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डेली न्यूज़

  • 22 Sep, 2022
  • 65 min read
इन्फोग्राफिक्स

कथक (उत्तर भारत)

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भारतीय अर्थव्यवस्था

त्वरित सुधारात्मक कारवाई फ्रेमवर्क

प्रिलिम्स के लिये:

RBI, NPA, वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकी।

मेन्स के लिये:

त्वरित सुधारात्मक कारवाई फ्रेमवर्क।

चर्चा में क्यों:

हाल ही में, CBI द्वारा न्यूनतम नियामक पूंजी और कुल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों  (NNPAs) सहित विभिन्न वित्तीय अनुपातों में सुधार दिखाने के बाद भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (CBI) को अपने त्वरित सुधारात्मक कारवाई फ्रेमवर्क (PCAF) से हटा दिया है।

  • RBI ने अपने उच्च कुल NPA और रिटर्न ऑन एसेट्स (ROA) के कारण जून 2017 में सेंट्रल बैंक पर त्वरित सुधारात्मक कारवाई (PCA) मानदंड लागू किया था।

त्वरित सुधारात्मक कारवाई फ्रेमवर्क (PCAF):

  • पृष्ठभूमि:
    • PCA एक फ्रेमवर्क रूपरेखा है जिसके तहत कमज़ोर वित्तीय मैट्रिक्स वाले बैंकों की निगरानी RBI द्वारा की जाती है।
    • RBI ने वर्ष 2002 में PCA फ्रेमवर्क को बैंकों के लिये एक संरचित प्रारंभिक-हस्तक्षेप तंत्र के रूप में पेश किया, जो बुरी आस्तियों की गुणवत्ता के कारण अल्प पूंजीकृत हो जाते हैं अथवा लाभप्रदता के नुकसान के कारण कमज़ोर हो जाते हैं।
    • भारत में वित्तीय संस्थानों और वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग के लिये संकल्प व्यवस्था पर वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद के कार्यकारी समूह की सिफारिशों के आधार पर इस रूपरेखा की समीक्षा वर्ष 2017 में की गई थी।
  • मानदंड:
    • RBI ने PCA फ्रेमवर्क के भाग के रूप में, तीन मापदंडों के संदर्भ में कुछ नियामक ट्रिगर बिंदु निर्दिष्ट किये हैं, यथा पूंजी से जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (CRAR), कुल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियांँ (NPA) और रिटर्न ऑन एसेट्स (ROA)।
  • उद्देश्य:
    • PCA फ्रेमवर्क का उद्देश्य उचित समय पर पर्यवेक्षी हस्तक्षेप को लागू करना है और पर्यवेक्षित इकाई से यह अपेक्षित होता है कि वे समय-समय पर आवश्यक कदम उठायें ताकि इसके वित्तीय स्वास्थ्य को बहाल किया जा सके।
    • इसका उद्देश्य भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) की समस्या की जांँच करना है।
    • इसका उद्देश्य नियामक के साथ-साथ निवेशकों और जमाकर्त्ताओं को सतर्क करने में सहायता करना है यदि कोई बैंक NPA की ओर बढ़ रहा है।
    • इसका उद्देश्य किसी संकट के अनुपात में वृद्धि होने से पहले ही समस्याओं का समाधान करना है।
  • लेखा परीक्षा वार्षिक वित्तीय परिणाम:
    • एक बैंक को आम तौर पर लेखा परीक्षा वार्षिक वित्तीय परिणामों और RBI द्वारा किये गए पर्यवेक्षी मूल्यांकन के आधार पर PCA फ्रेमवर्क के अंतर्गत रखा जाएगा।
  • हाल में हुए विकास कार्य:
    • वर्ष 2021 में, RBI ने अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के लिये PCA फ्रेमवर्क को संशोधित कर राउंड कैपिटल, एसेट क्वालिटी और लीवरेज को प्रमुख क्षेत्र माना गया जबकि परिसंपत्ति गुणवत्ता और लाभप्रदता इस ढाँचे के तहत निगरानी के प्रमुख क्षेत्र थे।

गैर-निष्पादनकारी परिसंपत्तियांँ:

  • यह एक ऋण अथवा अग्रिम भुगतान है जिसके लिये मूलधन या ब्याज भुगतान 90 दिनों की अवधि के लिये अतिदेय रहता है।
  • बैंकों को NPA को घटिया, संदेहास्पद और हानि वाली संपत्तियों में वर्गीकृत करने की आवश्यकता है।

पूंजी पर्याप्तता अनुपात:

  • पूँजी पर्याप्तता अनुपात (CAR) बैंक की उपलब्ध पूंजी बैंक के जोखिम-भारित क्रेडिट एक्सपोज़र को प्रतिशत के रूप में व्यक्त करने का एक उपाय है।
    • CAR  वह माप अनुपात है जो बैंकों की घाटे को अवशोषित करने की क्षमता का आकलन करता है।
  • पूंजी पर्याप्तता अनुपात, जिसे पूंजी-से-जोखिम भारित संपत्ति अनुपात (CRAR) के रूप में भी जाना जाता है, का उपयोग जमाकर्त्ताओं की सुरक्षा और विश्व भर में वित्तीय प्रणालियों की स्थिरता एवं दक्षता को बढ़ावा देने के लिये किया जाता है।

परिसंपत्तियों पर रिटर्न/लाभ (Return on Assets-RoA):

  • परिसंपत्तियों पर रिटर्न एक लाभप्रदता अनुपात है जो यह बताता है कि कंपनी अपनी संपत्ति से कितना लाभ उत्पन्न कर सकती है।
  • RoA को प्रतिशत के रूप में दिखाया गया है और संख्या जितनी अधिक होगी, कंपनी का प्रबंधन मुनाफा उत्पन्न करने के लिये अपनी बैलेंस शीट का प्रबंधन करने में उतना ही कुशल होगा।
  • कम RoA वाली कंपनियों के पास आमतौर पर अधिक संपत्ति होती है जो लाभ पैदा करने में शामिल होती है, जबकि उच्च RoA वाली कंपनियों के पास कम संपत्ति होती है।
  • समान कंपनियों की तुलना करते समय ROA सर्वोत्तम होता है, परिसंपत्ति-गहन कंपनी का निम्न RoA कम संपत्ति और समान लाभ के साथ एक असंबंधित कंपनी के उच्च RoA की तुलना में खतरनाक दिखाई दे सकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ):  

प्रश्न. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकिंग के शासन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018))

  1. पिछले दशक में भारत सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पूंजी प्रवाह में लगातार वृद्धि हुई है।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को व्यवस्थित करने के लिये भारतीय स्टेट बैंक के साथ सहयोगी बैंकों का विलय प्रभावित हुआ है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • सरकार ने राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों में ऋण विस्तार का समर्थन करने और गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (NPA) के लिये, किये जाने वाले प्रावधानों के परिणामस्वरूप होने वाले नुकसान से निपटने में मदद करने के लिये पूंजी निवेश किया है। लेकिन राज्य के स्वामित्व वाले बैंकों में पूंजी निवेश की प्रवृत्ति बढ़ती या घटती प्रवृत्ति जैसी दिशा में विशिष्ट नहीं रही है। कुछ वर्षों में इसमें वृद्धि हुई है तो कुछ वर्षों में इसमें कमी भी आई है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • फरवरी 2017 में केंद्र सरकार ने भारतीय महिला बैंक के साथ SBI के साथ पाँच सहयोगी बैंकों के विलय को मंज़ूरी दी थी। विलय के उद्देश्य सार्वजनिक बैंक संसाधनों का युक्तिकरण, लागत में कमी, बेहतर लाभप्रदता, और धन की कम लागत के कारण बड़े पैमाने पर जनता के लिये बेहतर ब्याज़ दर एवं सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की उत्पादकता तथा ग्राहक सेवा में सुधार करना था। संसद ने सार्वजनिक बैंकों के युक्तिकरण को प्रभावित करने के लिये भारतीय स्टेट बैंक के साथ छह सहायक बैंकों का विलय करने के लिये स्टेट बैंक (निरसन और संशोधन) विधेयक, 2017 पारित किया। अत: कथन 2 सही है।

अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

संवाद और सहयोग के माध्यम से सामान्य सुरक्षा को बढ़ावा देना: UNSC

प्रिलिम्स के लिये:

UNSC और इसकी विशेषताएंँ, अंतर्राष्ट्रीय न्याय संहिता।

मेन्स के लिये:

संवाद और सहयोग के माध्यम से सामान्य सुरक्षा को बढ़ावा देना, UNSC बैठक।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि ने 'संवाद और सहयोग के माध्यम से सामान्य सुरक्षा को बढ़ावा देना' विषय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की बैठक को संबोधित किया।

  • अगस्त 2022 के लिये सुरक्षा परिषद का वर्तमान अध्यक्ष होने और 15 सदस्यीय परिषद में से एक वीटो-धारक होने के नाते UNSC बैठक चीन द्वारा आयोजित की  गई थी।

बैठक की प्रमुख विशेषताएँ:

  • सभी देशों को एक दूसरे की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता एवं अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का सम्मान करना चाहिये।
  • सामान्य सुरक्षा तभी संभव है जब सभी देश आतंकवाद के मुद्दे पर एक साथ खड़े हों और इसके लिये दोहरे मापदंड का अभ्यास न करें साथ ही जब विभिन्न  देश समझौतों से पीछे हटने के लिये एकतरफा उपाय नहीं करें।
  • भारत ने विशेष रूप से सुरक्षा परिषद में बहुपक्षीय सुधार का आह्वान किया, यह कहते हुए कि राष्ट्रों के बीच सामान्य सुरक्षा की आकांक्षा नहीं की जा सकती यदि दक्षिण धुरी राष्ट्रों को प्रतिनिधित्त्व का अवसर नहीं दिया जाएगा।
    • सबसे ज़रूरी बात यह है कि सुरक्षा परिषद को विकासशील देशों का अधिक प्रतिनिधि बनाया जाए ताकि वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित किया जा सके, इसके अतिरिक्त अफ्रीकी महाद्वीप का भी परिषद में स्थायी प्रतिनिधित्व होना चाहिये।
  • विश्व के किसी एक हिस्से में सशस्त्र संघर्ष का दूसरे हिस्से े लोगों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है
    • हमने अन्य विकासशील देशों पर यूक्रेन युद्ध का प्रभाव विशेषकर खाद्यान्न, उर्वरक और ईंधन की आपूर्ति के क्षेत्र में देखा है।
  • अफगानिस्तान के संकट का प्रभाव अभी भी अनेकों क्षेत्र में महसूस किया जा सकता है।
  • चीन ने संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के आतंकवादियों को ब्लैकलिस्ट करने के भारत और अमेरिका के प्रयासों को बार-बार अवरुद्ध किया है।
  • भारत ने साझा सुरक्षा पर ज़ोर देते हुए चीन पर निशाना साधा जिसने वर्ष 2020 में पूर्वी लद्दाख में सीमा समझौते का उल्लंघन किया था।
    • पैंगोंग झील क्षेत्रों में हिंसक झड़प के बाद 5 मई, 2020 को भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध शुरू हो गया।
    • दोनों पक्षों ने धीरे-धीरे हज़ारों सैनिकों के साथ-साथ भारी हथियारों को लेकर अपनी तैनाती बढ़ा दी।
  • चीन लगभग संपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है, हालाँकि ताइवान, फिलीपींस, ब्रुनेई, मलेशिया और वियतनाम सभी इसके कुछ हिस्सों का दावा करते हैं।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC):

  • परिचय:
    • सुरक्षा परिषद की स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
      • संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंगों में शामिल हैं- संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA), ट्रस्टीशिप परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय।
    • UNSC मुख्य तौर पर अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने हेतु उत्तरदायी है।
    • यह संयुक्त राष्ट्र महासचिव का चयन करता है और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों के चुनाव में संयुक्त राष्ट्र महासभा के साथ सह-टर्मिनस भूमिका निभाता है।
      • संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय VII के तहत अपनाए गए इसके संकल्प सभी देशों के लिये बाध्यकारी हैं।
  • संरचना:
    • सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं: पाँच स्थायी सदस्य और दो वर्षीय कार्यकाल हेतु चुने गए दस अस्थायी सदस्य।
    • पाँच स्थायी सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं।
    • दस अस्थायी सदस्य: महासभा द्वारा दो वर्ष के लिये चुने जाते है।
      • अफ्रीकी और एशियाई देशों से पांँच;
      • पूर्वी यूरोपीय देशों से एक;
      • लैटिन अमेरिकी देशों से दो;
      • दो पश्चिमी यूरोपीय और अन्य देशों से।
  • भारत की सदस्यता:
    • भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक अस्थायी सदस्य के रूप में सात बार सेवाएँ प्रदान की है और जनवरी, 2021 में भारत ने आठवीं बार UNSC में प्रवेश किया।
    • भारत UNSC में स्थायी सीट की वकालत करता रहा है।
  • मतदान की शक्तियाँ:
    • सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थायी सदस्यों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा लिये जाते हैं, जिसमें सदस्यों की सहमति अनिवार्य है। पाँच स्थायी सदस्यों में से यदि कोई एक भी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट देता है तो वह प्रस्ताव पारित नहीं होता है।
    • पाँच स्थायी सदस्यों में से एक का भी नेगेटिव वोट प्रस्ताव के पारित होने को रोकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. UN की सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्यों का चुनाव महासभा द्वार कितनी अवधि के लिये किया जाता है? (2009)

(a) 1 वर्ष
(b) 2 वर्ष
(c) 3 वर्ष
(d) 5 वर्ष

उत्तर: (b)


प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक स्थायी सीट की खोज में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2015)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय विरासत और संस्कृति

भारत में आयुर्वेद

प्रिलिम्स के लिये:

आयुर्वेद, आयुर्वेद पहल।

मेन्स के लिये:

आयुर्वेद, आयुर्वेद में चुनौतियाँ, सरकारी पहल।

चर्चा में क्यों?

आयुर्वेद भारत की पारंपरिक चिकित्सा लगभग 3,000 वर्षों से प्रचलन में है और लाखों भारतीयों की स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरतों को पूरा कर रही है।

  • आयुर्वेद, लंबे समय से कुछ क्षेत्रों को संबोधित करने के लिये चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिन पर ध्यानाकर्षण करने की आवश्यकता है।

आयुर्वेद

  • परिचय:
    • आयुर्वेद शब्द की उत्पत्ति आयु और वेद से हुई है। आयु का अर्थ है जीवन, वेद का अर्थ है विज्ञान या ज्ञान अर्थात् आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान।
      • आयुर्वेद सभी जीवित चीजों, मानव और गैर-मानवहेतु लाभकारी है।
      • यह तीन मुख्य शाखाओं में विभाजित है:
        • नर आयुर्वेद: मानव जीवन से संबंधित।
        • सत्व युर्वेद: पशु जीवन और उसके रोगों से निपटना।
        • वृक्ष आयुर्वेद: पौधे के जीवन, उसके विकास और रोगों से निपटना।
      • आयुर्वेद न केवल चिकित्सा की एक प्रणाली है बल्कि पूर्ण सकारात्मक स्वास्थ्य और आध्यात्मिक प्राप्ति के लिये जीवन का एक तरीका भी है।
  • आयुर्वेद का अभ्यास:
    • वर्ष 1971 में स्थापित भारतीय चिकित्सा परिषद भारतीय चिकित्सा में उपयुक्त योग्यता स्थापित करती है और आयुर्वेद, यूनानी तथा सिद्ध सहित पारंपरिक अभ्यास के विभिन्न रूपों को मान्यता देती है।
    • आयुर्वेद में निवारक और उपचारात्मक दोनों पहलू हैं।
      • निवारक घटक व्यक्तिगत और सामाजिक स्वच्छता के सख्त संहिता की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, जिसका विवरण व्यक्तिगत, जलवायु और पर्यावरणीय आवश्यकताओं पर निर्भर करता है।
      • आयुर्वेद के उपचारात्मक पहलुओं में हर्बल औषधियों, बाह्य तैयारी, फिजियोथेरेपी और आहार का उपयोग शामिल है।
        • यह आयुर्वेद का एक सिद्धांत है कि प्रत्येक रोगी की व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिये निवारक और चिकित्सीय उपायों को अनुकूलित किया जाना चाहिये।
  • महत्त्व:
    • आयुर्वेद में यह माना जाता है कि जीवित मनुष्य तीन हास्य (वात, पित्त और कफ), सात मूल ऊतकों (रस, रक्त, मनसा, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र) और शरीर के अपशिष्ट उत्पादों अर्थात् मल, मूत्र और स्वेद का समूह है।
    • इस शरीर मैट्रिक्स तथा उसके घटकों की वृद्धि एवं क्षय इन तत्त्वों के मनोवैज्ञानिक तंत्र पर केंद्रित होते हैं और इसका संतुलन ही किसी के स्वास्थ्य की स्थिति का मुख्य कारण होता है।
    • आयुर्वेद प्रणाली में उपचार का दृष्टिकोण समग्र और व्यक्तिगत है, जिसमें निवारक, उपचारात्मक, शमन, उपचारात्मक तथा पुनर्वास संबंधी पहलू हैं।.
    • आयुर्वेद के प्रमुख उद्देश्य स्वास्थ्य को बनाए रखना और बीमारी की रोकथाम और बीमारी का इलाज करना है।

आधुनिक विश्व में आयुर्वेद के सामने प्रमुख चुनौतियाँ :

  • परंपरागत विचार:
    • शारीरिक व्यायाम के लाभों पर आयुर्वेद कहता है, "आराम की भावना, बेहतर फिटनेस, आसान पाचन, आदर्श शरीर-वज़न और शारीरिक सुंदरता नियमित व्यायाम से प्राप्त होने वाले लाभ हैं।"
      • हालाँकि एक ही अभ्यास में शामिल शारीरिक और रोग संबंधी अनुमानों के लिये इस तरह की निरंतर वैधता का दावा नहीं किया जा सकता है।
    • मूत्र के विषय में आयुर्वेद कहता है कि आंँतों से छोटी नलिकाएँ, मूत्र को  मूत्राशय में ले जाती हैं। मूत्र निर्माण की इस सरलीकृत योजना की गुर्दे की कोई भूमिका नहीं होती है।
      • इस पुराने विचार का वर्तमान चिकित्सा शिक्षा में इतिहास के एक उपाख्यान के अलावा कोई स्थान नहीं हो सकता है।
  • आपातकालीन मामलों में अप्रभावी उपचार:
    • तीव्र संक्रमण और शल्य चिकित्सा सहित अन्य आपात स्थितियों के उपचार में आयुर्वेद की अपर्याप्तता तथा चिकित्सीय में सार्थक शोध की कमी ने आयुर्वेद की सार्वभौमिक स्वीकृति को सीमित कर दिया है।
    • आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान जटिल है और इसमें क्या करें और क्या न करें बहुत अधिक हैं।
    • आयुर्वेदिक औषधियाँ काम करने और ठीक करने में धीमी होती हैं। प्रतिक्रिया या पूर्वानुमान की भविष्यवाणी करना असंभव नहीं तो मुश्किल है।
  • एकरूपता का अभाव:
    • आयुर्वेद में चिकित्सा पद्धतियाँ एक समान नहीं हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि इसमें इस्तेमाल होने वाले औषधीय पौधे भूगोल और जलवायु एवं स्थानीय कृषि पद्धतियों के साथ भिन्न होते हैं।
    • आयुर्वेद के विपरीत आधुनिक चिकित्सा में रोगों को पूर्व निर्धारित समान मानदंडों के अनुसार वर्गीकृत और इलाज किया जाता है।
  • आयुर्वेदिक फार्मा द्वारा भ्रामक प्रचार:
    • आयुर्वेदिक फार्माकोपिया उद्योग ने दावा किया कि इसकी निर्माण पद्धतियांँ क्लासिक आयुर्वेद ग्रंथों के अनुरूप थीं।
    • आयुर्वेदिक औषधियों की बेहतर बाज़ार अपील के लिये, औषधि कंपनियों ने पर्याप्त वैज्ञानिक आधार के बिना अपने आयुर्वेदिक उत्पादों के बारे में कई औषधीय दावों का प्रचार किया।
    • इससे समुदाय में औषधियों के प्रति प्रयोग और बढ़ गया और जीवनशैली में सुधार की आवश्यकता वाली बीमारियों का इलाज पॉली-फार्मेसी के साथ किया गया।

आयुर्वेद के विकास के लिये सरकार की पहलें:

आगे की राह:

  • रिवर्स फार्माकोलॉजी:
    • इसे औषधियों में विकसित करने के लिये, ट्रांसडिसिप्लिनरी खोजपूर्ण अध्ययनों के माध्यम से प्रलेखित नैदानिक अनुभवों और अनुभवात्मक टिप्पणियों को लीड में एकीकृत करने के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • न्यू मिलेनियम इंडियन टेक्नोलॉजी लीडरशिप इनिशिएटिव (NMITLI):
    • यह सार्वजनिक रूप से वित्त पोषित अनुसंधान एवं विकास संस्थानों, अकादमिक और निजी उद्योग की सर्वोत्तम दक्षताओं का तालमेल करके भारत की मज़बूत स्थिति बनाए रखने का प्रयास करता है।
  • केरल मॉडल का अनुकरण:
    • केरल आम जनसंख्या में प्रतिरक्षा में सुधार के तरीके के रूप में आयुर्वेद को बढ़ावा देता रहा है। यह आयुर्वेदिक योगों को बढ़ावा देता है और अपनी आबादी के सभी जनसांख्यिकी के लिये आयुर्वेद प्रथाओं की सिफारिश करता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्र. भारत सरकार औषधि के पारंपरिक ज्ञान को औषधि कंपनियों द्वारा पेटेंट कराने से कैसे बचा रही है? (2019)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

सोलर मॉड्यूल हेतु PLI योजना

प्रिलिम्स के लिये:

सोलर मॉड्यूल हेतु PLI योजना।

मेन्स के लिये:

PLI योजना और इसका महत्त्व , PLI योजना के मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने घरेलू सौर सेल मॉड्यूल के निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये 19,500 करोड़ रुपए के उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन (Production Linked incentive-PLI) को मंज़ूरी दी है।

  • यह 500 करोड़ रुपए की किश्त का अनुवर्ती है, जिसे नवंबर 2020 में मंज़ूरी दे दी गई थी, जिसका उद्देश्य चीन-निर्मित पैनलों पर उद्योग की निर्भरता को कम करना है।
  • PLI योजना की दूसरी किश्त के साथ सरकार उम्मीद कर रही है कि देश में पूरी तरह से और आंशिक रूप से एकीकृत, सौर PV मॉड्यूल की लगभग 65 गीगा वाट प्रति वर्ष विनिर्माण क्षमता स्थापित की जाएगी।

महत्त्व:

  • इससे लगभग 94,000 करोड़ रुपए का प्रत्यक्ष निवेश होगा, प्रत्यक्ष रूप से लगभग 1,95,000 और अप्रत्यक्ष रूप से लगभग 7,80,000 लोगों को रोज़गार मिलेगा। इससे भारत को आयात में करीब 1.37 लाख करोड़ रुपए की बचत होगी।
  • इन योजनाओं के साथ 70-80 गीगावॉट क्षमता की उम्मीद है जो भारत घरेलू आवश्यकताओं के साथ-साथ निर्यात का भी ध्यान रखेगी।
  • राज्य सरकार की औद्योगिक नीतियों के तहत राज्य प्रोत्साहन के साथ PLI लाभ, सीमा शुल्क में रियायती/आस्थगित शुल्क योजनाओं से परियोजना के रिटर्न की आंतरिक दर (IRR) में सुधार करने और भारतीय निर्मित सौर PV मॉड्यूल को बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धी बनाने में मदद मिलेगी।

‘उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना (PLI Scheme):

  • परिचय:
    • उच्च आयात प्रतिस्थापन और रोज़गार सृजन के साथ घरेलू विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिये PLI योजना की कल्पना की गई थी।
    • सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों हेतु PLI योजनाओं के तहत 1.97 लाख करोड़ रुपए का प्रावधान किया तथा वित्त वर्ष 2022-23 के बजट में सौर PV मॉड्यूल के लिये PLI हेतु 19,500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त आवंटन किया गया है।
    • मार्च 2020 में शुरू की गई इस योजना ने शुरू में तीन उद्योगों को लक्षित किया था:
      • मोबाइल और संबद्ध घटक निर्माण
      • विद्युत घटक निर्माण
      • चिकित्सा उपकरण
  • योजना के तहत प्रोत्साहन:
    • संवर्द्धित बिक्री के आधार पर गणना की गई प्रोत्साहन राशि, इलेक्ट्रॉनिक्स और प्रौद्योगिकी उत्पादों के लिये न्यूनतम 1% से लेकर औषधियों के संबंध में अधिकतम 20% तक है।
    • उन्नत रसायन सेल बैटरी, कपड़ा उत्पाद और ड्रोन उद्योग जैसे कुछ क्षेत्रों में प्रोत्साहन की गणना पाँच वर्षों की अवधि में की गई बिक्री, प्रदर्शन एवं स्थानीय मूल्यवर्द्धन के आधार पर की जाएगी।
  • वे क्षेत्र जिनके लिये PLI योजना की घोषणा की गई है:
  • उद्देश्य:
    • सरकार ने चीन एवं अन्य देशों पर भारत की निर्भरता को कम करने के लिये इस योजना की शुरुआत की है।
    • यह श्रम प्रधान क्षेत्रों का समर्थन करती है और भारत में रोज़गार अनुपात को बढ़ाने का लक्ष्य रखती है।
    • यह योजना आयात बिलों को कम करने एवं घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिये भी काम करती है।
      • PLI योजना विदेशी कंपनियों को भारत में अपनी इकाइयाँ स्थापित करने के लिये आमंत्रित करती है और घरेलू उद्यमों को अपनी उत्पादन इकाइयों का विस्तार करने हेतु प्रोत्साहित करती है।

PLI योजना के सामने चुनौतियाँ:  

  • मानकों का कोई सामान्य सेट नहीं:
    • PLI योजना के तहत प्रोत्साहन प्राप्त करने या ऐसी संभावना वाली कंपनियों द्वारा मूल्यवर्द्धन को समझने के लिये कोई सामान्य मानदंड नहीं थे।
    • वर्तमान में विभिन्न मंत्रालय अपनी संबंधित PLI योजनाओं के मूल्यवर्द्धन की निगरानी करते हैं और दो अलग-अलग योजनाओं की तुलना करने का कोई स्थापित तरीका नहीं है।
    • इसके अलावा विभिन्न वितरण योग्य जैसे कि नौकरियों की संख्या ने निर्यात में वृद्धि और गुणवत्ता में सुधार किया है तथा इन सभी को मापने के लिये कोई केंद्रीकृत डेटाबेस उपलब्ध नहीं है।
  • कंपनियों के लिये प्रोत्साहन लक्ष्य में भी वृद्धि:
    • अपने क्षेत्र में कार्य कर रही कंपनियों के साथ बातचीत करने वाले विभागों और मंत्रालयों को भी कुछ विशिष्ट मुद्दों का सामना करना पड़ता है।
      • उदाहरण- कई बार कंपनियों के लिये प्रोत्साहन हेतु अर्हता प्राप्त करने का लक्ष्य बहुत अधिक होता है।
  • एक या दो आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर घरेलू कंपनियाँ:
    • पिछले वित्त वर्ष तक केवल 3-4 कंपनियाँ ही स्वीकृत चौदह कंपनियों से PLI योजना के लिये अर्हता प्राप्त करने हेतु संवर्द्धित बिक्री लक्ष्य (Incremental Sales Targets) हासिल करने में कामयाब रही थीं।
    • वैश्विक कंपनियों के विपरीत अधिकांश घरेलू कंपनियाँ एक या दो आपूर्ति शृंखलाओं पर निर्भर थीं, जो कि गंभीर रूप से बाधित हो गई हैं और बिना किसी गलती ये कंपनियाँ प्रोत्साहन हेतु योग्य नहीं होंगी।

आगे की राह

  • यदि मांग स्थिर है, तो कम निवेश होता है क्योंकि इसमें पूँजी की लागत के साथ-साथ इन्वेंट्री रखने की लागत भी शामिल होती है, इसलिये मांग के संदर्भ में चुनौतियों का समाधान करने के लिये निवेश को विनिर्माण से संबंधित PLI से अधिक रखने की आवश्यकता होती है।
  • केवल विनिर्माण ही नहीं, बल्कि प्रोत्साहन प्रदान करते समय सभी क्षेत्रों को ध्यान में रखने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. हाल ही में सौर ऊर्जा की उपकरण लागतों और टैरिफ में हाल के नाटकीय पतन के क्या कारक बताए जा सकते हैं? इस प्रवृत्ति के तापीय विद्युत उत्पादकों और संबंधित उद्योग के लिये क्या निहितार्थ हैं? (2015)

स्रोत: द हिंदू


भारतीय राजव्यवस्था

सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, भारत के मुख्य न्यायाधीश, भारत के महान्यायवादी।

मेन्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय की कार्यवाही, प्रयोजन और आगे की राह।

चर्चा में क्यों:

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने महत्त्वपूर्ण संविधान पीठ के मामलों में अपनी कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करने का निर्णय लिया, जिसकी सुनवाई 27 सितंबर, 2022 से होगी।

  • न्यायालयी कार्यवाही के प्रसारण के कारण सकारात्मक प्रणालीगत सुधार संभव हुए हैं।

पृष्ठभूमि:

  • स्वप्निल त्रिपाठी बनाम भारतीय सर्वोच्च न्यायालय मामले (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने लाइव स्ट्रीमिंग के ज़रिये इसे खोलने के पक्ष में फैसला सुनाया था।
  • इसने माना कि लाइव स्ट्रीमिंग की कार्यवाही संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) के तहत न्याय तक पहुँचने के अधिकार का हिस्सा है।
  • गुजरात उच्च न्यायालय पहला उच्च न्यायालय था जिसने न्यायालयी कार्यवाही को लाइवस्ट्रीम किया जबकि दूसरा कर्नाटक उच्च न्यायालय था।
  • वर्तमान में, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा और पटना उच्च न्यायालय अपनी कार्यवाही को लाइव स्ट्रीम करते हैं।
    • इलाहबाद उच्च न्यायालय भी इस विषय पर विचार कर रही है।

 भारत के महान्यायवादी का सुझाव:

  • लाइव-स्ट्रीमिंग को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की पीठ और केवल संविधान पीठ के मामलों में एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेश किया जाना चाहिये।
    • इस परियोजना की सफलता यह निर्धारित करेगी कि सभी न्यायालयों यानी सर्वोच्च न्यायालय एवं अखिल भारतीय न्यायालय में लाइव स्ट्रीमिंग शुरू की जानी चाहिये या नहीं।
  • महान्यायवादी (AG) ने अपनी सिफारिश के समर्थन में न्यायालयों की भीड़ को कम करने और वादियों के लिये न्यायालयों तक बेहतर भौतिक पहुँच का हवाला दिया, जिन्हें सर्वोच्च न्यायालय तक आने के लिये अन्यथा लंबी दूरी की यात्रा करनी पड़ती है।
  • महान्यायवादी द्वारा सुझाए गए दिशा-निर्देशों के एक सेट को सर्वोच्च द्वारा अनुमोदित किया गया था। हालाँकि, महान्यायवादी ने सुझाव दिया कि प्रसारण की अनुमति का अधिकार न्यायालय के पास होना चाहिये तथा निम्नलिखित मामलों में इसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिये:
    • वैवाहिक मामले,
    • किशोरों के हितों या युवा अपराधियों के निजी जीवन की रक्षा एवं सुरक्षा से जुड़े मामले,
    • राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामले,
    • यह सुनिश्चित करना कि पीड़ित, गवाह या प्रतिवादी ईमानदारी से और बिना किसी डर के गवाही दे सकें।
      • कमज़ोर या भयभीत गवाहों को विशेष सुरक्षा दी जानी चाहिये।
      • यह गवाह के चेहरे के विरूपण का प्रावधान कर सकता है यदि वह गुमनाम/अज्ञात रूप से प्रसारण के लिये सहमति देता है।
    • यौन उत्पीड़न और बलात्कार से संबंधित सभी मामलों सहित गोपनीय या संवेदनशील जानकारी की सुरक्षा करना।
    • ऐसे मामले जहाँ प्रचार/पब्लिसिटी न्याय के प्रशासन के विरुद्ध हो, और
    • ऐसे मामले जो लोगों की भावनाओं को भड़का सकते हैं या उत्तेजित कर सकते हैं और समुदायों के बीच शत्रुता उत्पन्न करने का कार्य कर सकते हैं।

अन्य देशों में परिदृश्य

  • संयुक्त राज्य अमेरिका: वर्ष 1955 से ऑडियो रिकॉर्डिंग और मौखिक तर्कों के प्रतिलेखों की अनुमति दी गई है।
  • ऑस्ट्रेलिया: लाइव या विलंबित प्रसारण की अनुमति है लेकिन सभी न्यायालयों में प्रथाएँ और मानदंड अलग-अलग हैं।
  • ब्राज़ील: वर्ष 2002 से न्यायालय में न्यायाधीशों द्वारा की गई चर्चा और मतदान प्रक्रिया सहित न्यायालयी कार्यवाही के लाइव वीडियो एवं ऑडियो प्रसारण की अनुमति है।
  • कनाडा: कार्यवाही का सीधा प्रसारण केबल संसदीय मामलों के चैनल पर प्रत्येक मामले के स्पष्टीकरण और न्यायालय की समग्र प्रक्रियाओं और शक्तियों के साथ किया जाता है।
  • दक्षिण अफ्रीका: वर्ष 2017 से दक्षिण अफ्रीका के सर्वोच्च न्यायालय ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के विस्तार के रूप में मीडिया को आपराधिक मामलों में न्यायालयी कार्यवाही को प्रसारित करने की अनुमति दी है।
  • यूनाइटेड किंगडम: वर्ष 2005 के बाद न्यायालय की वेबसाइट पर एक मिनट की देरी से कार्यवाही का सीधा प्रसारण किया जाता है, लेकिन संवेदनशील अपीलों में कवरेज वापस लिया जा सकता है।

संबद्ध चिंताएँ और आगे की राह:

  • चिंताएँ:
    • भारतीय न्यायालयों की कार्यवाही के वीडियो क्लिप जो पहले से ही YouTube और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर संवेदनात्मक शीर्षक और कम संदर्भ के साथ उपलब्ध हैं, जनता के बीच गलत सूचना का प्रसार कर रहे हैं, जैसा कि हाल के दिनों में देखा गया है।
    • साथ ही, प्रसारकों के साथ वाणिज्यिक समझौते भी संबंधित हैं।
    • लाइव स्ट्रीमिंग वीडियो का अनधिकृत पुनरुत्पादन चिंता का एक और कारण है क्योंकि सरकार द्वारा बाद में इसका विनियमन बहुत मुश्किल होगा।
  • आगे की राह:
    • न्यायालयी कार्यवाही का प्रसारण पारदर्शिता और न्याय प्रणाली तक अधिक पहुँच की दिशा में एक कदम है। संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्त्व के मामलों को सार्वजनिक दर्शकों के लिये उपलब्ध कराना नागरिकों के सूचना और प्रौद्योगिकी का अधिकार है।
    • यदि शीर्ष न्यायालय की कार्यवाही का सीधा प्रसारण संभव नहीं है, तो वैकल्पिक रूप से कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग की अनुमति दी जानी चाहिये।
    • प्रसारकों के साथ करार गैर-व्यावसायिक आधार पर होना चाहिये। व्यवस्था से किसी को अनुचित लाभ नहीं होना चाहिये।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये दिशा-निर्देशों का एक सेट तैयार किया जाना चाहिये कि वीडियो शीर्षक और विवरण भ्रामक नहीं हैं तथा केवल सही जानकारी देते हैं।
    • अनधिकृत रूप से वीडियो की लाइव-स्ट्रीमिंग के लिये कड़ी सजा/जुर्माना लगाया जाना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. निजता का अधिकार  जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित है। निम्नलिखित में से कौन-सा भारत के संविधान में उपर्युक्त्त कथन का सही और उचित अर्थ है? (2018)

(a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान।
(b) अनुच्छेद 17 और भाग IV में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत।
(c) अनुच्छेद 21 और भाग III में गारंटीकृत स्वतंत्रता।
(d) अनुच्छेद 24 और संविधान के 44वें संशोधन के तहत प्रावधान।

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय के नौ-न्यायाधीशों की बेंच ने जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले में सर्वसम्मति से पुष्टि की कि निजता का अधिकार भारतीय संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।
  • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह घोषणा की थी कि अनुच्छेद 21 में गारंटीकृत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में निजता का अधिकार भी शामिल है।
  • निजता के अधिकार को अनुच्छेद 21 के तहत प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में तथा संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में संरक्षित किया गया है।

अतः विकल्प (c) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का कन्वर्जेंस मॉड्यूल

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि अवसंरचना कोष, प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना, APEDA, खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र।

मेन्स के लिये:

MoFPI के कन्वर्ज़ेंस पोर्टल का महत्त्व, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजना और इसकी आवश्यकता।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) ने कृषि अवसंरचना कोष (AIF) योजना, प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्यम उन्नयन योजना (PMFME) और प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) के बीच अभिसरण/कन्वर्जेंस मॉड्यूल लॉन्च किया है।/

  • AIF, PMFME और PMKSY के तहत लाभार्थियों को अधिकतम लाभ प्रदान करने के उद्देश्य से एक मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) भी जारी की गई थी।

कन्वर्जेंस मॉड्यूल:

  • कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (MoFPI) ने संयुक्त रूप से कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लाभों को बेहतर ढंग से प्राप्त करने के लिये एक अभिसरण पोर्टल लॉन्च किया।
  • यह इस विचार पर शुरू किया गया है कि सरकार के सभी मंत्रालयों और विभागों को देश के लोगों को उनकी सर्वोत्तम क्षमता की सेवा करने के लिये मिलकर काम करना चाहिये।
  • यह पोर्टल देश के खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के लिये बहुत महत्त्वपूर्ण साबित होगा, जिससे प्रसंस्करण उद्योग के किसान और छोटे पैमाने के उद्यमियों सहित देश के विभिन्न वर्गों को लाभ होगा।
  • यह प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए एक कदम है और 'वोकल फॉर लोकल' की अवधारणा को भी बढ़ावा देगा।

प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य उद्योग उन्नयन योजन:

  • परिचय:
    • इसे खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा जून, 2020 में आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत व्यक्तिगत सूक्ष्म उद्यमों की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने के लिये लॉन्च किया गया था।
    • यह देश में सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के उन्नयन के लिये वित्तीय, तकनीकी और वाणिज्यिक सहायता प्रदान करता है।
    • यह योजना इनपुट की खरीद, सामान्य सेवाओं का लाभ उठाने और उत्पादों के विपणन के मामले में पैमाने का लाभ उठाने के लिये एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) दृष्टिकोण अपनाती है।
    • इसे 2020-21 से 2024-25 तक पाँच वर्ष की अवधि में लागू किया जाएगा।
  • वित्तपोषण:
    • यह 10,000 करोड़ रुपए की लागत के साथ केंद्र द्वारा प्रायोजित योजन है।
    • इस योजना के तहत व्यय को केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में, उत्तर पूर्वी तथा हिमालयी राज्यों के साथ 90:10 के अनुपात में, विधायिका वाले केंद्रशासित प्रदेशों के साथ 60:40 के अनुपात में साथ अन्य केंद्रशासित प्रदेशों के लिये केंद्र द्वारा 100% साझा किया जाएगा।
  • आवश्यकता:
    • लगभग 25 लाख इकाइयों वाले असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में 74% रोज़गार उपलब्ध कराता है।
    • इनमें से लगभग 66% इकाइयाँ ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित हैं और उनमें से लगभग 80% परिवार आधारित उद्यम हैं जो ग्रामीण परिवारों की आजीविका में मदद करते हैं और शहरी क्षेत्रों में उनके प्रवास को कम करते हैं।
      • ये इकाइयांँ मुख्यतः सूक्ष्म उद्यमों की श्रेणी में आती हैं।
    • असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कई चुनौतियों का सामना करता है यथा आधुनिक तकनीक और उपकरणों तक पहुँच की कमी, प्रशिक्षण, संस्थागत ऋण की सुविधा, ब्रांडिंग और विपणन कौशल की कमी आदि जो उनके प्रदर्शन और उनके विकास को सीमित करते हैं।
  • उपलब्धियाँ:
    • अभी तक खाद्य प्रसंस्करण गतिविधियों में लगे लगभग 62,000 लाभार्थी इस योजना से लाभान्वित हो चुके हैं। नये सूक्ष्म खाद्य उद्यम स्थापित करने या मौजूदा इकाइयों के उन्नयन के लिये इस योजना के तहत लगभग 7,300 स्वीकृत किये गए हैं।
    • 2022-23 की तीसरी तिमाही में ऋण स्वीकृतियों की गति 50% बढ़ने की उम्मीद है।

AIF क्या है?

  • कृषि इंफ्रा फंड (AIF) वित्तपोषण सुविधा है, जिसे जुलाई 2020 में, फसलोपरांत प्रबंधन अवसंरचना व सामुदायिक कृषि परिसंपत्तियों के निर्माण के लिये शुरू किया गया, जिसमें लाभ में 3% ब्याज छूट व क्रेडिट गारंटी सहायता शामिल हैं।
  • इसके तहत वर्ष 2020-21 से 2025-26 तक 1 लाख करोड़ रुपए के वित्त का प्रावधान किया गया है एवं वर्ष 2032-33 तक ब्याज छूट व क्रेडिट गारंटी सहायता दी जाएगी।
  • AIF योजना में राज्य या केंद्र सरकार की किसी भी अन्य योजना के साथ कन्वर्जेंस की सुविधा है, इसलिये किसी विशेष परियोजना हेतु कई सरकारी योजनाओं के लाभों को इष्टतम करने के उद्देश्य से, योजनाओं के कन्वर्जेंस हेतु बड़े पैमाने पर कई बाह्य प्रणालियों/पोर्टल के साथ इनका एकीकरण किया जा रहा है।

प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना:

  • प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY), खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की केंद्रीय क्षेत्र योजना है, जिसकी परिकल्पना व्यापक पैकेज़ रूप में की गई है, जिसके परिणामस्वरूप फार्म गेट से रिटेल आउटलेट तक कुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन के साथ आधुनिक अवसंरचना का निर्माण होगा।
  • PMKSY के तहत सात घटक योजनाएँ:
    • मेगा फूड पार्क
    • एकीकृत कोल्ड चेन और मूल्य संवर्द्धन अवसंरचना
    • कृषि प्रसंस्करण समूहों (APCs) के लिये बुनियादी ढाँचा
    • बैकवर्ड एवं फारवर्ड लिंकेज़ सृजन
    • खाद्य प्रसंस्करण/परिरक्षण क्षमता सृजन/ विस्तार
    • खाद्य संरक्षा एवं गुणवत्‍ता आश्‍वासन अवसंरचना
    • मानव संसाधन एवं संस्थान

अन्य संबंधित पहल

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न: भारत सरकार मेगा फूड पार्क की अवधारणा को किस/किन उद्देश्य/उद्देश्यों से प्रोत्साहित कर रही है? (2011)

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्तम अवसंरचना सुविधाएँ उपलब्ध कराने हेतु।

खराब होने वाले पदार्थों का अधिक मात्रा में प्रसंस्करण करने और अपव्यय घटाने हेतु।

उद्यमियों के लिये उद्यमी और पारिस्थितिकी के अनुकूल आहार प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियाँ उपलब्ध कराने हेतु।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • "मेगा फूड पार्क" योजना का उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्त्ताओं और खुदरा विक्रेताओं को एक साथ लाकर कृषि उत्पादन को बाज़ार से जोड़ने के लिये एक तंत्र प्रदान करना है, ताकि मूल्यवर्धन को अधिकतम करना, अपव्यय को कम करना, किसानों की आय में वृद्धि करना और विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार के अवसर पैदा करना सुनिश्चित किया जा सके। अत: 2 सही है।
  • यह अच्छी तरह से स्थापित आपूर्ति शृंखला के साथ पार्क में उपलब्ध कराए गए औद्योगिक भू-खंडों में आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों की स्थापना के लिये एक अच्छी तरह से परिभाषित कृषि/बागवानी क्षेत्र में अत्याधुनिक समर्थन बुनियादी ढाँचे के निर्माण की परिकल्पना करता है। अत: 1 सही है।
  • यह वातानुकूलित कक्षों, दबाव वेंटिलेटर, परिवर्तनीय आर्द्रता भंडार, प्रीकूलिंग कक्षों, कोल्ड चेन बुनियादी ढाँचे सहित विशेष भंडारण सुविधाओं के निर्माण पर केंद्रित है, जिसमें रीफर वैन, पैकेजिंग इकाई, विकिरण सुविधाएँं, भाप उत्पादन इकाइयाँ, फूड इनक्यूबेशन सह-विकास केंद्र आदि शामिल हैं।
  • "मेगा फूड पार्क" योजना में उद्यमियों को पर्यावरण के अनुकूल खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है। अत: 3 सही नहीं है।

मेन्स

प्रश्न. उत्तर-पश्चिम भारत के कृषि आधारित खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के स्थानीयकरण के कारकों पर चर्चा कीजिये। (2019)

प्रश्न. देश में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियाँ और अवसर क्या हैं? खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देकर किसानों की आय में पर्याप्त वृद्धि किस प्रकार की जा सकती है? (2020))

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिये भारत सरकार द्वारा अपनाई गई नीति का विस्तार से वर्णन कीजिये। (2019)

स्रोत: पी.आई.बी.


नीतिशास्त्र

कृत्रिम बुद्धिमत्ता और नैतिकता

प्रिलिम्स के लिये:

AI का अनुप्रयोग, मशीन लर्निंग, संबंधित सरकारी योजनाएँ, अंतर्राष्ट्रीय समझौते

मेन्स के लिये:

AI के लिये नियम और विनियम, अन्य क्षेत्रों और समाज पर AI का प्रभाव, AI के लिये चुनौतियाँ और पहल

चर्चा में क्यों?

AI की नैतिकता पर यूनेस्को का वैश्विक समझौता सरकारों और कंपनियों का समान रूप से मार्गदर्शन कर सकता है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI):

  • यह उन कार्यों को पूरा करने वाली मशीनों की कार्रवाई का वर्णन करता है जिनके लिये ऐतिहासिक रूप से मानव बुद्धिमत्ता की आवश्यकता होती है।
  • इसमें मशीन लर्निंग, पैटर्न रिकग्निशन, बिग डेटा, न्यूरल नेटवर्क्स, सेल्फ-एल्गोरिदम आदि जैसी प्रौद्योगिकियांँ शामिल हैं।
  • इस अवधारणा का वर्णन ग्रीक पौराणिक कथाओं में वापस देखी जा सकती है, हालांँकि इसका वर्तमान स्वरुप आधुनिक इतिहास में इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटर प्रोग्राम विकसित किये जाने के बाद देखे गए थे।
    • उदाहरण: मनुष्यों के आदेशों को समझने और मानव जैसे कार्यों को करने के लिये लाखों एल्गोरिदम और कोड हैं। अपने उपयोगकर्त्ताओं के लिये फेसबुक के सुझाए गए दोस्तों की सूची, एक पॉप-अप पेज, जो इंटरनेट ब्राउज़ करते समय स्क्रीन पर आने वाले जूते और कपड़ों के पसंदीदा ब्राॅण्ड की आगामी बिक्री के बारे में सुझाव देता है, कृत्रिम बुद्धिमत्ता का कार्य है।
  • AI में जटिल चीजें शामिल होती हैं जैसे मशीन में किसी विशेष डेटा को फीड करना और इसे विभिन्न स्थितियों के अनुसार प्रतिक्रिया देना। यह मूल रूप से सेल्फ-लर्निंग पैटर्न बनाने से संबंधित है जहां मशीन मुश्किल प्रश्नों का उत्तर दे सकेंगी।
  • भारत ने ज़िम्मेदार और नैतिक AI शासन के विकास में काफी प्रगति की है, नीति आयोग के #AIForAll अभियान से शुरू होकर कई कॉर्पोरेट रणनीतियों को अपनाया गया है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि AI को इसके मूल में सामान्य, मानवीय मूल्यों के साथ विकसित किया गया है।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता से उत्पन्न चुनौतियाँ:

  • बेरोज़गारी का खतरा: श्रमिकों का पदानुक्रम मुख्य रूप से स्वतः संचालित (Automation) होता है। रोबोटिक्स और AI  कंपनियों  द्वारा उन बुद्धिमान मशीनों का निर्माण किया जा रहा है जो सामान्यतः कम आय वाले श्रमिकों द्वारा किये जाने वाले कार्यों को करने में सक्षम हैं जैसे- बैंक कैशियर (Bank Cashiers) के कार्यों को करने हेतु स्वयं सेवा कियोस्क (Self-Service Kiosks) का उपयोग, फलों को चुनने वाले रोबोट द्वारा फील्ड में कार्य करने वाले लोगों को प्रतिस्थापित करना।
    • इसके अलावा वह दिन दूर नहीं जब AI के उपयोग के कारण कई डेस्क जॉब्स समाप्त हो जायेंगे जैसे- एकाउंटेंट (Accountants), वित्तीय व्यापारी (Financial Traders) और मध्य-स्तरीय प्रबंधक (Middle Managers)।
  • बढ़ती असमानताएंँ: कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग करके एक कंपनी मानव कार्यबल में भारी कटौती कर सकती है।
    • परिणामस्वरूप जिन व्यक्तियों के पास AI संचालित कंपनियों का स्वामित्त्व है, वे सभी अधि धनार्जित कर सकेंगे। इसके अलावा AI का उपयोग डिजिटल बहिष्करण (Digital Exclusion) को भी बढ़ा सकता है।
    • इसके अलावा उन देशों में अधिक निवेश स्थानांतरित होने की संभावना है जहांँ पहले से ही AI से संबंधित कार्य किये जा रहे हैं जो देशों के भीतर और विभिन्न देशों के मध्य अधिक अंतराल की स्थिति उत्पन्न कर सकता है।
  • प्रौद्योगिकी की लत: तकनीकी लत मानव की एक सीमा निर्धारित करती है। AI का उपयोग पहले से ही मानव ध्यान को निर्देशित करने और कुछ कार्यों को अपने अनुसार नियंत्रित करने हेतु किया जा रहा है।
    • तकनीकी का सही इस्तेमाल समाज को अधिक लाभकारी बनाने का अवसर प्रदान करता है, वहीं इसके गलत हाथों में जाने से यह समाज के लिये दुष्प्रभावी भी साबित हो सकता है।
  • भेदभावपूर्ण रोबोट: हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि AI प्रणाली मनुष्य द्वारा निर्मित है, जिसकी कार्य प्रणाली पक्षपातपूर्ण हो सकती है।
    • यह लोगों की पहचान उनके चेहरे के रंग और अल्पसंख्यकों के आधार पर करता है।
  • डेटा गोपनीयता से जुडी चिंताएँ: AI के उपयोग से डेटा गोपनीयता से संबंधित गंभीर चिंताएंँ उत्पन्न हुई हैं। जटिल एल्गोरिदम में विशाल मात्रा में डेटा की आवश्यकता होती है, जिसके कारण प्रायः आम लोगों के डिजिटल फुटप्रिंट को बिना उनकी जानकारी अथवा सूचित सहमति के बेचा जाता है और इसका प्रयोग किया जाता है।
    • कैम्ब्रिज एनालिटिका का मामला, जिसमें इस प्रकार के एल्गोरिदम और बड़े डेटा का प्रयोग वोटिंग में हेर-फेर करने हेतु किया गया था। वर्तमान में AI बिज़नेस मॉडल से उत्पन्न व्यक्तिगत और सामाजिक चिंताओं को चेतावनी के रूप में लेने की आवश्यकता है।
  • AI का मानवता के विरुद्ध: क्या होगा यदि कृत्रिम बुद्धिमत्ता स्वयं ही इंसानों के खिलाफ हो जाए?
    • एक ऐसी AI प्रणाली की कल्पना कीजिये जिसे विश्व से कैंसर को समाप्त करने के लिये कहा जाता है। काफी गणना करने के बाद वह कैंसर को समाप्त करने का एक फार्मूला बताता है कि इसके लिये पृथ्वी के सभी इंसानों को मार दिया जाए।

कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता के वैश्विक मानक:

  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता की नैतिकता पर सुझाव को यूनेस्को ने वर्ष 2021 में अपने सामान्य सम्मेलन के 41वें सत्र में अपनाया था।
    • इसका उद्देश्य लोगों और AI विकसित करने वाले व्यवसायों एवं सरकारों के बीच शक्ति संतुलन को मौलिक रूप से बदलना है।
  • UNESCO देशों ने AI डिज़ाइन टीमों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों का उचित प्रतिनिधित्व की सुनिश्चितता के लिये उचित कदम उठाने की आपसी सहमती व्यक्त की है।
  • यूनेस्को के सदस्यों सकारात्मक कार्रवाई का उपयोग करने के लिये सहमत हुए हैं कि AI डिज़ाइन टीमों में महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों का उचित प्रतिनिधित्त्व दिया जाए।
  • सिफारिश डेटा, गोपनीयता और सूचना तक पहुँच के उचित प्रबंधन के महत्त्व को भी रेखांकित करती है।
  • यह सदस्य देशों से यह सुनिश्चित करने का आह्वान करता है कि संवेदनशील डेटा के प्रसंस्करण और प्रभावी जवाबदेही के लिये उपयुक्त सुरक्षा उपाय योजनाएँ तैयार करे और क्षति की स्थिति में निवारण तंत्र प्रदान करे।
  • सिफारिश एक मज़बूत रुख अपनाती है कि:
    • AI प्रणाली का उपयोग सामाजिक स्कोरिंग या बड़े पैमाने पर निगरानी उद्देश्यों के लिये नहीं किया जाना चाहिये।
    • इन प्रणालियों के बच्चों पर पड़ने वाले मनोवैज्ञानिक और संज्ञानात्मक प्रभाव पर ध्यान देना चाहिये।
    • सदस्य देशों को न केवल डिजिटल, मीडिया और सूचना साक्षरता कौशल, बल्कि सामाजिक-भावनात्मक एवं AI नैतिकता कौशल में भी निवेश तथा बढ़ावा देना चाहिये।
  • यूनेस्को सिफारिशों के कार्यान्वयन में तत्परता का आकलन करने में मदद करने के लिये उपकरण विकसित करने की प्रक्रिया में भी है।

आगे की राह

  • AI की वैश्विक पहुंँच को देखते हुए इसे "पूरे समाज" के दृष्टिकोण से "संपूर्ण विश्व" के दृष्टिकोण पर प्रतिस्थापित किया जाना चाहिये।
  • डिजिटल सहयोग हेतु संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा प्रस्तुत रोडमैप एक अच्छी पहल है। यह वैश्विक सहयोग पर बहु-हितधारक प्रयासों की आवश्यकता को पूरा करता है, इसलिये AI का उपयोग "भरोसेमंद, मानवाधिकार-आधारित, सुरक्षित और टिकाऊ एवं शांति को बढ़ावा देने" के तरीके से किया जाता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न  

Q. "चौथी औद्योगिक क्रांति (डिजिटल क्रांति) के उद्भव ने सरकार के एक अभिन्न अंग के रूप में ई-गवर्नेंस की शुरुआत की है"। चर्चा कीजिये। (2020)

स्रोत: द हिंदू


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