता अपेक्षाकृत कम होती है, जिसके कारण उच्च उत्सर्जन होने एवं कम दक्षता स्थिति देखी जाती है।
- इसलिये सरकार को कोयले की धुलाई (Coal Washing) और बेनिफिशिएशन जैसी तकनीकों में निवेश कर ताप विद्युत संयंत्रों को आपूर्ति किये जाने वाले कोयले की गुणवत्ता में सुधार पर ध्यान देना चाहिये।
- मौजूदा संयंत्रों का आधुनिकीकरण: भारत के कई ताप विद्युत संयंत्र पुराने और अक्षम हैं।
- सरकार को संयंत्र मालिकों को नई तकनीकों में निवेश करने, उपकरणों को अद्यतित करने तथा दक्षता में सुधार और उत्सर्जन को कम करने के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाकर संयंत्र के आधुनिकीकरण के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
- दक्षता बढ़ाना: विद्युत् उत्पादन की लागत को कम करने और ताप विद्युत क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार के लिये दक्षता में सुधार किया जाना एक महत्त्वपूर्ण घटक है।
- सरकार को ताप विद्युत संयंत्रों को ऊर्जा-कुशल प्रथाओं और तकनीकों जैसे सुपरक्रिटिकल और अल्ट्रा-सुपरक्रिटिकल तकनीकों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत में निम्नलिखित उद्योगों में से कौन-सा एक जल का सबसे बड़ा उपभोक्ता है? (2013) (a) अभियांत्रिकी उत्तर: (d) |
स्रोत: द हिंदू
तटीय क्षरण से विस्थापित समुदायों हेतु मसौदा नीति
प्रिलिम्स के लिये:NDMA, NDRF, तटीय क्षरण, 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट। मेन्स के लिये:तटीय क्षरण से विस्थापित समुदायों हेतु मसौदा नीति। |
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने नदी और तटीय क्षरण से प्रभावित लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन हेतु भारत की पहली राष्ट्रीय नीति के मसौदे पर आपदा प्रबंधन अधिकारियों और शोधकर्त्ताओं से इनपुट प्राप्त किये।
- गृह मंत्रालय ने NDMA को वर्ष 2021 के लिये 15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट के आधार पर एक नीति का मसौदा तैयार करने का निर्देश दिया था।
- अभी तक देश में अधिकांश नीतियाँ केवल बाढ़ और चक्रवात जैसी अचानक तेज़ी से शुरू होने वाली आपदाओं के बाद विस्थापन को संबोधित करती हैं।
15वें वित्त आयोग की रिपोर्ट की सिफारिशें:
- इसने पहली बार जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते खतरे के मद्देनज़र नदी और तटीय क्षरण से विस्थापित लोगों के लिये पुनर्वास और उनके पुनर्स्थापन पर ज़ोर दिया था।
- इसने वर्ष 2021-26 के लिये 1,500 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ राष्ट्रीय आपदा शमन कोष (NDMF) के तहत तटीय क्षरण को रोकने हेतु शमन उपायों की शुरुआत की।
- क्षरण से प्रभावित विस्थापितों के पुनर्वास के लिये यह राष्ट्रीय आपदा राहत कोष (NDRF) के तहत इसी अवधि के लिये 1,000 करोड़ रुपए आवंटित करता है।
- इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि राज्यों को बिना देरी किये शमन और पुनर्वास परियोजनाओं के लिये समय-सीमा का पालन करना चाहिये, NDRF एवं NDMF के तहत परियोजनाओं को इस तरह से मंज़ूरी दी जानी चाहिये कि उन्हें आयोग की अधिनिर्णय अवधि के भीतर पूरा किया जा सके।
मसौदा नीति की प्रमुख विशेषताएँ:
- वित्त आवंटन:
- दोनों निधियों (NDRF और NDMF) के लिये राज्य सरकारों को लागत-साझाकरण के आधार पर संसाधनों का लाभ उठाना होगा, जो तटीय एवं नदी क्षरण से जुड़े शमन और पुनर्वास की लागत में 25% का योगदान देगा।
- हालाँकि पूर्वोत्तर राज्यों को राज्य निधि का केवल 10% एकत्रित करना होगा।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण शमन और पुनर्वास के लिये राष्ट्रीय स्तर पर NDRF एवं NDMF के तहत आवंटन तथा खर्चों का समन्वय करेगा।
- नोडल एजेंसी:
- ज़िला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (DDMA) अन्य ज़िला एजेंसियों और एक विशिष्ट पंचायत-स्तरीय समिति के माध्यम से सहायता प्राप्त करने हेतु उपायों को लागू करने के लिये नोडल एजेंसी होगी।
- DDMA शमन और पुनर्वास योजनाएँ तैयार करेगा और उन्हें SDM को सौंप देगा, जहाँ प्रस्तावित उपायों का NDMA द्वारा मूल्यांकन किया जाएगा और अंत में गृह मंत्रालय को सौंपा जाएगा।
- इसके पश्चात् इस मंत्रालय की एक उच्च स्तरीय समिति वित्त वितरण की मंज़ूरी प्रदान करेगी।
- जोखिम संबंधी विस्तृत आकलन:
- राष्ट्रीय तट अनुसंधान केंद्र, केंद्रीय जल आयोग आदि जैसी केंद्रीय एजेंसियों द्वारा जोखिम संबंधी विस्तृत आकलन और राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र के पास उपलब्ध उच्च-रिज़ॉल्यूशन LiDAR डेटा SDMA को उपलब्ध कराना होगा।
- इन्हें NDMA द्वारा ईज़ी-टू-एक्सेस भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) प्रारूप में उपलब्ध कराया जाना चाहिये।
- तटीय और नदी के क्षरण का मानचित्रण:
- यह नीति तटीय और नदी के क्षरण के प्रभावों का मानचित्रण करने एवं प्रभावित तथा कमज़ोर समुदायों द्वारा सामना की जाने वाली विविध चुनौतियों का एक डेटाबेस तैयार करने पर ज़ोर देती है।
- प्रभाव और सुभेद्यता आकलन:
- यह मसौदा नीति समय-समय पर तटीय और नदी क्षरण से प्रभावित क्षेत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा सुभेद्यता आकलन की भी सिफारिश करती है, जिसे SDMA द्वारा राज्य के विभागों एवं DDMA के समन्वय से संचालित किया जाएगा।
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA):
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भारत में आपदा प्रबंधन के लिये शीर्ष वैधानिक निकाय है।
- इसका औपचारिक रूप से गठन 27 सितंबर, 2006 को आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत हुआ जिसमें प्रधानमंत्री (अध्यक्ष) और नौ अन्य सदस्य होंगे तथा इनमें से एक सदस्य उपाध्यक्ष पद पर आसीन होता है।
- आपदा प्रबंधन की प्राथमिक ज़िम्मेदारी संबंधित राज्य सरकार की होती है। हालाँकि आपदा प्रबंधन पर राष्ट्रीय नीति केंद्र, राज्य और ज़िले, सभी के लिये एक सक्षम वातावरण बनाती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. आपदा प्रबंधन में पूर्ववर्ती प्रतिक्रियात्मक उपागम से हटते हुए भारत सरकार द्वारा आरंभ किये गए अभिनूतन उपायों की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2020) प्रश्न. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सुझावों के संदर्भ में उत्तराखण्ड के अनेकों स्थानों पर हाल ही में बादल फटने की घटनाओं के संघात को कम करने के लिये अपनाए जाने वाले उपायों पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2016) प्रश्न. सूखे को उसके स्थानिक विस्तार, कालिक अवधि, मंथर प्रारंभ और कमज़ोर वर्गों पर स्थायी प्रभावों की दृष्टि से आपदा के रूप में मान्यता दी गई है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के सितंबर 2010 के मार्गदर्शी सिद्धातों पर ध्यान केंद्रित करते हुए भारत में एल नीनो और ला नीना के संभावित दुष्प्रभावों से निपटने के लिये तैयारी की कार्यविधियों पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2014) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
ब्लू फूड
प्रिलिम्स के लिये:ब्लू फूड, हृदय रोग, माइक्रोप्लास्टिक्स। मेन्स के लिये:ब्लू फूड का महत्त्व, ब्लू फूड से जुड़े मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलीय वातावरण से प्राप्त ब्लू फूड पोषक तत्त्वों की कमी को कम करने में मदद कर सकता है तथा भारत में रोज़गार और निर्यात राजस्व में बढ़ाने में योगदान कर सकता है।
ब्लू फूड:
- परिचय:
- ब्लू फूड जलीय जानवरों, पौधों या शैवाल से प्राप्त भोजन होते हैं जो ताज़े जल और समुद्री वातावरण में पाए जाते हैं।
- महत्त्व:
- पोषक तत्त्व का मुख्य स्रोत:
- कई देशों में अर्थव्यवस्थाओं, आजीविका, पोषण सुरक्षा और लोगों की संस्कृतियों हेतु ब्लू फूड महत्त्वपूर्ण है।
- ये 3.2 बिलियन से अधिक लोगों की प्रोटीन की आपूर्ति करते हैं, कई तटीय, ग्रामीण और स्वदेशी समुदायों में पोषक तत्त्वों के प्रमुख स्रोत हैं, साथ ही 800 मिलियन से अधिक लोगों की आजीविका में सहयोग करते हैं, जिनमें से अधिकांश लोग छोटे पैमाने की प्रणालियों में काम करते हैं।
- कम उत्सर्जन और कमियों से निपटना:
- ये स्थलीय मांस की तुलना में कम उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं।
- भारत में B12 और ओमेगा-3 की कमी को दूर करने के लिये जलीय खाद्य पदार्थों का भी उपयोग किया जा सकता है।
- विटामिन B12 की कमी वाले 91% से अधिक देश ओमेगा-3 की कमी के उच्च स्तर को भी प्रदर्शित करते हैं।
- हृदय रोगों को कम करना:
- लाल मांस (Red Meat) के अधिक सेवनके स्थान पर ब्लू फूड पदार्थों को बढ़ावा देने से उच्च हृदय रोग के जोखिम से पीड़ित 22 देशों के लगभग 82% लोगों के स्वास्थ्य और पर्यावरणीय चिंताओं को दूर किया जा सकता है।
- ग्लोबल साउथ के लिये राजस्व बढ़ाने की क्षमता:
- ब्लू फूड पदार्थ ग्लोबल साउथ और ग्लोबल नार्थ में स्वदेशी समुदायों के पोषण, आजीविका और राष्ट्रीय राजस्व में सुधार हेतु मदद कर सकते हैं।
- पोषक तत्त्व का मुख्य स्रोत:
- ब्लू फूड से जुड़े मुद्दे:
- बायकैच: यह मछली पकड़ने के जाल में गैर-लक्षित प्रजातियों के आकस्मिक फँसने को संदर्भित करता है, जिससे इन जानवरों की मृत्यु हो सकती है।
- प्रदूषण: समुद्र में भारी धातुओं, PCBs और माइक्रोप्लास्टिक्स जैसे प्रदूषकों की उपस्थिति सी-फूड की गुणवत्ता और सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है।
- गलत लेबलिंग और धोखाधड़ी: सी-फूड उत्पादों पर गलत लेबलिंग के उदाहरण सामने आए हैं, जहाँ कम कीमत वाली मछली को अधिक महँगी बताकर बेचा जाता है।
- इससे उपभोक्ता को धोखा होने के साथ ही उनके स्वास्थ्य के लिये जोखिमकारी हो सकता है।
- अतिदोहन: विश्व बैंक के अनुसार, वैश्विक समुद्री मछली स्टॉक का लगभग 90% अतिदोहन या ओवरफिशिंग की चपेट में है, इस प्रकार यह ओवरफिशिंग, अवैध मछली पकड़ने की स्थिति अन्य अस्थिर जलीय खाद्य उत्पादन के लिये एक समस्या बना हुआ है।
आगे की राह
- जागरूकता बढ़ाना: सरकारों, गैर-सरकारी संगठनों और निजी क्षेत्र को ब्लू फूड के लाभों एवं कुपोषण, गरीबी तथा पर्यावरणीय गिरावट को दूर करने की इसकी क्षमताओं के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मिलकर काम किया जाना चाहिये।
- सतत् मछली पकड़ने की प्रथाओं को बढ़ावा देना: मछली पकड़ने की प्रथाएँ जो अस्थिर हैं, जैसे कि अत्यधिक मछली पकड़ना, हानिकारक मछली पकड़ने के तरीके और बायकैच को यह सुनिश्चित करने के लिये संबोधित करने की आवश्यकता है कि मछली का स्टॉक कम न हो और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा हो।
- जलीय कृषि को प्रोत्साहित करना: ब्लू फूड के उत्पादन का कार्य अगर पर्यावरणीय रूप से ज़िम्मेदारी से किया जाए तो यह एक स्थायी तरीका हो सकता है ।
- सरकारें तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन प्रदान कर स्थायी जलीय कृषि प्रथाओं के विकास को बढ़ावा दे सकती हैं
- सरकारें तकनीकी सहायता, प्रशिक्षण और प्रोत्साहन प्रदान कर स्थायी जलीय कृषि प्रथाओं के विकास को बढ़ावा दे सकती हैं
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017) प्रश्न. नीली क्रांति को परिभाषित करते हुए भारत में मत्स्य पालन की समस्याओं और रणनीतियों की व्याख्या कीजिये। (2018) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
जेम्स वेब टेलीस्कोप ने 6 विशाल आकाशगंगाओं को खोजा
प्रिलिम्स के लिये:जेम्स वेब टेलीस्कोप, बिग बैंग, हबल स्पेस टेलीस्कोप, मॉन्स्टर गैलेक्सी, बिग डिपर। मेन्स के लिये:जेम्स वेब टेलीस्कोप। |
चर्चा में क्यों?
एक अध्ययन के अनुसार, जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (JWST) ने छह विशाल आकाशगंगाओं की खोज की है, जो बिग बैंग घटना के लगभग 500-700 मिलियन वर्ष बाद बनी थीं।
इन आकाशगंगाओं की खोज:
- शोधकर्त्ताओं ने JWST के कॉस्मिक इवोल्यूशन अर्ली 44 रिलीज़ साइंस प्रोग्राम का उपयोग करके इन छह विशाल आकाशगंगाओं को खोजा।
- यह कार्यक्रम प्रारंभिक आकाशगंगाओं के निर्माण का अध्ययन करता है जब ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु के 5% से कम था।
- शोधकर्त्ताओं ने टेलीस्कोप को आकाश के एक हिस्से में सप्तऋषि (Big Dipper) के निकट पहुँचाया, जो तारों के एक समूह को आश्रय देता है ये रात के समय आकाश में एक पैटर्न का निर्माण करते हैं। हबल स्पेस टेलीस्कोप ने पहली बार 1990 के दशक में इस क्षेत्र का अवलोकन किया था।
- सप्तऋषि तारामंडल उर्सा मेज़र (जिसे ग्रेट बियर के नाम से भी जाना जाता है) में तारों का एक समूह है। इसमें सात चमकीले तारे होते हैं, चार एक आयताकार "बाउल- Bowl" आकार बनाते हैं तथा तीन एक "हैंडल" बनाते हैं। इसका उपयोग अक्सर एक नेविगेशनल टूल के रूप में स्टारगेजिंग (तारों का अवलोकन) के लिये एक संदर्भ बिंदु और लोकप्रिय संस्कृति में एक प्रतीक के रूप में किया जाता है।
इन आकाशगंगाओं के निष्कर्ष:
- मिल्की-वे के समान द्रव्यमान होने के बावजूद उनमें से एक आकाशगंगा 30 गुना छोटी है।
- यह बड़ी, परिपक्व, किंतु उल्लेखनीय रूप से कॉम्पैक्ट आकाशगंगाओं की उपस्थिति की जानकारी देती है, जैसा वैज्ञानिकों ने संभवतः पहले से सोचा था।
- टेलीस्कोप ने छह बड़ी, परिपक्व आकाशगंगाओं की खोज की जो मिल्की वे जितनी पुरानी हैं और बिग बैंग के बाद 540-770 मिलियन वर्ष के मध्य मौजूद थीं।
- उस समय ब्रह्मांड अपनी वर्तमान आयु का लगभग 3% था।
- ये आकाशगंगाएँ, आकाशगंगा निर्माण की हमारी वर्तमान समझ को चुनौती देती हैं क्योंकि उन्हें अपने जीवन में इतनी जल्दी अस्तित्त्व में नहीं होना चाहिये था।
JWST?
- टेलीस्कोप NASA, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी के मध्य एक अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का परिणाम है जिसे दिसंबर 2021 में लॉन्च किया गया था।
- यह वर्तमान में अंतरिक्ष में एक ऐसे बिंदु पर है जिसे सूर्य-पृथ्वी L2 लैग्रेंज बिंदु के रूप में जाना जाता है, जो सूर्य के चारों ओर पृथ्वी की कक्षा से लगभग 1.5 मिलियन किमी. दूर है।
- लैग्रेंज पॉइंट 2 पृथ्वी-सूर्य प्रणाली के कक्षीय विमान में पाँच बिंदुओं में से एक है।
- लैग्रेंज पॉइंट अंतरिक्ष में स्थितियाँ हैं जहाँ दो-पिंडों (जैसे सूर्य और पृथ्वी) के गुरुत्वाकर्षण बल आकर्षण और प्रतिकर्षण के बढ़े हुए क्षेत्रों का निर्माण करते हैं।
- यह अब तक निर्मित सबसे बड़ा, सबसे शक्तिशाली इन्फ्रारेड स्पेस टेलीस्कोप है।
- यह हबल टेलीस्कोप का उत्तराधिकारी है।
- इसे हबल टेलीस्कोप के स्थान पर लाया गया है।
- यह सुदूर आकाशगंगाओं की तलाश में बिग बैंग के ठीक बाद के समय में अतीत में झाँक सकता है, साथ ही उस प्रकाश, जिसे आकाशगंगाओं से टेलीस्कोप तक पहुँचने में कई अरब वर्ष लग गए, के बारे में भी जान सकता।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. 25 दिसंबर, 2021 को छोड़ा गया जेम्स वेब अंतरिक्ष टेलीस्कोप तभी से समाचारों में बना हुआ है। उसमें ऐसी कौन-कौन सी अनन्य विशेषताएँ हैं जो उसे इससे पहले के अंतरिक्ष टेलीस्कोपों से श्रेष्ठ बनाती हैं? इस मिशन के मुख्य ध्येय क्या हैं? मानव जाति के लिये इसके क्या संभावित लाभ हो सकते हैं? (2022) |