जैव विविधता और पर्यावरण
ई-कचरा प्रबंधन
चर्चा में क्यों?
इलेक्ट्रॉनिक कचरा प्रबंधन नियमों के अनुपालन में भारी गिरावट का हवाला देते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हाल ही में आदेश दिया है कि नियमों के अनुरूप ई-कचरे का वैज्ञानिक तरीके निपटान सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा ये दिशा-निर्देश केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को जारी किये गए हैं।
ई-कचरा
- कंप्यूटर तथा उससे संबंधित अन्य उपकरण तथा टी.वी., वाशिंग मशीन एवं फ्रिज जैसे घरेलू उपकरण और कैमरे, मोबाइल फोन तथा उससे जुड़े अन्य उत्पाद जब चलन/उपयोग से बाहर हो जाते हैं तो इन्हें संयुक्त रूप से ई-कचरे की संज्ञा दी जाती है। इसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के घटक और पुर्जे आदि शामिल हैं।
- इसे दो व्यापक श्रेणियों के तहत 21 प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है:
- सूचना प्रौद्योगिकी और संचार उपकरण।
- विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण।
- ई-कचरे के प्रबंधन को लेकर वर्ष 2011 से ही भारत में कानून मौजूद है, जिसके मुताबिक केवल अधिकृत विघटनकर्त्ता (Dismantlers) और पुनर्चक्रणकर्त्ता (Recyclers) ही ई-कचरा एकत्र कर सकते हैं।
- ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 को वर्ष 2017 में लागू किया गया था।
- भोपाल (मध्य प्रदेश) में घरेलू और वाणिज्यिक इकाइयों से कचरे के पृथक्करण, प्रसंस्करण और निपटान के लिये भारत का पहला ई-कचरा क्लिनिक स्थापित किया गया है।
प्रमुख बिंदु
भारत में ई-कचरे का उत्पादन
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, भारत में वर्ष 2019-20 में 10 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न हुआ था। वर्ष 2017-18 के मुकाबले वर्ष 2019-20 में ई-कचरे में 7 लाख टन की बढ़ोतरी हुई थी। इसके विपरीत ई-कचरे के विघटन और पुनर्चक्रण की क्षमता में बढ़ोतरी नहीं हुई है।
- वर्ष 2018 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ट्रिब्यूनल को बताया था कि भारत में ई-कचरे का 95 प्रतिशत पुनर्नवीनीकरण अनौपचारिक क्षेत्र द्वारा किया जाता है, और अधिकांश स्क्रैप डीलरों द्वारा इसका निपटान अवैज्ञानिक तरीके से इसे जलाकर या एसिड के माध्यम से किया जाता है।
ट्रिब्यूनल के निर्देश
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्टों के आलोक में ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 के वैज्ञानिक तरीके से प्रवर्तन हेतु और अधिक प्रयास किया जाना चाहिये।
- ट्रिब्यूनल ने ई-कचरा संग्रहण के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मिली असफलता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि वर्ष 2018-19 में तकरीबन 78,000 टन ई-कचरा एकत्रित किया गया था, जो कि 1.54 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले काफी कम है।
- CPCB ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 के नियम 16 के अनुपालन पर विचार कर सकती है, जो कि बिजली एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और उनके घटकों या उपभोग्य वस्तुओं अथवा पुर्जों के निर्माण में खतरनाक पदार्थों के उपयोग में कमी से संबंधित है।
- ट्रिब्यूनल ने इस बात की और भी ध्यान आकर्षित किया कि ई-कचरे को अवैज्ञानिक रूप से नियंत्रित करने से आवासीय क्षेत्रों में बड़ी संख्या में दुर्घटनाएँ होती हैं। इस विषय पर सतर्कता बनाए रखने और इस पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। इसके लिये CPCB द्वारा ई-कचरे से संबंधित साइटिंग मानदंडों की समीक्षा और उन्हें अपडेट किये जाने की आवश्यकता है, इस समीक्षा तीन माह के भीतर की जा सकती है।
- सभी राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों को पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को रोकने और कानून के सही ढंग से प्रवर्तन के लिये ज़िला प्रशासन के साथ निरंतर सतर्कता के माध्यम से हॉटस्पॉट की पहचान करने हेतु समन्वय करना चाहिये।
ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016
- पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2016 को अधिसूचित किया गया था।
- इस नियम से पहले ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हैंडलिंग) नियम, 2011 लागू था।
- इस नियम के दायरे में कुल 21 प्रकार के उत्पाद (अनुसूची-1) शामिल किये गए हैं। इसमें अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अलावा कॉम्पैक्ट फ्लोरोसेंट लैंप (CFL) और मरकरी पारा युक्त लैंप शामिल हैं।
- इस अधिनियम के तहत पहली बार इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माताओं को विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (EPR) के दायरे में लाया गया। उत्पादकों को ई-कचरे के संग्रहण तथा आदान-प्रदान के लिये उत्तरदायी बनाया गया है।
- डिपॉज़िट रिफंड स्कीम को एक अतिरिक्त आर्थिक साधन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिसमें निर्माता इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बिक्री के समय जमा राशि के रूप में एक अतिरिक्त राशि वसूलता है और उपभोक्ता को यह राशि उपकरण लौटाने पर ब्याज समेत लौटा दी जाती है।
- निराकरण और पुनर्चक्रण कार्यों में शामिल श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास सुनिश्चित करने का कार्य राज्य सरकारों को सौंपा गया है।
- नियमों के उल्लंघन की स्थिति में दंड का प्रावधान भी सुनिश्चित किया गया है।
- ई-कचरे के निराकरण और पुनर्चक्रण के लिये मौजूदा और आगामी औद्योगिक इकाइयों को उचित स्थान के आवंटन की भी व्यवस्था की गई है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
नियामक अनुपालन पोर्टल: DPIIT
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उद्योग संवर्द्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (DPIIT) ने एक नियामक अनुपालन पोर्टल शुरू किया है जो नागरिकों, उद्योगों और सरकार के दवाब को कम करने के लिये एक सेतु का काम करेगा।
- DPIIT वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत आता है। यह नागरिकों और व्यवसायों से संबंधित विनियामकों पर अनुपालन बोझ को कम करने के लिये नोडल विभाग के रूप में कार्य कर रहा है क्योंकि अनुपालन संबंधी दवाब समय और लागत पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
प्रमुख बिंदु:
- उद्देश्य:
- अनुपालन बोझ को कम करना, ऑनलाइन या ऑफलाइन माध्यम से नागरिक-सरकार संबंधों को मज़बूती प्रदान करना और पुरानी एवं अप्रचलित प्रक्रियाओं को हटाना।
- विनिर्माण को बढ़ावा देने और भारतीय उद्योग को प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये गुणवत्ता और विनिर्माण दो प्रमुख लागतजन्य मुद्दे हैं लेकिन अनुपालन बोझ भी एक प्रमुख लागतजन्य मुद्दा है।
- पोर्टल के संबंध में:
- सभी केंद्रीय मंत्रालय/विभाग और राज्य/केंद्रशासित प्रदेश अपने कानूनों/विनियमों/नियमों की जाँच करेंगे और सभी प्रक्रियाओं को युक्तिसंगत और सरल बनाने, बोझिल अनुपालन को हटाने, कानूनों को कम करने और निरर्थक अधिनियमों को हटाने के लिये एक कार्य योजना को लागू करेंगे। इन विवरणों की विनियामक अनुपालन पोर्टल पर निगरानी की जाएगी।
- यह सभी केंद्रीय और राज्य-स्तर की अनुपालन संबंधी प्रक्रियाओं के लिये इस प्रकार के पहले केंद्रीय ऑनलाइन भंडार के रूप में कार्य करेगा।
- CII, FICCI और ASSOCHAM जैसे व्यापार निकायों से संबंधित उद्योग हितधारक नियामक अनुपालन बोझ को कम करने के लिये सिफारिशें भी प्रस्तुत करेंगे।
- प्रत्येक मंत्रालय/विभाग और राज्य/केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा की गई कार्रवाई की अनुकूलित रिपोर्ट निगरानी और मूल्यांकन के लिये भी प्रस्तुत की जाएगी।
- व्यवसाय सुधार कार्य योजना (BRAP) के तहत राज्यों की रैंकिंग वर्ष 2015 में शुरू की गई थी। BRAP, 2019 में 19 राज्यों के विभागों द्वारा लागू किये जाने वाले 80 सुधारों (187 सुधार कार्रवाई बिंदुओं) की एक सूची थी। इन सुधारों में 12 व्यावसायिक विनियामक क्षेत्र शामिल हैं जैसे- एक्सेस टू इंफॉर्मेशन, सिंगल विंडो सिस्टम, श्रम, पर्यावरण आदि।
- औद्योगिक गलियारों के विकास में तेज़ गति से वृद्धि का उद्देश्य विश्व स्तर पर सतत् बुनियादी ढाँचे द्वारा संचालित एक नियोजित और संसाधन-कुशल औद्योगिक आधार विकसित करने हेतु सुविधा प्रदान करना है जो नवाचार, विनिर्माण, रोज़गार सृजन और राष्ट्र को संसाधन सुरक्षा के मामले में महत्वपूर्ण लाभ प्रदान करती हो।
- ‘इन्वेस्ट इंडिया’ भारत की राष्ट्रीय निवेश प्रोत्साहन और सुविधा एजेंसी है। यह निवेशकों के लिये कारोबारी माहौल को आसान बनाकर देश के निवेश माहौल को बदल रही है।
- मेक इन इंडिया पहल को वर्ष 2014 में लॉन्च किया गया था, जिसमें निवेश की सुविधा, नवाचार को बढ़ावा देने, उच्च स्तरीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण करने, व्यवसाय को आसान बनाने और कौशल विकास को बढ़ाने के उद्देश्य से 25 क्षेत्रों के लिये कार्य योजना बनाई गई थी।
महत्त्व:
- वर्ष 2014 में वर्ल्ड बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट में भारत का स्थान 142वें से वर्ष 2019 में 63वाँ हो गया है।
- ये सभी नवाचार आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य प्राप्त करने में सहायक होंगे और उद्योगों के लिये व्यवसाय को सुविधाजनक बनाएंगे।
स्रोत- PIB
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली
चर्चा में क्यों?
‘एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल रक्षा प्रणाली’ के प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने के लिये भारतीय सैन्य विशेषज्ञों का पहला समूह जल्द ही मास्को (रूस) जाएगा।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के तहत प्रतिबंधों के खतरे के बावजूद अक्तूबर 2018 में भारत ने रूस के साथ ‘एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली’ के लिये 5.43 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
एस-400 ट्रायम्फ मिसाइल प्रणाली:
- एस-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा डिज़ाइन की गई एक गतिशील (Mobile) और सतह से हवा में मार करने वाली (Surface-to-Air Missile System- SAM) मिसाइल प्रणाली है। यह विश्व में लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने में सक्षम (Modern Long-Range SAM- MLR SAM) परिचालन के लिये तैनात सबसे खतरनाक आधुनिक मिसाइल प्रणाली है, जिसे अमेरिका द्वारा विकसित ‘टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस सिस्टम’ (THAAD) से भी बेहतर माना जाता है। I
- यह प्रणाली 30 किमी. तक की ऊँचाई पर 400 किमी. की सीमा के भीतर विमान, मानव रहित हवाई वाहन (UAV) और बैलिस्टिक तथा क्रूज मिसाइलों सहित सभी प्रकार के हवाई लक्ष्यों को भेद सकती है।
- यह प्रणाली एक साथ 100 हवाई लक्ष्यों को ट्रैक कर सकती है और उनमें से छह को एक साथ लक्षित कर सकती है।
भारत के लिये महत्त्व:
- चीन भी इस प्रणाली को खरीद रहा है, चीन ने इस प्रणाली की छह यूनिट की खरीद के लिये वर्ष 2015 में रूस के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, इसकी डिलीवरी जनवरी 2018 में शुरू हुई थी।
- चीन द्वारा एस-400 प्रणाली का अधिग्रहण किया जाना इस क्षेत्र में एक ‘गेम-चेंजर’ के रूप में देखा जा रहा है। हालाँकि भारत के खिलाफ इसकी प्रभावशीलता बहुत ही सीमित है।
- भारत के लिये F-35 जैसे उन्नत कोटि के लड़ाकू विमानों का मुकाबला करने सहित दो मोर्चों (चीन और पाकिस्तान के संदर्भ में) पर युद्ध की चुनौतियों से निपटने हेतु इस प्रणाली को प्राप्त करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।
भारत-रूस रक्षा सहयोग:
महत्त्वपूर्ण स्तंभ:
- रक्षा सहयोग, भारत-रूस रणनीतिक साझेदारी का एक महत्त्वपूर्ण स्तंभ है।
नियमित बैठकें:
- भारत और रूस के रक्षा मंत्री दोनों देशों के बीच सक्रिय परियोजनाओं की समीक्षा करने तथा अन्य सैन्य तकनीकी सहयोग के मुद्दों पर चर्चा के लिये वार्षिक रूप से बारी-बारी रूस तथा भारत में बैठक करते हैं।
- वर्ष 2008 में केंद्रीय रक्षा मंत्रालय (भारत) के रक्षा सचिव और रूस के 'सैन्य तकनीकी सहयोग हेतु संघीय सेवा निदेशक' (FSMTC) की सह-अध्यक्षता में ‘उच्च स्तरीय निगरानी समिति’ (HLMC) की स्थापना की गई थी।
संबंधों में गिरावट:
- शीत युद्ध के बाद के समय में भारत और रूस के आर्थिक संबंधों में गिरावट देखने को मिली और हाल के वर्षों में अमेरिका, भारत के लिये शीर्ष हथियार आपूर्तिकर्त्ता के रूप में उभरा जिसने रूस को हथियार आपूर्तिकर्त्ता के रूप में दूसरे स्थान (2011-13 के आँकड़ों के आधार पर) पर धकेल दिया।
वर्तमान स्थिति:
- वर्ष 2013-14 में रक्षा खरीद में आई गिरावट में सुधार कर लिया गया है और CAATSA के तहत प्रतिबंधों के भय के बावजूद ‘एस-400 हवाई रक्षा मिसाइल प्रणाली’ जैसे महत्त्वपूर्ण सौदे की शुरुआत की गई।
- हाल के वर्षों में भारत द्वारा इज़राइल, अमेरिका और फ्राँस के साथ अनुबंधों के माध्यम से अपनी रक्षा आपूर्ति को विकेंद्रीकृत करने का प्रयास किया जा रहा है, परंतु रूस अभी भी एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता बना हुआ है। इसे दोनों देशों के बीच हुए हालिया घटनाक्रमों के आधार पर समझा जा सकता है:
- भारत ने रूस से 2.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत वाले मिग 29 और सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमानों के अधिग्रहण के प्रस्तावों को मंज़ूरी दी है।
- दोनों पक्ष सफलतापूर्वक AK-203 राइफल और 200 केए-226टी (Ka-226T) यूटिलिटी हेलीकॉप्टरों की आपूर्ति से जुड़े अनुबंध के कार्यान्वयन की ओर बढ़ रहे हैं।
- स्टिम्सन सेंटर द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वर्तमान में भारतीय सैन्य सेवा में 86% उपकरण, हथियार और प्लेटफॉर्म रूसी मूल के हैं।
आयात से लेकर संयुक्त उत्पादन तक:
- समय के साथ दोनों देशों के बीच सैन्य तकनीकी क्षेत्र का सहयोग विशुद्ध रूप से खरीदार-विक्रेता संबंध से आगे बढ़ते हुए उन्नत कोटि के सैन्य प्लेटफाॅर्मों के संयुक्त अनुसंधान, डिज़ाइन, विकास और उत्पादन के रूप में विकसित हुआ है।
- ब्रह्मोस क्रूज़ मिसाइल का उत्पादन इसी प्रकार के सहयोग का एक उदाहरण है।
साझा सैन्य अभ्यास:
- युद्धाभ्यास इंद्र, भारत और रूस की सेनाओं के बीच आयोजित किया जाने वाला एक संयुक्त त्रि-सेवा अभ्यास है।
भारत में रूसी मूल के सैन्य उपकरणों की तैनाती:
- नौसेना:
- भारतीय नौसेना का एकमात्र सक्रिय विमान वाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य रूस से लिया गया है। परमाणु सक्षम पनडुब्बी चक्र-II भी रूस से ली गई है।
- थल सेना:
- भारतीय सेना के टी-90 और टी-72 मुख्य युद्धक टैंक रूसी मूल के हैं।
- वायु सेना:
- भारतीय वायु सेना का सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान भी रूस से खरीदा गया है।
स्रोत- द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
भारत नवाचार सूचकांक 2020: नीति आयोग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नीति आयोग द्वारा भारत नवाचार सूचकांक रिपोर्ट, 2020 जारी की गई, इसमें कर्नाटक ने प्रमुख राज्यों की श्रेणी में अपना शीर्ष स्थान बरकरार रखा।
भारत नवाचार सूचकांक
जारीकर्त्ता संस्थान
- यह सूचकांक नीति (National Institution for Transforming India) आयोग द्वारा ‘इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिटिवनेस’ (The Institute for Competitiveness) के सहयोग से जारी किया जाता है।
वैश्विक नवाचार सूचकांक पर आधारित:
- इस सूचकांक को भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के नवोन्मेषी पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार करने और इन क्षेत्रों में नवाचार से संबंधित नीतियाँ तैयार करने के लिये वैश्विक नवाचार सूचकांक की तर्ज पर विकसित किया गया है।
दृष्टिकोण:
- इस सूचकांक को पारंपरिक दृष्टिकोण के इतर ‘प्रति मिलियन आबादी पर पेटेंट’, ‘वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशन’, ‘अनुसंधान पर जीडीपी खर्च का प्रतिशत’ जैसे नवोन्मेष सर्वोत्तम मापदंडों पर विचार करके जारी किया जाता है।
- यह भारतीय अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से कवरेज करने के लिये विशिष्ट संकेतकों का उपयोग करता है (उदाहरण- जनसांख्यिकी लाभांश)।
प्रयुक्त संकेतक:
- इस सर्वेक्षण में उपयोग किये जाने वाले संकेतकों में विभिन्न मापदंडों पर शिक्षा का स्तर और गुणवत्ता शामिल है।
- पीएचडी छात्रों की संख्या और ज्ञान-गहन रोज़गार।
- इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में नामांकन तथा अत्यधिक कुशल पेशेवरों की संख्या।
- अनुसंधान एवं विकास में निवेश, पेटेंट और ट्रेडमार्क के लिये किये गए आवेदनों की संख्या।
- इंटरनेट उपयोगकर्त्ता।
- FDI अंतर्वाह, कारोबारी माहौल, सुरक्षा और कानूनी वातावरण।
प्रमुख बिंदु:
श्रेणियाँ: नवाचार सूचकांक को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है- प्रमुख राज्य, केंद्रशासित प्रदेश और पहाड़ी एवं उत्तर-पूर्व के राज्य।
प्रमुख राज्य:
- शीर्ष राज्य: इस श्रेणी में कर्नाटक 42.5 के स्कोर के साथ शीर्ष पर रहा।
- राज्य की सफलता का श्रेय उच्च उद्यम पूंजी सौदों, पंजीकृत भौगोलिक संकेतक, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी निर्यात और उच्च FDI प्रवाह को दिया गया है।
- महाराष्ट्र के दूसरे स्थान पर होने के अलावा चार दक्षिणी राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और केरल सूचकांक में शीर्ष स्थान पर हैं।
- निम्न राज्य: झारखंड, छत्तीसगढ़ और बिहार का स्कोर सूचकांक में सबसे कम है, जिससे उन्हें ‘प्रमुख राज्यों’ की श्रेणी में सबसे नीचे रखा गया है।
- बिहार 14.5 अंकों के साथ अंतिम स्थान पर रहा।
पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्य:
- पहाड़ी और पूर्वोत्तर राज्यों की रैंकिंग में हिमाचल प्रदेश सबसे ऊपर है, इसके बाद उत्तराखंड, मणिपुर और सिक्किम हैं।
केंद्रशासित प्रदेश/छोटे राज्य:
- दिल्ली ने 46.6 के स्कोर के साथ देश में सबसे अधिक अंक प्राप्त किये हैं, जबकि लक्षद्वीप का स्कोर सबसे कम 11.7 है।
- दिल्ली ने पिछले वित्तीय वर्ष में नए स्टार्ट-अप और कंपनियों की स्थापना के साथ सबसे अधिक ट्रेडमार्क और पेटेंट आवेदन दर्ज किये हैं।
चुनौतियाँ:
- अनुसंधान में निजी निवेश को आकर्षित करना: भारत सरकार अनुसंधान एवं विकास के लिये एक प्रमुख ऋणदाता की भूमिका निभाती है, जबकि निजी क्षेत्र का निवेश इज़राइल की तुलना में बहुत कम है, जहाँ अनुसंधान एवं विकास में निजी कंपनियों द्वारा किये गए निवेश का हिस्सा 70% है।
- उत्तर-दक्षिण विभाजन को संतुलित करना: रिपोर्ट के निष्कर्ष में दक्षिणी राज्यों ने उत्तर भारतीय राज्यों की तुलना में बहुत बेहतर प्रदर्शन किया है।
- नवाचार में क्षेत्रीय असमानता को कम करने के लिये राज्यों की अभिनव क्षमताओं (प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के अंतर के साथ) को स्थापित करने की आवश्यकता है।
- शीर्ष राज्यों द्वारा किये गए नवाचारों को प्रोत्साहित करने के लिये इन्हें प्रलेखित और प्रसारित किया जाना चाहिये।
- राज्य स्तरीय नीतियों के सूक्ष्म विश्लेषण की आवश्यकता: भारत जैसे बड़े देश को प्रभावी नीति निर्माण हेतु नवाचार की स्थिति को क्षेत्रीय स्तर पर समझने की आवश्यकता है।
- सूचकांक के आधार पर प्रत्येक राज्य को अपने विशिष्ट संसाधनों और शक्तियों के आधार पर अपनी स्वयं की नीति तैयार करने की आवश्यकता होती है, जो उसकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करती है।
सुझाव:
- अनुसंधान में अधिक निवेश करना: भारत को अनुसंधान एवं विकास पर निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है जो कि सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 0.6-0.7% है। यह इज़राइल (4.3%), दक्षिण कोरिया (4.2%), अमेरिका (2.8%) और चीन (2.1%) जैसे देशों के स्तर से काफी कम है।
- उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के बीच अधिक सहयोग से तथा अनुसंधान और विकास पर निवेश में वृद्धि से नवाचार क्षमता बढ़ाने में मदद मिल सकती है।
- यह देश में शीर्ष अनुसंधान संस्थानों की क्षमता को व्यापक और बेहतर बना सकता है जिससे अधिक-से-अधिक नवाचार क्षमताओं का सृजन किया जा सके।
- एक सहयोगी प्लेटफॉर्म की स्थापना: नवाचार के सभी हितधारकों को उद्योग से जोड़ने के लिये नवप्रवर्तकों, शोधकर्त्ताओं और निवेशकों हेतु एक सामान्य मंच विकसित किया जाना चाहिये।
- यह उद्योग-अकादमिक संपर्क को मज़बूती प्रदान करने में सहायता करेगा और अपने आविष्कारों को प्रदर्शित करने के लिये नवप्रवर्तकों को एक मंच प्रदान कर प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की प्रक्रिया को आसान बनाएगा।
स्रोत-इंडियन एक्सप्रेस
शासन व्यवस्था
KIIFB ऋण मुद्दा
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने कहा है कि महत्त्वपूर्ण बुनियादी परियोजनाओं के लिये केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) द्वारा लिये गए ऑफ-बजट ऋण ने संविधान के अनुच्छेद 293 (1) के तहत सरकारी ऋण की निर्धारित सीमा को दरकिनार कर दिया है और ऐसे ऋणों के लिये विधायी स्वीकृति नहीं दी गई है।
- ऑफ-बजट ऋण एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं को निश्चित समयावधि के लिये आंशिक रूप से ऋण देती है।
संविधान के तहत ऋण हेतु प्रावधान:
- केंद्र और राज्यों द्वारा ऋण लेना: भारत के संविधान के भाग XII में अध्याय II ऋण से संबंधित है। अनुच्छेद 292 में केंद्र सरकार और अनुच्छेद 293 में राज्यों द्वारा ऋण लिये जाने संबंधी प्रावधान हैं।
- राज्य विधानसभाओं को सशक्त बनाना: अनुच्छेद 293 (1) राज्य विधानमंडलों को राज्य की कार्यकारी शक्तियों को ऋण लेने और गारंटी देने में सक्षम बनाने या उनकी शक्ति को सीमित करने के लिये कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
- केंद्र की सहमति: अनुच्छेद 293 की धारा (3) और (4) के तहत ऐसे मामलों में जहाँ राज्य सरकारों द्वारा केंद्र से लिये गए ऋण बकाया का भुगतान किया जाना हो, उस स्थिति में नए ऋण प्राप्त करने के लिये केंद्र की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है और ऐसी सहमति शर्तों के अधीन दी जा सकती है।
प्रमुख बिंदु:
मुद्दे:
- संवैधानिक सीमा को दरकिनार किया: CAG के अनुसार, KIIFB ने संविधान के अनुच्छेद 293 के तहत सरकारी ऋण पर निर्धारित सीमा को दरकिनार कर दिया है क्योंकि इन ऋणों को विधायी स्वीकृति नहीं प्राप्त थी।
- केंद्र की शक्तियों का अतिक्रमण: CAG ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रविष्टि 37 के तहत केवल केंद्र को विदेशी ऋण लेने की शक्ति प्राप्त है। इस प्रकार KIIFB द्वारा लिया गया ऋण संविधान के उल्लंघन और केंद्र की शक्तियों का अतिक्रमण है।
- पारदर्शिता का अभाव: KIIFB द्वारा लिये गए ऋण को बजट दस्तावेज़ों या खातों में नहीं दर्शाया गया है।
- यह पारदर्शिता को लेकर संदेह पैदा करता है और ऋण की इंटर-जेनेरिक इक्विटी के कारण राज्य को ओपन मार्केट डेब्ट सहित सभी वित्तीय विवरणों को केंद्र के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है, जिसमें सभी स्रोतों से प्राप्त रसीदें तथा भुगतान विवरण दिखाया जाता है।
- बोझिल राज्य वित्त: KIIFB ने बॉण्ड जारी करके यह ऋण जुटाया जिसे पेट्रोलियम उपकर और मोटर वाहन कर के माध्यम से चुकाया जाना था।
- CAG ने बताया कि चूँकि KIIFB के पास आय का कोई स्रोत नहीं है, इसलिये KIIFB द्वारा लिया गया ऋण (जिसके लिये राज्य गारंटर के रूप में था), अंततः राज्य सरकार के लिये प्रत्यक्ष दायित्व बन सकता है।
- बाहरी देयताओं के समायोजन का जोखिम: राज्य को मसाला बाॅड जारी करने हेतु मंज़ूरी देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की आलोचना की गई थी। CAG ने चिंता जताई है कि यदि इस प्रकार की प्रक्रिया को किसी अन्य राज्य द्वारा दोहराया गया, तो केंद्र की जानकारी के बिना देश की बाहरी देनदारियों में वृद्धि हो सकती है।
- निवेश में वृद्धि: केरल सरकार द्वारा बाॅण्ड जारी किये जाने से राज्य में बहुराष्ट्रीय निगमों के माध्यम से निवेश में वृद्धि हुई, जिसे परंपरागत रूप से अपनी गैर-मैत्रीपूर्ण व्यावसायिक नीतियों, नौकरशाही की वजह से देरी और आवर्तक औद्योगिक हड़तालों के लिये जाना जाता है।
केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB):
- स्थापना: KIIFB की स्थापना ‘केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड’ का प्रबंधन करने हेतु वर्ष 1999 में केरल सरकार के वित्त विभाग के तहत हुई थी।
- उद्देश्य: इस फंड का मुख्य उद्देश्य केरल राज्य में महत्त्वपूर्ण और बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु निवेश प्रदान करना है।
- विशेषताएँ:
- KIIFB भारत में पहली उप-संप्रभु इकाई थी जो अपतटीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीय बॉण्ड बाज़ार का दोहन करती थी।
- वर्ष 2019 में KIIFB ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में अपना ₹ 2,150 करोड़ का मसाला बॉण्ड जारी किया। मसाला बॉण्ड भारत के बाहर जारी किया जाने वाला बॉण्ड है, लेकिन स्थानीय मुद्रा की बजाय इसे भारतीय मुद्रा में निर्दिष्ट किया जाता है।
भूमिका में बदलाव: वर्ष 2016 में KIIFB की भूमिका बजट से परे विकास संबंधी परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने हेतु निवेश बाॅण्ड के संचालक से बदलकर एक इकाई के रूप में कर दी गई थी।
केरल सरकार की चिंताएँ:
- राज्य के विकास के लिये हानिकारक: केरल सरकार के अनुसार, KIIFB से प्राप्त धन का उपयोग स्कूलों, सड़कों, अस्पतालों आदि जैसे सार्वजनिक अवसंरचना के निर्माण के लिये किया जा रहा है और CAG के इस तरह के कदम से राज्य के हितों को चोट पहुँच सकती है।
- एकपक्षीयता: केरल सरकार ने CAG द्वारा रिपोर्ट प्रकाशित किये जाने से पहले राज्य को टिप्पणी, अवलोकन या स्पष्टीकरण की पेशकश करने का अवसर नहीं देने पर चिंता जताई है।
- RBI द्वारा पहले से ही स्वीकृत: केरल सरकार ने इस तथ्य को भी उजागर किया कि KIIFB बॉण्ड RBI की मंज़ूरी के बाद ही जारी किये गए थे जो कि भारत सरकार के अधीन एक केंद्रीय निकाय है, तो फिर ऐसे ऋण असंवैधानिक कैसे हो सकते हैं।
- RBI की भूमिका:
- RBI, बाॅण्ड और डिबेंचर के मुद्दे तथा उनके प्रबंधन के लिये केंद्र एवं राज्य सरकारों के एजेंट के रूप में कार्य करने हेतु अधिकृत है।
- RBI का आंतरिक ऋण प्रबंधन विभाग विभिन्न फंडों के तहत दिनांकित प्रतिभूतियों में राज्य सरकारों के अधिशेष नकद वित्त के निवेश की सुविधा के लिये राज्य सरकार को ऋण जारी करने की शक्ति रखता है।
- यह केंद्र और राज्यों के लिये 'वेज एंड मीन्स एडवांस' (Ways and Means Advances- WMAs) का निर्माण करने तथा इसके लिये सीमाएँ तय करने हेतु भी अधिकृत है।
- संघवाद को कमज़ोर करना: वित्तीय स्वायत्तता के विकेंद्रीकरण के लिये राज्य उप-ऋण के विनियमन हेतु एक तंत्र प्रदान करना आवश्यक है।
- यह राज्यों की व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ा सकता है। इसलिये अनुच्छेद 293 द्वारा केंद्र को प्रदत्त शक्ति का प्रयोग परिस्थितियों तक सीमित होना चाहिये।
आगे की राह:
- उप-राष्ट्रीय राजकोषीय नीति की समीक्षा: चूँकि हाल के राजकोषीय झटकों जैसे-विमुद्रीकरण, जीएसटी और COVID-19 संकट के कारण राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है, इसलिये भारत की उप-राष्ट्रीय राजकोषीय नीति की समीक्षा की जानी चाहिये ताकि राज्यों को ऋण लेने में सक्षम बनाया जा सके। यह उन्हें वित्तीय स्वायत्तता का लाभ उठाने के अधिक अवसर प्रदान करेगा।
- राज्य के राजकोषीय उत्तरदायित्व कानूनों को मान्य करना: यहाँ तक कि मैथ्यू बनाम भारत सरकार मामले में केरल उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद 293 राज्य को ऋण लेने में सक्षम बनाता है और यह राज्यों को अपने स्वयं के राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून (FRLs) को पारित करने का अधिकार देता है।
- सहकारी संघवाद: CAG द्वारा उठाई गई KIIFB की विधायी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है, इसके लिये केंद्र तथा केरल सरकार को जनहित में उपचारात्मक उपाय अपनाने चाहिये
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
जैव चिकित्सा अपशिष्ट
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) द्वारा देश में विभिन्न अधिकरणों/प्राधिकरणों को जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन सुविधाओं का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु निर्देश दिया गया है।
प्रमुख बिंदु:
- केंद्रीय स्तर पर: केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) को जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का सख्ती से अनुपालन और अपशिष्टों का वैज्ञानिक तरीके से निपटान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है।
- राज्य स्तर पर: सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को अनुपालन की निगरानी करनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि प्राधिकरण द्वारा अपने क्षेत्राधिकार में प्रत्येक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा को संरक्षित किया गया है और मानदंडों का पालन भी किया जा रहा है।
- ज़िला स्तर पर: ज़िला मजिस्ट्रेट को ज़िला पर्यावरण योजनाओं में सामजस्य/तालमेल स्थापित करने के लिये निर्देशित किया गया है।
- भूजल संदूषण: जैव चिकित्सा अपशिष्ट को ज़मीन की गहराई में गाड़ने की अनुमति देते समय यह सुनिश्चित किया जाए कि इससे भूजल संदूषित नहीं होना चाहिये।
- पृथक्करण: यह सुनिश्चित किया जाए कि खतरनाक जैव चिकित्सा अपशिष्ट सामान्य कचरे के साथ मिश्रित न हों।
- नियमों का बार-बार उल्लंघन: ये निर्देश विभिन्न स्वास्थ्य तथा जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार पर नियमित जुर्माना लगाए जाने के परिणामस्वरूप आए हैं।
- पूर्व अवलोकन: भविष्य में सामान्य कचरे स कोविड-19 जैव चिकित्सा अपशिष्ट का पृथक्करण सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने से बचाने के लिये आवश्यक है।
जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016
- परिभाषा: जैव चिकित्सा अपशिष्ट को मानव और पशुओं के उपचार के दौरान उत्पन्न शारीरिक अपशिष्ट जैसे- सुई, सिरिंज तथा स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में उपयोग की जाने वाली अन्य सामग्रियों के रूप में परिभाषित किया जाता है।
- उद्देश्य: इन नियमों का मुख्य उद्देश्य संपूर्ण देश में प्रतिदिन स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (Healthcare Facilities- HCFs) से उत्पन्न जैव चिकित्सा अपशिष्ट का उचित प्रबंधन करना है।
- विस्तार: टीकाकरण शिविर, रक्तदान शिविर, शल्य चिकित्सा शिविर या किसी अन्य स्वास्थ्य सेवा गतिविधि को शामिल करने के उद्देश्य से नियमों को विस्तारित किया गया है।
- चरणबद्ध तरीके से हटाना: मार्च 2016 से दो वर्षों के भीतर क्लोरीनयुक्त प्लास्टिक की थैलियों, दस्ताने और रक्त की थैलियों को चरणबद्ध तरीके से हटा लिया गया है।
- पूर्व-उपचार: इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) या राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (National AIDS Control Organisation- NACO) द्वारा निर्धारित कीटाणुशोधन प्रक्रिया के माध्यम से प्रयोगशाला अपशिष्ट, सूक्ष्म जीवाणु अपशिष्ट, रक्त के नमूने और रक्त की थैलियों को पूर्व-उपचारित किया जाना शामिल है।
- वर्गीकरण: कचरे के पृथक्करण में सुधार के लिये जैव चिकित्सा अपशिष्ट को पूर्व वर्गीकृत 10 श्रेणियों के अलावा 4 अन्य श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है।
- प्रदूषकों के लिये कठोर मानक: पर्यावरण में प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से नियमों को लागू करने हेतु अधिक कड़े मानकों को निर्धारित किया गया है।
- राज्य सरकार की भूमिका: राज्य सरकार सामान्य जैव चिकित्सा अपशिष्ट उपचार और निपटान सुविधा स्थापित करने के लिये भूमि प्रदान करती है।
चिंताएँ:
- महामारी: महामारी के दौरान उत्पन्न जैव चिकित्सा अपशिष्ट के वैज्ञानिक तरीके से निपटान और संग्रहण ने अधिकारियों के समक्ष चुनौती पेश की है।
- अनुपालन की कमी: राज्य द्वारा कोविड-19 से संबंधित कचरे का निपटारा करते हुए CPCB द्वार जारी दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
- कुछ राज्यों में कोविड-19 उपचार और क्वारंटाइन के दौरान घरों में उत्पन्न कचरे को अनुचित रूप से अलग करने की सूचना दी गई है।
- गैर-पृथक्करण: अपशिष्टों का सही से पृथक्करण न होने के कारण प्लास्टिक अपशिष्ट के दहन से उत्पन्न ज़हरीली गैस हवा के साथ मिलकर वायु प्रदूषण उत्पन्न करती है।
- अपशिष्ट में वृद्धि: घरों से निकलने वाले जैव चिकित्सा अपशिष्ट में वृद्धि और सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन किये बिना इसका संग्रह कैसलोएड ((मरीज़ों की संख्या में वृद्धि के कारण डॉक्टर्स, नर्सों आदि के कार्यों में हुई वृद्धि) को बढ़ा सकता है।
- संबद्ध श्रमिकों का स्वास्थ्य: इस प्रकार उत्पन्न कचरे का उचित वैज्ञानिक प्रबंधन न करना संभावित रोगियों को प्रभावित कर सकता है और साथ ही यह संबंधित श्रमिकों और पेशेवरों को प्रभावित कर सकता है।
- ऐसे मास्क और दस्ताने जिनका उपयोग खतरनाक सामग्री की देख-रेख में बिना किसी सुरक्षित उपायों के किया जाता है, हज़ारों स्वच्छता कर्मियों के जीवन को जोखिम में डालता है ।
सुझाव:
- समुचित पृथक्करण: कोविड -19 रोगियों द्वारा उपयोग किये जाने से बचे भोजन, डिस्पोज़ेबल प्लेट, चश्मे, प्रयुक्त मास्क, ऊतक आदि को पीले रंग के बैग में, जबकि उपयोग किये गए दस्तानों को लाल रंग के बैग में रखकर CBWTFs में कीटाणुशोधन एवं पुनर्चक्रण हेतु भेज देना चाहिये।
- जहांँ कचरे का दहन नहीं किया जा सकता है, वहांँ पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिये उचित सावधानी बरतने वाले प्रोटोकॉल के अनुसार गहरी दफन प्रणालियों (Deep Burial Systems ) को ठीक से अपनाए जाने की आवश्यकता है। इस प्रणाली में जैव चिकित्सा अपशिष्ट को 2 मीटर गहरी खाई में दफनाने और उसे चूने और मिट्टी की एक परत से कवर करना शामिल है।
- जागरूकता अभियान: जैव चिकित्सा अपशिष्ट के सही निपटान के बारे में लोगों के बीच जागरूकता उत्पन्न करने के लिये दूरदर्शन, ऑल इंडिया रेडियो और अन्य मीडिया प्लेटफाॅर्मों पर एक उपयुक्त कार्यक्रम आयोजित किया जाना चाहिये।
- आधारभूत संरचना विकसित करना: सरकार को सार्वजनिक-निजी भागीदारी (Public-Private Partnership-PPP) मॉडल के तहत देश भर में रीसाइक्लिंग प्लांट स्थापित करने चाहिये (जैसा कि स्मार्ट सिटी मिशन के तहत परिकल्पित है)।
- नियमों में सामंजस्य: केंद्र को प्लास्टिक उत्पादकों के लिये विस्तारित निर्माता ज़िम्मेदारी (Extended Producer Responsibility-EPR) को लेकर दिशा-निर्देशों के साथ जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के संयोजन हेतु एक राष्ट्रीय प्रोटोकॉल बनाना चाहिये।
- नवाचार: स्टार्ट-अप और लघु एवं मध्यम उद्यमों द्वारा अपशिष्ट पृथक्करण और उपचार हेतु समाधान की पेशकश के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- निरीक्षण: केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों, राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के स्वास्थ्य विभागों और केंद्रीय स्तर पर गठित उच्च स्तरीय टास्क टीम द्वारा निरंतर और नियमित निगरानी की जानी चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
आधार कानून की समीक्षा याचिका खारिज
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने आधार अधिनियम, 2016 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखने वाले वर्ष 2018 के अपने फैसले की समीक्षा से संबंधित एक याचिका को खारिज कर दिया है।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार प्रणाली को मान्यता देते हुए सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ प्राप्त करने वालों के लिये आधार नामांकन को अनिवार्य कर दिया था।
- न्यायालय ने अपने निर्णय में संसद द्वारा आधार कानून को धन विधेयक के रूप में पारित करने की मंज़ूरी दे दी थी। ज्ञात हो कि धन विधेयक को राज्यसभा की मंज़ूरी की आवश्यकता नहीं होती है।
- इसके पश्चात् निर्णय के विरुद्ध समीक्षा याचिका दायर की गई थी।
संबंधित मुद्दे
- इस मामले में प्राथमिक प्रश्न यह है क्या कि किसी विधेयक को अनुच्छेद 110 (1) के तहत धन विधेयक के रूप में प्रमाणित करने का लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी है अथवा न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
- यदि यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है, तो इस बात की समीक्षा की जाएगी कि क्या आधार अधिनियम, 2016 को धन विधेयक के रूप में सही ढंग से प्रमाणित किया गया है।
न्यायालय का निर्णय
- बहुमत का निर्णय
- इस मामले की सुनवाई कर रही खंडपीठ के अधिकांश न्यायाधीशों (5 में से 4) ने वर्ष 2018 के निर्णय की समीक्षा से संबंधित याचिका को खारिज करने का समर्थन किया।
- न्यायालय ने माना कि रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड (वर्ष 2019) वाद में न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय वर्ष 2018 के निर्णय पर पुनर्विचार के लिये पर्याप्त आधार नहीं है।
- रोजर मैथ्यू बनाम साउथ इंडियन बैंक लिमिटेड
- इस मामले में न्यायालय ने कहा था कि लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय न्यायिक समीक्षा के अधीन है, हालाँकि यह दायरा बेहद सीमित है।
- इस मामले में कहा गया था कि वर्ष 2018 के निर्णय में न्यायालय ने इस प्रश्न का निर्णायक जवाब नहीं दिया था कि अनुच्छेद 110 (1) के तहत धन विधेयक में क्या शामिल होता है, इसलिये इस मामले को एक बड़ी खंडपीठ के पास हस्तांतरित किया जाना चाहिये, जो कि अभी गठित नहीं की गई है।
- मतभेदपूर्ण निर्णय
- पाँच न्यायाधीशों में से एक न्यायाधीश ने बहुमत के दृष्टिकोण पर असहमति जताई और कहा कि आधार के संबंध में न्यायालय द्वारा दिये गए निर्णय पर प्रश्नचिह्न लगाने के संबंध में वर्ष 2019 का निर्णय पूर्णतः प्रासंगिक है और सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक समीक्षा से संबंधित मुद्दों पर निर्णय लेने के लिये जल्द-से-जल्द सात न्यायाधीशों की बड़ी पीठ गठित करनी चाहिये।
- उन्होंने सबरीमाला मामले का भी उल्लेख किया, जहाँ फरवरी 2020 में नौ-न्यायाधीशों वाली खंडपीठ ने समीक्षा याचिका को लंबित रखते हुए सितंबर 2019 में पाँच-न्यायाधीशों द्वारा दिये गए निर्णय के कारण उत्पन्न क़ानूनी प्रश्नों को बड़ी बेंच को संदर्भित किया था।
- अंतिम निर्णय
- यद्यपि पाँच न्यायाधीशों वाली खंडपीठ में से एक सदस्य ने इसे ‘संवैधानिक त्रुटि’ करार दिया, किंतु बहुसंख्यक निर्णय के आधार सर्वोच्च न्यायालय ने आधार अधिनियम को मान्य करने वाले अपने वर्ष 2018 के निर्णय की समीक्षा की मांग करने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।
धन विधेयक
- भारतीय संविधान का अनुच्छेद 110 (1) धन विधेयक से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि किसी विधेयक को धन विधेयक माना जाता है, यदि वह:
- किसी कर का अधिरोपण, उत्सादन, परिहार, परिवर्तन अथवा विनियमन करता हो।
- केंद्र सरकार द्वारा लिये गए ऋण के विनियमन से संबंधित हो।
- भारत की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा या ऐसी किसी निधि में धन जमा करने या उसमें से धन निकालने से संबंधित हो।
- भारत सरकार की संचित निधि या आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा करता हो।
- भारत सरकार की संचित निधि से धन का विनियोग करता हो।
- भारत की संचित निधि पर भारित किसी व्यय की उद्घोषणा या इस प्रकार के किसी व्यय की राशि में वृद्धि करता हो।
- भारत की संचित निधि या लोक लेखा में किसी प्रकार के धन की प्राप्ति या अभिरक्षा या इनसे संबंधित व्यय या इनके केंद्र या राज्य निधियों का लेखा परीक्षण करता हो।
- उपरोक्त विषयों का आनुषंगिक कोई विषय हो।
धन और वित्त विधेयक के बीच अंतर
धन विधेयक |
वित्त विधेयक |
|
वित्त विधेयक-I |
वित्त विधेयक-II |
|
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 110 धन विधेयक से संबंधित है। |
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 117 (1) वित्त विधेयक-I से संबंधित है। |
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 117 (3) वित्त विधेयक-II से संबंधित है। |
यह केवल अनुच्छेद 110 में उल्लिखित प्रावधानों से संबंधित है। |
इसमें न केवल अनुच्छेद 110 में वर्णित सभी मामले शामिल हैं, बल्कि इसमें सामान्य कानून के अन्य मामले भी हैं। |
इसमें भारत की संचित निधि (CFI) से संबंधित व्यय शामिल हैं, जो कि अनुच्छेद 110 के तहत शामिल हैं। |
अध्यक्ष द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है अथवा नहीं। |
अध्यक्ष के प्रमाणन की आवश्यकता नहीं होती है। |
अध्यक्ष के प्रमाणन की आवश्यकता नहीं होती है। |
इन्हें केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। |
इसे केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है। |
इसे दोनों सदनों में पेश किया जा सकता है। |
इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक होती है। |
इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सिफारिश आवश्यक होती है। |
इसे प्रस्तुत करने के लिये राष्ट्रपति की सिफारिश की आवश्यकता नहीं होती है। |
इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित और अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। |
इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित और अस्वीकार किया जा सकता है। |
इसे राष्ट्रपति द्वारा संशोधित और अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। |
राष्ट्रपति धन विधेयक को स्वीकार या अस्वीकार कर सकता है, किंतु पुनर्विचार के लिये वापस नहीं कर सकता है। |
राष्ट्रपति इसे पुनर्विचार के लिये वापस भेज सकता है। |
राष्ट्रपति इसे पुनर्विचार के लिये वापस भेज सकता है। |
गतिरोध के समाधान के लिये दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का कोई प्रावधान नहीं है। |
राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। |
राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
भारत-सिंगापुर रक्षा मंत्रियों की 5वीं वार्ता
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत और सिंगापुर के रक्षा मंत्रियों की 5वीं वार्ता (5th Defence Ministers' Dialogue- DMD) का आयोजन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सफलतापूर्वक किया गया।
प्रमुख बिंदु:
समझौता:
- दोनों नौ सेनाओं के बीच पनडुब्बी बचाव सहायता और सहयोग को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।
संयुक्त स्टैंड:
- द्विपक्षीय सहयोग:
- दोनों देशों ने लाइव फायरिंग (Live Firing) और सैन्य पाठ्यक्रमों की क्रॉस-अटेंडेंस (Cross-Attendance) के लिये पारस्परिक व्यवस्था स्थापित करने हेतु किये गए समझौतों को जल्द-से-जल्द पूरा करने के प्रति अपना पूर्ण समर्थन व्यक्त किया।
- उनके द्वारा अगस्त 2020 में मानवीय सहायता और आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief) सहयोग पर समझौते सहित द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का विस्तार करने वाली पहलों का स्वागत किया गया।
- दोनों देशों की सशस्त्र बलों की साइबर एजेंसियों ने भी संबंधों को मज़बूत करने में सहयोग किया है।
- कोविड-19 का प्रभाव:
- दोनों देशों ने कोविड-19 महामारी का रक्षा और सुरक्षा कार्यों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचारों का आदान-प्रदान किया, जिसमें दोनों देशों के सशस्त्र बलों द्वारा अपनाई गई सर्वोच्च कार्य-प्रणालियाँ भी शामिल थीं।
- रक्षा अभ्यास:
- दोनों देशों द्वारा इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की गई कि भारतीय नौसेना और सिंगापुर नौसेना ने सिंगापुर-भारत समुद्री द्विपक्षीय अभ्यास (SIMBEX) के 27वें संस्करण का सफलता से संचालन किया व सिंगापुर-भारत-थाईलैंड समुद्री अभ्यास (SITMEX) के दूसरे संस्करण में भी हिस्सा लिया; दोनों अभ्यासों का आयोजन नवंबर 2020 में किया गया था।
- ये अभ्यास नौ सेनाओं के बीच पारस्परिकता को बढ़ावा देते हैं और देशों की साझा ज़िम्मेदारी को रेखांकित करते हैं, ताकि समुद्री मार्ग को खुला रखा जा सके।
भारत का रुख:
- भारत ने महामारी की चरम अवस्था के दौरान विदेशी श्रमिकों की मदद के लिये सिंगापुर के सशस्त्र बलों के प्रति आभार व्यक्त किया, जिनमें कई भारतीय नागरिक भी शामिल थे।
- भारत ने क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये आसियान को केंद्र में रखने की पुष्टि की और आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक (ASEAN Defence Minister Meeting)-प्लस के सभी प्रयासों के लिये भारत का समर्थन करने का वादा किया।
सिंगापुर का रुख:
- सिंगापुर ने भौगोलिक और जनसंख्या से संबंधित चुनौतियों के बावजूद कोविड-19 मामलों की समग्र संख्या को कम करने में भारत की सफलता की सराहना की।
- इसने HADR पर ADMM-प्लस विशेषज्ञों के कार्य समूह के लिये भारत की आगामी सह-अध्यक्षता के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया।
नोट:
- सिंगापुर को 'हेनले पासपोर्ट सूचकांक (Henley Passport Index) 2021' में विश्व के सबसे शक्तिशाली पासपोर्ट की सूची में दूसरा स्थान दिया गया है।
- सिंगापुर के नाम पर होने वाली पहली संयुक्त राष्ट्र संधि, अंतर्राष्ट्रीय समाधान समझौतों पर संयुक्त राष्ट्र संधि (United Nations Convention on International Settlement Agreements-UNISA) या मध्यस्थता पर सिंगापुर सम्मेलन (Singapore Convention on Mediation) हाल ही में लागू हुई है।
- हाल ही में यूनेस्को (UNESCO) ने अंतर-सरकारी समिति के 15वें सत्र में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में सिंगापुर की हॉकर संस्कृति (Hawker Culture) को शामिल किया था।
भारत-सिंगापुर संबंध
रक्षा और सुरक्षा सहयोग:
- भारत और सिंगापुर आतंकवाद तथा अतिवाद से उत्पन्न चुनौतियों को समान रूप से साझा करते हैं। इसलिये सुरक्षा सहयोग पर व्यापक ढाँचा विकसित करना पारस्परिक रूप से लाभकारी है।
- सिंगापुर हिंद महासागर नौसेना संगोष्ठी (Indian Ocean Naval Symposium) और भारतीय नौसेना द्वारा आयोजित बहुपक्षीय युद्ध अभ्यास मिलन (MILAN) में भाग लेता है।
- हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (Indian Ocean Rim Association) में सिंगापुर की सदस्यता और ADDM Plus (आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस) में भारत की सदस्यता दोनों देशों को आपसी क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करने हेतु एक मंच प्रदान करती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी सहयोग:
- सिंगापुर के पहले स्वदेश निर्मित सूक्ष्म उपग्रह को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा वर्ष 2011 में लॉन्च किया गया, इसके बाद वर्ष 2014 में 2 तथा वर्ष 2015 में 6 और उपग्रहों को ISRO द्वारा लॉन्च किया गया।
- दोनों देशों ने जून 2018 में स्वास्थ्य सेवा, साइबर सुरक्षा, स्वचालन (Automation), गतिशीलता, स्मार्ट ऊर्जा प्रणाली और ई-गवर्नेंस में सुधार के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, मशीन लर्निंग, संज्ञानात्मक कंप्यूटिंग और बड़े डेटा एनालिटिक्स (Analytics) के क्षेत्र में छह समझौता ज्ञापनों (MoU) पर हस्ताक्षर किये।
व्यापार और आर्थिक सहयोग:
- सिंगापुर आसियान देशों में भारत का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
- भारत में सिंगापुर का कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) $73.3 बिलियन (जून 2018 तक) था, जो कुल विदेशी निवेश का 19% था।
- भारत द्वारा सिंगापुर में किया जाने वाला कुल निवेश 62.9 बिलियन डॉलर (अगस्त 2018 तक) था, इस तरह से भारतीय निवेश के लिये सिंगापुर शीर्ष स्थलों में से एक बन गया है।
- भारतीय उच्चायोग ने वर्ष 2018 में एक स्टार्टअप एंगेजमेंट प्लेटफॉर्म, इंडिया-सिंगापुर एंटरप्रेन्योरशिप ब्रिज (InSperiaur) भी लॉन्च किया।
इन्फ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी:
- कनेक्टिविटी: सिंगापुर 8 एयरलाइंस के माध्यम से 18 भारतीय शहरों से सीधे जुड़ा हुआ है, भारत और सिंगापुर की एयरलाइंस द्वारा लगभग 616 साप्ताहिक उड़ानों का संचालन किया जाता है।
- स्मार्ट सिटी: सिंगापुर की कंपनियों के एक सहायता संघ (Consortium) द्वारा आंध्र प्रदेश की नई राजधानी अमरावती को विकसित किया जा रहा है। इसके अलावा सिंगापुर, उदयपुर और जोधपुर में टाउनशिप के लिये योजना तैयार करने में राजस्थान के साथ, ग्रेटर शिमला को एक एकीकृत टाउनशिप बनाने के लिये हिमाचल प्रदेश के साथ तथा ऑरेंज स्मार्ट सिटी के विकास व पुणे महानगर क्षेत्र की मास्टर प्लानिंग हेतु महाराष्ट्र के साथ मिलकर काम कर रहा है।
सांस्कृतिक सहयोग:
- सिंगापुर में बड़ी संख्या में रहने वाले भारतीय प्रवासी कई सांस्कृतिक समूहों के माध्यम से एवं सिंगापुर के आधिकारिक समर्थन से उच्च स्तरीय सांस्कृतिक गतिविधियों को साझा करते हैं।
- उन्होंने 4वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस (International Day of Yoga) पर 173 सभाओं (Session) का आयोजन किया जिसमें लगभग 8000 लोगों ने भाग लिया।
- यहाँ तक कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर सनटेक कन्वेंशन सेंटर (Suntec Convention Centre- दुनिया की सबसे बड़ी HD वीडियो स्क्रीन) में गांधीजी का वीडियो चलाकर मनाया गया।
भारतीय समुदाय:
- सिंगापुर में रहने वाली कुल 3.9 मिलियन आबादी में 3.5 लाख (9.1%) भारतीय नागरिक हैं।
- आसियान-भारत भागीदारी के 25 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में 6-7 जनवरी, 2018 को सिंगापुर में आसियान-भारत प्रवासी भारतीय दिवस (Pravasi Bharatiya Divas) मनाया गया।