विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
चमगादड़ में निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज़
प्रिलिम्स के लिये:निपाह वायरस, ज़ूनोटिक वायरस मेन्स के लिये:चमगादड़ में निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडीज़ प्राप्त होने से लाभ |
चर्चा में क्यों?
हाल के एक सर्वेक्षण में महाराष्ट्र के लोकप्रिय हिल स्टेशन महाबलेश्वर की एक गुफा KI कुछ चमगादड़ प्रजातियों में निपाह वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी की उपस्थिति पाई गई है।
- यह सर्वेक्षण ‘इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च’ (ICMR)- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) द्वारा किया गया था।
प्रमुख बिंदु:
सर्वेक्षण के बारे में:
- NIV की टीम ने ‘रूसेटस लेसचेनौल्टी’ (Rousettus leschenaultii) और ‘पिपिस्ट्रेलस पिपिस्ट्रेलस’ (Pipistrellus pipistrellus ) चमगादड़ों पर अध्ययन किया जो सामान्यतः भारत में पाए जाते हैं।
- पटरोपस मेडियस चमगादड़ जो फल खाने वाले बड़े चमगादड़ हैं, जो भारत में NiV के अध्ययन के स्रोत हैं क्योंकि पिछले NiV प्रकोपों के दौरान एकत्र किये गए इन चमगादड़ों के नमूनों में NiV RNA और एंटीबॉडी दोनों का पता लगाया गया था।
- अत्यधिक उत्तेजन को सीमित करने की क्षमता के कारण एक चमगादड़ की प्रतिरक्षा प्रणाली विशेष रूप से वायरल संक्रमण का सामना करने में माहिर होती है, जो इस विशिष्ट स्तनपायी हेतु घातक हुए बिना वायरस को उत्पन्न करने देती है।
निपाह वायरस:
- यह एक ज़ूनोटिक वायरस है (यह जानवरों से इंसानों में फैलता है)।
- जीव जो निपाह वायरस एन्सेफेलाइटिस का कारण बनते हैं वह पैरामाइक्सोविरिडे, जीनस हेनिपावायरस का RNA या राइबोन्यूक्लिक एसिड वायरस है और हेंड्रा वायरस से निकटता से संबंधित है।
- हेंड्रा वायरस (HeV) संक्रमण एक दुर्लभ उभरता हुआ ज़ूनोसिस है जो संक्रमित घोड़ों और मनुष्यों दोनों में गंभीर और अक्सर घातक बीमारी का कारण बनता है।
- यह पहली बार वर्ष 1998 और 1999 में मलेशिया और सिंगापुर में देखा गया था।
- यह पहली बार घरेलू सुअरों में देखा गया और कुत्तों, बिल्लियों, बकरियों, घोड़ों तथा भेड़ों सहित घरेलू जानवरों की कई प्रजातियों में पाया गया।
- संक्रमण:
- यह रोग पटरोपस जीनस के ‘फ्रूट बैट’ या 'फ्लाइंग फॉक्स' के माध्यम से फैलता है, जो निपाह और हेंड्रा वायरस के प्राकृतिक स्रोत हैं।
- वायरस चमगादड़ के मूत्र और संभावित रूप से चमगादड़ के मल, लार और जन्म के समय तरल पदार्थों में मौजूद होता है।
- लक्षण:
- मानव संक्रमण में बुखार, सिरदर्द, उनींदापन, भटकाव, मानसिक भ्रम, कोमा और संभावित मृत्यु आदि एन्सेफेलाइटिक सिंड्रोम सामने आते हैं।
- रोकथाम:
- वर्तमान में मनुष्यों और जानवरों दोनों के लिये कोई टीका नहीं है। निपाह वायरस से संक्रमित मनुष्यों की गहन देखभाल की जाती है।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय राजनीति
जम्मू और कश्मीर में परिसीमन
प्रिलिम्स के लियेजम्मू और कश्मीर में परिसीमन, निर्वाचन आयोग, अनुच्छेद 370 मेन्स के लियेपरिसीमन आयोग और जम्मू-कश्मीर में परिसीमन |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में जम्मू और कश्मीर (J & K) में परिसीमन अभ्यास शुरू हुआ है।
- परिसीमन अभ्यास का पूरा होना केंद्रशासित प्रदेश (Union Territory- UT) में राजनीतिक प्रक्रिया को चिह्नित करेगा जो जून 2018 से केंद्र के शासन के अधीन है।
प्रमुख बिंदु
परिसीमन:
- निर्वाचन आयोग के अनुसार, किसी देश या एक विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों (विधानसभा या लोकसभा सीट) की सीमाओं को तय करने या फिर से परिभाषित करने का कार्य परिसीमन है।
- परिसीमन अभ्यास (Delimitation Exercise) एक स्वतंत्र उच्च-शक्ति वाले पैनल द्वारा किया जाता है जिसे परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है, जिसके आदेशों में कानून का बल होता है और किसी भी न्यायालय द्वारा इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
- किसी निर्वाचन क्षेत्र के क्षेत्रफल को उसकी जनसंख्या के आकार (पिछली जनगणना) के आधार पर फिर से परिभाषित करने के लिये वर्षों से अभ्यास किया जाता रहा है।
- एक निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को बदलने के अलावा इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप राज्य में सीटों की संख्या में भी परिवर्तन हो सकता है।
- संविधान के अनुसार, इसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये विधानसभा सीटों का आरक्षण भी शामिल है।
उद्देश्य:
- परिसीमन का उद्देश्य समय के साथ जनसंख्या में हुए बदलाव के बाद भी सभी नागरिकों के लिये सामान प्रतिनिधित्व को सुनिश्चित करना है। जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों का उचित विभाजन करना जिससे प्रत्येक वर्ग के नागरिकों को प्रतिनिधित्व का समान अवसर प्रदान किया जा सके।
परिसीमन के लिये संवैधानिक आधार:
- प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
- अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
- एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है।
- हालाँकि पहला परिसीमन अभ्यास राष्ट्रपति द्वारा (निर्वाचन आयोग की मदद से) 1950-51 में किया गया था।
- परिसीमन आयोग का गठबंधन अधिनियम, 1952 में अधिनियमित था।
- 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के आधार पर चार बार 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है।
- वर्ष 1981 और वर्ष 1991 की जनगणना के बाद परिसीमन नहीं किया गया।
परिसीमन आयोग:
- परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और यह भारतीय निर्वाचन आयोग के सहयोग से काम करता है।
- परिसीमन आयोग की संरचना:
- सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- मुख्य चुनाव आयुक्त
- संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त।
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन:
- अतीत में जम्मू-कश्मीर में परिसीमन अभ्यास क्षेत्र की विशेष स्थिति के कारण देश के बाकी हिस्सों से थोड़ा अलग रहा है।
- लोकसभा सीटों का परिसीमन तब जम्मू-कश्मीर में भारतीय संविधान द्वारा शासित था, लेकिन विधानसभा सीटों का परिसीमन जम्मू-कश्मीर संविधान और जम्मू-कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1957 द्वारा अलग से शासित किया गया था।
- हालाँकि जम्मू-कश्मीर ने अपना विशेष दर्जा खो दिया और 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के तहत अपनी विशेष स्थिति को निरस्त करने के बाद दो केंद्रशासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में विभाजित हो गया।
- इसके बाद 6 मार्च, 2020 को केंद्रशासित प्रदेश में विधानसभा और संसद की सीटों को बनाने के लिये एक विशेष परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।
परिसीमन के मुद्दे:
- जो राज्य जनसंख्या नियंत्रण में कम रुचि लेते हैं उन्हें संसद में अधिक संख्या में सीटें मिल सकती हैं। परिवार नियोजन को बढ़ावा देने वाले दक्षिणी राज्यों को अपनी सीटें कम होने की संभावना का सामना करना पड़ा।
- वर्ष 2002-08 तक परिसीमन जनगणना 2001 के आधार पर की गई थी लेकिन वर्ष 1971 की जनगणना के अनुसार विधानसभाओं और संसद में तय की गई सीटों की कुल संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था।
- संविधान ने लोकसभा एवं राज्यसभा सीटों की संख्या को क्रमशः 550 तथा 250 तक सीमित कर दिया है और बढ़ती जनसंख्या का प्रतिनिधित्व एक ही प्रतिनिधि द्वारा किया जा रहा है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
NDPS अधिनियम का निष्क्रिय प्रावधान: त्रिपुरा उच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 मेन्स के लियेभारत में नशीली दवाओं के नियंत्रण से संबंधित प्रावधान, संविधान संशोधन प्रकिया |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में त्रिपुरा उच्च न्यायालय ने पाया है कि ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 में वर्ष 2014 के संशोधनों का मसौदा तैयार करते हुए अनजाने में अधिनियम के एक प्रमुख प्रावधान (धारा 27A) को निष्क्रिय कर दिया गया है।
प्रमुख बिंदु
‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985
- भारत संयुक्त राष्ट्र सिंगल कन्वेंशन ऑन नारकोटिक्स ड्रग्स-1961, कन्वेंशन ऑन साइकोट्रोपिक सब्सटेंस-1971 और कन्वेंशन ऑन इलीसिट ट्रैफिक ऑन नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस, 1988 का एक हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- ये सभी कन्वेंशन चिकित्सा और वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिये नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों के उपयोग को सीमित करने के साथ-साथ उसके दुरुपयोग को रोकने हेतु दोहरे उद्देश्यों को प्राप्त करने नियम निर्धारित करते हैं।
- इस संबंध में भारत सरकार का मूल विधायी साधन ‘नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 है।
- यह अधिनियम नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों से संबंधित ऑपरेशन के नियंत्रण और विनियमन के लिये कड़े प्रावधान करता है।
- साथ ही इसमें नशीली दवाओं और साइकोट्रोपिक पदार्थों के अवैध व्यापार से प्राप्त या उपयोग की गई संपत्ति की ज़ब्ती का प्रावधान किया गया है।
- बार-बार अपराध किये जाने के मामले में यह अधिनियम मौत की सज़ा का भी प्रावधान करता है।
- अधिनियम के तहत वर्ष 1986 में ‘नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो’ का भी गठन किया गया था।
NDPS अधिनियम की धारा 27A:
- धारा 27A के तहत शामिल प्रावधान के मुताबिक, धारा 2 के खंड (viiia) के उप-खंड (i) से (v) में निर्दिष्ट किसी भी गतिविधि में प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शामिल कोई भी व्यक्ति अथवा उपरोक्त किसी भी गतिविधि में संलग्न किसी व्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करने वाला कोई भी व्यक्ति अधिनियम के तहत दंड के लिये पात्र होगा।
- ऐसे व्यक्ति को कठोर कारावास की सज़ा दी जाएगी, जिसकी अवधि दस वर्ष से कम नहीं होगी और जिसे बीस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही उस व्यक्ति पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो कि एक लाख रुपए से कम नहीं होगा, किंतु यह दो लाख रुपए से अधिक भी नहीं होगा।
- हालाँकि निर्णय में दिये गए कारणों के आधार पर दो लाख रुपए से अधिक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा 27A के निष्क्रिय होने का कारण
- इसके मुताबिक, धारा 2 (viiia) के उप-खंड (i) से (v) के तहत उल्लिखित अपराध धारा 27A के माध्यम से दंडनीय होंगे।
- हालाँकि धारा 2 (viiia) के उप-खंड (i) से (v), जिसे अपराधों की सूची माना जाता है, वर्ष 2014 के संशोधन के बाद मौजूद नहीं है।
- अतः यदि धारा 27A किसी रिक्त सूची या गैर-मौजूद प्रावधान को दंडनीय बनाती है, तो यह कहा जा सकता है कि यह वस्तुतः निष्क्रिय है।
NDPS अधिनियम में वर्ष 2014 का संशोधन:
- यह संशोधन मादक अथवा नशीली दवाओं के बेहतर चिकित्सा पहुँच सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू किया गया था। चूँकि NDPS अधिनियम के तहत नियमन काफी सख्त थे, अतः एक दर्द निवारक के रूप में इस्तेमाल किये जाने वाले मॉर्फिन का अग्रणी निर्माता होने के बावजूद देश में अस्पतालों के लिये दवा प्राप्त करना मुश्किल था।
- वर्ष 2014 के संशोधन के माध्यम से ‘आवश्यक मादक दवाओं’ के रूप में वर्गीकृत दवाओं के परिवहन और लाइसेंसिंग में राज्य- स्तर पर उत्पन्न बाधाओं को समाप्त कर दिया गया और इसे केंद्रीकृत कर दिया गया।
- इसके तहत आवश्यक नशीले पदार्थों को परिभाषित किया गया और आवश्यक मादक दवाओं के निर्माण, परिवहन, अंतर-राज्य आयात, अंतर-राज्य निर्यात, बिक्री, खरीद, खपत और उपयोग की अनुमति दी गई।
- आवश्यक मादक दवाओं की परिभाषा को जोड़ने के लिये किये गए संशोधन के माध्यम से अपराधों की सूची प्रदान करने वाली धारा 2 (viiiia) को धारा 2 (viiiib) के रूप में लिखा गया, जबकि धारा 2 (viiia) के तहत आवश्यक मादक दवाओं की परिभाषा को शामिल किया गया।
- हालाँकि इस संशोधन अधिनियम के निर्माता मूल अधिनियम की धारा 27A में भी संश्दोहन करने से चूक गए।
उच्च न्यायालय का निर्णय
- उच्च न्यायालय ने गृह मंत्रालय (भारत सरकार) को NDPS अधिनियम, 1985 की धारा 27A में संशोधन हेतु उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है।
- न्यायालय ने कहा कि में धारा में संशोधन किया जाना अभी शेष है। हालाँकि, lआपराधिक कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से संशोधित नहीं किया जा सकता है। इसलिये यदि संशोधन लाया भी जाता है, तो इससे प्रारूपण त्रुटि के कारण अधिक संवैधानिक प्रश्न उठ सकते हैं।
- न्यायालय ने अपने आदेश में केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को इस मामले से संबंधित सामग्री को संक्षेप में सार्वजनिक सूचना के लिये प्रकाशित करने को कहा है, ताकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद-20 का महत्त्व कम न हो।
- संविधान का अनुच्छेद 20 दोहरे दंड से सुरक्षा की गारंटी देता है।
- अनुच्छेद 20(1) के मुताबिक, कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिये तब तक सिद्धदोष नहीं ठहराया जाएगा, जब तक कि उसने ऐसा कोई कार्य करते समय, जो अपराध के रूप में आरोपित है, किसी प्रवृत्त कानून का उल्लंघन न किया हो या उससे अधिक सज़ा का भागी नहीं होगा जो उस अपराध के किये जाने के समय प्रवृत्त विधि के अधीन अधिरोपित की जा सकती थी।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
भारतीय अर्थव्यवस्था
सभी राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के लिये ड्रोन सर्वेक्षण अनिवार्य
प्रिलिम्स के लिये:NHAI, डेटा लेक पोर्टल, मेन्स के लिये:भारत में राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के लिये सुदृढ़ीकरण के लिये की गई पहलें |
चर्चा में क्यों?
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने विकास, निर्माण, संचालन और रख-रखाव के विभिन्न चरणों के दौरान राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं की वीडियो रिकॉर्डिंग के लिये ड्रोन का उपयोग अनिवार्य कर दिया है।
- परियोजनाओं पर हुई प्रगति का आकलन करने के लिये इन वीडियो का संग्रह NHAI के "डेटा लेक" (Data Lake) पोर्टल पर किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
लाभ:
- यह पारदर्शिता, एकरूपता को बढ़ाएगा और नवीनतम तकनीक का लाभ उठाने में मदद करेगा।
- NHAI के अधिकारी पूर्व की टिप्पणियों में हुई विसंगतियों और सुधारों की जाँच के लिये परियोजनाओं के भौतिक निरीक्षण के दौरान वीडियो का उपयोग कर सकते हैं।
- चूँकि ये वीडियो स्थायी रूप से 'डेटा लेक' पोर्टल पर संग्रहीत किये जाएंगे, इसलिये इनका प्रयोग विवाद समाधान प्रक्रिया के दौरान मध्यस्थ न्यायाधिकरणों और न्यायालयों के समक्ष साक्ष्य के रूप में भी किया जा सकता है।
- साथ ही राष्ट्रीय राजमार्गों पर सड़क की स्थिति का सर्वेक्षण करने के लिये नेटवर्क सर्वेक्षण वाहन (NSV) की अनिवार्य तैनाती से राजमार्गों की समग्र गुणवत्ता में वृद्धि होगी।
- NSV, 360 डिग्री इमेजरी के लिये उच्च-रिज़ॉल्यूशन डिज़िटल कैमरा, लेजर रोड प्रोफिलोमीटर और सड़क की सतह पर किसी संभावित जोखिम की माप के लिये अन्य नवीनतम सर्वेक्षण तकनीकों का उपयोग करता है।
NHAI का "डेटा लेक" पोर्टल:
- NHAI, यूनिक क्लाउड आधारित एवं आर्टिफिासियल इंटेलीजेंस संचालित बिग डाटा एनालिटिक्स प्लेटफॉर्म ‘डाटा लेक’ एवं प्रोजेक्ट मैनेजमेंट साफ्टवेयर के लॉन्च के साथ ‘पूरी तरह डिजिटल‘ हो गया है।
- सभी परियोजना दस्तावेज़ीकरण, अनुबंधात्मक निर्णय और अनुमोदन अब केवल पोर्टल के माध्यम से ही किये जा रहे हैं।
- एडवांस एनालिटिक्स के साथ, ‘डाटा लेक पोर्टल’ विलंबों, संभावित विवाद का पूर्वानुमान लगाएगा एवं अग्रिम अलर्ट देगा।
- लाभ:
- डाटा लेक अविलंबित, त्वरित निर्णय लेने, रिकार्ड के न खोने, कहीं से भी/किसी भी समय कार्य करने के लाभों के साथ NHAI में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा।
- यह पारदर्शिता को बढ़ाएगा क्योंकि परियोजना से जुड़े सभी अधिकारी और हितधारक देख सकते हैं कि रियल टाइम आधार पर क्या हो रहा है जो वरिष्ठों द्वारा समवर्ती निष्पादन लेखा परीक्षा के बराबर होगा।
- यह वरिष्ठ अधिकारियों और अन्य बाहरी एजेंसियों द्वारा ऑडिट करने में भी मदद करेगा।
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI):
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण का गठन भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1988 के तहत राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, अनुरक्षण और प्रबंधन को ध्यान में रखते हुए किया गया।
- भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण को अन्य छोटी परियोजनाओं सहित, राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (National Highways Development Project-NHDP) का कार्य सौंपा गया है
- राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (NHDP) भारत में प्रमुख राजमार्गों को उच्च स्तर पर उन्नत, पुनर्व्यवस्थित और चौड़ा करने की एक परियोजना है। इस परियोजना की शुरुआत वर्ष 1998 में की गई थी।
- NHAI का प्रमुख दृष्टिकोण वैश्विक मानकों के अनुसार, राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क की व्यवस्था एवं अनुरक्षण के लिये राष्ट्र की आवश्यकता तथा भारत सरकार द्वारा निर्धारित महत्त्वपूर्ण नीतिगत ढाँचे के अंतर्गत अत्यंत समयबद्व एवं लागत प्रभावी तरीके से प्रयोक्तता की आशाओं को पूरा करना और इस तरह लोगों की आर्थिक समृद्धि एवं उनके जीवन स्तर को समुन्नत करना है।
राष्ट्रीय राजमार्ग:
- भारत में प्रमुख सड़कें राष्ट्रीय और राज्य राजमार्ग हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों (NH) का निर्माण, वित्तपोषण और रख-रखाव केंद्र सरकार द्वारा किया जाता है जबकि राज्य राजमार्गों (SH) संबंधी कार्य राज्यों के लोक निर्माण विभाग द्वारा किये जाते हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- संसद द्वारा बनाए गए कानून (सातवीं अनुसूची के तहत संघ सूची) के तहत या द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किये जाते हैं।
- अनुच्छेद 257 (2): संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार राज्य को ऐसे संचार साधनों के निर्माण और उन्हें बनाए रखने के संबंध में निर्देश देने तक होगा जिनका राष्ट्रीय या सैनिक महत्त्व का होना उस निर्देश में घोषित किया गया है।
- बशर्ते इस खंड में राजमार्गों या जलमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग या राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने के लिये संसद की शक्ति को प्रतिबंधित करने के रूप में या संघ द्वारा घोषित राजमार्गों या जलमार्गों के संबंध में नहीं लिया जाएगा।
- सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) मुख्य रूप से राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास और रख-रखाव के लिये उत्तरदायी है।
- मंत्रालय ने सीमा क्षेत्रों के गैर-प्रमुख बंदरगाहों हेतु सड़क संपर्क सहित तटीय सड़कों का विकास, राष्ट्रीय गलियारों की दक्षता में सुधार, आर्थिक गलियारों का विकास और भारतमाला परियाजना के तहत सागरमाला के साथ फीडर रूट का एकीकरण आदि के लिये सड़क संपर्क को विकसित करने की दृष्टि से NH नेटवर्क की विस्तृत समीक्षा की है।
- भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों को राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 के तहत अधिसूचित किया गया है।
- NH और संबंधित उद्देश्यों के लिये भूमि अधिग्रहण राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा 3 के तहत किया जाता है तथा भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और स्थानांतरण में उचित मुआवज़े और पारदर्शिता का अधिकार (RFCTLARR) अधिनियम, 2013 की पहली अनुसूची के अनुसार मुआवज़ा निर्धारित किया जाता है।
- भूमिराशि पोर्टल को भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया को पूरी तरह से डिजिटल और स्वचालित करने के लिये वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया था।
- हरित राजमार्ग (वृक्षारोपण, प्रत्यारोपण, सौंदर्यीकरण एवं रखरखाव) नीति, 2015 का उद्देश्य विभिन्न समुदायों, किसानों, निजी क्षेत्रों, गैर सरकारी संगठनों एवं सरकारी संस्थानों की भागीदारी से राजमार्ग क्षेत्रों में हरियाली को बढ़ावा देना है।
स्रोत : पी.आई.बी
भारतीय अर्थव्यवस्था
प्रत्यक्ष कर में बढ़ोतरी
प्रिलिम्स के लियेप्रत्यक्ष कर, निगम कर, सिक्योरिटी लेनदेन कर, लाभांश वितरण कर, स्रोत पर कर कटौती, स्रोत पर कर संग्रह मेन्स के लियेप्रत्यक्ष कर में सुधार करने हेतु सरकार द्वारा किये गए प्रयास |
चर्चा में क्यों?
वित्तीय वर्ष 2021-22 के पहले ढाई महीनों (अप्रैल-जून) में भारत का प्रत्यक्ष कर संग्रह लगभग 1.86 लाख करोड़ रुपए रहा है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में लगभग दोगुना है। ज्ञात हो कि बीते वर्ष देशव्यापी लॉकडाउन के कारण प्रत्यक्ष कर संग्रह में कमी आई थी।
- पिछले वर्ष इसी अवधि में कुल संग्रह लगभग 92,762 करोड़ रुपए था।
प्रमुख बिंदु
प्रत्यक्ष कर संग्रह में बढ़ोतरी
- इसमें 74,356 करोड़ रुपए का निगम कर संग्रह तथा व्यक्तिगत आयकर प्रवाह शामिल है, जिसमें 1.11 लाख करोड़ रुपए का सिक्योरिटी लेनदेन कर शामिल है।
- प्रत्यक्ष कर संग्रह में उछाल स्वस्थ निर्यात और विभिन्न औद्योगिक एवं निर्माण गतिविधियों की निरंतरता को दर्शाता है।
- यह उम्मीद की जा रही है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) दोहरे अंकों में विस्तार दर्ज करेगी।
प्रत्यक्ष कर
- प्रत्यक्ष कर एक ऐसा कर है जो एक व्यक्ति या संगठन द्वारा प्रत्यक्ष तौर पर उस संस्था को दिया जाता है जिसने इसे अधिरोपित किया है।
- उदाहरण के लिये एक व्यक्तिगत करदाता, आयकर, वास्तविक संपत्ति कर, व्यक्तिगत संपत्ति कर सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये सरकार को प्रत्यक्ष कर का भुगतान करता है।
निगम कर
- निगम कर उस शुद्ध आय या लाभ पर लगाया जाने वाला प्रत्यक्ष कर है जो उद्यमी अपने व्यवसायों से कमाते हैं।
- कंपनी अधिनियम 1956 के तहत भारत में सार्वजनिक और निजी तौर पर पंजीकृत दोनों प्रकार की कंपनियाँ, निगम कर का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी हैं।
- यह कर आयकर अधिनियम, 1961 के प्रावधानों के अनुसार एक विशिष्ट दर पर लगाया जाता है।
- सितंबर 2019 में भारत ने मौजूदा कंपनियों के लिये निगम कर की दरों को 30% से घटाकर 22% और नई निर्माण कंपनियों के लिये 25% से 15% कर दिया था।
- सरचार्ज और सेस को मिलाकर मौजूदा कंपनियों के लिये प्रभावी टैक्स दर अब 35% से कम होकर 25.17% हो गई है।
सिक्योरिटी लेनदेन कर (STT)
- यह भारत में मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध प्रतिभूतियों की खरीद और बिक्री पर लगाया जाने वाला प्रत्यक्ष कर है।
- खरीदार और विक्रेता दोनों को सिक्योरिटी लेनदेन (STT) कर के रूप में शेयर मूल्य के 0.1% भुगतान करना होता है।
अग्रिम कर संग्रह
- अग्रिम कर का भुगतान उन लोगों द्वारा किया जाता है जिन पर एक वित्तीय वर्ष में 10,000 रुपए या उससे अधिक की कर देनदारी होती है। इसका भुगतान वेतनभोगी कर्मचारियों और व्यवसायों दोनों द्वारा किया जाता है, इस प्रकार इसमें कॉर्पोरेट कर और व्यक्तिगत आयकर से संग्रह राशि दोनों ही शामिल हैं।
- अग्रिम कर का भुगतान तब किया जाता है जब धन वित्तीय वर्ष के अंत के बजाय चार किश्तों में अर्जित किया जाता है।
- इसे बाज़ार में आर्थिक रुख का संकेतक माना जाता है।
- पहली किस्त या वार्षिक कर का 15% 15 जून तक, दूसरी किस्त 15 सितंबर (30%), तीसरी किस्त 15 दिसंबर (30%) तक और शेष 15 मार्च तक चुकानी होती है।
लाभांश वितरण कर
- लाभांश एक कंपनी के शेयरधारकों को मुनाफे के वितरण को संदर्भित करता है।
- इस प्रकार लाभांश वितरण कर भी एक प्रकार का कर है जो कंपनियों द्वारा अपने शेयरधारकों को दिये गए लाभांश पर देय होता है।
- वित्तीय वर्ष 2020-2021 के केंद्रीय बजट में लाभांश भुगतानकर्त्ता द्वारा भुगतान किये गए कर से ‘लाभांश वितरण कर’ को वापस ले लिया गया था। इसके बजाय अप्रैल 2021 से लाभांश प्राप्तकर्त्ताओं यानी वितरण कंपनी के शेयरधारकों पर कर लगाया जाएगा।
- प्रस्तावित दर भारत में निवासी शेयरधारकों को भुगतान किये गए लाभांश के लिये 10% और विदेशी निवेशकों को भुगतान किये जाने पर 20% है।
TDS/TCS
- स्रोत पर कर कटौती (TDS): एक व्यक्ति (कटौतीकर्त्ता) जो किसी अन्य व्यक्ति को निर्दिष्ट प्रकृति का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी है, स्रोत पर कर की कटौती करता है और इसे केंद्र सरकार के खाते में भेजता है।
- स्रोत पर कर संग्रह: यह एक अतिरिक्त राशि है जो बिक्री के समय खरीदार से निर्दिष्ट माल के विक्रेता द्वारा बिक्री राशि के अतिरिक्त कर के रूप में एकत्र की जाती है और सरकारी खाते में भेजी जाती है।
प्रत्यक्ष करों में बढ़ोतरी के लिये सरकार के प्रयास
- व्यक्तिगत आयकर के लिये: वित्त अधिनियम, 2020 ने व्यक्तियों और सहकारी समितियों को रियायती दरों पर आयकर का भुगतान करने का विकल्प प्रदान किया है यदि वे निर्दिष्ट छूट और प्रोत्साहन का लाभ नहीं उठाते हैं।
- विवाद से विश्वास: इसके तहत वर्तमान में लंबित कर विवादों के निपटारे के लिये घोषणाएँ दायर की जा रही हैं।
- इससे सरकार को समय पर राजस्व सृजित करने में मदद मिलेगी और साथ ही मुकदमेबाज़ी की बढ़ती लागत को कम करके करदाताओं को भी लाभ होगा।
- TDS/TCS के दायरे का विस्तार: कर आधार को व्यापक बनाने के लिये कई नए प्रकार के लेनदेन को स्रोत पर कर कटौती (TDS) और स्रोत पर कर संग्रह (TCS) के दायरे में लाया गया है।
- इसमें अधिक नकद निकासी, विदेशी प्रेषण, लक्जरी कारों की खरीद, ई-कॉमर्स प्रतिभागियों, सामानों की बिक्री, अचल संपत्ति का अधिग्रहण आदि शामिल हैं।
- 'पारदर्शी कराधान-ईमानदार का सम्मान' मंच: इसका उद्देश्य आयकर प्रणाली में पारदर्शिता लाना और करदाताओं को सशक्त बनाना है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
एकीकृत विद्युत विकास योजना
प्रिलिम्स के लिये: एकीकृत विद्युत विकास योजना मेन्स के लिये: विद्युत के क्षेत्र में भारत की स्थिति और पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विद्युत मंत्रालय की एकीकृत विद्युत विकास योजना (Integrated Power Development Scheme- IPDS) के तहत हिमाचल प्रदेश के सोलन में 50 kWp के सोलर रूफटॉप का उद्घाटन किया गया।
- यह परियोजना शहरी वितरण योजना में परिकल्पित सरकार की 'गो ग्रीन' (Go Green) पहल को और पुष्ट करती है।
प्रमुख बिंदु:
IPDS के संदर्भ में:
- शुरुआत:
- इसकी शुरुआत दिसंबर 2014 में की गई।
- नोडल एजेंसी:
- विद्युत मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत कार्यरत एक नवरत्न केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र का उद्यम (CPSE), पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन लिमिटेड (Power Finance Corporation Ltd.- PFC) इसके लिये नोडल एजेंसी का कार्य कर रहा है।
- घटक:
- शहरी क्षेत्रों में सब-ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क को मज़बूत करना।
- शहरी क्षेत्रों में वितरण हेतु ट्रांसफार्मरों/फीडरों/उपभोक्ताओं के लिये मीटर लगाना।
- एंटरप्राइज़ रिसोर्स प्लानिंग (ERP) और वितरण क्षेत्र को सूचना प्रौद्योगिकी में सक्षम करने हेतु योजनाएँ।
- ERP किसी व्यवसाय के महत्त्वपूर्ण भागों को एकीकृत करने में मदद करती है।
- राज्यों की अतिरिक्त मांग को शामिल करने के लिये और उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) में प्रदर्शन करने वाले राज्यों हेतु भूमिगत केबलिंग तथा सरकारी भवनों पर स्मार्ट मीटरिंग समाधान तथा नेट-मीटरिंग के साथ सौर पैनल भी योजना के तहत अनुमत हैं।
- उद्देश्य
- उपभोक्ताओं को 24×7 विद्युत आपूर्ति करना।
- कुल तकनीकी और वाणिज्यिक (Aggregate Technical and Commercial- AT&C) क्षति में कमी लाना।
- सभी घरों तक विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
- योग्यता:
- सभी विद्युत वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) इस योजना के तहत वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिये पात्र हैं।
- फंडिंग पैटर्न:
- भारत सरकार द्वारा अनुदान: 60% (विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये 85%)।
- अतिरिक्त अनुदान: 15% (विशेष श्रेणी के राज्यों के लिये 5%) कार्य के अनुसार।
भारत की स्थिति:
- भारत का विद्युत क्षेत्र विश्व में सबसे विविध क्षेत्रों में से एक है। विद्युत् उत्पादन के स्रोतों की श्रेणी पारंपरिक स्रोतों जैसे- कोयला, लिग्नाइट, प्राकृतिक गैस, तेल, जलविद्युत और परमाणु ऊर्जा से लेकर व्यवहार्य गैर-पारंपरिक स्रोत जैसे- पवन, सौर और कृषि तथा घरेलू कचरे तक है।
- भारत विश्व में विद्युत् का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है।
- विद्युत एक समवर्ती सूची (संविधान की सातवीं अनुसूची) का विषय है ।
- विद्युत मंत्रालय देश में विद्युत ऊर्जा के विकास के लिये प्राथमिक रूप से उत्तरदायी है।
- यह विद्युत अधिनियम, 2003 और ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 को प्रशासित करता है।
- सरकार ने वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा में 175 गीगावाट क्षमता हासिल करने के लिये अपना रोडमैप जारी किया है, जिसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा और 60 गीगावाट पवन ऊर्जा शामिल है।
- सरकार वर्ष 2022 तक रूफटॉप सौर परियोजनाओं के माध्यम से 40 गीगावाट (GW) विद्युत उत्पन्न करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु 'रेंट ए रूफ' (Rent a Roof) नीति तैयार कर रही है।
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित सभी मामलों के लिये नोडल मंत्रालय है।
- विद्युत क्षेत्र में स्वत: मार्ग के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment- FDI) की अनुमति है।
संबंधित सरकारी पहल:
- प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य): इसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देश के सभी इच्छुक घरों का विद्युतीकरण सुनिश्चित करना है।
- दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY): ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में (a) कृषि और गैर-कृषि फीडरों को अलग करने (b) वितरण ट्रांसफार्मर, फीडर और उपभोक्ता छोर पर मीटरिंग सहित ग्रामीण क्षेत्रों में उप-पारेषण और वितरण बुनियादी ढाँचे को मज़बूत करने और बढ़ाने का प्रावधान है।
- गर्व (ग्रामीण विद्युतीकरण-GARV) एप: विद्युतीकरण योजनाओं के कार्यान्वयन में पारदर्शिता की निगरानी हेतु GARV एप के माध्यम से प्रगति की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिये सरकार द्वारा ग्रामीण विद्युत अभियान (GVAs) चलाया गया गया है।
- उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय): डिस्कॉम के परिचालन और वित्तीय बदलाव के लिये इसकी शुरुआत की गई।
- संशोधित टैरिफ नीति में '4 ई (4 Es)': 4ई में सभी के लिये विद्युत्, किफायती टैरिफ सुनिश्चित करने की क्षमता, एक स्थायी भविष्य के लिये पर्यावरण, निवेश को आकर्षित करने और वित्तीय व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिये व्यापार करने में आसानी शामिल है।
उपलब्धियाँ:
- भारत में सौर शुल्क वित्त वर्ष 2015 में 7.36 रुपए प्रति किलोवाट से कम होकर वित्त वर्ष 2020 में 2.63 रुपए प्रति किलोवाट घंटा हो गया है।
- दिसंबर 2020 तक 36.69 करोड़ से अधिक एलईडी बल्ब, 1.14 करोड़ एलईडी ट्यूबलाइट और 23 लाख ऊर्जा कुशल पंखे पूरे देश में वितरित किये गए हैं, जिससे प्रति वर्ष 47.65 बिलियन kWh ऊर्जा की बचत होती है।
- नवंबर 2020 की पहली छमाही में भारत की विद्युत खपत 7.8% बढ़कर 50.15 बिलियन यूनिट (BU) हो गई, जो आर्थिक गतिविधियों में सुधार का संकेत है।
- अप्रैल-सितंबर 2020 में थर्मल स्रोतों से ऊर्जा उत्पादन 472.90 BU रहा।
- विश्व बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस - "गेटिंग इलेक्ट्रिसिटी" रैंकिंग में भारत की रैंक वर्ष 2014 के 137 से वर्ष 2019 में 22 हो गई।
- 28 अप्रैल, 2018 तक दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (DDUGJY) के तहत शत-प्रतिशत गाँवों का विद्युतीकरण किया जा चुका है।
स्रोत: पी.आई.बी
सुरक्षा
भारत-अमेरिका: PASSEX
प्रिलिम्स के लिये:भारत- अमेरिका के मध्य होने वाले युद्धाभ्यास मेन्स के लिये:महत्त्चपूर्ण नहीं |
चर्चा में क्यों?
भारतीय नौसेना के जहाज़ हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region- IOR) के माध्यम से अपने पारगमन के दौरान अमेरिकी नौसेना के रोनाल्ड रीगन कैरियर स्ट्राइक ग्रुप (US Navy’s Ronald Reagan Carrier Strike Group) के साथ एक ‘पैसेज सैन्य अभ्यास’ (Passage Exercise-PASSEX) में भाग लेंगे।
- पूर्व-नियोजित समुद्री अभ्यासों के विपरीत पैसेज सैन्य अभ्यास अवसर के अनुसार कभी भी किया जा सकता है।
- इससे पहले भारतीय नौसेना ने भी जापानी नौसेना और फ्राँसीसी नौसेना के साथ इसी तरह के PASSEX का आयोजन किया था।
प्रमुख बिंदु
- अभ्यास IAF के दक्षिणी वायु कमान के अधिकार क्षेत्र में है और IAF बलों में जगुआर (Jaguars), सुखोई-30 MKI फाइटर्स, एयर-टू-एयर रिफ्यूलर एयरक्राफ्ट, एयरबोर्न वार्निंग एंड कंट्रोल सिस्टम (AWACS) और एयरबोर्न अर्ली वार्निंग एंड कंट्रोल (AEW&C) शामिल होंगे।
- P-8I (समुद्री गश्ती विमान) और (भारतीय जहाज़ आधारित) मिग 29K विमान के साथ भारतीय नौसेना के जहाज़ कोच्चि एवं तेग PASSEX में भाग ले रहे हैं।
- भारतीय नौसेना के युद्धपोत, भारतीय नौसेना और भारतीय वायु सेना (IAF) के विमानों के साथ यूएस कैरियर स्ट्राइक ग्रुप के साथ संयुक्त बहु-क्षेत्रीय संचालन में संलग्न होंगे।
- अभ्यास के दौरान उच्च गति के संचालन में उन्नत वायु रक्षा अभ्यास, क्रॉस डेक हेलीकॉप्टर संचालन और पनडुब्बी रोधी अभ्यास शामिल हैं।
अमेरिका के साथ पूर्व में आयोजित PASSEX:
- इसके अलावा जुलाई 2020 में भारतीय नौसेना ने यूएसएस निमित्ज़ (USS Nimitz) के साथ एक और PASSEX का संचालन किया।
- भारतीय नौसेना ने अक्तूबर 2020 में यूएसएस रोनाल्ड रीगन (USS Ronald Reagan) के साथ PASSEX का आयोजन किया।
प्रभाव:
- नियम आधारित आदेश स्थापित करना:
- यह एक खुली, समावेशी और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित करने में साझेदार नौसेनाओं के रूप में साझा मूल्यों को रेखांकित करता है।
- बढ़ी हुई इंटरऑपरेबिलिटी:
- यह अंतर्संचालन, अंतर्राष्ट्रीय एकीकृत समुद्री खोज और बचाव कार्यों की बारीकियों और समुद्री वायुशक्ति डोमेन में सर्वोत्तम प्रथाओं के आदान-प्रदान के पहलुओं को बढ़ावा देगा।
- काउंटर चीन के विस्तारवाद:
- यह अभ्यास भारतीय रक्षा मंत्री द्वारा 8वीं आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ADMM) प्लस बैठक में दक्षिण चीन सागर सहित भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक खुले और समावेशी आदेश के आह्वान के एक सप्ताह बाद आयोजित किया जाता है।
- भारतीय नौसेना IOR में चौबीसों घंटे निगरानी कर रही है क्योंकि उसका मानना है कि चीन, वैश्विक शक्ति बनने की कोशिश कर रहा है जैसे कि उसने विवादित दक्षिण चीन सागर के बड़े हिस्से पर दावा किया है।
भारत-अमेरिका संयुक्त अभ्यास:
- वज्र-प्रहार (थल सेना)
- युद्ध अभ्यास (थल सेना)
- कोप इंडिया (वायु सेना)
- रेड फ्लैग (अमेरिका का बहुपक्षीय वायु अभ्यास)
- मालाबार अभ्यास (भारत, अमेरिका और जापान के बीच त्रिपक्षीय अभ्यास)
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
चीन एक सुरक्षा जोखिम के रूप में: नाटो
प्रिलिम्स के लिये:नाटो मेन्स के लिये:शीत युद्ध के समय एवं उसके बाद नाटो की भूमिका |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में आयोजित उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) शिखर सम्मेलन ने पहली बार स्पष्ट रूप से चीन को सुरक्षा जोखिम के रूप में वर्णित किया है।
- नाटो 'उदघोषणा' द्वारा पहचाने गए अन्य दो जोखिम ‘रूस’ और ‘आतंकवाद’ हैं।
प्रमुख बिंदु:
उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो):
- गठन: नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
- इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स, बेल्जियम में है।
- राजनीतिक और सैन्य गठबंधन: नाटो का प्राथमिक लक्ष्य अपने सदस्यों की सामूहिक रक्षा और उत्तरी अटलांटिक क्षेत्र में लोकतांत्रिक शांति व्यवस्था बनाए रखना है।
- नाटो के अनुच्छेद V में निहित सामूहिक रक्षा सिद्धांत में कहा गया है कि "एक सहयोगी के खिलाफ हमले को सभी सहयोगियों के खिलाफ हमले के रूप में माना जाएगा"।
- नाटो की सेनाएँ: नाटो के पास एक सैन्य और नागरिक मुख्यालय और एक एकीकृत सैन्य कमान संरचना है, लेकिन इसके पास बहुत कम बल या संपत्ति विशेष रूप से इसकी अपनी हैं।
- जब तक कि सदस्य देश नाटो से संबंधित कार्यों को करने के लिये सहमत नहीं हो जाते अधिकांश बल पूर्ण रूप से राष्ट्रीय कमान और नियंत्रण में रहते हैं।
- नाटो के निर्णय: एक "नाटो निर्णय" सभी 30 सदस्य देशों की सामूहिक इच्छा की अभिव्यक्ति है क्योंकि सभी निर्णय सर्वसम्मति से लिये जाते हैं।
नाटो के प्रदर्शन का विश्लेषण:
- शीत युद्ध काल: नाटो "यूरो-अटलांटिक क्षेत्र" को सोवियत विस्तार से बचाने और दो महाशक्तियों के बीच युद्ध को रोकने के अपने मिशन में पूरी तरह से सफल रहा।
- वर्ष 1955 में नाटो और उसके सोवियत समकक्ष ‘वारसॉ पैक्ट’ के गठन से शीत युद्ध के युग (लगभग 1945 से 1991 तक) का प्रारंभ हुआ।
- शीत युद्ध के बाद का युग: जब वर्ष 1991 में सोवियत संघ का पतन हुआ तो नाटो के सामूहिक सुरक्षा के प्रतिमान में बदलाव देखा गया।
- जब वर्ष 1999 में बाल्कन संघर्ष छिड़ गया, तो नाटो को शीत युद्ध के बाद यूरोप में अपनी उपयोगिता साबित करने का मौका मिला।
- पारस्परिक रूप से लाभकारी व्यवस्था:
- यूरोप के लिये यह एक आकर्षक समझौता था, जहाँ स्वायत्तता में मामूली नुकसान के बदले इसे सस्ते मूल्य पर पूर्ण सुरक्षा मिलती थी।
- रक्षा पर बड़े पैमाने पर खर्च न करने से यूरोप को शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करने और एक मज़बूत कल्याणकारी राज्य में अपने अधिशेष का निवेश करने की अनुमति मिली।
- नाटो ने जर्मनी को नीचे रखने के अतिरिक्त बोनस की भी पेशकश की जो ऐतिहासिक रूप से इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिये एक प्रमुख कारक था।
- यूरोपीय लोगों द्वारा स्वयं संगठित और प्रबंधित एक सामूहिक सैन्य बल अमेरिकी निरीक्षण से बाहर निकलने का रास्ता पेश कर सकता है।
- हालाँकि इसने जर्मनी या फ्राँस जैसे एक या दो मज़बूत और धनी राज्यों के जोखिम का सामना किया।
- यूरोप के लिये यह एक आकर्षक समझौता था, जहाँ स्वायत्तता में मामूली नुकसान के बदले इसे सस्ते मूल्य पर पूर्ण सुरक्षा मिलती थी।
नाटो और चीन:
- नाटो नेताओं द्वारा चीन को लगातार सुरक्षा चुनौती घोषित किया गया है और बताया गया है कि चीनी वैश्विक व्यवस्था को कमज़ोर करने के लिये काम कर रहे हैं।
- यह अमेरिकी राष्ट्रपति के चीन के व्यापार, सैन्य और मानवाधिकार प्रथाओं के खिलाफ अधिक एकीकृत प्रयासों के अनुरूप है।
- अमेरिका का बढ़ता विश्वास यह है कि चीन उसके वैश्विक वर्चस्व के लिये खतरा है और उसे नियंत्रित किया जाना चाहिये।
- हालाँकि फ्राँस और जर्मनी दोनों ने नाटो की आधिकारिक स्थिति और चीन की अपनी धारणा के बीच कुछ दूरी बनाने की मांग की।
- नाटो के यूरोपीय सदस्य राज्य चीन को एक आर्थिक प्रतिद्वंद्वी और विरोधी के रूप में देख सकते हैं, लेकिन वे इस अमेरिकी विचार से सहमत नहीं हैं कि यह एक पूर्ण सुरक्षा खतरा है।
- चीन का रुख: इसने नाटो से चीन के विकास को तर्कसंगत रूप से देखने, 'चीनी खतरे के सिद्धांत' के विभिन्न रूपों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने से रोकने और चीन के वैध हितों तथा कानूनी अधिकारों का उपयोग समूह राजनीति में कृत्रिम रूप से टकराव पैदा करने के बहाने के रूप में नहीं करने का आग्रह किया है।
नाटो और रूस:
- रूस के साथ तनाव पूर्व की ओर विस्तार करने के लिये नाटो के प्रयासों का एक अनिवार्य परिणाम है जिसे रूस अपने प्रभाव क्षेत्र के रूप में मानता है।
- यूक्रेन, जॉर्जिया और माल्डोवा जैसे देशों को नाटो की छत्रछाया में लाने की कोशिश ने रूस के साथ टकराव को जन्म दिया है।
- जैसा कि रूस ने क्रीमिया, जॉर्जिया और माल्डोवा में सैनिकों को तैनात करके अपने हितों की रक्षा करने की मांग की, नाटो ने उस पर गैर-ज़िम्मेदाराना तरीके से काम करने और "नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था" को तोड़ने का आरोप लगाया।
निष्कर्ष:
चीन की अर्थव्यवस्था पहले से ही पश्चिमी बाज़ारों के साथ गहराई से एकीकृत है। इसके बावजूद चीन को 'खतरा' माना जा रहा है। यह देखा जाना बाकी है कि वर्तमान यूरोप नाटो के निर्णयों को किस प्रकार वरीयता देगा।
स्रोत- द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
इबोला वायरस
प्रिलिम्स के लियेविश्व स्वास्थ्य संगठन, इबोला वायरस, एलिसा (ELISA), मलेरिया, मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, आरटी-पीसीआर मेन्स के लियेइबोला वायरस रोग (EVD) का परिचय एवं उससे संबंधित तथ्य ( संचरण के माध्यम, लक्षण, निदान, टीकाकरण, उपचार) |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने घोषणा की है कि फरवरी 2021 में गिनी में फैले इबोला वायरस का प्रकोप अब खत्म हो गया है।
- इसकी पहली लहर 2013-2016 के दौरान इबोला के प्रकोप ने 11,300 लोगों की जान ले ली, जिनमें ज़्यादातर लोग गिनी, सिएरा लियोन और लाइबेरिया से थे।
- WHO ने "2019 में वैश्विक स्वास्थ्य के लिये दस खतरे" की अपनी सूची में इबोला को भी शामिल किया।
प्रमुख बिंदु
इबोला वायरस रोग (EVD) के बारे में:
- इबोला वायरस रोग (EVD), जिसे पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार के रूप में जाना जाता था, मनुष्यों में होने वाली एक गंभीर, घातक बीमारी है। यह वायरस जंगली जानवरों से लोगों में फैलता है और मानव आबादी में मानव-से-मानव में संचरण करता है।
- इबोला वायरस की खोज सर्वप्रथम वर्ष 1976 में इबोला नदी के पास स्थित गाँव में हुई थी‚ जो कि अब कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में है।
संचरण: फ्रूट बैट’ टेरोपोडीडेई परिवार (Pteropodidae family) से संबंधित है जो वायरस के प्राकृतिक वाहक (Natural Hosts) है।
- पशु से मानव संचरण: इबोला का संक्रमण उन जानवरों के रक्त, स्राव, अंगों या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों जैसे कि फ्रूट बैट, चिंपांजी, गोरिल्ला, बंदर, वन मृग या पोर्कपीस के साथ निकट संपर्क के माध्यम से मानव आबादी में फैलता है। यह वायरस बीमार या मृत अवस्था में पाए जाते हैं या वर्षावनों में पाए जाते हैं।
- मानव से मानव संचरण: इबोला सीधे संपर्क (टूटी हुई त्वचा या श्लेष्मा झिल्ली के माध्यम से) के साथ फैलता है:
- जो व्यक्ति इबोला से बीमार है या उसकी मृत्यु हो गई है उसके रक्त या शरीर के तरल पदार्थ के संपर्क में आने से फैलता है।
- ऐसे शरीर के तरल पदार्थ (जैसे रक्त, मल, उल्टी) से दूषित वस्तुएँ।
लक्षण:
- यह अचानक हो सकता है और इसमें शामिल हैं: बुखार, थकान, मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द, गले में खराश, उल्टी, दस्त, गुर्दे का ख़राब होना और यकृत कार्य संबंधित लक्षण तथा कुछ मामलों में आंतरिक और बाहरी रक्तस्राव ।
निदान:
- इबोला को चिकित्सकीय रूप से अन्य संक्रामक रोगों जैसे मलेरिया, टाइफाइड बुखार और मेनिन्जाइटिस से अलग करना मुश्किल हो सकता है, लेकिन इबोला वायरस के संक्रमण के कारण इसके लक्षणों की पुष्टि निम्नलिखित नैदानिक विधियों का उपयोग करके किया जा सकता हैं:
- एलिसा (ELISA) (antibody-capture enzyme-linked immunosorbent assay)
- रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन (आरटी-पीसीआर) एक प्रयोगशाला तकनीक इत्यादि।
टीकाकरण:
- एर्वेबो वैक्सीन (Ervebo vaccine ) को जाइरे के इबोला वायरस प्रजाति से लोगों की रक्षा करने में प्रभावी बताया गया है।
- मई 2020 में यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी ने 1 वर्ष और उससे अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिये ज़ब्डेनो-एंड-मावाबिया (Zabdeno-and-Mvabea) नामक टीके के 2-घटक को विपणन प्राधिकरण देने की सिफारिश की।
उपचार:
- अमेरिका द्वारा वयस्कों और बच्चों में जाइरे इबोला वायरस संक्रमण के इलाज के लिये दो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी (Inmazeb and Ebanga) को मंज़ूरी दी गई है।
स्रोत : द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
ई-कॉमर्स ‘फ्लैश सेल’ पर प्रतिबंध का प्रस्ताव
प्रिलिम्स के लिये:ई-कॉमर्स के प्रमुख प्रकार मेन्स के लिये:ई-कॉमर्स से संबंधित विभिन्न मुद्दे तथा उनका समाधान, उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम नियमों में प्रमुख संशोधन |
चर्चा में क्यों
सरकार ने ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर दी जाने वाली भारी छूट की निगरानी के लिये सभी प्रकार "फ्लैश सेल" पर प्रतिबंध लगाते हुए उपभोक्ता संरक्षण (ई-कॉमर्स) नियम [Consumer Protection (e-commerce) Rules] 2020 में बदलाव प्रस्तावित किये हैं।
प्रमुख बिंदु
परिवर्तन के मूल कारण:
- ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर तीसरे पक्ष के विक्रेताओं द्वारा पारंपरिक फ्लैश बिक्री/सेल पर प्रतिबंध नहीं है।
- छोटे व्यवसायियों द्वारा अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस द्वारा बाज़ार प्रभुत्व के दुरुपयोग और भारी छूट की शिकायत की जाती रही है।
- उपभोक्ता मामले मंत्रालय को ई-कॉमर्स इकोसिस्टम में व्यापक धोखाधड़ी और अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ कई शिकायतें भी मिलती रही हैं।
- कुछ ई-कॉमर्स संस्थाएँ 'बैक-टू-बैक' या 'फ्लैश' सेल लाकर उपभोक्ताओं की पसंद को सीमित करती हैं, जिसमें प्लेटफॉर्म पर बेचने वाला कोई विक्रेता इन्वेंट्री या ऑर्डर को पूरा करने की क्षमता नहीं रखता है बल्कि प्लेटफॉर्म द्वारा नियंत्रित दूसरे विक्रेता के साथ केवल 'फ्लैश या बैक-टू-बैक' ऑर्डर पूरा करता है।
प्रस्तावित संशोधन:
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 और नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये मुख्य अनुपालन अधिकारी (Chief Compliance Officer- CCO) की नियुक्ति, कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ 24x7 समन्वय के लिये एक नोडल संपर्क व्यक्ति, उनके आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये अधिकारी की नियुक्ति का प्रस्ताव किया गया है।
- ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ताओं की शिकायतों के निवारण के लिये स्थायी रूप से रहने वाले शिकायत अधिकारी (Resident Grievance Officer) की नियुक्ति का भी प्रस्ताव किया गया है, जिसे कंपनी का एक कर्मचारी तथा भारत का नागरिक होना चाहिये।
- तरजीही व्यवहार की बढ़ती चिंताओं से निपटने के लिये, नए नियमों में यह सुनिश्चित करने का प्रस्ताव किया गया है कि किसी भी संबंधित पक्ष को 'अनुचित लाभ' पहुँचाने हेतु किसी भी प्रकार की उपभोक्ता जानकारी (ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से) का उपयोग करने की अनुमति न हो।
- प्रस्तावित संशोधनों में ऐसी व्यवस्था की बात कही गई है कि जब एक ई-कॉमर्स इकाई आयातित वस्तुओं या सेवाओं की पेशकश करे, तो उसके मूल देश की पहचान करने हेतु एक फिल्टर तंत्र हो।
- साथ ही घरेलू सामानों के लिये उचित अवसर सुनिश्चित करने हेतु विकल्प सुझाए जाएंगे।
- यदि विक्रेता लापरवाही के चलते सामान या सेवाएँ उपलब्ध कराने में विफल रहता है और मार्केटप्लेस ई-कॉमर्स इकाई द्वारा निर्धारित कर्तव्यों एवं देनदारियों को पूरा करने में असफल रहता है तो ऐसी स्थिति में प्रत्येक मार्केटप्लेस ई-कॉमर्स इकाई के लिये देयता (देनदारी या दायित्व) का प्रावधान किया गया है।
- प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई के पंजीकरण के लिये रूपरेखा तैयार की गई है जिसमें उसे उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade (DPIIT) के पास अपना पंजीकरण कराना होगा।
प्रस्तावित संशोधनों का महत्त्व:
- ये संशोधन अधिनियम के प्रावधानों और नियमों का प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित करेंगे तथा ई-कॉमर्स संस्थाओं से संबंधित शिकायत निवारण तंत्र को भी मज़बूती प्रदान करेंगे।
- संशोधन का यह प्रस्ताव इसलिये भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह ऐसे समय में आया है जब भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (Competition Commission of India- CCI) द्वारा बाज़ार प्रभुत्व के कथित दुरुपयोग और ऐसे विक्रेताओं को तरजीही देने के संदर्भ में बड़े ई-कॉमर्स बाज़ारों की जाँच की जा रही है जिसमें वे अप्रत्यक्ष हिस्सेदारी रखते हैं।
ई-कॉमर्स
- इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स या ई-कॉमर्स एक व्यवसाय मॉडल है जो फर्मों और व्यक्तियों को इंटरनेट के माध्यम से चीजें खरीदने एवं बेचने की सुविधा देता है।
- स्मार्टफोन की बढ़ती पहुँच, 4जी नेटवर्क के लॉन्च और बढ़ती उपभोक्ता संपत्ति से प्रेरित, भारतीय ई-कॉमर्स बाज़ार के वर्ष 2026 तक 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है जो कि वर्ष 2017 में 38.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- भारतीय ई-कॉमर्स उद्योग तेज़ी से विकास के पथ पर अग्रसर है और यह आशा व्यक्त की जा रही है वर्ष 2034 तक भारत, अमेरिका को पीछे छोड़ते हुए विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ई-कॉमर्स बाज़ार बन जाएगा।
ई-कॉमर्स के प्रमुख प्रकार |
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ई-कॉमर्स का प्रकार |
उदाहरण |
B2C- बिज़नेस टू कंज़्यूमर |
Amazon.com एक सामान्य विक्रेता है जो खुदरा उपभोक्ताओं को वस्तुओं की बिक्री करता है। |
B2B- बिज़नेस टू बिज़नेस |
esteel.com एक स्टील इंडस्ट्री एक्सचेंज है जो स्टील उत्पादकों तथा उपयोगकर्त्ताओं के लिये एक इलेक्ट्रिक मार्केट का निर्माण करता है। |
C2C- कंज़्यूमर टू कंज़्यूमर |
ebay.com एक ऐसे मार्केट का निर्माण करता है जहाँ उपभोक्ता अपनी वस्तुओं की प्रत्यक्ष नीलामी अथवा बिक्री कर सकते हैं। |
P2P- पीयर टू पीयर |
Gnutella एक सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है जो मार्केट मेकर के हस्तक्षेप (जैसा कि C2C ई कॉमर्स में होता है) के बिना उपभोक्ताओं को सीधे एक-दूसरे के साथ म्यूजिक साझा करने की अनुमति देता है। |
M-कॉमर्स : मोबाइल कॉमर्स |
PDA (पर्सनल डिजिटल असिस्टेंट) या सेल फोन जैसे वायरलेस उपकरणों का उपयोग वाणिज्यिक लेनदेन हेतु कियाजा सकता है। |
स्रोत: द हिंदू
आंतरिक सुरक्षा
क्रिवाक स्टील्थ फ्रिगेट
प्रिलिम्स के लियेक्रिवाक स्टील्थ फ्रिगेट मेन्स के लियेभारत-रूस रक्षा संबंध |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नौसेना स्टाफ के उप-प्रमुख ने क्रिवाक या तलवार क्लास के दूसरे युद्धपोत के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया है।
- पहले युद्धपोत का निर्माण कार्य जनवरी 2021 में शुरू किया गया था। इसे वर्ष 2026 में डिलीवर किया जाना है, जबकि दूसरे युद्धपोत को इसके छह महीने बाद डिलीवर किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
क्रिवाक या तलवार क्लास
- 'मेक इन इंडिया' के तहत गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) द्वारा रूस से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ क्रिवाक श्रेणी के स्टील्थ जहाज़ों का निर्माण किया जा रहा है। जहाज़ों के लिये इंजन की आपूर्ति यूक्रेन द्वारा की जा रही है।
- अक्तूबर 2016 में भारत और रूस ने चार क्रिवाक या तलवार स्टील्थ फ्रिगेट के लिये एक अंतर-सरकारी समझौते (IGA) पर हस्ताक्षर किये थे।
- पहले दो युद्धपोत रूस के कैलिनिनग्राद में यंतर शिपयार्ड में बनाए जाएंगे, जबकि अन्य दो गोवा शिपयार्ड लिमिटेड में बनाए जाएंगे।
- नए क्रिवाक फ्रिगेट में वही इंजन और आर्मामेंट कॉन्फिगरेशन मौजूद हैं जो यंतर शिपयार्ड में निर्मित तीन युद्धपोतों - आईएनएस तेग, तरकश और त्रिकंद में शामिल हैं। ये ब्रह्मोस एंटी-शिप और लैंड अटैक मिसाइलों से लैस होंगे।
प्रयोग
- इनका प्रयोग मुख्य रूप से दुश्मन देशों की पनडुब्बियों और बड़े सतही जहाज़ों को खोजने और नष्ट करने जैसे विभिन्न प्रकार के नौसैनिक मिशनों को पूरा करने के लिये किया जाएगा।
मौजूदा युद्धपोत
- नौसेना पहले से ही छह क्रिवाक III फ्रिगेट संचालित कर रही है। इसमें से पहले तीन जून 2003 और अप्रैल 2004 के बीच नौसेना के बेड़े में शामिल हुए, जबकि अन्य तीन अप्रैल 2012 और जून 2013 के बीच नौसेना के बेड़े में शामिल हुए। मौजूदा अनुबंध के साथ नौसेना 10 क्रिवाक युद्धपोतों का संचालन करेगी।
भारत-रूस रक्षा संबंध
पृष्ठभूमि
- रक्षा सहयोग भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है।
- मौजूदा परियोजनाओं की स्थिति और सैन्य तकनीकी सहयोग के अन्य मुद्दों पर चर्चा तथा समीक्षा करने के लिये दोनों देशों के रक्षा मंत्री बारी-बारी से रूस और भारत में मिलते हैं।
- यद्यपि भारत इज़रायल, अमेरिका और फ्रांँस के साथ अपने आपूर्ति आधार का विस्तार कर रहा है, किंतु इसके बावजूद रूस अभी भी एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है।
- दोनों पक्ष सफलतापूर्वक AK-203 राइफल अनुबंध और 200 Ka-226T यूटिलिटी हेलीकॉप्टर आपूर्ति के कार्यान्वयन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
- स्टिमसन सेंटर द्वारा प्रकाशित एक पेपर के अनुसार, भारत में वर्तमान में सैन्य सेवा में 86 प्रतिशत उपकरण, हथियार और प्लेटफॉर्म रूस के हैं।
संयुक्त अभ्यास
- अभ्यास इंद्र, भारत और रूस के बीच एक संयुक्त त्रि-सेवा अभ्यास है।
भारत द्वारा तैनात रूस के सैन्य उपकरण
- नौसेना
- नौसेना का एकमात्र सक्रिय विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य रूस से है। परमाणु हमले में सक्षम पनडुब्बी ‘चक्र II’ भी सेवा में है।
- थल सेना
- सेना के टी-90 और टी-72 मुख्य युद्धक टैंक।
- S-400 ट्रायम्फ मिसाइल सिस्टम।
- वायुसेना
- वायुसेना का Su30 MKI फाइटर।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
उचित मूल्य की दुकानों पर इलेक्ट्रॉनिक माप तौल मशीनें
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य सुरक्षा (राज्य सरकार के लिये सहायता नियम) 2015, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) मेन्स के लिये:उचित मूल्य की दुकानों पर इलेक्ट्रॉनिक माप तौल मशीनों की महत्ता, सार्वजनिक वितरण प्रणाली में और अधिक सुधार हेतु प्रयास |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से राशन की दुकानों हेतु इलेक्ट्रॉनिक पॉइंट ऑफ सेल डिवाइस बचत (ePoS) से इलेक्ट्रॉनिक तौल मशीन खरीदने को कहा है।
- इसके लिये उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने ई-पीओएस उपकरणों के विवेकपूर्ण उपयोग के माध्यम से बचत करने हेतु राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिये खाद्य सुरक्षा नियम (राज्य सरकार के लिये सहायता नियम) 2015 में संशोधन किया है।
प्रमुख बिंदु
खाद्य सुरक्षा (राज्य सरकार के लिये सहायता नियम) 2015:
- उचित मूल्य की दुकानों के लिये अतिरिक्त मार्जिन: सभी स्तरों पर लेनदेन की पारदर्शी रिकॉर्डिंग सुनिश्चित करने हेतु प्रोत्साहन के रूप में ePoS के माध्यम से बिक्री के लिये उचित मूल्य की दुकान के डीलरों को अतिरिक्त मार्जिन देने के लिये नियम अधिसूचित किये गए थे।
- ePoS के माध्यम से बेचे जाने वाले खाद्यान्न पर मार्जिन को "उचित मूल्य की दुकान पर डीलर मार्जिन" के रूप में प्रदान किया जाता है।
- यह पॉइंट ऑफ़ सेल डिवाइस की खरीद, संचालन और रखरखाव की लागत, इसके संचालन के खर्च और इसके उपयोग के लिये प्रोत्साहन हेतु किये गए प्रयासों में से एक है।
संशोधन के लाभ:
- इलेक्ट्रॉनिक तौल तराजू के साथ ईपीओएस उपकरणों का एकीकरण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013 के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न के वितरण में लाभार्थियों को उनकी पात्रता के अनुसार लाभान्वित करेगा।
- यह सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करेगा। इससे खाद्यान्न का रिसाव कम होगा।
- ईपीओएस उपकरणों के माध्यम से बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण द्वारा लक्षित लाभार्थी को सब्सिडी वाला खाद्यान्न प्रदान किया जाता है।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013
- अधिसूचित: 10 सितंबर, 2013
- उद्देश्य: सम्मान के साथ जीवन जीने के लिये लोगों को सस्ती कीमतों पर पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करके खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना।
- कवरेज: लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) के तहत सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्राप्त करने के लिये 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी को कवरेज प्रदान किया गया है।
- NFSA कुल आबादी का लगभग 67% हिस्सा पूरा करता है।
- नीति आयोग ने NFSA के तहत ग्रामीण और शहरी कवरेज को क्रमशः 60% और 40% तक कम करने की सिफारिश की है।
पात्रता:
- राज्य सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्राथमिकता वाले परिवारों को TPDS के तहत कवर किया जाना है।
- मौजूदा अंत्योदय अन्न योजना के अंतर्गत आने वाले परिवार।
प्रावधान:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत गरीबों को 2 रुपए प्रति किलो गेहूँ और 3 रुपए प्रति किलो चावल देने की व्यवस्था की गई है। इस कानून के तहत व्यवस्था है कि लाभार्थियों को उनके लिये निर्धारित खाद्यान्न हर हाल में मिले, इसके लिये खाद्यान्न की आपूर्ति न होने की स्थिति में खाद्य सुरक्षा भत्ते के भुगतान के नियम को जनवरी 2015 में लागू किया गया।
- इस अधिनियम के तहत समाज के अति निर्धन वर्ग के प्रत्येक परिवार को प्रत्येक माह अंत्योदय अन्न योजना में सब्सिडी दरों पर यानी तीन रुपए, दो रुपए, एक रुपए प्रति किलो चावल, गेहूँ और मोटा अनाज मिल रहा है।
- मौजूदा AAY परिवार को प्रतिमाह प्रति परिवार 35 किलोग्राम खाद्यान्न प्राप्त होता रहेगा।
- गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के छह महीने बाद तक 6,000 रुपए की राशि प्रदान करना।
- 14 वर्ष तक के बच्चों को भोजन।
- खाद्यान्न या भोजन की आपूर्ति न होने की स्थिति में लाभार्थियों को खाद्य सुरक्षा भत्ता।
- ज़िला और राज्य स्तर पर शिकायत निवारण तंत्र की स्थापना।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS):
- PDS उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के तहत स्थापित एक भारतीय खाद्य सुरक्षा प्रणाली है।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) कम कीमत पर अनाज के वितरण और आपातकालीन स्थितियों में प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिये लाई गई एक प्रणाली है।
- जून 1997 में भारत सरकार ने गरीबों पर ध्यान केंद्रित करते हुए लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (TPDS) शुरू की।
कार्य प्रणाली:
- चिन्हित लाभार्थियों को खाद्यान्न उपलब्ध कराने के लिये केंद्र और राज्य सरकारें ज़िम्मेदारियों को साझा करती हैं।
- केंद्र किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खाद्यान्न खरीदता है और इसे केंद्रीय निर्गम मूल्य पर राज्यों को बेचता है। यह प्रत्येक राज्य में अनाज को गोदामों तक पहुँचाने के लिये ज़िम्मेदार है।
- इन गोदामों से प्रत्येक उचित मूल्य की दुकान (राशन की दुकान) तक खाद्यान्न पहुँचाने की ज़िम्मेदारी राज्यों की है, जहाँ लाभार्थी कम केंद्रीय निर्गम मूल्य पर खाद्यान्न खरीदता है।
- कई राज्य लाभार्थियों को अनाज बेचने से पहले उसकी कीमत में और सब्सिडी देते हैं।
स्रोत :द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
ग्रेट बैरियर रीफ
प्रिलिम्स के लिये:यूनेस्को, ग्रेट बैरियर रीफ मेन्स के लिये:ग्रेट बैरियर रीफ का महत्त्व एवं इसके खतरे में आने के कारण |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति ने सिफारिश की है कि ऑस्ट्रेलिया के ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को विश्व धरोहर स्थलों की "खतरे की सूची’ में जोड़ा जाना चाहिये।
- केवल ''खतरे की सूची'' में शामिल किये जासे से प्रतिबंध लागू नहीं होते हैं।
- कुछ देशों ने अपनी साइटों की तरफ अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करने और उन्हें बचाने में मदद करने के लिये उन्हें इस सूची से जोड़ा है।
प्रमुख बिंदु:
इस कदम के पीछे निहित कारण:
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण इसे सूची में जोड़ने की सिफारिश की गई थी।
- गंभीर समुद्री हीटवेव के कारण कोरल रीफ पारिस्थितिकी तंत्र को वर्ष 2015 के बाद से तीन प्रमुख विरंजन घटनाओं का सामना करना पड़ा है।
- ‘रीफ 2050’ लॉन्ग-टर्म सस्टेनेबिलिटी प्लान वर्ष 2050 तक ग्रेट बैरियर रीफ की सुरक्षा और प्रबंधन के लिये ऑस्ट्रेलियाई और क्वींसलैंड सरकार की व्यापक रूपरेखा है।
- जब कोरल तापमान, प्रकाश या पोषक तत्त्वों जैसी स्थितियों में परिवर्तन के कारण तनाव का सामना करते हैं तो वे अपने ऊतकों में रहने वाले सहजीवी शैवाल ‘जूजैंथिली’ को बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे पूरी तरह से सफेद हो जाते हैं। इस घटना को प्रवाल विरंजन कहा जाता है।
- समुद्री हीटवेव कई दिनों से लेकर वर्षों तक प्रतिलोम रूप से गर्म समुद्री सतह के तापमान (SST) की घटना है।
नतीजे:
- इसने पर्यावरणीय समूहों को मज़बूत जलवायु कार्रवाई की ऑस्ट्रेलियाई सरकार की अनिच्छा को दूर करने हेतु प्रेरित किया।
- ऑस्ट्रेलिया जो दुनिया के सबसे बड़े प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जक देशों में से एक है, मज़बूत जलवायु कार्रवाई की प्रतिबद्धता के लिये अनिच्छुक रहा है और इसने देश के जीवाश्म ईंधन उद्योगों को समर्थन देने के लिये नौकरियों को एक प्रमुख कारण के रूप में उद्धृत किया है।
- इसने वर्ष 2015 के बाद से अपने जलवायु लक्ष्यों का अघतन नही किया है।
ग्रेट बैरियर रीफ
- यह विश्व का सबसे व्यापक और समृद्ध प्रवाल भित्ति पारिस्थितिकी तंत्र है, जो कि 2,900 से अधिक भित्तियों और 900 से अधिक द्वीपों से मिलकर बना है।
- यह ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड के उत्तर-पूर्वी तट में 1400 मील तक फैला हुआ है।
- इसे बाह्य अंतरिक्ष से देखा जा सकता है और यह जीवों द्वारा बनाई गई विश्व की सबसे बड़ी एकल संरचना है।
- यह समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र अरबों छोटे जीवों से मिलकर बना है, जिन्हें प्रवाल पॉलिप्स के रूप में जाना जाता है।
- ये समुद्री पौधों की विशेषताओं को प्रदर्शित करने वाले सूक्ष्म जीव होते हैं, जो कि समूह में रहते हैं। चूना पत्थर (कैल्शियम कार्बोनेट) से निर्मित इसका निचला हिस्सा (जिसे कैलिकल्स भी कहते हैं) काफी कठोर होता है, जो कि प्रवाल भित्तियों की संरचना का निर्माण करता है।
- इन प्रवाल पॉलिप्स में सूक्ष्म शैवाल पाए जाते हैं जिन्हें जूजैंथिली (Zooxanthellae) कहा जाता है जो उनके ऊतकों के भीतर रहते हैं।
- इसे वर्ष 1981 में विश्व धरोहर स्थल के रूप में चुना गया था।
कोरल की रक्षा के लिये पहल:
- मुद्दों के समाधान के लिये कई वैश्विक पहलें की जा रही हैं, जैसे:
- अंतर्राष्ट्रीय कोरल रीफ पहल
- ग्लोबल कोरल रीफ मॉनीटरिंग नेटवर्क (GCRMN)
- ग्लोबल कोरल रीफ एलायंस (GCRA)
- ग्लोबल कोरल रीफ आर एंड डी एक्सेलेरेटर प्लेटफार्म
- इसी तरह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत ने तटीय क्षेत्र अध्ययन (CZS) के तहत प्रवाल भित्तियों पर अध्ययन को शामिल किया है।
- भारत में भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI), गुजरात के वन विभाग की मदद से "बायोरॉक" या खनिज अभिवृद्धि तकनीक का उपयोग करके प्रवाल भित्तियों को पुनर्स्थापित करने की प्रक्रिया का प्रयास कर रहा है।
- देश में प्रवाल भित्तियों की रक्षा और उन्हें बनाए रखने के लिये राष्ट्रीय तटीय मिशन कार्यक्रम।
प्रवाल भित्ति:
सबसे बड़ा कोरल रीफ क्षेत्र:
- इंडोनेशिया में दुनिया का सबसे बड़ा प्रवाल भित्ति क्षेत्र है।
- भारत, मालदीव, श्रीलंका और छागोस में दक्षिण एशिया में सबसे अधिक प्रवाल भित्तियाँ हैं।
- ऑस्ट्रेलिया के क्वींसलैंड तट का ग्रेट बैरियर रीफ प्रवाल भित्तियों का सबसे बड़ा समूह है।
भारत में प्रवाल भित्ति क्षेत्र:
- भारत में चार प्रवाल भित्ति क्षेत्र हैं: मन्नार की खाड़ी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, लक्षद्वीप द्वीप समूह और कच्छ की खाड़ी।
लाभ:
- प्राकृतिक आपदाओं से मानवता की रक्षा करती हैं।
- पर्यटन और मनोरंजन के माध्यम से राजस्व और रोज़गार प्रदान करना।
- मछलियों, स्टारफिश और समुद्री एनीमोन के लिये आवास प्रदान करना।
प्रयोग:
- इनका उपयोग आभूषणों में किया जाता है।
- कोरल ब्लॉक का उपयोग इमारतों और सड़क निर्माण के लिये किया जाता है।
- मूंगों द्वारा आपूर्ति किये जाने वाले चूने का उपयोग सीमेंट उद्योगों में किया जाता है।
खतरा:
- तटीय विकास, विनाशकारी मछली पकड़ने के तरीकों और घरेलू तथा औद्योगिक सीवेज से प्रदूषण जैसी मानवजनित गतिविधियों के कारण।
- बढ़े हुए अवसादन, अति-शोषण और आवर्ती चक्रवातों के कारण।
- तटीय क्षेत्रों में रहने वाली मानव आबादी के कारण फैलने वाले संक्रामक सूक्ष्मजीवों के कारण काली पट्टी और सफेद पट्टी जैसे प्रवाल रोग।
मैंग्रोव की भूमिका:
- मैंग्रोव वन फिल्टर के रूप में कार्य करके और चक्रवात, तूफान तथा सुनामी से सुरक्षा प्रदान करके प्रवाल भित्ति प्रणाली की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
स्रोत- इंडियन एक्सप्रेस
सामाजिक न्याय
2019 में दुनिया भर में आत्महत्या: WHO
प्रिलिम्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) WHO, भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 309 एवं 306, किरण एवं मनोदर्पण पहलें मेन्स के लिये:आत्महत्याओं को कम करने के लिये डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा "वर्ष 2019 में दुनिया भर में आत्महत्या" रिपोर्ट, भारत में आत्महत्या व इससे संबंधित क्षेत्रीय डाटा |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा "वर्ष 2019 में दुनिया भर में आत्महत्या" (Suicide worldwide in 2019 ) नामक शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई।
- निराशा अथवा अवसाद के परिणामस्वरूप किसी व्यक्ति द्वारा मरने के इरादे से स्व-निर्देशित हानिकारक व्यवहार के कारण होने वाली मृत्यु को आत्महत्या कहा जाता है।
प्रमुख बिंदु
अधूरा लक्ष्य:
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा अनिवार्य सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में वैश्विक आत्महत्या मृत्यु दर को एक तिहाई कम करना एक लक्ष्य है। लेकिन दुनिया इस लक्ष्य से अभी भी कोसों दूर है।
- SDG रोकथाम और उपचार के माध्यम से देशों से गैर-संचारी रोगों के कारण समय से पहले होने वाली मृत्यु दर को एक-तिहाई तक कम करने और मानसिक स्वास्थ्य एवं कल्याण को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया।
- देशों से मादक द्रव्यों के सेवन और शराब के हानिकारक उपयोग सहित मादक द्रव्यों के सेवन की रोकथाम और उपचार को मज़बूती प्रदान करने हेतु भी प्रयास का आह्वान करते हैं। साथ ही वे सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज का भी आह्वान करते हैं, जो कि मानसिक स्वास्थ्य का हिस्सा है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि कुछ देशों ने आत्महत्या की रोकथाम को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखा है, फिर भी कई देश इसके प्रति प्रतिबद्ध नहीं हैं।
- वर्तमान में केवल 38 देशों में ही राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति लागू है।
वर्ष 2019 में आत्महत्या की घटनाएँ:
- कोविड-19 महामारी ने वैश्विक स्तर पर मानसिक तनाव को बढ़ा दिया है। हालाँकि वर्ष 2019 में पहले से ही आत्महत्याओं की संख्या अत्यधिक देखी गई। वर्ष 2019 में लगभग 7,03,000 लोगों या 100 में से एक व्यक्ति की आत्महत्या से मृत्यु हो गई।
- वर्ष 2019 के लिये वैश्विक आयु-मानकीकृत आत्महत्या दर 9.0 प्रति 1,00,000 जनसंख्या थी।
- इनमें से कई युवा थे। आधे से अधिक वैश्विक आत्महत्याएँ (58%) 50 वर्ष की आयु से पहले हुईं। वर्ष 2019 में वैश्विक स्तर पर 15-29 आयु वर्ग के युवाओं में मृत्यु का चौथा प्रमुख कारण आत्महत्या थी।
- वर्ष 2019 में लगभग 77% वैश्विक आत्महत्याएँ निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुईं।
क्षेत्रीय डेटा:
- अफ्रीका, यूरोप और दक्षिण-पूर्व एशिया में आत्महत्या की दर वैश्विक औसत से अधिक दर्ज की गई।
- यह संख्या अफ्रीकी क्षेत्र (11.2) में सबसे अधिक थी, इसके बाद यूरोप (10.5) और दक्षिण-पूर्व एशिया (10.2) का स्थान था
- पिछले 20 वर्षों (2000-2019) में वैश्विक आत्महत्या दर में 36% की कमी आई थी।
- यह कमी पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में 17% से लेकर यूरोपीय क्षेत्र में 48% और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में 49% तक थी।
- इसी अवधि के दौरान अमेरिकी क्षेत्र में आत्महत्या की दर में 17% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई और यह एक अपवाद रहा है।
भारत में आत्महत्या:
- दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में भारत में आत्महत्या की दर सबसे अधिक है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में वर्ष 2018 में आत्महत्या के कुल 1,34,516 मामले दर्ज किये गए।
- जबकि वर्ष 2017 में आत्महत्या की दर 9.9 थी, यह वर्ष 2018 में बढ़कर 10.2 हो गई।
आत्महत्याओं को कम करने के लिये डब्ल्यूएचओ दिशा-निर्देश:
- WHO ने वर्ष 2030 तक वैश्विक आत्महत्या मृत्यु दर को एक तिहाई तक कम करने में देशों की मदद करने के लिये नए LIVE LIFE दिशा-निर्देश प्रकाशित किये थे। ये हैं:
- अत्यधिक खतरनाक कीटनाशकों और आग्नेयास्त्रों जैसे आत्महत्या के साधनों तक पहुँच सीमित करना।
- आत्महत्या की ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग पर मीडिया को शिक्षित करना।
- किशोरों में सामाजिक-भावनात्मक जीवन कौशल को बढ़ावा देना।
- आत्मघाती विचारों और व्यवहार से प्रभावित किसी व्यक्ति की प्रारंभिक पहचान, मूल्यांकन, प्रबंधन और अनुवर्ती कार्रवाई।
- इन्हें स्थिति विश्लेषण, बहु-क्षेत्रीय सहयोग, जागरूकता बढ़ाने हेतु क्षमता निर्माण, वित्तपोषण, निगरानी और मूल्यांकन जैसे मूलभूत स्तंभों के साथ आगे बढ़ने की ज़रूरत है।
भारत में आत्महत्या के प्रयास को लेकर कानूनी स्थिति:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार, "किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा।" जबकि संविधान में जीवन या स्वतंत्रता का अधिकार शामिल है, इसमें 'मृत्यु का अधिकार' शामिल नहीं है।
- किसी के जीवन लेने के प्रयासों को जीवन के संवैधानिक अधिकार के दायरे में नहीं माना जाता है।
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 309 में कहा गया है कि जो कोई भी आत्महत्या करने का प्रयास करता है और इस तरह के अपराध को अंजाम देने के लिये कार्य करता है, उसे साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- यह ध्यान दिया जाना चाहिये कि आत्महत्या के लिये उकसाने हेतु दंड का प्रावधान IPC की धारा 306 के तहत किया गया है और एक बच्चे को आत्महत्या के लिये उकसाने है दंड का प्रावधान IPC की धारा 305 के अंतर्गत किया गया है।
- मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 115 (1) के अनुसार, भारतीय दंड संहिता की धारा 309 में सम्मिलित किसी भी प्रावधान के बावजूद कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करने का प्रयास करेगा, उसके संबंध में तब तक, यह माना जाएगा कि वह गंभीर तनाव में जब तक कि यह अन्यथा साबित न हो, और साथ ही उसके विरुद्ध मुकदमा नहीं चलाया जाएगा और न ही उसे दंडित किया जाएगा।
- हालाँकि यह कानून केवल मानसिक बीमारी से पीड़ित लोगों पर लागू होता है। आत्महत्या के प्रयास के मामले में गंभीर तनाव का अनुमान है।
संबंधित भारतीय पहलें:
मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017
- किरण: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने चिंता, तनाव, अवसाद, आत्महत्या के विचार और अन्य मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का सामना कर रहे लोगों को सहायता प्रदान करने के लिये 24/7 टोल-फ्री हेल्पलाइन शुरू की है।
- मनोदर्पण पहल: यह आत्मानिर्भर भारत अभियान के तहत शिक्षा मंत्रालय की एक पहल है। इसका उद्देश्य कोविड -19 के समय में छात्रों, परिवार के सदस्यों और शिक्षकों को उनके मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण के लिये मनोसामाजिक सहायता प्रदान करना है।