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डेली न्यूज़

  • 24 Dec, 2022
  • 40 min read
कृषि

किसान दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

किसान दिवस, राष्ट्रीय किसान दिवस, चौधरी चरण सिंह, किसानों के लिये पहल

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, किसानों से संबंधित योजनाएँ

चर्चा में क्यों? 

23 दिसंबर, 2022 को किसान दिवस या राष्ट्रीय किसान दिवस को चिह्नित करने हेतु अभिनव खेती के लिये ख्याति प्राप्त 13 किसानों को सम्मानित किया गया।

  • भारत के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती मनाने के लिये देश भर में किसान दिवस मनाया जाता है।      

Kisan-Diwas

चौधरी चरण सिंह के बारे में मुख्य तथ्य:

  • उनका जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर में हुआ था और 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक वे भारत के प्रधानमंत्री रहे।
  • ग्रामीण और कृषि विकास के समर्थक होने के नाते, उन्होंने भारत के नियोजन के केंद्र में कृषि को रखने के लिये निरंतर प्रयास किये।
  • पूरे देश में किसानों के उत्थान और कृषि के विकास की दिशा में उनके काम के लिये उन्हें 'चैंपियन ऑफ इंडियाज पीजेंट्स' का उपनाम दिया गया था।
  • साहूकारों से किसानों को राहत दिलाने के लिये, उन्होंने ऋण मोचन विधेयक 1939 के निर्माण और इसे अंतिम रूप देने में अग्रणी भूमिका निभाई।
  • उन्होंने भूमि जोत अधिनियम, 1960 को लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसका उद्देश्य पूरे राज्य में भूमि जोत की सीमा को कम करना था ताकि इसे एक समान बनाया जा सके।
  • उन्होंने वर्ष 1967 में कॉन्ग्रेस छोड़ दी और अपनी स्वतंत्र पार्टी बनाई जिसे भारतीय लोक दल के नाम से जाना जाता है।
  • उन्होंने दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया। वे वर्ष 1979 में भारत के प्रधानमंत्री बने।
  • वह 'ज़मींदारी का उन्मूलन', 'को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्सरेड', 'भारत की गरीबी और उसका समाधान', 'किसान स्वामित्व या श्रमिकों के लिये भूमि' तथा 'श्रमिकों के विभाजन की रोकथाम' सहित ‘प्रीवेंशन ऑफ डिवीज़न ऑफ होल्डिंग्स ब्लो अ सर्टेन मिनिमम’ जैसी कई पुस्तकों और पुस्तिकाओं के लेखक थे।

किसानों के लिये संबंधित पहल:

  • पीएम-किसान: इस योजना के तहत केंद्र सरकार प्रति वर्ष 6,000 रुपए की राशि तीन समान किस्तों में सीधे सभी भूमि धारक किसानों के बैंक खातों में स्थानांतरित करता है, भले ही उनकी भूमि का आकार कुछ भी हो।
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन: इसका उद्देश्य विशिष्ट कृषि-पारिस्थितिकी के लिये उपयुक्त स्थायी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है।
  • प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना: इसके तीन मुख्य घटक हैं जैसे त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम,  हर खेत को पानी, और वाटरशेड विकास घटक  
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना: इसे वर्ष 2007 में शुरू किया गया था, और राज्यों को ज़िला/राज्य कृषि योजना के अनुसार अपनी कृषि और संबद्ध क्षेत्र विकास गतिविधियों को चुनने की अनुमति दी गई थी। 
  • पोषक तत्त्व आधारित सब्सिडी कार्यक्रम: इस कार्यक्रम के तहत, किसानों को इन उर्वरकों में निहित पोषक तत्वों (N, P, K और S) के आधार पर रियायती दरों पर उर्वरक प्रदान किये जाते हैं। 
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन: यह दिसंबर 2014 से स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास और संरक्षण के लिये लागू किया जा रहा है। 
  • प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना: यह फसल न होने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करती है जिससे किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिलती है। 
  • परंपरागत कृषि विकास योजना: वर्ष 2015 में शुरू की गई, यह सतत् कृषि के राष्ट्रीय मिशन (NMSA) की प्रमुख परियोजना के मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन (SHM) का एक विस्तृत घटक है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड: किसानों को लचीली और सरलीकृत प्रक्रिया के साथ एकल खिड़की के तहत बैंकिंग प्रणाली से पर्याप्त और समय पर ऋण सहायता प्रदान करने के लिये वर्ष 1998 में यह योजना शुरु की गई थी। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न: किसान क्रेडिट कार्ड योजना के अंतर्गत किसानों को निम्नलिखित में से किस उद्देश्य के लिये अल्पकालिक ऋण सुविधा प्रदान की जाती है? (2020)

  1. कृषि संपत्तियों के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी 
  2. कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद 
  3. खेतिहर परिवारों की उपभोग आवश्यकताएँ 
  4. फसल के बाद का खर्च 
  5. पारिवारिक आवास का निर्माण एवं ग्राम कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना

निम्नलिखित कूट की सहायता से सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1, 2 और 5
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 2, 3, 4 और 5
(d) 1, 2, 3, 4 और 5

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना को वर्ष 1998 में किसानों को उनकी खेती और बीज, उर्वरकों, कीटनाशकों आदि जैसे कृषि आदानों की खरीद तथा उनकी उत्पादन आवश्यकताओं के लिये नकदी निकालने जैसी अन्य आवश्यकताओं के लिये लचीली एवं सरलीकृत प्रक्रिया के साथ एक एकल खिड़की के तहत बैंकिंग प्रणाली से पर्याप्त तथा समय पर ऋण सहायता प्रदान करने हेतु शुरू किया गया था।
  • इस योजना को वर्ष 2004 में किसानों की निवेश ऋण आवश्यकता जैसे संबद्ध और गैर-कृषि गतिविधियों के लिये आगे बढ़ाया गया था।
  • किसान क्रेडिट कार्ड निम्नलिखित उद्देश्यों के साथ प्रदान किया जाता है:
    • फसलों की खेती के लिये अल्पकालिक ऋण आवश्यकता
    • फसल के बाद का खर्च; अतः कथन 4 सही है।
    • विपणन ऋण का उत्पादन
    • किसान परिवार की खपत की आवश्यकताएंँ; अतः कथन 3 सही है।
    • कृषि परिसंपत्तियों और कृषि से संबंधित गतिविधियों, जैसे- डेयरी पशु, अंतर्देशीय मत्स्य पालन आदि के रखरखाव के लिये कार्यशील पूंजी, अतः कथन 1 सही है।
    • कृषि और संबद्ध गतिविधियों जैसे- पंपसेट, स्प्रेयर, डेयरी पशु आदि के लिये निवेश ऋण की आवश्यकता। हालाँकि यह खंड दीर्घकालिक ऋण का है।
  • किसान क्रेडिट कार्ड योजना वाणिज्यिक बैंकों, आरआरबी, लघु वित्त बैंकों और सहकारी समितियों द्वारा कार्यान्वित की जाती है।
  • किसानों को कंबाइन हार्वेस्टर, ट्रैक्टर और मिनी ट्रक की खरीद एवं परिवार के घर के निर्माण और गाँव में कोल्ड स्टोरेज सुविधा की स्थापना के लिये अल्पकालिक ऋण सहायता नहीं दी जाती है। अत: कथन 2 और 5 सही नहीं हैं।

अतः विकल्प (b) सही है।


प्रश्न: 'प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016))

  1. इस योजना के तहत किसानों को वर्ष के किसी भी मौसम में खेती की जाने वाली किसी भी फसल के लिये दो प्रतिशत का एक समान प्रीमियम का भुगतान करना होगा। 
  2. इस योजना में चक्रवातों और बेमौसम बारिश तथा फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को शामिल किया गया है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

उपग्रहों की अनियंत्रित पुन: प्रविष्टि

प्रिलिम्स के लिये:

बाह्य अंतरिक्ष संस्थान, रॉकेट प्रक्षेपण के चरण, ISRO, RISAT-2।

मेन्स के लिये:

उपग्रहों की अनियंत्रित पुन: प्रविष्टि और संबद्ध चिंताएँ।

चर्चा में क्यों? 

बाह्य अंतरिक्ष संस्थान (OSI) ने उपग्रहों की अनियंत्रित पुन: प्रविष्टि को प्रतिबंधित करने के लिये राष्ट्रीय और बहुपक्षीय दोनों प्रयासों का आह्वान किया है।

  • OSI विश्व के अग्रणी अंतरिक्ष विशेषज्ञों का एक नेटवर्क है जो अत्यधिक नवीन, ट्राॅसडिसिप्लिनरी रिसर्च के प्रति अपनी प्रतिबद्धता हेतु प्रयासरत है जो अंतरिक्ष के निरंतर उपयोग और अन्वेषण का सामना करने वाली बड़ी चुनौतियों का समाधान करता है।

रॉकेट लॉन्च के चरण:

  • प्राथमिक चरण:
    • रॉकेट के प्राथमिक चरण में पहला रॉकेट इंजन संलग्न है, जो रॉकेट को आकाश की ओर भेजने के लिये प्रारंभिक बल प्रदान करता है।
    • यह इंजन तब तक कार्य करता है जब तक इसका ईंधन समाप्त नहीं हो जाता, उसके बाद यह रॉकेट से अलग हो जाता है और ज़मीन पर गिर जाता है।
  • माध्यमिक चरण:
    • प्राथमिक चरण के बाद, अगला रॉकेट इंजन अपने प्रक्षेपवक्र पर रॉकेट को संचालित रखने के लिये संलग्न होता है।
    • दूसरे चरण में काफी कम कार्य होता है, क्योंकि रॉकेट पहले से ही तेज़ गति से यात्रा कर रहा है और पहले चरण के अलग होने के कारण रॉकेट का वज़न काफी कम हो गया है।
    • यदि रॉकेट में अतिरिक्त चरण हैं, तो प्रक्रिया रॉकेट के अंतरिक्ष पहुँचने तक दोहराई जाएगी।
  • पेलोड: 
    • एक बार पेलोड चाहे वह उपग्रह हो या अंतरिक्ष यान कक्षा में पहुँचता है तो रॉकेट अलग हो जाता है उसके बाद क्राफ्ट को छोटे रॉकेटों का उपयोग करके संचालित किया जाता है जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष यान का मार्गदर्शन करना है। मुख्य रॉकेट इंजनों के विपरीत इन युद्धाभ्यास रॉकेटों को कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है।

Payload-Separation

अनियंत्रित पुन: प्रवेश (Uncontrolled Re-entry):

  • एक अनियंत्रित पुन: प्रवेश चरण में रॉकेट नीचे की ओर गिरता है। इसके गिरने का मार्ग इसके आकार, अवरोहण कोण, वायु धाराओं और अन्य विशेषताओं से निर्धारित होता है।
  • गिरने के साथ ही यह विघटित भी हो जाता है। जैसे-जैसे इसके छोटे टुकड़े बाहर निकलते हैं, भूमि पर इसके प्रभाव की विभव त्रिज्या बढ़ जाती है। 
  • कुछ टुकड़े पूरी तरह से जल जाते हैं जबकि अन्य नहीं। लेकिन जिस गति से ये बढ़ रहे हैं उसके कारण मलबा घातक हो सकता है।
    • इंटरनेशनल स्पेस सेफ्टी फाउंडेशन की वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार, 300 ग्राम से अधिक द्रव्यमान के मलबे वाले विमान का प्रभाव एक विनाशकारी परिणाम उत्पन्न करेगा, जिसका अर्थ है कि विमान पर सवार सभी लोग मर सकते हैं। 
  • रॉकेट के अधिकांश पुर्जे मुख्य रूप से महासागरों में गिरे हैं क्योंकि पृथ्वी की सतह पर भूमि की तुलना में जल अधिक है। लेकिन कई पुर्जे  भूमि पर भी गिरे हैं।

संबंधित चिंताएँ:

  • अतीत में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ रॉकेट पृथ्वी के कुछ हिस्सों पर गिरे हैं।  
  • वर्ष 2018 में रूसी रॉकेट और वर्ष 2020 तथा 2022 में चीन के लॉन्ग मार्च 5 बी रॉकेट इंडोनेशिया, पेरू, भारत और आइवरी कोस्ट के कुछ हिस्सों पर गिरे थे।  
  • स्पेसएक्स फाल्कन 9 के कुछ हिस्सों में जो वर्ष 2016 में इंडोनेशिया में गिरे थे, उनमें दो "रेफ्रिज़रेटर के आकार के ईंधन टैंक" शामिल थे।
  • यदि फिर से प्रवेश करने के चरणों में भी ईंधन बचा हुआ है, तो वायुमंडलीय और स्थलीय रासायनिक संदूषण एक और अन्य जोखिम है।
  • यह अनुमान लगाया गया है कि अनियंत्रित रॉकेट के फिर से प्रवेश करने की वजह से अगले दशक में 10% दुर्घटना संबंधी जोखिम होने की संभावना है और 'ग्लोबल साउथ' के देशों के ज़्यादा प्रभावित होना आपेक्षित है।
    • संयुक्त राष्ट्र के ऑर्बिटल डेब्रिस मिटिगेशन स्टैंडर्ड प्रैक्टिसेज़ (ODMSP) के अनुसार रॉकेट के पुनः प्रवेश से हताहत होने की संभावना 0.01% से कम रखने की सलाह दी गई है। 
  • रॉकेट चरणों को हमेशा नियंत्रित पुन: प्रवेश करने के लिये कोई विश्वव्यापी समझौता नहीं है, न ही ऐसा करने के लिये कोई प्रौद्योगिकियों है।
  • उत्तरदायित्त्व समझौता 1972 में देशों को नुकसान के लिये भुगतान करने की आवश्यकता है, उन्हें रोकने की नहीं।
  • विंग-जैसे अटैचमेंट, डीऑर्बिटिंग ब्रेक, रीएंटरिंग बॉडी पर अधिक ईंधन और डिज़ाइन में बदलाव जो मलबे के उत्पादन को कम करते हैं, उपयोग की जाने वाली तकनीकों में से हैं। 

न्यूनतम क्षति

  • भविष्य के समाधानों को न केवल उपग्रहों को लॉन्च करने बल्कि उपग्रहों को फिर से प्रवेश करने के लिये भी विस्तारित करने की आवश्यकता है।
  • इलेक्ट्रॉनिक्स और निर्माण में हुई प्रगति ने छोटे उपग्रहों के लिये मार्ग प्रशस्त किया है, जिन्हें बड़ी संख्या में बनाना और लॉन्च करना आसान है। ये उपग्रह बड़े होने की तुलना में अधिक वायुमंडलीय खिंचाव का अनुभव करते हैं, लेकिन पुन: प्रवेश के दौरान उनके जलने की भी संभावना है।
    • भारत का 300 किलोग्राम वजनी RISAT-2 उपग्रह पृथ्वी की निम्न कक्षा में 13 वर्ष बाद अक्तूबर में पृथ्वी के वायुमंडल में फिर से प्रवेश कर गया। इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने इसे एक महीने पहले से सुरक्षित और टिकाऊ अंतरिक्ष संचालन प्रबंधन के लिये अपने तंत्र के साथ ट्रैक किया था। इसने इन-हाउस मॉडलों का उपयोग करते हुए अपने पूर्वानुमानित मार्गो का अनुपालन किया।

नोट:  

  • सोवियत संघ ने वर्ष 1957 में पहला कृत्रिम उपग्रह प्रक्षेपित किया।
  • कक्षा में 6,000 से अधिक उपग्रह हैं, उनमें से अधिकांश निम्न-पृथ्वी (100-2,000 किमी) और भूस्थैतिक (35,786 किमी) कक्षाओं में हैं, जिन्हें 5,000 से अधिक प्रक्षेपणों के माध्यम से भेजा गया है।
  • पुन: प्रयोज्य रॉकेट चरणों के आगमन के साथ रॉकेट लॉन्च की संख्या बढ़ रही है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स 

प्रश्न. दूरसंचार प्रसारण हेतु उपयोग किये जाने वाले उपग्रहों को भू-अप्रगामी कक्षा में रखा जाता है। एक उपग्रह ऐसी कक्षा में तब होता है जब:

(a) कक्षा भू-तुल्यकालिक होती है।
(b) कक्षा वृत्ताकार होती है।
(c) कक्षा पृथ्वी की भूमध्य रेखा के समतल होती है।
(d) कक्षा 22,236 किमी. की तुंगता पर होती है।

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों पर चर्चा कीजिये।  इस प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग ने भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में किस प्रकार सहायता की है? (वर्ष 2016)

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

पंचायती राज मंत्रालय वर्षांत समीक्षा 2022

प्रिलिम्स के लिये:

पंचायती राज संस्थान, PRI के विकास के लिये पहल

मेन्स के लिये:

पंचायती राज मंत्रालय वर्षांत समीक्षा, मंत्रालय की उपलब्धियाँ, PRI के विकास के लिये पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंचायती राज मंत्रालय वर्षांत समीक्षा 2022 जारी की गई है।

प्रमुख बिंदु 

  • स्वामित्त्व (SVAMITVA) योजना: 
    • परिचय: 
    • उपलब्धियाँ: 
      • दिसंबर 2022 तक करीब 2 लाख गाँवों में ड्रोन उड़ाने का काम पूरा हो चुका है।
      • दादरा और नगर हवेली एवं दमन और दीव, दिल्ली, हरियाणा, लक्षद्वीप द्वीप समूह, पुद्दुचेरी, उत्तराखंड, गोवा, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में ड्रोन परीक्षण किया जा रहा है।
      • हरियाणा और उत्तराखंड के सभी बसे हुए गाँवों के लिये संपत्ति कार्ड तैयार कर लिये गए हैं।
  • ई-ग्राम स्वराज ई-वित्तीय प्रबंधन प्रणाली: 
    • ई-ग्राम स्वराज पंचायती राज के लिये एक सरलीकृत कार्य आधारित लेखा अनुप्रयोग है।
    • यह पंचायती राज संस्थाओं को निधियों के अधिक अंतरण को प्रेरित करके पंचायत की विश्वसनीयता बढ़ाने में सहायता करता है। यह विकेंद्रीकृत योजना, प्रगति रिपोर्टिंग और कार्य-आधारित लेखांकन के माध्यम से बेहतर पारदर्शिता लाता है।
  • संपत्ति की जियो-टैगिंग: 
    • मंत्रालय ने संपत्ति का आकलन करने के लिये जियो-टैग (यानी, GPS निर्देशांक) के साथ चित्रों को कैप्चर करने में सहायता हेतु  मोबाइल-आधारित समाधान "एमएक्शनसॉफ्ट (mActionSoft)" बनाया है। 
    • दिसंबर 2022 तक, वर्ष 2022 में पंद्रहवें वित्त आयोग के अंतर्गत की गई गतिविधियों के लिये ग्राम पंचायतों द्वारा परिसंपत्तियों की 2.05 लाख तस्वीरें अपलोड की गई हैं।
  • सिटीजन चार्टर:
    • सेवाओं के मानक के संबंध में अपने नागरिकों के प्रति पंचायती राज संस्थानों (PRI) की प्रतिबद्धता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए, मंत्रालय ने "मेरी पंचायत मेरा अधिकार - जन सेवा हमारे द्वार" के नारे के साथ नागरिक चार्टर दस्तावेज़ अपलोड करने के लिये मंच प्रदान किया है।
    • दिसंबर 2022 तक 2.15 लाख ग्राम पंचायतों ने अपना स्वीकृत सिटीजन चार्टर अपलोड किया है और नागरिकों को 952 सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं, जिनमें से 268 सेवाएँ ऑनलाइन मोड के माध्यम से प्रदान की जा रही हैं।
  • ऑनलाइन ऑडिट:
    • सार्वजनिक डोमेन में पंचायत खातों की लेखापरीक्षा रिपोर्ट प्रदान करने के लिये मंत्रालय ने केंद्रीय वित्त आयोग अनुदानों से संबंधित पंचायत खातों की ऑनलाइन लेखा परीक्षा करने हेतु "ऑडिटऑनलाइन" एप्लिकेशन की संकल्पना की थी।
    • यह न केवल खातों की ऑडिटिंग की सुविधा प्रदान करता है बल्कि किये गए ऑडिट से संबंधित डिजिटल ऑडिट रिकॉर्ड को बनाए रखने का भी प्रावधान करता है।
  • ग्राम ऊर्जा स्वराज:
    • मंत्रालय ने ग्राम पंचायत स्तर पर अक्षय ऊर्जा को अपनाने तथा उसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से ग्राम ऊर्जा स्वराज पहल शुरू की है।
    • मंत्रालय ने अक्षय ऊर्जा को अपनाने की दिशा में पंचायती राज संस्थानों (PRIs) के प्रोत्साहन हेतु मई 2022 में ग्राम ऊर्जा स्वराज पोर्टल भी लॉन्च किया है।
  • संशोधित राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (2022-23 से 2025-26):
    • संशोधित RGSA की योजना का फोकस पंचायती राज संस्थाओं को स्थानीय स्वशासन के जीवंत केन्द्रों के रूप में पुन: कल्पना पर है जिसमें केन्द्रीय मंत्रालयों और राज्य स्तरीय विभागों तथा अन्य हितधारकों के ठोस एवं सहयोगात्मक प्रयासों के माध्यम से विषयगत दृष्टिकोण अपनाते हुए ज़मीनी स्तर पर सतत् विकास लक्ष्यों (LSDG) के स्थानीयकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है।
    • संशोधित RGSA देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों तक विस्तारित किया जाएगा।
    • दिसंबर 2022 तक, 11 राज्य और अन्य कार्यान्वयन एजेंसियों को 435.34 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई है और पंचायतों के 13 लाख से अधिक निर्वाचित प्रतिनिधियों, पदाधिकारियों और अन्य हितधारकों को विभिन्न प्रशिक्षण प्रदान किये गए हैं, जिनके विवरण प्रशिक्षण प्रबंधन पोर्टल वेबसाइट पर अपलोड हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. पंचायती राज व्यवस्था का मूल उद्देश्य निम्नलिखित में से किसे सुनिश्चित करना है? (2015)

  • विकास में जन भागीदारी
  • राजनीतिक जवाबदेही
  • लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण
  • वित्त का संग्रहण

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2 और 4
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: c

व्याख्या:

  • पंचायती राज व्यवस्था का मौलिक उद्देश्य विकास और लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण में लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना है। अतः कथन 1 और 3 सही हैं।
  • पंचायती राज संस्थाओं की स्थापना स्वतः ही राजनीतिक उत्तरदायित्व की ओर नहीं ले जाती है। अत: कथन 2 सही नहीं है।
  • वित्त का संग्रहण पंचायती राज का मूल उद्देश्य नहीं है, हालाँकि यह वित्त और संसाधनों को ज़मीनी स्तर पर हस्तांतरित करता है। अत: कथन 4 सही नहीं है। अतः विकल्प (c) सही है।

स्रोत: पी.आई.बी.


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

परमाणु ऊर्जा पर जापान की नई नीति

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु ऊर्जा, परमाणु ऊर्जा संयंत्र, यूरेनियम-235, भारत-अमेरिकाअसैन्य परमाणु समझौता।

मेन्स के लिये:

भारत में परमाणु ऊर्जा की संभावना।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में जापान ने वैश्विक ईंधन की कमी के बीच एक स्थिर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये परमाणु ऊर्जा के अधिक उपयोग को बढ़ावा देने वाली एक नई नीति अपनाई है।

 जापान की नई परमाणु ऊर्जा नीति: 

  • यह वर्ष 2011 में फुकुशिमा संकट के बाद जापान की परमाणु फेज़-आउट योजना के बिल्कुल विपरीत है।
    • वर्ष 2011 में सुनामी के कारण फुकुशिमा दुर्घटना परमाणु ऊर्जा उत्पादन के इतिहास में दूसरी सबसे भयावह परमाणु दुर्घटना थी। यह साइट जापान के प्रशांत तट पर, पूर्वोत्तर फुकुशिमा प्रान्त में सेंदाई से लगभग 100 किमी दक्षिण में है।
  • इस नीति में मौजूदा परमाणु रिएक्टरों को यथासंभव पुनः आरंभ करके और पुराने रिएक्टरों के प्रचालन अवधि को उनकी 60 वर्ष की सीमा से आगे बढ़ाकर तथा उन्हें प्रतिस्थापित करने के लिये अगली पीढ़ी के रिएक्टरों का विकास करके उनके उपयोग को अधिकतम करने का प्रयास किया गया है।
  • यह भविष्य में परमाणु ऊर्जा के उपयोग को बनाए रखने हेतु प्रतिबद्ध है। जापान में अधिकांश परमाणु रिएक्टर 30 वर्ष से अधिक पुराने हैं।  
  • इसका उद्देश्य सुरक्षित सुविधाओं के साथ "अगली पीढ़ी के अभिनव रिएक्टरों" के विकास और निर्माण पर ज़ोर देना है ताकि लगभग 20 रिएक्टरों को प्रतिस्थापित किया जा सके जो अब सेवा मुक्त करने के लिये निर्धारित हैं।
    • जापान की ऊर्जा आपूर्ति में परमाणु ऊर्जा का योगदान 7% से भी कम है और वित्तीय वर्ष 2030 तक अपनी हिस्सेदारी 20-22% तक बढ़ाने के सरकार के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये वर्तमान के 10 की जगह 27 रिएक्ट की आवश्यकता होगी।

भारत की परमाणु ऊर्जा की संभावना:

  • परमाणु ऊर्जा की स्थिति:
    • परमाणु ऊर्जा भारत के लिये विद्युत का पाँचवाँ सबसे बड़ा स्रोत है। भारत के पास देश भर में 7 बिजली संयंत्रों में 22 से अधिक परमाणु रिएक्टर हैं जो 6780 मेगावाट परमाणु ऊर्जा का उत्पादन करते हैं। ये 7 बिजली संयंत्र हैं:
      • तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन (TAPS), महाराष्ट्र।
      • कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा स्टेशन (KKNPS), तमिलनाडु
      • काकरापार परमाणु ऊर्जा स्टेशन (KAPS), गुजरात।
      • कलपक्कम, मद्रास एटॉमिक पावर स्टेशन (MAPS), तमिलनाडु।
      • नरोरा परमाणु ऊर्जा स्टेशन (NAPS), उत्तर प्रदेश।
      • कैगा जनरेटिंग स्टेशन (KGS), कर्नाटक।
      • राजस्थान परमाणु ऊर्जा स्टेशन (KKNPS), राजस्थान।
    • सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (NPCIL) देश में परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों के डिजाइन, निर्माण, कमीशनिंग और संचालन के लिये ज़िम्मेदार है।
      • NPCIL भारत सरकार के परमाणु ऊर्जा विभाग (DE) के तहत काम करता है।
  • भारत के लिये महत्त्व:
    • थोरियम की उपलब्धता: भारत थोरियम नामक परमाणु ईंधन के संसाधन में अग्रणी है, जिसे भविष्य का परमाणु ईंधन माना जाता है।
      • थोरियम की उपलब्धता के साथ, भारत में जीवाश्म ईंधन मुक्त राष्ट्र के सपने को साकार करने वाला पहला राष्ट्र बनने की क्षमता है। 
    • आयात बिलों में कटौती: परमाणु ऊर्जा देश को सालाना लगभग 100 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से भी राहत प्रदान करेगी जो हम पेट्रोलियम और कोयले के आयात पर खर्च करते हैं।
    • स्थिर और विश्वसनीय स्रोत: सौर और पवन हरित ऊर्जा के स्रोत हैं। लेकिन मौसम और धूप की स्थिति पर अत्यधिक निर्भरता के कारण सौर और पवन ऊर्जा उनके सभी फायदों के बावजूद स्थिर नहीं हैं।
      • दूसरी ओर, नाभिकीय ऊर्जा विश्वसनीय ऊर्जा का एक अपेक्षाकृत स्वच्छ, उच्च घनत्त्व वाला स्रोत है।
    • संचालन में किफायती: नाभिकीय ऊर्जा संयंत्रों को  संचलित करना उनके कोयले या गैस प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में किफायती है। यह अनुमान है कि रेडियोधर्मी ईंधन के प्रबंधन और परमाणु संयंत्रों के निपटान में भी कोयला-चालित संयंत्र और गैस संचालित संयंत्र की तुलना में  33 से 50% और 20 से 25% किफायती होता है।
  • चुनौतियाँ: 
    • अपर्याप्त परमाणु स्थापित क्षमता: वर्ष 2008 में, परमाणु ऊर्जा आयोग ने अनुमान लगाया था कि भारत के पास वर्ष 2050 तक 650GW की स्थापित क्षमता होगी; भारत की वर्तमान स्थापित क्षमता केवल 6.78 GW है।
    • सार्वजनिक वित्त की कमी: नाभिकीय ऊर्जा को अतीत में प्राप्त जीवाश्म ईंधन और वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा को प्राप्त होने वाली जैसी सब्सिडी कभी नहीं मिली है।
      • सार्वजनिक वित्त के अभाव में, परमाणु ऊर्जा के लिये भविष्य में प्राकृतिक गैस और नवीकरणीय ऊर्जा के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन होगा।
    • भूमि अधिग्रहण: भूमि अधिग्रहण और परमाणु ऊर्जा संयंत्र (NPP) के लिये स्थान का चयन भी देश में एक बड़ी समस्या है।
      • तमिलनाडु में कुडनकुलम और आंध्र प्रदेश में कोव्वाडा जैसे परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को भूमि अधिग्रहण संबंधी चुनौतियों के कारण देरी का सामना करना पड़ा है।
    • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन से परमाणु रिएक्टर दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाएगा। विश्व में लगातार गर्म होते जा रहे ग्रीष्मकाल के दौरान पहले से ही कई परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को अस्थायी रूप से बंद करने की स्थिति बनती रही है।
      • इसके अलावा, परमाणु ऊर्जा संयंत्र अपने रिएक्टरों को ठंडा करने के लिये आस-पास के जल स्रोतों पर निर्भर हैं, जबकि नदियों आदि के सूखने के साथ जल के उन स्रोतों की अब गारंटी नहीं है। 
    • अपर्याप्त पैमाने पर तैनाती: भारत के कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये यह उपयुक्त विकल्प नहीं हो सकता है क्योंकि इसे आवश्यक पैमाने पर तैनात नहीं किया जा सकता है।
    • परमाणु अपशिष्ट: परमाणु ऊर्जा का एक अन्य दुष्प्रभाव इससे उत्पन्न होने वाले परमाणु अपशिष्ट की मात्रा है। परमाणु अपशिष्ट का जीवन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है, जैसे यह कैंसर के विकास का कारण बन सकता है या पशुओं तथा पौधों की कई पीढ़ियों के लिये आनुवंशिक समस्याएँ पैदा कर सकता है।
      • भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में भूमि का अभाव है और आपातकालीन स्वास्थ्य देखभाल सुविधा सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध नहीं है।

परमाणु ऊर्जा के संबंध में भारत की प्रमुख पहल:

  • तीन चरणीय परमाणु उर्जा कार्यक्रम:  
    • भारत ने बिजली उत्पादन के उद्देश्य से परमाणु ऊर्जा के दोहन की संभावना का पता लगाने के लिये सचेत रूप से कदम आगे बढ़ाए हैं। 
    • इस दिशा में होमी जहाँगीर भाभा द्वारा वर्ष 1950 के दशक में एक तीन चरणीय परमाणु उर्जा कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार की गई।
  • परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 
    • भारतीय परमाणु ऊर्जा रिएक्टरों में दो प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तत्त्वों यूरेनियम और थोरियम को परमाणु ईंधन के रूप में उपयोग करने के निर्धारित उद्देश्यों के साथ परमाणु ऊर्जा अधिनियम, 1962 को तैयार एवं कार्यान्वित किया गया।
  • दाबित भारी जल रिएक्टरों:
    • दिसंबर 2021 में भारत सरकार ने संसद को बताया कि 10 स्वदेशी ‘दाबित भारी जल रिएक्टरों (Pressurised Heavy Water Reactors- PHWRs) का निर्माण किया जा रहा है जिन्हें फ्लीट मोड में स्थापित किया जाएगा, जबकि 28 अतिरिक्त रिएक्टरों के लिये सैद्धांतिक अनुमोदन प्रदान कर दिया गया है जिनमें से 24 रिएक्टर फ्राँस, अमेरिका और रूस से आयात किये जाएँगे।
  • महाराष्ट्र के जैतापुर में परमाणु ऊर्जा रिएक्टर:
    • हाल ही में केंद्र ने महाराष्ट्र के जैतापुर में छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर स्थापित करने के लिये सैद्धांतिक (प्रथम चरण) मंज़ूरी प्रदान की है।
    • जैतापुर संयंत्र विश्व का सबसे शक्तिशाली परमाणु ऊर्जा संयंत्र होगा। यहाँ 9.6 गीगावॉट की स्थापित क्षमता वाले छह अत्याधुनिक इवोल्यूशनरी पॉवर रिएक्टर (EPRs) होंगे जो निम्न-कार्बन वाली बिजली का उत्पादन करेंगे।
    • ये छह परमाणु ऊर्जा रिएक्टर (जिनमें प्रत्येक की क्षमता 1,650 मेगावाट होगी) फ्राँस के तकनीकी सहयोग से स्थापित किये जाएँगे।

आगे की राह

  • वैश्विक ऊर्जा संकट को परमाणु ऊर्जा स्रोत पर तर्कसंगत पुनर्विचार करना चाहिये क्योकि इसे अनावश्यक रूप से देखा जाता है।
    • हमें विभिन्न निम्न-कार्बन प्रौद्योगिकियों के बीच सही चुनाव करना चाहिये, जिनमें से सभी का सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव कम हो।
  • बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिये परमाणु ऊर्जा बेहतर समाधानों में से एक है।
  • नवीकरणीय ऊर्जा के कम क्षमता उपयोग, जीवाश्म ईंधन की बढ़ती कीमतों और लगातार बढ़ती प्रदूषण की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए, परमाणु ऊर्जा की क्षमता का पूरी तरह से दोहन किया जाना चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. नाभिकीय रिएक्टर में भारी जल का कार्य होता है:(2011) 

(a) न्यूट्रॉन की गति को धीमा करना।
(b) न्यूट्रॉन की गति बढ़ाना ।
(c) रिएक्टर को ठंडा करना ।
(d) परमाणु अभिक्रिया को रोकना।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • भारी जल (D2O), जिसे ड्यूटेरियम ऑक्साइड भी कहा जाता है, ड्यूटेरियम (हाइड्रोजन समस्थानिक) से बना जल होता है, जिसका द्रव्यमान सामान्य जल (H2O) से दोगुना होता है।
  • भारी जल प्राकृतिक रूप से पाया जाता है, हालाँकि यह सामान्य जल की तुलना में बहुत कम होता है।
  • यह आमतौर पर परमाणु रिएक्टरों में न्यूट्रॉन मॉडरेटर के रूप में प्रयोग किया जाता है, ताकि न्यूट्रॉन की गति को धीमाकिया जा सके।

अतः विकल्प (a) सही है।


प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? परमाणु ऊर्जा से संबंधित तथ्यों की विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2018)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


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