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डेली न्यूज़

  • 23 Dec, 2021
  • 41 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

चीन के बीआरआई (BRI) निवेश में गिरावट

प्रिलिम्स के लिये:

बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड, ब्लू डॉट नेटवर्क, ग्लोबल गेटवे

मेन्स के लिये:

बीआरआई और इसका क्षेत्र, निहितार्थ और परिणाम, बीआरआई को प्रतिसंतुलित करने हेतु शुरू की गई पहलें।

चर्चा में क्यों? 

चीन स्थित थिंक टैंक की रिपोर्ट के अनुसार, चीन के बहुप्रचारित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative- BRI) परियोजना के निवेश में वर्ष 2019 के बाद से 5% की गिरावट आई है।

  • निवेश में गिरावट का कारण असफल सौदे और कोविड-19 महामारी है।
  • अवसंरचना ऋण (Infrastructure Debt) और ऋण चूक (Loan Defaults) हेतु चीन अब अफ्रीका में परियोजनाओं के लिये नकदी नहीं दे रहा है।

BRI-Investment

प्रमुख बिंदु 

  • BRI के बारे में:
    • यह 2013 में शुरू की गई एक मल्टी-अरब डॉलर की पहल है।
    • इसका उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।
    • इसका उद्देश्य विश्व में बड़ी बुनियादी ढांँचा परियोजनाओं को शुरू करना है जो बदले में चीन के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाएगा।
    • रेलवे, बंदरगाह, राजमार्ग और अन्य बुनियादी ढांँचे जैसी बीआरआई परियोजनाओं में सहयोग करने के लिये 100 से अधिक देशों ने चीन के साथ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं।
      • वर्ष 2000 से 2020 तक चीन ने अफ्रीकी देशों में 13,000 किलोमीटर से अधिक सड़क और रेलमार्ग, बड़े पैमाने पर 80 से अधिक विद्युत सुविधाओं के निर्माण में मदद की तथा 130 से अधिक चिकित्सा सुविधाओं, 45 खेल स्थलों व 170 से अधिक स्कूलों को वित्तपोषित किया है एवं अफ्रीकी संघ सम्मेलन केंद्र का निर्माण किया।
  • BRI के तहत गतिविधियाँ:
    • इसमें पाँच प्रकार की गतिविधियाँ शामिल हैं
      • नीति समन्वय, व्यापार संवर्द्धन, भौतिक संपर्क, रॅन्मिन्बी (चीन की मुद्रा) का अंतर्राष्ट्रीयकरण और पीपल-टू-पीपल संपर्क।
  • BRI के तहत मार्ग:
    • न्यू सिल्क रोड इकोनॉमिक बेल्ट: इसमें चीन के उत्तर में व्यापार और निवेश केंद्र शामिल हैं; जिसमें म्याँमार एवं भारत के माध्यम से यूंरेशिया तक पहुँच बनाना है।
    • मैरीटाइम सिल्क रोड (MSR): यह दक्षिण चीन सागर से शुरू होकर भारत-चीन, दक्षिण-पूर्व एशिया की ओर जाती है और फिर हिंद महासागर के आसपास अफ्रीका एवं यूरोप तक पहुँचती है।
  • संबंधित चिंताएँ (भारत और विश्व के लिये):
    • भारत के सामरिक हितों में बाधा:
      • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और बलूचिस्तान से होकर गुज़रता है, दोनों ही क्षेत्र लंबे समय से विद्रोह के केंद्र हैं जहाँ भारत को आतंकवाद एवं सुरक्षा जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
      • CPEC दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को बाधित करेगा और कश्मीर विवाद मामले में पाकिस्तान को वैधता प्रदान करने में सहायक हो सकता है।
      • साथ ही CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित करने का प्रयास अफगानिस्तान के आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक साझेदार के रूप में भारत की स्थिति को कमज़ोर कर सकता है।
    • उपमहाद्वीप में चीन का सामरिक उदय: चीन द्वारा चीन-म्याँमार आर्थिक गलियारा (CMEC) और CPEC के साथ-साथ 'चीन-नेपाल आर्थिक गलियारा' (CNEC) भी विकसित किया जा रहा है जो तिब्बत को नेपाल से जोड़ेगा।
      • परियोजना का समापन बिंदु गंगा के मैदान की सीमाएँ होंगी।
      • इस प्रकार ये तीन गलियारे भारतीय उपमहाद्वीप में चीन के आर्थिक और रणनीतिक उदय को दर्शाते हैं।
    • पारदर्शिता की कमी:
      • बीआरआई समझौतों में पारदर्शिता की कमी और छोटे देशों पर चीन के बढ़ते कर्ज ने वैश्विक चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
        • श्रीलंका द्वारा चीन को हंबनटोटा बंदरगाह 99 वर्ष के पट्टे पर देने के संबंध में बीआरआई के नकारात्मक पक्ष के बारे में चिंता व्यक्त की गई है और छोटे देशों में अरबों डॉलर की लागत वाली प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर ज़ोर दिया गया है।
  • बीआरआई के प्रतिपक्ष में पहल:
    • B3W पहल: G7 देशों ने चीन के BRI का मुकाबला करने के लिये 47वें G7 शिखर सम्मेलन में 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (B3W) पहल' का प्रस्ताव रखा।
      • इसका उद्देश्य विकासशील और कम आय वाले देशों में बुनियादी ढाँचे के निवेश घाटे को दूर करना है।
    • ब्लू डॉट नेटवर्क (BDN): यह अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया द्वारा गठित एक बहु-हितधारक पहल है, जो वैश्विक बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये उच्च गुणवत्ता, विश्वसनीय मानकों को बढ़ावा देने तथा सरकारों, निजी क्षेत्र एवं नागरिक समाज को एक साथ लाने के लिये बनाई गई है।
      • BDN को औपचारिक रूप से नवंबर 2019 में बैंकॉक, थाईलैंड में इंडो-पैसिफिक बिज़नेस फोरम में घोषित किया गया था।
    • ग्लोबल गेटवे: बीआरआई के साथ प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये यूरोपीय संघ ने हाल ही में ग्लोबल गेटवे नामक एक नई बुनियादी ढाँचा विकास योजना शुरू की।

आगे की राह:

  • चीन के  BRI का मुकाबला करने के लिये अधिक उन्नत देशों द्वारा वैकल्पिक परियोजनाएँ शुरू की जानी चाहिये जो मेज़बान/प्राप्तकर्ता देशों के हितों को ध्यान में रखते हुए प्रकृति में भी सहभागी हों।
  • भारत को अपने बुनियादी ढाँचे के निर्माण और उन्नयन के लिये आवश्यक होने पर जापान जैसे भागीदारों से मदद लेनी चाहिये और चीनी नेतृत्व वाले कनेक्टिविटी कॉरिडोर व बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का विकल्प बनाना चाहिये क्योंकि दक्षिण एशिया और हिंद महासागर में अकेले कार्य करने की भारत की क्षमता सीमित है।
  • भारत के लिये अपने पड़ोसियों को वैकल्पिक कनेक्टिविटी व्यवस्था प्रदान करने हेतु इस क्षेत्र में अपने भागीदारों के साथ काम करना महत्त्वपूर्ण है।
    • विदेश नीति के प्रभाव को बढ़ाने के लिये कनेक्टिविटी को एक उपकरण के रूप में देखा जा रहा है।

स्रोत: बिज़नेस स्टैण्डर्ड


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रमना काली मंदिर: बांग्लादेश

प्रिलिम्स के लिये:

रमना काली मंदिर, बांग्लादेश मुक्ति युद्ध।

मेन्स के लिये:

लिबरेशन वॉर, भारत-बांग्लादेश संबंधों में बांग्लादेश और भारत की जीत की 50वीं वर्षगाँठ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय राष्ट्रपति ने रमना, ढाका (बांग्लादेश) में पुनर्निर्मित रमना काली मंदिर का उद्घाटन किया, जहाँ ऐतिहासिक सुहरावर्दी उद्यान (पूर्व रमना रेस कोर्स) स्थित है।

  • पुनर्निर्मित रमना कालीबाड़ी का उद्घाटन मुक्ति संग्राम में बांग्लादेश और भारत की जीत की 50वीं वर्षगाँठ के साथ हुआ, जो दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय संबंधों की स्वर्ण जयंती का भी प्रतीक है।

Ramna_Kali_Temple

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • मार्च 1971 में ऑपरेशन सर्चलाइट के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और क्रूर कार्रवाई के कारण नरसंहार हुआ एवं बांग्लादेश मुक्ति युद्ध हुआ।
      • मार्च 1971 में पश्चिम पाकिस्तान ने बंगालवासियों के आत्मनिर्णय को दबाने के लिये पूर्वी पाकिस्तान में एक नरसंहार का नेतृत्व किया। पूर्वी पाकिस्तान ने बांग्लादेश में जनवादी गणराज्य की स्थापना हेतु लड़ाई लड़ी और जीत हासिल की। बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • पाकिस्तान से मुक्त होने के बाद बांग्लादेश के लोगों द्वारा प्रार्थना करने के लिये साइट पर एक छोटा मंदिर स्थापित किया गया।
    • वर्ष 2017 में परिसर के पुनर्निर्माण की घोषणा उस समय की गई थी, जब तत्कालीन भारतीय विदेश मंत्री ने बारीधारा, ढाका में 15 विकास परियोजनाओं का उद्घाटन किया।
    • ऐतिहासिक रमना काली मंदिर भारत और बांग्लादेश के लोगों के बीच आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक बंधन का प्रतीक है।
  • रमना काली मंदिर:
    • माना जाता है कि देवी काली को समर्पित इस मंदिर का निर्माण मुगल काल के दौरान किया गया था। इसे 400 साल पुराना माना जाता है, हालाँकि यह बताना मुश्किल है कि इसे किस वर्ष बनाया गया था।
    • यह मंदिर एक हिंदू संप्रदाय द्वारा बनाया गया था, लेकिन यह पहचान करना मुश्किल है कि इसे किसने बनाया था। हालाँकि ऐसा कहा जाता है कि निश्चित ही इसे हरिचरण गिरि द्वारा बनाया गया था जो मंदिर में महंत थे।
    • यह एक बहुत बड़ा मंदिर नहीं था और वास्तुकला के मामले में काफी सामान्य था, हालाँकि यह ढाकेश्वरी मंदिर के बाद बांग्लादेश में दूसरा सबसे पुराना हिंदू मंदिर है।
    • 20वीं शताब्दी की शुरुआत में मंदिर को तब प्रमुखता मिली जब प्रसिद्ध संत माँ आनंदमयी ने अपने आश्रम को परिसर में बनाया।
      • आनंदमयी को लोकप्रिय रूप से "शाहबाग-एर मा" या शाहबाग की माँ के रूप में संबोधित किया जाता था।
  • मंदिर और युद्ध:
    • 27 मार्च, 1971 को पाकिस्तानी सेना द्वारा मंदिर को नष्ट कर दिया गया तथा पुजारियों और भक्तों सहित 85 हिंदुओं की हत्या कर दी गई।
    • 7 मार्च, 1971 को मंदिर तोड़े जाने से कुछ दिन पहले बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान ने रमना रेसकोर्स मैदान में अपना ऐतिहासिक भाषण दिया जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता हेतु संघर्ष के लिये बंगालियों का आह्वान किया था।
      • बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान (1920-1975) बांग्लादेश के संस्थापक नेता और देश के पहले प्रधानमंत्री थे।

भारत-बांग्लादेश संबंध

Bangladesh

  • सैन्य सहयोग:
    •  बांग्लादेश सरकार ने अपनी सीमाओं से भारत विरोधी उग्रवादी तत्त्वों को समाप्त करने का कार्य किया है जिसके परिणामस्वरूप भारत-बांग्लादेश सीमा क्षेत्र के सबसे शांतिपूर्ण क्षेत्रों में से एक बन गई है।
    • इसने भारत को अपनी अधिक विवादास्पद सीमाओं पर सैन्य संसाधनों की बड़े पैमाने पर पुन: तैनाती करने की अनुमति दी है।
  • भूमि सीमा समझौता: 
    • वर्ष 2015 में बांग्लादेश और भारत ने ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते (Land Boundary Agreement) की पुष्टि कर अपनी सीमाओं से संबंधित मुद्दों को शांतिपूर्वक हल करने के क्रम में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की।
  • व्यापार संबंध: 
    • बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। वित्तीय वर्ष 2018-19 में भारत से बांग्लादेश को किया जाने वाला निर्यात 9.21 बिलियन डॉलर और आयात 1.04 बिलियन डॉलर का था।
    • इसके साथ ही भारत ने कई बांग्लादेशी उत्पादों को शुल्क मुक्त पहुँच प्रदान करने की पेशकश भी की है।
  • विकास के क्षेत्र:
    • विकास के मोर्चे पर भी दोनों देशों के बीच सहयोग में वृद्धि हुई है। हाल के वर्षों में भारत ने सड़कों, रेलवे, पुलों और बंदरगाहों के निर्माण हेतु बांग्लादेश को 8 बिलियन डॉलर की राशि लाइन ऑफ क्रेडिट (एक प्रकार का ऋण) के रूप में प्रदान की है।
  • बेहतर कनेक्टिविटी: दोनों देशों के बीच कनेक्टिविटी में बहुत अधिक सुधार हुआ है।
    • कोलकाता और अगरतला के बीच एक सीधी बस सेवा (ढाका से होते हुए) शुरू होने से दोनों स्थानों के बीच यात्रा के लिये केवल 500 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है, जबकि चिकेन नेक के माध्यम से यात्रा करने पर 1,650 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है।
    • बांग्लादेश अपने मोंगला और चटोग्राम (चटगाँव) बंदरगाह से माल ढुलाई की अनुमति देता है, जहाँ से सड़क, रेल और जलमार्ग के माध्यम से माल को अगरतला तक पहुँचाया जाता है।
  • सहयोग के नए क्षेत्र: 
    • भारत आने वाले पर्यटकों में एक बड़ा हिस्सा बांग्लादेशी पर्यटकों का है, वर्ष 2017 में पश्चिमी यूरोप से आने वाले पर्यटकों के आँकड़ों को पीछे छोड़ते हुए भारत आने वाले पर्यटकों में से प्रत्येक पाँचवाँ पर्यटक बांग्लादेश से था।
    • भारत के अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा रोगियों (इलाज हेतु अन्य देशों से भारत आने वाले मरीज़) में 35% से अधिक हिस्सेदारी बांग्लादेश की है और भारत के राजस्व में 50% से अधिक योगदान चिकित्सा यात्रा का है।
  • हालिया विकास:
    • इससे पूर्व वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध, जिसमें बांग्लादेश को स्वतंत्रता प्राप्त हुई, के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर बांग्लादेश सशस्त्र बलों (Bangladesh Armed Forces) के 122 सदस्यीय दल ने भारत की 72वीं गणतंत्र दिवस परेड में हिस्सा लिया।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय इतिहास

तमिल साहित्य: संगम काल

प्रिलिम्स के लिये:

संगम काल, कृष्णा और तुंगभद्रा नदियाँ, थिरुमुरुगरुप्पडई, पोरुनाररुप्पडई, सिरुपनारुप्पडई, पेरुम्पनरुप्पडई, मुल्लाईपट्टू, नेदुनलवदाई, मदुरैक्कनजी, कुरिनजीपट्टू, पट्टिनप्पलई और मलाइपदुकदम।

मेन्स के लिये:

संगम साहित्य के विभिन्न पहलू और ऐतिहासिक ग्रंथों के रूप में उनकी प्रासंगिकता, तमिल साहित्य का इतिहास।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में शिक्षा राज्य मंत्री द्वारा तोलकाप्पियम (Tolkāppiyam) के हिंदी अनुवाद और शास्त्रीय तमिल साहित्य की 9 पुस्तकों के कन्नड़ अनुवाद का विमोचन किया गया।

  • तमिल साहित्य संगम युग से जुड़ा हुआ है, जिसका नाम कवियों की सभा (संगम) के नाम पर रखा गया है।

मुख्य बिंदु 

  • संगम काल के बारे में:
    • यह लगभग तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य की अवधि है। दक्षिण भारत (कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदी के दक्षिण में स्थित क्षेत्र) में लगभग तीन सौ ईसा पूर्व से तीन सौ ईस्वी के बीच की अवधि को संगम काल के नाम से जाना जाता है।
    • इसका नाम उस अवधि के दौरान आयोजित संगम अकादमियों/सभाओं के नाम पर रखा गया है जो मदुरै के पांड्य राजाओं के शाही संरक्षण में फली-फूली।
    • संगमों में प्रख्यात विद्वान इकट्ठे हुए और सेंसर बोर्ड के रूप में कार्य किया तथा संकलन के रूप में सबसे अच्छे साहित्य का प्रतिपादन किया गया।
    • ये साहित्यिक कृतियाँ द्रविड़ साहित्य के शुरुआती नमूने थे।
    • संगम युग के दौरान दक्षिण भारत पर तीन राजवंशों- चेरों, चोल और पांड्यों का शासन था।
    • तीन संगम:
      • तमिल किंवदंतियों के अनुसार, प्राचीन दक्षिण भारत में तीन संगमों (तमिल कवियों का समागम) का आयोजन किया गया था, जिसे मुच्चंगम (Muchchangam) कहा जाता था।
        • माना जाता है कि प्रथम संगम मदुरै में आयोजित किया गया था। इस संगम में देवता और महान संत शामिल थे। इस संगम का कोई साहित्यिक ग्रंथ उपलब्ध नहीं है।
        • दूसरा संगम कपाटपुरम् में आयोजित किया गया था, इस संगम का एकमात्र तमिल व्याकरण ग्रंथ तोलकाप्पियम ही उपलब्ध है।
        • तीसरा संगम भी मदुरै में हुआ था। इस संगम के अधिकांश ग्रंथ नष्ट हो गए थे। इनमें से कुछ सामग्री समूह ग्रंथों या महाकाव्यों के रूप में उपलब्ध है।
  • संगम साहित्य
    • संगम साहित्य में तोलकाप्पियम, एट्टुटोगई, पट्टुप्पट्टू, पथिनेंकिलकनक्कु ग्रंथ और शिलप्पादिकारम् और मणिमेखलै नामक दो महाकाव्य शामिल हैं।
      • तोल्काप्पियम: यह तोलकाप्पियार द्वारा लिखा गया था और इसे तमिल साहित्यिक कृति में सबसे पुराना माना जाता है। 
        • यह व्याकरण से संबंधित एक ग्रंथ है, साथ ही यह उस समय की राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों की जानकारी भी प्रदान करता है।
        • यह नौ खंडों के तीन भागों में व्याकरण और काव्य पर एक अनूठा काम है, जिनमें से प्रत्येक एज़ुट्टू (अक्षर), कोल (शब्द) और पोरुल (विषय वस्तु) से संबंधित है।
        • सामान्य बोलचाल से लेकर काव्यात्मकता तक मानव भाषा के लगभग सभी स्तर तोल्काप्पियार के विश्लेषण के दायरे में आते हैं, क्योंकि वे स्वर विज्ञान, आकृति विज्ञान, वाक्य रचना, बयानबाज़ी, छंद और काव्य पर उत्कृष्ट काव्यात्मक एवं एपिग्रामेटिक बयानों में व्यवहार करते हैं।
      • एट्टुटोगई (आठ संकलन): इसमें आठ रचनाएँ शामिल हैं- ऐंगुरुनूरु, नरिनाई, अगनौरु, पुराणनूरु, कुरुंतोगई, कलित्टोगई, परिपादल और पदिरट्टू।
      • पट्टुप्पट्टू (दस रचना): इसमें दस रचनाएँ शामिल हैं- थिरुमुरुगरुप्पडई, पोरुनाररुप्पडई, सिरुपनारुप्पडई, पेरुम्पनरुप्पडई, मुल्लाईपट्टू, नेदुनलवदाई, मदुरैक्कनजी, कुरिनजीपट्टू, पट्टिनप्पलई और मलाइपदुकदम।
      • पाथिनेंकिलकणक्कु (Pathinenkilkanakku): इसमें नैतिकता और नैतिकता संबंधी अठारह कार्य शामिल हैं।
    • इन कार्यों में सबसे महत्त्वपूर्ण महान तमिल कवि और दार्शनिक तिरुवल्लुवर द्वारा लिखित तिरुक्कुरल है।
  • तमिल महाकाव्य: शिलप्पादिकारम् ‘इलांगोआदिगल’ द्वारा और मणिमेखलै ‘सीतलैसत्तनार’ द्वारा लिखे गए महाकाव्य हैं।
    • वे संगम समाज और राज्य व्यवस्था के बारे में बहुमूल्य विवरण भी प्रदान करते हैं।

स्रोत: पीआईबी


शासन व्यवस्था

मॉब लिंचिंग

प्रिलिम्स के लिये:

मॉब लिंचिंग, पूनावाला केस, मॉब लिंचिंग से संबंधित कानूनी प्रावधान।

मेन्स के लिये:

मॉब लिंचिंग का कारण और इसे दूर करने के लिये किये गए उपाय।

चर्चा में क्यों?

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री ने अमृतसर और कपूरथला में लिंचिंग की हालिया घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है।

प्रमुख बिंदु:

  • परिचय:
    • मॉब लिंचिंग एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल लोगों के एक बड़े समूह द्वारा लक्षित हिंसा के कृत्यों का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
    • भीड़ मानती ​​है कि वह पीड़ित को गलत कार्य (ज़रूरी नहीं कि अवैध हो) करने के लिये दंडित कर रही है और किसी कानून का पालन किये बिना कथित आरोपी को दंडित करने हेतु कानून अपने हाथ में लेती है।
  • मॉब लिंचिंग का कारण:
    • असहिष्णुता:
      • लोग कानून के कृत्यों को स्वीकार करने में असहिष्णु हैं और कथित व्यक्ति को अनैतिक मानते हुए दंडित करने के लिये आगे बढ़ते हैं।
    • पूर्वाग्रह:
      • जाति, वर्ग, धर्म आदि जैसी विभिन्न पहचानों पर आधारित पूर्वाग्रह: मॉब लिंचिंग एक घृणित अपराध है जो विभिन्न जातियों, लोगों और धर्मों के बीच पूर्वाग्रहों के कारण बढ़ रहा है।
    • गौ हत्या के आरोप में लिंचिंग: 
      • यह उन महत्त्वपूर्ण कारणों में से एक है जो मॉब लिंचिंग की गतिविधियों में तेज़ी से वृद्धि करता है। 
    • शीघ्र न्याय का अभाव: 
      • न्याय प्रदान करने वाले अधिकारियों का अकुशल कार्य ही प्राथमिक कारण है कि लोग कानून को अपने हाथ में लेते हैं तथा परिणामों से डरते नहीं हैं। 
    • पुलिस प्रशासन की अक्षमता: 
      • पुलिस अधिकारी लोगों के जीवन की रक्षा करने और लोगों के बीच सद्भाव बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं लेकिन उनकी अप्रभावी जाँच प्रक्रिया के कारण यह घृणित अपराध दिन-ब-दिन बढ़ता ही जा रहा है।
  • मॉब लिंचिंग के प्रकार: कारणों के आधार पर मॉब लिंचिंग को छह प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:    
    • सांप्रदायिक आधारित
    • जादू-टोना
    • सम्मान की रक्षा हेतु हत्या
    • गोजातीय-संबंधी मॉब लिंचिंग
    • बच्चा चोरी का शक
    • चोरी के मामले
  • संबंधित मुद्दे:
    • मॉब लिंचिंग मानव गरिमा का उल्लंघन है, साथ ही यह संविधान के अनुच्छेद-21 और ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ का भी उल्लंघन है।
    • ऐसी घटनाएँ ‘समानता के अधिकार और ‘भेदभाव के निषेध’ संबंधी मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद-14 और 15 में निहित हैं।
    • हालाँकि देश के कानून में कहीं भी इसका उल्लेख नहीं है और इसलिये इसे केवल हत्या के रूप में रखा गया है, क्योंकि इसे अभी तक भारतीय दंड संहिता के तहत शामिल नहीं किया गया है।
  • उठाए गए संबंधित कदम:
    • निवारक उपाय: 
      • जुलाई 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने तहसीन एस. पूनावाला बनाम यूओआई मामले में  लिंचिंग और भीड़ की हिंसा से निपटने के लिये कई निवारक, उपचारात्मक और दंडात्मक उपाय निर्धारित किये थे।
        • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मॉब लिंचिंग को 'भीड़ तंत्र का एक भयानक कृत्य' कहा।
    • नामित फास्ट ट्रैक कोर्ट:
      • राज्यों को हर ज़िले में विशेष रूप से मॉब लिंचिंग से जुड़े मामलों से निपटने के लिये नामित फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित करने का निर्देश दिया गया था।
    • स्पेशल टास्क फोर्स:
      • न्यायालय ने नफरत भरे भाषणों, भड़काऊ बयानों और फेक न्यूज़ फैलाने में शामिल लोगों के बारे में खुफिया रिपोर्ट हासिल करने के उद्देश्य से एक विशेष टास्क फोर्स के गठन पर भी विचार किया था, जिसके कारण मॉब लिंचिंग हो सकती है।
    • पीड़ित मुआवज़ा योजना:
      • पीड़ितों के राहत और पुनर्वास हेतु पीड़ित मुआवज़ा योजनाओं (Victim compensation schemes) को स्थापित करने के लिये भी निर्देश जारी किये  गए।
      • एक साल बाद जुलाई 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र और कई राज्यों को नोटिस जारी कर कहा कि वे उपायों को लागू करने की दिशा में उनके द्वारा उठाए गए कदमों को प्रस्तुत करें और अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करें।
      • अब तक केवल तीन राज्यों मणिपुर, पश्चिम बंगाल और राजस्थान ने मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनाए हैं।
        • हाल ही में झारखंड विधानसभा ने  'झारखंड मॉब वायलेंस एंड मॉब लिंचिंग निवारण विधेयक 2021 को पारित किया है।

आगे की राह 

  • लिंचिंग एक ऐसी घृणित घटना है जिसका उस लोकतांत्रिक समाज में कोई स्थान नहीं होना चाहिये, जिस पर भारत को गर्व है।
  • लिंचिंग की घटना शासन को विशेष रूप से अस्थिर करती है, जबकि भीड़ द्वारा की गई हिंसा का कार्य स्वयं कानून प्रवर्तन की विफलता का संकेत है, यह एक स्पष्ट विचार के रूप में प्रतिबद्ध होती है जिसमें कानून की सहायता नहीं ली जाती है।
  • भीड़ की हिंसा के मामलों में पुलिस की निष्क्रियता सिद्धांतों को विकृत रूप से तोड़मरोड़, पुलिस द्वारा न्यायेतर दंड की स्पष्ट सार्वजनिक स्वीकृति न दिये जाने के कारण देखी जाती है।
  • यह देश के लिये घातक है। भीड़ की हिंसक घटनाओं के कारण वास्तव में देश की बदनामी होती है और इसे समाप्त करने के लिये पुलिस को सख्ती के साथ हस्तक्षेप करना चाहिये।
  • भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसक कार्यवाहियों को अनुमति देने वाली सामाजिक सहमति पर सवाल उठाने में राजनीतिक नेतृत्व की भी भूमिका होती है।

स्रोत: द हिंदू  


शासन व्यवस्था

वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम: नीति आयोग

प्रिलिम्स के लिये:

वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम, अटल इनोवेशन मिशन, आठवीं अनुसूची

मेन्स के लिये:

वीआईपी और भाषा की बाधाओं को दूर करने तथा इनोवेटर्स को सशक्त बनाने में इसका महत्त्व। भारत में एक नवोन्मेषी पारिस्थितिकी तंत्र बनाने में सरकारी प्रयास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अटल इनोवेशन मिशन (AIM), नीति आयोग ने अपनी तरह का पहला वर्नाक्युलर इनोवेशन प्रोग्राम (VIP) लॉन्च किया है, जो देश में नवोन्मेषकों और उद्यमियों को भारत सरकार की 22 अनुसूचित भाषाओं में नवाचार इको-सिस्टम तक पहुँच में सक्षम बनाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • VIP नवाचार और उद्यमिता के क्षेत्र में भाषा की बाधा को दूर करने की एक पहल है, यह रचनात्मक अभिव्यक्तियों और लेन-देन की भाषाओं को व्यवस्थित रूप से अलग कर देगा।
    • VIP के लिये आवश्यक क्षमता का निर्माण करने हेतु AIM ने 22 अनुसूचित भाषाओं में से प्रत्येक में एक वर्नाक्युलर टास्क फोर्स (VTF) की पहचान की है और इसमें प्रशिक्षण देगा।
    • प्रत्येक टास्क फोर्स में स्थानीय भाषा के शिक्षक, विषय विशेषज्ञ, तकनीकी लेखक और क्षेत्रीय अटल इनक्यूबेशन सेंटर (AICs) के नेतृत्त्व शामिल हैं।
  • महत्त्व
    • यह भारतीय नवाचार और उद्यमिता पारिस्थितिकी तंत्र के विकास में एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा, जो युवा एवं महत्त्वाकांक्षी लोगों के संज्ञानात्मक और डिज़ाइन दृष्टिकोण को मज़बूत करेगा।
    • यह डिज़ाइन विशेषज्ञों और नवाचार करने वाले लोगों के एक मज़बूत स्थानीय नेटवर्क के निर्माण में भारत की सहायता करेगा।
    • यह भाषा की बाधाओं को दूर करने और देश के सबसे दूर के क्षेत्रों में नवप्रवर्तनकर्त्ताओं को सशक्त बनाने में मदद करेगा।
    • यह उन स्थानीय नवप्रवर्तनकर्त्ताओं के लिये समान अवसर पैदा करेगा, जो भारतीय आबादी के 90% हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।
      • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, केवल 10.4% भारतीय अंग्रेज़ी बोलते हैं, जिसमें से अधिकांश लोग इसका प्रयोग अपनी दूसरी, तीसरी या चौथी भाषा के रूप में करते हैं।
      • केवल 0.02% भारतीय अपनी प्राथमिक भाषा के रूप में अंग्रेज़ी बोलते थे।
    • किसी की भाषा और संस्कृति में सीखने हेतु पहुँच प्रदान करके AIM स्थानीय, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक नवाचार पाइपलाइनों को समृद्ध करने के लिये तत्पर है।
  • नवाचार/उद्यमिता से संबंधित अन्य पहलें:

 अटल नवाचार मिशन (AIM)

  • अटल नवाचार मिशन के बारे में:
    • AIM देश में नवाचार और उद्यमिता की संस्कृति को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की प्रमुख पहल है। इसकी स्थापना नीति आयोग ने की है।
  • उद्देश्य:
    • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये नए कार्यक्रम और नीतियांँ विकसित करना, विभिन्न हितधारकों को मंच और सहयोग के अवसर प्रदान करना, जागरूकता पैदा करना तथा देश के नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र की निगरानी हेतु एक छत्र संरचना का निर्माण करना।
  • अटल नवाचार मिशन के तहत की गई पहल:

AIM

  • प्रमुख सफलता:

आठवीं अनुसूची 

  • इस अनुसूची में भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है। भारतीय संविधान के भाग XVII में अनुच्छेद 343 से 351 तक शामिल अनुच्छेद आधिकारिक भाषाओं से संबंधित हैं।
    • हालांँकि यह ध्यान देने योग्य है कि किसी भी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिये कोई निश्चित मानदंड निर्धारित नहीं है।
  • संविधान की आठवीं अनुसूची में निम्नलिखित 22 भाषाएँ शामिल हैं:
    • असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, ओडिया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
  • इन भाषाओं में से 14 भाषाओं को संविधान के प्रारंभ में ही शामिल कर लिया गया था।
  • वर्ष 1967 में सिंधी भाषा को 21वें सविधान संशोधन अधिनियम द्वारा आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।
  • वर्ष 1992 में 71वें संशोधन अधिनियम द्वारा कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली को शामिल किया गया।
  • वर्ष 2003 में 92वें सविधान संशोधन अधिनियम जो कि वर्ष 2004 से प्रभावी हुआ, द्वारा बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।

स्रोत: पीआईबी


भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में मसाला क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

प्रमुख मसाला उत्पादक राज्य, मसाला क्षेत्र हेतु प्रमुख आँकड़े

मेन्स के लिये:

भारत में मसाला उत्पादन, मसाला क्षेत्र हेतु की गई पहल

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने 'स्पाइस स्टैटिस्टिक्स एट ए ग्लांस 2021' पुस्तक का विमोचन किया है।

  • यह पुस्तक देश में वर्ष 2014-15 से वर्ष 2020-21 तक के पिछले सात वर्षों के दौरान मसालों के उत्पादन में हुई वृद्धि पर प्रकाश डालती है।

प्रमुख बिंदु

  • मसालों के विषय में:
    • मसाले बीज, फल, छाल, राइज़ोम और पौधों के अन्य भागों से प्राप्त सुगंधित खाद्य उत्पाद प्राप्त होते हैं।
    • उनका उपयोग भोजन के संरक्षण और दवाओं, रंगों एवं इत्र के रूप में किया जाता है।
    • मसालों को हज़ारों वर्षों से व्यापार की वस्तुओं के रूप में अत्यधिक महत्त्व दिया गया है।
      • मसाला शब्द लैटिन से आया है, जिसका अर्थ है ‘माल’।
    • विशेष रूप से महामारी की अवधि के दौरान मसालों को स्वास्थ्य पूरक के रूप में मान्यता देने के कारण मसालों की मांग में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है।
      • इसे हल्दी, अदरक, जीरा, मिर्च आदि जैसे मसालों के बढ़ते निर्यात से स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। 
  • भारत में मसाला उत्पादन:
    • भारत मसालों का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक, उपभोक्ता और निर्यातक देश है।
    • बदलती जलवायु के कारण उष्णकटिबंधीय से उपोष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय से समशीतोष्ण तक लगभग सभी जलवायु के मसालों का भारत में उत्पादन किया जाता है।
    • वास्तव में भारत के लगभग सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में किसी-न-किसी मसाले का उत्पादन किया जाता है।
    • संसदीय अधिनियम के तहत कुल 52 मसालों को मसाला बोर्ड के दायरे में लाया गया है।
      • मसाला बोर्ड (वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय) भारतीय मसालों के विकास और विश्वव्यापी प्रचार हेतु प्रमुख संगठन है।
      • यह मसाला बोर्ड अधिनियम, 1986 द्वारा स्थापित किया गया था।
    • भारत में कुछ राज्य ऐसे हैं जो उन मसालों का उत्पादन करते हैं जिनका राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों बाज़ारों में बहुत अधिक मूल्य है।
      • सबसे अच्छा उदाहरण ‘कश्मीरी केसर’ है जो दुनिया का सबसे अच्छा केसर है।
      • कश्मीरी केसर को भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग का दर्जा मिला है।
  • मसाला व्यापार:
    • मसालों का निर्यात देश में सभी बागवानी फसलों के कुल निर्यात आय में 41% का योगदान देता है।
    • यह समुद्री उत्पादों, गैर-बासमती चावल और बासमती चावल के बाद कृषि वस्तुओं में चौथे स्थान पर है।

Spices_Sector

संबंधित सरकारी पहल:

  • हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन (CAC) के तहत स्थापित मसालों और पाक जड़ी बूटियों (CCSCH) पर कोडेक्स समिति के पाँचवें सत्र का उद्घाटन किया।
  • मसालों और पाक जड़ी बूटियों पर कोडेक्स समिति (CCSCH) के बारे में:
    • स्थापना: इसका गठन वर्ष 2013 में किया गया था
    • संदर्भ शर्तें:
      • मसालों और पाक कला से संबंधित जड़ी बूटियों हेतु उनकी सूखी और निर्जलित अवस्था संबंधी विश्वव्यापी मानकों को विस्तृत करना।
      • मानकों के विकास की प्रक्रिया में दोहराव से बचने के लिये अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ परामर्श करना आवश्यक है।

स्रोत: पीआईबी


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